पृथ्वी की आंतरिक संरचना ( Prithvi ki Aantrik Sanrachna) :- हमारी पृथ्वी जिस पर हम रहते हैं, ऊपर से ठण्डी, ठोस एवं कठोर दिखाई देती है। हम जानते हैं कि लगभग 5 अरब वर्ष पहले हमारे सौरमण्डल की उत्पत्ति हुई। हमारी पृथ्वी भी सौरमण्डल के 8 ग्रहों में से एक है। उत्पत्ति के समय पृथ्वी गर्म गैसों और धूल के कणों से बनी आग के दहकते हुए गोले के समान थी। करोड़ों वर्ष बाद पृथ्वी का वायुमण्डल बना और घनघोर वर्षा के फलस्वरूप धीरे-धीरे पृथ्वी की ऊपरी परत ठण्डी हुई, परन्तु पृथ्वी आज भी अन्दर से गर्म है। Show
पृथ्वी की आंतरिक संरचना ( Prithvi ki Aantrik Sanrachna)Prithvi ki Aantrik Sanrachnaयह भी पढ़े – पृथ्वी के प्रमुख स्थलरूप कौन कौन से हैं? पर्वत कितने प्रकार के होते हैं? पृथ्वी की आंतरिक संरचनाहमारी पृथ्वी की आंतरिक संरचना की तुलना प्याज से की जा सकती है। पृथ्वी में भी प्याज की तरह कई परतें हैं, जो भिन्न-भिन्न मोटाई की हैं। आइए जाने कैसी है पृथ्वी की अन्तरिक परतें है। आपने देखा कि हमारी पृथ्वी अन्दर से तीन परतों में विभाजित है-
भूपर्पटी (Earth Crust)पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत को भूपर्पटी कहते हैं। यह पृथ्वी की सबसे पतली ठोस परत है। भूपर्पटी की मोटाई विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है। समुद्र की तलहटी का निर्माण करने वाली भूपर्पटी प्रायः 4 से 7 किलोमीटर मोटी होती है, जबकि महाद्वीपों की भूपर्पटी औसत रूप से 35 किलोमीटर तक मोटी है। कुछ पर्वतों के नीचे तो इसकी मोटाई 70 किलोमीटर तक भी है। चट्टानें और मिट्टियाँ इस भूपर्पटी की सबसे ऊपरी परत का निर्माण करती हैं। सिलिका (SI) एवं एल्यूमिनियम (AI) पदार्थों की अधिकता के कारण इस परत को सियाल (Sial) भी कहा जाता है। मैण्टल (Mantie)भूपर्पटी के नीचे एक बहुत अधिक मोटी परत पाई जाती है, जिसे नेण्टल कहते हैं। मैण्टल 2900 किलोमीटर की गहराई तक पाया जाता है। मैण्टल में चट्टानें पिघली अवस्था में पाई जाती है। यह भूपर्पटी से एक सीमा द्वारा अलग की गई है, जिसे इसके खोजकर्ता भूवैज्ञानिक मोहोरोटिक के नाम पर मोहो- असातत्य (Moho-discontinuity) कहते हैं। मैण्टल का ऊपरी भाग दुर्बलतामण्डल (As thenosphere) कहा जाता है। इसका विस्तार लगभग 400 किलोमीटर की गहराई तक है। ज्वालामुखी विस्फोट के समय जो लावा घरातल पर आता है, उसका स्रोत दुर्बलतामण्डल ही है। मैण्टल का ऊपरी 700/ किलोमीटर तक का भाग ऊपरी मैण्टल तथा शेष भाग निवला मैण्टल कहलाता है। सिलिका (Si) एवं मैगनीशियन (Mg) पदार्थों की अधिकता के कारण इस परत को गीना (Sima) भी कहा जाता है। भूपर्पटी और मैण्टल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमण्डल (Lithosphere) कहलाते हैं इसकी मोटाई 10 से 200 किमी. के बीच होती है। क्रोड (Core)पृथ्वी का सबसे मीतरी भाग क्रोड कहलाता है। क्रोड और मैण्टल की सीमा 2900 किलोमीटर की गहराई पर है। क्रोड परत भी दो भागों में विभाजित है- वाहय क्रोड एवं आंतरिक क्रोड। वाहय क्रोड तरल अवस्था में है, जबकि आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः लोहे तथा निकिल से बना है। भारी धातुओं जैसे- निकिल (Ni) एवं लोहे (Fe) से बनी होने के कारण इस परत को निफे (Nife) भी कहा जाता