विद्यालय से क्या समझते हैं विद्यालय की प्रमुख विशेषताएं? - vidyaalay se kya samajhate hain vidyaalay kee pramukh visheshataen?

विद्यालय का अर्थ (Vidyalaya kya hai)

Vidyalaya arth paribhasha visheshta aavyashkta karya;सामान्यतः जहाँ पर विद्यार्थियों को शिक्षकों के द्वारा शिक्षा दी जाती है उसे हम विद्यालय के नाम से जानते है। 

विद्यालय को अंग्रजी भाषा में स्कूल कहा जाता है। यानि की विद्यालय शब्द स्कूल का हिंदी रूपांतरण है। 'स्कूल' शब्द की उत्पत्ति 'shola' या 'skhole' नामक शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है-- 'अवकाश' (Leisure)। यह बात कुछ विचित्र-सी जान पड़ती है। इसका स्पष्टीकरण करते हुए, ए. एफ. लीच ने लिखा है," वाद-विवाद या वार्ता के स्थान, जहाँ एथेन्स के युवक अपने अवकाश के समय को खेल-कूद, व्यवसाय और युद्ध के प्रशिक्षण में बताते थे, धीर-धीर दर्शन और उच्च कलाओं के स्कूलों मे बदल गये। एकेडेमी के सुन्दर उद्यानों में व्यतीत किये जाने वाले अवकाश के माध्यम से विद्यलयों का विकास हुआ।"

विद्यालय शब्द दो शब्दों के योग से बना है, विद्या+आलय अर्थात् वह स्थान जहाँ विद्या प्राप्त होती है। अतः विद्यालय वह स्थान है जहाँ ज्ञान प्राप्त होता है। यह एक ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जिसे बालक एक निश्चित अवधि मे निश्चित पाठ्यक्रम द्वारा पूरा करता है। 

अधिकांशतः विद्यालय को वह स्थान माना जाता है जहाँ पर सूचना विक्रेताओं या शिक्षकों द्वारा छात्रों को कुछ विषयों की सूचनायें बेची जाती है। आज भी हमारे देश मे यह अवधारणा प्रचलित है। विद्यालय की इस अवधारण को पेस्टालाॅजी ने इन शब्दों मे व्यक्त किया है," ये विद्यालय अमनोवैज्ञानिक है जो बालक को उसके स्वाभाविक जीवन से दूर कर देते है, उसकी स्वतंत्रता को निरंकुशता से रोक देते है और उसे अनाकर्षक बातों को याद करने के लिए भेड़ों के समान हाँकते है और घण्टों, दिनों, सप्ताहों, महीनों तथा वर्षों तक दर्दनक जंजीरों से बाँध देते है।" 

परन्तु नवीन शैक्षिक विचारों तथा प्रयोग ने उक्त अवधारण मे परिवर्तन लाने का प्रयास किया है। फ्राॅबेल ने विद्यालय को 'बच्चों का उद्यान' (children garden) कहा है। जिस तरह से बाग मे माली पेड़-,पौधों की खुदाई, निराई तथा सिंचाई करके उनको उत्तम फल-फूल देने के लिए तैयार करता है उसी तरह से शिक्षक को बच्चों के सर्वांगीण-शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक आदि के विकास के लिए उनका पालन-पोषण करना चाहिए। 

विद्यालय की परिवर्तनशील अवधारण मे उसे स्वयं मे एक लघुराज्य माना जाता है जिसमें उसके सुसंचालन के लिये उपयुक्त नियमों तथा विनियमों की व्यवस्था होती है। ये नियम बच्चों, माता-पिता, शिक्षक आदि की सद्भावना पर आधारित होते है। 

विद्यालय एक लघु समाज या समुदाय है जिसकी स्थापना विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है। इसमें उन सामूहिक क्रियाओं को स्थान दिया जाता है जिनमें भाग लेकर बालक स्वयं को सामाजिक रूप से समाज का कुशल सदस्य बना सकें।

दूसरे शब्दों में वे उत्तम नागरिकता के गुणों को सीख सकें और भावी समाज को उन्नत एवं प्रगतिशील बना सकें। 

विद्यालय एक उपचार केन्द्र है। आज के समाज मे युवको को व्यक्तिगत निर्देशन एवं परामर्श की अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि आज समाज संक्रमण काल से होकर गुजर रहा है। अतः इसे मे विद्यालय को एक उपचार-केन्द्र के रूप मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी चाहिए। 

