विद्युत धारा की दिशा मापने के लिए किसका उपयोग किया जाता है? - vidyut dhaara kee disha maapane ke lie kisaka upayog kiya jaata hai?

विद्युत धारा का मापन किस उपकरण का प्रयोग करके किया जाता है विद्युत यंत्र बनाने के लिए कौन सा प्रभाव काम में लेते हैं बिजली की शक्ति नापने का यंत्र विद्युत धारा मापने का यंत्र विधुत्त शक्ति का मापन किया जाता है विद्युत प्रवाह किस यंत्र से मापा जाता है मापन के उपकरण बिजली का प्रतिरोध मापने के लिए किस उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है घरेलू विद्युत उपकरण

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विद्युत धारा को मापने के लिए इस्तेमाल में लाया जाने वाला यंत्र वास्तव में एम्प मीटर का एक छोटा रूप एमीटर होता है। विद्युत धारा एम्पीयर में मापा जाता है। वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में बहुत छोटी विद्युत धाराओं को मापने के लिए बेहद संवेदनशील यंत्र “गैल्वेनोमीटर” का प्रयोग होता है।

विद्युत धारा (Electric current)

विद्युत धारा एक प्रकार से विद्युत आवेशों का प्रवाह है। ठोस चालकों में इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के कारण तथा तरलों में आयनों के साथ इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के कारण विद्युत धारा बनती है।

विद्युत धारा की दिशा मापने के लिए किसका उपयोग किया जाता है? - vidyut dhaara kee disha maapane ke lie kisaka upayog kiya jaata hai?

विद्युत् धारा की दिशा धन आवेश की गति की दिशा की ओर मानी जाती है। इसका S.I. मात्रक एम्पियर है। यह एक अदिश राशि है।

  • विद्युत धारा का SI मात्रक एंपियर (A) होता है। 1 एंपियर विद्युत धारा प्रति सेकेंड एक कूलॉम आवेश के प्रवाह के बराबर होती है।
  • किसी विद्युत धारा प्रवाहित करने वाले चालक के सतत एवं बंद पथ को परिपथ (Circuit) कहते हैं।
  • किसी परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा मापने के लिये ऐमीटर नामक यंत्र का उपयोग करते हैं।
  • एमीटर को परिपथ में सदैव श्रेणीक्रम में जोड़ते हैं।

विद्युत धारा का SI मात्रक

विद्युत धारा का SI मात्रक एंपियर (A) होता है। 1 एंपियर विद्युत धारा प्रति सेकेंड एक कूलॉम आवेश के प्रवाह के बराबर होती है।

एक एम्पियर विद्युत् धारा

यदि किसी चालक तार में एक एम्पियर (1A) विद्युत् धारा प्रवाहित हो रही है तो इसका अर्थ है, कि उस तार में प्रति सेकण्ड 6.25×1018 इलेक्ट्रॉन एक सिरे से प्रविष्टि होते हैं तथा इतने ही इलेक्ट्रॉन दूसरे सिरे से बाहर निकल जाते हैं। 

विद्युत धारा के प्रकार

  1. दिष्ट धारा
  2. प्रत्यावर्ती धारा

दिष्ट धारा

यदि किसी परिपथ (Circuit) में प्रवाहित धारा की दिशा में कोई परिवर्तन न हो अर्थात् धारा एक ही दिशा में गतिमान रहे तो इसे हम दिष्ट धारा (D.C) कहते हैं।

प्रत्यावर्ती धारा

यदि किसी परिपथ में धारा की दिशा लगातार बदलती है अर्थात् धारा का प्रवाह एकांतर क्रम में समांतर रूप से आगे और पीछे होता रहता है तो ऐसी धारा को हम प्रत्यावर्ती धारा (A.C) कहते हैं। घरों में विद्युत की सप्लाई प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही की जाती है।

Note : प्रत्यावर्ती धारा (A.C) को दिष्ट धारा (D.C) में तथा दिष्ट धारा (D.C) को प्रत्यावर्ती धारा (A.C) में बदला जा सकता है।

विद्युत वाहक बल

ऐसा बल जो परिपथ में विद्युत धारा का प्रवाह लगातार बनाए रखता है विद्युत वाहक बल (Electro-motive force) कहलाता है। 

