राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 क्या है? - raajasthaan bhoo raajasv adhiniyam 1956 kya hai?

"भूमि अभिलेख अधिकारी"- से तात्पर्य कलेक्टर से है जिसमें अतिरिक्त अथवा सहायक भू अभिलेख अधिकारी भी सम्मिलित है।

"नजुल भूमि"- राज्य सरकार के अधीन किसी नगरपालिका, पंचायत सर्किल या गांव, कस्बे या शहर की सीमा में स्थित आबादी भूमि।

"राजस्व अपीलीय प्राधिकरण"- से तात्पर्य ऐसे प्राधिकरण के रुप में नियुक्त अधिकारी से है।

"निपटान अधिकारी"- से तात्पर्य सहायक सेटलमेंट अधिकारी से है।

बोर्ड की स्थापना एवं संरचना-

बोर्ड का एक चेयरमेन(अध्यक्ष) होगा, तथा कम से कम तीन तथा आधिक से अधिक पन्द्रह अन्य सदस्य होंगे।

अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए योग्यता, चयन के तरीके तथा सेवा शर्तों का निर्धारण राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा।

– निम्नलिखित मामलो पर कानून समेकित करने व संशोधित करने हेतु राजस्थान मे भू-राजस्व अधिनिम 1956 बनाया गया-

1-    भूमि संबंधित मामलो मे कानून बनाने।

2-    राजस्व न्यायालयो व अधिकारियो की नियुक्ति के लिये, उनकी शक्तियो व कर्तव्यो का निर्धारण करने के लिये ।

3-    भूमि संबंधित अभिलेखो व नक्शो की तैयारी व रखरखाव से संबंधित कार्यो के लिये।

4-    भू-राजस्व व लगान निर्धारण करने।

5-    भूसंपत्तियो के विभाजन के लिये।

6-    राजस्व वसूली एवं उससे संबंधित मामलो के लिये।


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अध्याय 1 प्रारम्भिक

·        यह 1 जुलाई 1956 से प्रभावशील हुआ तथा अजमेर, आबु व सुनेल मे यह 15 जून 1958 से लागू हुआ।

·        निर्वचन – धारा 3 मे इस अधिनियम मे प्रयुक्त होने वाले कुछ शब्दो को को परिभाषित किया गया है। कुछ खास परिभाषाएं निम्नानुसार है-

1-    भू-अभिलेख अधिकारी – (साधारण अर्थ मे भूमि संबंधि रेकार्ड के संधारण व रखरखाव के लिये नियुक्त अधिकारी भू-अभिलेख अधिकारी है।) धारा 3(1) के अनुसार जिलाधीश भू-अभिलेख अधिकारी होगा व उसमे अतिरिक्त व सहायक भू-अभिलेख अधिकारी सम्मिलित है।

2-    नजूल भूमि – धारा 3(1ख) के अनुसार किसी नगरपालिका या पंचायत सर्किल या गाँव, कस्बा या शहर की सीमा मे स्थित ऐसी आबादी भूमि जो सीधे राज्य सरकार के स्वामित्व मे हो, नजूल भूमि कहलाती है।

3-    प्रस्वीकृत अभिकर्ता (recognized agent) – धारा 3(3) के अनुसार ऐसा व्यक्ति जो किसी पक्षकार द्वारा उसकी ओर से उपस्थित होने, प्रार्थना पत्र देने तथा अन्य किसी कार्य के लिये इस अधिनियम मे बनाये गये नियमो के तहत लिखित रूप से अधिकृत किया गया हो, प्रस्वीकृत अभिकर्ता होगा।

4-    भू-प्रबन्ध अधिकारी – (साधारण अर्थ मे भूमि का प्रबन्ध या व्यवस्था करने वाला अधिकारी ) धारा 3(4) के अनुसार भू-प्रबन्ध अधिकारी मे सहायक भू-प्रबन्ध अधिकारी सम्मिलित है।

5-    गाँव – धारा 3(5) के अनुसार वह भूमि खण्ड जो गाँव के रूप मे मान्यता प्राप्त हो तथा रेकार्ड मे दर्ज हो चुका हो तथा इसके बाद इस अधिनियम के प्रवधानो के अन्तर्गत गाँव के रूप मे मान्यता प्राप्त या अभिलिखित किया गया हो, एक गाँव (village) होगा।








अध्याय 2 राजस्व मण्डल

·        राजस्व मण्डल की संरचना – धारा 4 के अनुसार राजस्व मण्डल (revenue board) की संरचना के मुख्य घटक निम्नानुसार है -

1-    राजस्व मण्डल मे एक अध्यक्ष एवं अन्य सदस्य होंगो जो कम से कम तीन व अधिकतम बीस हो सकते है।

2-    अध्यक्ष एवं सदस्यो की नियुक्तियां राजपत्र (gadget notification)  मे अधिसूचित की जायेगी।

3-    अध्यक्ष एवं सदस्यो की अहर्तायें, सेवा की शर्ते एवं नियुक्ति का तरीका राज्य सरकार द्वारा तय किये जायेंगे।

4-    अध्यक्ष या किसी सदस्य की मृत्यु, पदत्याग, अस्थाई अनुपस्थिति या नियुक्ति रद्द किये जाने के कारण कोई पद रिक्त होने से मण्डल का गठन अवैधानिक नही माना जायेगा।

5-    धारा 5 के अनुसार मण्डल के सभी राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त पद धारण कर सकते है।

6-    धारा 6 के अनुसार राजस्व मण्डल का मुख्यालय अजमेर है, किन्तु राज्य सरकार के विशेष या सामान्य आदेश तहत मण्डल अपने अधिकार क्षैत्र मे किसी अन्य स्थान पर भी बैठक कर सकता है।

7-    धारा 7 के अनुसार राजस्व मण्डल मे कार्य संपादन के लिये एक निबन्धक तथा ऐसे अन्य अनुसचिवय अधिकारी (ministerial officers)  नियुक्त किये जायेंगे, जो इस अधिनियम या किसी अन्य नियमो या आदेशो द्वारा उनको दिये गये अधिकारो का प्रयोग करेंगे, निर्देशो की पालना करेंगे व सौपे गये कर्तव्यो को पूर्ण करेंगे।

