स्वराज पार्टी की स्थापना क्यों हुई - svaraaj paartee kee sthaapana kyon huee

स्वराज पार्टी की स्थापना क्यों हुई - svaraaj paartee kee sthaapana kyon huee

स्वराज दल की स्थापना का कारण
चौरी चौरा कांड 1922 के बाद गांधी जी को बहुत दुःख हुआ फलस्वरूप उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, जिसके विरोध में स्वराज पार्टी की स्थापना की 1930 में कांग्रेस के खिलाफत में प्रमुख नेता चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू तथा विट्ठल भाई पटेल ने किया।
इस पार्टी में मोतीलाल नेहरू को सचिव बनाया गया इस प्रकार कांग्रेस में दो दल परिवर्तनवादी तथा अपरिवर्तनवादी बन गए।


स्वराज पार्टी के उद्देश्य के तहत चलाए गए प्रमुख कार्यक्रम
1. परिषद में जाकर सरकारी आय व्यय के ब्योरे को रद्द करना
2.सरकार के उन प्रस्तावों का विरोध जिनसे नौकरशाही शक्तिशाली बनाने की कोशिश होगी
2. राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि लाने वाले प्रस्तावों योजनाओं और विधायकों को परिषद ने प्रस्तुत करना
3. केंद्रीय और प्रांतीय व्यवस्थापिका की सभी निर्वाचन सभाओं को घेरना जिससे स्वराज दल की नीति को प्रभावशाली बनाया जा सके
4. परिषद के बाहर गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम को सहयोग करना
5. सत्याग्रह के लिए हमेशा तैयार रहना और आवश्यकता पड़ने पर पद का त्याग करना


स्वराज दल के पतन का प्रमुख कारण

  • देशबंधु चितरंजन दास की मृत्यु
  • सहयोग नीति
  • दल में आपसी मतभेद
  • हिंदू दल की स्थापना
  • 1926 निर्वाचन में 1923 के प्रति असफलता आदि

स्वराज दल शुरुआत में असहयोग नीति अपनाई तथा सरकारी कार्यों में बाधा डाली इससे विशेष सफलता नहीं मिली जिससे धीरे धीरे इनमें परिवर्तन होने लगे, इनके कुछ नेता सरकार से समर्थन करने का प्रस्ताव किए परंतु कुछ नेता अड़ंगा नीति में ही विश्वास रखते थे जिससे स्वराज दल में फूट दिखाई पड़ने लगी।
ब्रिटिश सरकार ने फूट का फायदा देख कर सहयोग वादियों को विभिन्न समितियों में पद देकर खुश करना शुरू कर दिया जिसमें सरकार ने 1924 इस्पात सुरक्षा समिति में सदस्य बनाया, 1925 मोतीलाल नेहरू ने स्वयं स्किन समिति की सदस्यता ली, विट्ठल भाई पटेल में केंद्रीय व्यवस्थापिका के अध्यक्ष चुने गए अतः स्वराज दल की नीति में परिवर्तन से यह कमजोर पड़ने लगी फलस्वरुप 1926 के चुनाव में वह सफलता नहीं मिली जो उसे 1923 में मिली थी इसलिए यह दल निरंतर कमजोर हो गया।


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Explain:स्वराज पार्टी की स्थापना कांग्रेस-खिलाफत स्वराज पार्टी के रूप में हुई थी। यह दल भारतीयों के लिये अधिक स्व-शासन तथा राजनीतिक स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिये कार्य करता था। दिसंबर 1922 में चितरंजन दास की अध्यक्षता में गया में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में परिषद में प्रवेश न लेने का प्रस्ताव पारित हुआ जिसके कारण चितरंजन दास ने त्याग पत्र दे दिया। 1 जनवरी, 1923 ई. में इलाहाबाद में चित्तरंजन दास, नरसिंह चिंतामन केलकर और मोतीलाल नेहरू बिट्टलभाई पटेल ने ‘कांग्रेस-खिलाफत स्वराज्य पार्टी’ नाम के दल की स्थापना की जिसके अध्यक्ष चित्तरंजन दास बनाये गये और मोतीलाल उसके सचिव बनाये गये। स्वराज दल विधान परिषदों में भाग लेने में विश्वास करता था। इनका लक्ष्य व्यवस्थापिका सभाओं में प्रवेश करके सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करना, उसके दोषों को उजागर करना था। उनकी योजना यह थी की विधान परिषद के कार्य में आंतरिक रूप से रुकावट डाली जाए। ....और भी जाने

