लेखिका देश को मिली आज़ादी का पहला जश्न क्यों नहीं देखने जा सकी? - lekhika desh ko milee aazaadee ka pahala jashn kyon nahin dekhane ja sakee?

भारत ने ऐसे मनाया था अपना पहला स्वतंत्रता दिवस, देखिए यह खास तस्वीरें

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Abhilash Srivastava Updated Sun, 15 Aug 2021 12:04 AM IST

15 अगस्त 1947, भारत के इतिहास का सबसे खूबसूरत दिन। इसी दिन भारत को अंग्रेजों के शासन  से पूरी तरह से आजादी मिल गई थी। देश में हर तरफ जश्न का माहौल था, अब सब खुली हवा में बिना किसी डर के सांस ले सकते थे। 14 अगस्त की देर रात पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के आजादी की घोषणा की। अगली सुबह, सूरज की किरणें चारों तरफ आजादी का आनंद लेकर आई थीं। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। 15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।

लालकिले पर इस जश्न में शामिल होने के लिए हजारों की भीड़ जुटी। पंडित नेहरू ने देशवासियों को आजादी दिवस के मौके पर संबोधित किया। आइए आगे की स्लाइडों में पहले स्वतंत्रता दिवस की कुछ तस्वीरें देखते हैं।

माउंटबेटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्रता के तारीख की पुष्टि की। जैसे ही यह घोषणा की गई, ब्रिटिश सैनिकों को उनके बैरकों में वापस ले लिया गया था। तस्वीर में पंडित नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना मौजूद हैं।

15 अगस्त 1947 को आयोजित संविधान सभा में स्वतंत्रता दिवस सत्र दौरान ली गई एक तस्वीर। यह सभा आजादी की उमंग को दोगुनी करने वाली थी।
 

15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान इंडिया गेट, नई दिल्ली पर खड़ी रॉयल इंडियन नेवी की एक टुकड़ी। 

15 अगस्त, 1947 को को न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया गया। भारत के आजादी की जश्न मनाया जा रहा था।
 

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Independence Day 2021: देश में स्‍वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को मनाया जाता है. 15 अगस्‍त 1947 ये वो दिन है जब हमें आजादी मिली. आपको बता दें कि आजादी आधी रात के समय मिली थी. 15 अगस्त के दिन ही हम आजादी का ये दिन मनाते हैं, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी क्या है. क्यों इसी दिन आजादी का जश्न मनाते हैं, ये दिन ही आजादी देने के लिए क्यों चुना गया. 

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पहले साल 1930 से लेकर 1947 तक 26 जनवरी के दिन भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था. इसका फैसला साल 1929 में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में हुआ था, जो लाहौर में हुआ था. इस अधिवेशन में भारत ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी. इस घोषणा के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा भारतीय नागरिकों से निवेदन किया गया था साथ ही साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता तक आदेशों का पालन समय से करने के लिए भी कहा गया. 

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 उस समय भारत में लॉर्ड माउंटबेटन का शासन था. माउंटबेटन ने ही निजी तौर पर भारत की स्‍वतंत्रता के लिए 15 अगस्‍त का दिन तय करके रखा था. बताया जाता है कि इस दिन को वे अपने कार्यकाल के लिए बहुत सौभाग्‍यशाली मानते थे. इसके पीछे दूसरी खास वजह ये थी कि दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान 1945 में 15 अगस्‍त के ही दिन जापान की सेना ने ब्रिटेन के सामने उनकी अगुवाई में आत्‍मसमर्पण कर दिया था.

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माउंटबेटन उस समय सभी देशों की संबद्ध सेनाओं के कमांडर थे. लॉर्ड माउंटबेटन की योजना वाली 3 जून की तारीख पर स्‍वतंत्रता और विभाजन के संदर्भ में हुई बैठक में ही यह तय किया गया था. 3 जून के प्‍लान में जब स्‍वतंत्रता का दिन तय किया गया उसे सार्वजनिक रूप से घोषित किया गया तब देश भर के ज्‍योतिषियों में आक्रोश पैदा हुआ क्‍योंकि ज्‍योतिषीय गणना के अनुसार 15 अगस्‍त 1947 का दिन अशुभ और अमंगलकारी था. विकल्‍प के तौर पर दूसरी तिथियां भी सुझाई गईं लेकिन माउंटबेटन 15 अगस्‍त की तारीख पर ही अड़े रहे, ये उनके लिए खास तारीख थी. आखिरी समस्‍या का हल निकालते हुए ज्‍योतिषियों ने बीच का रास्‍ता निकाला. 

