प्रदोष का सबसे बड़ा महत्व है कि सोम (चंद्र) को, कृष्णपक्ष में प्रदोषकाल पर्व पर भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण किया था। यह सोम प्रदोष के नाम से जाना जाता है। उपासना करने वाले को एवं प्रदोष करने वाले को सोम प्रदोष से व्रत एवं उपवास प्रारंभ करना चाहिए। प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है। Show
प्रदोष क्यों किया जाता है? प्रदोष में दोष क्यों? और दोष है तो प्रदोष क्यों? दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे। शनै:-शनै: चंद्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होना प्रारंभ हो गईं। नारदजी ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने को कहा, तत्पश्चात दोनों ने भगवान आशुतोष की आराधना की। चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे (चंद्र की अंतिम एकधारी) कि भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए। पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए। 'प्रदोष में दोष' यही था कि चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे थे। 'प्रदोष व्रत' इसलिए भी किया जाता है कि भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया अत: हमें उस शिव की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण किया था। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के बाद शिव महारात्रि का आगमन होता है। भगवान शिव पंचमुखी होकर
10 भुजाओं से युक्त हैं एवं पृथ्वी, आकाश और पाताल तीनों लोकों के एकमात्र स्वामी हैं। शिव का रूप ज्योतिर्मय भी है। एक रूप ज्योतिर्मय भी है। एक रूप भौतिकी शिव के नाम से जाना जाता है जिसकी हम सभी आराधना करते हैं। ज्योतिर्मय शिव पंचतत्वों से निर्मित हैं। भौतिकी शिव का वैदिक रीति से अभिषेक एवं स्रोतों (मंत्रोच्चारण) द्वारा स्तवन किया जाता है। ज्योतिर्मय शिव के निकट साधक मौन रहकर अपना कर्म करता है। ज्योतिर्मय शिव तंत्र विज्ञान द्वारा दर्शन देते हैं, बशर्ते साधक को गुरु का पूर्ण
मार्गदर्शन हो, क्योंकि तंत्र विज्ञान शिव का तेज है (तीसरा नेत्र)। इस विज्ञान को जानने वाले जितने भी हुए और जिन्होंने भी शिव के इस रूप के दर्शन किए, सबने इस ज्ञान को गोपनीय रखा। यह सत्य है कि सत्यान्वेषी मनीषियों ने संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन कर अपनी व्याख्याओं में अपने-अपने अनुभवों को अपनी भाषाओं में वर्णित कर समाज के सामने जितना प्रकट करना आवश्यक था उसका प्रचार-प्रसार किया है। तंत्र विज्ञान वास्तविकता के दर्शन कराता है। इस शास्त्र को गोपनीय रखने के पीछे एक कारण यह भी है कि
शिव के तत्वों का संपूर्ण रहस्य उजागर हो जाए तो इसका दुरुपयोग घातक सिद्ध हो सकता है। दर्शन शास्त्र में जब सीधे ईश्वर के दर्शन, उनकी कलाएं सामने आती हैं तो मनुष्य जीवन का वास्तविक अर्थ समझ में आने लगता है। परमहंस आवृत्ति जिसमें इंसान बालक स्वरूप हो जाता है, तब वांछित रूप में ईश्वर के दर्शन करता है। शिव परिवार पंच तत्व से निर्मित है। तत्वों के आधार पर शिव परिवार के वाहन सुनिश्चित हैं। शिव स्वयं पंचतत्व मिश्रित जल प्रधान हैं। इनका वाहन नंदी आकाश तत्व की प्रधानता लिए हुए है। हां एक विशेष बात यह है कि शिवलिंग के सामने सदैव नंदी देव विराजते हैं और शिव के दर्शन करने के पूर्व नंदीदेव के सींगों के बीच (आड़) में से शिव के दर्शन करते हैं, क्योंकि शिव ज्योतिर्मय भी हैं और सीधे दर्शन करने पर उनका तेज सहन नहीं कर सकते। नंदी देव आकाश तत्व हैं। वे शिव के तेज को सहन करने की पूर्ण क्षमता रखते हैं। माता गौरी अग्नि तत्व की प्रधानता लिए हुए हैं। इनका वाहन सिंह (अग्नि तत्व) है। स्वामी कार्तिकेय वायु तत्व हैं। इनका वाहन मयूर (वायु तत्व), श्री गणेश (पृथ्वी तत्व), मूषक इनका वाहन (पृथ्वी तत्व)। भगवान श्री गणेश के बारे में एक विचारणीय बात यह है कि इतने बड़े गणपति, जिनका सिर गज का है, एक मूषक पर सवारी? तत्वों से अगर देखें तो मूषक पृथ्वी तत्व है। शिव परिवार इस समस्त चराचर के स्वामी हैं। इन्हीं की माया एवं कृपा से हम सभी संचालित हैं। शिवपुराण में उल्लेख मिलता है कि शिव के एक