आत्मत्राण कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है? - aatmatraan kavita se aapako kya prerana milatee hai?

Solution :  .आत्मत्राण. कविता से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने काम एवं दायित्वों को पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ पूर्ण करें। हम अपने कार्यों के लिए ईश्वर पर निर्भर न रहें, बल्कि स्वयं के अन्दर ऐसी शक्ति एवं क्षमता विकसित कर लें, जिससे विषम परिस्थितियों एवं कठिनाइयों से जूझने की शक्ति हमारे अन्दर मौजूद हो। हमारा आत्मबल एवं पराक्रम डगमगाए नहीं। हम ईश्वर पर कभी भी संशय न करें। उनकी क्षमता असीमित है, लेकिन अपने प्रभु से हमें अपने दुःखों को हरने की या समाप्त करने की प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। हमें ईश्वर की क्षमता पर संशय न करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने तथा शक्ति एवं साहस प्रदान करने की प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि हम अपनी मुसीबतों से स्वयं ही संघर्ष कर सकें।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आत्मत्राण कविता में कवि किससे क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर: आत्मत्राण कविता में कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए भयमुक्त होकर बाधाओं को दूर करने की शक्ति माँगता है और आत्मबल व पुरुषार्थ की कामना करता है।

प्रश्न 2. आत्मत्राण कविता के आधार पर कवि निर्भय होकर क्या वहन करना चाहता है?
उत्तर:
आत्मत्राण कविता के आधार पर कवि निर्भय होकर अपने उत्तरदायित्व को वहन करना चाहता है।

प्रश्न 3. सुख के दिनों में कवि को क्या अपेक्षा है?
उत्तर:
कवि को सुख के दिनों में अहंकार मुक्त होकर विनम्र रहने की अपेक्षा है।

प्रश्न 4. दुःख आने पर कवि क्या नहीं करना चाहता?
उत्तर:
दुःख आने पर कवि ईश्वर पर कोई संशय नहीं करना चाहता।

लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
अथवा
‘आत्मत्राण’ कविता में विपत्ति आने पर ईश्वर से कवि क्या प्रार्थना करता है ?
अथवा
‘आत्मत्राण’ कविता में कवि ने करुणामय से क्या प्रार्थना की है?
उत्तर:
‘आत्मत्राण’ कविता में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने करुणामय ईश्वर से प्रार्थना की है कि हे करुणामय मुझे विपदाओं से बचाओ, संकट के समय मैं कभी भयभीत न होऊँ। दुःखों पर मैं विजय प्राप्त कर सकूँ, बल और पुरुषार्थ नहीं हिले, हानि उठाने की क्षमता प्रदान करो। दुःख आने पर भी मैं आप पर कोई संशय नहीं करूँ तथा सुखों में मेरा कल्याण करो।

प्रश्न 2. ‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’-कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर:
इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि हे प्रभु। मुझे आप मुसीबतों और कठिनाइयों से भले ही न बचाओ। जब मेरा चित्त मुसीबतों तथा दुःखों से बेचैन हो जाए तो भले सांत्वना भी मत दो। पर हे प्रभु! बस आप इतनी कृपा अवश्य करना कि मैं मुसीबत तथा दुःखों से घबराऊँ नहीं, बल्कि उनको सहर्ष सहन कर उनका मुकाबला करूँ।

प्रश्न 3. कवि कोई सहायक न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है ?
उत्तर: 
कवि कहता है कि यदि ऐसी परिस्थिति आ जाए कि कोई सहायक भी न मिले, अर्थात् कोई सहायता करने वाला भी न हो तो भी मेरा आत्मबल, हिम्मत, साहस और बल-पौरुष बना रहे। अर्थात् कवि ईश्वर से साहस माँग रहा है ताकि वह दुःखों का सामना कर सके।

प्रश्न 4. ‘आत्मत्राण’ कविता के आधार पर बताइए कि दुःख और कष्टों के आने पर कवि ईश्वर से क्या चाहता है ?
उत्तर:
कवि ईश्वर से विपदाओं से बचने की प्रार्थना नहीं करता अथवा दुःख-संताप से परेशान हृदय को सांत्वना देने की प्रार्थना नहीं करता, वह केवल यह प्रार्थना करता है कि वह विपदाओं से विचलित और भयभीत न हो। वह निर्भीक होकर उनका सामना करने की शक्ति चाहता है।

प्रश्न 5. ‘आत्मत्राण’ कविता की पंक्ति ‘तव मुख पहचानूँ छिन:छिन में’ का भाव अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 
‘आत्मत्राण’ कविता की पंक्ति में यह भाव है कि मैं अपना सिर झुकाकर सुख के दिन में सुख को पहचान कर समय को बिताते हुए दुःख और सुख के महत्त्व को समझूँ उसके लिए प्रभु आप मुझे धैर्य गुण प्रदान करना।

