मेंडल ने प्रयोग में मटर के कितने गुणों का चयन किया? - mendal ne prayog mein matar ke kitane gunon ka chayan kiya?

मेंडेल Ka Prayog

Pradeep Chawla on 06-09-2018

मेंडल ने 1856 (1856) तक के बीच मटर के 10,000 पौधे बोए और उनका प्रेक्षण किया। इन्होंने जिस तरह की समस्या हल करने का प्रयास किया उसका एक उदाहरण यह है: मटर के एक ऊँचे और एक छोटे पौधे की संतान ऊँची होगी अथवा छोटी? ऊँचे पौधे और छोटे पौधे से संतान प्राप्त करने के लिए मेंडल ने ऊँचे पौंधे के फूल में से सुनहरी धूलि ली। तथा इसे छोटे पौधे की स्त्री के सिर पर डाला। इससे जो बीज बने उन्हें बोया। सब पौधे 'पिता' पौधे की भाँति ऊँचे थे। मेंडल ने ऊँचेपन को प्रभावी लक्षण कहा है। जब इन ऊँची संतानों के बच्चे हुए, उनके बीज उगाए गए, तो उन्होंने पाया कि दूसरी पीढ़ी अथवा पौधों में सब पौधे ऊँचे नहीं थे। प्रति तीन ऊँचे पौधों के पीछे एक पौधा छोटा था। इस छोटे पौधे को दादी की छोटाई आनुवंशिकता में मिली थी। तथा छोटेपन को अप्रभावी लक्षण कहा।

इसी प्रकार पीले बीजों की मटर को हरे बीजों के साथ संकरित किया। तब वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उनसे उत्पन्न पहली पीढ़ी से सब पौधों के बीज पीले थे। उसमें अगली पीढ़ी अर्थात् पौधों में तीन पीले और एक हरा था। यहां पीला प्रभावी और हरा अप्रभावी लक्षण था। इन्हीं प्रयोगों को असंख्य बार दुहराया पर फल वही निकला। आठ वर्ष तक बड़ी सतर्कता के साथ कार्य करने के बाद, जब इनको पूर्ण विश्वास हो गया, तो कहा कि पौधों की आनुवंशिकता कुछ अमोघ अपरिवर्तनशील नियमों के अनुसार कार्य करती है|

स्वाभाविक ही था कि वे अपने इन नए सिद्धान्तों के विषय में उत्तेजित हों। अब इन्होंने निश्चय किया कि समय आ गया है जब इनको संसार को बताना चाहिए, कि उन्होंने किस बात का पता लगा लिया है। सन् 1865 ई। में इन्होंने एक लेख लिखा और उसे नगर की वैज्ञानिक सभा के सामने पढ़ा: पर इन्होंने महसूस किया कि कोई भी इनकी बात को समझ नहीं पा रहा है। श्रोताओं ने नम्रतापूर्वक तालियाँ बजाई और जो कुछ वहाँ सुना उसे तत्काल ही भूल गए। कदाचित् वे उन्हें अच्छी तरह समझा नहीं सके थे। घर लौटकर उस लेख को पुन: लिखा। कुछ सप्ताह बाद उन्होंने उसे दूसरी सभा में पढ़ा, पर यहाँ पर भी किसी श्रोता ने कोई रुचि नहीं ली। शायद उन्होंने समझा हो कि मटर के पौधों से भी क्या कोई महत्त्वपूर्ण बात सिद्ध हो सकती है। भाषण एक छोटी-सी वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। वह शीघ्र ही पुस्तकालय की अल्मारियों में अपवित्र और अप्रशंसित तथा धूलि से ढक गया।



Comments NITHYA NAG on 01-11-2022

Mendeliy anupat ke anusar bij pratidarsh ke vishleshn ka adhyan karna

Kumari sarita on 28-09-2022

Mendl avm unke prayog

W on 16-09-2022

Which word was used by mendel at the place of genes

Siddharth sharma on 15-07-2022

Mendak ne garden pea par prayog kiya tha

Paryavaran on 08-04-2022

Medal me podho me Kya paya

Rahul Yadav on 11-11-2021

Vibhinn tyre kitne prakar ki hoti hai

Rahul Yadav on 11-11-2021

Vibhinn tyre kitne prakar ki
hoti hai

Abhimanyu Chauhan on 28-09-2021

Mendel ne matar ke paudhe per kitne varshon Tak prayog kiye

Kunal meena on 11-07-2021

मेंडल ने अपने प्रयोगों में मटर के पौधों की निम्नलिखित में से किस विशेषता का उपयोग नहीं किया था?

