त्रयोदशी व्रत क्यों किया जाता है - trayodashee vrat kyon kiya jaata hai

प्रदोष का सबसे बड़ा महत्व है कि सोम (चंद्र) को, कृष्णपक्ष में प्रदोषकाल पर्व पर भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण किया था। यह सोम प्रदोष के नाम से जाना जाता है। उपासना करने वाले को एवं प्रदोष करने वाले को सोम प्रदोष से व्रत एवं उपवास प्रारंभ करना चाहिए। प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।

प्रदोष क्यों किया जाता है? प्रदोष में दोष क्यों? और दोष है तो प्रदोष क्यों?
पौराणिक कथानुसार चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ। चंद्र एवं रोहिणी बहुत खूबसूरत थीं एवं चंद्र का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख शेष कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से अपना दु:ख प्रकट किया।

दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे। शनै:-शनै: चंद्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होना प्रारंभ हो गईं। नारदजी ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने को कहा, तत्पश्चात दोनों ने भगवान आशुतोष की आराधना की।


चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे (चंद्र की अंतिम एकधारी) कि भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए। पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए।

'प्रदोष में दोष' यही था कि चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे थे। 'प्रदोष व्रत' इसलिए भी किया जाता है कि भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया अत: हमें उस शिव की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण किया था।

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के बाद शिव महारात्रि का आगमन होता है। भगवान शिव पंचमुखी होकर 10 भुजाओं से युक्त हैं एवं पृथ्वी, आकाश और पाताल तीनों लोकों के एकमात्र स्वामी हैं। शिव का रूप ज्योतिर्मय भी है। एक रूप ज्योतिर्मय भी है।

एक रूप भौतिकी शिव के नाम से जाना जाता है जिसकी हम सभी आराधना करते हैं। ज्योतिर्मय शिव पंचतत्वों से निर्मित हैं। भौतिकी शिव का वैदिक रीति से अभिषेक एवं स्रोतों (मंत्रोच्चारण) द्वारा स्तवन किया जाता है। ज्योतिर्मय शिव के निकट साधक मौन रहकर अपना कर्म करता है।

ज्योतिर्मय शिव तंत्र विज्ञान द्वारा दर्शन देते हैं, बशर्ते साधक को गुरु का पूर्ण मार्गदर्शन हो, क्योंकि तं‍त्र विज्ञान शिव का तेज है (तीसरा नेत्र)। इस विज्ञान को जानने वाले जितने भी हुए और जिन्होंने भी शिव के इस रूप के दर्शन किए, सबने इस ज्ञान को गोपनीय रखा।

यह सत्य है कि सत्यान्वेषी मनीषियों ने संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन कर अपनी व्याख्याओं में अपने-अपने अनुभवों को अपनी भाषाओं में वर्णित कर समाज के सामने जितना प्रकट करना आवश्यक था उसका प्रचार-प्रसार किया है। तंत्र विज्ञान वास्तविकता के दर्शन कराता है।

इस शास्त्र को गोपनीय रखने के पीछे एक कारण यह भी है कि शिव के तत्वों का संपूर्ण रहस्य उजागर हो जाए तो इसका दुरुपयोग घातक सिद्ध हो सकता है।

दर्शन शास्त्र में जब सीधे ईश्वर के दर्शन, उनकी कलाएं सामने आती हैं तो मनुष्य जीवन का वास्तविक अर्थ समझ में आने लगता है। परमहंस आवृत्ति जिसमें इंसान बालक स्वरूप हो जाता है, तब वांछित रूप में ईश्वर के दर्शन करता है। शिव परिवार पंच तत्व से निर्मित है।

तत्वों के आधार पर शिव परिवार के वाहन सुनिश्चित हैं। शिव स्वयं पंचतत्व मिश्रित जल प्रधान हैं। इनका वाहन नंदी आकाश तत्व की प्रधानता लिए हुए है।

हां एक विशेष बात यह है कि शिवलिंग के सामने सदैव नंदी देव विराजते हैं और शिव के दर्शन करने के पूर्व नंदीदेव के सींगों के बीच (आड़) में से शिव के दर्शन करते हैं, क्योंकि शिव ज्योतिर्मय भी हैं और सीधे दर्शन करने पर उनका तेज सहन नहीं कर सकते। नंदी देव आकाश तत्व हैं।

वे शिव के तेज को सहन करने की पूर्ण क्षमता रखते हैं। माता गौरी अग्नि तत्व की प्रधानता लिए हुए हैं। इनका वाहन सिंह (‍अग्नि तत्व) है। स्वामी कार्तिकेय वायु तत्व हैं।