है। शैल (Rocks)चट्टान (शैल) खनिजों के मिश्रण से बना पदार्थ है। ये विभिन्न आकृतियों, आकारों एवं रंगो में पाई जाती हैं। ये पत्थर की तरह कठोर और मिट्टी व रेत की तरह मुलायम भी हो सकती हैं। आपने देखा होगा कि घर पर आपकी माँ जिस सिलबट्टे का प्रयोग मसाला पीसने के लिए करती है, वह पत्थर का होता है। आप छोटी कक्षा में जिस स्लेट पर लिखते रहे हैं वह भी पत्थर की बनी होती है। आपके गाँव के लोग जिस भूमि पर खेती करते हैं, ये सभी शैल या चट्टानों के अलग-अलग प्रकार हैं। आइए जाने कि शैल या चट्टानें कैसे बनती हैं ? शैल के प्रकार
आग्नेय शैल (Igneous Rocks)यह आग्नेय लैटिन शब्द इग्निस का रूपान्तरण है। इग्निस का अर्थ है आग। आग्नेय शैलों के निर्माण की प्रक्रिया जानिए- उड़ती हुई राख और धुआँ जैसा पदार्थ निकलता दिखाई पड़ रहा है। आग्नेय शैलों की रचना इन्हीं भू-गर्भ से निकलने वाले तत्वों और तरल पदार्थों के ठण्डा होकर जमने के फलस्वरूप हुई है। ये तरल पदार्थ पृथ्वी के आंतरिक भागों में गर्म एवं पिघले हुए रूप में रहते हैं। इसे मैग्मा कहते हैं। जब यह मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर पहुँचता है तो ‘लावा’ कहलाता है। ग्रेनाइट, आग्नेय चट्टान के प्रकार एवं उत्पत्ति और डायोराइट आग्नेय शैल के प्रमुख उदाहरण है। पृथ्वी की भू-पर्पटी का दो-तिहाई भाग आग्नेय शैलों से बना है। आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टाने भी कहते हैं क्योंकि इन्हीं चट्टानों से अन्य चट्टानों का भी निर्माण होता है। आग्नेय शैल की प्रमुख विशेषताएं
अवसादी शैल या परतदार (Sedimentary rocks)आपने बरसात में बहते पानी को देखा होगा। पानी के साथ ककड़ मिट्टी, पेड़ पौधों की पत्तियों तेजी से बहती दिखाई पड़ती हैं। जब पानी का बहना बन्द हो जाता है तो नालियो, सड़क के किनारे तथा गड़ढ़ों में ककड़, मिट्टी, पेड़-पौधों की पत्तियों, घांस आदि जमीन में जमे हुए दिखाई देते हैं। इसी प्रकार परतदार शैलों का निर्माण अवसादों या मलबा जमा होने के कारण होता है। शैलों के छोटे-छोटे कणों को पवन, बहता पानी या हिमानियों अपने साथ उठा या बहा कर ले जाते हैं और उन्हें समुद्र के तल या भू-भाग पर परतों में जमा करते हैं। इन जमी परतों की मोटाई हजारों मीटर होती है। धरातल के तीन चौथाई भाग में परतदार शैल पायी जाती है। जोयस का जमाव वायु निर्मित परतदार चट्टान का सबसे प्रमुख उदाहरण है। हिमालय पर्वत जो भारत का पहरेदार कहलाता है. इसमें परतदार चट्टाने पाई जाती हैं। बलुआ पत्थर प्लेट, चूने का पत्थर, कोयला खड़िया- मिट्टी आदि चट्टाने परतदार चट्टान के उदाहरण है। अवसादी शैल की प्रमुख विशेषताएँ
रूपानारित शैल (Metamorphic rock)रूपान्तरित शैल जैसा कि शब्द रूपान्तरण से पता चलता है कि ये चट्टाने अन्य चट्टानों के रूप परिवर्तन के फलस्वरूप निर्मित होती हैं। परतदार शैल तथा आग्नेय शैल में दाब और ताप द्वारा परिवर्तन के फलस्वरूप रूपान्तरित शैल का निर्माण होता है। रूपान्तरण की क्रिया के दौरान चट्टान का संघटन तथा रूप रंग बदल जाता है, परन्तु चट्टान में किसी प्रकार का विघटन या वियोजन नहीं होता है। उदाहरण के लिए कच्ची मिट्टी से ईंट बनाना। रूपान्तरित शैल की विशेषताएँ
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