Bhuneshwar on 04-07-2021

Mental ne apna peryog kiya tha

Priti kumari on 22-03-2021

Mater ke phoudha pr Mendel ne kitne bar pryog kiye

Bikram Saval on 02-12-2020

Medal ne kis pode par paryog kiya

Mendal ka prayog on 16-10-2020

Mendal ka prayog

Babu on 14-09-2020

Babu ka metlab

Hemant kumar on 18-05-2020

Mendel ne kis janwar par apna prayog kiya tha

Amit on 07-02-2020

Mendal Ne video ke liye kitne jode production wale prayog Kiya

Abhishek maurya Tmbps on 12-01-2020

Kaun sa matar tha
1 Jangli matar
2 gardan matar

Kanta kumar on 10-01-2020

Mandel ne prayog kis porhe par kiye
Jangali matar ya garden matar

विपिन पानडेय on 24-11-2019

दिमाग से कमी और अधिकता के बीच krass कराने पर

ASHISH KUMAR MAURYA on 14-11-2019

Mendel ne apne experiment mein kis matar ke paudhe per prayog kiya tha

Sonali on 14-07-2019

Mendal ne matar ke podho se pehle kis podhe ka use kiya

Jitendra Kumar on 27-08-2018

Sbse Vidal givit stanyae konsa h

Dipu on 20-08-2018

And. Hiresiyam

Dipu on 20-08-2018

Dusre padp ka nem And. Hiresiyam

Hanuman YADAV on 19-08-2018

MEndel had also worked on one more plant other than pea.that was

P swami on 19-08-2018

Mendel ne matar ke alawa ek aur padpa par karye kiya wah padpa tha



विशेष: मेंडल ने हमें बताया है कि एक नवजात में कोई भी विशेषता इससे निर्धारित होती है कि उसे अपने मां-बाप से कौन से गुण मिले हैं. हालांकि उनकी इस महत्वपूर्ण खोज का अर्थ लोग 35 साल बाद समझ सके.

मेंडल ने प्रयोग में मटर के कितने गुणों का चयन किया? - mendal ne prayog mein matar ke kitane gunon ka chayan kiya?

ग्रेगर जॉन मेंडल. (फोटो साभार: www.tes.com)

19वीं सदी के दूसरे भाग में यूरोप के एक पादरी ने एक अद्भुत खोज कर डाली. यह खोज अपने समय से इतनी आगे थी कि प्रकाशित होने के लगभग 35 साल बाद तक, जिसने भी इसे पढ़ा, किसी को भी इसके महत्व का एहसास ही नहीं हुआ.

अंतत: वर्ष 1900 में दुनिया इस खोज के लिए तैयार हो चुकी थी और तीन वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से इस खोज का पता लगाया. तो चलिए देखते हैं कि इस पादरी ने ऐसा क्या ख़ास खोज डाला था.

वैज्ञानिक ग्रेगर जॉन मेंडल का जन्म 1822 में (डार्विन के जन्म के 13 साल बाद) आॅस्ट्रियन साम्राज्य के सिलेसियन हिस्से में हुआ था, जो अब चेक गणराज्य में पड़ता है. उनके मां-बाप ने उसका नाम योहान रखा. अपने शहर में बड़े होते मेंडल जानते थे कि उनके जीवन में खेती नहीं लिखी थी.

मेंडल एक गरीब परिवार से थे और जब युवा मेंडल की काबिलियत उनके अध्यापकों ने देखी तो 1833 में घर से कुछ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़े स्कूल भेजा गया.

हालांकि मेंडल के परिवार की आर्थिक हालत काफी ख़राब थी और खगोल-विज्ञान में रुचि दिखाने के बावजूद, मेंडल के पिता ने उन्हें परिवार के खेतों का ज़िम्मा उठाने को कहा पर मेंडल नहीं माने और 1841 में दो साल के एक कोर्स में दाख़िला ले लिया.

