वसंत ऋतु में नीलकंठ जाली के बाड़े में अस्थिर क्यों हो उठता था? - vasant rtu mein neelakanth jaalee ke baade mein asthir kyon ho uthata tha?

प्रश्न 15-4. 'इस आनंदोंत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा' - वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?

उत्तर : यह वाक्य लेखिका द्वारा कुब्जा मोरनी को लाने की ओर संकेत कर रहा है। कुब्जा मोरनी के आने से पहले नीलकंठ, राधा और अन्य पशु-पक्षी बाड़े में आराम से रह रहे थे जिसे लेखिका ने आनंदोंत्सव की रागिनी कहा है। परन्तु कुब्जा मोरनी के आ जाने से वहाँ अशांति फ़ैल गयी। वह स्वभाव से मेल-मिलाप वाली न थी। ईर्ष्यालु प्रकृति की होने के कारण वह नीलकंठ और राधा को साथ न देख पाती थी। उसने राधा के अंडे भी तोड़ डाले थे। नीलकंठ अप्रसन्न रहने लगा था और अंत में यह उसकी मृत्यु का कारण बना।

प्रश्न 15-6. जालीघर में रहनेवाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?

उत्तर : कुब्जा का स्वभाव मेल-मिलाप वाला न था। ईर्ष्यालु होने के कारण वह सबसे झगड़ा करती रहती थी और अपनी चोंच से नीलकंठ के पास जाने वाले हर-एक पक्षी को नोंच डालती थी। वह किसी को भी नीलकंठ के पास आने नहीं देती थी यहाँ तक की उसने इसी ईर्ष्यावश राधा के अंडें भी तोड़ दिए थे। इसी कारण वह किसी की मित्र न बन सकी।

वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?

विषयसूची Show

  • वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जाली घर में रहना असहनीय क्यों हो जाता था?
  • वसंत ऋतु में नीलकंठ जाली के बाड़े में अस्थिर क्यों हो उठता था?
  • नीलकंठ सबसे अधिक प्रसन्न कब होता है?
  • क्या नीलकंठ भी अपनी मुक्ति के लिए प्रयास करता होगा आपको क्या लगता है?

वसंत ऋतु के आरम्भ होते ही अपने स्वभाव के कारण नीलकंठ अस्थिर हो उठता था। वर्षा ऋतु में जब आम के वृक्ष मंजरियों से लद जाते थे। अशोक का वृक्ष नए गुलाबी पत्तों से भर जाता, तो वह बाड़े में स्वयं को रोक नहीं पाता था । उसे मेघों के उमड़ आने से पूर्व ही इस बात की आहट हो जाती थी कि आज वर्षा अवश्य होगी। वह उसका स्वागत करने के लिए अपने स्वर में मंद केका करने लगता और उसकी गूँज सारे वातावरण में फैल जाती थी। उस वर्षा में अपना मनोहारी नृत्य करने के लिए वह अधीर हो उठता और जालीघर से निकलने के लिए छटपटा जाता था।

Concept: गद्य (Prose) (Class 7)

  Is there an error in this question or solution?

वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जाली घर में रहना असहनीय क्यों हो जाता था?

उत्तर:- नीलकंठ को फलों के वृक्षों से भी अधिक पुष्पित व पल्लवित (सुगन्धित व खिले पत्तों वाले) वृक्ष भाते थे। इसीलिये जब वसंत में आम के वृक्ष मंजरियों से लदे जाते और अशोक लाल पत्तों से ढक जाता तो नीलकंठ के लिए जालीघर में रहना असहनीय हो जाता तो उसे छोड़ देना पडता।

वसंत ऋतु में नीलकंठ जाली के बाड़े में अस्थिर क्यों हो उठता था?

वसंत ऋतु के आरम्भ होते ही अपने स्वभाव के कारण नीलकंठ अस्थिर हो उठता था। वर्षा ऋतु में जब आम के वृक्ष मंजरियों से लद जाते थे। अशोक का वृक्ष नए गुलाबी पत्तों से भर जाता, तो वह बाड़े में स्वयं को रोक नहीं पाता था । उसे मेघों के उमड़ आने से पूर्व ही इस बात की आहट हो जाती थी कि आज वर्षा अवश्य होगी।

नीलकंठ सबसे अधिक प्रसन्न कब होता है?

