भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभाजन से बने गरम दल :- भारतीय राष्ट्रीय मंच पर बींसवीं शादी के प्रथम दशक में उग्रवाद का उदय अचानक नहीं हो गया था! वास्तव में अप्रत्यछ रूप से सन 1857 के विद्रोह से ही धरे-धीरे इस विचारधारा का विकास होने लगा था! गरम दल का सैद्धांतिक आधार गरम दल का विस्तार उग्रवादियों का राधत्रवाद भवुकता से परिपूर्ण था! राष्ट्रवाद की इस प्रेरणादायक धारणा में सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक आदर्शों सभी का समावेश था! यही सन्देश लेकर विवेकानंद पश्चिम गए थे और उनकी सफलता ने भारतीयों में दृढ आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति का संचार किया था! अरविंद ने तो देशभक्ति को ऊँचा उठाकर मातृ वंदना के समकछ रख दिया था! एक पात्र में उन्होंने कहा था 'मैं अपने देश को अपनी मॉ मानता हूँ! मैं उसकी आराधना करता हूँ! की मैं उसकी स्तुति करता हूँ!' अरविन्द दयानन्द सरस्वती की शिच्छाओं से बहित प्रभावित हुए थे! दयानद की विचारधारा पर पाश्चात्य प्रभाव नहीं के बराबर था! अरविन्द ने दयानद को देश का सबसे बड़ा सुधारक मन क्योंकि उन्होंने देश को एक सुनिश्चित मार्ग सुझाया था! इस प्रकार बंकिमचंद्र दयानन्द और विवेकानंद आदि ने वह दार्शनिक आधार प्रदान किया जिस पर उग्रवादियों ने अपना राजनैतिक कार्यक्रम तैयार किया था! गरम दल की कार्यवाई तिलक ने सन 1895 में पूना में कांग्रेस के पंडाल में 'नेशनल सोशल कॉन्फ्रेंस' को अपना अधिवेशन नहीं करने दिया और इस प्रकार उसे चुनौती दी! नेशनल सोशल कॉन्फ़्रेंके' उदारवादियों के प्रभाव में था! इसी वर्ष(१८९५) पौंआ सार्वजनिक सभा पर भी उदारवदियों के स्थान पर उग्रवादियों का प्रभुत्व हो गया! शिवाजी उत्सव का आयोजन पहली बार 15 अप्रेल 1896 को हुआ! 4 नवम्बर 1896 को दहहीं सभा की स्थापना से महाराष्ट्र में नरम दल और गरम दल का पूरी तरह अलगाव हो गया! लेकिन पुरे भारत में अभी इन दोनों दलों में मतभेद अलगाव की स्थिति तक नहीं पहुंचे थे! उदहारण के लिए बंगाल के उग्रवादियों के नेता विपिनचन्द्र पाल अब भी उदारवादियों के खेमे में था! सन 1897 में उन्होंने लिखा था 'मैं ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठावान हूँ क्योंकि मैं समझता हूँ की ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठां और अपने देश व अपने देशवासियों के प्रति निष्ठां एक ही बात है और मैं यह भी मानता हूँ के भगवान् ने हमारे उद्धार के लिए इस सर्कार को हम पर शासन करने के लिए भेजा है! 1902 में जाकर ही उनके विचारों में परिवर्तन आया और उन्होंने लिखा 'कांग्रेस भारत में और लंदन में उसकी ब्रिटिश कमिटी दोनों ही भिच्छा मांगने वाली संस्थाए है!' Popular posts from this blog Amazon books MY YOUTUBE CHANNEL मैसूर मैसूर राज्य हैदराबाद
के दक्षिण में था (देखिए मानचित्र)। 18वीं शताब्दी में, वोडयार से लेकर ल्तान तक, मैसूर के सभी शासकों को एक ओर तो मराठों के विस्तारवाद की चुनौती का मना करना पड़ा तो दूसरी ओर हैदराबाद और कर्नाटक के विस्तारवाद की चनौती से निपटना पटा और अंग्रेजो ने इस स्थिति का फायदा उठाया। 18वीं शताब्दी की जो जानी-मानी हस्तियाँ में से एक टीपू सुल्तान था जो अंग्रेजों की बढ़ती ताकत से टक्कर लेने वाला एक लोक नायक बन गया और अंग्रेज़ उसे सत्ता हथियाने की राह का कांटा मानते थे। मैसूर को विजय नगर साम्राज्य को वाइसरायों से