अंग से श्रीहरि विष्णु, एक अंग से ब्रह्माजी और शिव के मस्तकरूपी तीसरे नेत्र से महेश, इस प्रकार से इन सबको अपना-अपना दायित्व सौंपकर स्वयं भगवान भभूत रमाए ध्यान में रहते हैं। भगवान शिव रिद्धि-सिद्धि, सुख-समृद्धि के दाता हैं। ऐसे शिव को बारंबार प्रणाम। - राजकुमार जिरेती, इंदौर - mAds - प्रदोष व्रत क्या है, प्रदोष व्रत कब है, प्रदोष व्रत पूजन विधि, प्रदोष व्रत रखने के फायदे, प्रदोष व्रत कथा, प्रदोष व्रत का महत्व, प्रदोष व्रत उद्यापन, साल में कितने प्रदोष व्रत होते हैं, प्रदोष व्रत लिस्ट 2022, Pradosh Vrat, Pradosh Vrat List 2022, Saal me kitne pradosh vrat hote hain, pradosh vrat ki vidhi, Pradosh Vrat kya hai, pradosh vart katha, Importance Of Pradosh Vrat हेल्लो दोस्तों हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है इसी कारण प्रदोष व्रत को त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जाना जाता हैं। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। प्रदोष व्रत को मुख्य रूप से भगवान शिव की कृपा पाने हेतु किया जाता है. इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की आराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार प्रदोष व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ्य और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत प्रतिवर्ष 24 बार आता है अर्थात यह व्रत प्रायः महीने में दो बार आता है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत का पालन किया जाता है। प्रदोष व्रत की महिमा ऐसी है जैसे अमूल्य मोतियों में “पारस” का होना। प्रदोष व्रत जो भी व्यक्ति नियमित करता है उस व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और दुखों का नाश होता है। अलग-अलग वार का त्रयोदशी तिथि के साथ संगम होने से पड़ने वाले प्रदोष व्रत की महिमा उसी के अनुरूप होती है। यह भी पढ़ें – शिवजी के इस व्रत में शामिल होने पृथ्वी पर आते है देवी देवता प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल 2 गायों के दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा और लोग धर्म का रास्ता छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय जातक प्रदोष व्रत के माध्यम से शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा।
प्रदोष व्रत क्या है (Pradosh Vrat Kya Hai)प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाते है अर्थात् प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव के साथ माँ पार्वती की भी पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है । आइए जानते हैं किस वार को कौन सा प्रदोष व्रत आता है और क्या है प्रदोष व्रत की महिमा – Pradosh Vratसोम प्रदोष व्रत – भौम (मंगल) प्रदोष व्रत – बुध प्रदोष व्रत – यह भी पढ़ें – जानिए भौम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा गुरु प्रदोष व्रत – शुक्र प्रदोष व्रत – शनि प्रदोष व्रत – रवि प्रदोष व्रत – प्रदोष व्रत की विधि (Pradosh Vrat Ki Vidhi)शाम का समय प्रदोष व्रत पूजन समय के लिए अच्छा माना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सभी शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र का जाप करना चाहिए।
यह भी पढ़ें – गुरु प्रदोष व्रत के दिन करें भगवान शिव की आराधना, जानें मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक गरीब ब्राह्मणी अपने पति के मर जाने पर विधवा होकर इधर-उधर भीख माँग कर अपना निर्वाह करने लगी। उसका एक पुत्र भी था जिसको वह सुबह अपने साथ लेकर घर से निकल जाती और सूर्य डूबने तक घर वापस आती। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण करने लगी। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई, वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र ‘धर्मगुप्त’ है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। एक दिन बालक वन में घूम रहे थे। वहाँ उन्होंने गन्धर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते देखा। ब्राह्मण-कुमार तो घर लौट आया किन्तु राजकुमार एक गन्धर्व कन्या से बातें करने लगा। उस कन्या का नाम ‘अंशुमती’ था। उस दिन राजकुमार घर देरी से लौटा। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए। दूसरे दिन राजकुमार फिर उसी जगह पहुँचा। जहाँ अंशुमती अपने माता-पिता के साथ बैठी बातें कर रही थी। राजकुमार को देखकर अंशुमती के पिता ने कहा कि तुम विदर्भ नगर के राजकुमार हो और तुम्हारा नाम धर्मगुप्त है। भगवान् शंकर की आज्ञा से हम अपनी कन्या अंशुमती का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे। राजकुमार ने स्वीकृति दे दी और उसका विवाह अंशुमती के साथ हो गया। बाद में राजकुमार ने गन्धर्वराज विद्रविक की विशाल सेना लेकर विदर्भ पर चढ़ाई कर दी। घमासान युद्ध हुआ। राजकुमार विजयी हुए और स्वयं पत्नी सहित वहाँ राज्य करने लगे। उसने ब्राह्मणी को पुत्र सहित अपने राजमहल में आदर के साथ रखा, जिससे उनके भी दुःख दूर हो गये। एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से पूछा कि यह सब कैसे हुआ ? तब राजकुमार ने कहा कि यह सब प्रदोष-व्रत के पुण्य का फल है। उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी। स्कंदपुराण के अनुसार, जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा। Pradosh Vratप्रदोष व्रत की सूची 2022 (Pradosh Vrat List)
यह भी पढ़ें – 12 जून को है बड़ा महादेव पूजन दिवस, जानिए इसके बारे में खास बातें प्रदोष व्रत का उद्यापन (Pradosh Vrat Udyapan)जो उपासक इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशी तक रखते हैं, उन्हें इस व्रत का उद्यापन विधिवत तरीके से करना चाहिए।
प्रदोष व्रत के फायदे (Pradosh Vrat ke fayde)
प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh vrat mahatva)प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत कहते हैं। यदि इन तिथियों को सोमवार हो तो उसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं, यदि मंगल वार हो तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं और शनिवार हो तो उसे शनि प्रदोष व्रत व्रत कहते हैं। विशेष कर सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्याधिक प्रभावकारी माने गये हैं। साधारण तौर पर अलग-अलग जगह पर द्वादशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं। इस दिन व्रत रखने का विधान हैं। शास्त्रों में वर्णित है यदि व्यक्ति को सभी तरह के जप, तप और नियम संयम के बाद भी उसके गृहस्थ जीवन में दुःख, संकट, क्लेश आर्थिक परेशानी, पारिवारिक कलह, संतानहीनता या संतान के जन्म के बाद भी यदि नाना प्रकार के कष्ट विघ्न बाधाएं, रोजगार के साथ सांसारिक जीवन से परेशानिया खत्म नहीं हो रही हैं, तो ऐसे जातकों को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले इस व्रत के महत्व के बारे में भगवान शिव ने माता सती को बताया था, उसके बाद महर्षि वेदव्यास से सूत जी और इसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था। रिलेटेड पोस्ट (Related Post)
ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए कृप्या आप हमारे फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम और यूट्यूब चैनल से जुड़िये ! इसके साथ ही गूगल न्यूज़ पर भी फॉलो करें ! त्रयोदशी व्रत और प्रदोष व्रत में क्या अंतर है?प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकदशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है। प्रदोष व्रत फल : हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है।
त्रयोदशी व्रत करने से क्या होता है?भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। सोमवार के दिन प्रदोष व्रत करने से संतान रत्न की प्राप्ति होती है। वहीं मंगलवार के दिन, प्रदोष व्रत करने से कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।
त्रयोदशी का व्रत कब से शुरू करना चाहिए?कब से प्रारंभ करें प्रदोष-व्रत
शास्त्रानुसार प्रदोष-व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है।
त्रयोदशी का व्रत कब और कैसे किया जाता है?हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है.
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