इनका वाहन मयूर (वायु तत्व), श्री गणेश (पृथ्‍वी तत्व), मूषक इनका वाहन (पृथ्वी तत्व)। भगवान श्री गणेश के बारे में एक विचारणीय बात यह है कि इतने बड़े गणपति, जिनका सिर गज का है, एक मूषक पर सवारी? तत्वों से अगर देखें तो मूषक पृथ्वी तत्व है। शिव परिवार इस समस्त चराचर के स्वामी हैं। इन्हीं की माया एवं कृपा से हम सभी संचालित हैं।

शिवपुराण में उल्लेख मिलता है कि शिव के एक अंग से श्रीहरि विष्णु, एक अंग से ब्रह्माजी और शिव के मस्तकरूपी तीसरे ने‍त्र से महेश, इस प्रकार से इन सबको अपना-अपना दायित्व सौंपकर स्वयं भगवान भभूत रमाए ध्यान में रहते हैं। भगवान शिव रिद्धि-सिद्धि, सुख-समृद्धि के दाता हैं। ऐसे शिव को बारंबार प्रणाम।

- राजकुमार जिरेती, इंदौर

त्रयोदशी व्रत क्यों किया जाता है - trayodashee vrat kyon kiya jaata hai

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हेल्लो दोस्तों हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है इसी कारण प्रदोष व्रत को त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जाना जाता हैं। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। प्रदोष व्रत को मुख्य रूप से भगवान शिव की कृपा पाने हेतु किया जाता है. इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की आराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार प्रदोष व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ्य और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत प्रतिवर्ष 24 बार आता है अर्थात यह व्रत प्रायः महीने में दो बार आता है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत का पालन किया जाता है। प्रदोष व्रत की महिमा ऐसी है जैसे अमूल्य मोतियों में “पारस” का होना। प्रदोष व्रत जो भी व्यक्ति नियमित करता है उस व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और दुखों का नाश होता है। अलग-अलग वार का त्रयोदशी तिथि के साथ संगम होने से पड़ने वाले प्रदोष व्रत की महिमा उसी के अनुरूप होती है।

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प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल 2 गायों के दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा और लोग धर्म का रास्ता छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय जातक प्रदोष व्रत के माध्यम से शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा।

  • प्रदोष व्रत क्या है (Pradosh Vrat Kya Hai)
  • प्रदोष व्रत की विधि (Pradosh Vrat Ki Vidhi)
  • प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)
  • प्रदोष व्रत की सूची 2022 (Pradosh Vrat List)
  • प्रदोष व्रत का उद्यापन (Pradosh Vrat Udyapan)
  • प्रदोष व्रत के फायदे (Pradosh Vrat ke fayde)
  • प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh vrat mahatva)
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प्रदोष व्रत क्या है (Pradosh Vrat Kya Hai)

प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाते है अर्थात् प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव के साथ माँ पार्वती की भी पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है । आइए जानते हैं किस वार को कौन सा प्रदोष व्रत आता है और क्या है प्रदोष व्रत की महिमा –

त्रयोदशी व्रत क्यों किया जाता है - trayodashee vrat kyon kiya jaata hai
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सोम प्रदोष व्रत –
सोमवार का दिन भगवान शिव और चंद्र देव का दिन माना गया है। इस दिन प्रदोष व्रत का आना कई गुना शुभ फलों को देने वाला होता है। सोमवार को त्रयोदशी तिथि आने पर प्रदोष व्रत रखने से मानसिक सुख प्राप्त होता है, अगर चन्द्रमा कुंडली में खराब हो तो इस दिन व्रत का नियम अपनाने पर चंद्र दोष समाप्त होता है और सौभाग्य एवं परिवार के सुख की प्राप्ति होती है।

भौम (मंगल) प्रदोष व्रत –
मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत का आगमन संतान सुख देने वाला और मंगल दोष से उत्पन्न कष्टों से निवृत्ति प्रदान करने वाला होता है। इस दिन व्रत रखने पर स्वास्थ्य संबंधी कष्ट दूर होते हैं। इस दिन प्रदोष व्रत विधि पूर्वक करने से आर्थिक घाटे से मुक्ति मिलती है साथ ही अगर आप क़र्ज़ से परेशानी हैं तो वह भी समाप्त हो जाता है। रक्त से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्ति के लिए भौम प्रदोष व्रत अत्यंत लाभदायक होता है। भौम प्रदोष व्रत के दिन शिवजी, हनुमानजी, भैरव की पूजा-अर्चना करना भी लाभप्रद होता हैं।