·        मण्डल की शक्तियां और कार्य – राजस्व मण्डल की शक्तियां एवं  कार्य निम्नलिखित है-

1-    धारा 8 के अनुसार राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम या राजस्थान काश्तकारी अधिनियम या अन्य किसी प्रभावशाली कानून के अधीन अपील, पुनरीक्षण, रिवीजन, तथा निर्देशन के लिये राजस्व मण्डल राज्य का उच्चतम राजस्व न्यायालय है।

2-    धारा 9 के अनुसार राजस्व मण्डल समस्त राजस्व न्यायालयो एवं राजस्व अधिकारियो का पूर्ण अधीक्षण करता है तथा उन पर नियंत्रण करता है।

3-    धारा 11 के अनुसार किसी मामले मे निर्णय हेतु मण्डल किसी बैंच (पीठ) को निर्देश कर सकता है।

4-    धारा 12 के अनुसार यदि कोई मामला सार्वजनिक महत्व का हो और उस पर उच्च न्यायालय का अभिमत (राय) प्राप्त करना आवश्यक हो तो मण्डल उसे उच्च न्यायालय को निर्देशत (Refer) कर सकता है।

5-    धारा 13 के अनुसार किसी मामले मे मण्डल की बैंच के सदस्यो मे कोई मतभेद हो तो बहुमत के आधार से निर्णय किया जाता है।

6-    धारा 14 के अनुसार मण्डल अपने कार्य संपादन हेतु आवश्यक और निर्धारित किये हुए रजिस्टर और हिसाब संधारित करावायेगा।

7-    मण्डल राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर दी गई शक्तियो का प्रयोग एवं सौपे गये कर्तव्यो का पालन करेगा।





अध्याय 3 राजस्व न्यायालय व अधिकारी

·        प्रादेशिक खण्ड – धारा 15 के अनुसार राजस्व एवं सामान्य प्रशासन हेतु राज्य सरकार राजपत्र मे अधिसूचना जारी कर जितनी आवश्यक व उचित हो उतनी प्रशासनिक ईकाईयो का विभाजन निम्नांकित रूप मे कर सकती है तथा उन्हे सीमांकित कर सकती हैः-

1-    राज्य को एक से अधिक संभाग मे

2-    संभाग (खण्ड) को एक या एक से अधिक जिले मे

3-    जिले को एक या एक से अधिक उपखण्ड मे

4-    उपखण्ड को एक या एक से अधिक तहसील मे

5-    तहसील को एक या एक से अधिक उप तहसील मे

·        धारा 16 के अनुसार राज्य सरकार राजपत्र मे अधिसूचना के द्वारा नये संभाग, जिले, उपखण्ड, तहसीले, उपतहसीले व गाँवो का निर्माण कर सकती है, वर्तमान को समाप्त कर सकती है, तथा उनकी सीमाओ मे परिवर्तन कर सकती है।

·        न्यायालय तथा अधिकारी गण – राज्य सरकार राजपत्र मे अधिसूचना के द्वारा निम्नांकित अधिकारीयो की नियुक्ति करती है-

क्र.सं.

अधिकारी

नियुक्ति का परिक्षैत्र

संबंधित धारा

1

आयुक्त

प्रत्येक संभाग (खण्ड) मे एक

17

2

अपर आयुक्त

किसी एक संभाग या दो अथवा दो से अधिक संभागो पर संयुक्त रूप से जितने आवश्यक हो

17

3

भू-प्रबन्ध आयुक्त

सम्पूर्ण राज्य के लिये एक

18

4

अतिरिक्त भू-प्रबन्ध आयुक्त

सम्पूर्ण राज्य जितने आवश्यक हो

18

5

भू-अभिलेख निदेशक

सम्पूर्ण राज्य के लिये एक

19

6

अतिरिक्त भू-अभिलेख निदेशक

सम्पूर्ण राज्य जितने आवश्यक हो

19

7

कलक्टर

प्रत्येक जिले मे एक

20

8

तहसीलदार

प्रत्येक तहसील मे एक (इन्है किसी तहसील की एक या एक से अधिक उपतहसीलो का चार्ज भी सौपा जा सकता है।)

20

9

अपर भू-अभिलेख अधिकारी

किसी जिले के लिये एक

20

10

बन्दोबस्त अधिकारी

किसी जिले के लिये एक

20

11

सहायक कलक्टर

किसी जिले मे जितने आवश्यक हो ( इन्है किसी जिले के एक या एक से अधिक उपखण्डो का चार्ज भी सौपा जा सकता है)

20

12

नायब तहसीलदार

किसी तहसील मे जितने आवश्यक हो (इन्है किसी तहसील की एक या एक से अधिक उपतहसीलो का चार्ज भी सौपा जा सकता है।)

20

13

अपर कलक्टर

किसी एक जिले या एक से अधिक जिलो पर सामूहिक रूप से एक

20

14

अपर तहसीलदार

किसी एक तहसील या एक से अधिक तहसीलो पर सामूहिक रूप से एक

20


ð राजस्व अपील प्राधिकारी (RAA) – धारा 20क के अनुसार राजस्व

न्यायिक मुकदमो मे या अन्य मामलो मे, (जिनमे विशेष रूप से विधिवत प्रावधान किये गये हो,) अपीले, निगरानिया, पुनरीक्षण तथा निर्देश लेने, सुनने तथा निर्णय करने के लिये राज्य सरकार कम से कम तीन व अधिकतम जितने आवश्यक हो उतने प्राधिकारी नियुक्त कर सकती है। जो राजस्व अपील प्राधिकारी के नाम से जाने जायेंगे तथा वो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्थान पर बैठ कर अपने अधिकार क्षैत्र का प्रयोग और कर्तव्यो का पालन करेंगे।






·        नियंत्रण की शक्ति – धारा 23 के अनुसार राज्य मे राजस्व से संबंधित समस्त गैर न्यायिक ( Non judicial) मामलो पर राज्य सरकार का नियंत्रण है, जबकि समस्त न्यायिक व भू-प्रबन्ध से संबंधित मामलो पर राजस्व मण्डल का नियंत्रण है।