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स्वराज पार्टी का इतिहास, स्थापना और उद्देश्य History of Swaraj Party, Establishment, Purpose and end in Hindi

स्वराज का अर्थ है “स्वयं का राज या शासन (self-rule, self-government) स्वराज पार्टी को “स्वराज दल” के नाम से भी जाना जाता है। चौरी चौरा कांड के बाद इस पार्टी की स्थापना कांग्रेस के नेताओं ने की थी। स्वराज दल ने देश को आजाद करने में अहम भूमिका निभाई।

स्वराज पार्टी की स्थापना Establishment of Swaraj Party in Hindi

स्वराज पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1923 को देशबंधु चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने की थी। पार्टी के अन्य नेताओं में हुसैन शहीद सूहरावर्दी, सुभाष चंद्र बोस विट्ठल भाई पटेल और अन्य नेता शामिल थे। इस पार्टी का पूरा नाम “कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी” था।

स्वराज पार्टी की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई?

5 फरवरी 1922 में चौरी चौरा कांड हुआ था। इसमें भारतीय क्रांतिकारियों ने गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) के चौरी चौरा स्थान पर विद्रोह कर दिया और एक पुलिस चौकी को आग लगा दी जिसमें 22 पुलिसकर्मी जिंदा मारे गए। इस घटना को चौरी चौरा कांड के नाम से जाना जाता है। इस घटना के बाद महात्मा गांधी अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने अँग्रेज़ सरकार के खिलाफ चल रहा “असहयोग आंदोलन” वापस ले लिया। बहुत से लोगों को महात्मा गांधी का यह निर्णय सही नहीं लगा।

कांग्रेस पार्टी दो भागों में बँट गई। मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास ने स्वराज पार्टी की स्थापना की। स्वराज पार्टी के नेता वर्तमान कांग्रेस पार्टी के कार्यों से असंतुष्ट थे। उनका सोचना था कि अब कांग्रेस पार्टी की नीति में परिवर्तन होना चाहिए। इस तरह स्वराज पार्टी के नेताओं को “परिवर्तन समर्थक” भी कहा जाता है। कांग्रेस पार्टी का दूसरा खेमा “परिवर्तन विरोधी” था और महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन को अपनाकर अंग्रेजों से आजादी पाने की योजना रखता था।

परिवर्तन विरोधी नेताओं में एमए अंसारी, सी राजगोपालचारी, वल्लभभाई पटेल और राजेंद्र नाथ प्रमुख नेता थे। इस दल का प्रथम अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ था। स्वराज पार्टी को काफी सफलता भी मिली। केंद्रीय धारा सभा में स्वराज पार्टी के  प्रत्याशियों को 101 स्थानों में से 42 स्थान मिले। बंगाल में स्वराज पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला। बंगाल के गवर्नर ने चितरंजन दास को सरकार बनाने का न्यौता दिया।

स्वराज पार्टी के प्रमुख उद्देश्य Major objectives of Swaraj Party in Hindi

  1. भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाना।
  2. गांधी जी द्वारा किए गए जा रहे “असहयोग आंदोलन” को सफल बनाना।
  3. ब्रिटिश हुकूमत के कार्यों को रोकना और उसमे अड़चन पैदा करना। ब्रिटिश हुकूमत को भारत के लिए अच्छी नीतियाँ बनाने के लिए विवश करना।
  4. काउंसिल परिषद में प्रवेश कर सरकारी बजट रद्द करना।
  5. देश को शक्तिशाली बनाने के लिए नई योजनाओं और विधायकों को प्रस्तुत करना।
  6. नौकरशाही की शक्ति में कमी करना।
  7. आवश्यक होने पर पदों का त्याग करना।

स्वराज पार्टी के प्रमुख कार्य

  1. स्वराज पार्टी ने मोंटफोर्ट सुधारों को नष्ट किया।
  2. बंगाल में द्वैध शासन को निष्क्रिय बना दिया।
  3. पार्टी विट्ठल भाई पटेल को केंद्रीय विधायिका का अध्यक्ष बनाने में सफल रही।
  4. स्वराज पार्टी ने कई बार असेंबली से वाकआउट किया और ब्रिटिश हुकूमत की प्रतिष्ठा को चोट पहुँचाई।

