भगवान ने मानव जीवन कैसे बनाया? - bhagavaan ne maanav jeevan kaise banaaya?

भगवान ने मानव जीवन कैसे बनाया? - bhagavaan ne maanav jeevan kaise banaaya?
मनमोहन कुमार आर्य

हम मनुष्य हैं इसलिये कि हमारे पास मनन करने के लिए बुद्धि है। बुद्धि से हम अध्ययन कर सकते हैं और सत्य व असत्य का निर्णय करने में सक्षम हो सकते हैं। मनुष्य अपनी बुद्धि की उन्नति किस प्रकार करते हैं, यह प्रायः हम सभी जानते हैं। मनुष्य का जीवन माता के गर्भ से जन्म के साथ आरम्भ होता है। हम एक जीवात्मा हैं। हमें परमात्मा ने ज्ञान प्राप्ति, पुरुषार्थ एवं साधना आदि करने के लिए यह शरीर दिया है। जन्म से पूर्व हमारा क्या व कैसा अस्तित्व था यह हम भूले हुए हैं। जिस प्रकार हमें दिन भर के अपने समस्त व्यवहार स्मरण नहीं रहते उसी प्रकार पूर्व जन्म की बातें कि हम पूर्व जन्म में क्या थे, कहां थे, इसका हमें कुछ भी ज्ञान नहीं रहता। ऐसा होना सम्भव कोटि में आता है। इससे यह सिद्ध नहीं होता कि हमारा पूर्व जन्म नहीं था और कि यह हमारा प्रथम व सर्वथा नया जन्म है। शास्त्रों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि हमारी आत्मा सत्य, चित्त, ज्ञान व कर्म करने में समर्थ, जन्म व मरण के बन्धन से आबद्ध और वेद ज्ञान व साधना से मोक्ष प्राप्ति में समर्थ, अनादि, नित्य, अविनाशी, अमर, एकदेशी व ससीम है। आत्मा का यह स्वरूप विचार करने पर सत्य सिद्ध होता है। हमें अपनी आत्मा के स्वरूप का अध्ययन व मनन करते रहना चाहिये जिससे हम कर्तव्य से विमुख न हो सकें। इसके साथ ही हमें वेदाध्ययन करते हुए इतर वैदिक आर्ष साहित्य का भी अध्ययन करना चाहिये जिससे हमें ईश्वर के स्वरूप व उसके प्रति ईश्वरोपासना, यज्ञ कर्मों का भी स्मरण रहे व हम इन्हें सामर्थ्यानुसार करते रहें।

हम जीवात्मा हैं और इस संसार के रचयिता ईश्वर ने हमें अपने माता-पिता के द्वारा मनुष्य जन्म दिया है। ईश्वर न्यायकारी एवं पक्षपात से रहित है। अतः मनुष्य जन्म होने का कारण जीवात्मा के कुछ विशेष गुण आदि ही हो सकते हैं। शास्त्र बतातें हैं कि मनुष्य जन्म पूर्व जन्म के प्रारब्ध के अनुसार मिला करता है। यदि पूर्व जन्म में हमारे शुभ कर्म अशुभ कर्मों से अधिक होते हैं तो हमारा मनुष्य जन्म होता है। यह उचित ही प्रतीत होता है। वर्तमान में भी हम देखते हैं कि विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए अगली कक्षा में उन्नति व उत्तीर्ण होने के लिए कुछ निर्धारित अंक होते हैं। कहीं यह 33 प्रतिशत होते हैं तो कहीं यह इससे अधिक भी होते हैं। प्रथम श्रेणी के लिए 60 प्रतिशत अंक माने जाते हैं। ऐसे ही मनुष्य जन्म के लिए शुभ एवं अशुभ कर्म आधार बनते हैं। हमारा मनुष्य जन्म यह इंगित करता है कि हमने पिछले जन्म में 50 प्रतिशत से अधिक अच्छे कर्म किये थे। जो जीवात्मायें पशु, पक्षी आदि अनेकानेक योनियों में हैं उसका कारण यह है कि उनके शुभ कर्म आधे से कम रहे थे। परमात्मा क्योंकि सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी और सब प्राणियों के हर क्षण का साक्षी होता है इसलिये उसे जीवात्माओं के हर कर्म का ज्ञान होता है। उसे किसी जीव के कर्मों व उसी भावी जन्म योनि के निर्धारण करने में कठिनता नहीं होती। यह उसके लिए स्वभाविक कर्म की भांति सरल होता है। अतः कर्म ही हमारे इस जन्म व भावी जन्मों के आधार हैं व होंगे। अतः हमें इस जन्म व भावी जन्मों में सुख प्राप्ति के लिए सद्कर्मों पर विशेष ध्यान देना चाहिये और किसी भी दशा में असत्याचरण व बुरे काम नहीं करने चाहिये।