·        न्यायिक मामले – ऐसी मामले या कार्यवाही जिसमे किसी राजस्व अधिकारी या न्यायालय को उससे संबंधित पक्षो के अधिकार या दायित्वो का निर्धारण करना होता है, न्यायिक मामले है।

·        प्रथम अनुसूची – धारा 23 के अनुसार न्यायिक मामलो की सूची प्रथम अनुसूची है, जिसके अनुसार निम्नांकित मामले न्यायिक है-

1-    धारा 88 (2) के अन्तर्गत किसी भू-संपति पर अधिकार संबंधि दावे।

2-    चरागाह भूमि पर पशुओ के चराई के अधिकार संबंधित विवाद।

3-    वन उपज के उपयोग के अधिकार तथा वन भूमि से अपवर्जित करने संबंधित विवाद।

4-    सीमा विवादो का निपटारा।

5-    अधिकार अभिलेख या वार्षिक रजिस्टरो के ईन्द्राजो के विवाद।

6-    काश्तकारो के वर्ग तथा भोगाधिकार के बारे मे विवाद।

7-    उत्तराधिकार, हस्तानान्तरण या अन्य किसी भी प्रकार के नामान्तरण के मामले।

8-    देय लगान या राजस्व से संबंधित मामले।

9-    दस्तुर गांवाई या वाजिब-उल-अर्ज संबंधित मामले।

10-           राजस्व या लगान से मुक्त भूमि के संबंध मे जाँच या कर निर्धारण के मामले।

11-           भू-संपति विभाजन या एकीकरण (चकबन्दी) संबंधित मामले।

12-           इस अधिनियम के तहत जुर्माने, दण्ड, जब्तियां, अधिहरण का विनिश्चयन।

13-           क्षतिपूर्ति मुआवजे का विनिश्चयन।

14-           इस अधिनियम के अन्तर्गत विक्रय तथा निलाम।

15-           अन्य विषय जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये जाये।






·        पटवारी, कानूनगो तथा निरीक्षक – इस अधिनियम मे पटवारी, कानूनगो तथा निरीक्षक के लिये निम्नांकित प्रावधान किये गये है-

1-    पटवार वृतो का निर्माण - धारा 30 अनुसार पटवार वृतो का गठन एवं उनकी सीमाओ मे परिवर्तन राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति से भू-अभिलेख अधिकारी द्वारा किया जायेगा, जिसमे एक या एक से अधिक गाँव सम्मिलित किये जा सकते है।

2-    पटवारियो की नियुक्ति – धारा 31 के अनुसार प्रत्येक पटवार वृत मे वार्षिक रजिस्टरों तथा अभिलेखो के संधारण व संशोधन करने, काश्तकारो से सम्पूर्ण लगान, राजस्व तथा अन्य माँगो की वसूली करने व राज्य सरकार द्वारा निर्धारित अन्य कार्यो को पूरा करने के लिये जिलाधीश (कलक्टर) द्वारा पटवारी की नियुक्ति की जाती है।

3-    निरीक्षक वृतो का निर्माण – धारा 32 के अनुसार राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति से भू-अभिलेख निदेशक द्वारा प्रत्येक जिले मे भू-अभिलेख निरीक्षक वृतो का गठन व उनकी सीमाओ मे परिवर्तन किया जायेगा, जिसमे एक या एक से अधिक पटवार मण्डल सम्मिलित किये जा सकते है।

4-    गिरदावर, कानूनगो अथवा भू-अभिलेख निरीक्षको की नियुक्ति – धारा 33 के अनुसार पटवारी द्वारा संधारित वार्षिक रजिस्टरों तथा अभिलेखो के उचित पर्यवेक्षण करने, उनमे भूल सुधार करने के लिये जिलाधीश (कलक्टर) द्वारा गिरदावर, कानूनगो अथवा भू-अभिलेख निरीक्षको की नियुक्ति की जायेगी।

5-    सदर कानूनगो – धारा 34 के अनुसार प्रत्येक जिले मे गिरदावर, कानूनगो अथवा भू-अभिलेख निरीक्षक व पटवारियो के कार्यो का पर्यवेक्षण करने तथ राज्य सरकार द्वारा निर्धारित कर्तव्यो का पालन करने के लिये भू-अभिलेख निदेशक द्वारा प्रत्येक जिले मे एक या एक से अधिक सदर कानूनगो की नियुक्ति की जाती है।
      ( वर्तमान मे सदर कानूनगो का पद नाम बदल कर तहसीलदार (भू.अ.) कर दिया गया है, जिस पर तहसीलदार की नियुक्ति की जाती है। जबकि पूर्व मे इस पद पर नायब तहसीलदार की नियुक्ति होती थी)

6-    धारा 35 के अनुसार पटवारियो, गिरदावर, कानूनगो तथा सदर कानूनगो की योग्यताओ, सेवा की शर्तो व कर्तव्यो का निर्धारण व उनमे समय-समय पर परिवर्तन राज्य सरकार किये जाते है।





7-    अभिलेख की तैयारी के लिये सूचना देने की बाध्यता- धारा 36 के अनुसार किसी व्यक्ति के अधिकार, हित या दायित्व के संबंध मे कोई तथ्य सरकारी रजिस्टर मे दर्ज किये जाने आवश्यक हो तो पटवारी, गिरदावर या कानूनगो द्वारा सूचना माँगे जाने से पर वह व्यक्ति इस संबंध मे समस्त सूचना देने के लिये बाध्य है।


अध्याय 4 राजस्व न्यायालयो एवं अधिकारियो की प्रक्रिया

·        भूमि मे प्रवेश तथा सर्वेक्षण – धारा 52 के अनुसार मौखिक या लिखित रूप से प्राधिकृत समस्त राजस्व अधिकारी, ग्राम अधिकारी तथा उनके सेवक या मजदूर किसी भी भूमि मे प्रवेश कर उसका सर्वेक्षण तथा सीमांकन कर सकते है तथा उनको सौपे गये कर्तव्यो से संबंधित अन्य कार्य कर सकते है। किन्तु किसी भवन या उसके बन्द आँगन या भवन से संलग्न बगीचे मे उसके अधिभोगी (मालिक) की स्वीकृति लेकर या कम से कम 24 घण्टे पहले उसे सूचना देकर ही प्रवेश किया जायेगा तथा ऐसे प्रवेश करने पर अभिभोगी के सामाजिक व धार्मिक भावनाओ का उचित ध्यान रखा जायेगा।

