विष्णु भगवान के बेटा कौन है? - vishnu bhagavaan ke beta kaun hai?

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विष्णु भगवान के बेटा कौन है? - vishnu bhagavaan ke beta kaun hai?
विष्णु भगवान के बेटा कौन है? - vishnu bhagavaan ke beta kaun hai?

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लक्ष्मी के 18 पुत्रों के नाम : भगवती लक्ष्मी के 18 पुत्र वर्ग कहे गए हैं। इनके नामों का प्रति शुक्रवार जप करने से मनोवांछित धन की प्राप्ति होती है।


*ॐ देवसखाय नम:
*ॐ चिक्लीताय नम:
*ॐ आनन्दाय नम:

*ॐ कर्दमाय नम:
*ॐ श्रीप्रदाय नम:

*ॐ जातवेदाय नम:
*ॐ अनुरागाय नम:*ॐ सम्वादाय नम:
*ॐ विजयाय नम:
*ॐ वल्लभाय नम:
*ॐ मदाय नम:
*ॐ हर्षाय नम:
*ॐ बलाय नम:
*ॐ तेजसे नम:
*ॐ दमकाय नम:
*ॐ सलिलाय नम:
*ॐ गुग्गुलाय नम:
*ॐ कुरुण्टकाय नम:।

अगले पन्ने पर क्या विष्णु के अप्सराओं से उत्पन्न सौ पुत्र थे...

भगवान शिव और विष्णु के इस पुत्र के बारे में नहीं जानते होंगे आप

amarujala.com- Presented by: किरण सिंह Updated Tue, 11 Jul 2017 11:34 AM IST

भगवान शिव और भगवान विष्‍णु के बारे में तो सभी जानते है, लेकिन क्या आप इन दोनों के पुत्र के बारे में जानते हैं। आप ये जानकर एक पल के लिए हैरान जरूर हो जाएंगे, लेकिन ये सच है। पुराणों के अनुसार शिव जी और विष्‍णु जी का एक पुत्र था। जानिए इसके पीछे का रहस्य

भगवान शिव और भगवान‌ विष्‍णु के पुत्र का नाम था अयप्पा। आप सोच रहे होंगे कि दोनों के पुत्र कैसे संभव है।

दरअसल अयप्पा भगवान विष्‍णु अवतार मोहिनी और भगवान शिव जी के पुत्र थे। इसीलिए इन्हें हरिहर पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार ये शास्ता के अवतार थे।

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत को लेकर जब दैत्य और देवताओं के बीच झगड़ा हो रहा था तो भगवान विष्णु ने मोहिनी का रुप धारण किया और दैत्यों का साथ छल किया।

कहा जाता है कि मोहिनी इतनी अधिक खूबसूरत थी, जो भी एक बार उन्हें देख लें, वो उनकी तरफ मोहित हुए बिना नहीं रह सकता। इसी वजह से सभी दैत्य भी उनकी तरफ मोहित हो गए और मोहिनी ने धोखे से देवताओं को अमृतपान करवा दिया।

शुक्रवार को धन और संपदा की देवी लक्ष्‍मी की पूजा होती है। उनके और भगवान विष्‍णु के 18 पुत्र बताये गए हैं क्‍या आप जानते हैं कि उनके नाम क्‍या हैं।

माता लक्ष्‍मी के हैं 18 पुत्र  

मां लक्ष्‍मी धन-संपत्ति की देवी हैं जो जीवन में सुख-सौभाग्‍य को बनाएं रखती हैं। लक्ष्‍मी को भगवान विष्‍णु की अर्धंगिनी के रूप में पूजा जाता है। इन दोनों के 18 पुत्रों का विभिन्‍न ग्रंथों में उल्‍लेख मिलता है। ऐसी मान्‍यता है कि अगर पैसों की परेशानी हो तो मां लक्ष्‍मी के इन 18 पुत्रों का नाम लेने से तुरंत धन लाभ होता है। शुक्रवार को देवी की पूजा में इनके नाम के जाप से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्‍त होती है और समस्‍याओं से छुटकारा मिलता है।  

माता लक्ष्‍मी के पुत्रों के नाम

चलिए जानें मां लक्ष्‍मी के इन 18 पुत्रों के क्‍या नाम हैं। 1. देवसखा, 2. चिक्लीत, 3. आनन्द, 4. कर्दम, 5. श्रीप्रद, 6. जातवेद, 7. अनुराग, 8. सम्वाद, 9. विजय, 10. वल्लभ, 11. मद, 12. हर्ष, 13. बल, 14. तेज, 15. दमक, 16. सलिल, 17. गुग्गुल, 18. कुरूण्टक।