हम मनुष्य हैं तो हमें अपने उद्देश्य व लक्ष्य का भी ज्ञान होना चाहिये। शास्त्रों का अध्ययन एवं विचार करने पर यह ज्ञान होता है कि दुःखों की निवृत्ति व जन्म मरण के बन्धन से छूटना ही मनुष्य जन्म का उद्देश्य है। हर व्यक्ति जो कार्य करता है वह थक जाता है और चाहता है कि उसे अवकाश मिले। ऐसी ही कुछ कुछ व्यवस्था मोक्ष की भी है। जो मनुष्य इस जीवन में वेदाध्ययन कर ईश्वरोपासना और परोपकारादि कर्म करके वेदानुसार सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं उन्हें एक व कुछ जन्मों के बाद योगाभ्यास करते हुए ईश्वर साक्षात्कार हो जाने पर मोक्ष की प्राप्ति सम्भव होती है। यह ईश्वर का विधान है। हम केवल अनुमान कर सकते हैं। हमारे ऋषियों ने इन तथ्यों का साक्षात किया था। उन्होंने जो बताया वह हमारे लिए प्रमाणिक है। उसी के अनुसार हम ईश्वर की मोक्ष व्यवस्था जानने में समर्थ हुए हैं। ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश के नवम् समुल्लास में इसका विस्तार से वर्णन भी किया है। पाठकों को सत्यार्थप्रकाश अवश्य पढ़ना चाहिये। इससे उनका आध्यात्मिक व सांसारिक विषयों का ज्ञान कहीं अधिक वृद्धि को प्राप्त हो सकता है। हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य तो पुरुषार्थ एवं योगाभ्यास ही है और ऐसा करते हुए ईश्वर का साक्षात्कार करना व परोपकार के कार्य करना ही जीवन का उद्देश्य निर्धारित होता है। हमें अधिक से अधिक स्वाध्याय व तदनुरूप साधना करनी चाहिये जिससे हम मोक्ष के विपरीत दिशा में न चलकर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़े और लक्ष्य को प्राप्त करें।

ईश्वर ने हमें मनुष्य जन्म में सुख प्राप्ति और ज्ञान प्राप्ति के द्वारा सद्कर्म करने के लिए मनुष्य जन्म दिया है जिससे हम वेद की मान्यताओं के अनुसार साधना करके ईश्वर का साक्षात्कार कर सकें और ईश्वर कृपा, न्याय व दया से मोक्ष को प्राप्त कर सकें। इस चर्चा को यहीं पर विराम देते हैं। ओ३म् शम्।

बहुत से विषय ऐसे हैं जिन पर कभी न समाप्त होने वाली बहस हो सकती है। इनमे धर्म और भगवान का अस्तित्व सबसे अधिक चर्चित विषय हैं और इन बातों पर कभी भी लोग एकमत नहीं हो सकते। जीवन की शरुआत कैसे हुई इसके विषय में हमारे धर्म ग्रंथों और विज्ञान दोनों के विचार बिलकुल अलग हैं। विज्ञान के अनुसार इस सृष्टि की रचना स्वतः ही हुई है। यहाँ तक कि जीव जंतु मानव सब अपनेआप ही उत्पन्न हुए हैं। स्टेफेन हॉकिंस जैसे महान वैज्ञानिक ने भी कहा था कि इस दुनिया में जो भी है वो स्वयं ही उत्पन्न हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार किसी भी चीज़ को बनाने के लिए एक रचयिता की आवश्यकता होती है परन्तु वहीँ विज्ञान यह भी कहता है कि प्रत्येक चीज़ जो बनती है उसे बनाने के लिए किसी रचयिता कोई आवश्यकता नहीं होती।