नीलकंठ सबसे अधिक प्रसन्न कब होता था? Solution : वर्षा ऋतु में जब आकाश बादलों से ढक जाता था, वसन्त की ऋतु में आम के वृक्ष सुनहली मंजरियों से लद जाते थे और अशोक के वृक्ष जब नए लाल पल्लवों से ढक . जाते थे, तब नीलकंठ अत्यधिक प्रसन्न होता था

क्या नीलकंठ भी अपनी मुक्ति के लिए प्रयास करता होगा आपको क्या लगता है?

उसको देखकर सब पशु-पक्षी तो भाग गए पर सिर्फ़ एक खरगोश का शावक न भाग पाया और साँप उसे निगलने का प्रयास करने लगा। खरगोश का शावक उसकी कैद से छूटने के प्रयास में क्रंदन करने लगा।

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 15 नीलकंठ

These NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 15 नीलकंठ Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts.

नीलकंठ NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 15

Class 7 Hindi Chapter 15 नीलकंठ Textbook Questions and Answers

निबंध से

प्रश्न 1.
मोर मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए ?
उत्तर:
मोर की गरदन नीली थी इसलिए उसका नाम नीलकंठ रखा गया। मोरनी सदैव मोर के आस-पास ही रहती थी। वह उसका साथ बिल्कुल भी नहीं छोड़ती थी। वह सदा उनका अनुसरण करती रहती थी। अतः उसका नाम राधा रख दिया।

प्रश्न 2.
जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ ?
उत्तर:
जालीघर में पहुंचने पर दोनों नवागंतुकों ने पहले से रहने वालों में वैसा ही कुतूहल जगाया जैसा नववधू के आगमन पर परिवार में स्वाभाविक है। लक्का कबूतर नाचना छोड़कर दौड़ पड़े और उनके चारों ओर घूम-घूमकर गुटरगूं-गुटरगूं की रागिनी अलापने लगे। बड़े खरगोश सभ्य सभासदों के समान क्रम से बैठकर गंभीर भाव से उनका निरीक्षण करने लगे। ऊन की गेंद जैसे छोटे खरगोश उनके चारों ओर उछलकूद मचाने लगे। तोते मानो भली-भाँति देखने के लिए एक आँख बंद करके उनका परीक्षण करने लगे। उस दिन मेरे चिड़ियाघर में मानो भूचाल आ गया।

प्रश्न 3.
लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं ?
उत्तर:
लेखिका को नीलकंठ की निम्नलिखित चेष्टाएँ भाती थीं-
लेखिका को नीलकंठ का झूले से उतरकर अपने पंखों का सतरंगी छाता तानकर नृत्य भंगिमा में खड़ा होना बहुत अच्छा लगता था।

नीलकंठ द्वारा हथेली से भुने चने खाना बहुत भाता था। मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर जब वह नाचता था, तब उस नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता था। आगे-पीछे, दाहिने-बाएँ क्रम से घूमकर वह किसी अलक्ष्य सम पर ठहर-ठहर जाता था।

प्रश्न 4.
‘इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’-वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर:
यह वाक्य उस घटना की ओर संकेत कर रहा है जब लेखिका चिड़िया बेचने वाले बड़े मियाँ से एक घायल मोरनी खरीद लाई। उस मोरनी के घर में आने पर नीलकंठ एवं राधा का सारा आनंद समाप्त हो गया। उसने उनके अंडों को भी तोड़ दिया था। वह राधा को नीलकंठ के पास नहीं जाने देती थी। लेखिका ने उस मोरनी का नाम उसके रूप के अनुसार ही कुब्जा रखा था।