कैसा है लक्ष्मी का स्वरूप

लक्ष्मी प्रसन्नता की, उल्लास की, विनोद की देवी है। मान्यता है कि वह जहां रहेंगी हंसने-हंसाने का वातावरण बना रहेगा। अस्वच्छता भी दरिद्रता है, आैर सौन्दर्य, स्वच्छता आैर कलात्मक सज्जा का ही दूसरा नाम है। लक्ष्मी सौन्दर्य की देवी हैं, वे जहां रहेगी वहां स्वच्छता, प्रसन्नता, सुव्यवस्था, श्रमनिष्ठा एवं मितव्ययिता का वातावरण बना रहेगा। लक्ष्मी का अभिषेक दो हाथी करते हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान है। कमल कोमलता का प्रतीक है। लक्ष्मी के एक मुख, चार हाथ हैं। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं। दो हाथों में कमल-सौन्दर्य और प्रामाणिकता का प्रतीक है। दान मुद्रा से उदारता तथा आशीर्वाद मुद्रा से अभय अनुग्रह की पहचान होती है। उनका वाहन उल्लू, निर्भीकता अंधकार में राह ढूंढ लेने की क्षमता का प्रतीक है। 

Edited By: Molly Seth

हम सभी के माता-पिता होते हैं। प्रत्येक मनुष्य के कोई-न-कोई माता-पिता तो होते ही हैं। तो फिर भगवान के भी माता-पिता होंगे ? तो भगवान के माता-पिता कौन हैं?

हम सभी के माता-पिता होते हैं। प्रत्येक मनुष्य के कोई-न-कोई माता-पिता तो होते ही हैं। तो फिर भगवान के भी माता-पिता होंगे ? तो भगवान के माता-पिता कौन हैं? कभी-कभार ऐसा भी कहा जाता है कि संत भगवान से भी बड़े होते हैं। भगवान संतों को अपने से भी ज्यादा महत्त्व देते हैं। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने संतों के चरण धोये थे। श्रीरामचन्द्रजी ने संतों को प्रणाम किया था। संत-पद बहुत ही ऊँचा है।संतों के लिए भगवान ने कहा हैः

संत मेरे मुकुटमणि। मैं संतन को दास।।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संबंध में हिन्दू मानस पटल पर भ्रम की स्थिति है। वे उनको ही सर्वोत्तम और स्वयंभू मानते हैं, लेकिन क्या यह सच है? क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश का कोई पिता नहीं है? वेदों में लिखा है कि जो जन्मा या प्रकट है वह ईश्वर नहीं हो सकता। ईश्वर अजन्मा, अप्रकट और निराकार है। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म ही सत्य है वही अविकारी परमेश्वर है। जिस समय सृष्टि में अंधकार था। न जल, न अग्नि और न वायु था तब वही तत्सदब्रह्म ही था जिसे श्रुति में सत् कहा गया है। सत् अर्थात अविनाशी परमात्मा। उस अविनाशी परब्रह्म (काल) ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्तिरहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म। परम अक्षर ब्रह्म। वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है। अर्वाचीन और प्राचीन विद्वान उन्हीं को ईश्वर कहते हैं। एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। सदाशिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है।

वह शक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं) कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं। पराशक्ति जगत जननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है।

उस कालरूपी ब्रह्म सदाशिव ने एक ही समय शक्ति के साथ 'शिवलोक' नामक क्षेत्र का निर्माण किया था। उस उत्तम क्षेत्र को 'काशी' कहते हैं। वह मोक्ष का स्थान है। यहां शक्ति और शिव अर्थात कालरूपी ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा यहां पति और पत्नी के रूप में निवास करते हैं।

इस मनोरम स्थान काशीपुरी को प्रलयकाल में भी शिव और शिवा ने अपने सान्निध्य से कभी मुक्त नहीं किया था। इस आनंदरूप वन में रमण करते हुए एक समय शिव और शिवा को यह इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी दूसरे पुरुष की सृष्टि करनी चाहिए, जिस पर सृष्टि निर्माण (वंशवृद्धि आदि) का कार्यभार रखकर हम निर्वाण धारण करें।