इसे विद्युत सेल, जनित्र (Generator), तापयुग्म (Thermo couple), प्रकाश विद्युत सेल (Photo electric cell) इत्यादि से प्राप्त किया जाता है।

विभव एवं विभवांतर

हम जानते हैं कि आवेशों के प्रवाह को धारा कहते हैं। आवेशों का प्रवाह उच्च आवेशित बिंदु से निम्न आवेशित बिंदु तक होता है। ऐसे बिंदु को जहाँ पर धन-आवेश की मात्रा ज्यादा है, उसे हम उच्च विभव का बिंदु कहते हैं अर्थात् विद्युत धारा का प्रवाह उच्च विभव से निम्न विभव की ओर होता है।

दो बिंदुओं के बीच विभवों के अंतर को विभवांतर कहते हैं। विद्युतवाहक बल दरअसल सर्किट (परिपथ) के दो बिंदुओं के बीच विभवांतर उत्पन्न करता है, जिसके कारण सर्किट में धारा बहने लगती है।

  • विभवांतर का SI मात्रक वोल्ट (V) है, जिसका नामकरण भौतिक विज्ञानी अलेसांद्रो वोल्टा के नाम पर हुआ।
  • विभवांतर की माप वोल्टमीटर नामक मापक यंत्र द्वारा की जाती है।
  • वोल्टमीटर को सदैव परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ते हैं।

विद्युत धारिता

किसी चालक के विभव (Potential) में एकांक वृद्धि हेतु जितने आवेश की आवश्यकता होती है, आवेश की उस मात्रा को उस चालक की 'विद्युत धारिता' (Electric Capacity) कहते हैं।

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इसका SI मात्रक फैराडे (F) होता है।

संधारित्र

संधारित्र एक ऐसा समायोजन है, जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किये बिना उस पर आवेश की अधिक मात्रा संचित की जा सकती है अर्थात् उसका विद्युत विभव बढ़ाया जा सकता है। संधारित्रों का उपयोग, आवेश का संचय, ऊर्जा का संचय तथा विद्युत उपकरणों में इसका उपयोग होता है।

ओम का नियम (Ohm's law)

ओम का नियम किसी परिपथ में विभवांतर एवं धारा के बीच संबंध बताता है। इसके अनुसार किसी विद्युत परिपथ में बहने वाली धारा (1) उसमें प्रदत्त विभवांतर (V) के समानुपाती होती है और विभवांतर तथा धारा का अनुपात परिपथ में प्रतिरोध के बराबर होता है।

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हम यह पहले ही जान चुके हैं कि धातु चालकों में प्रतिरोध ताप बढ़ने पर बढ़ता है और ताप घटने पर घटता है।

प्रतिरोध (Resistance)

किसी चालक में विद्युत् धारा के प्रवाहित होने पर चालक के परमाणुओं तथा अन्य कारकों द्वारा उत्पन्न किये गये व्यवधान को ही चालक का प्रतिरोध कहते हैं। इसका SI मात्रक ओम (Ω) होता है।

अपने से होकर विद्युत धारा बहने देने के गुण के आधार पर पदार्थों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जाता है-

  • सुचालक - वैसे पदार्थ, जिनकी प्रतिरोधकता अत्यंत कम होती है अर्थात् जिनसे होकर विद्युत धारा का प्रवाह सुगमतापूर्वक हो जाता है, उन्हें 'सुचालक' कहते हैं जैसे सभी धातुएँ: चाँदी, ताँबा, एल्युमिनियम आदि।
  • अचालक/कुचालक - वे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत धारा का प्रवाह नहीं हो सकता अर्थात् इनकी प्रतिरोधकता अति उच्च होती है, उन्हें 'कुचालक' कहते हैं जैसे लकड़ी, प्लास्टिक इत्यादि।
  • अर्द्धचालक - इन पदार्थों की प्रतिरोधकता चालकों और कुचालकों के बीच की होती है। साधारण ताप या निम्न ताप पर इनसे विद्युत चालन नहीं हो पाता है, लेकिन उच्च ताप पर इनसे विद्युत धारा का प्रवाह होता है। उदाहरण के लिये सिलिकन, जर्मेनियम इत्यादि।
  • अतिचालक - हम जानते हैं कि धातुओं का प्रतिरोध तापमान कम करने पर घटता है अर्थात् उनकी चालकता बढ़ जाती है। अतः अगर हम किसी धातु का तापमान लगातार कम करते रहें तो एक निश्चित ताप पर प्रतिरोध लगभग शून्य हो जाता है और वे तब अतिचालक कहलाने लगते हैं। कुछ सेरामिक पदार्थ (Ceramics) लगभग 100 K ताप पर ही अतिचालक बन जाते हैं। अतिचालक पदार्थों के प्रयोग से ऊर्जा का न्यूनतम क्षय होता है और उसका अधिकाधिक प्रयोग हो पाता है।

