भारत में ग्रामीण विकास क्यों महत्वपूर्ण है बताइए? - bhaarat mein graameen vikaas kyon mahatvapoorn hai bataie?

Rural development in hindi : हमारे देश की जनसंख्या का एक बडा हिस्सा आज भी ग्रामीण इलाकों में निवास करते है। देश के इस विशाल जनसंख्या की बुनियादी सुविधाओं को संसोधित किये बिना देश का समग्र विकास अधूरा है। अतः ग्रामीण विकास (rural development in hindi) ही राष्ट्रीय विकास का केंद्र बिंदु है। अब प्रश्न उठता है कि आखिर यह ग्रामीण विकास क्या है ? तथा ग्रामीण विकास से ग्रामीण जीवन स्तर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?। तो चलिए किसान सहायता के इस खास लेख में हम इसी ग्रामीण विकास के बारे मे विस्तार से जानते है। और सबसे पहले बात कर लेते है कि आखिर ग्रामीण विकास क्या है ?

ग्रामीण विकास क्या है ? | what is rural development in hindi :

रूरल डेवलपमेंट एक व्यापक शब्द है। यह मूलतः ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उन घटकों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने पर बल देता है जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सर्वागीण विकास में पिछड़ गए हैं।

ग्रामीण विकास का अर्थ | meaning of rural development in hindi :

रूरल डेवलपमेंट का अर्थ ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास से है जो ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रही जनता का आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान करके उनके जीवन स्तर में सुधार लाने से लगाया जाता हैं।

ग्रामीण विकास की परिभाषा | definition of rural development in hindi :

विभिन्न विद्वानों ने ग्रामीण विकास को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किये है

(A). आर. एन. आजाद के मतानुसार : ग्रामीण विकास का अर्थ, आर्थिक विकास की प्रक्रिया हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यक अवसंरचनात्मक विकास करना, जिसमें लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास तथा विपणन जैसी द्वितीयक एवं तृतीयक सेवाओं का विकास सम्मिलित है।

(B). उमा लैली के अनुसार : ग्रामीण विकास से अभिप्राय ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अनेकानेक निम्न आय वर्ग के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना और उसके विकास के क्रम को आत्मपोषित बनाना है।

(C). विश्व बैंक के अनुसार : सामान्य रूप से ग्रामीण विकास, एक ग्रामीण परिवेश वाले लोगों के आर्थिक और सामाजिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए, बनाई गई रणनीति है। जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों, छोटे व सीमांत किसानों और भूमिहीन मजदूरों पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है।

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ग्रामीण विकास का महत्व | important of rural development in hindi :

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत गांवों का देश है। अतः भारतीय गांवों के विकास के बिना समग्र भारत का विकास संभव ही नहीं। महात्मा गांधी जी ने भी एक बार कहे थे कि भारत की वास्तविक विकास का तात्पर्य शहरी औद्योगिक केंद्रों का विकास नहीं, बल्कि मुख्य रूप से गांवों के विकास ही है।

इसे सुनेंरोकेंविभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का उद्देश्य गरीबी दूर करना है। इसके लिए कोष को अधिक से अधिक बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं है। बेहतर परिणामों के लिए बुनियादी स्तर पर कुछ परिवर्तन लाना आवश्यक है।

ग्रामीण विकास की क्या आवश्यकता है?

इसे सुनेंरोकेंग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों का बढ़ी हुई भागीदारी, योजनाओं का विकेन्द्रीकरण, भूमि सुधारों को बेहतर तरीके से लागू करना और ऋण की आसान उपलब्धि करवाकर लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का लक्ष्य होता है। प्रारंभ में, विकास के लिए मुख्य जोर कृषि, उद्योग, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और संबंधित क्षेत्रों पर दिया गया था।

विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का उद्देश्य गरीबी दूर करना है। इसके लिए कोष को अधिक से अधिक बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं है। बेहतर परिणामों के लिए बुनियादी स्तर पर कुछ परिवर्तन लाना आवश्यक है। इस पूरी प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है उन लोगों की पहचान करना जिन्हें इन कार्यक्रमों से लाभ पहुँचाया जाना है।

भारत ग्राम-प्रधान देश है और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के बिना राष्ट्रीय विकास सम्भव नहीं है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व भी हमारे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक नेताओं की यही मान्यता थी। वास्तव में स्वतन्त्रता संग्राम का एक आधार यह भी था कि ब्रिटिश राज के दौरान ग्रामीण भारत की अनदेखी की जा रही थी। महात्मा गाँधी ने तो ‘ग्राम-स्वराज’ को ही स्वतन्त्र भारत के आर्थिक विकास के केन्द्र-बिन्दु के रूप में देखा।