ऐसा निश्चय करके शक्ति सहित परमेश्वररूपी शिव ने अपने वामांग पर अमृत मल दिया। फिर वहां से एक पुरुष प्रकट हुआ। शिव ने उस पुरुष से संबोधित होकर कहा, 'वत्स! व्यापक होने के कारण तुम्हारा नाम 'विष्णु' विख्यात होगा।'

इस प्रकार विष्णु के माता और पिता कालरूपी सदाशिव और पराशक्ति दुर्गा हैं।

शिवपुराण के अनुसार ब्रह्माजी अपने पुत्र नारदजी से कहते हैं कि विष्णु को उत्पन्न करने के बाद सदाशिव और शक्ति ने पूर्ववत प्रयत्न करके मुझे (ब्रह्माजी को) अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया और तुरंत ही मुझे विष्णु के नाभि कमल में डाल दिया। इस प्रकार उस कमल से पुत्र के रूप में मुझ हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा) का जन्म हुआ।

मैंने (ब्रह्मा) उस कमल के सिवाय दूसरे किसी को अपने शरीर का जनक या पिता नहीं जाना। मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, मेरा क्या कार्य है, मैं किसका पुत्र होकर उत्पन्न हुआ हूं और किसने इस समय मेरा निर्माण किया है? इस प्रकार में संशय में पड़ा हूं।

इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र इन 3 देवताओं में गुण हैं और सदाशिव गुणातीत माने गए हैं। एक बार ब्रह्मा और विष्णु दोनों में सर्वोच्चता को लेकर लड़ाई हो गई, तो बीच में कालरूपी एक स्तंभ आकर खड़ा हो गया। तब दोनों ने पूछा- 'प्रभो, सृष्टि आदि 5 कर्तव्यों के लक्षण क्या हैं? यह हम दोनों को बताइए।'

तब ज्योतिर्लिंग रूप काल ने कहा- 'पुत्रो, तुम दोनों ने तपस्या करके मुझसे सृष्टि (जन्म) और स्थिति (पालन) नामक दो कृत्य प्राप्त किए हैं। इसी प्रकार मेरे विभूतिस्वरूप रुद्र और महेश्वर ने दो अन्य उत्तम कृत्य संहार (विनाश) और तिरोभाव (अकृत्य) मुझसे प्राप्त किए हैं, परंतु अनुग्रह (कृपा करना) नामक दूसरा कोई कृत्य पा नहीं सकता। रुद्र और महेश्वर दोनों ही अपने कृत्य को भूले नहीं हैं इसलिए मैंने उनके लिए अपनी समानता प्रदान की है।'

सदाशिव कहते हैं- 'ये (रुद्र और महेश) मेरे जैसे ही वाहन रखते हैं, मेरे जैसा ही वेश धरते हैं और मेरे जैसे ही इनके पास हथियार हैं। वे रूप, वेश, वाहन, आसन और कृत्य में मेरे ही समान हैं।'

कालरूपी सदाशिव कहते हैं कि मैंने पूर्वकाल में अपने स्वरूपभूत मंत्र का उपदेश किया है, जो ओंकार के रूप में प्रसिद्ध है, क्योंकि सबसे पहले मेरे मुख से ओंकार अर्थात 'ॐ' प्रकट हुआ। ओंकार वाचक है, मैं वाच्य हूं और यह मंत्र मेरा स्वरूप ही है और यह मैं ही हूं। प्रतिदिन ओंकार का स्मरण करने से मेरा ही सदा स्मरण होता है। मेरे पश्चिमी मुख से अकार का, उत्तरवर्ती मुख से उकार का, दक्षिणवर्ती मुख से मकार का, पूर्ववर्ती मुख से विन्दु का तथा मध्यवर्ती मुख से नाद का प्राकट्य हुआ। यह 5 अवयवों से युक्त (पंचभूत) ओंकार का विस्तार हुआ।

अब यहां 7 आत्मा हो गईं- ब्रह्म (परमेश्वर) से सदाशिव, सदाशिव से दुर्गा। सदाशिव-दुर्गा से विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र, महेश्वर। इससे यह सिद्ध हुआ कि ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और महेश के जन्मदाता कालरूपी सदाशिव और दुर्गा हैं।