यहां, मेंडल को भौतिक विज्ञान और गणित के महत्व का एहसास हुआ; साथ-साथ उनमें पौधों के बारे में पढ़ने का शौक भी पैदा हुआ. उनके जीवन के सर्वश्रेष्ठ काम में उन्होंने गणित और पौधों का एक ऐसा मिलान किया जिससे उनका नाम हमेशा अमर रहेगा.

7 सितंबर 1843 को मेंडल चर्च में दाख़िला लेते हैं. कहते हैं कि उस समय का रिवाज़ था कि चर्च में दाख़िले के बाद आप एक नया नाम अपनाते थे- यहां मेंडल ने ‘ग्रेगर’ नाम अपनाया.

शुरुआती दौर मे मेंडल की ज़िम्मेदारी नज़दीकी अस्पताल जाकर बीमारों को चर्च का ज्ञान देना था. मगर वह एक नर्म दिल के आदमी थे, बीमारों को देख वो ख़ुद बीमार हो जाते थे! नतीजा यह हुआ की चर्च के पादरी ने उन्हें अस्पताल जाने से राहत दे दी और प्रकृति का अध्ययन करने की सलाह दी.

विज्ञान की दुनिया में एक ठोस क़दम उठाने का मौका मेंडल के पास तब आया जब एक नज़दीकी स्कूल ने विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए चर्च में एक दरख़्वास्त की. इस किरदार की तैयारी के लिए मेंडल को 1851 में दो साल के लिए विएना भेजा गया.

यह साल मेंडल के एक वैज्ञानिक बनने में बुनियादी थे. ऑस्ट्रिया में मेंडल एक गणितज्ञ से मिले जिनका ये मानना था की दुनिया की हर एक चीज़, चाहे वो मनुष्य द्वारा बनाई गई हो या प्रकृति द्वारा, उसे गणित के एक फॉर्मूले से समझा जा सकता है. जैसा कि हम देखेंगे, ऐसी सोच मेंडल के काम के लिए अनिवार्य थी.

1853 में मेंडल वापस ब्रनो स्थित अपने चर्च लौटते हैं और वहां एक दशक से भी अधिक समय तक वो जीवन विज्ञान में उस समय की सबसे महत्वपूर्ण और जटिल समस्या हल करने में लग जाते हैं. वो प्रश्न था, ‘किसी भी जीव-जंतु में, मां-बाप से बच्चे तक यानी एक पीढ़ी से दूसरी तक शारीरिक लक्षण कैसे दिए जाते हैं?’

इस प्रश्न का जवाब मेंडल चूहों पर परिक्षण कर खोजने लगे. बहरहाल, चर्च को ये काम पसंद नहीं आया- उनकी नज़रों में चर्च ईश्वर की महिमा का अध्ययन करने की जगह थी, न कि एक धर्म-निरपेक्ष विश्वविद्यालय. इस कारण से पादरी को मेंडल का चूहों पर काम करना पसंद नहीं आया. परिणामस्वरूप, मेंडल ने चूहों को छोड़, मटर के पौधों पर अपना ध्यान केंद्रित किया.

उन्होंने देखा की मटर के पौधे की एक ख़ास विशेषता है- उसका फूल या तो सफ़ेद होता है या जामुनी. अब जानने वाली बात ये थी कि ऐसा क्यों है- और एक पौधे में क्या निर्धारित करता है कि उसका फूल सफ़ेद होगा या जामुनी. इस सवाल के हल के लिए मेंडल ने कुछ ऐसा किया.

मेंडल का काम समझने से पहले हमें ये जानना होगा कि पौधों के फूलों में नर और मादा दो भाग होते हैं. जब नर और मादा का मिलन होता है तो नए पौधे के बीज तैयार होते हैं. नया पौधा बनने के लिए नर और मादा एक पौधे से भी हो सकते हैं या अलग-अलग पौधों से भी हो सकते हैं.