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फिर 14 और 15 अगस्‍त की मध्‍यरात्रि का समय सुझाया और इसके पीछे अंग्रेजी समय का ही हवाला दिया गया. अंग्रेजी परंपरा में रात 12 बजे के बाद नया दिन शुरू होता है. वहीं हिंदी गणना के अनुसार नए दिन का आरंभ सूर्योदय के साथ होता है. ज्‍योतिषी इस बात पर अड़े रहे कि सत्‍ता के परिवर्तन का संभाषण 48 मिनट की अवधि में संपन्‍न किया जाए हो जो कि अभिजीत मुहूर्त में आता है. ये मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 15 मिनट तक पूरे 24 मिनट तक की अवधि का था. ये भाषण 12 बजकर 39 मिनट तक दिया जाना था. इस तय समय सीमा में ही जवाहरलाल नेहरू को भाषण देना था. 

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शुरुआती तौर पर ब्रिटेन द्वारा भारत को जून 1948 तक सत्‍ता हस्तांतरित किया जाना प्रस्‍तावित था. फरवरी 1947 में सत्‍ता प्राप्‍त करते ही लॉर्ड माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं से आम सहमति बनाने के लिए तुरंत श्रृंखलाबद्ध बातचीत शुरू कर दी, लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं था. खासकर, तब जब विभाजन के मसले पर जिन्‍ना और नेहरू के बीच द्वंद की स्थिति बनी हुई थी. एक अलग राष्‍ट्र बनाए जाने की जिन्‍ना की मांग ने बड़े पैमाने पर पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगों को भड़काया और हर दिन हालात बेकाबू होते गए. निश्चित ही इन सब की उम्‍मीद माउंटबेटन ने नहीं की होगी इसलिए इन परिस्थितियों ने माउंटबेटन को विवश किया कि वह भारत की स्‍वतंत्रता का दिन 1948 से 1947 तक एक साल पहले ही पूर्वस्‍थगित कर दें. 

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1945 से मिल चुके थे संकेत

साल 1945 में दूसरे विश्‍व युद्ध के खत्म होने के समय ब्रिटिश आर्थिक रूप से कमज़ोर हो चुके थे और वे इंग्‍लैंड में स्‍वयं का शासन भी चलाने में संघर्ष कर रहे थे. ऐसा भी कहा जाता है कि ब्रिटिश सत्‍ता लगभग दिवालिया होने की कगार पर थी. महात्‍मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस की गतिविधियां इसमें अहम भूमिका निभाती हैं. 1940 की शुरुआत से ही गांधी और बोस की गतिविधियों से अवाम आंदोलित हो गया था और दशक के आरंभ में ही ब्रि‍टिश हुकूमत के लिए यह एक चिंता का विषय बन चुका था. 

1 लेखिका देश को मिली आज़ादी का पहला जश्न क्यों नहीं देखने जा सकी?

1. घबराया 2022-23 Page 8 20 कृतिका 15 अगस्त 1947 को, जब देश को आज़ादी मिली या कहना चाहिए, जब आज़ादी पाने का जश्न मनाया गया तो दुर्योग से मैं बीमार थी।

2 लेखिका 15 अगस्त 1947 का स्वतंत्रता समारोह देखने क्यों नहीं जा सकीं?

रुचिका प्रिंटर्स, 10295, लेन नं.

वर्ष 1947 भारत की आज़ादी के जश्न में लेखिका शामिल नही हो पाई क्योंकि उसे *?

भारत बेशक वर्ष 1947 में आजाद हुआ लेकिन ठियोग में देश के पहले प्रजामंडल का गठन 1946 में ही हो गया था। उस समय 360 रियासतों, राजाओं, राणाओं, नवाब और निजाम के शासन वाला बाकी देश अंग्रेजों से मुक्ति के लिए लड़ रहा था।

मेरे संग की औरतें पाठ लोगों को क्या शिक्षा देता है *?

'मेरे संग की औरतें' पाठ लोगों को क्या शिक्षा देता है? (a) लड़कियों को स्वतंत्रतापूर्वक जीने का अधिकार देना चाहिए। (b) लड़कियाँ घर के लिए बहुत आवश्यक होती है। (c) लड़कियों के बिना समाज अधूरा होता है।