पुरुष प्रधान समाज में महिला को उचित स्थान कैसे मिल सकता है? - purush pradhaan samaaj mein mahila ko uchit sthaan kaise mil sakata hai?

महिलाएँ स्वयं का ही अस्तित्व समाप्त कर, स्वयं ही समाज को पुरुष प्रधान बनाती आई हैं। क्यों वे लड़के को अपनी कोख से जन्म देने के बाद लड़की के समरूप नहीं पालतीं? क्यों लड़कों को जन्म से ही उच्च स्थान दिया जाता है?

आज हर जगह चाहे वह गांव हो या शहर हर जगह महिला सशक्तिकरण की चर्चा हो रही है। महिलाओं की स्थिति में पहले की अपेक्षा काफी सुधार हुआ है लेकिन जिस तेजी से सुधार की परिकल्पना की जाती है वैसा सुधार अभी नहीं हो पाया है। सामाजिक परिवेश में विभिन्न भूमिकाएं निभाते हुई महिलाएँ आज हर क्षेत्र में पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में समाज उनकी भूमिका को नजरअंदाज करता है। जिसके चलते महिलाओं को बड़े पैमाने पर असमानता, उत्पीड़न और अन्य सामाजिक बुराइयों से रोजाना दो-चार होना पड़ता है विशेषकर गांवों और पिछड़े इलाकों में यह असमानता ज्यादा दिखाई पड़ती है।

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हालांकि इस खाई को पाटने में सामुदायिक रेडियो अपनी विशेष भूमिका निभा रहे हैं और ऐसे क्षेत्रों में यह रेडियो इन महिलाओं की आवाज बन गये हैं लेकिन इन सामुदायिक रेडियो की संख्या अभी बेहद कम है। ग्रामीण अंचलों और अति पिछड़े ग्रामीण परिवेश में सामुदायिक रेडियो की व्यापक पहुंच को देखते हुए अभी गत फरवरी माह में ही यूनेस्को और कम्युनिटी रेडियो एसोसिएशन ने बाल विवाह रोकने और बच्चों की पढ़ाई निरन्तर जारी रखने के लिए रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात सहित देशभर के करीब 60 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों पर एक सीरीज की शुरूआत की है। इसी प्रकार दूरदर्शन पर सामाजिक मुद्दों पर आधारित प्रसारित हो रहे सर्वाधिक देखे जाने वाले धारावाहिक "मैं कुछ भी कर सकती हूँ" के बारे में जागरूकता के लिए सहगल फाउंडेशन के साथ मिलकर विभिन्न सामुदायिक रेडियो के जरिए जन जागरण अभियान चलाया ताकि समाज और विशेषकर महिलाओं में जागृति आये।

महिलाएं हर क्षेत्र में अच्छे काम कर रही हैं चाहे वह सेना हो, प्रशासनिक सेवा हो, ग्रामीण विकास हो, स्वास्थ्य सेवा हो, मनोरंजन हो या शिक्षा का क्षेत्र, हर जगह महिलाओं का परचम लहरा रहा है। पंचायती राज संस्थाओं में भी महिलाओं का दबदबा बढ़ा है लेकिन लोकसभा, राज्यसभा और तमाम विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी अभी अपेक्षा से काफी कम है लेकिन इसके बावजूद महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी बखूबी निभा रही हैं।

आज हर क्षेत्र में पुरुष के साथ महिलाएं भी तमाम चुनौतियों से लड़ रही हैं, उनका सामना कर रही हैं, कई क्षेत्रों में तो महिलाएं पुरुषों से आगे भी हैं। आज की नारी पढ़ी लिखी है और वह अपनी क्षमताओं को साबित भी कर रही है? आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि देश की आधी आबादी को ऐसे ही अनदेखा किया जाएगा, उनका शोषण किया जाएगा, तो उनके बिना समाज का विकास कैसे संभव होगा ? महिला और पुरुष दोनों ही समाज की धुरी होते हैं, किसी एक को कमज़ोर करके संतुलित विकास होना असंभव है। जब तक देश की आधी आबादी सशक्त नहीं होगी, हम विकास की कल्पना भी नहीं कर सकते। देश और दुनिया में पहले भी महिलाओं ने अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया है लेकिन इनकी संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक है लेकिन अब देश और दुनिया में शिक्षा के साथ-साथ महिलाओं में जागरूकता आई है जिसके कारण महिलाएं अब हर कदम पर पुरूषों के मुकाबले किसी भी सूरत में कम नहीं हैं लेकिन सामाजिक भेदभाव और अशिक्षा के कारण महिलाओं की स्थिति में बदलाव के लिए व्यापक स्तर पर जन-जागरण एवं जागरूकता की आवश्यकता है।

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महिला सशक्तिकरण की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आठ मार्च, 1975 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से मानी जाती है। भारत में महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, कानूनी और राजनीतिक रूप से मजबूत बनाने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। ग्रामीण भारत की भूमिका को ध्यान में रखते हुए सरकार ने महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के साथ पंचायती राज प्रणाली को सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इससे कई महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में निर्वाचित होने का प्रोत्साहन मिला है जो उनके राजनीतिक सशक्तिकरण का संकेत है। राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य महिलाओं की उन्नति, विकास और सशक्तिकरण सुनिश्चित करना है।

