नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध की मूल संवेदना क्या है? - naakhoon kyon badhate hain nibandh kee mool sanvedana kya hai?

 अंतर्वस्तु-निबंध के दो पक्ष होते हें-भाव पक्ष और विचार पक्ष। किसी निबंध में विचारों की प्रधानता होती है, तो किसी में भावों की। कुछ निबंधों में भाव और विचार एक-दूसरे से गुंथे हुए भी होते हें। 

विचार पक्ष

निबंध की शुरुआत बच्चे के एक प्रश्न से होती है-'“नाखून क्‍यों बढ़ते हें?”” हम सभी को पता है कि आज नाखूनों का कोई भी उपयोग नहीं हे, परन्तु एक समय ऐसा भी था जब मनुष्य को इन नाखूनों की आवश्यकता पड़ती थी। अपनी आदिम अवस्था में मानव अपने दांतों तथा नाखूनों से ही अपनी रक्षा करता होगा, परन्तु आज इनका वैसा उपयोग नहीं दिखाई देता, परन्तु ये फिर भी बढ रहे हें। आज बढ़े हुए नाखूनों को अच्छा नहीं माना जाता। शायद इसलिए कि बढ़े हुए नाखून असभ्यता और जंगलीपन की निशानी है।

मानव प्रगति और हथियारों का विकास-यहां द्विवेदी जी प्रश्न उठाते हैं कि क्‍या मनुष्य बर्बरता से मुक्ति पाना चाहता है? फिर वह विनाशकारी हथियारों का निर्माण क्‍यों कर रहा हे? पहले पत्थर एवं हड्डियों के हथियार बनते थे, फिर धातुओं के बनाये जाने लगे और आज परमाणु बम, एटम बम जेसे विनाशकारी हथियार मानव ने बना लिये हैं। हिरोशिमा का उदाहरण इस बात पर प्रश्नचिन्ह लगाता है कि हम सचमुच बर्बरता से मुक्त होना चाहते हैं।

विलास वृत्ति का उदात्तीकरण-द्विवेदी जी यह बताते हैं कि आज से दो हजार वर्ष पूर्व भारत में नाखूनों को सजाने तथा संवारने की कला का विकास हुआ था। यहां नाखूनों के उपयोग का संबंध मनुष्य की विलास वृत्ति से है। 

मनुष्य की अभ्यासजन्य सहज वृत्तियाँ-द्विवेदी जी ने निबंध में यह प्रश्न उठाया है कि मनुष्य पशुता से मुक्त क्‍यों नहीं हो पा रहा है? नाखून के बढ़ने तथा हथियारों के निर्माण को वे पशुता मानते हैं। प्राणी-विज्ञान के अनुसार मनुष्य के बारे में कुछ ऐसी अभ्यासजन्य वृत्तियाँ हैं, जो बिना प्रयास के कार्य करती हैं, जेसे-नाखून बढ़ना तथा केश बढ़ना, इन्हें द्विवेदी जी ने अनजान स्मृतियां कहा है।

स्व का बंधन : भारतीय संस्कृति की विशेषता-'इंडिपेंडेंस' का अर्थ है-अन्‌ + अधीनता 5 अनधीनता। इससे तात्पर्य है अधीनता का अभाव। परन्तु भारतीय सन्दर्भ में यह स्वतंत्रता अर्थात स्व की अधीनता या स्व का तंत्र हे। इसे द्विवेदी जी भारतीय संस्कृति की विशेषता मानते हैं।

नये या पुराने का प्रशन-द्विवेदी जी कालिदास के मत का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उनकी दृष्टि पुरातनपंथियों जेसी नहीं है। अतीत की भी कोई बात यदि उचित लगे, तो उसे अपनाने में कोई हर्ज नहीं है।

मनुष्य और पशु में अन्तर-सामान्य धर्म की खोज-द्विवेदी जी के अनुसार इंसान ओर पशु में चार बातें एक समान हैं-आहार, निद्रा, मैथुन तथा भय। परन्तु संयम, श्रद्धा, तप, त्याग, संवेदना जैसे गुण मनुष्य की पहचान हें। ये गुण ही मनुष्य को मनुष्य बनाते हें।

भौतिक उनन्‍नति और मनुष्यता का मार्ग-भोतिक उन्नति इस बात का प्रमाण नहीं है कि मानव पशुता की वृत्ति से मुक्त हो जायेगा। गांधी जी ने भी कहा था कि सिर्फ भोतिक उन्नति से ही सुख-शांति नहीं मिलेगी।

भाव पक्ष

निबंध का मूल प्रश्न वेचारिक नहीं हे, बल्कि वह मनुष्य की भावनाओं का भी प्रश्न है। द्विवेदी जी मनुष्य की वृत्तियों को लेकर चिन्तित हैं। मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं-एक ओर क्रोध, बेर तथा ईर्ष्या जेसी वृत्तियाँ हें तो दूसरी ओर प्रेम, तपस्या, त्याग, संवेदना जैसी वृत्तियाँ। क्रोध, वेर तथा ईर्ष्या जेसी वृत्तियों के कारण ही लोगों में लड़ाई-झगडा होता हे।

