प्रश्न 1. Show प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. (ख) किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं? प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. पाठेतर सक्रियता – ‘किबला शौक फरमाएँ’, ‘आदाब अर्ज……….शौक फरमाएँगे’
जैसे कथ्य शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए। सप्रसंग व्याख्याएँ – 1. गाड़ी छूट रही थी। सेकण्ड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, जरा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से की आँखों में एकान्त चिन्तन में विन का असन्तोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिन्ता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों। कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया हुआ है। इसमें लेखक अपनी एक छोटी-सी यात्रा के विषय में बता रहे हैं। व्याख्या – लेखक यशपाल ने बताया कि नई कहानी के बारे में सोचने व प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने के लिए वे ट्रेन का टिकट लेते हैं। गाड़ी छूट ही रही थी। सेकंड क्लास का छोटा डब्बा जो कि यात्रियों से खाली लग रहा था, उसे देख उसमें चढ़ गए। लेखक ने जैसा सोचा था उसके विपरीत वह डब्बा खाली नहीं था। ट्रेन की एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी जाति के एक भद्र सज्जन बहुत ही आराम से पालथी मार कर सीट पर बैठे थे। उनके सामने तौलिये पर ताजे, चिंकने दो खीरे रखे हुए थे। डब्बे में सहसा लेखक के आ जाने से नवाब की एकांतप्रियता में कुछ विघ्न पड़ा, जिसके कारण नवाब के चेहरे पर असंतोष की भावना या कुछ नाराजगी के भाव प्रकट हुए। लेखक को नवाब का यह अंदाज ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह भी उनकी तरह कोई नयी कहानी लिखने के विचार से हो या फिर खीरे जैसे अपदार्थ को खाने का शौक रखे जाने, जो लेखक को पता चल गया इस संकोच में चेहरे की भंगिमा बदल रहा हो। यह सब . अनुमान लेखक अपने मन में विचार कर रहे हैं।’ विशेष :
2. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। सम्भव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकण्ड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मैंझले दर्जे में सफर करता देखे।… अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ? कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने एक छोटी सी यात्रा का वर्णन किया है, जिसमें उनके साथ लखनवी नवाब भी थे। व्याख्या – लेखक अपने विषय में बताते हुए कहते हैं कि खाली बैठे रहने के कारण कल्पना करते रहने की उनकी साहब की बदली हई भंगिमा तथा उनके आने से उत्पन्न हई संकोच व असुविधा के बारे में लेखक सोचने लगे। हो सकता है कि नवाब साहब ने कम खर्च करने के उद्देश्य से सेकेंड क्लास का टिकिट खरीद लिया हो और अब एक सज्जन के उनके इस तरह सफर किये जाने को देख लेने पर उन्हें स्वीकार नहीं हो रहा है। अर्थात् लखनऊ के नवाब अपनी रईसी व शानोशौकत के लिए काफी मशहूर माने जाते हैं। ऐसा ही लेखक सोच रहे हैं और साथ ही अनुमान भी लगा रहे हैं कि अकेले सफर करते नवाब ने समय व्यतीत करने के लिए खीरे खरीद लिये होंगे। लेकिन अब किसी दूसरे भद्र पुरुष या सज्जन के सामने वे खीरे कैसे खा सकते हैं। क्योंकि स्वयं काट-छील कर खीरे खाना नवाबी शान के खिलाफ है। लेखक ऐसा ही अनुमान नवाब की मुख-मुद्रा को देख कर लगा रहे थे। विशेष :
3. हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। नवाब साहब कुछ देर गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर गौर करते रहे। ‘ओह’, नवाब साहब ने सहसा हमें संबोधन किया, ‘आदाब-अर्ज’, जनाब, खीरे का शौक फरमाएँगे? नवाब साहब का सहसा भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा। भाँप लिया, आप शसफत का गुमान बनाए रखने के लिए हमें भी मामली लोगों की हरकत में लथेड लेना चाहते हैं। जवाब दिया. ‘शक्रिय ब दिया, ‘शुक्रिया, किबला शौक फरमाएँ।’ कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक नवाब साहब की सभी भाव-भंगिमाओं पर नजर डाल रहे हैं। व्याख्या – लेखक यशपाल बता रहे हैं कि नवाब साहब की आजादी में दखल देने हेतु जैसे ही लेखक ने डब्बे में प्रवेश किया। नवाब साहब की मुख-मुद्रा ही बदल गई। लेखक आंखों के किनारे से नवाब साहब की प्रत्येक हरकत पर नजर रखे हुए थे। नवाब साहब कुछ देर तक तो गाड़ी की खिड़की से बाहर देख कर स्थिति को देखते रहे और सोचते रहे। अचानक उन्होंने ‘ओह’ कह कर लेखक को सम्बोधित किया। ऐसा करने के पीछे यह दिखाना था कि उन्हें अभी अचानक ही ध्यान आया कि उनके साथ डब्बे में कोई और भी है। नवाब साहब ने लखनवी अंदाज में लेखक का अभिवादन किया और पूछा कि क्या वह खीरा खायेंगे? नवाब साहब का अचानक इस तरह बदल जाना लेखक को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने इसके पीछे की सोच नवाब की क्या है, यह समझ लिया कि नवाब साहब शराफत, सादगी का घमण्ड बनाये रखते हुए मामूली लोगों को इसमें लपेटना चाहते हैं। ताकि हाँ कहने पर वे उस खीरे को देकर दानी बन जायें और अपनी रईसी व बड़प्पन को प्रदर्शित करें। लेखक उनकी इस चाल को समझकर खीरा लेने से मना करते हैं और कहते हैं कि आप ही खाइये। विशेष :
4. नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्जी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नजरों से बच सकने के खयाल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं। नवाब साहब ने फिर एक बार हमारी ओर देख लिया, ‘वल्लाह, शौक कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है।” कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने खीरे काटने से लेकर नमक-मिर्च लगाने तक की प्रक्रिया बताई है। व्याख्या – लेखक के साथ यात्रा कर रहे लखनवी नवाब ने बहुत ही तरीके से खीरे की फाँक की अर्थात् उसके टुकड़े किये। उसके पश्चात् उन टुकड़ों पर जीरा-नमक-लाल मिर्च का पाउडर बहुत ही आराम से छिड़क दिया। इन सारी प्रक्रियाओं को करते समय उनके चेहरे की भाव-मुद्राएँ और उनके जबड़ों के हिलने-फड़कने से स्पष्ट पता चल रहा था कि नवाब साहब का मुँह खीरे के रस के स्वाद से मुँह में पानी आ रहा था। लेखक उनकी सारी भंगिमाएँ देखते हुए सोचते हैं कि ये लोग दिखावे के लिए अमीर बनते हैं, देने का नाटक करते हैं। लेकिन लोगों की नजरों से बच कर यहाँ बैठने से इनकी सारी असलियत सामने आ गई है। कहने का तात्पर्य है कि देने का कहना सिर्फ इनका दिखावा होता है। असलियत में ये लोग अभिमानी होते हैं। यह सब सोचते हुए लेखक को नवाब साहब ने पुनः कहा कि यह लखनऊ का बहुत ही अच्छा बालम खीरा (खीरे की किस्म) है इसलिए आप लीजिए। लेखक जब एक बार मना कर चुके थे तो अपने आत्म-सम्मान को बनाये रखने हेतु उन्होंने पुनः मना कर दिया। विशेष :
5. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निःश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनन्द में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का छूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए। नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हों यह है खानदानी रईसों का तरीका! कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने रईसों के खीरे खाने के खानदानी तरीकों को बताया है। व्याख्या – लेखक नवाब साहब के सारे क्रिया-कलापों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। नवाब साहब ने बड़ी इच्छा से अपनी आंखों द्वारा नमक-मिर्च लगी चमकते खीरे के टुकड़ों को देखा। फिर खिड़की से बाहर की ओर देखा। खिड़की से बाहर की ओर देखते हुए लम्बी साँस भरते हैं मानो अपनी कोई बड़ी इच्छा पूरी कर रहे हैं। खीरे की एक फाँक को उठाकर होठों तक ले गए, फाँक को सूंघा, उसका स्वाद लेने का जो काल्पनिक आनन्द था उसके अतिरेक में उनकी आँखें बंद हो गयीं। फांक को खाने के स्वाद में मुँह में भर आये पानी को गटक लिया, जब नवाब साहब ने फाँक का काल्पनिक स्वाद पूरी तरह से ले लिया तब उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसी तरह नवाब साहब खीरे की प्रत्येक फाँक को नाक व होठों के पास ले जाकर, बड़ी लालसा से उसके रस का आनन्द लेकर एक-एक करके खिड़की से बाहर फेंकते गए। सारी फाँकों को फेंकने के पश्चात् नवाब साहब ने तौलिए से होठों तक आये पानी को तथा हाथों को पोंछ लिया। फिर गर्व तथा अभिमान की लालिमा से भरी आँखों से लेखक की तरफ देखा- मानो लेखक को बताना और दिखाना चाह रहे हों कि हमारा खानदानी रईसों का यही तरीका होता है। हम सिर्फ देख, सूंघ कर ही स्वाद ले लेते हैं और फिर उस वस्तु को फेंक देते हैं। विशेष :
6. हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरें की सुगन्ध और स्वाद की कल्पना से सन्तुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका जरूर कहा जा सकता है। परन्तु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लजीज होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’ ज्ञान-चक्षु खुल गए! पहचाना-ये हैं नयी कहानी के लेखक! खीरे की सुगन्ध और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने का डकार आ सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के.लेखक की इच्छा मात्र से ‘नयी कहानी’ क्यों नहीं बन सकती? कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक खीरे द्वारा नवाबी रहस्य को प्रकट कर रहे हैं। व्याख्या – लेखक ने नवाब साहब की प्रतिक्रियाओं के विषय में बताते हुए कहा कि मैं उनकी सारी गतिविधियों पर गौर कर रहा था अर्थात् ध्यान दे रहा था कि वे किस तरह खीरा इस्तेमाल करते, किस तरीके से उसकी सुगन्ध और स्वाद की कल्पना से सन्तुष्ट हो रहे थे। लेखक बताते हैं कि उनका यह तरीका सूक्ष्म, बढ़िया या जिसका कोई भौतिक स्वरूप ना हो ऐसा तरीका जरूर कहा जा सकता है परन्तु क्या इस काल्पनिक स्वाद व सुगन्ध से पेट भर सकता है? तभी नवाब साहब की तरफ से भरे पेट होने की डकार का स्वर सुनाई देता है, साथ ही नवाब साहब लेखक की तरफ देख कर कहते हैं कि खीरा स्वादिष्ट जरूर होता है लेकिन यह आसानी से पचता नहीं है तथा पेट की पाचन शक्ति पर पचने का अधिक बोझ डाल देता है। नवाब साहब के ऐसा कहते ही लेखक के ज्ञान की आँखें खुल जाती हैं और उनके मुँह से व्यंग्य स्वरूप निकलता है कि यही हैं ‘नई कहानी के लेखक।’ लेखक ‘नयी कहानी’ के लेखकों के प्रति व्यंग्य की दृष्टि से कहते हैं कि जब खीरे की सुगंध व स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने पर डकार आ सकती है तो फिर ‘नयी कहानी’ के लेखक बिना विचार, घटना और पात्रों के लेखक बनने की इच्छा से ही ‘नयी कहानी’ की रचना कर डालते हैं। विशेष :
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. नवाब बड़े सलीके से खीरा खाने की तैयारी करता है किन्तु लेखक के सामने खाने में उसे संकोच होता है इसलिए अपने लखनवी अंदाज में करीने से खीरे को काट कर उस पर नमक-मिर्च छिड़क कर उसे होठों तक ले जाकर व नाक से सूंघ कर खिड़की से बाहर फेंक देता है तथा सुगन्ध व काल्पनिक स्वाद से ही पेट भरे होने की डकार लेता है। ऐसा वह इसलिए करता है कि साधारण-सी चीज खाते देख उसकी शान में फर्क न आ जाए, इस तरह वह दिखावा करता है। ‘लखनवी अंदाज’ शीर्षक बिल्कुल उपयुक्त और सटीक है। प्रश्न 2. लेखक सामंती वर्ग के दिखावा पसंद प्रवृत्ति को उजागर करते हैं, जो वास्तविकता से बेखबर बनावटी जीवन जीने का आदी है। कहना न होगा कि आज भी इस तरह के लोग हम अपने आस-पास देख सकते हैं। जो अपनी झूठी शान बघारने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। जिस प्रकार नवाब साहब खीरा खाते नहीं हैं बल्कि लेखक को दिखा-दिखा कर उसे खिड़की के बाहर फेंकते हैं। इस तरह अपनी अमीरी का झूठा दिखावा करते हैं। रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न – प्रश्न 1. सामाजिक विषमता, राजनैतिक पाखंड और रूढ़ियों के खिलाफ इनकी रचनाएँ काफी मुखर हैं। कहानी संग्रह ‘ज्ञानदान’, ‘तर्क का तूफान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वा दुलिया’, ‘फूलों का कुर्ता’ प्रसिद्ध है। ‘झूठा सच’, ‘अमिता’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘दादा कामरेड’, ‘तेरी मेरी उसकी बात’ उपन्यास हैं। साहित्य रचना करते हुए इनकी मृत्यु सन् 1976 में हुई। नवाब साहब का पेट कैसे भरा?नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, 'खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है। ' नवाब साहब ने खीरे का इस्तेमाल कैसे किया? नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए और उसे सूंघा।
नवाब साहब ने खीरे का स्वाद कैसे लिया?नवाब साहब ने खीरे का कैसे आनंद लिया? नवाब साहब ने खीरे का आनंद खीरे की फाँकों को खा कर नहीं लिया बल्कि उन फाँकों को नाक के पास ले जाकर तथा सूँघकर आनंद लिया। सूँघने के बाद वे खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकते रहे।
नवाब साहब ने अपना पेट कैसे भरा खीरा खाकर पानी पीकर खीरा सूंघकर खीरा धोकर?अब नवाब साहब की इज्जत का सवाल था इसलिए उन्होंने खीरे की फाँक को उठाया नाक तक ले जाकर सूंघा। खीरे की महक से उनके मुँह में पानी आ गया। उन्होंने उस पानी को गटका और खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस तरह उन्होंने सारा खीरा बाहर फेंक दिया।
लेखक ने खीरा न खाने का क्या बहाना बनाया?खीरों की सजावट ने लेखक के मुँह में पानी ला दिया था परंतु वे पहले ही खीरा खाने से इंकार कर चुके थे। अब उन्हें अपना भी आत्म-सम्मान बचाना था। इसीलिए नवाब साहब के दुबारा पूछने पर उन्होंने मैदा (अमाशय) कमजोर होने का बहाना बनाया।
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