बुध प्रदोष व्रत –
बुधवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को सौम्य प्रदोष, सौम्यवारा प्रदोष, बुध प्रदोष कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से बौद्धिकता में वृद्धि होती है. वाणी में शुभता आती है। जिन जातकों की कुंडली में बुध गृह के कारण परेशानी है या वाणी दोष इत्यादि कोई विकार परेशान करता है तो उसके लिए बुध प्रदोष व्रत से, बुध की शुभता प्राप्त होती है। छोटे बच्चों का मन अगर पढाई में नहीं लग रहा होता है तो माता-पिता को चाहिए की बुध प्रदोष व्रत का पालन करें इससे लाभ प्राप्त होगा।

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गुरु प्रदोष व्रत –
गुरुवार (बृहस्पतिवार) के दिन गुरु प्रदोष व्रत होने पर गुरु के शुभ फलों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। बढ़े बुजुर्गों के आशीर्वाद स्वरुप यह व्रत जातक को संतान और सौभाग्य की प्राप्ति कराता है। व्यक्ति को ज्ञानवान बनाता है और आध्यात्म चेतना देता है। गुरुवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत विशेष कर पुत्र कामना हेतु या संतान के शुभ हेतु रखना उत्तम होता हैं।

शुक्र प्रदोष व्रत –
शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत होने पर इसे शुक्र प्रदोष या भृगुवारा प्रदोष व्रत के नाम से भी पुकारा जाता है। इस दिन व्रत का पालन करने पर आर्थिक कठिनाईयों से मुक्ति प्राप्त होती है। व्यक्ति के जीवन में शुभता एवं सौम्यता का वास होता है। इस व्रत का पालन करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है और प्रेम की प्राप्ति होती है।

शनि प्रदोष व्रत –
शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि होने पर शनि प्रदोष व्रत होता है। शनि प्रदोष व्रत का पालन करने से शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कुंडली में मौजूद शनि दोष या शनि की साढ़ेसाती अथवा ढैय्या से मिलने वाले कष्ट भी दूर होते हैं। शनि प्रदोष व्रत द्वारा पापों का नाश होता है। हमारे कर्मों का फल देने वाले शनि महाराज की कृपा प्राप्त होती है। शनि प्रदोष व्रत के दिन शिवजी, हनुमानजी, भैरव कि पूजा-अर्चना करना भी लाभप्रद होता हैं।

रवि प्रदोष व्रत –
त्रयोदशी तिथि के दिन रविवार होने पर रवि प्रदोष व्रत होता है। इस दिन को भानुवारा प्रदोष व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव की आराधना के साथ-साथ सूर्य देव की उपासना करना अत्यंत फलदायी होता है। इस व्रत के करने से जीवन में यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है। पिता से अलगाव अथवा सुख की कमी हो तो, इस व्रत को करने से सुखद फलों की प्राप्ति होती है। कुंडली में अगर किसी भी प्रकार का सूर्य संबंधी दोष होने पर इस व्रत को करना अत्यंत लाभदायी होता है।

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प्रदोष व्रत की विधि (Pradosh Vrat Ki Vidhi)

शाम का समय प्रदोष व्रत पूजन समय के लिए अच्छा माना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सभी शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र का जाप करना चाहिए।

  • प्रदोष व्रत में बिना जल पिए व्रत रखना होता है, किन्तु यदि कोई निर्जला व्रत नहीं रख सकता तो सामान्य व्रत भी रख सकता है।
  • सुबह स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची भगवान को चढ़ाएं।
  • शाम के समय पुन: स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें। भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजा करें।
  • पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं।
  • इसके अलावा भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं।
  • आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। आठ बार दीपक रखते समय प्रणाम करें।
  • भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं, फिर शिव चालीसा का पाठ करें।
  • शिव आरती करें। शिव स्त्रोत, मंत्र जप करें। रात्रि में जागरण करें।
  • पूजा के अंत में भगवान शिव से अपनी मनोकामना व्यक्त कर उनसे क्षमा प्रार्थना कर लें. फिर प्रसाद वितरण करें।
  • व्रत में दान करने का महत्व होता है, इसलिए आप किसी ब्राह्मण या गरीब को दान की वस्तुएं निकाल कर अलग रख दें. सुबह में उसे दे दें।

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प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)

स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक गरीब ब्राह्मणी अपने पति के मर जाने पर विधवा होकर इधर-उधर भीख माँग कर अपना निर्वाह करने लगी। उसका एक पुत्र भी था जिसको वह सुबह अपने साथ लेकर घर से निकल जाती और सूर्य डूबने तक घर वापस आती। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण करने लगी।

