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संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ संबंध निर्धारित करनेवाले तत्त्व को कारक तथा संबंध स्थापित करने वाले शब्द या शब्दांश को कारक – चिह्न या परसर्ग कहते हैं ; जैसे – हिंदी में कारक व उनके चिह्न आठ माने गए हैं –१ कर्ता ने 1. कर्ता कारक – वाक्य में जिस शब्द द्वारा काम करने वाले का बोध होता है , उसे कर्ता कारक कहते हैं ; जैसे –मोहन ने खाना खाया | इस वाक्य में खाने का काम ‘मोहन’ करता है अत: मोहन कर्ता है | वाक्य में कर्ता का प्रयोग दो रूपों में होता है – पहला वह , जिसमें ‘ने’ विभक्ति नहीं लगती अर्थात क्रिया के लिंग, वचन, और पुरुष कर्ता के अनुसार होते हैं ; जैसे – मोहन खाता है | इसे प्रधान कर्ता कारक भी कहा जाता है | दूसरा वह , जिसमें ‘ने’ विभक्ति लगती है अर्थात क्रिया के लिंग , वचन ,और पुरुष कर्म के अनुसार होते हैं ; जैसे – मोहन ने खाना खाया है | (इसे अप्रधान कर्ता कारक कहा जाता है | ) कर्ता कारक के चिह्न ‘ने’ के प्रयोग संबंधी नियम - 1. ‘ने’ का प्रयोग कर्ता के साथ तब होता है जब क्रिया सकर्मक तथा सामान्यभूत, आसन्नभूत, पूर्णभूत, और संदिग्धभूत कालों में कर्मवाच्य या भाववाच्य हो ; जैसे – मोहन ने पुस्तक पढ़ी | ( सामान्यभूत ) इस प्रकार अपूर्ण भूत के अतिरिक्त शेष सभी प्रकारों में ‘ने’ का प्रयोग होता है | 2. सामान्यत: अकर्मक क्रिया के साथ ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है | जैसे – श्याम हँसता है | लेकिन नहाना, छींकना, थूकना आदि में ‘ने’ का प्रयोग होता है ; जैसे – उसने छींका | 3. सकर्मक क्रियाओं के साथ भी कर्ता के साथ वर्तमान और भविष्य काल में ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है ; जैसे – नमिता रोटी खाएगी | 4. जिन वाक्यों में बोलना , भूलना , लाना , ले जाना ,चुकना आदि सहायक क्रियाएँ आती हैं उनमें ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है ; जैसे –
5. प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथ , अपूर्णभूत को छोड़ शेष सभी भूतकालो में ‘ने’ का प्रयोग होता है ; जैसे – मैंने उसे पढ़ाया | उसने एक रुपया दिलवाया | 2. कर्म कारक – वाक्य में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है ,उसे कर्म कहते हैं | इसकी विभक्ति ‘को’ है ; जैसे –राम ने रावण को मारा | यहाँ कर्ता राम है और उसके मारने का फल ‘रावण’ पर पड़ रहा है | अत: रावण कर्म है और उसके साथ ‘को’ का प्रयोग हुआ है | कर्म कारक का प्रयोग निम्न स्थितियों में होता है | कर्म कारक के प्रयोग संबंधी नियम -1. कर्म कारक में ‘को’ का प्रयोग चेतन या सजीव कर्म के साथ होता है ; जैसे –नितिन ने अजय को पत्र लिखा | जबकि अचेतन या निर्जीव कर्म के साथ ‘को’ का प्रयोग नहीं होता ; जैसे – गोपाल ने पत्र लिखा | 2. दिन, समय और तिथि प्रकट करने के लिए ‘को’ का प्रयोग होता है ; जैसे – 15 अगस्त को राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा | 3. जब विशेषण का प्रयोग संज्ञा के रूप में कर्म कारक की भांति होता है , तब उसके साथ कर्म कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – भक्तों को मंदिर में जाने दो | 4. बुलाना, सुलाना, कोसना, पुकारना, जगाना, भगाना इत्यादि क्रियाओं के कर्मो के साथ ‘को’ विभक्ति का प्रयोग होता है ; जैसे – माँ ने बच्चे को सुलाया | 3.करण कारक – करण का अर्थ है – साधन | संज्ञा का वह रूप जिससे किसी क्रिया के साधन का बोध हो , उसे करण कारक कहते हैं ; जैसे – राम ने रावण को बाण से मारा | इस वाक्य में बाण द्वारा रावण को मारने का उल्लेख है अतएव बाण करण कारक हुआ | करण कारक के चिह्न हैं – ‘से’ , ‘के द्वारा’ , ‘के कारण’ , ‘के साथ’ , ‘के बिना’ आदि | करण कारक के प्रयोग संबंधी नियम -1. साधन के अर्थ में करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – लकड़हारा कुल्हाड़ी से लकड़ियाँ काटता है | 2. साधक अर्थ में भी करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – मुझसे यह काम न सधेगा | 3. भाववाचक संज्ञा से क्रियाविशेषण बनाते समय करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – नम्रता से बात करो | 4. उत्पत्ति सूचक अर्थ में भी करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – कोयला खान से निकलता है | 5. प्यार, मैत्री, बैर होने पर करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – राम की रावण से शत्रुता थी | 4.