स्टेफेन हॉकिंस ने बहुत शोध करके यह निष्कर्ष निकाला कि यह ब्रह्माण्ड एक प्राकृतिक घटना है और भगवान का कोई अस्तित्व नहीं है। स्टीफन हॉकिंग ने बिग बैंग थ्योरी के माध्यम से ब्रह्माण्ड की रचना को समझाया था जिसके अनुसार लगभग १५ अरब वर्ष पहले सभी भौतिक तत्व और ऊर्जा एक ही बिंदु में एकत्रित थे। फिर इस बिंदु का विस्तार होना आरंभ हुआ। यह एक विस्फोट की तरह था जो बम विस्फोट से अलग था। इसमें प्रारम्भिक ब्रह्माण्ड के कण पुरे अंतरिक्ष में फ़ैल गए और एक दूसरे से दूर भागने लगे। स्टेफेन हाकिंग ने बताया कि बिग बैंग से पहले समय का कोई अस्तित्व ही नहीं था और जब समय जैसी कोई चीज़ ही नहीं थी तो भगवान ने कैसे ब्रह्माण्ड का निर्माण किया। इसका अर्थ है कि ब्रह्माण्ड को बनाने में भगवान का कोई रोल ही नहीं था। उन्होंने यह भी बताया था कि ब्रह्माण्ड में कुछ ऐसे नियम हैं जो किसी भी स्थिति में बदल नहीं सकते, वो वैसे के वैसे ही रहेंगे। तो जब सब कुछ नियमों के आधार पर ही होता है तो भगवान की ब्रह्माण्ड को रचने में क्या भूमिका है। 

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अब अगर विज्ञान की बात मानी जाए तो क्या कुछ भी इतने व्यवस्थित ढंग से उत्पन्न हो सकता है? यह प्रकृति, पेड़ पौधे, ऋतुएँ, पशु, मनुष्य आदि सबकी संरचना इतनी व्यवस्थित कैसे है? ऋतुएं अपने समय पर ही परिवर्तिति होती हैं।  मौसम के अनुसार ही फल और सब्ज़ियां उगते हैं। मानव शरीर को सबसे जटिल यंत्र माना जाता है।  यह इतने उत्तम ढंग से रचित है कि इसकी वृद्धि भी एक निश्चित समय पर ही होती है। आयु के अनुसार ही मानव का शरीर विकसित होता है। शिशु नौ महीने तक माँ के गर्भ में रहता है और ठीक नौ महीने बाद ही इस संसार में आता है। बच्चे के जन्म के पश्चात ही माँ स्तनपान करने योग्य हो जाती है। यहाँ तक कि शिशु स्वयं ही स्तनपान करने लगता है, उसे सीखना नहीं पड़ता। मानव शरीर इस तरह से संरचित है कि इसके अलग अलग अंग अलग तरह की भूमिका पूरी करते हैं। दिल, दिमाग, हड्डियां, हाथ, पाँव, कान, आँख आदि ये कैसे अपने आप बन गए और बहुत बेहतर ढंग से चलित हैं। यही बात इस संसार के सभी जीवों पर लागू होती है। 

क्या आप ऐसा सोचते हैं कि इस प्रकार की व्यवस्थित प्रकृति मात्र एक संयोग है? यह सब अपनेआप ही इस तरह से बन गया? ऐसी व्यवस्था अपनेआप हुई है, इस पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। आप खुद सोचिये कि मनुष्य ने जटिल से जटिल यंत्र बनाये हैं। उदाहरण के लिए कंप्यूटर, यदि ये किसी ने नहीं बनाया होता तो क्या एक कंप्यूटर स्वतः बन सकता था और इस प्रकार कार्य करने में सक्षम होता कि आज हम और आप अपनी जगह बैठे बैठे हर काम कंप्यूटर के माध्यम से कर सकते हैं। 

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पुराने दुर्गों में आपने देखा होगा के दुर्ग के बाहर हर ओर बहुत बड़े और गहरे गड्ढे बनाकर उनमें पानी भरा जाता था जिससे शत्रु यदि आक्रमण करे तो उसे दुर्ग में प्रवेश करने का मौका ही न मिले, वहीँ दुर्ग के अंदर दीवारें इस प्रकार से बनायीं जाती थीं कि ठण्ड के मौसम में कमरे गर्म रहें और गर्मी में ठन्डे। यहाँ तक कि इन दीवारों के माध्यम से दूसरे कमरे में हो रही बातें भी सुनी जा सकती थीं जो सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। तो यदि किसी ने इतनी प्लानिंग नहीं की होती तो क्या इस प्रकार के व्यवस्थित दुर्गों या इमारतों का निर्माण संभव था? 