लेखकीय व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति

निबंध में लेखक का व्यक्तित्व भी कहीं-न-कहीं आ ही जाता है। द्विवेदी जी की शेली कम विवेचनपरक और अधिक भावनात्मक है। उनके निबंधों की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-

मानवतावादी-द्विवेदी जी का दृष्टिकोण मानवतावादी हे। निबंध में उन्होंने मानव जाति के प्रति चिन्ता व्यक्त की है। हथियारों के विकास के कारण सम्पूर्ण मानव जाति विनाश के कगार पर पहुंच चुकी हे।

पाण्डित्य-द्विवेदी जी के व्यक्तित्व की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता है, पाण्डित्य। द्विवेदी जी अपने निबंध को अपनी विद्वता से क्लिष्ट नहीं होने देते ओर न ही अपने पाण्डित्य से दूसरों को आतंकित करते हैं, उन्होंने निबंध में ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख कर अपनी विद्वता सिद्ध की हे।

विचारक-विचारशीलता द्विवेदी जी के व्यक्तित्व की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता है। वे प्रश्नों पर गहनता के साथ विचार करते हैं। द्विवेदी जी अपनी बात को सामान्य अनुभव से प्रारंभ करते हें। उन्होंने नाखूनों के बढ़ने की प्रव॒त्ति को हथियारों की बढ़ती प्रवृत्ति से जोड़ा, जो मानव के विनाश का कारण बन सकती हे।

संवेदनशील सोन्दर्य द्रष्टा-द्विवेदी जी के व्यक्तित्व की एक अन्य विशेषता उनकी संवेदनशीलता है। वे एक सृजनशील साहित्यकार थे। उनकी संवेदनशीलता ने उनके निबंधों को सरस, रोचक तथा आत्मीय बनाया हे।

संरचना-शिल्प

द्विवेदी जी ने निबंध में एक नई शैली का प्रयोग किया है, जिसे ललित निबंध की शेली कहा जाता है। भाषा और शैली की दृष्टि से निबंध अत्यंत प्रभावशाली है।

भाषा

द्विवेदी जी की भाषा शुल्क जी से भिन्न हे। द्विवेदी जी की भाषा परिष्कृत है। उनकी भाषा शैली विवेचनापरक नहीं है। उनकी भाषा में लचीलापन हे।

शैली

द्विवेदी जी ने निबंध की एक नई शैली विकसित की, जिसे ललित निबंध की शेली कहा जाता हे। द्विवेदी जी अपनी बात इस ढंग से कहते हैं कि उसका सौंदर्य सबको प्रभावित करे। उनके निबंधों में वेचारिक गूढ़ता की बोझिलता नहीं है। वे अपनी बात को अनुभूतिपरक बना देते हैं।

नाखून क्यों बढ़ते हैं की मूल संवेदना?

वात्सायन के कामसूत्र से ऐसा मालूम होता है कि नाखून को विभिन्न ढंग से काटने एवं सँवारने का भी एक युग था । प्राणी विज्ञानियों के अनुसार नाखून के बढ़ने में सहज वृत्तियों का प्रभाव है। नाखून का बढ़ना इस बात का प्रतीक है कि शरीर में अब भी पाशविक गुण वर्तमान है। अस्त्र -शस्त्र में वृद्धि भी उसी भावना की परिचायिका है।

नाखून क्यों बढ़ते है निबंध का क्या उद्देश्य है?

नाखून क्यों बढ़ते हैं' शीर्षक निबंध को हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मनुष्य में पाशविक वृत्ति के बढ़ने और मनुष्य को इसे घटाने के प्रयत्न को व्यक्त किया है। लेखक कहते हैं कि नाखून का बढ़ना एक सहज वृत्ति है, परन्तु मनुष्य के द्वारा उसका काटना भी एक सहजात वृत्ति है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं ?' निबंध का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए 10?

जैसे इस निबंध में नाखून का बढ़ना, नाखून का हथियार की तरह इस्तेमाल का उल्लेख करते हुए एटम बम तक के निर्माण तक पहुंच जाना। इसी तरह नाखून का बढ़ना और काटना क्रमशः मनुष्य की पशुता और मनुष्यता के प्रतीक बन जाते हैं

हजारी प्रसाद द्विवेदी का निबंध नाखून क्यों बढ़ते हैं?

द्विवेदी जी ने इस आलोचनात्मक निबन्ध में स्पष्ट किया है नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की उस अन्ध सहजावृत्ति का परिणाम है, जो उसके जीवन में सफलता(success) ले आना चाहती हैं तथा नाखूनों को काट देना स्व-निर्धारित आत्म बन्धन है, जो उसे चरितार्थ की ओर ले जाती है।