महिला सक्श्तिकरण की सही परिभाषा है महिलाओं के अंदर छोटे-बड़े हर काम का खुद निर्णय लेने की क्षमता का होना। अपनी निजी स्वतंत्रता और स्वयं फैसले लेने के लिए महिलाओं को अधिकार देना ही “महिला सशक्तिकरण” है। जब तक महिलाएँ अपने आप को पुरुषों से कमतर समझती रहेंगी और आत्म-निर्भर नहीं बनेंगी, तब तक बदलाव की कल्पना करना भी बेकार है। ग्रामीण परिवेश में आज भी महिलाएँ अपनी आज़ादी, शक्ति और स्वाभिमान को अपने अंदर दबाकर पुरुषों द्वारा बनाए गए नियमों और कायदे-कानूनों को मानते हुए जीने पर मजबूर हैं। महिलाओं द्वारा अपना पक्ष रखा जाना या फ़िर अपनी आवाज़ उठाना ऐसे समाज में वर्जित है। इसका मूल कारण शिक्षा का अभाव भी हो सकता है। अशिक्षित होने के कारण महिलाओं को अपने अधिकार तक पता नहीं होते हैं। इसी कारण उनके आस-पास एक भ्रमजाल बना दिया जाता है और वे उसे ही सच मान लेती हैं। शिक्षा जीवन में प्रगति लाने का एक शक्तिशाली उपकरण है। महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए शिक्षा से बेहतर तरीका भला क्या हो सकता है ? एक समय था जब महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, मुख्यधारा से जुड़ने नहीं दिया जाता था और न ही कोई रोज़गार करने दिया जाता था। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने की सदा से ही उपेक्षा की जाती रही है और आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बनने के लिए उनका शिक्षित होना बहुत ही ज़रूरी है। महिलाओं को उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार विकास के अवसर प्रदान करना बहुत आवश्यक है और साथ ही महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में बदलाव लाए जाने की भी आवश्यकता है। महिलाओं को भी अपने अधिकारों के लिए आगे आना होगा और अपनी कार्यक्षमता से अपनी शक्ति का और स्वयं के सशक्त होने का परिचय देना होगा।

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महिलाओं को स्वयं आगे बढ़कर अपने प्रति हो रहे आर्थिक और शारीरिक शोषण के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी। भारतीय समाज में हमेशा से ही पुरुषों का प्रभुत्व रहा है जहाँ महिलाओं को प्राचीन काल से ही अलग-अलग तरह की हिंसा का शिकार होना पड़ा है। एक तरफ तकनीकी क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है और खुशहाली का स्तर बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ महिलाओं के प्रति बलात्कार और दुर्व्यवहार में भी वृद्धि हुई है। नारी शक्ति का दूसरा रूप है। जरूरत केवल उस शक्ति को पहचानकर आगे बढ़ने की है ताकि वह समाज में सिर उठाकर चल सके। समाज के सभी बन्धनों से स्वयं को आज़ाद कर इतना सशक्त होने की जरूरत है जिससे कोई भी उसकी ओर बुरी नज़र से देखने की हिम्मत तक न कर सके। महिलाओं पर होने वाले दुष्कर्म जैसे अपराध को रोकने के लिए उन्हें अपनी और समाज की सोच को बदलना होगा और इस तरह के जुर्म को रोकने के लिए आरोपियों के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करना होगा। इन सब अपराधों के बढ़ने का एक कारण यह भी है कि महिलाएँ स्वयं का ही अस्तित्व समाप्त कर, स्वयं ही समाज को पुरुष प्रधान बनाती आई हैं। क्यों वे लड़के को अपनी कोख से जन्म देने के बाद लड़की के समरूप नहीं पालतीं? क्यों लड़कों को जन्म से ही उच्च स्थान दिया जाता है? क्यों बहू को बेटी के जन्म देने पर कोसा जाता है? क्यों स्वयं एक स्त्री होने के बावजूद बेटे के जन्म को प्राथमिकता देती हैं? हालांकि शिक्षित महिलाओं में लड़कियों के प्रति नजरिया बदला है लेकिन कम पढ़ी-लिखी और ग्रामीण परिवेश में रहने वाली महिलाओं को शिक्षा का महत्व और लड़कियों के प्रति नजरिया बदलना होगा तभी सम्पूर्ण नारी सशक्तिकरण हो सकेगा।

पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को उचित स्थान कैसे मिला?

1) स्त्री शिक्षा में हमें योगदान देना चाहिए। 2) अपने समय की महान एवं विदुषी स्त्रियों का उदाहरण समाज में प्रस्तुत करना चाहिए। 3) उसके मान-सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। 4) मिडिया आदि द्वारा उसके अस्तित्व की गरिमा बनी रहे यह देखना चाहिए, अश्लील चित्र आदि पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

महिलाओं को समाज में उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन कौन से प्रयास कर सकते हैं?

समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन-कौन से प्रयास कर सकते हैं? 1 उनकी शिक्षा के हेतु कार्य कर सकते हैं ताकि समाज में वह सर उठा कर अपना जीवन व्यतीत कर सकें। 2 अपने समय की महान एवं विदुषी स्त्रियों का उदाहरण समाज में प्रस्तुत करना चाहिए। 3 महिलाओं को उचित सम्मान देना चाहिए।

महिलाओं को समाज में पहचान कैसे मिलेगी?

सरवेंद्र सिंह ने कहा कि महिलाओं को समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए स्वै निर्भर होना और नारी शक्ति को पहचानना बेहद जरूरी है।

पुरुष प्रधान समाज स्त्री के विषय में क्या सोचता है?

पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं की दुर्दशा ऐसी रही कि स्त्री को अपने पति का नाम लेने का भी अधिकार नही था और ऐसे अमानवीय परंपराओं में हम गौरव करने का हुंकार भरते हैं।