विद्यालय की परिभाषा (Vidyalaya ki paribhasha)

ए. के. सी ओटावे के अनुसार," विद्यालय को एक ऐसा सामाजिक आविष्कार समझना चाहिए जो कि समाज के बालकों के लिए विशेष प्रकार का शिक्षण प्रदान करने लिए हो।" 

राॅस के अनुसार," विद्यालय वे संस्थाएँ है, जिनको सभ्य मनुष्य द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिये बालकों को तैयारी में सहायता मिले।" 

जाॅन ड्यूवी के अनुसार," विद्यालय एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है, यहाँ जीवन के कुछ गुणों और कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं तथा व्यवसायों की शिक्षा इस उद्देश्य से दी जाती है कि बालक का विकास वांछित दिशा में हो।" 

टी. पी. नन. के अनुसार," विद्यालय को मुख्य रूप से इस प्रकार का स्थान नही समझा जाना चाहिए, जहाँ किसी निश्चित ज्ञान को सीखा जाता है, बल्कि ऐसा स्थान जहाँ बालकों को क्रियाओं के उन निश्चित रूपों मे प्रशिक्षित किया जाता है, जो इस विशाल संसार मे सबसे महान् और सबसे अधिक महत्व वाली है।" 

के. जी. सैयदेन के अनुसार," एक राष्ट्र के विद्यालय जनता की आवश्यकताओं तथा समस्याओं पर आधारित होने चाहिए। विद्यालय का पाठ्यक्रम उनके जीवन का सार रूप होना चाहिए। इसको सामुदायिक जीवन की महत्वपूर्ण विशेषताओं को अपने स्वाभाविक वातावरण मे प्रतिबिंबित करना चाहिए। 

उक्त परिभाषाओं से कुछ तथ्य स्पष्ट होते हैं जो इस तरह हैं-- 

1. विद्यालय एक विशिष्ट वातावरण का नाम है। 

2. यहाँ पर सम्पन्न होने वाली सभी क्रियाएँ बालक के विकास हेतु उत्तरदायी हैं। 

3. विद्यालय बालक के विकास का एक केन्द्र हैं। 

4. विद्यालय बालक को सामाजिकता के योग्य बनाने वाली संस्था हैं।

विद्यालय की विशेषताएं (Vidyalaya ki visheshta)

विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर विद्यालय की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होते है-- 

1. विद्यालय समाज द्वारा निर्मित संस्था है। 

2. विद्यालय एक विशिष्ट वातावरण है जिसमें बालकों के वांछित विकास के लिए विशिष्ट गुणों, क्रियाओं तथा व्यवसायों की व्यवस्था की जाती है। 

3. विद्यालय समाज का लघुरूप है जिसका उद्देश्य समाज द्वारा मान्य व्यवहार व कार्य की शिक्षा देना है। यह समाज के उत्कृष्ट रूप का ही प्रतिनिधित्व करता है। 

4. विद्यालय वह स्थान है जहाँ संसार की महान् एवं महत्वपूर्ण क्रियाओं को स्थान दिया जाता है। 

5. विद्यालय को बालकों के भावी जीवन की तैयारी हेतु स्थापित किया जाता है। 

6. विद्यालय को सामुदायिक जीवन का केन्द्रबिन्दु होना चाहिए। 

7. विद्यालय शिक्षा का औपचारिक सक्रिय अभिकरण है। इसके सदस्यों मे परस्पर क्रिया चलती रहती है।

विद्यालय की आवश्यकता एवं महत्व (Vidyalaya ka mahatva)

विद्यालय की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालते हुए एस. बालकृष्ण जोशी जी ने लिखा है," किसी भी राष्ट्र की प्रगति का निर्माण विधान सभाओं, न्यायालयों या फैक्ट्रियों मे नही, बल्कि विद्यालयों मे होता है।" 

