दूध में ग्लिसरीन मिलाने से क्या होता है - doodh mein glisareen milaane se kya hota hai

स्वाद, सुगंध और रंग के लिए तो ज्यादातर घरों में केसर का इस्तेमाल होता है. लेकिन क्या आप जानती हैं केसर एक बेहतरीन ब्यूटी प्रोडक्ट भी है...?

केसर के इस्तेमाल से न केवल चेहरे पर निखार आता है बल्क‍ि स्क‍िन से जुड़ी कई प्रॉब्लम्स भी दूर हो जाती हैं. केसर रंगत निखारने के काम आता है और अगर आपको झांइयां हैं तो इससे बेहतर कोई दूसरा उपाय हो ही नहीं सकता है.

अगर आप चाहें तो केसर को शहद के साथ या फिर ग्ल‍िसरीन के साथ मिलाकर लगा सकती हैं लेकिन अगर आपको स्कि‍न से जुड़ी प्रॉब्लम है तो आपके लिए दूध और केसर का पैक सबसे अधिक फायदेमंद रहेगा.

कैसे तैयार करें ये फेसपैक?

केसर और दूध का फेसपैक तैयार करना बहुत ही आसान है. दो चम्मच दूध में एक चम्मच केसर मिलाकर रख लें. इस पैक को चेहरे और गर्दन पर लगाएं. पैक को सूखने दें. जब पैक सूख जाए तो इसे हल्के गुनगुने पानी से धोकर साफ कर लें.

दूध और केसर का पैक चेहरे पर लगाने के फायदे:

1. केसर और दूध के फेसपैक के नियमित इस्तेमाल से बढ़ती उम्र के लक्षण कम नजर आते हैं. इसके इस्तेमाल से कोलाजिन का प्रोडक्शन बढ़ता है जिससे त्वचा जवान और खूबसूरत नजर आती है.

2. अगर आपकी स्किन बहुत अधि‍क ड्राई है तो ये फेसपैक लगाना आपके लिए फायदेमंद रहेगा. एक ओर जहां केसर रंगत निखारने में मददगार है वहीं दूध मॉइश्चर को खोने नहीं देता है. इस पैक के इस्तेमाल से ड्राईनेस कम होती है.

3. भले ही आप सबसे अच्छी सनस्क्रीन लगाकर बाहर निकलें, बावजूद इसके टैनिंग तो हो ही जाती है. ऐसे में केसर और दूध का फेसपैक लगाना आपके लिए फायदेमंद रहेगा. इससे टैनिंग दूर हो जाएगी.

4. अगर आपके चेहरे पर झांइयां हो गई हैं तो भी ये फेसपैक आपके लिए है. केसर और दूध का मिश्रण झांइयों को दूर करने का काम करता है.

5. त्वचा में कसावट लाने के लिए भी इस पै‍क का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहेगा. केसर में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है जो मुंहासों को ठीक करता है और उन्हें बढ़ने से रोकता है.

इस समय दूध की गुणवत्ता सवालों के घेरे में है। इसका कारण है भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के सर्वे का खुलासा। प्राधिकरण का अध्ययन कहता है कि वर्ष 2011 में उसने देशभर से दूध के जितने सैंपल इकट्ठा किए थे उनमें से 70 प्रतिशत सैंपल खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 के अनुरूप नहीं निकले।

सीधे शब्दों में इसे समझें तो बड़ी संख्या में दूध में मिलावट की जा रही है और लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। इस जानकारी को जब विज्ञान और तकनालॉजी मंत्री हर्षवर्द्धन ने लोकसभा में रखा तो कई लोगों के कान खड़े हो गए। दूध में मिलावट के इन आंकडों से लोग हैरत और डर की जद में आ गए। गौरतलब है कि ये आंकडे 2011 के हैं और 2016 में तो दूध में मिलावट का कारोबार इन आंकडों को लांघकर बहुत आगे निकल आया होगा।

मुनाफे के लिए जिंदगी दांव पर

प्राधिकरण ने इस अध्ययन में पाया कि दूध को घरों तक पहुंचाने की प्रक्रिया में स्वच्छता का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता है। जिन बर्तनों में दूध रखा जाता है उनमें लगा डिटर्जेंट भी ठीक से धुल नहीं पाता है और सीधा दूध में मिल जाता है। इसके अलावा दूध में यूरिया, स्टार्च, ग्लूकोज, फॉर्मेलिन के साथ डिटर्जेंट की मिलावट भी धड़ल्ले से की जा रही है। ये सभी पदार्थ दूध में इसलिए मिलाए जाते हैं ताकि दूध को और गाढ़ा बनाया जा सके, उसमें फैट कम न हो और फिर इन्हें मिलाने से दूध को ज्यादा समय तक सहेजना भी संभव हो सके।

