मरुस्थलीय प्रदेशों में जनसंख्या कम क्यों होती है - marusthaleey pradeshon mein janasankhya kam kyon hotee hai

रेगिस्तान शब्द आते ही तुम्हारे दिमाग में एकाएक यह तस्वीर कौंध जाती होगी - दूर-दूर तक फैला रेत का सैलाब, आसमान को छूते रेत के ऊंचे-ऊंचे टीले, चिलचिलाती गर्मी, धूल भरी आंधी और ऊंटों का कारवां। ऐसे गर्म...

मरुस्थलीय प्रदेशों में जनसंख्या कम क्यों होती है - marusthaleey pradeshon mein janasankhya kam kyon hotee hai

लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 02 Jan 2012 12:09 PM

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रेगिस्तान शब्द आते ही तुम्हारे दिमाग में एकाएक यह तस्वीर कौंध जाती होगी - दूर-दूर तक फैला रेत का सैलाब, आसमान को छूते रेत के ऊंचे-ऊंचे टीले, चिलचिलाती गर्मी, धूल भरी आंधी और ऊंटों का कारवां। ऐसे गर्म रेगिस्तान में दिन के समय बहुत गर्मी (तापमान 48-49 डिग्री सेल्सियस तक) होती है और रात को काफी ठंड होती है। इनके बारे में और बता रही हैं रजनी अरोड़ा

तुमने भारत के थार मरुस्थल के बारे में जरूर सुना होगा, जो राजस्थान, गुजरात और पंजाब राज्य में फैला हुआ है। रेगिस्तान शब्द आते ही तुम्हारे दिमाग में एकाएक यह तस्वीर कौंध जाती होगी - दूर-दूर तक फैला रेत का सैलाब, आसमान को छूते रेत के ऊंचे-ऊंचे टीले, चिलचिलाती गर्मी, धूल भरी आंधी और ऊंटों का लंबा कारवां। ऐसे गर्म रेगिस्तान में दिन के समय बहुत गर्मी (तापमान 48-49 डिग्री सेल्सियस तक) होती है और रात को काफी ठंड होती है।

आसमान में बादलों की कमी से सूरज की गर्मी दिन में रेगिस्तान की भूमि को तपा देती है। रात को जब तापमान तेजी से गिरने लगता है तो भूमि की तपिश धीरे-धीरे खत्म हो जाती है और रेगिस्तान काफी ठंडे हो जाते हैं। लेकिन क्या तुम्हें मालूम है कि ये रेगिस्तान सिर्फ हमारे देश में ही नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। लीबिया में सहारा, अफ्रीका का कालाहारी, अरेबियन पेनेंसुला के पास अरब रेगिस्तान, आस्ट्रेलिया के ग्रेट सैंडी डेजर्ट, माजोवा और सोनारन इसी तरह के रेगिस्तान हैं। इनमें सहारा रेगिस्तान सबसे बड़ा और सबसे गर्म रेगिस्तान है, जहां का तापमान करीब 58 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। भूगर्भ विज्ञान या जूलॉजी के हिसाब से हमारी धरती पर कुछ रेगिस्तान लाखों साल पहले से मौजूद हैं, तो कुछ 8-10 हजार साल से ज्यादा पुराने नहीं हैं। आज ये रेगिस्तान पूरी दुनिया के सातवें हिस्से में फैले हुए हैं।

रेगिस्तान शब्द दरअसल लेटिन भाषा से निकला है, जिसका अर्थ होता है- बेकार या उजाड़ी पड़ी जमीन। रेगिस्तान में पूरे साल में 25 सेंटीमीटर से भी कम बारिश होती है, जिससे यहां नमी या नमी ही नहीं, हमारी प्रकृति की अहम जरूरत ‘पानी’ की कमी भी होती है। ऐसे वीरान क्षेत्रों में उपयोगी वनस्पति पनप नहीं पाती। छोटी-छोटी घास या केकटस जैसे कंटीले पौधे और झाड़ियां ही अधिक मिलती हैं। यानी ऐसे पौधे जिन्हें पानी की आवश्यकता नहीं होती है या बहुत ही कम मात्र में होती है। वनस्पति विहीन को जलवायु कटिबंधों के हिसाब से तीन भागों में बांटा जा सकता है- उष्ण या गर्म रेगिस्तान (निम्न अक्षांषों में) जैसे सहारा, शीतोष्ण (ठंडे-गर्म)  रेगिस्तान (मध्य अक्षांषों में) और शीत रेगिस्तान (उच्च अक्षांषों में)।