प्रतिरोधकों का संयोजन

एक विद्युत परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह के प्रबंधन के लिये परिपथ में प्रतिरोधक लगाए जाते हैं। इनके संयोजन की दो विधियाँ हैं-

श्रेणीक्रम संयोजन (Series combination) - R1, R2 तथा R3 आदि प्रतिरोधकों को श्रेणीक्रम में जोड़ने पर कुल प्रतिरोध सभी प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।

R= R+ R+ R+ ......

श्रेणीक्रम संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोधक से समान विद्युत धारा प्रवाहित होती है, जबकि विभवांतर भिन्न-भिन्न होता है। पार्श्वक्रम संयोजन में इसके विपरीत स्थित होती है अर्थात् विभवांतर एकसमान एवं विद्युत धारा भिन्न होती है।

पार्श्वक्रम संयोजन (Parallel combination) इस स्थिति में कुल प्रतिरोध निम्नवत् होगा-

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विद्युत् शक्ति

विद्युत् परिपथ में ऊर्जा के क्षय होने की दर को शक्ति कहते हैं। इसका S.I. मात्रक वाट होता है।

किलोवाट घंटा मात्रक अथवा यूनिट

1 किलोवाट घंटा मात्रक अथवा एक यूनिट विद्युत् ऊर्जा की वह मात्रा है, जो कि किसी परिपथ में एक घंटा में व्यय होती है, जबकि परिपथ में 1 किलोवाट की शक्ति हो।

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अर्थात् एक समान वोल्टेज पर जलने वाले दो विद्युत बल्बों में कम प्रतिरोध वाला बल्ब ज़्यादा पावर खर्च करेगा और ज्यादा रोशनी उत्पन्न करेगा। इसी तथ्य के अनुरूप मंद रोशनी वाला बल्ब ज़्यादा प्रतिरोध का होगा।

  • वाट चूँकि शक्ति का एक छोटा मात्रक है। अत: व्यावहारिक अनुप्रयोगों में हम इसके 1000 गुना बड़े मात्रक किलोवाट का प्रयोग करते हैं।
  • चूँकि विद्युत ऊर्जा, विद्युत शक्ति और समय के गुणनफल के बराबर होती है। अतः अगर एक किलोवाट विद्युत शक्ति एक घंटे तक खर्च हो तो खर्च हुई विद्युत ऊर्जा 1 किलोवाट/घंटा होगी।
  • किलोवाट/घंटा ही विद्युत ऊर्जा का व्यापारिक मात्रक है, जिसे व्यावहारिक जीवन में एक 'यूनिट' भी कह देते हैं।

विद्युत का घरों में उपयोग

  • घरों में विद्युत की सप्लाई दो तारों के द्वारा की जाती है, जिसमें प्रथम तार को 'मेन लाइन' या 'जीवित तार' कहते हैं। यह प्रायः लाल रंग का होता है।
  • दूसरा तार उदासीन (Neutral) तार कहलाता है।
  • घरों के अंदर वितरण के पहले ही मेन लाइन में एक फ्यूज लगा होता है, जिसका गलनांक निम्न होता है। यह एक मिश्रधातु का बना होता है जो शीशा, टिन तथा ताँबे की मिश्रधात होती है।
  • परिपथ में कहीं शॉर्ट सर्किट होने या अधिक पावर सप्लाई होने पर उत्पन्न ऊष्मा के कारण यह फ्यूज पिघल जाता है,
  • जिससे परिपथ टूट जाता है और विद्युत उपकरण जलने या खराब होने से बच जाते हैं।
  • घरेलू परिपथ में विभिन्न विद्युत उपकरणों जैसे बल्ब, पंखा, टीवी आदि को समानांतर क्रम में जोड़ा जाता है।
  • घरेलू वायरिंग में एक भू-तार (अर्थिग) का भी प्रयोग किया जाता है जो प्रायः हरे रंग का होता है। यह एक सुरक्षा
  • युक्ति है जो घर की विद्युत सप्लाई को प्रभावित नहीं करती है। भू-तार को घर के निकट पृथ्वी में दबी एक धातु की प्लेट से जोड़ा जाता है।