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई, वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र ‘धर्मगुप्त’ है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

एक दिन बालक वन में घूम रहे थे। वहाँ उन्होंने गन्धर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते देखा। ब्राह्मण-कुमार तो घर लौट आया किन्तु राजकुमार एक गन्धर्व कन्या से बातें करने लगा। उस कन्या का नाम ‘अंशुमती’ था। उस दिन राजकुमार घर देरी से लौटा। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए। दूसरे दिन राजकुमार फिर उसी जगह पहुँचा। जहाँ अंशुमती अपने माता-पिता के साथ बैठी बातें कर रही थी। राजकुमार को देखकर अंशुमती के पिता ने कहा कि तुम विदर्भ नगर के राजकुमार हो और तुम्हारा नाम धर्मगुप्त है। भगवान् शंकर की आज्ञा से हम अपनी कन्या अंशुमती का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे।

राजकुमार ने स्वीकृति दे दी और उसका विवाह अंशुमती के साथ हो गया। बाद में राजकुमार ने गन्धर्वराज विद्रविक की विशाल सेना लेकर विदर्भ पर चढ़ाई कर दी। घमासान युद्ध हुआ। राजकुमार विजयी हुए और स्वयं पत्नी सहित वहाँ राज्य करने लगे। उसने ब्राह्मणी को पुत्र सहित अपने राजमहल में आदर के साथ रखा, जिससे उनके भी दुःख दूर हो गये।

एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से पूछा कि यह सब कैसे हुआ ? तब राजकुमार ने कहा कि यह सब प्रदोष-व्रत के पुण्य का फल है। उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी। स्कंदपुराण के अनुसार, जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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प्रदोष व्रत की सूची 2022 (Pradosh Vrat List)

  • जनवरी 15, 2022, शनिवार – शनि प्रदोष व्रत – पौष मास शुक्ल पक्ष
  • जनवरी 30, 2022, रविवार – रवि प्रदोष व्रत – माघ मास कृष्ण पक्ष
  • फरवरी 14, 2022, सोमवार सोम प्रदोष व्रत – माघ मास शुक्ल पक्ष
  • फरवरी 28, 2022, सोमवार सोम प्रदोष व्रत – फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष
  • मार्च 15, 2022, मंगलवार भौम प्रदोष व्रत – फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष
  • मार्च 29, 2022, मंगलवार भौम प्रदोष व्रत – चैत्र मास कृष्ण पक्ष
  • अप्रैल 14, 2022, बृहस्पतिवार गुरु प्रदोष व्रत – चैत्र मास शुक्ल पक्ष
  • अप्रैल 28, 2022, बृहस्पतिवार गुरु प्रदोष व्रत – वैशाख मास कृष्ण पक्ष
  • मई 13, 2022, शुक्रवार शुक्र प्रदोष व्रत – वैशाख मास शुक्ल पक्ष
  • मई 27, 2022, शुक्रवार शुक्र प्रदोष व्रत – ज्येष्ण मास कृष्ण पक्ष
  • जून 12, 2022, रविवार रवि प्रदोष व्रत – ज्येष्ण मास शुक्ल पक्ष
  • जून 26, 2022, रविवार रवि प्रदोष व्रत – आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष
  • जुलाई 11, 2022, सोमवार सोम प्रदोष व्रत – आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष
  • जुलाई 25, 2022, सोमवार सोम प्रदोष व्रत – श्रावण मास कृष्ण पक्ष
  • अगस्त 9, 2022, मंगलवार भौम प्रदोष व्रत – श्रावण मास शुक्ल पक्ष
  • अगस्त 24, 2022, बुधवार बुध प्रदोष व्रत – भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष
  • सितम्बर 8, 2022, बृहस्पतिवार गुरु प्रदोष व्रत – भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष
  • सितम्बर 23, 2022, शुक्रवार शुक्र प्रदोष व्रत – आश्विन मास कृष्ण पक्ष
  • अक्टूबर 7, 2022, शुक्रवार शुक्र प्रदोष व्रत – आश्विन मास शुक्ल पक्ष
  • अक्टूबर 22, 2022, शनिवार शनि प्रदोष व्रत – कार्तिक मास कृष्ण पक्ष
  • नवम्बर 5, 2022, शनिवार शनि प्रदोष व्रत – कार्तिक मास शुक्ल पक्ष
  • नवम्बर 21, 2022, सोमवार सोम प्रदोष व्रत – मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष
  • दिसम्बर 5, 2022, सोमवार सोम प्रदोष व्रत – मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष
  • दिसम्बर 21, 2022, बुधवार बुध प्रदोष व्रत – पौष मास कृष्ण पक्ष