तुम्हें यह जानकर ताजुब्ब होगा कि इस दुनिया में ऐसे भी रेगिस्तान हैं, जहां इतनी ठंड होती है कि तुम्हारी हड्डियां कंपकंपा जाएं। ऐसे ठंडे रेगिस्तान लगभग पूरी तरह कोहरे और बर्फ की मोटी चादर से ढके रहते हैं। यहां पूरे साल बर्फ गिरती रहती है। ऐसे रेगिस्तानों में अस्थिर तापमान रहता है। आमतौर पर गर्मियों में यहां का तापमान 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तक होता है, जबकि सर्दियों में तो शून्य से काफी कम, करीब -25 से -45 डिग्री सेल्सियस तक नीचे गिर जाता है।

यहां यह कहना गलत ना होगा कि इन ठंडे रेगिस्तानों में जीवन काफी दूभर होता है, फिर भी यहां कुछ रेंगने वाले जीव और पोलर बीयर्स के अलावा कुछ पेड़-पौधे मिल जाते हैं। इस तरह के रेगिस्तानों में अटाकामा, गोबी, ग्रेट बेसिन, लेह, लाख, करगिल, सियाचिन, लाहुल-स्पीति और चम्बा के कुछ भाग आते हैं। अटाकामा रेगिस्तान दुनिया के सबसे सूखे इलाकों में से एक है और यह क्षेत्र मिट्टी, पत्थर और बालू का क्षेत्र है। यहां सोडियम नाइट्रेट पाया जाता है, जो गनपाउडर बनाने के काम आता है। गोबी रेगिस्तान पत्थरों से घिरा हुआ है। इतिहास में भी इसके प्रमाण मिलते हैं कि यह मंगोलियाई साम्राज्य का एक हिस्सा रहा था और 13वीं सदी में चंगेज खान ने इसे पार किया था।

दूसरी ओर कुछ रेगिस्तान तो लगभग पूरी तरह कोहरे और बर्फ की मोटी चादर से ढके रहते हैं। यहां पूरे साल बर्फ गिरती रहती है। यहां का तापमान -50 डिग्री तक पहुंच जाता है। अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड इसी तरह के रेगिस्तान हैं। अंटार्कटिका तो दुनिया का सबसे ठंडा और सबसे शुष्क रेगिस्तान माना जाता है। इस रेगिस्तान के केवल 2 प्रतिशत भू-भाग पर पठार है, जबकि 98 प्रतिशत भाग पर मोटी बर्फ की चादर रहती है, इसीलिए यह वीरान है। अंटार्कटिका के कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहां करीब 40 लाख साल से बारिश नहीं हुई है और पहाड़ों में जमी बर्फ के पिघलने से वहां पानी की आपूर्ति होती रहती है।