बदल कर वोडयार वंश ने उसे एक स्वायत्तशासी राज्य बना दिया। अब मैसूर को दक्षिण भारत में एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित करने का तरदायित्व हैदरअली और उसके बेटे टीपू सुल्तान पर था। हैदर मामूली खानदान से था और उसके समय के उसके विरोधी अंग्रेज़ उसे अक्सर उपहारी (या, हड़प लेने वाला) कहते थेइस बात का असर बाद के इतिहासकारों में भी देखने को मिलता है। लेकिन वह उसी मायने में उपहारी था जिस मायने में मैसूर का वह प्रधान मंत्री या भोजन और उसके कार्य भोजन क्या है और भोजन के क्या कार्य हैं? आइए, इसके बारे में पढ़ें। भोजन शब्द का संबंध शरीर को पौष्टिकता प्रदान करने वाले पदार्थों से है। भोजन में वे सभी ठोस, अर्द्ध-तरल और तरल पदार्थ शामिल हैं, जो शरीर को पौष्टिकता प्रदान करते हैं। आप जानते है कि भोजन आपके शरीर की एक मूलभूत आवश्यकता है। कभी आपने विचार किया है कि ऐसा क्यों
है? भोजन में कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं जो हमारे शरीर के लिए महत्वपूर्ण कार्य करते हैं । भोजन से मिलने वाले इन रासायनिक पदार्थों को पोषक तत्व कहते हैं। यदि ये पोषक तत्व हमारे भोजन में उचित मात्रा में विद्यमान नहीं हों तो इसका परिणाम अस्वस्थता या कई बार मृत्यु तक हो सकती है। भोजन में पोषक तत्वों के अलावा, कुछ अन्य रासायनिक पदार्थ भी होते हैं जिनको अपोषक तत्व (non-nutrients) कहते हैं- जैसे कि भोजन को उसकी विशेष गंध देने वाले पदार्थ, भोजन में पाए जाने वाले प्राकृतिक रंग, आदि। इस प्रकार, भोजन
पोषक तत्वों और अपोषक तत्वों का जटिल मिश्रण है। भोजन के कार्य आप यह जानते हैं कि भोजन कई पोषक तत्वों का सम्मिश्रण होता है। आपको यह जानकार आश्चर् राष्ट्रवाद का उत्थान चीन में राष्ट्रवाद के तीन विभिन्न लेकिन परस्पर संबंधित तत्व रहे : i) पहले,
राष्ट्रवाद का अर्थ होता था। का विरोध और उससे संघर्ष करना। ii) दूसरे, राष्ट्रवाद एक ऐसे मज़बूत, आधुनिक और केंद्र-केंद्रित राष्ट्र-राज्य की मांग करता था जो न केवल साम्राज्यवाद को पीछे धकेल दे, बल्कि देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में उसकी नई आकांक्षाओं को आगे भी बढ़ाए। iii) तीसरे, राष्ट्रवाद का अर्थ होता था मांचू (चिंग) वंश को उखाड़ फेंकना। इन तीन तत्वों में से, साम्राज्यवाद का विरोध निश्चित रूप से सबसे महत्वपूर्ण था। साम्राज्यवाद का प्रतिरोध बीसवीं
शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में, "प्रभुसत्ता के अधिकारों की बहाली" प्रत्येक प्रबुद्ध चीनी का आदर्श वाक्य बन गया। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक "राष्ट्रीय प्रभुसत्ता" और प्रभुसत्ता के अधिकार" जैसे पश्चिमी शब्द सरकरी दस्तावेजों में आ गए थे। कुछ ही वर्षों में वे चीनी शब्द भंडार के अभिन्न अंग बन गए। अफीम युद्ध के समय से, चीन पर बाहरी आक्रमण होते रहे। प्रत्येक गरम दल से आप क्या समझते हैं?गरम दल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अन्दर ही सदस्यों के मतभेद के कारण उपजा एक धड़ा था जिसके नेता लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल थे। बंगाल विभाजन के बाद काँग्रेस के नरम दल के लोगों के साथ इस दल के स्पष्ट विरोध सामने आये।
गरम दल और नरम दल में क्या अंतर है?नरम दलीय नेता संवियधानिक रास्ते से स्वशासन को प्राप्त करना चाहते थे जबकि गरम दलीय नेतृत्व अपेक्षाकृत उग्र तरीकों के माध्यम से त्याग व बलिदान के द्वारा स्वराज । तथा कुछ नेता पूर्ण स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे ( दोनों की कार्यशैली में अंतर ) । दोनों का सामाजिक आधार भी अलग-अलग था ।
गरम और नरम दल के नेता कौन थे?और इस तरह कांग्रेस के दो हिस्से हो गए एक नरम दल और एक गरम दल। गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरू।
गरम दल की स्थापना कब हुई?इन्हीं उदारवादी नेताओं ने 1885 ई. से 1905 ई.
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