प्रश्न 5.
वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?
उत्तर:
मोर को वसंत ऋतु और वर्षा ऋतु बहुत भाती है। नीलकंठ भी भला इस ऋतु में जालीघर में क्यों बंद रहता, उसका मन नाचने के लिए मचल उठता था। अतः वसंत में जब आम के वृक्ष सुनहली मंजरियों से लद जाते थे, अशोक नए लाल पल्लवों से ढक जाता था, तब जालीघर में वह इतना अस्थिर हो उठता कि उसे बाहर छोड़ देना पड़ता।

प्रश्न 6.
जालीघर में रहने वाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?
उत्तर:
जालीघर में रहने वाले सभी जीव जंतु आपस में स्नेह का भाव रखते थे उनको एक दूसरे से ईर्ष्या नहीं थी। कुब्जा मोरनी का स्वभाव ईष्यालु था। वह सभी के साथ बैरभाव रखती थी। राधा को तो वह नीलकंठ के पास फटकने ही नहीं देती थी। उसने चोंच मार-मारकर उसके अंडों को तोड़ दिया था। कुब्जा अपने स्वभाव के कारण किसी की भी मित्र नहीं बन पाई।

प्रश्न 7.
नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया ? इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक दिन की घटना थी कि एक साँप जाली के भीतर पहुँच गया। सब जीव-जंतु भागकर इधर-उधर छिप गए, केवल एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ गया। निगलने के प्रयास में साँप ने उसका आधा पिछला शरीर तो मुँह में दबा रखा था, शेष आधा जो बाहर था, उससे चीं-चीं का स्वर भी इतना तीव्र नहीं निकल पा रहा था कि किसी को स्पष्ट सुनाई दे सके। नीलकंठ दूर ऊपर झूले में सो रहा था। उसी के चौकन्ने कानों ने उस मंद स्वर की व्यथा पहचानी और वह पूँछ-पंख समेटकर सर्र से एक झपट्टे में नीचे आ गया। संभवतः अपनी सहज चेतना से ही उसने समझ लिया होगा कि साँप के फन पर चोंच मारने से खरगोश भी घायल हो सकता है।

उसने साँप के फन को पंजों में दबाया और फिर चोंच से इतने प्रहार किए वह अधमरा हो गया। पकड़ ढीली पड़ते ही खरगोश का बच्चा मुख से निकल आया, इस प्रकार उसके प्राणों की रक्षा हुई। इस घटना से नीलकंठ के स्वभाव की निम्नलिखित विशेषताएँ प्रकट होती हैं।

नीलकंठ साहसी था।
नीलकंठ दूसरों की सहायता के लिए सदा तत्पर रहता था।
उसका स्वभाव दयालु था। वह किसी का दुःख देख नहीं सकता था।

निबंध से आगे

प्रश्न 1.
यह पाठ एक ‘रेखाचित्र’ है। रेखाचित्र की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं ? जानकारी प्राप्त कीजिए और लेखिका के लिखे किसी अन्य रेखाचित्र को पढ़िए।
उत्तर:
शब्दों के द्वारा किसी जीव-जंतु अथवा मनुष्य का ऐसा चित्रण करना कि वह हमारे सामने एकदम जीवंत हो उठे रेखाचित्र कहलाता है। रेखाचित्र पूरी तरह से सत्य घटना पर आधारित होता है। कल्पना के लिए इसमें कोई स्थान नहीं होता। रेखाचित्र हमें यथार्थ का ज्ञान कराता है। महादेवी वर्मा ने विभिन्न पशु-पक्षियों एवं आदमियों से जुड़े रेखाचित्र प्रस्तुत किए हैं। उनके द्वारा रचित ‘पथ के साथी’ एवं ‘अतीत की स्मृतियाँ’ रेखाचित्रों का संकलन है। ये सभी पुस्तकालयों में उपलब्ध रहते हैं।