आधुनिकीकरण, औद्योगिकीकरण, नगरीकरण, जनसंख्या वृद्धि, विघटित परिवार तथा आवश्यकताओं की अधिकता के कारण वर्तमान मे मानव का जीवन बहुत जटिल हो गया है। वर्तमान मे मानव को व्यावहारिक जीवन की अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तथा इन समस्याओं के समाधान के बिना मनुष्य का जीना मुश्किल हो गया है लेकिन इन समस्याओं का सामना करना इतता आसान नही है। इसके लिए बहुमुखी ज्ञान एवं विज्ञान की आवश्यकता है। अतः आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही विद्यालय की आवश्यकता प्रतीत होती है। विद्यालय ही जटिल समाज के साधन और सिद्धियों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने में सक्षम है। 

विद्यालय की आवश्यकता अथवा महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट होता है--

1. परिवार तथा विश्व को जोड़ने वाली कड़ी

परिवार बालक मे प्रेम, दया, सहानुभूति, सहनशीलता, सहयोग, सेवा तथा अनुशासन एवं निःस्वार्थता आदि गुणों को विकसित करता हैं। परन्तु परिवार की चारदीवारी के चक्कर मे पड़कर बालक के ये सारे गुण उसके निजी सम्बन्धियों तक सीमित ही रह जाते हैं। इससे उसका दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है। स्कूल बालक के पारिवारिक जीवन को बाहरी जीवन से जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इसका कारण यह है कि स्कूल में रहते हुए बालक अन्य बालकों के साथ संपर्क स्थापित करता है। इससे उसका दृष्टिकोण विशाल हो जाता हैं जिससे उसके बाहरी समाज से संपर्क स्थापित होने मे कोई कठिनाई नहीं होती। 

2. जीवन की जटिलता 

वर्तमान जीवन प्राचीन काल के जीवन की तरह सरल एवं सुखमय नही रहा है। प्राचीन काल मे मनुष्य के पास अपनी सभी आवश्यकताओं को स्वयं पूरी करने और अपने बच्चों की शिक्षा की स्वयं देखभाल करने के लिए समय हुआ करता है। वर्तमान मे जनसंख्या की वृद्धि, आवश्यकताओं की अधिकता और वस्तुओं के बढ़ते हुए मूल्य के कारण जीवन बहुत कठिन हो गया है। मनुष्य को अपने कार्यों से इतनी फुरसत नही मिलती है कि वह अपने बच्चों की शिक्षा की देखभाल कर सके। इसलिए उसने यह कार्य विद्यालय को सौंप दिया है। 

3. विशाल सांस्कृतिक विरासत 

वर्तमान की सांस्कृतिक विरासत बहुत विस्तृत हो गयी है। इसमें अनेक प्रकार के ज्ञान, कुशलताओं और कार्य करने की विधियों का समावेश हो गया है। ऐसी विरासत की शिक्षा देने मे व्यक्ति अपने को असमर्थ पाते है। अतः उन्होंने यह कार्य विद्यालय को सौंप दिया। 

4. विद्यालय बहुमुखी प्रतिभा के लिए उत्तम स्थान 

भले ही घर-परिवार को बालक की प्रथम पाठशाल कहा जाता है लेकिन फिर भी जो शिक्षा बालक घर पर प्राप्त करता है वह बहुत ही संकुचित होती है। इस शिक्षा के द्वारा बालक को वह ज्ञान नही प्राप्त हो सकता जो ज्ञान उसे विद्यालयों मे प्राप्त होता है। विद्यालय मे बालक को बहुमुखी शिक्षा प्रदान की जाती है जिससे वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो सके। विद्यालय मे बालक किसी भी विषय का विशिष्ट एवं विस्तृत ज्ञान प्राप्त करता है, इसलिए बालक की शिक्षा के लिए विद्यालय घर की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। 