काम की शुरुआत करने के लिए, मेंडल ने दो ऐसे पौधे लिए, जिनमें से एक पर हमेशा सफ़ेद फूल खिलते थे और दूसरे पर हमेशा जामुनी. जब उन्होंने सफ़ेद फूल वाले पौधे का संगमन (मिलन) सफ़ेद फूल वाले पौधे से कराया तो देखा कि जो नया पौधा होता उसमें हमेशा सफ़ेद फूल खिलते.

इसी तरह, जब जामुनी फूल वाले पौधे को जामुनी फूल के पौधे से संगमन कराया तो नए पौधे पर हमेशा जामुनी फूल लगते. इसमें शायद कोई हैरान होने वाली बात भी नहीं थी. जब जन्म देने वाले दोनों पौधे सफ़ेद रंग के थे तो नए पौधे के फूल भी सफ़ेद ही आए (और ऐसा ही जामुनी फूल वाले पौधों के साथ हुआ). इन शुरुआती पौधों को मेंडल ने पीढ़ी नंबर- 1 कहा.

पर मज़ेदार बात यह रही कि जब उन्होंने सफ़ेद फूलों वाले एक पौधे का संगमन जामुनी फूल वाले पौधे के साथ कराया को पाया कि नए पौधे के फूल जामुनी होते हैं.

इससे भी बढ़कर ये बात थी कि यह प्रयोग आप जितनी भी बार कर लीजिए नए पौधे के फूल हमेशा जामुनी ही रहेंगे. मेंडल इससे हैरान थे कि सफ़ेद फूल बनाने की युक्ति कहां गुम हो गई, जिससे पीढ़ी नंबर- 2 के सारे पौधे जामुनी फूल वाले थे.

अब उन्होंने ऐसा किया जिससे ये कहानी और दिलचस्प हो जाती है. अब मेंडल ने दूसरी पीढ़ी के दो पौधे लिए और उनके संगमन से एक नया पौधा बनाया (यह पौधा उन्होंने पीढ़ी नंबर- 3 कहा).

मज़ेदार बात यह हुई कि इस तीसरी पीढ़ी में कभी नए पौधे के फूलों का रंग सफ़ेद होता तो कभी जामुनी. और निश्चित रूप से कहें हो उन्होंने देखा कि अगर यह प्रयोग सैकड़ों बार दोहराया जाए (जैसा कि मेंडल ने किया) तो यह पाया जाएगा कि तीसरी पीढ़ी के जो पौधे हैं, उनमे से 75 प्रतिशत जामुनी फूल वाले हैं और बाकी 25 प्रतिशत सफ़ेद फूल वाले हैं.

इस अवलोकन से मेंडल के मन मे दो सवाल उठे…

पहला, ऐसा क्या हो गया जिससे सफ़ेद रंग पीढ़ी नंबर- 2 में लुप्त हो गया था और फिर पीढ़ी नंबर- 3 में वापस आ गया?

और दूसरा इन पौधों मे ऐसा क्या चल रहा था जिससे कि यह 75:25 प्रतिशत के आंकड़े का पालन कर रहे थे?

मेंडल की खोज की महानता यही है कि वह सिर्फ़ इन नतीजों पर ही नहीं रुके, उन्होंने इसका राज़ खोला. हमें आज यह पता है कि मेंडल एकदम सही दिशा में सोच रहे थे पर आज 21वीं सदी में उनके काम के बारे में बात करते हुए हमें यह ध्यान मे रखना चाहिए कि में ‘डीएनए’ जैसी किसी चीज़ का कोई ज्ञान नहीं था.

खैर, मेंडल ने फूलों के रहस्य को कुछ इस तरह समझाया. मेंडल ने कहा कि एक नवजात पौधे के फूलों का रंग इस बात से निर्धारित होता है कि उसके जन्म के लिए जिन दो पौधों का संगमन हुआ, उनके फूलों का क्या रंग था. वो दोनों युवा पौधे के फूलों का रंग निर्धारित करने के लिए एक तत्व युवा पौधे में छोड़ेंगे और उसके परिणामस्वरूप पौधे के फूलों का रंग निर्धारित होगा.