आज देश को स्वतन्त्र हुए पचास वर्ष हो चुके हैं और महात्मा गाँधी का ग्रामीण विकास का आह्वान आज भी बरकरार है। तेजी से हो रहे शहरीकरण के बावजूद हमारी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा आज भी गाँवों में रह रहा है। प्रतिशत के हिसाब से हो सकता है ग्रामीण जनसंख्या में कुछ कमी आई हो लेकिन आर्थिक विकास के कार्यक्रमों के लिए ग्रामीणों की कुल संख्या अब भी काफी है।

ऐसा नहीं है कि विकास कार्यक्रमों में कोई प्रगति नहीं हुई है लेकिन उनकी गति और उपलब्धियाँ वाँछित स्तर की नहीं है। ग्रामीण विकास को हमेशा कृषि विकास के साथ जोड़ा गया और यह मान लिया गया कि कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि आ जाएगी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के एक दशक बाद वैचारिक परिवर्तन हुआ। ‘अधिक अन्न उपजाओ’ जाँच समिति ने केवल कृषि या कृषि से जुड़ी अन्य गतिविधियों जैसे पशुपालन आदि को ही नहीं अपितु इसके साथ-साथ ग्रामीणों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक-आर्थिक जरूरतों के समन्वित कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया।

सामुदायिक विकास


सामुदायिक विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय विस्तार योजना इसी सिफारिश के तहत शुरू किए गए। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 100 से 120 गाँवों का एक ब्लॉक योजना और समन्वित ग्राम विकास की मूल इकाई बना दिया गया। इसमें कृषि और इससे जुड़ी अन्य गतिविधियाँ, शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज-कल्याण, संचार, अनुपूरक रोजगार आदि भी शामिल किए गए और स्वावलम्बन तथा आम आदमी की भागीदारी पर विशेष बल दिया गया। यह कार्यक्रम लागू करने की जिम्मेदारी ब्लॉक विकास अधिकारी की है। उसकी मदद के लिए अलग-अलग विभागों के तकनीकी अधिकारी और ग्राम सेवक-सेविकाएँ होते हैं। इस कार्यक्रम के तहत राज्य और जिला स्तर पर भी संगठन बनाए गए।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था ग्रामीण क्षेत्रों के संसाधनों और मानव संसाधनों का भरपूर विकास करना तथा स्थानीय नेतृत्व और स्वशासित संस्थान विकसित करना ताकि ग्रामीण लोग अपने बलबूते पर अपना जीवन-स्तर ऊँचा कर सकें। इस कार्यक्रम की शुरुआत अच्छी रही। इसके परिणामस्वरूप देश के सम्पूर्ण ग्रामीण क्षेत्र के लिए एक व्यावहारिक ढाँचागत बुनियाद तैयार हो गई। जैसा कि अन्य कार्यक्रमों के साथ भी होता है, इस कार्यक्रम की सफलता का पैमाना हर राज्य में अलग-अलग रहा। इस कार्यक्रम की शुरुआत के सत्रह बरस बाद 1969 में केन्द्र सरकार ने इस कार्यक्रम की जिम्मेदारी राज्यों को सौंपने का फैसला किया और इसी के साथ शुरू हुआ इसका पतन और धीरे-धीरे मौत।

इसके लिए जिम्मेदार तथ्यों में एक यह भी था कि ग्रामीण विकास के समन्वित कार्यों में धीरे-धीरे ढिलाई आती गई। ग्रामीण उद्योगों से जुड़े सभी कार्य खादी और ग्रामोद्योग आयोग (के.वी.आई.सी.) को दे दिए गए और खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता की बढ़ती जरूरत को देखते हुए सारा ध्यान कृषि- उत्पादन बढ़ाने पर ही लगा दिया गया और अन्य गतिविधियों की अनदेखी हुई। परिणामस्वरूप 1960 में कुछ चुने हुए जिलों में सघन कृषि विकास कार्यक्रम (आई.ए.डी.पी.) शुरू किया गया और इसके बाद 1965 में सघन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (आई.ए.ए.पी.) और अधिक उपज किस्म कार्यक्रम (एच.वाई.वी.पी.) शुरू किया गया।

जैसा कि 1985 में जी.वी.के. राव समिति की रिपोर्ट में भी कहा गया, इन नए कार्यक्रमों की वजह से सामुदायिक विकास कार्यक्रम की पकड़ ढीली पड़ती गई और बजट में कमी आने के साथ-साथ यह पूरी तरह छिन्न-भिन्न होने लगा। दूसरे, हरित-क्रान्ति का सबसे ज्यादा फायदा बड़े किसानों और उन क्षेत्रों को हुआ जिन्हें उपज बढ़ाने वाली किस्मों की तकनीक उपलब्ध हो सकी। ग्रामीण जनसंख्या का बड़ा हिस्सा जो गरीब था, उसे इसका लाभ नहीं मिल सका और ग्रामीण विकास का मूल उद्देश्य अधूरा ही रह गया।