यदि हमारे वेदों को पढ़ा जाए तो ब्रह्माण्ड और इस सृष्टि के विषय में सम्पूर्ण जानकारी है। 

इस ब्रह्माण्ड का कोई अंत नहीं है. हमें लगता है कि पूरे ब्रह्माण्ड में सबसे बुद्धिमान केवल हम हैं तो हमसे अधिक बुद्धिहीन कोई नहीं है. अगर विश्वास नहीं आता तो एक बार केवल सौर मंडल की व्याख्या पढ़ लीजिये और देखिये कि हमारा अस्तित्व कहाँ है. केवल एक क्षण में आपको समझ आ जायेगा कि इस दृष्टि से हम भी कीड़े मकोड़ों के समान ही तुच्छ हैं। 

हम सभी का यह विश्वास है कि हमें भगवान, अल्लाह, जीसस ने बनाया। अलग अलग धर्मों में ईश्वर को अलग अलग नाम दिए जाते हैं। तो अब प्रश्न यह आता है कि यदि हमें भगवान ने बनाया तो भगवान को किसने बनाया?

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मनुष्य अपनी उत्पत्ति से आज तक यह जान्ने का प्रयास करता रहा है कि भगवान कौन है? और भगवान को किसने उत्पन्न किया। मनुष्य ने इतनी उन्नति कर ली कि वो चन्द्रमा पर पहुँच गया बहुत सी चौका देने वाले आविष्कार और खोजें कीं परन्तु जब यह प्रश्न आता है कि भगवान आखिर है कौन और उसका रचेयता या विधाता कौन है तो आज भी हम चुप्पी साध लेते हैं क्यूंकि इस प्रश्न का कोई उत्तर हमारे पास नहीं है। 

वेदों में उल्लेखनीय है कि ब्रह्माण्ड में तीन आयाम हैं, इस तीनों आयामों में अलग अलग ग्रह हैं और जीवन भी है। भगवान और देवता जब भी धरती पर प्रकट होते हैं तो वो दूसरे आयामों से यहाँ आते हैं जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि भगवान कोई और नहीं बल्कि एलियंस हैं यानि दूसरे ग्रहों से आते हैं। इसका उदाहरण है इस प्रसिद्द पुस्तक “The Chariots of Gods” जिसके लेखक Erich von Däniken हैं। इस प्रकार के विचारों को सुनकर तो यही लगता है कि बहुत से लोग जो भगवान को एलियन या दूसरे ग्रहों से आया हुआ कहते हैं वे केवल अपने विचार रखते हैं या उनका इस विषय में ज्ञान सीमित है। इस प्रकार के लोग यदि हमारे वेदों को पढ़ लें तो निश्चित ही उन्हें अपने विचारों को बदलने कि लिए मजबूर होना पड़ेगा

अनेक वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में तीन आयाम है जिनमे से समय सबसे छोटा है परन्तु वेदों से तुलना की जाये तो अभी विज्ञान बहुत पीछे है क्यूंकि वेदों में कुल ६४ आयामों का वर्णन मिलता है। इन आयामों को भी यदि विभाजित किया जाए तो अनगिनत आयाम हैं। वेदों में यह भी उल्लेखनीय है कि यह तीन आयामी ब्रह्माण्ड विभिन्न स्तरों में विभाजित हैं जिनमे स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक या मृत्युलोक और नर्कलोक सम्मिलित हैं। भगवान विभिन्न आयामों से पृथ्वी पर धर्म की शिक्षा देने और मनुष्य जीवन का उद्देश्य समझाने के लिए समय समय पर अवतरित होते हैं। कहा गया है कि स्वर्गलोक में देवता निवास करते हैं जो मृत्युलोक की तुलना में कहीं बेहतर है परन्तु वहां भी मृत्यु होती है और यदि वहां भी किसी के कर्म ख़राब हैं या शास्त्रों कि अनुसार जीवन व्यतीत नहीं कर रहा तो उसे नीचे के लोकों में जन्म मिलता है। 