प्रश्न 2.
वर्षा ऋतु में जब आकाश में बादल घिर आते हैं तब मोर पंख फैलाकर धीरे-धीरे मचलने लगता है-यह मोहक दृश्य देखने का प्रयास कीजिए।
पुस्तकालय से ऐसी कहानियों, कविताओं या गीतों को खोजकर पढ़िए जो वर्षा ऋतु और मोर के नाचने से संबंधित हों।
छात्र-कक्षा नवम् ‘अ’ पाठ्यक्रम’ क्षितिज भाग-1 से सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘मेघ आए’ पढ़ें।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
निबंध में आपने ये पंक्तियाँ पढ़ी हैं-‘मैं अपने शाल में लपेटकर उसे संगम ले गई। जब गंगा की बीच धार में उसे प्रवाहित किया गया तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित-प्रतिबिंबित होकर गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा।’-इन पंक्तियों में एक भावचित्र है। इसके आधार पर कल्पना कीजिए और लिखिए कि मोरपंख की चंद्रिका और गंगा की लहरों में क्या-क्या समानताएँ लेखिका ने देखी होंगी जिसके कारण गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर पंख के समान तरंगित हो उठा।
उत्तर:
जिस प्रकार वृत्ताकार मोर के पंख थे उसी प्रकार लेखिका ने जब मोर को गंगा में प्रवाहित किया तो गंगा में वृत्ताकार छोटी-छोटी लहरें चारों ओर फैल गईं।

प्रश्न 2.
नीलकंठ की नृत्य-भंगिमा का शब्द चित्र प्रस्तुत करें।
उत्तर:
नीलकंठ मेघों को गरजते देखकर जालीघर से बाहर आने के लिए बेचैन हो उठता था। वह अपने पंखों को मंडालाकार रूप में करके नृत्य मुद्रा में आ जाता था। मेघों को देखकर उसका केकारव तीव्र होता जाता था। जब वर्षा की रिमझिम शुरू हो जाती थी तो धीरे-धीरे उसका केकारव मंद पड़ने लगता था। वह पूरी तरह से नृत्य में मग्न हो जाता था। उसकी नृत्य भंगिमा बहुत चित्ताकर्षक होती थी।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
‘रूप’ शब्द से कुरूप, स्वरूप, बहुरूप आदि शब्द बनते हैं। इसी प्रकार नीचे लिखे शब्दों से अन्य शब्द बनाओ-
गंध, रंग, फल, ज्ञान।
उत्तर:
गंध – सुगंध, दुर्गंध, गंधयुक्त
रंग – बदरंग, रंगीला, रंगहीन, रंगत, रंगीन
फल – निष्फल, फलित, सुफल, फलदार, फलीभूत
ज्ञान – अज्ञान, विज्ञान, ज्ञानी, अज्ञानी

विस्मयाभिभूत शब्द विस्मय और अभिभूत दो शब्दों के योग से बना है। इसमें विस्मय के य के साथ अभिभूत के अ के मिलने से या हो गया है। अ आदि वर्ण है। ये सभी वर्ण-ध्वनियों में व्याप्त हैं। व्यंजन वर्गों में इसके योग को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जैसे-क् + अ = क इत्यादि। अ की मात्रा के चिह्न (1) से आप परिचित हैं। अ की भाँति किसी शब्द में आ के भी जुड़ने से अकार की मात्रा ही लगती है, जैसे-मंडल + आकार = मंडलाकार। मंडल और आकार की संधि करने पर (जोड़ने पर) मंडलाकार शब्द बनता है और मंडलाकार शब्द का विग्रह करने पर (तोड़ने पर) मंडल और आकार दोनों अलग होते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के संधि-विग्रह कीजिए-
नील + आभ = ………………
सिंहासन = …………..
नव + आगंतुक = …………
मेघाच्छन्न = ……………
संधि
उत्तर:
नील + आभ = नीलाभ
नव + आगंतुक = नवागंतुक