नई योजनाएँ


1970 के दशक के शुरू में सरकार के स्तर पर यह महसूस कर लिया गया था कि ग्रामीण विकास कार्यक्रम का उद्देश्य केवल कृषि उत्पादन बढ़ाना नहीं होना चाहिए बल्कि ग्रामीण लोगों की अन्य सामाजिक- आर्थिक जरूरतों पर ध्यान देना भी जरूरी है लेकिन सामुदायिक विकास कार्यक्रम फिर से शुरू करने के बजाय नई योजनाएँ शुरू कर दी गई। इनमें यूनिसेफ की मदद से ‘व्यावहारिक पोषण कार्यक्रम’ शुरू किया गया जिसका उद्देश्य कुछ चुने हुए विकास खंडों में ग्रामीणों के पोषण-स्तर को सुधारना और स्वास्थ्य-सम्बन्धी देखभाल, टीकाकरण, पेयजल और स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करना था। इसके अलावा ग्रामीण रोजगार क्रैश योजना (सी.एस.आर.ई.), पायलट सघन ग्रामीण रोजगार योजना (पी.आई.आर.ई.पी.) और ‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम शुरू किए गए जिनका उद्देश्य रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना था। सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों का विकास कार्यक्रम (डी.पी.ए.पी.) और रेगिस्तान विकास कार्यक्रम (डी.डी.पी.) भी शुरू किए गए जिनका उद्देश्य पारिस्थितिकी असन्तुलन दूर करना था।

इनके अलावा जनजातीय क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों के लिए विशेष कार्यक्रम बनाए गए। यही नहीं, राष्ट्रीय कृषि आयोग की सिफारिश पर कुछ राज्यों में ‘सम्पूर्ण ग्रामविकास योजना’ शुरू की गई। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण विकास कार्यक्रम के जरिए आय सम्बन्धी असमानता दूर करने का सामाजिक उद्देश्य हासिल करना और ग्रामीण समुदायों में रोजगार के अवसर बढ़ाना था। इस प्रकार 1952 में शुरू हुए सामुदायिक विकास कार्यक्रम और 1975 में शुरू हुए सम्पूर्ण ग्राम विकास कार्यक्रम के बाद एक बार फिर यह महसूस किया गया कि ग्रामीण विकास का वांछित लक्ष्य एक समन्वित कार्यक्रम के जरिए ही हासिल किया जा सकता है।

समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आई.आर.डी.पी.)


समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के बारे में यह दावा किया गया कि यह एक नया कार्यक्रम है लेकिन ग्रामीण विकास से जुड़े लोगों ने महसूस किया कि धारणा की दृष्टि से यह 1950 के दशक में शुरू किए गए सामुदायिक विकास कार्यक्रम से भिन्न नहीं था। लेकिन समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू होने पर पहले से चल रही योजनाएँ बंद नहीं की गईं। ये सभी जारी रहीं और कुछ अन्य भी इनसे जुड़ गईं। ‘काम के बदले भोजन’ कार्यक्रम पुनः परिभाषित किया गया और इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (एन.आर.ई.पी.) और ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम के तहत पुनर्गठित करके शुरू किया गया। इसका उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण भूमिहीन परिवार के एक सदस्य को कम से कम सौ दिन का रोजगार उपलब्ध कराना तथा ‘ट्राइसेम’ के तहत ग्रामीण युवाओं को उत्पाद-कुशलता सिखाना था।

साथ ही ग्रामीण विकास का कार्य कृषि मन्त्रालय से हटा लिया गया और 1979 में ग्रामीण पुनर्निर्माण नाम का अलग मन्त्रालय बनाया गया। इस तरह तत्कालीन सरकार की ग्रामीण क्षेत्र के विकास की प्राथमिकताएँ सामने आईं। मन्त्रालय को नया रूप देने और उसके कार्यों को व्यापक आधार प्रदान करने से एक बार फिर यह तथ्य सामने आया कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष सुधार सुनिश्चित करने के लिए विशुद्ध कृषि-उन्मुख नीति पर्याप्त नहीं है।

राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद द्वारा 1975-76 में विभिन्न परिवारों की आय के बारे में किए गए अध्ययन से उपरोक्त विचार को और बल मिला। इस अध्ययन में बताया गया था कि हरित क्रांति के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र शहरी क्षेत्र की तुलना में निर्धन ही बना रहा। इस अध्ययन से यह बात भ्रामक साबित हुई कि हरित क्रांति से ग्रामीण क्षेत्रों में अमीरी आई क्योंकि मात्र 4.95 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ऐसे थे जिनकी वार्षिक आय 10,000 रुपये या इससे अधिक थी और मात्र 0.2 प्रतिशत परिवारों की आय 30,000 रुपये या इससे अधिक थी जबकि शहरी क्षेत्रों में 17.6 प्रतिशत परिवारों की वार्षिक आय 10,000 रुपये या इससे अधिक और 1.5 प्रतिशत परिवारों की वार्षिक आय 30,000 रुपये या इससे अधिक थी।