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प्रदोष व्रत का उद्यापन (Pradosh Vrat Udyapan)

जो उपासक इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशी तक रखते हैं, उन्हें इस व्रत का उद्यापन विधिवत तरीके से करना चाहिए।

  • व्रत का उद्यापन आप त्रयोदशी तिथि पर ही करें।
  • उद्यापन करने से एक दिन पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है और उद्यापन से पहले वाली रात को कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं।
  • अगले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि कार्य से निवृत होकर मंडप बनाना होता है और उसे वस्त्रों और रंगोली से सजाया जाता है।
  • इसके बाद उस मंडप में शिव पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजन करें
  • अब खीर से शिव पार्वती को ध्यान में रखते हुए अग्नि में हवन करना चाहिए।
  • हवन करते समय “ऊँ उमा सहित-शिवायै नम:” मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन करते हैं।
  • हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती और शान्ति पाठ करते हैं।
  • अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने इच्छा और सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
  • “व्रत पूर्ण हो” ऐसा वाक्य ब्राह्मणों द्वारा कहलवाना चाहिए
  • ब्राह्मणों की आज्ञा पाकर भगवान शंकर का स्मरण करते हुए व्रती को भोजन करना चाहिए
  • इस प्रकार उद्यापन करने से व्रती पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है और आरोग्य लाभ करता है
  • इसके अतिरिक्त वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है एवं संपूर्ण पापों से मुक्त होता है

प्रदोष व्रत के फायदे (Pradosh Vrat ke fayde)

  • अलग-अलग वार के प्रदोष व्रत के अलग-अलग लाभ होते है ।
  • रविवार के दिन जो उपासक को प्रदोष व्रत रखते हैं, उनकी आयु में वृद्धि होती है अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
  • सोमवार के दिन के प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम भी कहा जाता है और इसे मनोकामनायों की पूर्ती करने के लिए किया जाता है।
  • मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत को भौम प्रदोषम कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से हर तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं नहीं होती।
  • बुधवार के दिन जो जातक प्रदोष व्रत रखता है उसकी हर तरह की कामना सिद्ध होती है।
  • बृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) करने से शत्रुओं का नाश होता है।
  • शुक्रवार के दिन जो लोग प्रदोष व्रत रखते हैं, उनके जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है।
  • शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहा जाता है, इस दिन लोग संतान प्राप्ति की चाह में यह व्रत करते हैं। अपनी इच्छाओं को ध्यान में रख कर प्रदोष व्रत करने से फल की प्राप्ति निश्चित ही होती है।
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प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh vrat mahatva)

प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत कहते हैं। यदि इन तिथियों को सोमवार हो तो उसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं, यदि मंगल वार हो तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं और शनिवार हो तो उसे शनि प्रदोष व्रत व्रत कहते हैं। विशेष कर सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्याधिक प्रभावकारी माने गये हैं। साधारण तौर पर अलग-अलग जगह पर द्वादशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं। इस दिन व्रत रखने का विधान हैं।

शास्त्रों में वर्णित है यदि व्यक्ति को सभी तरह के जप, तप और नियम संयम के बाद भी उसके गृहस्थ जीवन में दुःख, संकट, क्लेश आर्थिक परेशानी, पारिवारिक कलह, संतानहीनता या संतान के जन्म के बाद भी यदि नाना प्रकार के कष्ट विघ्न बाधाएं, रोजगार के साथ सांसारिक जीवन से परेशानिया खत्म नहीं हो रही हैं, तो ऐसे जातकों को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले इस व्रत के महत्व के बारे में भगवान शिव ने माता सती को बताया था, उसके बाद महर्षि वेदव्यास से सूत जी और इसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था।

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त्रयोदशी व्रत और प्रदोष व्रत में क्या अंतर है?

प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकदशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है। प्रदोष व्रत फल : हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है।

त्रयोदशी व्रत करने से क्या होता है?

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। सोमवार के दिन प्रदोष व्रत करने से संतान रत्न की प्राप्ति होती है। वहीं मंगलवार के दिन, प्रदोष व्रत करने से कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।

त्रयोदशी का व्रत कब से शुरू करना चाहिए?

कब से प्रारंभ करें प्रदोष-व्रत शास्त्रानुसार प्रदोष-व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है।

त्रयोदशी का व्रत कब और कैसे किया जाता है?

हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है.