5. विशिष्ट वातावरण की अवस्था &lt;/p&gt;&lt;p&gt;विद्यालय छात्रों को एक विशिष्ट वातावरण प्रदान करता है। यह वातावरण शुद्ध, सरल और सुव्यवस्थित होता है। इससे छात्रों की प्रगति पर स्वस्थ और शिक्षाप्रद प्रभाव पड़ता है। ऐसा वातावरण शिक्षा का और कोई साधन नही प्रदान कर सकता है।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;6. व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;घर, समाज, धर्म आदि शिक्षा के अच्छे साधन है। पर इनका न तो कोई निश्चित उद्देश्य होता है और न पूर्व-नियोजित कार्यक्रम। फलतः कभी-कभी बालक के व्यक्तित्व पर इनका बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, विद्यालय का एक निश्चित उद्देश्य और पूर्व-नियोजित कार्यक्रम होता है। परिणामस्वरूप, इसका बालक पर व्यवस्थित रूप मे प्रभाव पड़ता है और उसके व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास होता है।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;7. आवश्यकताओं की पूर्ति करने मे सहायक&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए वर्तमान भौतिकवादी युग मे व्यक्ति की आवश्यकताएँ एवं इच्छाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विद्यालय मे बालक की रूचि एवं आवश्यकता के अनुकूल शैक्षिक वातावरण बनाया जाता है जिससे वह तरह-तरह का ज्ञान प्राप्त करके अपनी तथा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;8. सामुदायिक जीवन को प्रोत्साहन&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;विद्यालय एक सामाजिक संस्था हैं तथा शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया। अतः ये दोनों सामाजिक विकास तथा सामुदायिक जीवन विकसित करने में सहयोग प्रदान करते हैं। सामाजिक विकास से सामाजिक गुण प्राप्त होते हैं तथा सामुदायिक जीवन बालकों मे स्वतंत्रता समानता एवं मातृत्व आदि आदर्शों के महत्व को प्रोत्साहित करता हैं।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;9. विद्यालय घर की अपेक्षा शिक्षा का उत्तम स्थान&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;विद्यालय में विभिन्न परिवारों, समुदायों तथा सांस्कृतियों के बालक शिक्षा प्राप्त करने आते है। वहाँ वे सब साथ-साथ रहते हुए उन सब बातों को स्वतः ही सीख जाते हैं जिन्हें वे परिवार के प्रांगण मे नही सीख सकते। अतः यदि बालकों में सामाजिक शिष्टता, सहानुभूति एवं निष्पक्षता आदि गुणों को विकसित करना हैं तो उनको शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय ही भेजना चाहियें।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;10. आदर्शों व विचारधाराओं का प्रसार&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;विश्व के आदर्शों एवं विचारधाराओं का प्रसार करने के लिए विद्यालय को अति महत्वपूर्ण साधन माना गया है इसीलिए सभी स्थानों एवं राज्यों मे विद्यालय का स्थान सर्वोपरि एवं गौरवपूर्ण है।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;11. समाज की निरन्तरता का विकास&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;विद्यालय एक प्रमुख सामाजिक संस्था है। शिक्षा की प्रक्रिया सामाजिक होने के कारण विद्यालय सामुदायिक जीवन का वह स्वरूप है, जिनमें समाज की निरन्तरता और विकास के लिये सभी प्रभावपूर्ण साधन केन्द्रित होते है। विद्यालय के इसी महत्व के कारण टी. पी. नन ने लिखा है," विद्यालय को समस्त संसार का नही बल्कि समस्त मानव समाज का आदर्श लघु रूप होना चाहिए।"&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;12. प्रगति एवं विकास के लिए उपयुक्त वातावरण&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;विद्यालय बालक की प्रगति एवं विकास के लिए उपयुक्त एवं सन्तुलित वातावरण पेश करता है। अज्ञानता, निर्धनता, निवास की कमी, मशीनों की गड़गड़ाहट,भीड़-भाड़, सामाजिक बुराइयाँ आदि के कारण घर तथा पड़ोस का वातावरण अनैतिक, कोलाहल, युक्त, अव्यवस्थित एवं अशुद्ध होता है जिसमें बालकों का शिक्षा प्राप्त करना अनुपयुक्त ही नही बल्कि असंभव भी होता है। विद्यालय बालकों की शिक्षा के लिए उपयुक्त सरल, शुद्ध एवं सन्तुलित वातावरण प्रस्तुत करते है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;13. शिक्षित नागरिकों का निर्माण&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;विद्यालय ही एकमात्र वह साधन है, जिसके द्वारा शिक्षित नागरिकों का निर्माण किया जि सकता है। यदि एक देश के समस्त बालकों को एक निश्चित आयु तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा दी जाती है, तो वे स्थायी रूप से साक्षर हो जाते है। साक्षर होने के साथ-साथ उनमें धैर्य, सहयोग, उत्तरदायित्व आदि गुणों का विकास होता है। इस प्रकार, बड़े होकर बालक राज्य के उपयोगी नागरिक सिद्ध होते है।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;14. विद्यालय पारिवारिक जीवन एवं बाहरी जीवन को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी है&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;बालक परिवार मे जन्म लेता है और वही पर उसका प्रारंभिक विकास होता है। परिवार मे रहकर वह सेवा, प्रेम, सहयोग, आज्ञापालन एवं अनुशासन आदि आदर्शगुणों को सीखता है। परिवार के दायरे से निकलकर जब बालक विद्यालय आते है तो उन्हें विभिन्न घरों, धर्मों, जातियों एवं सम्प्रदायों के बालकों के साथ रहना पड़ता है जिसके फलस्वरूप उसका दृष्टिकोण व्यापक हो जाता है पारिवारिक जीवन तक ही सीमित नही रहता बल्कि बाह्रा जीवन की क्रियाओं मे भी रूचि लेता है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;15. बहुमुखी सांस्कृतिक चेतना का विकास&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;विद्यालय एक उत्तम स्थान है जहाँ विभिन्न परिवारों, सम्प्रदायों तथा सांस्कृतियों के बालक शिक्षा प्राप्त करने आते हैं। साथ-साथ रहते हुए बालकों मे सामाजिकता, शिष्टाचार, सहानु‍भूति, निष्पक्षता तथा सहयोग आदि वांछनीय गुणों, आदतों तथा रूचियों का विकास स्वतः ही हो जाता है। यही नही, उनमें एक-दूसरे से सांस्कृतिक गुण भी विकसित हो जाते हैं। इसलिए विद्यालय को बालकों में बहुमुखी संस्कृति विकसित करने का महत्वपूर्ण साधन माना जाता हैं।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;16. राज्यों के आदर्श तथा विचारों का प्रचार&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;प्रत्येक राज्य आदर्शों और विचारो को थोड़ी से देर में प्रसारित करने के लिए विद्यालय एक महत्वपूर्ण साधन हैं। यही कारण है कि जनतंत्रीय, फासिस्टवादी तथा साम्यवादी सभी प्रकार की सरकारों ने विद्यालय के महत्व को स्वीकार किया हैं।&lt;script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"&gt; <ins class="adsbygoogle" data-ad-client="ca-pub-4853160624542199" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article" data-ad-slot="5627619632" style="display:block;text-align:center"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