यह कारोबारियों का मुनाफा बढ़ाने वाला खेल है इसलिए लोगों के स्वास्थ्य की कीमत पर भी खेला जा रहा है। स्पष्ट है कि दूध के साथ अगर डिटर्जेंट मिलता है तो वह स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा घातक है और इस अध्ययन में करीब 8 प्रतिशत सैंपल ऐसे थे जिनमें डिटर्जेंट पाया गया था।

पानी की मिलावट खतरनाक

भारत जैसे देश में जहां बड़े पैमाने पर दूध उत्पादन असंगठित क्षेत्र द्वारा किया जाता है जिनमें छोटे ग्वाले या दूधवाले शामिल हैं वे अक्सर दूध को उपभोक्ता तक पहुंचाने की प्रक्रिया में साफ-सफाई का विशेष ख्याल नहीं रखते हैं। मिलावटखोर जहां जानबूझकर दूध में ऐसे तत्व मिलाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं तो ये छोटे दूधवाले दूध के संरक्षण की सही प्रक्रिया से ही अनजान हैं। वे जानबूझकर कोई हानिकारक पदार्थ नहीं मिलाते हैं लेकिन जिस तरह से वे दूध ग्राहक तक पहुंचाते हैं वह दोषपूर्ण है।

जानबूझकर करें या अनजाने में पर उपभोक्ता तो खामियाजा भुगत ही रहे हैं। दूध में पानी की मिलावट किसी भी व्यक्ति को सामान्य बात लग सकती है लेकिन यह सभी तरह की मिलावट में सबसे खतरनाक है। दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए उसमें मिलाया जाने वाला पानी अमूमन दूषित होता है जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा घातक है। जब दूध में पानी की मिलावट रहती है तो उसका स्वाद बदल जाता है। ऐसे दूध को जब गर्म किया जाता है तो कितना भी गर्म करने पर वह बर्तन से बाहर नहीं आता है।

उससे बनने वाली चाय बेस्वाद ही रहती है और निकलने वाली मलाई भी कम हो जाती है। जो लोग दूध में पानी की मिलावट करते हैं उन्हें पकडे जाने का भय होता है क्योंकि दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है और इससे बचने के लिए वे दूध का गाढ़ापन, स्वाद और घनत्व बढ़ाने के लिए उसमें यूरिया, स्टार्च, फॉर्मेलिन, डिटर्जेंट, स्किम मिल्क पावडर, न्यूट्रालाइजर्स सहित कुछ अन्य तत्वों की मिलावट करते हैं। मिलावट का सारा कारोबार मुनाफे के लालच से जुड़ा है।

कैंसर से मौत तक का खतरा

आहार विशेषज्ञों के अनुसार अभी तक तीन सफेद खाघ वस्तुओं को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना गया था जिनमें नमक, शकर और मैदा शामिल थी लेकिन अब इसमें दूध भी शुमार हो गया है। द इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि डिटर्जेंट के कारण खाद्य विषाक्तता (फूड पॉइजनिंग) और आंतों और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा दूध में मिलावट के कारण हृदय संबंधी समस्या, कैंसर और कई बार मृत्यु तक हो सकती है। जिस दूध में यूरिया, कास्टिक सोड़ा या फॉर्मेलिन की मिलावट है उसे पीने से तुरंत को पेट संबंधी दिक्कतें शुरू होती हैं और लंबे समय में यह गंभीर बीमारी में बदल जाती है जो जानलेवा हो सकती है।

मिलावट की पहचान आसान

नेशनल डेयरी रिचर्स इंस्टिट्यूट करनाल के डाइरेक्टर एके श्रीवास्तव का कहना है कि दूध में मिलावट को पकडना मुश्किल काम नहीं है। इसके लिए 8-10 अडल्टरेशन डिटेक्शन किट होती हैं जिनके जरिए मिल्क डेयरी लैब्स मिलावटी दूध का पता लगाती है। लेकिन ये टेस्ट घर पर नहीं लगाए जा सकते हैं क्योंकि इनमें खतरनाक केमिकल्स का उपयोग किया जाता है और चूक से बच्चों को नुकसान हो सकता है।

दूध में मिलावट के खतरे को भांपते हुए जुलाई 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मिलावटखोरों से कडे तरीके से निपटना चाहिए और इसके लिए आजीवन कारावास का प्रावधान होना चाहिए। कोर्ट ने सरकार को इस दिशा में पहल करने के लिए भी कहा। कोर्ट ने यह भी कहा कि दूध में मिलावट करने वालों को मात्र छह महीने की सजा देकर छोड़ा नहीं जा सकता है। दूध में मिलावट के बढ़ते चलन और इससे होने वाले स्वास्थगत खतरों को देखते हुए सजा के इस कदम का स्वागत किया ही जाना चाहिए।

देश के दस सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक राज्य

भारत केवल गेहूं और चावल के साथ दूध का भी सबसे बड़ा उत्पादक है। वित्त वर्ष 2013-14 में भारत में 140 मिलियन टन दूध का उत्पादन दर्ज किया गया था। देखें राज्यों का हिस्सा-

  • 17.6% उत्तरप्रदेश
  • 10.5% राजस्थान
  • 9.6% आंध्रप्रदेश
  • 7.7% गुजरात
  • 7.3% पंजाब
  • 6.6% मध्यप्रदेश
  • 6.5 % महाराष्ट्र
  • 5.3 % हरियाणा
  • 5.2 % तमिलनाडु
  • 5.1% बिहार

इस तरह जांचें दूध की गुणवत्ता

न्यूट्रालाइजर्स के लिए रोसेलिक एसिड टेस्ट

5 मिली दूध में 5 मिली अल्कोहल मिलाइए और उसके बाद 4 से 5 बूंद रोसेलिक एसिड डालिए। अगर दूध का रंग गुलाबी लाल हो जाता है तो इस दूध में सोडियम कार्बोनेट/सोडियम बाइकार्बोनेट मिलाया गया है और यह दूध पीने योग्य नहीं है। यह टेस्ट तब काम नहीं करता है जबकि मिलाए जाने वाले न्यूट्रालाइजर्स पैदा होने वाली अम्लीयता से दब जाते हैं।


यूरिया की पहचान के लिए टेस्ट

5 मिली दूध को 5 मिली पैराडिमिथाइल अमीनो बेंजल्डिहाइड के साथ अच्छे से मिलाइए। यह यह मिश्रण पीला हो जाता है तब दूध के इस सैंपल में यूरिया की मिलावट तयशुदा है।


संथेटिक दूध को पहचानें

सिंथेटिक दूध का स्वाद कुछ कडवापन लिए होता है। उंगलियों के बीच इस रगड़ने पर साबुन जैसा चिकनापन लगता है। गर्म करने पर पीला भी पड़ जाता है।

स्टार्च की मिलावट का टेस्ट

3 मिली दूध को गर्म कीजिए। इसके बाद दूध को कमरे के तापमान पर ठंडा करके उसमें 2-3 बूंद आयोडिन की मिलाइए। नीला रंग आपको बता देगा कि दूध में स्टार्च की मिलावट की गई हैं।


ग्लूकोज की मिलावट का टेस्ट

डायसेटिक स्ट्रिप को लेकर दूध में 30 सेकंड से 1 मिनट तक डुबाकर रखिए। अगर इस स्ट्रिप का रंग बदल जाता है तो पता चलता है कि दूध में ग्लूकोज मिलाया गया है।


फॉर्मेलिन की मिलावट के लिए टेस्ट

  • 10 मिली दूध को एक टेस्ट ट्यूब में लेकर इसमें 5 मिली कॉन्सन्ट्रेटेड सल्फ्यूरिक अम्ल ट्यूब की सतह के सहारे छोड़िए और ट्यूब को हिलाइए। जहां ये दोनों मिल रहे हैं
  • वहां एक बैंगनी या नीली रिंग बनती है तो दूध में फॉर्मेलिन की मिलावट की गई है। दूध को लंबे समय तक रखने के लिए फॉर्मेलिन की मिलावट की जाती है।

आजीवन कारावास का इंतजार

सुप्रीम कोर्ट ने दूध में मिलावट के मामले को गंभीरता से लेते हुए इसके लिए छह महीने की सजा के बजाय आजीवन कारावास की सजा हेतु सरकार को पहल करने को कहा था। इसके अलावा कोर्ट ने दूध में मिलावट के कारोबार को रोकने के लिए नियमित रूप से जांच करने के आदेश भी दिए थे। राज्यों को जांच के बाद रिपोर्ट भेजना होगी और गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ केस चलाना होगा।

ऑर्गनिक दूध की बढ़ती मांग

ऑर्गनिक दूध सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन मिलावट के इस दौर में ऑर्गनिक दूध चलन में है। ठीक उसी तरह जैसे ऑर्गनिक फसलें आ रही हैं। ऑर्गनिक दूध उस गाय से प्राप्त किया जाता है जिसे खाने के लिए ऑर्गनिक चारा दिया जाता है। इस गाय का भोजन किसी भी तरह के केमिकल फर्टिलाइजर्स और पेस्टीसाइड्स से मुक्त होता है।

क्या-क्या मिलाया जाता है दूध में

दूध में जिन पदार्थों की मिलावट की जाती है उनसे शरीर को किस तरह नुकसान पहुंचता है उसे ऐसे समझें-