·        उपस्थित होने व प्रार्थना पत्र देने संबंधि प्रावधान – धारा 56 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी भी राजस्व अधिकारी या न्यायालय के समक्ष निम्न तरीके से उपस्थित हो सकता है या प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर सकता हैः-

1-    स्वयं उपस्थित होकर।

2-    उसके द्वारा प्रस्वीकृत अभिकर्तागण द्वारा।

3-    उसके द्वारा प्राधिकृत व ऐसे न्यायालय या अधिकारी के समक्ष वकालत करने मे सक्षम वकील द्वारा।

       किन्तु राजस्व न्यायालय या अधिकारी प्रस्वीकृत अभिकर्ता या वकील होने पर भी किसी पक्षकार की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकता है।





अध्याय 5 अपील, निर्देश, पुनरीक्षण तथा पुनर्विलोकन

·        अपील (appeal) – किसी राजस्व न्यायालय या अधिकारी द्वारा दिये गये निर्णय या आज्ञा से असंतुष्ट होकर किसी पक्षकार द्वारा उस निर्णय के विरूद्ध ऊपरी न्यायालय मे या अधिकारी को आपत्ति दर्ज करा कर पुनः निर्णय की मांग करना अपील है। जो धारा 74 के अनुसार इस अधिनियम मे किये गये प्रावधानो के अलावा अन्य किसी तरीके से नही की जा सकती है।

·        प्रथम अपील – धारा 75 के अनुसार किसी मामले मे प्रथम अपील निम्नानुसार की जा सकती हैः-

1-    भू-प्रबन्ध या भू-अभिलेख से संबंधित मामलो मे तहसीलदार द्वारा दी गई आज्ञा से जिलाधीश को।

2-    भू-प्रबन्ध से असंबंधित मामलो मे सहायक कलक्टर या उपखण्ड अधिकारी या कलक्टर द्वारा दी गई मूल आज्ञा से राजस्व अपील अधिकारी को।

3-    भू-प्रबन्ध अधिकारी को उसके अधिनस्थ राजस्व न्यायालय या अधिकारी द्वारा दी गई मूल आज्ञा से।

4-    भू-अभिलेख अधिकारी को उसके अधिनस्थ राजस्व न्यायालय या अधिकारी द्वारा दी गई मूल आज्ञा से।

5-    भू-प्रबन्ध अधिकारी या कलक्टर द्वारा भू-प्रबन्ध से संबंधित मामलो मे दी गई मूल आज्ञा से भू-प्रबन्ध आयुक्त को।

6-    भू-अभिलेख से संबंधित मामलो मे भू-अभिलेख अधिकारी द्वारा दी गई मूल आज्ञा से भू-अभिलेख निदेशक को।

7-    कमिश्नर या अतिरिक्त कमिश्नर या राजस्व अपील अधिकारी या भू-प्रबन्ध आयुक्त द्वारा दी गई मूल आज्ञा से राजस्व मण्डल को।

·        द्वितीय अपील – धारा 76 के अनुसार प्रथम अपील मे दी गई किसी आज्ञा से द्वितीय अपील निम्नानुसार होगी-

1-    भू-प्रबन्ध या भू-अभिलेख से असंबंधित मामलो मे जिलाधीश (कलक्टर) द्वारा दी गई आज्ञा की राजस्व अपील अधिकारी को।

2-    भू-प्रबन्ध अधिकारी या धारा 181 के अन्तर्गत कार्य करने पर जिलाधीश द्वारा दी गई आज्ञा की भू-प्रबन्ध आयुक्त को।

3-    भू-अभिलेख अधिकारी द्वारा दी गई आज्ञा की भू-अभिलेख निदेशक को।

4-    कमिश्नर या राजस्व अपील अधिकारी या भू-प्रबन्ध आयुक्त द्वारा दी गई मूल आज्ञा से राजस्व मण्डल को।

·        निर्देश (Reference) – धारा 82 के अनुसार निर्देश वह प्रक्रिया है जिसके तहत भू-प्रबन्ध आयुक्त या भू-अभिलेख निदेशक या जिलाधीश अपने किसी अधिनस्थ न्यायालय या अधिकारी द्वारा निर्णित मुकदमे या कि गई कार्यवाही के आधार पर अभिलेखो पर दिये गये आदेशो की वैधता एवं नियमितता से अपने आप को संतुष्ट करने के लिये उनसे अभिलेख (रेकार्ड) मंगवाकर परिक्षण कर सकते है तथा दी गई आज्ञा को परिवर्तित, रद्द या उलट दी जानी आवश्यक हो तो अपनी राय या टिप्पणी सहित राज्य सरकार या मण्डल को रेफर (निर्देशित) कर सकते है।

·        पुनरीक्षण (Revision) – धारा 83 व 84 के अनुसार वह प्रक्रिया जिसके तहत राज्य सरकार या मण्डल अपने अधिनस्थ न्यायालय या अधिकारी द्वारा निर्णित किसी मामले मे अभिलेख मंगवाकर उसका पुनः परिक्षण कर सकते है, तथा दी गई आज्ञा क्षैत्राधिकार के न होते हुए दी गई है या क्षैत्रधिकार होते हुए उसके प्रयोग मे विफल रहा हो, या अवैध रूप से या तात्विक अनियमितता से कार्य किया है, तो वह पुनः आज्ञा दे सकता है।

·        पुनर्विलोकन (Review) – धारा 86 के अनुसार राज्य सरकार या मण्डल या किसी भी राजस्व अधिकारी या न्यायालय द्वारा अपने स्वयं या पूर्व के किसी अधिकारी द्वारा दी गई आज्ञा को अपने स्वयं या किसी प्रभावित पक्षकार द्वारा आवेदन करने पर पुनः विखण्डित, परिवर्तित या रद्द करना पुनर्विलोकन है।

·        लिमिटेशन एक्ट का लागु होना – धारा 87 के अनुसार इस अधिनियम के अन्तर्गत समस्त अपीलों तथा पुनरावलोकनों के लिये किये जाने वाले आवदनो पर भारतीय लिमिटेशन एक्ट ( केन्द्रीय अधिनियम 9 सन् 1908) के प्रावधान लागु होंगे