विद्यालयों के प्रमुख कार्य (Vidyalaya ke karya)

वर्तमान विद्यालय को अपने उत्तरदायित्व को अच्छी तरह निभाने की आवश्यकता है। विद्यालय के प्रमुख कार्य अग्रलिखित कहे जा सकते हैं-- 

1. विद्यालय सांस्कृतिक परम्पराओं का रक्षक होता है। यह संस्कृति तथा सभ्यता को सुरक्षित रखता है और भावी पीढ़ी को उन परम्पराओं को प्रदान कर देता है। इस तरह मानव ने अब तक जो अनुभव संचित किये हैं, विद्यालय उनकी रक्षा करता है। इस तरह विद्यालय शिक्षा की व्यवस्था करके संचित अनुभवों से बालकों को परिचित कराता हैं। 

2. सामाजिक दक्षता प्रदान करने में विद्यालय का प्रमुख हाथ हैं। विद्यालय समाज का दर्पण ही नही हैं, बल्कि समाज के उचित संचालन के लिए वह एक आदर्श भी उपस्थित करता है। 

3. प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक आदर्श होता है। विश्व को सभ्यता में योगदान करने हेतु प्रत्येक राष्ट्र को अपने-अपने ढंग से योगदान करना पड़ता है तथा यह योगदान राष्ट्र के आदर्श पर निर्भर होता हैं। जीवन के किसी क्षेत्र में किसी राष्ट्र को विशेष योग्यता प्राप्त होती है तो अन्य क्षेत्र में दूसरे राष्ट्र को। विद्यालय इस आदर्श में बालकों को दीक्षित करने का प्रयत्न करते हैं। 

4. लोकतंत्र आज के विश्व का युगधर्म है। लोकतंत्र राजनीति, समाज तथा अर्थतंत्र में तभी सफल हो सकता है जब नागरिकों की शिक्षा पर ध्यान दिया जाए एवं भावी नागरिकों को यह बताया जाय कि लोकतंत्रीय जीवन-पद्धति किसे कहते हैं। विद्यालय लोकतंत्रीय जीवन शैली को व्यवह्रत करके उसके प्रायोगिक रूप का दर्शन करा सकते हैं। 

