मार्क्स के अनुसार 2 सामाजिक वर्ग कौन से हैं? - maarks ke anusaar 2 saamaajik varg kaun se hain?

2017 रूसी क्रांति का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है, लेकिन जिनके विचारों पर ये क्रांति हुई, क्या वो आज भी प्रासंगिक हैं?

हालांकि जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने उन्नीसवीं शताब्दी में काफ़ी कुछ लिखा, लेकिन आज भी इसमें कोई विवाद नहीं है कि उनकी दो कृतियां 'कम्युनिस्ट घोषणा पत्र' और 'दास कैपिटल' ने एक समय दुनिया के कई देशों और करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला था.

रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का उदय इस बात का उदाहरण था. कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि बीसवीं शताब्दी के इतिहास पर समाजवादी खेमे का बहुत असर रहा है. हालांकि, जैसा मार्क्स और एंगेल्स ने लिखा था, उस तरह साम्यवाद ज़मीन पर नहीं उतर पाया.

अंततः समाजवादी खेमा ढह गया और पूंजीवाद लगभग इस पूरे ग्रह पर छा गया. आईए जानते हैं, मार्क्स के वे चार विचार कौन से हैं जो साम्यवाद की असफलता के बावजूद आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं.

'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' और अपने अन्य लेखों में मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में 'वर्ग संघर्ष' की बात की है और बताया है कि कैसे अंततः संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेगा.

अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति 'दास कैपिटल' में उन्होंने अपने इन विचारों को बहुत तथ्यात्मक और वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषित किया है.

उनके प्रतिष्ठित जीवनी लेखक ब्रिटेन के फ़्रांसिस व्हीन कहते हैं, "मार्क्स ने उस सर्वग्राही पूंजीवाद के ख़िलाफ़ दार्शनिक तरीक़े तर्क रखे, जिसने पूरी मानव सभ्यता को ग़ुलाम बना लिया."

20वीं शताब्दी में मज़दूरों ने रूस, चीन, क्यूबा और अन्य देशों में शासन करने वालों को उखाड़ फेंका और निज़ी संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लिया.

ब्रिटेन के स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में जर्मन इतिहासकार अलब्रेख़्त रिसल कहते हैं कि 'भूमंडलीकरण के पहले आलोचक थे मार्क्स. उन्होंने दुनिया में बढ़ती ग़ैरबराबरी के प्रति चेतावनी दी थी.'

2007-08 में आई वैश्विक मंदी ने एक बार फिर उनके विचारों को प्रासंगिक बना दिया.

पूंजीवाद के 'पिता' एडम स्मिथ के 'वेल्थ ऑफ़ नेशन' से उलट मार्क्स का मानना था कि बाज़ार को चलाने में किसी अदृश्य शक्ति की भूमिका नहीं होती.

बल्कि वो कहते हैं कि मंदी का बार बार आना तय है और इसका कारण पूंजीवाद में ही निहित है.

अलब्रेख़्त के अनुसार, "उनका विचार था कि पूंजीवाद के पूरी तरह ख़त्म होने तक ऐसा होता रहेगा."

1929 में शेयर बाज़ार औंधे मुंह गिर गया और इसके बाद आने वाले झटके 2007-08 के चरम तक पहुंच गए, जब दुनिया का वित्त बाज़ार अभूतपूर्व रूप से संकट में आ गया था.

विशेषज्ञ कहते हैं कि हालांकि इन संकटों का असर भारी उद्योगों की जगह वित्तीय क्षेत्र पर अधिक पड़ा.

3-अकूत मुनाफ़ा और एकाधिकार

मार्क्स के सिद्धांत का एक अहम पहलू है- 'अतिरिक्त मूल्य.' ये वो मूल्य है जो एक मज़दूर अपनी मज़दूरी के अलावा पैदा करता है.

मार्क्स के मुताबिक़, समस्या ये है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की क़ीमत पर अपने मुनाफ़े को अधिक से अधिक बढ़ाने में जुट जाते हैं.