 






                       अध्याय 6 भूमि

·        समस्त सडके आदि तथा समस्त भूमियां जो दूसरो की सम्पत्ति न हो राज्य सरकार की होंगी - इस अधिनियम की धारा 88 के मे बताया गया है कि जिन भूमियों का कोई विधिक स्वामी नही है वे सभी राज्य सरकार की सम्पति रहेगी, (जैसे सार्वजनिक सडके, रास्ते, पुल खांईया, समस्त नदियां. स्त्रोत, नाले, झीले व तालाब, नहरे और जल मार्ग, समस्त स्थिर व प्रवाहित जल और अन्य समस्त भूमि जिस पर किसी का विधि पूर्वक अधिकार नही है।) राज्य सरकार के आदेश व नियमो के अन्तर्गत जिला कलक्टर उनका जनता के हित मे आवश्यकतानुसार व्यवस्था करेगा।

·        खनिजो, खानो, पत्थर की खानों और मत्स्य क्षेत्रों पर अधिकार – धारा 89 के अनुसार राज्य मे निकलने वाले समस्त खनिजो, खानो मत्स्य क्षेत्रो व किसी नदी मे नाव चलाने अथवा सिंचाई के अधिकार राज्य सरकार मे निहित है। तथा ऐसी भूमि पर कब्जा करने का अधिकार होगा जो उपरोक्त कार्य करने के लिए सहायक प्रयोजन के लिये आवश्यक है। खनन कार्य के लिए जब तक राज्य सरकार किसी भी व्यक्ति को अपने अधिकार अभिहस्तांकित न कर दे। तब तक कोई भी व्यक्ति खनन कार्य नही कर सकेगा। और किसी खनन क्षेत्र मे किसी व्यक्ति की विधिवत अधिकार प्राप्त अर्थात खातेदारी या पट्टे की भूमि आती है तो उसे राजस्थान भू-अवाप्ति अधिनियम 1953 के प्रावधानो के अनुसार मुआवजा राशि भूगतान की जायेगी। तथा कोई अवैध रूप से खनन कार्य करता है तो उसके विरूद्ध कार्यवाही की जा सकती है।



·        समस्त भूमि का राजस्व लगान चुकाने का उत्तरदायित्व – धारा 90 के अनुसार भूमि चाहे किसी भी प्रयोजन के लिये प्रयुक्त हो तथा कहीं भी स्थित हो, यदि राज्य सरकार द्वारा कोई छूट नही दी गई हो तो उसका राजस्व लगान चुकाने का उत्तरदायित्व धारण कर्ता का रहेगा।

·        कृषि भूमि का गैर कृषि कार्यो मे प्रयोग – धारा 90 क के अनुसार कृषि हेतु भूमि धारण करने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसी भूमि को किसी गैर कृषि कार्य के लिए काम मे नही ले सकता है। राज्य सरकार दवारा समय-समय पर इस हेतु बनाये गये (कृषि भूमि का गैर कृषि हेतु संपरिवर्तन ) नियमो के तहत भूमि संपरिवर्तन कराई जाकर उपयोग मे ली जा सकती है।   


   







अध्याय 7 सर्वेक्षण तथा अभिलेख कार्य

·        सर्वेक्षण तथा अभिलेख कार्य – राज्य सरकार राजपत्र मे अधिसूचना जारी कर किसी भी क्षैत्र को सर्वेक्षण तथा अभिलेख कार्य के अधीन घोषित कर सकती है, जो भू-अभिलेख निदेशक के प्रभार मे राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार चलाये जायेंगे। प्रत्येक क्षैत्र के लिये एक अतिरिक्त भू- अभिलेख अधिकारी नियुक्त किया जायेगा।

·        सीमा चिन्ह – सीमा चिन्ह के संबंध मे निम्नांकित प्रावधान किये गये है-

1-    धारा 110 के अनुसार किसी क्षैत्र या गाँव मे सर्वेक्षण तथा अभिलेखन कार्य चल रहा हो तो भू-अभिलेख अधिकारी एक उद्घोषणा जारी कर ऐसे क्षैत्र के समस्त भू-सम्पति धारको एवं काश्तकारो से उस गाँव तथा उसके खेतो की सीमाओ के सर्वेक्षण मे अपेक्षित सहायता करने हेतु बाध्य कर सकता है।

2-    भू-अभिलेख अधिकारी समस्त भू-सम्पति धारको एवं काश्तकारो से उनके गाँव तथा उनके खेतो की सीमाओ को सीमांकित करने के लिये आवश्यक सीमा चिन्हो को पन्द्रह दिनो मे खडे करने हेतु निर्देशित कर सकता है।

3-    धारा 111 के अनुसार किन्ही सीमाओ के संबंध मे कोई विवाद उत्पन्न हो तो भू-अभिलेख अधिकारी वर्तमान मानचित्रो के आधार पर या ऐसे मानचित्र उपलब्ध न हो तो वास्तविक कब्जे के अनुसार निर्णय करेगा।

4-    धारा 128 के अनुसार यदि सीमा पर कोई विवाद नही हो किन्तु सीमाचिन्ह के अभाव मे विवाद उत्पन्न होने की संभावना हो तो काश्तकार का आवेदन प्राप्त होने पर तहसीलदार द्वारा निपटारा किया जायेगा।

5-    धारा 129 के अनुसार भू-संपंतियो या खेतो के समस्त धारक(काश्तकार) उनके खेतो की सीमाओ पर विधिवत् रूप से खडे किये गये समस्त सीमाचिन्हो के रखरखाव के लिये जिम्मेदार है, और उनको किसी प्रकार की क्षति होती है तो स्वयं के खर्चे से मरम्मत कराने हेतु बाध्य है।

6-    किसी चिन्ह की मरम्मत या पुनः स्थापना के लिये किसी धारक को आदेश देने के बावजूद 30 दिनो तक कार्य पूर्ण नही करता है तो भू- अभिलेख अधिकारी अपने खर्चे से उक्त सीमाचिन्ह खडे करवायेगा तथा उसकी लागत का समस्त खर्चा संबंधित धारक से वसूल करेगा।