5. सभी बालक समान योग्यता वाले नही होते। कुछ बालक प्रतिभावान, कुछ मध्य स्तर के तथा कुछ पिछड़े हुए रहते हैं। विद्यालय में सभी तरह के छात्रों के व्यक्तित्व के विकास का ध्यान रखा जाता है तथा वैयक्तिक शक्तियों एवं योग्यताओं के विकास का अवसर प्रदान किया जाता हैं। 

6. विद्यालय व्यक्ति में आध्यात्मिक भावना का विकास करता है। विद्यालय में बालकों के आध्यात्मिक विकास की उपेक्षा नही की जा सकती। विद्यालय इस तरह की भावना का विकास उपयुक्त वातावरण की रचना करके कर सकता है। इस तरह के वातावरण की रचना विद्यालय में विशेष रूप से होनी चाहिए। 

7. विद्यालय व्यक्ति को जीवनयापन के सुन्दर ढंग से परिचित कराता है। जीवन एक कला हैं। छात्रों को इस बात की शिक्षा देने की आवश्यकता पड़ती है कि वे जीवन किस तरह अच्छी तरह बिता सकतें हैं। साधारण परिवार का वातावरण कोलाहलमय तथा कलहपूर्ण हो सकता है। ऐसे अभावग्रस्त परिवारों से जीवन कला की शिक्षा की आशा करना तालाब में जौ बोने की तरह होगा। पर विद्यालय इस स्थिति में होते हैं कि वे थोड़ा-सा प्रत्यत्न करके छात्रों को इस दिशा में शिक्षित कर दें। 

8. विद्यालय सामाजिक पुनर्रचना का दायित्व अपने ऊपर लेता है। वह छात्रों को ऐसी शिक्षा प्रदान करता है जिससे छात्र समाज की बुराइयों तथा कुरीतियों की आलोचना कर सकें एवं उन्हें दूर करने का संकल्प कर सकें। 

9. विद्यालय आदर्श नागरिक बनाने का प्रयत्‍न करता है। व्यक्ति समुदाय एवं राज्य में अपने स्थान को ठीक से समझकर अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का उपयोग कर सके, इसके लिए विद्यालय शिक्षा प्रदान करता है।

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विद्यालय से क्या समझते हैं विद्यालय की प्रमुख विशेषताएं लिखिए?

विद्यालय वह स्थान है, जहाँ शिक्षा ग्रहण की जाती है। "विद्यालय एक ऐसी संस्था है, जहाँ बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं नैतिक गुणों का विकास होता है। ' विद्यालय' शब्द के लिए आंग्ल भाषा में 'स्कूल' शब्द का प्रयोग होता है, जिसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द 'Skohla' या 'Skhole' से हुई है, जिससे तात्पर्य है- 'अवकाश'।

स्कूल का क्या महत्व है?

किसी भी व्यक्ति या बच्चे का जीवन निखारने और उसका भविष्य संवारने में स्कूल की भूमिका सर्वाधिक होती है। स्कूल एक ऐसी जगह है जहा बच्चो का सामाजिक विकास, आर्थिक विकास, सांस्कृतिक विकास, व्यक्तिगत विकास होता है। इसलिए हमारे जीवन में स्कूल का अधिक महत्त्व होता है।

विद्यालय में कौन कौन से प्रकार होते हैं?

माध्यमिक विद्यालय जो स्कूल 10वीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान करते हैं उन्हें माध्यमिक विद्यालय, उच्च विद्यालय, वरिष्ठ विद्यालय आदि के रूप में जाना जाता है।

विद्यालय में कौन कौन सी व्यवस्था होनी चाहिए?

विद्यालय-भवन या विद्यालय के मुख्य परिसर में प्राचार्य कक्ष, शिक्षक कक्ष, छात्रों का कॉमन रूम, स्टोर रूम, अतिथि-कक्ष, कार्यालय कक्ष, परीक्षा कक्ष आदि की स्थापना की जानी चाहिए, परन्तु किसी भी विद्यालय का निर्माण करने के पूर्व विद्यालय की स्थिति पर विचार करना भी आवश्यक है।