विद्युत धारा के प्रभाव

विद्युत धारा के मुख्यतः निम्नलिखित प्रभाव होते हैं:

  • विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव : किसी चालक में विद्युत धारा के प्रवाह से चालक की तापवृद्धि को विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव (Heating effect of current) कहते हैं।
  • विद्युत धारा का प्रकाशीय प्रभाव : जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक गर्म होने के साथ ही प्रकाश (Light) का भी उत्पादन करने लगता है, जिसे विद्युत धारा का प्रकाशीय प्रभाव कहते हैं, जैसे: जब हम हीटर या बल्ब के तार (Wire) में धारा प्रवाहित करते हैं तो तार तप्त (Heat) होने के साथ ही प्रकाशमान भी हो जाता है। अंतर सिर्फ इतना होता है कि विद्युत हीटर में विद्युत ऊर्जा का अधिक भाग ऊष्मा में और थोड़ा भाग प्रकाश में रूपांतरित होता है, जबकि बल्ब में विद्युत ऊर्जा का अधिक भाग प्रकाश में और कम भाग ऊष्मा में परिवर्तित होता है।
  • विद्युत धारा का रासायनिक प्रभाव : जब किसी विद्युत अपघटक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह धनायनों और ऋणायनों में अपघटित (Decompose) होने लगता है, जिसे 'विद्युत अपघटन' या विद्युत धारा का 'रासायनिक प्रभाव' कहते हैं। विद्युत अपघटन का उपयोग, धातुओं का शुद्धीकरण, विद्युत लेपन, यौगिकों का विश्लेषण, विद्युत सेलों का निर्माण तथा मुद्रण में किया जाता है।
  • जब किसी चालक तार से विद्युत धारा का प्रवाह होता है तो चालक के परितः (चारों ओर) एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसे ही हम विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव कहते हैं।

  • ओमीय प्रतिरोध (Ohmic resistance) - जो चालक ओम के नियम का पालन करते हैं, उनके प्रतिरोध को ओमीय प्रतिरोध कहते हैं। जैसे-मैंगनीज का तार । 
  • अनओमीय प्रतिरोध (Non-ohmic resistance) - जो चालक ओम के नियम का पालन नहीं करते हैं, उनके प्रतिरोध को अनओमीय प्रतिरोध कहते हैं, जैसे-डायोड बल्ब का प्रतिरोध, ट्रायोड बल्ब का प्रतिरोध।

चालकता (Conductance)

किसी चालक के प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालक की चालकता कहते हैं। इसे G से सूचित करते हैं (G = 1/R)। इसकी SI इकाई ओम-1 (Ω-1) होता है, जिसे म्हो भी कहते हैं। (इसका SI इकाई सीमेन भी होता है।)

विशिष्ट प्रतिरोध

किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई के अनुक्रमानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् यदि चालक की लम्बाई l और उसकी अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A है, तो-

विद्युत धारा की दिशा मापने के लिए किसका उपयोग किया जाता है? - vidyut dhaara kee disha maapane ke lie kisaka upayog kiya jaata hai?

जहाँ p एक नियतांक, है जिसे चालक का विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है। अतः, एक ही पदार्थ के बने हुए मोटे तार का प्रतिरोध कम तथा पतले तार का प्रतिरोध अधिक होता है।

विशिष्ट चालकता (Conductivity)

किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालक का विशिष्ट चालकता कहते हैं। इसे α से सूचित करते हैं  (α = 1/p)। इसकी SI इकाई ओम-1 मीटर-1  (Ω-1 m-1) होती है।

प्रतिरोधों का संयोजन (Combination of resistance)

सामान्यतः प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार से होता है-

  • श्रेणी क्रम (Series combination) में
  • समानान्तर क्रम (Parallel combination) में

श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोधों का समतुल्य प्रतिरोध समस्त प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।

समानान्तर क्रम में संयोजित प्रतिरोधों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम (Inverse) उनके प्रतिरोधों के व्युक्रमों के योग के बराबर होता है।

अमीटर (Ammeter)