7-    धारा 130 के अनुसार कोई व्यक्ति सीमाचिन्हो को हटाने, नष्ट करने या किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का दोषी पाया जाता है तो भू-अभिलेख अधिकारी द्वारा उससे शास्ति के रूप मे तय राशि वसूल की जायेगी।









पत्थर गढ़ी / सीमा ज्ञान 


प्रावधान - पत्थर गढ़ी / सीमा ज्ञान के लिए राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 111 व 128 में बताया गया है |

सक्षम अधिकारी - धारा 128 के अनुसार विवादित मामले भू-अभिलेख अधिकारी ( उपखण्ड अधिकारी ) द्वारा धारा 111 मे बताए गये तरिके से न्यायिक प्रक्रिया द्वारा तथा अविवादित मामले तहसीलदार द्वारा भू-राजस्व ( भ - अभिलेख ) नियम 1957 के नियम 34 ( ॥। ) के अनुसार निपटाए जाते है |

प्रक्रिया - 

1 -यदि मामला विवादित है तो संबंधित पक्षकार को उपखण्ड अधिकारी के यहां विवादित भूमि मय उसके पडौसियों के विवरण सहित  आवेदन करना होता है ।

2- चूंकि सीमा विवाद धारा 23 मे वर्णित प्रथम अनुसूची की क सं . 4 के अनुसार न्यायिक मामला है । अत: SDO को पहले संबंधित प्रार्थी व विपक्षी गणो की सुनवाई करना आवश्यक है।

3 - बाद सुनवाई यदि कोई पक्षकार या विपक्षी स्थल निरीक्षण का अनुरोध करे या पीठासीन अधिकारी स्वयं स्थल का निरीक्षण कराना चाहे तो वह किसी भूमापक / पटवारी / निरीक्षक को नियुक्त कर सकता है।

4 - स्थल निरीक्षण की रिपोर्ट अनुसार पीठासीन अधिकारी मौकेपर सीमा चिन्ह लगाने का आदेश देगा । 

5 - जिस अधिकारी / कर्मचारी को पत्थरगढ़ी करने हेतु नियुक्त किया जाएगा उसका एक दिन का वेतन पक्षकारान द्वारा राजकोष मे जमा कराना होता है।

6- पत्थर गढी के लिए नियुक्त अधिकारी / कर्मचारी मुस्तकिल बिन्दुओं से नाप कर मौके पर पत्थर गढ़ी करायेंगे तथा अपनी रिपोर्ट में मुस्तकिल बिन्दू मय दूरी का उल्लेख करेंगे |






 

     नक्शे तथा फील्ड बुक -  धारा 112 के अनुसार सर्वेक्षण तथा अभिलेखन कार्य के दौरान भू-अभिलेख अधिकारी प्रत्येक गाँव या उसके किसी भाग के लिये एक फील्ड बुक (क्षैत्रमिति) और नक्शा (मानचित्र) तैयार करेगा। तथा धारा 131 के अनुसार सर्वेक्षण तथा अभिलेखन कार्य के समाप्त होने के बाद भू-अभिलेख अधिकारी ऐसे नक्शो व फील्ड बुक को रखेगा व उसमे समय-समय पर होने वाले परिवर्तनो को दर्ज करेगा। अर्थात अपडेट करेगा। तथा उनमे किसी प्रकार की त्रुटि हो तो उनको सही भी करेगा।

·        अधिकार अभिलेख – धारा 113 के अनुसार भू-अभिलेख अधिकारी प्रत्येक गाँव के लिये अधिकार अभिलेख तैयार करेगा। तथा धारा 122 के अनुसार अधिकार अभिलेख मे समस्त निर्विवाद इन्द्राज का प्रमाणिकरण हित रखने वाले पक्षकारो द्वारा किया जायेगा। धारा 140 के अनुसार अधिकार अभिलेख मे दर्ज समस्त इन्द्राज तब तक सही माने जायेंगे जब तक कोई विपरित सिद्ध न करे।

·        अधिकार अभिलेख की अन्तर्वस्तऐं -  धारा 114 के अनुसार राज्य सरकार द्वारा निर्धारित तरिके से अधिकार अभिलेख तैयार किये जायेंगे जिनमे निम्नलिखित का समावेश होगा-

1-    खेवट – एक ऐसा रजिस्टर जिसमे सर्वेक्षण तथा अभिलेखन कार्य के अधीन आने वाले क्षैत्र के समस्त भू-संम्पति धारको, उनके सहभागीदारो, कब्जाधारी, बन्धकदारो तथा काश्तकारी के अतिरिक्त अन्य प्रकार से भूमि धारण करने वालो का विवरण दर्ज किया जायेगा।

2-    खतौनी – एक ऐसा रजिस्टर जिसमे सर्वेक्षण तथा अभिलेखन कार्य के अधीन आने वाले क्षैत्र की भूमि मे काश्त करने वाले या अन्य प्रकार से भूमि धारण करने वाले या अधिवासित (वैध प्राधिकार से धारण करना) वाले समस्त व्यक्तियो के संबंध मे धारा 121 मे वर्णित विवरण दर्ज किये जायेंगे।

3-    बिना लगान या राजस्व के भूमि धारण करने वालो का रजिस्टर ।

4-    राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये गये अन्य रजिस्टर।

( विशेष- राज्य मे भू-धारक सिर्फ राज्य सरकार है, वर्तमान मे खेवट व खतौनी का एक ही रजिस्टर होता है, जिसे जमाबन्दी कहते है।)

·        खतौनी मे बताये जाने वाले विवरण – धारा 121 के अनुसार खतौनी मे प्रत्येक काश्तकार के विषय मे निम्नांकित विवरण दर्ज किये जायेंगे –

1-    उसके भू-धारण का प्रकार व वर्ग ( यथा खातेदार, गैर खातेदार)

2-    उसके द्वारा खातेदारी अधिकार के लिये कोई प्रिमियम अदा की है तो उसका विवरण।

3-    खातेदारी पर्चे की तारीख व उसके द्वारा किये गये समस्त अन्तरणो का विवरण।

4-    उसके खाते की भूमि मे सम्मिलित प्रत्येक क्षैत्र का खसरा नम्बर व उसका क्षैत्रफल।