प्रश्न 6. ‘आत्मत्राण’ कविता में कवि अंत में क्या अनुनय/प्रार्थना करता है?
उत्तर:
अंत में कवि यह अनुनय करता है कि मैं सिर झुकाकर सुख और दुःख दोनों प्रकार के दिन पहचानते हुए अपना समय व्यतीत कर सकूँ। दुःखों का सामना पृथ्वी पर रात्रि के व्यतीत होने की तरह प्रतीक्षा करके कर सकूँ।

प्रश्न 7. ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
आत्मत्राण का अर्थ है-स्वयं अपनी सुरक्षा करना। इस कविता में कवि ईश्वर से सहायता नहीं माँगता। वह ईश्वर को हर दुःख से बचाने के लिए नहीं पुकारता। वह स्वयं अपने दुःख से बचने और उसके योग्य बनना चाहता है। इसके लिए वह केवल स्वयं को समर्थ बनाना चाहता है। इसलिए यह शीर्षक विषय वस्तु के अनुरूप बिलकुल सही और सटीक है।

प्रश्न 8. ‘आत्मत्राण’ कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर:
यह कविता हमें प्रेरणा देती है कि हम भी संसार के दुःखों से न भागकर उन्हें निडर होकर सहन करें, उन पर विजय पाएँ और आस्थावान बने रहें हम परमात्मा से दुःख सहन करने की शक्ति माँगेंगे। हम सुख में भी परमात्मा को याद करना तथा उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना न भूलें।

प्रश्न 9. ‘आत्मत्राण’ कविता का मुख्य संदेश क्या है ?
उत्तर:
(1) हम-आत्मनिर्भर बनकर जीवन जिएँ।
(2) हम-अपने मन की शक्ति को पहचानकर विषम परिस्थितियों का सामना करें।
(3) हम-सुख-दुःख दोनों ही अवस्थाओं में एकसमान रहकर भगवान को याद करें।

प्रश्न 10. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है ? यदि हाँ, तो कैसे ?
अथवा
‘आत्मत्राण’ कविता की प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है, कैसे? सिद्ध कीजिए।
उत्तर: कवि की यह प्रार्थना अन्य अनेक प्रार्थनाओं से भिन्न है। अधिकांश प्रार्थनाओं में कष्ट हरने, इच्छा पूर्ति करने की याचना व ईश्वर आश्रय का अनुग्रह होता है। इसमें परमात्मा से आत्मविश्वास, मनोबल दृढ़ करने की कामना व कर्मठता, स्वावलम्बन की याचना की गई है।

प्रश्न 11. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं ? लिखिए।
उत्तर:
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम प्रार्थना के अतिरिक्त निम्न प्रयास करते हैं-
(1) अपने अभिभावकों से र्पूिर्त के लिए आग्रह करते हैं।
(2) स्वयं के परिश्रम एवं श्रम द्वारा इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।
(3) जो इच्छाएँ सरलता से पूर्ण हो सकती हैं उनके लिए कोशिश करते हैं।

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आत्मत्राण कविता हमें क्या संदेश देती है?

Solution : आत्मत्राण. कविता में कवि की प्रार्थना से यह संदेश मिलता है कि मनुष्य के सामने कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ आएँ उसे ईश्वर पर से अपना विश्वास नहीं खोना चाहिए। उसे संसार के सभी लोगों से वंचना मिले पर प्रभु पर से उसका विश्वास डगमगाए नहीं।

आत्म परिचय कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

आत्म-परिचय' कविता हमें अपने मन के अनुकूल जीवन जीने की प्रेरणा देती है। हमें सांसारिक जीवन की समस्याओं से जूझते हुए भी सभी से स्नेह करना चाहिए। जीवन के सुख-दुःख को समभाव से सहन करना चाहिए। परछिद्रान्वेषण तथा चाटुकारिता से दूर रहना चाहिए।

आत्मत्राण कविता में कवि ने क्या प्रेरणा दी है?

आत्मत्राण. कविता से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने काम एवं दायित्वों को पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ पूर्ण करें। हम अपने कार्यों के लिए ईश्वर पर निर्भर न रहें, बल्कि स्वयं के अन्दर ऐसी शक्ति एवं क्षमता विकसित कर लें, जिससे विषम परिस्थितियों एवं कठिनाइयों से जूझने की शक्ति हमारे अन्दर मौजूद हो।

आत्मत्राण कविता का मूल उद्देश्य क्या है?

उत्तर : 'आत्मत्राण' कविता के कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ईश्वर से अपनी जीवन नैया पार लग की शक्ति को बनाए रखने की प्रार्थना कर रहा है।