मन बहुत सोचता है Show मन बहुत सोचता है कि उदास न हो पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए? शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले, पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाव सहा कैसे जाए! नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े, खुली घास में दौड़ती मेघ-छायाएँ, पहाड़ी नदी : पारदर्श पानी, धूप-धुले तल के रंगारंग पत्थर, सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे, वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो— इसी पर जो जी में उठे वह कहा कैसे जाए! मन बहुत सोचता है कि उदास न हो, न हो, पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए! स्रोत :
Additional information availableClick on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher. Don’t remind me again OKAY rare Unpublished contentThis ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left. Don’t remind me again OKAY भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए मन बहुत सोचता है / अज्ञेयKavita Kosh से मन बहुत सोचता है कि उदास न हो शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले,
नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े, मन बहुत सोचता है कि उदास न हो मन बहुत सोचता है कि उदास न हो शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले, नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े, मन बहुत सोचता है कि उदास न हो अज्ञेय की कविता 'तुम हँसी हो' Book by Agyeya:अज्ञेय और रेणु के संबंध कितने मधुर थे, इसे कई प्रसंगों का जिक्र कर वरिष्ठ साहित्यकार भारत यायावर ने बताने-समझाने की कोशिश की है।
मैंने हीरा नंद वात्स्यायन अज्ञेय के उपन्यास ही पढ़े हैं, कविताएं नहीं नहीं के बराबर पढ़ीं। उनके उपन्यासों में ‘शेखर एक जीवनी’ मुझे सबसे पसंद है। उनकी एक कविता है- मन बहुत सोचता है कि उदास न हो । इसमें प्रवासी और एकांत जीवन की नीरसता का सजीव चित्रण है। उनका ‘शेखर एक जीवनी’ उपन्यास मैंने 1995 में पढ़ा था। उन दिनों सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली के यमुना विहार में रह रहा था। वैकल्पिक विषय हिंदी के सिलेबस में यह उपन्यास था। अज्ञेय ने भाषा और शिल्प की दृष्टि से भी हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। ‘शेखर एक जीवनी’ का नायक शेखर ईमानदार व्यक्ति है। ‘शेखर’ के ज़रिए अज्ञेय ने एक व्यक्ति के विकास की कहानी का तानाबाना बुना है, जो अपनी स्वभावगत अच्छाइयों और बुराइयों के साथ देशकाल की समस्याओं पर विचार करता है। अपनी शिक्षा-दीक्षा, लेखन और आज़ादी की लड़ाई में अपनी भूमिका के क्रम में कई लोगों के संपर्क में आता है, लेकिन उसके जीवन में सबसे गहरा और स्थायी प्रभाव शशि का पड़ता है, जो रिश्ते में उसकी बहन लगती है। दोनों के रिश्ते भाई-बहन के संबंधों के बने-बनाए सामाजिक ढांचे से काफी आगे निकल कर मानवीय संबंधों को एक नई परिभाषा देते हैं। शेखर’ दरअसल एक व्यक्ति के बनने की कहानी है, जिसमें उसके अंतर्मन के विभिन्न परतों की कथा क्रम के ज़रिए मनोवैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करने की कोशिश अज्ञेय ने की है। इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद कुछ आलोचकों ने कहा था कि ये अज्ञेय की ही अपनी कहानी है, लेकिन अज्ञेय ने इसका स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि शेखर के जीवन की कुछ घटनाएं और स्थान उनके जीवन से जरूर मिलते-जुलते हैं, लेकिन जैसे-जैसे शेखर का विकास होता गया है, वैसे-वैसे शेखर का व्यक्ति और रचनेवाला रचनाकार एक-दूसरे से अलग होते गए हैं। अज्ञेय का एक और उपन्यास- अपने अपने अजनबी- भी पढ़ा है। यह शेखर एक जीवनी की तुलना में बेहद छोटा है। इसमें में सेल्मा और योके दो मुख्य पात्र हैं। सेल्मा मृत्यु के निकट खड़ी कैंसर से पीड़ित एक वृद्ध महिला है और योके एक नवयुवती। दोनों को बर्फ से ढके एक घर में साथ रहने को मजबूर होना पड़ता है, जहां जीवन पूरी तरह स्थगित है। इस उपन्यास में स्थिर जीवन के बीच दो इंसानों की बातचीत के ज़रिए उपन्यासकार ने ये समझाने की कोशिश की है कि व्यक्ति के पास वरण की स्वतंत्रता नहीं होती। न तो वो जीवन अपने मुताबिक चुन सकता है और न ही मृत्यु। इस उपन्यास में ज्यां पाल सात्र के अस्तित्ववादी दर्शन की झलक भी दिखाई देती है। यह भी पढ़ेंः भाजपा पर असहिष्णुता का आरोप, पर खुद कितनी सहिष्णु है माकपा? भाजपा से मुकाबले के लिए अब इस तरह की तैयारी में जुटे विपक्षी दल इतिहास से जरूर सीखिए, पर दोहराने की कोशिश से बचिए असाधारण कवियों की तरह ही अज्ञेय भी आम आदमी की बात अपनी कविताओं में करते हैं। उनकी यह कविता- मन बहुत सोचता हैमन बहुत सोचता है कि उदास न हो पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए? शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले, पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाब सहा कैसे जाए! नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े, खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ, पहाड़ी नदी, पारदर्श पानी, धूप-धुले तल के रंगारंग पत्थर, सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे, वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो इसी पर जो जी में उठे, वह कहा कैसे जाए! मन बहुत सोचता है कि उदास न हो पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए? - Advertisement - |