विच्छेद
सिंहासन – सिंह + आसन
मेघाच्छन्न – मेघ + आच्छन्न

कुछ करने को

चयनित व्यक्ति/पशु पक्षी की खास बातों को ध्यान में रखते हुए एक रेखाचित्र बनाइए।

प्रिय नेता – सुभाष चंद्र बोस

मालती के फूल की तरह मनस्वी लोगों की दो प्रमुख स्थितियाँ होती हैं या तो वे संसार के एकांत में पड़े रह जाते हैं या संसार के सिर पर मुकुट की तरह शोभा पाते हैं। ‘जय हिंद’ का मंत्र देने वाले महान् देश-भक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे ही मनस्वी थे। इस वीर योद्धा का नाम हमारे स्वाधीनता आंदोलन के सुनहरे पृष्ठों पर लिखा जा चुका है। सुभाष चंद्र बोस की माँ प्रभावती उन्हें ‘सुब्बी’ कहकर पुकारती थी। अपनी माता के बड़े लाडले थे सुभाष । माँ ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका दुलारा ‘सुब्बी’ एक दिन भारत में ही नहीं वरन् पूरी दुनिया में नेता जी के नाम से लोकप्रिय होगा। नेता जी सुभाष का नाम हर भारतवासी के हृदय में सुगंध की तरह बस गया है।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. मोर के सिर ……………….. आँका जा सकता।

प्रश्न 1.
नीलकंठ मोर के सौंदर्य का वर्णन कीजिए। .
उत्तर:
मोर के सिर पर कलगी गहरी चमकीली और ऊँची लगने लगी थी। उसकी चोंच टेढ़ी और पैनी हो गई। उसकी गोल आँखों में मीली चमक दिखाई देने लगी थी। उसकी गरदन पर नीला-गहरा रंग झलकने लगा था। उसके दोनों पंख सफेद एवं सलेटी आलेखन स्पष्ट होने लगे थे।

प्रश्न 2.
इस गद्यांश में मोर के किन-किन अंगों की सुंदरता का वर्णन किया गया है ?
उत्तर:
इस गद्यांश में मोर की कलगी, चोंच, आँखों, गरदन, पंखों, पूँछ और पैरों का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 3.
लेखिका ने यह क्यों कहा कि ‘गति का चित्र नहीं आंका जा सकता’ ?
उत्तर:
मोर बहुत चंचल पक्षी होता है। वह निरंतर तरह-तरह की क्रियाएँ करता रहता है। वह क्षणभर के लिए भी स्थिर नहीं होता इसलिए लेखिका ने ऐसा कहा है।

2. राधा नीलकंठ के …………………. उपाधि दे डाली।

प्रश्न 1.
लेखिका ने राधा की क्या विशेषता बताई है ?
उत्तर:
राधा नीलकंठ की तरह नाच नहीं सकती थी परंतु वह नृत्य मग्न नीलकंठ के कभी दाईं ओर से बाईं ओर कभी बाईं ओर से दाईं ओर चक्कर लगाती रहती थी।

प्रश्न 2.
लेखिका के जालीघर के पास आने पर नीलकंठ किस मुद्रा में आ जाता था ?
उत्तर:
लेखिका के जालीघर के पास आने पर नीलकंठ झूले से उतरकर नीचे आ जाता और अपने पंखों का मंडलाकर छाता बनाकर नृत्य मुद्रा में आ जाता था।

प्रश्न 3.
विदेशी मेहमान नीलकंठ को देखकर विस्मयाभिभूत क्यों हो उठते थे ?
उत्तर:
लेखिका के जालीघर के पास आने पर नीलकंठ जिस मुद्रा में आ जाता था लेखिका के साथ आए मेहमान उसकी उस मुद्रा को अपने प्रति सम्मानपूर्वक समझकर विस्मयाभिभूत हो जाते थे।

प्रश्न 4.
विदेशी महिलाओं ने नीलकंठ को क्या उपाधि दी ?
उत्तर:
विदेशी महिलाओं ने नीलकंठ को ‘परफैक्ट जेंटिलमैन’ की उपाधि दी।

3. नीलकंठ और राधा की ………………….. भी एक करुण कथा है।

प्रश्न 1.
नीलकंठ और राधा को कौन-सी ऋतु प्रिय थी। वे इस मौसम में किस प्रकार आनंदित होते थे ?
उत्तर:
वर्षा ऋतु नीलकंठ और राधा की प्रिय ऋतु थी। मेघों के गर्जन करते ही वे नृत्य करने लगते थे। मेघों के आने से पहले ही उनको उनकी सजल (जलयुक्त) आहट आने लगती थी।