5-    उसके द्वारा भूगतान किये जाने वाले वार्षिक लगान का विवरण।

6-    उसके भूमि धारण करने की कोई शर्त हो चाहे लिखित पट्टे मे दर्ज हो या न हो।

7-    खातेदार काश्तकार के अलावा किसी व्यक्ति के विषय मे वर्षो की संख्या जिसमे वह भूमि कब्जे मे रख चुका है।

8-    कोई अन्य विवरण जो समय-समय पर निर्धारित किये जाये।

·        गाँवो का रजिस्टर – धारा 120 के अनुसार भू-अभिलेख अधिकारी निर्धारित प्रपत्र मे निम्नलिखित तथ्यो को दर्शाते हुए सर्वेक्षण तथा अभिलेखन क्षैत्र के अन्तर्गत आने वाले समस्त गाँवो का रजिस्टर तैयार करेगा-

1-    नदी के बहाव से प्रभावित हो सकने वाले क्षैत्र,

2-    अनिश्चित काश्त वाला क्षैत्र,

3-    उस पर निर्धारित लगान या राजस्व तथा उसके भूगतान करने वाले व्यक्तियो का विवरण,

4-    वे क्षैत्र जिनका लगान या राजस्व पूर्ण या आंशिक रूप से माफ किया गया है, छूट किया गया हो, मोचन किया गया हो, अभिहस्तांकित किया गया हो, शमन किया गया हो, उसके अधिकारी तथा शर्तो का विवरण।

·        वार्षिक रजिस्टर – धारा 132 के अनुसार अधिकार अभिलेख, तथा धारा 114 के तहत तैयार खेवट, खतौनी तथा धारा 120 के तहत तैयार गाँवो के रजिस्टर का प्रतिवर्ष या राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समयान्तराल पर भू- अभिलेख अधिकारी द्वारा एक सेट या संशोधित सेट तैयार किया जायेगा, इस प्रकार तैयार रजिस्टर वार्षिक रजिस्टर कहलाते है। जिसमे भू- अभिलेख अधिकारी निर्धारित प्रक्रिया के तहत समस्त परिवर्तनो तथा ट्रांजेक्शनो को दर्ज करायेगा।

·        वार्षिक रजिस्टर मे परिवर्तन की प्रक्रिया – किसी संपंति या अन्य अधिकार या भूमि मे हित या उसके लाभ के संबंध मे कोई भी परिवर्तन जो वार्षिक रजिस्टर मे दर्ज करना अपेक्षित है, निम्नांकित प्रक्रिया से दर्ज किया जायेगा –

1-    धारा 133  के अनुसार उत्तराधिकार, अन्तरण या अन्य प्रकार से कब्जा प्राप्त करने वाला प्रत्येक व्यक्ति, कब्जा प्राप्त करने के तीन माह के अन्दर गाँव के पटवारी या भू-अभिलेख निरीक्षक या तहसीलदार को सूचना देगा।

2-    धारा 134 के अनुसार उपरोक्त अपेक्षित सूचना नही देने वाले या उपेक्षा करने वाले व्यक्ति पर पेनल्टी और जुर्माना वसूल किया जायेगा जो 10 रूपये से अधिक नही होगा।

3-    धारा 135 के अनुसार ऐसी सूचना प्राप्त होने पर या अन्य तथ्यो से ज्ञात होने पर तहसीलदार जाँच करेगा तथा यदि उत्तराधिकार, अन्तरण या अवाप्ति निर्विवादित रूप से होना जाहिर होता है तो वह उसे वार्षिक रजिस्टर मे दर्ज करायेगा। (इस प्रकार दर्ज करने की प्रक्रिया को नामान्तरण कहते है।)

4-    यदि उत्तराधिकार या अन्तरण या अन्य प्रकार से अवधि विवादास्पद हो तो तहसीलदार सक्षम हो तो नियमानुसार निर्णय करेगा तथा सक्षम नही हो तो सक्षम अधिकारी के पास निर्णय हेतु भेज देगा।





·        गलतियो का शुद्धिकरण – धारा 136 के अनुसार यदि किसी राजस्व अधिकारी द्वारा निरीक्षण के दौरान किसी अधिकार अभिलेख या रजिस्टर मे कोई गलती को नोटिस किया जावे तो संबंधित पक्षकारो को सुनवाई का अवसर दिये जाने के बाद और किसी पक्षकार अपनी ओर से द्वारा गलती होना जाहिर किया जावे तो भू-अभिलेख अधिकारी द्वारा ऐसी गलतियों को निर्धारित प्रक्रिया के तहत शुद्ध कर सकेगा।


                                                                 साधारण व्याख्या

                 धारा 136  के तहत रेकार्ड मे प्रतिदिन के कार्यकलाप मे राजस्व रेकार्ड मे हुई गलतियों को सही किया जा सकता है। साथ ही भू-प्रबन्ध के दौरान किसी सक्षम न्यायालय के आदेश के बिना किसी व्यक्ति की खातेदारी या गैर खातेदारी कृषि भूमि को सिवायचक या चरागाह दर्ज कर दिया गया है अथवा किसी राजकीय भूमि , सिवायचक या चरागाह को किसी व्यक्ति के खातेदारी दर्ज कर दिया गया है तो ऐसी गलतियो को धारा 136 के तहत भू-अभिलेख अधिकारी (उपखण्ड अधिकारी) द्वारा समरी ट्रायल से शुद्ध किया जा सकता है। तथा किसी का जाति नाम या स्वयं का नाम भी सम्मान जनक किया जा सकता है।  जैसे -रामला का रामलाल ,  चमार का मेघवाल आदि,


विशेष- धारा 136 के तहत किसी को कोई नये खातेदारी अधिकार प्रदान नही किये जा सकते बल्कि रेकार्ड के आधार पर जो पूर्व मे निहित थे और जोे सही एवं वास्तविक स्थिति थी उसके अनुरूप ही गलतियो की शुद्धि की जा सकती है।







 अध्याय 8 भू-प्रबन्ध संक्रियायें (settlement operations)