संप्रदान कारक – जिसके लिए कुछ दिया जाए या जिसको कुछ दिया जाए इसका बोध कराने वाले शब्द को सम्प्रदान कारक कहते हैं ; जैसे –माँ बच्चे के लिए दूध लाती है | कर्म और सम्प्रदान का एक ही विभक्ति चिह्न ‘को’ है , परन्तु दोनों के अर्थों में अंतर है | सम्प्रदान का ‘को’, ‘के लिए’ अव्यय के स्थान पर या उसके अर्थ में प्रयुक्त होता है, जबकि कर्म के ‘को’ का ‘के लिए’ से कोई सम्बन्ध नहीं है ; जैसे – सोहन श्याम को मारता है | ( कर्म कारक ) सम्प्रदान कारक के प्रयोग संबंधी नियम -1. किसी वस्तु को दिए जाने के अर्थ में को, के लिए अथवा के वास्ते का प्रयोग होता है ; जैसे - विद्यार्थियों को पुस्तकें दो |अतिथि के लिए चाय लाओ | 2. अवधि का निर्देश करने के लिए भी सम्प्रदान कारक का प्रयोग किया जाता है ; जैसे – मैं दो माह के लिए सिंगापुर जाऊँगी | 3. ‘चाहिए’ शब्द के साथ भी सम्प्रदान कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – जलाने के लिए लकड़ियाँ चाहिए | 5. अपादान कारक – संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट होता है , उसे अपादान कारक कहते हैं ; जैसे – पेड़ से पत्ता गिरता है | हिमालय से गंगा निकलती है | अपादान कारक के प्रयोग संबंधी नियम -1. अलग होने के अतिरिक्त डरने के अर्थ में भी अपादान कारक का प्रयोग होता है ; जैसे –कृष्णव शेर से डरता है |
आपने मुझे हानि से बचाया |
कृष्णव चिन्मय से छोटा है | करण कारक और अपादान कारक में अंतर -यद्यपि दोनों कारकों के विभक्ति चिह्न ‘से’ हैं परन्तु इन दोनों में पर्याप्त अंतर है | करण कारक का प्रयोग साधन अर्थ में किया जाता है ; जैसे – मोहन कलम से लिखता है | इसके अतिरिक्त अपादान कारक का प्रयोग पृथक होने अर्थात अलग होने के अर्थ में किया जाता है ; जैसे - मेज से पुस्तक गिरती है | 6. सम्बन्ध कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ सम्बन्ध या लगाव प्रतीत हो उसे संबंध कारक कहते हैं | सम्बन्ध कारक में विभक्तियाँ सदैव लगाईं जाती हैं | जैसे -गीता सोहन की बहन है | संबंध कारक के प्रयोग संबंधी नियम - 1. एक संज्ञा या सर्वनाम का दूसरी संज्ञा या सर्वनाम से सम्बन्ध प्रदर्शित करने के लिए सम्बन्ध कारक का प्रयोग होता है ; जैसे - सुनीता रमा की बहन है | 2. स्वामित्व या अधिकार प्रकट करने के लिए सम्बन्ध कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – आप किसकी आज्ञा से आए हैं | 3. परिमाण प्रकट करने के लिए , मोलभाव प्रकट करने के लिए ,निर्माण का साधन प्रदर्शित करने के लिए सम्बन्ध कारक का प्रयोग किया जाता है ; जैसे – पाँच मीटर की साड़ी (परिमाण )
मेरी पुस्तक तुम्हारा पत्र 5. संबंधकारक की विभक्तियों द्वारा कुछ मुहावरेदार प्रयोग भी होते हैं ; जैसे – कान का कच्चा , आँख का अंधा , बात का धनी इत्यादि 7. अधिकरण कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया का आधार सूचित होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं , इसके परसर्ग (कारक चिह्न ) में , पर है ; जैसे –चिड़िया पेड़ पर बैठी है | अधिकरण कारक के प्रयोग संबंधी नियम - 1 स्थान , समय , भीतर या सीमा का बोध कराने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – पुस्तक मेज पर रखी है | 2 तुलना, मूल्य और अंतर का बोध कराने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग किया जाता है ; जैसे – कमल सभी फूलों में सुन्दरतम है | 3 निर्धारण और निमित्त प्रकट करने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – छोटी - सी बात पर गुस्सा मत करो | 8. संबोधन कारक – संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारने , चेतावनी देने या संबोधित करने का बोध होता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं ; जैसे –हे राम ! रक्षा करो | संबोधन कारक की कोई विभक्ति नहीं होती |
हे प्रभु इस लड़के को बुद्धि दे यहाँ पर हे प्रभु कौन सा कारक है *?(iii) जिससे किसी को बुलाने या सचेत करने का भाव प्रकट हो, उसे संबोधन कारक कहते हैं।
हे प्रभु में कौन सा कारक है?Answer. Answer: जिस वस्तु की सहायता से या जिसके द्वारा कोई काम किया जाता है, उसे करण कारक कहते है।
हे प्रभु दया कीजिए उपरोक्त वाक्य में कारक का कौन सा भेद है?i) कर्मवाच्य – जिस वाक्य में क्रिया का व्यापार कर्म के साथ हो, वहाँ कर्म वाच्य होता है। कर्म की प्रधानता के कारण क्रिया का लिंग, वचन एवं पुरुष कर्म के अनुसार होते हैं । कर्ता का लोप हो जाता है या कर्ता के बाद 'से' अथवा 'के द्वारा ' का प्रयोग होता है ।
हरि मोहन को रुपये देता है में कौन सा कारक है?कारक के भेद. |