स्वराज पार्टी की नीति में परिवर्तन

शुरू में स्वराज पार्टी ने असहयोग की नीति अपनाई और ब्रिटिश हुकूमत के सभी कार्यों में अडंगा लगाया, पर इसमें कुछ विशेष सफलता नहीं मिली। फिर पार्टी ने असहयोग के स्थान पर “उत्तरदायित्व पूर्ण सहयोग” की नीति अपनाई।

स्वराज पार्टी में फूट पड़ना और कमजोर होना

स्वराज पार्टी के कुछ सदस्य अभी भी “अडंगा” नीति पर विश्वास रखते थे। इस तरह स्वराज पार्टी दो विचारधारा में बँट गई और इसमें फूट पड़ गई। ब्रिटिश सरकार ने इस स्थिति का फायदा उठाया और सहयोग करने वाले सदस्यों को विभिन्न समितियों में स्थान देकर खुश कर दिया। स्वराज पार्टी के कुछ नेताओं को 1924 में “इस्पात सुरक्षा समिति” में स्थान दिया गया। मोतीलाल नेहरू ने 1925 में “स्कीन समिति” की सदस्यता ले ली।

धीरे धीरे स्वराज पार्टी असहयोग के स्थान पर ब्रिटिश सरकार का सहयोग करने लगी। इस तरह यह पार्टी कमजोर हो गयी और अपने मूल उद्देश्य से भटक गयी। 1926 के चुनाव में स्वराज पार्टी को बहुत कम सीटें मिली।

स्वराज पार्टी के पतन के कारण Reasons for End of Swaraj Party in Hindi

  1. स्वराज पार्टी के संस्थापक चितरंजन दास की मृत्यु 16 जून 1925 में हो गई। उसके बाद यह पार्टी कमजोर हो गई।
  2. स्वराज पार्टी के कुछ नेता असहयोग नीति के समर्थक थे तो कुछ नेता सहयोग नीति के समर्थक थे। इस तरह पार्टी में फूट पड़ गई। फरीदपुर के सम्मेलन में पार्टी के नेताओं में आपसी फूट दिखाई दी।
  3. हिंदू मुस्लिम दंगा होने से भी पार्टी कमजोर हो गई। 1925 में मोतीलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना के बीच मतभेद हो गया, जिससे केंद्रीय विधान सभा में स्वराज पार्टी का प्रभाव कम हो गया।
  4. कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता पंडित मदन मोहन मालवीय और लाला लाजपत राय ने एक दूसरा दल “स्वतंत्र दल” की स्थापना की, जिसमें स्वराज पार्टी के बहुत से सदस्य शामिल होने लगे। इस तरह पार्टी कमजोर हो गई। स्वतंत्र दल में हिंदुत्व का नारा दिया था।
  5. 1926 ई० के समाप्ति तक स्वराज पार्टी का अंत हो गया।

स्वराज पार्टी पर महात्मा गांधी की प्रतिक्रिया Swaraj Party and Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी स्वराज पार्टी द्वारा ब्रिटिश सरकार के कार्य में अडंगा लगाने (बाधा पहुंचाने) की नीति का विरोध करते थे। 1924 में महात्मा गांधी का स्वास्थ्य खराब हो गया। उनको जेल से रिहाई मिल गई।

धीरे धीरे उन्होंने स्वराज पार्टी से नजदीकी बना ली थी। महात्मा गांधी ने स्वराज पार्टी के “परिवर्तन समर्थक” नेताओं और कांग्रेस पार्टी के दूसरे खेमे के “परिवर्तन विरोधी” नेताओं- दोनों से कांग्रेस में रहने का आग्रह किया था। दोनों खेमे अपने-अपने तरह से काम करते थे।

स्वराज दल का गठन क्यों किया गया था इसका कार्य क्या था?

स्वराज पार्टी पराधीन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बना एक राजनैतिक दल था। इस दल की स्थापना 1 जनवरी, 1923 को देशबन्धु चित्तरंजन दास तथा मोतीलाल नेहरु ने की थी। यह दल भारतीयों के लिये अधिक स्व-शासन तथा राजनीतिक स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिये कार्य कर रहा था। भारतीय भाषाओं में स्वराज का अर्थ है "अपना राज्य"।

स्वराज पार्टी ने संविधान सभा की मांग कब की थी?

1934 में स्वराज पार्टी ने संविधान, सभा की मांग वाला प्रस्ताव पारित किया. आल इंडिया कांग्रेस पार्टी ने 1934 में पटना में स्वराज पार्टी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद दिसंबर , 1936 के कांग्रस के फैजपुर अधिवेशन में संविधान सभा के अर्थ तथा महत्व की व्याख्या की गई।