प्रश्न 2.
मेघों के आने पर उनका केकारव कैसा हो जाता था ?
उत्तर:
मेघों के आने पर नीलकंठ व राधा का मंद केकारव निरंतर तीव्र से तीव्रतर होता चला जाता था। ऐसा लगता था मानो वे आकाश से मेघों की बूंदों को उतारने के लिए सीढ़ी बना रहे हों।

प्रश्न 3.
मेघों के गर्जन, बिजली की चमक और वर्षा की रिमझिमाहट बढ़ने के साथ-साथ नीलकंठ में क्या परिवर्तन आने लगता था ?
उत्तर:
जैसे ही मेघ गरजने लगते, बिजली चमकने लगती और वर्षा की बूंदों की रिमझिम बढ़ने लगती वैसे ही नीलकंठ का केकारव मंद्र से मंद्रतर होने लगता।

4. वास्तव में नीलकंठ ………………… दृष्टि लगाए रहती थी।

प्रश्न 1.
नीलकंठ न तो बीमार था और न घायल ही फिर भी उसकी मृत्यु हुई ऐसा क्यों हुआ होगा ?
उत्तर:
नीलकंठ को कुब्जा के व्यवहार से बहुत ही मानसिक आघात पहुँचा था। कुब्जा ने उसके अंडों को भी तोड़ दिया था। कुब्जा राधा को नीलकंठ के पास नहीं आने देती थी। इस कलह कोलाहल के कारण ही शायद नीलकंठ का अंत हो गया।

प्रश्न 2.
लेखिका ने नीलकंठ का अंतिम संस्कार किस प्रकार किया ?
उत्तर:
लेखिका नीलकंठ के शव को अपने शाल में लपेटकर संगम तट पर ले गई। वहाँ उन्होंने उसे गंगा की धार में प्रवाहित कर दिया।

प्रश्न 3.
नीलकंठ की मृत्यु के बाद राधा की कैसी दशा हुई ?
उत्तर:
नीलकंठ की मृत्यु के बाद राधा निश्चेष्ट-सी घर के एक कोने में बैठी रही। वह अब भी इस इंतजार में कि शायद नीलकंठ लौट आए। क्योंकि नीलकंठ कई बार घर से चले जाने के बाद फिर लौट आता था। इसी भाव से वह द्वार पर दृष्टि लगाए रहती थी।

नीलकंठ Summary

पाठ का सार

लेखिका महादेवी वर्मा अपने किसी अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थी कि उनको चिड़ियाँ और खरगोशों की दुकान का ध्यान आया। उन्होंने अपने ड्राइवर से मियाँ- चिड़िया वाले की दुकान की ओर चलने को कहा। वे दुकान पर पहुंची और मियाँ- चिड़िया वाला बोला कि आपने पिछली बार मोर के बच्चों के लिए पूछा था मैंने एक शिकारी से आपके लिए बच्चे खरीद लिए। बड़े मियाँ की भाषण मेल चलती ही जा रही थी अतः लेखिका पैंतीस रुपये में उन मोर के दोनों बच्चों को खरीद कर घर ले आई। घर पहुँचने पर सबने कहा कि ये मोर नहीं तीतर के बच्चे हैं, आपको ठग लिया है। लेखिका ने उन बच्चों का पिंजरा अपने पढ़ने वाले कमरे में रखकर खोला। वे दोनों इधर-उधर लुका छिपी खेलने लगे। बिल्ली के डर के कारण उनको पिंजरे में ही रखना पड़ता था। इनको देखकर लेखिका के घर में रहने वाले कबूतर, खरगोश, तोते सभी में कुतूहल जागा।