यूरिया : सिंथेटिक मिल्क में फैट वैल्यू बढ़ाने के लिए यूरिया मिलाया जाता है। यह आंतों और पाचन तंत्र पर बुरा असर डालता है।

डिटर्जेंट : इसकी मदद से भी फैट वैल्यू बढ़ती है मगर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

फॉर्मेलिन: आमतौर पर पाश्चुरीकृत दूध 4 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर 48 घंटे तक रखा जा सकता है। मगर कारोबारी दूध को ज्यादा दिनों तक रखने के लिए उसमें फॉर्मेलिन की मिलावट करते हैं। यह ऑर्गन फेल्योर की स्थिति ला देता है। साथ ही आंतों और पाचन तंत्र को बुरी तरह प्रभावित करता है।

स्टार्च : गेहूं, मकई, चावल आदि से प्राप्त स्टार्च को दूध में फैट बढ़ाने के लिए मिलाया जाता है। इससे दूध की पौष्टिकता कम हो जाती है।

शुगर: लैक्टोमीटर पर रीडिंग बढ़ाने के लिए के लिए, पानी की मिलावट छुपाने के लिए दूध में शुगर मिलाई जाती है। अगर पानी अशुद्ध है तो बड़े पैमाने पर फैलने वाली बीमारी की चपेट में आप आ सकते हैं।

नमक : लैक्टोमीटर रीडिंग से बचाव के लिए पानी वाले दूध में नमक मिला दिया जा है। इससे भी दूध की पौष्टिकता कम हो जाती है।

स्रोत: कर्नाटक मिल्क फेडरेशन

क्या पैकेज्ड दूध अधिक सुरक्षित है?

खुले दूध के मुकाबले पैकेज्ड दूध की गुणवत्ता को लेकर ज्यादा आश्वस्त हुआ जा सकता है क्योंकि इसमें प्रक्रिया पूरी निभाई जाती है। हर गांव में एक मिल्क सेंटर होता है जहां दूध इकट्ठा किया जाता है। इस दूध के 10 तरह के टेस्ट होते हैं। मिलावटी दूध को खारिज कर दिया जाता है। अगर गलती से दूध प्लांट तक पहुंच भी जाए तो उसे वहां से लौटा दिया जाता है।

ग्वालों और किसानों को दूध में मौजूद फैट और सॉलिड नॉट फैट (वसा और पानी के अलावा दूध में मौजूद अन्य पोषक तत्वों) की जांच के आधार पर ही पारिश्रमिक दिया जाता है। इसलिए वे दूध में मिलावट से बचते हैं। चिलिंग दूध को इंसुलेटेड टैंकरों के जरिए प्लांट लाया जाता है। प्लांट में दूध की प्रोसेसिंग होती है।

दूध के कई तरह के टेस्ट होते हैं। इसके बावजूद अगर आपको दूध बेचने वाला दुकानदार दूध को ठीक तरह से स्टोर नहीं करता है तो उसके बिक्री अधिकार वापस लेने की कार्रवाई की जाती है। पैकेज्ड दूध इन कारणों से खुले दूध से बेहतर है।

दूध में फैट बढ़ाने के लिए क्या मिलाना चाहिए?

दूध में फैट का प्रतिशत बढ़ाने के लिए पशुओं को 60 प्रतिशत हरा चारा और 40 प्रतिशत सूखा चारा देना चाहिए। साथ ही पशु को बडेवे और सरसों की खली भी देनी चाहिए।

दूध को गाढ़ा करने के लिए क्या करें?

आपको बस मखाने सेंक कर उबले दूध में मिक्स करने हैं. इसके बाद दूध को चलाते जाएं. दूध गाढ़ा होता जाएगा. मिल्क पाउडर मिलाकर दूध गाढ़ा करने के लिए आप दूध में मिल्क पाउडर मिक्स करें.

पैकेट दूध में कौन सा केमिकल इस्तेमाल होता है?

दरअसल जिस प्लास्टिक पैकेट में दूध रखा जाता है, इस प्लास्टिक में BPA (Chemical Bisphenol A) होता है, जो नुकसानदायक हो सकता है। रिसर्च बताती है कि जब भी यह प्लास्टिक सूरज की किरणों के सामने आती है तो इससे दूध में BPA शामिल हो सकता है।

नकली दूध बनाने का फार्मूला क्या है?

ऐसे बनता है नकली दूध पहले ऊनी कपड़े धोने की लिक्विड ईजी को साफ बरतन में रिफाइन के साथ मिलाया जाता है, फिर ग्लूकोज डाला जाता है। दो से चार मिनट मिश्रण के बाद पानी मिलाया जाता है। अंत में फैब्रिक्स डालकर सफेद कलर को बिल्कुल दूध जैसा बनाया जाता है।