उन्होंने कहा कि उनके प्रयोगों से ऐसा लगता है जैसे फूलों का रंग सफ़ेद भी हो सकता है और जामुनी भी. जो सफ़ेद फूल वाले पौधे थे (पीढ़ी नंबर 1 में), उनमें कुछ ऐसा तत्व था जो वो अपने शिशु पौधों को देते थे, जिससे उसके फूलों का रंग सफ़ेद हो. इस कारण, दो सफ़ेद फूलों वाले पौधों के संगमन से बनने वाले पीढ़ी नंबर 1 के पौधे हमेशा सफ़ेद फूल ही देंगे- क्योंकि ऐसे पौधे को सिर्फ सफ़ेद रंग देने वाला तत्व ही मिल रहा है.

पर, जब एक सफ़ेद और एक जामुनी रंग के फूल वाले पौधे के संगमन से नया पौधा मिलता है तो इस पौधे को सफ़ेद रंग देने वाला और जामुनी रंग देने वाला, दोनों तत्व मिलते हैं.

ऐसे में, मेंडल ने कहा, कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे जामुनी तत्व, सफ़ेद तत्व पर भारी पड़ जाता है. परिणामस्वरूप, पीढ़ी नंबर 2 में सारे पौधे जामुनी रंग के फूल देते हैं.

अब पीढ़ी नंबर 2 में सब पौधे जामुनी फूल वाले तो हैं, पर हर पौधे के पास एक सफ़ेद तत्व भी है और एक जामुनी तत्व भी है. अब जब ऐसे दो पौधों का संगमन होगा, तब दोनों पौधे, निरुद्देश्य तरीके से अपना कोई एक तत्व शिशु पौधे को देंगे.

मेंडल ने समझाया कि ऐसी स्थिति में पीढ़ी नंबर 3 में 25 प्रतिशत पौधे होंगे जिन्हें दोनों पौधों से सफ़ेद तत्व मिलेगा (यानी सफ़ेद फूल); 50 प्रतिशत होंगे जिन्हें एक सफ़ेद तत्व और एक जामुनी तत्व मिलेगा (यानी जामुनी फूल); और 25 प्रतिशत ऐसे होंगे जिनमें दोनों जामुनी तत्व मिलेंगे (यानी जमुनी फूल). यह एकदम वही आंकड़ा है जो मेंडल ने तीसरी पीढ़ी में देखा.

तो, मेंडल के नतीजों ने हमें बताया कि एक नवजात में कोई भी विशेषता इससे निर्धारित होती है कि उसे अपने मां-बाप से कौन से तत्व मिले हैं. वो तत्व अलग भी हो सकते हैं, या एक जैसे भी. नवजात की विशेषता दोनों तत्वों के गणित से निकलेगी. अक्सर एक तत्व, दूसरे पर भारी पड़ जाता है (जैसे जामुनी रंग सफ़ेद रंग वाले तत्व पर).

एक नवजात शिशु के पैदा होने पर हम अकसर ऐसा बोलते हैं, ‘इसकी आंखें मां पर गई हैं.’, ‘नाक बाप जैसा है’ इत्यादि. पर ऐसा कैसे होता है? जो मेंडल ने हमें मटर के पौधे के माध्यम से समझाया, ठीक वही हमारे और सभी जानवरों के साथ भी होता है.

जन्म के दौरान मां और पिता दोनों, अपनी-अपनी ओर से तत्व (डीएनए) नवजात को देते हैं. इन दोनों तत्वों में मेंडल के गणित के तहत निर्धारित होता है कि नवजात शिशु कैसा दिखेगा. क्योंकि मेंडल का गणित और उनकी खोज सिर्फ मटर ही नहीं, बल्कि प्रकृति के हर एक जानवर पर लागू होती है- इसलिए अनुसंधान के इस क्षेत्र को मेंडलियन आनुवंशिकी कहा जाता है.

जब 1865 में मेंडल को अपने नतीजे पढ़ने के लिए एक वैज्ञानिक सम्मेलन में बुलाया गया, तो इतना गणित होने के कारण किसी को उनका काम समझ नहीं आया. परिणामस्वरूप, मेंडल ने हार मानकर अपने ख़र्चे पर अपनी खोज को लिखकर उसकी 40 कॉपियां बनवाईं और उस समय के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों और संस्थानों को भेजीं (कहा जाता है कि उनमें से एक कॉपी उन्होंने डार्विन को भी भेजी थी).