क्या कभी तुमने सोचा है कि ये बनते कैसे हैं और यहां का वातावरण कैसा होता है? वास्तव में हमारी पृथ्वी भूमध्य रेखा पर स्थित है और यह शून्य की गति से लगभग 1676 कि.मी. प्रति घंटे पर अपनी धुरी के चारों ओर घूमती है। ज्यादातर रेगिस्तान भूमध्य रेखा के पास दोनों तरफ 25 डिग्री की बेल्ट में (उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में कर्क और मकर रेखा के आसपास) मिलते हैं। इस क्षेत्र का वायुमंडलीय दबाव बहुत ज्यादा होता है। यह ऊंचाई पर मौजूद ठंडी ड्राई या शुष्क हवा को जमीन तक लाता है। इस दौरान सूरज की सीधी किरणें इस हवा की नमी को खत्म कर देती हैं और उसे बहुत तेज गर्म कर देती हैं। नतीजतन वहां बारिश नहीं हो पाती, जमीन शुष्क और गर्म हो जाती है और यह उष्ण या गर्म रेगिस्तान का रूप ले लेती है। अफ्रीका के सहारा और कालाहारी, अरेबियन पेनेंसुला के पास अरब रेगिस्तान, भारत का थार मरुस्थल इसी तरह के रेगिस्तान हैं।

कुछ रेगिस्तान ऊंचे पहाड़ों के किनारे होते हैं, जिनका गठन बारिश व छाया प्रभाव से भी होता है। दो पर्वत श्रृंखलाएं, जो पूर्व और पश्चिम की ओर होती हैं और वे सागर से आने वाली हवा को बीच के क्षेत्र की भूमि तक पहुंचने से रोकती हैं। ऊंचे पहाड़ों की वजह से समुद्र से आने वाली हवा रुक जाती है। बादल भी हवा के साथ वहीं रुक जाते हैं और समुद्र के ऊपर ही बारिश करते हैं। पहाड़ों के दूसरी तरफ का मैदान शुष्क रह जाता है और वहां ठंडा या बर्फीला रेगिस्तान बन जाता है। सतही जल जमा हुआ ही रहता है। हवा में नमी की मात्र अधिक होती है और जब यह हवा ठंडे समुद्र से मिलती है, तो यह नमी कोहरे का रूप ले लेती है।

चीन का गोबी रेगिस्तान जो हिमालय के दूसरी तरफ है, इसी तरह का रेगिस्तान है। तुर्किस्तान के रेगिस्तान भी इसी तरह के हैं। अंटार्कटिका तो पूरे साल बर्फ और कोहरे से ढका रहता है।

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मरुस्थलीय प्रदेश से आप क्या समझते हैं?

(iii) मरूस्थलीय क्षेत्र - यह क्षेत्र बहुत कम वर्षा वाला क्षेत्र है जहां वर्षा नगण्य होती है। इस क्षेत्र में लवणीय जल पाया जाता है। यहां पर अत्यन्त विशिष्ट प्रजातियों की वनस्पति पायी जाती है। जिनके पत्ते मोटे होते हैं या तनों में विभिन्न रूपान्तरण पाये जाते हैं

मरुस्थल की क्या विशेषताएं हैं?

मरुस्थल का सामान्य गुण तो यह है कि इसमें वर्षा कम होती है। ये क्षेत्र प्रायः विरल आबादी, नगण्य वनस्पति, पतो की जगह काटें, जल के स्त्रोतों की कमी, जलापूर्ति से अधिक वाष्पीकरण हैं। विश्व के केवल 20% मरुस्थल रेतीले हैं। रेत प्रायः परतों में बिछी होती है।

मरुस्थलीय वनस्पति के क्या लक्षण होते हैं?

मरुस्थलीय वनस्पति के लक्षण इस प्रकार हैं... यह वनस्पति ऐसी जगह पर बहुतायत में पाई जाती है, जहां पर 70 सेमी से कम वर्षा होती है। क्योंकि यह वनस्पति जल की कमी या कम वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती हैं, इसलिए इन वनस्पतियों की संरचना ऐसी होती है कि यह जल की कमी को सहन कर सकें।

मरुस्थल किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?

पूरे विश्व में चार प्रकार के रेगिस्तान (मरुस्थल) पाए जाते हैं: उपोष्णकटिबंधीय रेगिस्तान; तटीय रेगिस्तान; सर्द रेगिस्तान; ध्रुवीय रेगिस्तान। पृथ्वी कि सतह का पांचवा हिस्सा रेगिस्तान है। वे एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं