उपभोक्ता संस्कृति का हमारे सामाजिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ा? - upabhokta sanskrti ka hamaare saamaajik moolyon par kya prabhaav pada?

उपभोक्तावाद क्या है ? यह हमारी जीवन शैली को कैसे प्रभावित कर रहा है ? उपभोक्तावाद का अर्थ क्या है? उपभोक्तावादी संस्कृति से आप क्या समझते हैं? हमारी उपभोक्तावादी संस्कृति का कड़वा सच क्या है? उपभोक्ता संस्कृति का हमारे सामाजिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ा है?

1 Answers

उपभोक्तावाद से अभिप्राय यह है कि जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति उत्पादित की गई वस्तु के उपभोग से आनन्द तथा सुख की प्राप्ति का अनुभव करने लगता है और व्यक्ति को जीवन में केवल भोग के द्वारा ही संतोष मिलता है। वह सदा भोग-विलास में डूबा रहता है।
उपभोक्तावाद ने हमारी जीवन शैली को प्रभावित किया है। हम अधिक-से-अधिक उत्पादों का आनंद लेने में सुख अनुभव करने लगे हैं। इसके कारण चारों ओर उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। जिससे हम अधिक-से-अधिक उपभोग कर सकें’ हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि हमारा जीवन उत्पाद को ही समर्पित हो गया है।

Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Std 9 GSEB Hindi Solutions उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
लेख्नक के अनुसार जीवन में वस्तुओं का उपभोग करना ही सुख नहीं है । वास्तविक सुख है, जो भी हमारे पास है, उसी का आनंद लेना । मानसिक रूप से सदैव खुश रहना ।

उपभोक्ता संस्कृति का हमारे सामाजिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ा? - upabhokta sanskrti ka hamaare saamaajik moolyon par kya prabhaav pada?

प्रश्न 2.
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभाषित कर रही हैं ?
उत्तर :
उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है । आज व्यक्ति उपभोग को ही वास्तविक मुन्द्र समझने लगा है । लोग अधिकाधिक वस्तुओं के उपभोग में लीन रहते हैं । लोग बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदते हैं । महँगी से महँगी व प्रांडेड वस्तुओं को खरीदकर दिखावा करते हैं । कई बार हास्यास्पद वस्तुओं को भी फैशन के नाम पर खरीदनं हैं । इससे हमारा सामाजिक जीवन प्रभावित हो रहा है । अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ रही है । समाज में अशांति और आक्रोश बढ़ रहा है ।

प्रश्न 3.
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार उपभोक्ता संस्कृति हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है । उपभोक्तावादी संस्कृति की गिरफ्त में आने पर हमारी संस्कृति की नियंत्रण शक्तियाँ क्षीण हो रही हैं । हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं । हमारे सीमित संसाधनों का घोर उपव्यय हो रहा है । समाज के दो वर्गों के बीच की दूरी बढ़ रही है । यह अंतर ही आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है । उपभोक्तावादी संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को हिला रही है । इसलिए लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिये चुनौती कहा है ।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए ।
क. जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं ।
उत्तर :
उपभोक्तावादी संस्कृति वस्तुएँ के उपभोग को अत्यधिक बढ़ावा देती है । लोग भौतिक संसाधनों के उपयोग को अपना वास्तविक सुख मान लेते हैं । वे बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदते है पर उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते । चे उत्पाद को ही जीवन का साध्य मान लेते हैं, परिणामस्वरूप उसका प्रभाव चरित्र पर भी पड़ रहा है ।

ख. प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो ।
उत्तर :
लोग समाज में अपनी हैसियत व प्रतिष्ठा दिखाने के लिए महँगी से महँगी वस्तुएँ भी खरीद लेते हैं । ये यह देखते नहीं कि खरीदी हुई वस्तु उन पर अँच रही है या नहीं । इस कारण कई बार वे उपहास का कारण भी बनते हैं । पश्चिम के लोग मरने से पूर्व अपने अंतिम संस्कार का प्रबंध कर लेते है जो एकदम हास्यास्पद बात है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित
होते हैं ? क्यों?
उत्तर :
टी.वी. पर दिखाये जानेवाले विज्ञापन जीवन्त होते हैं । ये हमारे मनस्पटल पर अमिट छाप छोड़ते हैं । इनकी भाषा भी प्रभावशाली व आकर्षक होती है । इनको देखते ही हम सम्मोहित हो जाते हैं और बिलकुल वैसा ही चाहते हैं जैसा विज्ञापन में दिखाया जाता है । हम बिना कुछ सोचे-समझे उन वस्तुओं को खरीदने के लिए लालायित हो जाते हैं । भले ही हमें उन वस्तुओं की आवश्यकता न हो ।

प्रश्न 6.
आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन ? तर्क देकर स्पष्ट करें ।
उत्तर :
हमारे अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए न कि उसका विज्ञापन । विज्ञापन में दिखाई जानेवाली वस्तुओं का कार्य, त्वरित प्रभाय, सब मिथ्या है । हमें अपने जीवन के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता हो, उन्हें विज्ञापन देखकर नहीं बल्कि उसकी गुणवत्ता की परख करके ही वस्तुओं को खरीदना हितकारी है।

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प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए ।
उत्तर :
उपभोक्तावादी संस्कृति ही वास्तव में दिखाये की संस्कृति है । यह संस्कृति उपभोग को ही सच्चा सुख मान बैठी है । इसलिए लोग महँगी से महँगी वस्तुओं को खरीदते हैं । जिन वस्तुओं की उन्हें आवश्यकता नहीं है उन्हें भी वे खरीद लेते हैं । पात में बताया गया है कि संभ्रांत महिलाएँ तीस-तीस हजार की सौन्दर्य सामग्री अपने ड्रेसिंग टेबल पर रखती हैं । फैशन दिखाया या हैसियत बताने के लिए लोग अत्यधिक कीमती वस्तुएँ खरीदते हैं ताकि दूसरों को दिखाया जा सके । अतः हम कह सकते हैं कि उपभोक्तावादी संस्कृति दिखाने की संस्कृति है ।

प्रश्न 8.
आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रीवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिनिए ।
उत्तर :
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारे समाज की नींव को जड़ से हिलाकर रख दिया है । उपभोक्तावादी संस्कृति के गिरफ्त में जकड़े हुए लोग अब पहले की तरह त्योहारों को नहीं मनाते । पहले लोग कम सुविधाओं में मिलजुल कर रहते थे । त्योहारों को साथ में मिलकर, बिना किसी भेदभाव के मनाते थे ।

अब लोगों में दिखावे और हैसियत दिखाने की प्रवृत्ति पनप रही है, लोग एकदूसरे से महँगी और ब्रांडेड वस्तुओं को खरीदकर मात्र दिखावा करते हैं । लोग अपने जीवन के उद्देश्य से भटक गये हैं । दिवाली के पावन पर्व पर एकदूसरे को नीचा दिखाने के लिए महँगे से महँगे पटाखे खरीदकर वातावरण को दूषित करते हैं । यों उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारे रीति-रिवाजों और त्यौहारों को प्रभावित किया है ।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 9.
धीरे-धीरे सबकुछ बदल रहा है ।
इस वाक्य में ‘बदल रहा है’ क्रिया है । यह क्रिया कैसे हो रही है – धीरे-धीरे । अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया विशेषण है । जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, ‘क्रिया विशेषण’ कहलाते हैं । जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है कि क्रिया कब, कैसे, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया विशेषण कहलाता है ।

क. ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए ।
उत्तर :
क्रिया विशेषणयुक्त वाक्य –

  1. उत्पादन बढ़ाने पर जोर है चारों ओर । (चारों ओर – स्थानवाचक क्रिया विशेषण)
  2. कोई बात नहीं यदि आप उसे (म्यूजिक सिस्टम) ठीक तरह से चला भी न सकें । (ठीक तरह से – रीतिवाचक क्रिया विशेषण)
  3. पेरिस से परफ्यूम मँगाइए इतना ही और खर्च हो जाएगा । (इतना परिमाणवाचक क्रिया विशेषण)
  4. वहाँ तो अब विवाह भी होने लगे हैं । (अब – कालबोधक क्रिया विशेषण)
  5. सामंती संस्कृति के तत्व भारत में पहले भी रहे हैं । (पहले – कालबोधक क्रिया विशेषण)

ख. क्रिया विशेषण

  • धीरे-धीरे – नल से पानी धीरे-धीरे टपक रहा है ।
  • जोर से – तेज हवा के झोंके से दरवाजा जोर से खुला ।
  • लगातार – कल से लगातार वर्षा हो रही है ।
  • हमेशा – सूर्य हमेशा पूर्व में उदय होता है ।
  • आजकल – आजकल महँगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।
  • कम – अपरिचित व्यक्ति कम बातें करें ।
  • ज्यादा – इस वर्ष हमारे आचार्य जी का गुस्सा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है ।
  • यहाँ – कल यहाँ नदी तट पर मेला लगा था ।
  • उधर – रमन, उधर नदी की ओर मत जाना ।
  • बाहर – इतनी गर्मी में बाहर निकलना अच्छा नहीं ।

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ग. नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया विशेषण और विशेषण छाँटकर लिखिए :

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GSEB Solutions Class 9 Hindi उपभोक्तावाद की संस्कृति Important Questions and Answers

आशय स्पष्ट कीजिए :

प्रश्न 1.
हम जाने-अनजाने उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं ।
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से लेखक कहना चाह रहे हैं कि हम जाने-अनजाने बाजार में अनेक प्रकार के उत्पादों को विज्ञापन देखकर उन वस्तुओं को खरीद लेते हैं, उसकी गुणवत्ता के विषय में हम तनिक भी विचार नहीं करते । कई बार विज्ञापित वस्तुओं की आवश्यकता न होने पर भी हम उन वस्तुओं को खरीद लेते हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि हम उत्पाद के लिए ही बने हो । अतः जाने-अनजाने हम उत्पाद को समर्पित होते जा रहे है ।

प्रश्न 2.
हमारी नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है ।।
उत्तर :
उपभोक्तावाद ही हमारी नई संस्कृति है । हम अन्य व्यक्तियों को देखते हैं, कि उनके पास महँगी और ब्रांडेड वस्तुएँ हैं तो हम भी उन जैसी वस्तुओं को अपने लिए मंगवाते हैं । कई बार बहुविज्ञापित वस्तुएँ हमें इतनी पसन्द आ जाती है कि हम उसे मंगाये बिना नहीं रहते । एक को देखकर दूसरा और फिर तीसरा व्यक्ति उनका अनुकरण करता है । अत: नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है ।

अन्य लघूत्तरी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपभोक्तावादी संस्कृति के अनुसार सुख की क्या व्याख्या है ? ।
उत्तर :
उपभोक्तावादी संस्कृति के अनुसार भौतिक सुख साधनों का उपभोग करना ही सुख है । बाजार में जितने भी उत्पादय आ रहे हैं उसका भोग करना आज का सुख बन गया है । यही सुख की व्याख्या है ।

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प्रश्न 2.
नई जीवनशैली का बाजार पर क्या प्रभाव पड़ा है ? पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए ।
उत्तर :
नई जीवनशैली यानी उपभोक्तावाद की पकड़ में आने के बाद व्यक्ति अधिक से अधिक महँगी से महँमी, ब्रांडेड वस्तुएँ खरीदना चाहता है । इस कारण बाजार’ विलासिता की वस्तुओं से भर गये हैं । निरंतर नई नई वस्तुओं से लोगों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं ।

प्रश्न 3.
उपभोक्तावादी संस्कृति के अनुसार प्रतिष्ठा चिल्ल क्या हैं ?
उत्तर :
उपभोक्तावादी संस्कृति में विदेश से महँगी और ब्रांडेड वस्तुएँ मंगवाना अपनी ड्रेसिंग टेबल पर रखना ही प्रतिष्ठा चिह्न है । महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार की महँगी वस्तुएँ उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाती है ! ये विदेश से परफ्यूम गंगवाती है, कीमती कपड़े महँगी घड़ियाँ, अन्य आधुनिक उपकरण रखना, कीमती व ब्रांडेड वस्तुएँ उपयोग करना प्रतिष्ठा का चिह्न समझा जाता है।

प्रश्न 4.
उपभोक्तावादी संस्कृति में पुरुषों का झुकाव भी सौंदर्य प्रसाधनों की ओर बढ़ा है । स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
पहले के पुरुष प्रायः तेल और साबुन से काम चला लेते थे । पुरुष वर्ग भी अब अपने दिखाये के प्रति सचेत हुए हैं इसलिए अब वे आफ्टर शेव और कोलोन का प्रयोग करने लगे हैं । उनकी यह सूची में अन्य कई नाम शामिल है । इसलिए उपभोक्तावादी संस्कृति में पुरुषों का झुकाव सौन्दर्य प्रसाधनों की ओर झुका है ।

प्रश्न 5.
नई संस्कृति में किसे शर्म की बात समझी जाती है ?
उत्तर :
नई उपभोक्तावादी संस्कृति में पिछले वर्ष के फैशन को शर्म की बात समझी जाती है । नित नये परिवर्तित फैशन को अपनाना लोग अपनी शान समझाते हैं । पुराने फैशन का उपभोग करना नई संस्कृति में शर्म माना जाता हैं ।

प्रश्न 6.
व्यक्तियों की केंद्रिकता से आप क्या समझते है ? पाठ के आधार पर बताइए ।
उत्तर :
व्यक्तियों की केंद्रिकता का अर्थ है अपने आप तक सीमित होकर रह जाना । पहले के समय में लोग अपने घर, परिवार, समाज में रहनेवाले लोगों के सुख-दुःख में सरीख होते थे, दूसरों के सुख-दुःख को अपना समझते थे । अब व्यक्ति अपने तक सीमित होकर रह गया है । यह केवल अपने सुख-दुाख्न के विषय में सोचता है, अर्थात् व्यक्ति स्यार्थी हो गया है । उसे दूसरों के सुख्न दुख की कोई परवाह नहीं ।

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प्रश्न 7.
संस्कृति की नियंत्रण शक्तियों की आज क्या स्थिति है ?
उत्तर :
उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारी भारतीय संस्कृति को बहुत प्रभावित किया है । हमारी संस्कृति धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही है. जिसके कारण हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं । उपभोक्तावादी संस्कृति के फैलावे को नहीं रोका गया तो हमारी संस्कृति की नियंत्रण शक्तियाँ – धर्म, परम्पराएँ, रीति-रीवाज सब नष्ट हो जाएँगे ।

प्रश्न 8.
विज्ञापन का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर :
विज्ञापनों की भाषा अत्यंत आकर्षक और भ्रामक होती है । अपने उत्पाद को बेचने के लिए वे दर्शकों को लुभाते हैं । विज्ञापन देखनेवाला व्यक्ति उस विज्ञापन को देखकर विज्ञापित वस्तु को खरीदने के लिए बाध्य हो जाता है । परिणामस्वरूप विज्ञापित वस्तु की आवश्यकता न होने पर भी वह उस वस्तु को खरीद लेता है । हम ऐसी बहुत-सी वस्तुओं को खरीद लेते हैं, जिनकी हमें आवश्यकता नहीं होती है ।

प्रश्न 9.
सांस्कृतिक प्रभाव के विषय में गाँधीजी ने क्या कहा था ?
उत्तर :
सांस्कृतिक प्रभाव के विषय में गाँधीजी ने कहा था कि हम स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभाव के लिए अपने दरवाजे-खिड़की खुले रखें पर अपनी बुनियाद पर कायम रहें । अर्थात् उन्हीं चीजों को अपनाएँ जो हमारी संस्कृति के अनुकूल हों । विदेश में क्या हो रहा हैं उस पर हमारी दृष्टि बनी रहे और हम अपनी परम्पराओं, रीति-रिवाजों, मान्यताओं पर कायम रहें ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर (अतिरिक्त)

प्रश्न 1.
टूथपेस्ट का विज्ञापन लोगों को किस प्रकार लुभाता है ? पाठ के आधार पर बताइए ।
उत्तर :
बाजार में टूथपेस्ट के अनेक विज्ञापन आते हैं । जो कई प्रकार से लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं । एक विज्ञापन में दाँतों को मोती जैसा चमकीला बताया जाता है, दूसरे विज्ञापन में टूथपेस्ट मसूड़ों को मजबूत बनाकर पूर्ण सुरक्षाकवच प्रदान करता है । सबका अपना अलग-अलग मैजिक फार्मूला है । कोई बबूल और नीम के गुणों से भरपूर है, कोई ऋषि-मुनियों द्वारा स्वीकृत तथा मान्य वनस्पतियों और खनिज तत्त्वों के मिश्रण से बना है । जिसकी जो इच्छा हो, उसे चुन लें । यों टूथपेस्ट का विज्ञापन कई तरह से लोगों को लुभाता है ।

प्रश्न 2.
उपभोक्तावादी संस्कृति के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं ? पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए ।
उत्तर :
उपभोक्तायादी संस्कृति उपभोग और दिखावे की संस्कृति है । इसके आधार पर उपभोग को ही लोग सच्चा सुख्ख मानते हैं । इस संस्कृति को लोगों ने बिना सोचे समझे अपनाया । ताकि वे अपने आप को आधुनिक कहला सकें । हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं । प्रतिष्ठा की अंधी प्रतिस्पर्धा में जो अपना है उसे खोकर छद्म आधुनिकता को अपनाते जा रहे हैं ।

हमारी अपनी संस्कृति की नियंत्रण शक्तियाँ क्षीण होती जा रही हैं । समाज के दो वर्गों के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है, सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही हैं । दिखावे की यह संस्कृति जैसे जैसे फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी । हमारी सांस्कृतिक अस्मिता धीरे-धीरे अपनी पहचान खो देगी । उपभोक्तावादी संस्कृति के ये सभी दुष्परिणाम हो सकते हैं ।

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प्रश्न 3.
उपभोक्तावादी संस्कृति का व्यक्ति विशेष पर क्या प्रभाव पड़ा है ? पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए ।
उत्तर :
उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव में आकर व्यक्ति आत्मकेंद्रित हो गया है । वह अब दूसरों के सुख-दुख्न के बारे में तनिक भी विचार नहीं करता । केवल अपने सुख-सुविधाओं के विषय में सोचता है । उपभोक्तावादी संस्कृति भोग एवं दिखावा को बढ़ावा देती है । जबकि हमारी अपनी संस्कृति त्याग, परोपकार, भाइचारे, प्रेम को बढ़ावा देती है । नई संस्कृति के प्रभाव के कारण हमारी संस्कृतियों के मूल्यों का धीरे-धीरे विनाश हो रहा है । इस कारण भी व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता जा रहा है ।

व्यक्त्ति चाहता है कि वह अपने आप को अत्याधुनिक कहलाए । इस चक्कर में यह अपने आप को औरों से अलग दिखने के लिए कीमती और ब्रांडेड वस्तुओं को खरीदता है । अधिकाधिक सुख के लिए साधनों का उपभोग करना चाहता है । बहुविज्ञापित वस्तुओं के जाल में फँसकर गुणवत्ताहीन वस्तुओं को खरीदने लगा है । महँगी से महँगी वस्तुओं को खरीद कर समाज में अपनी हैसियत जताना चाहता है । यों उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव में आकर व्यक्ति स्वकेंद्रिय व स्वार्थी हो गया है ।

अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर नीचे दिए गये विकल्पों में से चुनकर लिखिए ।

प्रश्न 1.
एक नवीन जीवनशैली के साथ-साथ कौन-सा दर्शन अस्तित्व में आ रहा है ?
(क) छायावादी जीवन दर्शन
(ख) उपभोक्तावादी जीवन दर्शन
(ग) मार्क्सवादी जीवन दर्शन
(घ) कल्पनावादी जीवन दर्शन
उत्तर :
(ख) उपभोक्तावादी जीवन दर्शन

प्रश्न 2.
मुँह की दुर्गंध से बचने के लिए क्या इस्तेमाल किया जाता है ?
(क) माउथ वाश
(ख) पान
(ग) सुगंधित शरबत
(घ) पानी
उत्तर :
(क) माउथ वाश

प्रश्न 3.
हैसियत जताने के लिए लोग कितने हजार की घड़ी लेते हैं ?
(क) पचास-साठ हजार से लाख डेढ़ लाख की घड़ी ।
(ख) चालीस-पचास हजार से डेढ़ लाख की घड़ी ।
(ग) पचास-साठ हजार से 2 लाख की घड़ी ।
(घ) एक लाख से डेढ़ लाख की घड़ी ।
उत्तर :
(क) पचास-साठ हजार से लाख डेढ़ लाख की घड़ी ।

प्रश्न 4.
पश्चिम के देश के लोग मरने से पहले किसका प्रबंध पहले से कर सकते हैं ?
(क) वसियत का प्रबंध
(ख) सम्पत्ति के बँटवारे का प्रबंध
(ग) अंतिम संस्कार व अनंत विश्राम का प्रबंध
(घ) बैंक बेलेंस का प्रबंध
उत्तर :
(ग) अंतिम संस्कार व अनंत विश्राम का प्रबंध

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प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार हम दिग्भ्रमित क्यों हो रहे हैं ?
(क) सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास होने के कारण
(ख) नई संस्कृति आने के कारण
(ग) उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण
(घ) संस्कृति की नियंत्रण शक्तियों के क्षीण होने के कारण
उत्तर :
(घ) संस्कृति की नियंत्रण शक्तियों के क्षीण होने के कारण

प्रश्न 6.
गाँधी जी ने कहा था कि हम स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए अपने दरवाजे-खिड़की खुले रखें पर …
(क) अपनी संस्कृति को भूल जाय ।
(ख) दोनों को बराबर अपनाएं ।
(ग) अपनी बुनियाद कायम रखें । .
(घ) अपनी संस्कृति की परवाह न करें ।
उत्तर :
(ग) अपनी बुनियाद कायम रखें ।

अर्थबोध संबंधी प्रश्नोत्तर

धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है । एक नयी जीवन-शैली अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है । उसके साथ आ रहा है एक नया जीवन-दर्शन-उपभोक्तावाद का दर्शन । उत्पादन बढ़ाने पर जोर है चारों ओर । यह उत्पादन आपके लिए है; आपके भोग के लिए है, आपके सुख के लिए है । ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है । उपभोग-भोग ही सुख्ख है । एक सूक्ष्म बदलाव आया है नई स्थिति में । उत्पाद तो आपके लिए हैं, पर आप यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं ।

प्रश्न 1.
नई जीवनशैली में किस बात पर जोर दिया जा रहा है ? क्यों ?
उत्तर :
नई जीवन शैली में उत्पादन पर बहुत जोर दिया जा रहा है । लोगों के उपभोग की वस्तुओं में निरंतर वृद्धि होती जा रही है । इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है ।

प्रश्न 2.
आज सुख की व्याख्या क्या है ?
उत्तर :
आज सुख की व्याख्या बिलकुल बदल गई है । आज के अनुसार नित नये प्रसाधनों का उपभोग करना, आधुनिक वरों का भोग करना ही सुख कहलाता है ।

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प्रश्न 3.
माहौल एवं वर्चस्व शब्द का समानार्थी शब्द लिखिए ।
उत्तर :
माहौल – वातावरण
वर्चस्व – प्रधानता या दबदबा

विलासिता की सामग्रियों से बाज़ार भरा पड़ा है, जो आपको लुभाने की जी तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती हैं । दैनिक जीवन में काम आनेवाली वस्तुओं को ही लीजिए । टूथ-पेस्ट चाहिए ? यह दाँतों को मोती जैसा चमकीला बनाता है, यह मुँह की दुर्गंध हटाता है । यह मसूड़ों को मजबूत करता है और यह ‘पूर्ण सुरक्षा’ देता है । वह सब करके जो तीन-चार पेस्ट अलग-अलग करते हैं, किसी पेस्ट का ‘मैजिक’ फ़ार्मूला है । कोई बबूल या नीम के गुणों से भरपूर है, कोई ऋषि-मुनियों द्वारा स्वीकृत तथा मान्य वनस्पति और खनिज तत्त्वों के मिश्रण से बना है । जो चाहे चुन लीजिए । यदि पेस्ट अच्छा है तो ब्रुश भी अच्छा होना चाहिए । आकार, रंग, बनावट, पहुँच और सफ़ाई की क्षमता में अलग-अलग, एक से बढ़कर एक । मुँह की दुर्गध से बचने के लिए माउथ वाश भी चाहिए ।

प्रश्न 1.
आज का बाजार किन चीजों से भरा है ? ये किनको लुभाती हैं ?
उत्तर :
आज का बाजार विलासिता की सामग्रियों से भरा पड़ा है, वे हमें अर्थात् ग्राहकों को विज्ञापनों से लुभाने की कोशिश में लगी । रहती हैं।

प्रश्न 2.
उपभोक्ताबाद ने हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया है ?
उत्तर :
उपभोक्तावाद ने हमारे जीवन को अत्यन्त गहराई से प्रभावित किया है । जो वस्तुएँ विज्ञापनों में दिखाई जाती हैं, हम उन्हें खरीदकर लाते हैं और उसका उपभोग करते हैं । भले ही उन वस्तुओं की गुणवत्ता ठीक न हो ।

प्रश्न 3.
टूथपेस्ट के विज्ञापनों का क्या आधार है ?
उत्तर :
टूथपेस्ट के विज्ञापनों में कई तरह के आधार हैं । कोई टूथपेस्ट दाँतों को चमकीला बनाता है, तो कोई मुँह की दुर्गध मिटाता है, कोई मसूड़ों को मजबूत करता है, कोई बबूल या नीम के गुणों से भरपूर है ।

प्रश्न 4.
‘दुर्गध’ और ‘मजबूत’ शब्द का विलोम शब्द लिखिए ।
उत्तर :
दुर्गध × सुगंध
मजबूत × कमजोर

साबुन ही देखिए । एक में हलकी खुशबू है, दूसरे में तेज़ । एक दिनभर आपके शरीर को तरोताजा रखता है, दूसरा पसीना । रोकता है, तीसरा जर्स से आपकी रक्षा करता है । यह लीजिए सिने स्टार्स के सौंदर्य का रहस्य, उनका मनपसंद साबुन । सच्चाई का अर्थ समझना चाहते हैं, यह लीजिए । शरीर को पवित्र रखना चाहते हैं, यह लीजिए शुद्ध गंगाजल में बनी साबुन ।

चमड़ी को नर्म रखने के लिए यह लीजिए – महँगी है, पर आपके सौंदर्य में निखार ला देगी । संभ्रांत महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हज़ार की सौंदर्य सामग्री होना तो मामूली बात है । पेरिस से परफ्यूम मँगाइए, इतना ही और खर्च हो जाएगा । ये प्रतिष्ठा-चिह्न हैं, समाज में आपकी हैसियत जताते हैं । पुरुष भी इस दौड़ में पीछे नहीं है ।। पहले उनका काम साबुन और तेल से चल जाता था । आफ्टर शेव और कोलोन बाद में आए । अब तो इस सूची में । दर्जन दो दर्जन चीजें और जुड़ गई हैं ।

प्रश्न 1.
साबुन के विज्ञापन में गंगाजल शब्द को क्यों जोड़ा गया है ?
उत्तर :
गंगाजल हमारी धार्मिक आस्था और पवित्रता का प्रतीक है । शरीर को पवित्र रखने के लिए साबुन के साथ गंगाजल को जोड़ । दिया गया है, ताकि इसमें आस्था रखनेवाले लोग उस साबुन को खरीदें ।

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प्रश्न 2.
सामाजिक प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए संभ्रांत महिलाएँ क्या करती हैं ?
उत्तर :
सामाजिक प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए संभ्रांत महिलाएँ अपनी ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार की सौन्दर्य सामग्री रखती हैं, विदेश से महँगी परफ्यूम मंगाती हैं ।

प्रश्न 3.
पहले पुरुषों का काम किससे चल जाता था ?
उत्तर :
पहले के समय में पुरुषों का काम साबुन और तेल से चल जाता था ।

प्रश्न 4.
‘गंगाजल’ का सामासिक विग्रह करते हुए उसके प्रकार बताइए ।
उत्तर :
गंगाजल → गंगा का जल, तत्पुरुष समास ।

छोड़िए इस सामग्री को । वस्तु और परिधान की दुनिया में आइए । जगह-जगह बुटीक खुल गए हैं, नए-नए डिज़ाइन के परिधान बाज़ार में आ गए हैं । ये ट्रेंडी हैं और महँगे भी । पिछल वर्ष के फ़ैशन इस वर्ष ? शर्म की बात है । घड़ी पहले समय दिखाती थी । उससे यदि यही काम लेना हो तो चार-पाँच सौ में मिल जाएगी । हैसियत जताने के लिए आप पचास साठ हज़ार से लाख-डेढ़ लाख की घड़ी भी ले सकते हैं । संगीत की समझा हो या नहीं, कीमती म्यूज़िक सिस्टम ज़रूरी है । कोई बात नहीं यदि आप उसे ठीक तरह चला भी न सकें । कम्प्यूटर काम के लिए तो खरीदे ही जाते हैं, महज़ दिखाये के लिए उन्हें खरीदनेवालों की संख्या भी कम नहीं है ।

प्रश्न 1.
उपभोक्तावाद ने परिधान की दुनिया को किस तरह प्रभावित किया है ?
उत्तर :
उपभोक्तायाद ने परिधान की दुनिया को अत्यधिक प्रभावित किया है । जगह-जगह बुटीक खुल गये हैं । नये-नये डिज़ाइन के तथा महँगे परिधान बाजार में आ गये हैं । लोग नित नये फैशन के कपड़े खरीदकर पहनना चाहते हैं ।

प्रश्न 2.
महँगी घड़ियाँ और कम्प्यूटर का उल्लेख किस संदर्भ में किया गया है ?
उत्तर :
महँगी घड़ियाँ और कम्प्यूटर का उल्लेख लोगों द्वारा दिखावा करने की प्रवृत्ति के संदर्भ में किया गया है । लोग हैसियत और दिखावा करने के लिए लाख-डेढ़ लाख तक की घड़ियाँ खरीदते हैं । इसी तरह से कम्प्यूटर भी लोग दिखावे के लिए खरीदते हैं, भले ही उसकी आवश्यकता न हो ।

उपभोक्ता संस्कृति का हमारे सामाजिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ा? - upabhokta sanskrti ka hamaare saamaajik moolyon par kya prabhaav pada?

प्रश्न 3.
‘वस्तु और परिधान की दुनिया में आइए ।’ वाक्य का कौन-सा प्रकार है ?
उत्तर :
यह सरल वाक्य है ।

भारत में तो यह स्थिति अभी नहीं आई पर अमरीका और यूरोप के कुछ देशों में आप मरने के पहले ही अपने अंतिम संस्कार और अनंत विश्राम का प्रबंध भी कर सकते हैं – एक कीमत पर । आपकी कब्र के आसपास सदा हरी घास होगी, मनचाहे फूल होंगे । चाहें तो वहाँ फव्वारे होंगे और मंद ध्वनि में निरंतर संगीत भी । कल भारत में भी यह संभव हो सकता है । अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है । प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं । चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों ।

प्रश्न 1.
अमरीका और यूरोप के देशों में उपभोक्तावाद एक सीमा से आगे बढ़ गया है । कैसे ? समझाइए ।
उत्तर :
अमरीका और यूरोप के देशों में उपभोक्तावाद चरम सीमा पर पहुँच गया है । यहाँ मरने से पहले अपने अंतिम संस्कार और अनंत विश्राम का प्रबंध कर सकते हैं । कब्र के आसपास हरे घास, मनचाहे फूलों का इंतजाम भी करवाया जा सकता है ।

प्रश्न 2.
लेखक ने भारत के विषय में क्या संभावना जताई है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि अमरीका और यूरोप के लोग मरने से पहले ही अंतिम संस्कार और अनंत विश्राम का प्रबंध करवा लेते हैं । भारतीय लोग पश्चिम का अंधानुकरण करते हैं । ये लोग भी उन्हीं की तरह अंतिम संस्कार का प्रबंध पहले से करने लगेंगे ।

प्रश्न 3.
‘आपकी कन के आस-पास सदा हरी घास होगी ।’ वाक्य में विशेषण व विशेष्य छाँटिये ।
उत्तर :
विशेषण + हरी
विशेष्य → घास ।

हम सांस्कृतिक अस्मिता की बात कितनी ही करें; परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है । कड़वा सच तो यह है कि हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं, पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं । हमारी नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है । हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं । प्रतिष्ठा की अंधी प्रतिस्पर्धा में जो अपना है उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ्त में आते जा रहे हैं । संस्कृति की नियंत्रक शक्तियों के क्षीण हो जाने के कारण हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं ।

प्रश्न 1.
उपभोक्तावादी संस्कृति का समाज में क्या असर हुआ है ?
उत्तर :
उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारी प्राचीन परंपराओं को जड़ से हिला दिया है, इन परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है, हमारी आस्थाओं का क्षरण हुआ है ।

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प्रश्न 2.
पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बनने का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
सांस्कृतिक उपनिवेश बनने का आशय है – अपनी संस्कृति और जीवन शैली को भूलकर किसी अन्य देश की संस्कृति को लंबे समय तक अपनाए रखना सांस्कृतिक उपनिवेश कहलाता है ।

प्रश्न 3.
नई संस्कृति का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?
उत्तर :
नई संस्कृति के अंधानुकरण में हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं । जो अपना है उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ्त में आते जा रहे हैं । अपनी संस्कृति की नियंत्रण शक्तियों के क्षीण होने पर हम दिग्भ्रमित होते जा रहे हैं ।

प्रश्न 4.
‘सांस्कृतिक’, ‘आधुनिकता’ शब्द में से प्रत्यय अलग कीजिए ।
उत्तर :
सांस्कृतिक → इक प्रत्यय
आधुनिकता → ता प्रत्यय ।

अंतत: इस संस्कृति के फैलाव का परिणाम क्या होगा ? यह गंभीर चिंता का विषय है । हमारे सीमित संसाधनों का घोर अपव्यय हो रहा है । जीवन की गुणवत्ता आलू के चिप्स से नहीं सुधरती । न बहुविज्ञापित शीतल पेयों से । भले ही वे अंतर्राष्ट्रीय हो । पीज़ा और बर्गर कितने ही आधुनिक हों, हैं वे कूड़ा खाद्य । समाज में वर्गों की दूरी बढ़ रही है, सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है । जीवन स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है । जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी ।

प्रश्न 1.
लेखक ने गंभीर चिंता का विषय किसे कहा है ? क्यों ?
उत्तर :
लेखक ने पश्चिमी संस्कृति के प्रचार-प्रसार व उसके फलने-फूलने को गंभीर चिंता का विषय कहा है । इसके अपनाने से हमारे संसाधनों का उपयोग नहीं हो पा रहा है और वे नष्ट होते जा रहे हैं ।

प्रश्न 2.
दिखावे की संस्कृति से हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
उत्तर :
दिखावे की संस्कृति से हमारे समाज की नींव हिल जाएगी । समाज में दो वर्गों के बीच दूरी बढ़ेगी, सामाजिक सरोकारों में कमी आएगी, जीवन स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म देगी । सामाजिक अशांति बढ़ेगी ।

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प्रश्न 3.
‘अपव्यय’ तथा ‘अशांति’ शब्द में से उपसर्ग अलग कीजिए ।
उत्तर :
अपव्यय → अप उपसर्ग
अशांति → अ उपसर्ग

सूचना – गद्यांश को पढ़िए; उत्तरों को समझिए ।

मनुष्य का हृदय बड़ा ममत्वप्रेमी है । कैसी भी उपयोगी और कितनी ही सुन्दर वस्तु क्यों न हो जब तक मनुष्य उसे पराई समझता है तब तक उससे प्रेम नहीं करता । किन्तु भद्दी से भद्दी और बिल्कुल काम में न आनेवाली वस्तु को भी यदि मनुष्य अपनी समझता है तो उससे प्रेम करता है । पराई वस्तु कितनी मूल्यवान क्यों न हो उससे नष्ट होने पर मनुष्य कुछ भी दुःख अनुभव नहीं करता, इसलिए कि वह वस्तु उसकी नहीं, पराई है ।

अपनी वस्तु कितनी भही हो, काम में आनेवाली न हो उसके नष्ट होने पर मनुष्य को दुख होता है । कभी-कभी ऐसा भी होता है, कि मनुष्य पराई चीज से प्रेम करने लगता है । ऐसी दशा में भी जबतक मनुष्य उस वस्तु को अपनी बना कर नहीं छोड़ता अथवा अपने ह्रदय में यह विचार दृढ़ नहीं कर लेता कि यह वस्तु मेरी है तब तक उसे सन्तोष नहीं होता । ममत्व से प्रेम उत्पन्न होता है और प्रेम से ममत्य ।

प्रश्न 1.
इस गद्यखण्ड का उचित शीर्षक लिखिए ।
उत्तर :
इस गद्य-खण्ड का उचित शीर्षक ममत्व और प्रेम है ।

प्रश्न 2.
मनुष्य का हृदय कैसा होता है ?
उत्तर :
मनुष्य का हृदय ममत्व प्रेमी होता है ।

प्रश्न 3.
पराई वस्तु के प्रति मनुष्य का विचार कैसा होता है ?
उत्तर :
पराई वस्तु से मनुष्य प्रेम नहीं करता है ।

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प्रश्न 4.
मनुष्य को दुःख का अनुभव कब नहीं होता है ?
उत्तर :
मनुष्य जब तक वस्तु को पराई समझता है ।

प्रश्न 5.
मनुष्य दूसरी वस्तु को अपना कब समझता है ?
उत्तर :
मनुष्य जब तक दूसरी वस्तु से प्रेम करने लगता है तब उसे अपना समझता है ।

उपभोक्तावाद की संस्कृति Summary in Hindi

श्यामाचरण दुबे का जन्म मध्यप्रदेश के बुंदेल खण्ड क्षेत्र में हुआ था । इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की । ये भारत के अग्रणी समाज वैज्ञानिक रहे हैं । मानव और संस्कृति, परंपरा और इतिहास बोध, संस्कृति तथा शिक्षा समाज और भविष्य भारतीय ग्राम, संक्रमण की पीड़ा, विकास का समाजशास्त्र, समय और संस्कृति हिन्दी में उनकी महत्त्वपूर्ण व प्रमुख पुस्तकें हैं ।

डॉ. दुबे ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया तथा अनेक संस्थानों में प्रमुख पदों पर रहे । जीवन, समाज और संस्कृति के जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर उनके विश्लेषण और स्थापनाएँ उल्लेखनीय हैं । भारत की जनजातियों और ग्रामीण जीवन पर केन्द्रित उनके लेखों ने बृहत्तर समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है । वे जटिल विचारों को सरल सहज भाषा में प्रस्तुत करते हैं ।

‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ बाजार की गिरफ्त में आ रहे समाज की वास्तविकता का चित्रण किया गया है । लेखक का मानना है कि आज का मनुष्य वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान न देकर विज्ञापन की चमक-दमक के कारण अनावश्यक वस्तुओं को खरीद रहा है । सम्पन्न व अमीर वर्ग द्वारा प्रदर्शनपूर्ण जीवनशैली अपनाई जा रही है । सामान्य जन भी उन्हीं की तरह का अनुकरण करना चाहते हैं । यह वास्तव में भारतीय सभ्यता के लिए चिंताजनक बात है । लेखक ने इस बात की ओर ध्यान दिलाना ब्राहा है कि जैसे-जैसे यह दिखावे की संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति और विषमता भी बढ़ेगी ।

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पाठ का सार :

नयी जीवन शैली और उपभोक्तावाद :

धीरे-धीरे आप सभी कुछ बदल रहा है । भारतीय समाज में नवीन जीवनशैली ने अपना वर्चस्व स्थापित करता जा रहा है ।। उसी के साथ एक नया जीवन-दर्शन उपभोक्तावाद का दर्शन समाज में जोर पकड़ता जा रहा है । चारों तरफ वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने पर बल दिया जा रहा है । यह उत्पादन हमारे लिए ही है । हमारे उपभोग के लिए हैं । लोगों में सुख की परिभाषा बदल गई है । अब भोग ही सुख है । इस माहौल के कारण एक नई स्थिति ने जन्म लिया है, जो हमारे चरित्र को धीरे-धीरे बदल रही है और हम पूर्ण रूप से उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं ।

विलासितापूर्ण सामग्री से भरा बाजार :

आज का बाजार विलासितापूर्ण सामग्रियों से भरा पड़ा है । विज्ञापनों के जरिए हमें लुभाने की कोशिश की जाती है । बाजार में अनेक प्रकार के टूथपेस्ट हैं, सबका मैजिक फार्मूला है, कोई बबूल या नीम के गुणों से भरपूर है, कोई वनस्पति और खनिज तत्त्वों के मिश्रण से बना है । जो चाहे चुन लीजिए । पेस्ट के साथ ब्रश भी अच्छी क्वालिटी का होना चाहिए । एक से बढ़कर एक ब्रश आपको बाजार में मिल जाएँगे । मुँह की दुर्गध से बचने के लिए माउथवॉश भी चाहिए । इसकी भी बड़ी लम्बी सूची है । हम बहुविज्ञापित और कीमती ब्रांड ही खरीदना चाहते हैं । जिससे हमारा बिल भी ज्यादा होगा।

सौन्दर्य सामग्रियों की भीड़ :

दिन – प्रतिदिन सौन्दर्य-प्रसाधनों में वृद्धि होती जा रही है । कोई साबुन हल्की सुगंधवाला है, तो कोई पसीना रोकता है, कोई शरीर को ताजगीभरा रखता है, कोई जर्स से बचाता है, यों बाजार में अनेक प्रकार के साबुन मिल जाएँगे । सँभ्रांत महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार की सौन्दर्य सामग्री होना आम बात है । विदेश की वस्तुओं को मंगाना हमारी हैसियत का प्रतीक बन गई है । सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग अब पुरुषों द्वारा भी खूब किया जाने लगा है । तेल-साबुन से काम चलानेवाले पुरुषों की सौन्दर्य सामग्री में इजाफा हुआ है । वे भी अब आफ्टर शेव लोशन और कोलोन लगाने लगे हैं ।

फैशन और हैसियत दिखाने के लिए खरीददारी :

आजकल बाजारों में जगह-जगह बुटीक खुल गये हैं । नये, ट्रेंडी व मँहँगे परिधान आ गये हैं । पहले के कपड़ों का फैशन अब नहीं रहा । महँगे से महँगे परिधान लोग अपनी हैसियत के अनुसार खरीदने लगे हैं । समय देखने के लिए घड़ी चंद रुपयों में मिल जाती है, परन्तु अपनी हैसियत और फैशनपरस्ती दिखाने के लिए पचास-साठ हजार से लेकर एक डेढ़ लाख रुपयों की घड़ी खरीदते हैं ।

जब कि काम तो वह भी वही करती है जो कम दामों की घड़ी करती है । कीमती म्यूजिक सिस्टम और कम्प्यूटर लोग दिखाये के लिए खरीदते हैं । पाँच सितारा होटल में विवाह करने का ट्रेंड शुरू हो गया है । इलाज व पढ़ाई के लिए भी लोग महंगे से महेंगे अस्पताल व स्कूल का चयन करते हैं । ये सब कुछ मनुष्य अपने आपको अत्याधुनिक बताने के लिए करता है ।

उपभोक्तावाद का सामान्य लोगों पर प्रभाव :