इस पृष्ठभूमि के साथ नए मन्त्रालय ने अपनी गतिविधियों के विस्तार की मांग करते हुए ग्रामीण उद्योगों, ग्रामीण विद्युतीकरण, ग्रामीण सड़क, ग्रामीण ऋण आदि को भी अपने कार्यक्षेत्र में शामिल कराने का प्रयास किया किन्तु अंततः उसे ग्रामीण जलापूर्ति, ग्रामीण सड़कों, ग्राम और कुटीर उद्योगों और ग्रामीण क्षेत्र से सम्बद्ध कस्बों तथा गाँवों की आयोजना का ही दायित्व दिया गया। ग्रामीण स्वास्थ्य, ग्रामीण विद्युतीकरण आदि के सन्दर्भ में मन्त्रालय को आंशिक दायित्व सौंपा गया।

छह वर्ष बाद 1985 में ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मुलन सम्बन्धी प्रशासनिक प्रबंधों की समीक्षा के लिए जी.वी.के. राव समिति की स्थापना की गई। समिति ने पाया कि जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों के गठन और एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत विकासखंडों को मजबूत बनाने से अपेक्षित एकीकरण नहीं हो सका, यानि जिला या खंड स्तर पर पूरी तरह समन्वय स्थापित नहीं हुआ और अनेक उदाहरण ऐसे मिले जहाँ अलग-अलग एजेंसियों द्वारा समान लक्ष्य-समूह अथवा समान भौगोलिक क्षेत्र के लिए योजनाओं की शृंखला तैयार की गई और उन्हें लागू किया गया तथा ऐसा करते समय उनमें किसी तरह का समन्वय नहीं रखा गया। कई एशियाई देश ऐसे हैं जिनमें भारत के मुकाबले विकास की क्षमता और वैज्ञानिक विशेषज्ञता कम रही है और वे सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से भी कम सुधारवादी रहे हैं किन्तु उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों से भूख और गरीबी को बड़े पैमाने पर समाप्त कर दिया है, जबकि भारत के अधिकतर हिस्सों में ये चिरकालिक समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं।

सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा है लोगों में उनके कल्याण के लिए चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में जागरुकता पैदा करना। इस दिशा में स्वयंसेवी एजेंसियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। गैर-सरकारी संगठनों की सक्रिय भागीदारी से ग्रामीण विकास में सफलता की कई मिसालें कायम हुई हैं। इन सफलताओं को कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित न रखकर उनका व्यापक विस्तार किए जाने की आवश्यकता है।

भारत में ग्रामीण विकास क्यों महत्वपूर्ण है?

ग्रामीण विकास का अर्थ लोगों का आर्थिक सुधार और बड़ा समाजिक बदलाव दोनों ही है। ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों का बढ़ी हुई भागीदारी, योजनाओं का विकेन्द्रीकरण, भूमि सुधारों को बेहतर तरीके से लागू करना और ऋण की आसान उपलब्धि करवाकर लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का लक्ष्य होता है।

ग्रामीण विकास के मुख्य मुद्दे क्या है?

ग्रामीण विकास से सम्बद्ध मुद्दे ग्रामीण विकास एक बहुआयामी प्रक्रिया है। भारत में ग्रामीण विकास केअबतक के प्रयास के बावजूद कुछ समस्यायें बनी हुर्इ हैं, जैसे- पर्यावरण का क्षरण,अशिक्षा/ निरक्षरता, निर्धनता, ऋणग्रस्तता, उभरती असमानता, इत्यादि।

ग्रामीण विकास योजना क्या है?

ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया आजीविका के नाम से जाना जाने वाला राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) का उद्देश्य गरीब ग्रामीण लोगों को सतत आजीविका संवर्द्धन और बेहतर वित्तीय सेवाओं के माध्यम से सक्षम प्लेटफार्म प्रदान करना है ताकि उनकी घरेलू आय को बढ़ाया जा सके।।

भारत में ग्रामीण विकास कब शुरू हुआ?

सामुदायिक विकास कार्यक्रम ग्रामीण लोगों के समग्र विकास के उद्देश्य से शुरू किया गया एक बहु-परियोजना कार्यक्रम था। इसे 2 अक्टूबर 1952 को शुरू किया गया था। इसे भारत में पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान लागू किया गया था।