धीरे-धीरे मोर के बच्चे बड़े होने लगे। मोर के सिर पर कलगी सघन और ऊँची तथा चमकीली हो गई। चोंच अधिक बंकिम और पैनी हो गई। लंबी नील-हरित ग्रीवा बहुत सुंदर लगने लगी। लेखिका ने इसका नाम नीलकंठ रखा। मोरनी का विकास मोर जितना चमत्कारिक तो नहीं था परन्तु वह अपनी मंथर गति से मोर की उपयुक्त सहचरी होने का प्रभाव देने लगी। नीलकंठ लेखिका के घर में रहने वाले सभी जीव जंतुओं का सेनापति बन गया। खरगोश के छोटे बच्चों को वह चोंच से उनके कान पकड़कर उठा लेता था। एक दिन वहाँ जाली में एक साँप आ गया। एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ गया। वह उसे निगलने का प्रयास कर रहा था कि नीलकंठ ने उसके फन को पंजों से दबाकर चोंच से प्रहार किया इस प्रकार खरगोश मुक्त हो गया और साँप के भी नीलकंठ ने दो खंड कर दिए।

नीलकंठ जब आकाश में बादल होते थे तो वह इंद्र धनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर नाचता था। राधा नीलकंठ के समान तो नहीं नाच सकती थी परन्तु नीलकंठ की परिक्रमा से एक पूरक ताल का परिचय अवश्य मिलता था। नीलकंठ का नृत्य बहुत अच्छा लगता था। वह भी यह बात जान गया था अतः वह अब प्रतिदिन अपना नृत्य कौशल दिखाने लगा था। कुछ विदेशी मेहमानों ने भी उसका नृत्य देखा उन्होंने उसको ‘परफैक्ट अँटिलमैन’ की उपाधि से विभूषित कर दिया। जैसे ही वर्षा ऋतु की रिमझिम शुरू होती नीलकंठ का नृत्य आरंभ हो जाता।

नीलकंठ की इस सुखद नृत्य कथा का अंत भी एक दिन हुआ। लेखिका बड़े मियाँ के यहाँ से एक घायल मोरनी ले आई। लेखिका ने उसका इलाज करके उसके प्राण बचाए लेखिका ने उसका नाम कुब्जा रखा क्योंकि घायल होने के कारण उसकी चाल-ढाल बदल गई थी। वह नीलकंठ के पास राधा को भी नहीं जाने देती थी। इस घटना से नीलकंठ उदास रहने लगा। कुब्जा ने राधा के अंडों को भी चोंच मारकर गिरा दिया। नीलकंठ बहुत उदास रहने लगा था। कई महीने बीतने के बाद एक दिन वह मरा हुआ मिला। उसकी मृत्यु का कारण तो पता नहीं चला। लेखिका उसे अपने शाल में लपेट कर गंगा में प्रवाहित कर आई। नीलकंठ के न रहने पर राधा भी निष्चेष्ट-सी बैठी रहने लगी। एक दिन अल्सेशियन कुतिया कजली के दाँत लगने से कुब्जा भी घायल हो गई उसे बचाया नहीं जा सका।

अब राधा कभी ऊँचे झूले पर और कभी अशोक की डाल पर अपनी केका को तीव्रतर करके नीलकंठ को बुलाती रहती है।

शब्दार्थ- चिडिमार-चिड़िया को मारने वाला शिकारी; अनुसरण-नकल करना, पीछे चलना; संकीर्ण-सँकरा/छोटा; मुनासिब-उचित; पक्षी-शावक-पक्षी का बच्चा; आश्वस्त-तसल्ली; आविर्भूत-प्रकट होना; नवागंतुक-नया-नया आया हुआ मेहमान; मार्जारी-बिल्ली; असह्य-न सहने योग्य; कायाकल्प-शरीर में बहुत भारी परिवर्तन आना; बंकिम-टेढ़ी; नीलाभ-नीली चमक; उद्दीप्त-चमक उठना; भंगिमा-मुद्रा; सहचारिणी-पत्नी/साथ-साथ चलने वाली, विचरण करने वाली; ग्रीवा-गर्दन; आर्तक्रंदन-दर्द भरे स्वर में रोना; उष्णता-गर्मी; कार्तिकेय-कृतिका नक्षत्र में उत्पन्न शिव के पुत्र, देवताओं के सेनापति; विस्मयाभिभूत-आश्चर्य से आनंदमग्न होना; पुष्पित और पल्लवित-फूलों और पत्रों से लदा हुआ; मंजरिया-आम का बौर या फूल; केका-मोर की ध्वनि (आवाज)।