कई बार प्रतिष्ठा के अनेक रूप अशोभनीय होते हैं पर उपभोक्तावादी लोग इसकी तनिक भी परवाह नहीं करते । यह सब समाज का एक विशिष्ट वर्ग अपना रहा है और सामान्य जन उसे अपनाने के बारे में सोचता है । समाज का एक वर्ग इसे ‘राइट च्याइरा बेबी’ मान बैठा है।

उपभोक्तावादी संस्कृति का कुप्रभाव :

उपभोक्तावाद के प्रसार के मूल में सामंती संस्कृति है । उपभोक्तावाद के फैलाव से हमारी परंपराओं का अवमूल्यन और आस्थाओं का बहुत नुकसान हुआ है । हम बौद्धिक दासता का अंधानुकरण कर पश्चिम के सांस्कृतिक का उपनिवेश बन रहे हैं । हम इस नई संस्कृति और आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं । हमारी अपनी परम्परा क्षीण होती जा रही है और हम नकली आधुनिकता के शिकार हो रहे हैं । विज्ञापनों के कारण हमारी मानसिकता बदल गई हैं । उपभोक्तावाद का प्रसार वास्तव में चिंता का विषय है । इससे संसाधनों का अपव्यय हो रहा है । इससे समाज के वर्गों की दूरियाँ बढ़ रही हैं । सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही हैं । हमारी सांस्कृतिक अस्मिता धीरे-धीरे अपनी पहचान ‘खोती जा रही है ।

उपभोक्तावाद : एक चुनौती :

दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, इससे सामाजिक अशांति बढ़ेगी । मनुष्य का नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे हैं । मर्यादाएँ टूट रही हैं । व्यक्ति स्वकेंद्रित बनता जा रहा है । भोग की आकांक्षाएँ आसमान छू रही हैं । यह हम सभी के लिए एक चुनौती है कि मनुष्य की यह दौड़ किस बिन्दु पर रुकेगी । उपभोक्ता संस्कृति ने हमारी सामाजिक नींव को हिला दिया है । भविष्य में यह हम सब के लिए एक चुनौती है।

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शब्दार्थ व टिप्पण :

  • जीवन-शैली – जीने का तरीका
  • वर्चस्व – अधिकार; दबदबा, प्रधानता
  • स्थापित – जमाना
  • उपभोक्तावाद – उपभोग को सर्वस्य मान लेना
  • उत्पादन – वस्तुएँ बनाना
  • व्याख्या – विस्तारपूर्वक समझाना
  • बदलाव – परिवर्तन
  • उत्पाद – उत्पादित वस्तु
  • माहौल – वातावरण
  • समर्पित – पूर्ण रूप से जुड़ना
  • विलासिता – अत्यधिक सुख-सुविधा का उपभोग
  • निरंतर – लगातार
  • दुर्गध – बदबू, मैजिक
  • फार्मूला – जादुई सूत्र
  • स्वीकृत – स्वीकार किया हुआ
  • माउथवाश – मुँह साफ करने का तरल पदार्थ
  • बहुविज्ञापित – बार-बार जिनका विज्ञापन दिया गया हो वह, सौंदर्य
  • प्रसाधन – सुंदरता बढ़ानेवाली सामग्री
  • चमत्कृत – हैरान
  • तरोताज़ा – ताजगी से भरपूर
  • जर्स – कीटाण
  • निखार – चमक
  • संभ्रांत – अमीर
  • परफ्यूम – सुगंधित पदार्थ
  • प्रतिष्ठा-चिह्न – सम्मान का प्रतीक
  • हैसियत – शक्ति; ताकत, आफ्टर
  • शेव – दाढ़ी बनाने के बाद लगाया जानेवाला पदार्थ
  • अनंत – असीम
  • मंद – धीमा
  • हास्यास्पद – मजाक उड़ाने योग्य
  • निगाह – दृष्टि
  • राइट चाइस – सही चुनाय
  • सामंती संस्कृति – सामंत (जागीरदारों) की संस्कृति
  • अस्मिता – पहचान
  • अवमूल्यन – गिरावट
  • आस्था – विश्वास
  • क्षरण – नाश
  • बौद्धिक दासता – बुद्धि से गुलाम होना
  • अनुकरण – नकल
  • प्रतिमान – मापदंड, कसौटी
  • प्रतिस्पर्धा – मुकाबला
  • छद्म – बनावटी
  • गिरफ्त – कैद
  • क्षीण – कमजोर
  • दिग्भ्रमित – राह से भटक जाना, दिशा भ्रम होना
  • प्रसार – फैलावा
  • सम्मोहन – आकर्षण
  • वशीकरण – वश में करना
  • अपव्यय – फिजूल खर्ची
  • पेय – पीने योग्य
  • सरोकार – संबंध
  • आक्रोश – गुस्सा
  • विराट – विशाल
  • व्यक्ति केंद्रितता – अपने तक सीमित
  • परमार्थ – लोक कल्याण कार्य
  • आकांक्षाएँ – इच्छाएँ
  • बुनियाद – नींव
  • कायम – स्थिर
  • उपनिवेश – वह विजित देश जिसमें विजेता राष्ट्र के लोग आकर बस गये हों
  • तात्कालिक – उसी समय ।

उपभोक्ता संस्कृति का हमारे सामाजिक मूल्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?

(क) उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव अत्यंत सूक्ष्म है। इसके प्रभाव में आकर हमारा चरित्र बदलता जा रहा है। हम उत्पादों का उपभोग करते-करते उनके गुलाम होते जा रहे हैं। यहाँ तक कि हम जीवन का लक्ष्य ही उपभोग करना मान बैठे हैं।

उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा गया है?

गाँधी जी चाहते थे कि हम भारतीय अपनी बुनियाद पर कायम रहें, अर्थात् अपनी संस्कृति को न त्यागें। परंतु आज उपभोक्तावादी संस्कृति के नाम पर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मिटाते जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने उपभोक्तावादी संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है।

लोगों की दृष्टि में सुख क्या होता है?

Answer: लेखक के अनुसार उपभोग का भोग करना ही सुख है। अर्थात् जीवन को सुखी बनाने वाले उत्पाद का ज़रूरत के अनुसार भोग करना ही जीवन का सुख है।

उपभोक्तावाद की संस्कृति से क्या नुकसान है?

उपभोक्तावादी संस्कृति से समाज में वर्गों के बीच दूरी बढ़ रही है। सामाजिक सरोकार कम होते जा रहे हैं। इससे व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ रही है। नैतिक मापदंड तथा मर्यादाएँ कमज़ोर पड़ती जा रही हैं।