गीताप्रेश गोरखपुर द्वारा प्रकाशित देवी भागवत पुराण के पहले स्कंथ में नारदजी से कहते हैं कि तुम जो पूछ रहे हो ठीक यही प्रश्न मेरे पिताजी ब्रह्मा ने देवाधिदेव श्रीहरि (विष्णु) से जो जगत के स्वामी हैं से किया था। लक्ष्मीजी उन देवाधिदेव (देवो के देव) की सेवा में रहती हैं। कौस्तुभ मणि से जो सुसोभित हैं, जो शंख, गदा और चक्र लिए हुए हैं और जिनकी चार भुजाएं हैं। वे पितांबर धारण करते हैं। वक्ष स्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह चमकता रहता है।

एक बार इन देवाधिदेव को तपस्या करते हुए देखकर ब्रह्माजी ने इनसे पूछा कि भगवन आप दो सभी देवों के देव हैं। आप सारे संसार के शासक होते हुए भी समाधि लगाए बैठे हैं? आप किस भगवान का ध्यान कर रहे हो?

ब्रह्माजी के विनित वचन सुनकर भगवान श्रीहरि उनसे कहने लगे- देवता, दानव और मानव सभी यह जानते हैं कि तुम सृष्टि करते हो, मैं पालन करता हूं और शंकर (रुद्र) संहार किया करते हैं। किंतु फिर भी वेद के पारगामी पुरुष अपनी युक्ति से यह सिद्ध करते हैं कि रचने, पालने और संहार करने की ये योग्यता जो हमें मिली है इसकी अधिष्ठात्री शक्तिदेवी है। उस शक्ति के अधिन होकर ही मैं इस शेषनाग की शय्या पर सोता और सृष्टि करने का अवसर आते ही जाग जाता हूं। मैं सदा तप करने में लगा रहता हूं क्योंकि उस शक्ति के शासन से कभी मुक्त नहीं रह सकता। कभी अवसर मिलता है तो लक्ष्मी के साथ अवसर बिताने का सौभाग्य प्राप्त होता है। मैं कभी तो दानवों के साथ युद्ध करता रहता हूं और अखिल जगत को भय पहुंचाने वाले दैत्यों के विकराल शरीर को शांत करना मेरा परम कर्तव्य हो जाता है। मैं सब प्रकार से उन्हीं शक्ति के अधिन रहता हूं और उन्हीं का कार्य किया करता हूं। ब्रह्माजी मेरी जानकारी में उन भगवती शक्ति से बढ़कर दूसरे कोई देवता नहीं।

देवीभागवत पुराण में दुर्गाजी कहती हैं कि देवी हिमालय को ज्ञान देते हुए कहती है कि एक सदाशिव ब्रह्म की साधना करो। जो परम प्रकाशरूप है। वही सब के प्राण और सबकी वाणी है। वही परम तत्व है। उसी अविनाशी तत्व का ध्यान करो। वह ब्रह्म ओंकारस्वरूप है और वह ब्रह्मलोक में स्थित है।

एकाकिनी होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। उस शक्ति की देवी ने ही लक्ष्मी, सावित्री और पार्वती के रूप में जन्म लिया और उसने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से विवाह किया था। तीन रूप होकर भी वह अकेली रह गई थी। उस कालरूप सदाशिव की अर्धांगिनी है दुर्गा।

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Edited By: Preeti jha

भगवान विष्णु के कितने पुत्र थे?

उनके और भगवान विष्‍णु के 18 पुत्र बताये गए हैं क्‍या आप जानते हैं कि उनके नाम क्‍या हैं।

विष्णु और लक्ष्मी का पुत्र कौन है?

इस तरह हुआ देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का एक मात्र पुत्र भगवान शिव की इच्छा का सम्मान करते हुए भगवान विष्णु ने अश्वरूप धारण किया और देवी लक्ष्मी से उनका मिलन हुआ। इससे देवी लक्ष्मी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो एकवीर ने नाम से जाना गया।

विष्णु का बेटा कौन है?

भगवान शिव और भगवान‌ विष्‍णु के पुत्र का नाम था अयप्पा। आप सोच रहे होंगे कि दोनों के पुत्र कैसे संभव है। दरअसल अयप्पा भगवान विष्‍णु अवतार मोहिनी और भगवान शिव जी के पुत्र थे। इसीलिए इन्हें हरिहर पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान शिव और विष्णु में कौन बड़ा है?

शैव मत के अनुयायी भगवान शिव को सर्वोपरि मानते हैं, तो वहीं वैष्णव मतावलम्बी श्री विष्णु को ही श्रेष्ठ मानते हैं। प्राचीन काल से ही इन दोनों मतों के अनुयायियों के बीच मतभेद रहे हैं।