भागवद्पुराण में वैकुण्ठधाम का वर्णन है जहाँ भगवान विष्णु या कृष्ण निवास करते हैं और जिसे आत्मा का गंतव्य स्थान कहा गया है अर्थात जब आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है तो उसे वैकुण्ठ धाम प्राप्त होता है। इसी कारण हम भगवान पर आश्रित हैं क्यूंकि वही हमारा करता धर्ता है और हमारे जीवन में सब कुछ तय करता है। एरीच वॉन डैनिकन के अनुसार भगवान कृष्ण भी दूसरे ग्रह से यहाँ आये थे। जबकि सोचने वाली बात यह है कि जो दूसरे ग्रह से आते हैं वे अपने रूप में ही आते हैं न कि पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। भगवान राम, भगवान कृष्ण आदि ने पृथ्वी पर जन्म लिया था जिससे वे हमें ये समझा सकें कि किस प्रकार एक मनुष्य को जीवन व्यतीत करना है। कल्पना कीजिये कि कोई एलियन यहाँ आकर जन्म ले रहा है और मनुष्य रूप धारण करके धर्म का पाठ पढ़ा रहा है, क्या यह संभव है? तो यह सब जानकार आपको क्या लगता है, क्या भगवान वास्तव में है? क्या भगवान की हमारे जीवन में या हमारी रचना करने में कोई भूमिका नहीं है?

यदि आप थोड़ा भी विश्वास रखते हैं कि भगवान हैं तो उससे प्रेम कीजिये न कि उसके अस्तित्व पर शंका रखिये। शास्त्रों में इस प्रकार की अनेक बातें कही गयी हैं जो आप भक्ति के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। यदि भगवान नहीं है तो यह कैसे संभव है? और हाँ भगवान से प्रेम करने के लिए आपको संसार के प्रत्येक जीव से प्रेम करना होगा क्यूंकि सब कुछ उसकी ही रचना है और जो भगवान का अंश है उसमे भी परमात्मा का वास है, प्रत्येक आत्मा में परमात्मा का वास है। मन से घृणा, निंदा, आलोचना, छल ये सब भाव निकाल दीजिये और प्रेम बांटते चलिए। जीवन को खुशहाल बनाने का इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है। और यदि आप ऐसा करेंगे तो भगवान स्वयं ही आपसे प्रेम करेंगे। 

ईश्वर ने मनुष्य को क्यों बनाया?

ईश्वर ने हमें मनुष्य जन्म में सुख प्राप्ति और ज्ञान प्राप्ति के द्वारा सद्कर्म करने के लिए मनुष्य जन्म दिया है जिससे हम वेद की मान्यताओं के अनुसार साधना करके ईश्वर का साक्षात्कार कर सकें और ईश्वर कृपा, न्याय व दया से मोक्ष को प्राप्त कर सकें।

क्या भगवान ने हमें जीवन दिया है?

भगवान ने हमें ये मनुष्य जीवन क्यों दिया है? भगवान ने अनन्त जन्मों के बाद यह देवदुर्लभ मानव शरीर दिया है। यह हमारी ताकत से नही, भगवद कृपा से मिला है। हमारी दशा देखकर अकारण करुणाकरण, परम सुहृद को हम पर दया आई और अपने वास्तविक घर (गौलोक, साकेत इत्यादि) लौटने का एक सुअवसर प्रदान किया है।

क्या भगवान पहले आदमी थे?

भगवान ब्रहमा द्वारा बनाए गए पुरूष थे मुन और स्त्री। आज हमारी सांसारिक दुनिया में जितने भी लोग मौजूद हैं यह सभी मनु से उत्पन्न हुए हैं।

भगवान ने हमें कैसे बनाया है?

इस किताब में हॉकिंग ने कहा है कि संसार के होने और बनने के किसी सवाल के जवाब के लिए हमें भगवान की शरण में जाने की जरूरत नहीं है। इससे जुड़े हर सवाल का जवाब हमें कुदरत के कायदों से ही मिलने वाला है, यानी फिजिक्स के नियम ही संसार के भगवान हैं। संसार को किसी भगवान ने नहीं बनाया। वह अपने कायदों के तहत खुद-ब-खुद बना है।