पर मेंडल के काम को समझने की क्षमता उस समय के जाने-माने वैज्ञानिक भी नहीं रखते थे और अगले 35 साल तक मेंडल वैज्ञानिक इतिहास के पन्नों से लुप्त हो गए.

मटर के पौधों पर काम करने के बाद मेंडल ने जीवन के आख़िरी चरण में मधुमखियों पर काम किया. मटर में दिखाई गई 75-25 के आंकड़े को वह मधुमखियों में भी दिखाना चाहते थे. उस समय तक वह चर्च के मठाधीश (हेड पादरी) चुने जा चुके थे.

एक बार की बात है, मठाधीश मेंडल एक युवक पादरी को मधुमखियों के नज़दीक लेकर गए. ठंड का मौसम अभी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ था, तो ज़मीन अभी भी बर्फ से सफ़ेद थी.

नज़दीक पहुंच मेंडल ने पादरी को अपनी टोपी उतार ज़मीन पर रखने को कहा. पादरी अभी 30 साल का भी नहीं था और मठाधीश को मना करने का साहस नहीं रखता था.

काले रंग की टोपी सफ़ेद बर्फ पर देख सैंकड़ों मधुमक्खियां टोपी की ओर आईं और उस पर अपना मैला फेंक कर टोपी को पीला कर दिया! दरअसल मेंडल जानते थे की सर्दी भर मधुमक्खियां मैला अपने अंदर ही रखती हैं और उसे बाहर फेंकने के लिए वह बर्फ पिघलने का इंतज़ार करती हैं. ज़मीन पर काली टोपी उन्हें बर्फ पिघलने के बाद की ज़मीन सी नज़र आएगी जिस पर वह अपना मैला फेंकेगी- मेंडल ऐसा जानते थे और बेचारे पादरी को इस मज़ाक का निशाना बनाया.

हांलाकि, मेंडल ने यह सब सोच तो लिया था पर वो इस सबसे पूरी तरह बेख़बर थे कि यह तत्व क्या हो सकता है. जैसा कि मैंने पहले कहा, मेंडल अपने समय से बहुत आगे थे.

दरअसल उन्होंने 20वीं सदी का सवाल 19वीं सदी में ही हल कर दिया था! शायद इसलिए, अगले 35 साल तक उनके काम का महत्व कोई नहीं समझ पाया. पर यह सब 1900 में बदल गया. पर रास्ते खोलने के बजाय, मेंडल के काम का महत्व समझने के बाद वैज्ञानिकों में एक युद्ध छिड़ गया.

डार्विन और वालेस द्वारा प्रस्तावित प्राकृतिक चयन के सिद्धांत को समझने के लिए दो खेमों मे बंट गए. अगले 20 साल, दुनियाभर के वैज्ञानिक इस समस्या को हल करने में जुट गए- पर उस कहानी हम किसी और दिन विचार करेंगे.

(लेखक आईआईटी बॉम्बे में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.)

Categories: विज्ञान, समाज

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मेंडल ने अपने प्रयोग में मटर के कितने गुणों का चयन किया?

मंडल ने लगभग 30000 मटर पौधों पर अपने प्रयोग किये जिनसे उन्होंने 3 नियम निष्पादित किये, ये नियम प्रभाविता, पृथक्करण तथा स्वतंत्र समूहन के नाम से जाने जाते हैं।

मेंडल ने अपने प्रयोग में मटर के पौधों का चयन क्यों किया?

Solution : मेंडल ने शोध हेतु मटर के पौधों को चुना, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं <br> • मटर के शुद्ध किस्म का मौजूद होना। <br> • मटर पौधों के विभेदी गुण की मौजूदगी। <br> • मटर के पुष्प प्रायः ढंका रहता है तथा स्वपरागण करता है। <br> • पौधे वार्षिक हैं तथा आसानी से लगाया जा सकता है।

मेंडल ने मटर के पौधे के कितने?

मेंडल ने 1856 (1856) तक के बीच मटर के 10,000 पौधे बोए और उनका प्रेक्षण किया।

मेंडल ने मटर के पौधे के कितने प्रत्याशी लक्षण का अध्ययन किया?

Question
Type of Answer
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In Video - Hindi In Text - Hindi
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