इस तरह पूंजी एक जगह और कुछ चंद हाथों में केंद्रित होती जाती है और इसकी वजह से बेरोज़गारी बढ़ती है और मज़दूरी में गिरावट आती जाती है.

इसे आज भी देखा जा सकता है.

ब्रिटिश मैग्जीन 'द इकोनॉमिस्ट' के एक हालिया विश्लेषण के अनुसार, पिछले दो दशकों में अमरीका जैसे देशों में मज़दूरों का वेतन स्थिर हो गया है, जबकि अधिकारियों के वेतन में 40 से 110 गुने की वृद्धि हुई है.

4-भूमंडलीकरण और ग़ैरबराबरी

हालांकि मार्क्स के जीवनी लेखक फ़्रांसिस व्हीन कहते हैं कि पूंजीवाद अपनी कब्र खुद खोदता है, मार्क्स की ये बात ग़लत है, बल्कि इससे उलट ही हुआ है, साम्यवाद ख़त्म हुआ तो दूसरी तरफ़ पूंजीवाद सर्वव्यापी हुआ है.

लेकिन पेरिस विश्वविद्यालय में दर्शन के प्रोफ़ेसर और मार्क्सवादी विचारक जैक्स रैंसियर का कहना है कि, "चीनी क्रांति की वजह से आज़ाद हुए शोषित और ग़रीब मज़दूरों को आत्महत्या की कगार पर ला खड़ा किया गया है ताकि पश्चिम सुख सुविधा में रह सके, जबकि चीन के पैसे से अमरीका ज़िंदा है, वरना वो दिवालिया हो जाएगा."

भले ही मार्क्स अपनी भविष्यवाणी में असफल हो गए हों, पूंजीवाद के वैश्विकरण की आलोचना करने में उन्होंने ज़रा भी ग़लती नहीं की.

'कम्युनिस्ट घोषणा' पत्र में उन्होंने तर्क किया है कि पूंजीवाद के वैश्विकरण ही अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता का मुख्य कारण बनेगा. और 20वीं और 21वीं शताब्दी के वित्तीय संकटों ने ऐसा ही दिखाया है.

यही कारण है कि भूमंडलीकरण की समस्याओं पर मौजूदा बहस में मार्क्सवाद का बार बार ज़िक्र आता है.

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मैक्स वेबर ने अपने सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त में “कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण सिद्धान्त” की कमियों को दूर करने का प्रयास किया है तथा सामाजिक स्तरीकरण की विवेचना वेबर ने शक्ति (Power) के आधार पर की है। मैक्स वेबर का कथन है कि “समाज में पाई जाने वाली असमान शक्ति की एक संगठित अभिव्यक्ति सामाजिक स्तरीकरण है।” इससे स्पष्ट होता है कि समाज के सभी सदस्यों में शक्ति का बँटवारा समान रूप से न होकर असमान रूप से होता है अर्थात् किसी को कम शक्ति (Power) और किसी को अधिक शक्ति (Power) प्राप्त होती है। समाज में समान शक्ति वाले व्यक्तियों के समूह को वर्ग कहा जाता है। भिन्न-भिन्न वर्गों में शक्ति का विभाजन जिस रूप में होता है। उसी के अनुसार समाज में सामाजिक स्तरीकरण या ऊँच-नीच का संस्तरण उत्पन्न हो जाता है। मैक्स वेबर का सामाजिक स्तरीकरण का यही सिद्धान्त है।

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8 तरह के पीवीसी वॉल पैनल २०२२

मार्क्स के अनुसार 2 सामाजिक वर्ग कौन से हैं? - maarks ke anusaar 2 saamaajik varg kaun se hain?
मार्क्स के अनुसार 2 सामाजिक वर्ग कौन से हैं? - maarks ke anusaar 2 saamaajik varg kaun se hain?