विद्युत् धारा को एम्पियर में मापने के लिए आमीटर नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है। इसे परिपथ में सदैव श्रेणी क्रम में लगाया जाता है। एक आदर्श आमीटर का प्रतिरोध शून्य होना चाहिए।

वोल्टमीटर (Voltameter)

वोल्टमीटर का प्रयोग परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर मापने में किया जाता है। इसे परिपथ में सदैव समानान्तर क्रम में लगाया जाता है। एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त होना चाहिए।

विद्युत् फ्यूज (Electricfuse)

विद्युत् फ्यूज का प्रयोग परिपथ में लगे उपकरणों की सुरक्षा के लिए किया जाता है, यह टिन (63%) व सीसा (37%) की मिश्रधातु का बना होता है। यह सदैव परिपथ के साथ श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है। इसका गलनांक कम होता है।

गैल्वेनोमीटर (Galvanometer)

विद्युत् परिपथ में विद्युत्-धारा की उपस्थिति बताने वाला एक यंत्र है। इसकी सहायता से 10-6 ऐम्पियर तक की विद्युत्-धारा को मापा जा सकता है।

  • शंट का उपयोग : शंट एक अत्यन्त कम प्रतिरोध वाला तार होता है, जिसे गैल्वेनोमीटर के समान्तर क्रम में लगाकर आमीटर बनाया जाता है। गैल्वेनोमीटर के श्रेणी-क्रम में एक उच्च प्रतिरोध लगाकर वोल्टमीटर बनाया जाता है।

ट्रांसफॉर्मर (Transformer)

विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करने वाला यह एक ऐसा यंत्र है, जो उच्च A.C. वोल्टेज को निम्न A.C. वोल्टेज में एवं निम्न A.C. वोल्टेज को उच्च A.C. वोल्टेज में बदल देता है। यह केवल प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

ए. सी. डायनेमो (या जेनरेटर) : यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करता है। यह विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।

विद्युत् मोटर (Electricmotor)

यह एक ऐसा यंत्र है, जो विद्युत् ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल देता है। यह विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य नहीं करता है।

माइक्रोफोन

यह ध्वनि ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करता है। माइक्रोफोन विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित होता है।

प्राथमिक शक्ति स्टेशनों पर जो विद्युत्-धारा उत्पन्न होती है, वह प्रत्यावर्ती धारा होती है तथा उसकी वोल्टता 22,000V या इससे अधिक हो सकती है। ग्रिड उपस्टेशन ट्रांसफॉर्मर की सहायता से वोल्टता बढ़ा देते हैं, जो 1,32,000V तक भी हो सकती है, ताकि विद्युत् संचरण में विद्युत् ऊर्जा का क्षय बहुत कम हो।

FAQ :

विद्युत धारा का si मात्रक क्या है?

विद्युत धारा का SI मात्रक एंपियर (A) होता है.

विद्युत शक्ति का si मात्रक क्या है?

विद्युत शक्ति का si मात्रक वाट होता है.

आमीटर को विद्युत परिपथ में कैसे जोड़ा जाता है?

श्रेणीक्रम.

विद्युत धारा को मापने के लिए किसका उपयोग किया जाता है?

सही उत्तर एमीटर है। एक एमीटर एक उपकरण है जिसका उपयोग परिपथ को धारा को मापने के लिए किया जाता है। यह दिष्ट धारा या प्रत्यावर्ती धारा को एम्पीयर (A) में मापता है।

विद्युत धारा मापने वाले यंत्र को क्या कहते हैं?

अमीटर:- धारा मापने के यंत्र को "अमीटर" कहते हैं

धारा मापने में किसका उपयोग किया जाता है?

ऐमीटर या 'एम्मापी' (ammeter या AmpereMeter) किसी परिपथ की किसी शाखा में बहने वाली विद्युत धारा को मापने वाला यन्त्र है

विद्युत धारा की दिशा किधर होती है?

पारंपरिक धारा की दिशा धनात्मक आवेशों की दिशा के संगत होती है जो उच्च विभव(धनात्मक) से निम्न विभव (ऋणात्मक)की ओर होता है। विद्युत धारा इलेक्ट्रॉनों की गति से जुड़ी होती है जो निम्न विभव(ऋणात्मक) से उच्च विभव(धनात्मक) की ओर होती है, इसलिए, विद्युत धारा की दिशा पारंपरिक धारा के विपरीत होती है।