·        भू-प्रबन्ध – (भू-प्रबन्ध का शाब्दिक अर्थ है, भूमि का प्रबन्ध या भूमि की व्यवस्था, जिसमे मुख्यतः भूमि की किस्मो, लगान दरो , लगान, उसके भूगतान के तरिके व समय का निर्धारण किया जाता है।) धारा 142 के अनुसार राज्य सरकार गजट नोटिफिकेशन के जरिये किसी क्षैत्र मे भू-प्रबन्ध या पुनर्भूप्रबन्ध कराने का आदेश दे सकती है।

अ-



·        आर्थिक सर्वेक्षण – धारा 148 के अनुसार जब कोई जिला या क्षैत्र भू-प्रबन्ध के अन्तर्गत लिया जाता है तो भू-प्रबन्ध अधिकारी निम्नांकित विषयो का ध्यान रखते हुए उस जिले या क्षैत्र के काश्तकारो का आर्थिक सर्वेक्षण कराता है,  

1-    जिस सीमा तक जिला या क्षैत्र सिंचाई द्वारा रक्षित है, और गत भू-प्रबन्ध के बाद सिंचाई सुविधाओ मे कोई वृद्धि हुई हो।

2-    कृषि का स्तर, गत भू-प्रबन्ध के बाद कृषि भूमि के क्षैत्र मे कोई वृद्धि या कमी हुई हो।

3-    कृषि का व्यय और काश्तकार के स्वयं व परिवार के पालन-पोषण का व्यय।

4-    भू-प्रबन्ध के अन्तर्गत लिये गये क्षैत्र मे या उसके आस-पास स्थित मंडियो का होना।

5-    गत भू-प्रबन्ध के बाद संचार साधनो मे वृद्धि या सुधार, यदि कोई हुए हो।

6-    खेतो के आकार ।

7-    काश्तकार की ऋणग्रस्तता की सीमा और ऋण मिलने की सुविधाएँ।

·        कर निर्माण वृत्तों या संघो का निर्माण – धारा 149 के अनुसार आर्थिक सर्वेक्षण के पूर्ण होने के तुरन्त बाद या उसके साथ-साथ भू-प्रबन्ध अधिकारी उस जिले या क्षैत्र मे कर निर्माण वृत्तों या संघो का निर्माण करेगा। जिसमे धारा 148 मे वर्णित विषयो की समरूपता का तथा निम्न बिन्दुओ का ध्यान रखा जायेगा-

1-    प्राकृतिक आकार

2-    जलवायु तथा वर्षा

3-    जनसंख्या तथा श्रमिको की उपलब्धता

4-    कृषि साधन

5-    मुख्य रूप से उगाई जाने वाली फसलो की किस्म व उनकी उपज की मात्रा व उनके मण्डियो मे प्रचलित मूल्य

6-    दरे, जिन पर जोतो का लगान दिया जाता है


7-    गत भू-प्रबन्ध मे यदि कोई कर निर्माण वृत्तों या संघो का निर्माण किया हुआ हो तो उनका ध्यान रखना












·        मिट्टी का वर्गीकरण व लगान दरो का निर्धारण – धारा 150 के अनुसार भू-प्रबन्ध अधिकारी प्रत्येक कर निर्धारण वृत्त या कर निर्धारण संघ के गाँवो को मिट्टी की विभिन्न श्रेणियों मे बाँटता है। तथा धारा 151 के अनुसार प्रत्येक श्रेणी की मिट्टी के लिये लगान दरो का निर्धारण करता है।

·        लगान दरो का आधार – धारा 152 के अनुसार न्यायोचित लगान दरो के निर्धारण के लिये निम्नांकित बिन्दुओ का ध्यान रखा जाता है-

1-    भू-प्रबन्ध से पूर्व 20 वर्षो मे लगान व लगान जैसे उपकरो की वसूली की स्थिति।

2-    भू-प्रबन्ध से पूर्व 20 वर्षो मे कृषि उपज के मूल्य का औसत ।

3-    उगाई गई फसलो की किस्म व उपज का औसत।

4-    औसत मूल्य पर ऐसी पैदावार की वेल्यु।

5-    काश्त का व्यय और काश्तकार के स्वयं व परिवार के पालन पोषण का व्यय।

6-    प्रत्येक खेत मे से प्रतिवर्ष पडत रखी जाने वाली भूमि का क्षैत्रफल, फसलो का आवर्तन, हेर-फेर व पडत रखने की स्थिति।

7-    लगान मे छुट, निलम्बन और अपूर्ण वसूली की आवृत्ति।

8-    यदि गत भू-प्रबन्ध की कोई लगान दर और उपज का भाग तथा विनिमय का मूल्य तय किया हुआ है तो उसको ध्यान रखना।

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम कब लागू किया गया?

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 दिनांक 1.7.1956 से लागू हुआ था। इसके द्वारा राजस्व न्यायालयो/अदिकारियों की नियुक्तिया, अधिकार व कर्तव्य, भू-अभिलेख को तैयार करने व रख-रखाव, सर्वे, भू-प्रबन्धन, भू-विभाजन, राजस्व लगान व अन्य समान प्रकरणो का एकीकरण व संशोधन तथा अन्य विभिन्न प्रावधानो को सम्मिलित किया गया

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 91 क्या है?

राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 91 में राजकीय भूमि से अतिक्रमण को हटाने के संबंध में व्यापक प्रावधान किये हुये है । धारा 91 के तहत यदि कोई व्यक्ति राजकीय भूमि पर बिना विधिसंगत प्राधिकार के कब्जा करता है या कर रखा है तो तहसीलदार ऐसे गैर कानूनी कब्जों को हटाने हेतु सक्षम है।

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 क्या है?

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955, 15 अक्टूबर 1955 से लागू हुआ। तहसील आबू, अजमेर एवं सुनेल में यह अधिनियम 15 जून 1958 से लागू किया गया। इस अधिनियम के अधीन बिचौलिये पूर्णतया समाप्त कर दिये गये एवं अब राजस्थान में सभी काश्तकार भूमि पर सिर्फ राज्य के अन्तर्गत अपना हक रखते है। राज्य सभी भूमि का स्वामी माना जाता है।

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 177 क्या है?

2841/1588 के खातेदार के विरुद्ध न्यायालय उपखंड अधिकारी में राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 177 के तहत प्रार्थना पत्र पेश कर खातेदारी खारिज करने व भूमि को राजकीय (सिवायचक) घोषित करने के लिए निवेदन किया है।