शक्ति के सम्बन्ध में मैक्स वेबर का कथन है कि “शक्ति से हमारा तात्पर्य उस अवसर से है जिसको एक व्यक्ति या अनेक व्यक्ति अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए किसी सामूहिक क्रिया में भाग लेने दूसरे व्यक्तियों द्वारा विरोध करने पर भी प्राप्त कर लेते हैं।” मैक्स वेबर की यह मान्यता है कि जिस प्रकार से सामाजिक प्रतिष्ठा किसी समुदाय के विशेष समूहों में विभक्त रहती है उसी प्रकार से उसके अनुरूप ही सामाजिक स्तरीकरण का निर्धारण होता है।

सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार

मैक्स वेबर ने संस्थात्मक रूप से तीन प्रकार की शक्तियों को स्पष्ट किया है- आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक शक्ति। इन शक्तियों के आधार पर आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में सामाजिक स्तरीकरण को मैक्स वेबर ने निम्न प्रकार से स्पष्ट किया है।

(1) आर्थिक क्षेत्र में स्तरीकरण-

मैक्स वेबर ने आर्थिक क्षेत्र में सामाजिक स्तरीकरण को आर्थिक शक्ति के वितरण के अनुसार बतलाया है। समान आर्थिक हितों तथा समान आर्थिक शक्ति वाले व्यक्ति अपने एक वर्ग का निर्माण करते हैं जिनमें उच्चता तथा निम्नता का अन्य वर्गों के साथ संस्तरण होता है। मैक्स वेबर इस बात से सहमत हैं कि आर्थिक आधार पर समाज को दो प्रमुख वर्ग में विभक्त किया जा सकता है- पूँजीपति वर्ग अर्थात् जिसके पास सम्पत्ति हो तथा सम्पत्ति की शक्ति का अधिकारी हो और दूसरा सम्पत्तिविहीन वर्ग जो सेवा कार्य में संलग्न रहता है। किन्तु मैक्स वेबर ने इसके आगे भी इन वर्गों में भी विभिन्न आधार पर वर्ग विभाजन करके स्तरीकरण को स्पष्ट किया है। जैसे सम्पत्ति के प्रकार पर वर्ग विभाजन इसके अन्तर्गत जमींदार वर्ग, उद्योगपति वर्ग आदि प्रकार के वर्ग निर्मित होते हैं। इसी प्रकार सेवाओं के प्रकार के आधार पर वर्ग विभाजन के अन्तर्गत जो जिस प्रकार कार्य या सेवा करता है, उसके अनुसार उनका वर्ग निर्मित होता है; जैसे-शिक्षित वर्ग, लिपिक वर्ग, डॉक्टर वर्ग, वकील वर्ग आदि।

इस प्रकार मैक्स वेबर, मार्क्स के दो वर्ग की धारणा को नहीं मानता और उपर्युक्त प्रकार से समाज में अनेक वर्गों के अस्तित्व को स्वीकार करता है। अतएव स्पष्ट है कि समाज में आर्थिक शक्ति के आधार पर दो ही वर्ग नहीं बल्कि दो से अधिक वर्ग पाए जाते हैं जिनकी स्थिति समान न होकर असमान होती है तथा इनमें आपस में उच्च और निम्न का संस्तरण पाया जाता है। इस प्रकार मैक्स वेबर के अनुसार आर्थिक क्षेत्र में सामाजिक स्तरीकरण होता है।

(2) सामाजिक क्षेत्र में स्तरीकरण-

मैक्स वेबर ने सामाजिक क्षेत्र में सामाजिक प्रस्थिति में सामाजिक स्तरीकरण का आधार माना है। समाज में जो व्यक्ति एक समान सामाजिक प्रतिष्ठा, समान मान तथा समान सामाजिक स्थिति रखते हैं वे सभी एक ही प्रस्थिति समूह (Status Group) के सदस्य होते हैं। सामाजिक संरचना के अन्तर्गत प्रत्येक प्रस्थिति समूह का अपना-अपना अलग-अलग स्थान निर्धारित होता है जिसका निर्धारण समाज तथा समुदाय के द्वारा किया जाता है। समाज के द्वारा ही यह निश्चित किया जाता है कि कौन-से प्रस्थिति समूह को उच्च माना जायेगा तथा कौन-से प्रस्थिति समूह को निम्न माना जायेगा। इस प्रकार सामाजिक संरचना के अन्तर्गत समाज या समुदाय के निर्देशानुसार विभिन्न प्रस्थिति समूह उच्च और निम्न के एक संस्तरण में स्थित हो जाते हैं। इस प्रकार सामाजिक प्रस्थिति के आधार पर सामाजिक क्षेत्र में सामाजिक स्तरीकरण होता है।

(3) राजनैतिक क्षेत्र में स्तरीकरण-

राजनैतिक क्षेत्र में किसी व्यक्ति की प्रस्थिति उसकी राजनैतिक शक्ति के आधार पर निर्धारित होती है तथा राजनैतिक शक्ति का प्राप्त होना उस राजनैतिक दल पर निर्भर करता है जिस दल का व्यक्ति सदस्य होता है। यदि कोई व्यक्ति उस राजनैतिक दल का सदस्य होता है जिसकी सत्ता होती है तो वह अधिक शक्तिशाली होगा तथा उसकी समाज में उच्च प्रस्थिति होगी और यदि व्यक्ति उस राजनैतिक दल का सदस्य होता है जिसकी सत्ता नहीं होती तो समाज में उसकी प्रस्थिति राजनैतिक क्षेत्र में निम्न होती है। इस प्रकार राजनैतिक क्षेत्र में राजनैतिक शक्ति के आधार पर व्यक्ति या समूह की प्रस्थिति का निर्धारण होता है और उसी के अनुरूप राजनैतिक क्षेत्र में सामाजिक स्तरीकरण होता है तथा ऊँच-नीच का सामाजिक संस्तरण पाया जाता है।

मैक्स वेबर के अनुसार उपर्युक्त प्रकार से समाज में शक्ति के आधार पर आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक शक्तियों के द्वारा आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में सामाजिक स्तरीकरण होता है तथा शक्तियों के आधार पर ही इनमें विभिन्न क्षेत्रों में प्रस्थिति समूह तथा व्यक्तियों में उच्चता-निम्नता का एक संस्तरण पाया जाता है।

मार्क्स के अनुसार सामाजिक वर्ग कौन कौन से हैं?

मार्क्स के इस सिद्धांत के अनुसार समाज में दो वर्ग बताये गए हैं । पहला उत्पादन (Production) वर्ग तथा दूसरा वितरण (Distribution) वर्ग । जो अपने विरोधी हितों के कारण परस्पर संघर्ष करते रहते हैंवर्गों के रूप में भले ही अंतर आता रहे किंतु समाज में एक वर्ग उत्पादन के साधनों भूमि और पूंजी पर अधिकार रखता है ।

सामाजिक वर्ग कितने प्रकार के होते है?

सामाजिक वर्ग का विकास सभ्यता के आंरभिक कालों में अर्थात् आदिकालीन असभ्य कबीलों में सामाजिक वर्गो का पता नहीं चलता। ... .
दास प्रथा का उदय परन्तु जैसे-जैसे असभ्य कबीले सभ्य होते जाते है, उनकी सैनिक शक्ति बढ़ती जाती है। ... .
शिल्पी संघ प्रथा ... .
मध्यवर्गीय प्रणाली ... .
पूंजीपति और मजदूर वर्ग ... .
मध्य वर्ग.

मार्क्स के अनुसार वर्ग निर्धारण का आधार क्या है?

मार्क्स के अनुसार किसी सामाजिक वर्ग के वस्तुपरक आधार ही उसके अपने आप में वर्ग होने का निर्धारण करते हैं। वर्ग का अपने आप में वर्ग होने को किसी भी सामाजिक वर्ग का वस्तुपरक आधार माना जाता है।

यूरोप में तीन सामाजिक वर्ग कौन कौन से थे?

रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात पूर्वी एवं मध्य यूरोप के अनेक जर्मन मूल के समूहों ने इटली, स्पेन और फ्रांस के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। गया था। तीन वर्ग - जो इस अध्याय का केंद्र बिंदु हैं, से हमारा अभिप्राय तीन सामाजिक श्रेणियों से है: ईसाई पादरी, भूमिधारक अभिजात वर्ग और कृषक ।