हिमालय पाठ के लेखक का क्या नाम है? - himaalay paath ke lekhak ka kya naam hai?

यह पाठ लेखक नागार्जुन ने लिखा है जिसमें उन्होंने हिमालय और उससे निकलने वाली नदियों के बारे में बताया है| हिमालय से बहने वाली गंगा, यमुना, सतलुज आदि नदियाँ दूर से लेखक को शांत, गंभीर दिखाई देती थीं| लेखक के मन में इनके प्रति श्रद्धा के भाव थे। जब लेखक ने जब इन नदियों को हिमालय के कंधे पर चढ़कर देखा तो उन्हें लगा की ये तो काफी पतली हैं जो समतल मैदानों में विशाल दिखाई देती थीं। 

लेखक को हिमालय की इन बेटियों की बाल-लीलाओं को देखकर आश्चर्य होता है। हिमालय की इन बेटियों का न जाने कौन-सा लक्ष्य है, जो इस प्रकार से बेचैन होकर बह रही हैं। नदियाँ बर्फ की पहाड़ियों में, घाटियों में और चोटियों पर लीलाएँ करती हैं। लेखक को लगता है देवदार, चीड़, सरसों, चिनार आदि के जंगलों में पहुँचकर शायद इन नदियों को अपनी बीती बातें याद आ जाती होंगी। 


सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो महानदियाँ हिमालय से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं। हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका दामाद कहने में भी लेखक को कोई झिझक नहीं होती। कालिदास के यक्ष ने अपने मेघदूत से कहा था कि बेतवा नदी को प्रेम का विनिमय देते जाना जिससे पता चलता है कि कालिदास जैसे महान कवि को भी नदियों का सजीव रूप पसंद था। 

काका कालेलकर ने भी नदियों को लोकमाता कहा है। लेकिन लेखक इन्हें माता से पहले बेटियों के रूप में देखते हैं। कई कवियों ने इन्हें बहनों के रूप में भी देखा है| लेखक तिब्बत में सतलुज के किनारे पैर लटकाकर बैठने से वे इससे काफी प्रभावित हो गए।
लेखक जब दूर से हिमालय को गोदी से निकलती नदियों की देखता था तो वे उसे अति सुदर प्रतीत होती थीं। उनका स्वरूप एकदम गंभीर, शात और अपने आप में मस्त दिखाई देता था। वे शिष्ट महिला की भौँति दिखती थी। लेखक के मन में उनके प्रति बहुत आदर और श्रद्धा का भाव था। जब वह उनमें डुबकियाँ लगाता है. तो ऐसा प्रतीत होता जैसे-माँ, दादी, मौसी या मामी की गोद में खेल रहा हो अर्थात् नदियों के साथ लेखक को आत्मीय भावना जुड़ गई थी। 

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कई वर्षों तक लेखक नदियों को काफी दूर से देखता रहा, लेकिन एक बार वह हिमालय की काफी चढाई चढ़ा, तो उसे नदियों का बदला हुआ आकर्षक रूप देखने का अवसर प्राप्त हुआ। उसे बहुत हैरानी थी। पर्वतों के मध्य तो गंगा, यमुना, सतलुज कितनी दुबली-पतली दिखती हैं लेकिन समतल धरातल (मैदान) पर पहुंचते ही विशाल रूप में बदल जाती हैं। इनका उछलना, कूदना, खिलखिलाना, भाव-भंगिमाएं बनाना और उल्लास सब समाप्त हो जाता है अर्थात् जल नदियाँ पहाड़ों से निकलती हैं तो जल की धाराओं के रूप में तेजी से बहकर व खूब शोर करके, अनेक स्वरूप बदलकर उत्साह से परिपूर्ण आगे बढ़ती हैं। वे बिल्कुल अल्हड़ बाला की भौँति प्रतीत होती हैं लेकिन मैदानों में आते ही विशाल और शांत रूप में बहने लगती हैं। लेखक को लगता है कि कोई सुंदर कन्या या कली भी इतना आकर्षित नहीं करती जितना ये हिमालय की बेटियाँ करती हैं। 

लेखक को यह समझ नहीं आता कि निरंतर, शांत स्वरूप में आगे बढ़ती नदियों का लक्ष्य क्या है? ये किससे मिलने की चाह में आगे की ओर बढ़ती जा रही हैं? अपार प्रेम करने वाले पिता हिमालय को छोड़कर ये किसका प्रेम पाना चाहती हैं? जिस प्रकार बेटियाँ ससुराल जाने के समय मायके की हर चीज़ जिसे वे प्रेम करती हैं, खुशी-खुशी छोड़ जाती हैं, उसी प्रकार ये हिमालय की बेटियाँ भी बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, पौधों से भरपूर घाटियाँ, गहरी गुफाएं, हरी-भरी घाटियाँ सब कुछ छोड़कर समुद्र की ओर बढ़ जाती हैं कुछ आगे बढ़कर देवदार, चीड़,चिनार, सफ़ेदा, कैल के जंगलों में जाकर उन्हें अवश्य अपने बचपन की याद आती होगी। जैसे-घर का बड़ा-बूढ़ा अपनी संतान की फिक्र करता है, उसी तरह हिमालय भी अपनी बेटियों के लिए चिंतित होता होगा। नदियों के चले जाने के बाद पूरे उत्तर में निराशा के बादल छा जाते है। 

सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो ऐसी महान नदियाँ हैं जो हिमालय के हृदय की बर्फ की पिघली बूदं से अपना अस्तित्व पाती हैं और निरंतर समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं इन्हें महानद भी कहा जाता है। लेकिन इनको देखकर लेखक की आँखों के सामने हिमालय की अन्य छोटी-बड़ी सभी नदियाँ रावी, सतलुज, व्यास, चनाब, झेलम. काबुल, कपिशा, गंगा, यमुना, सरयू, गंडक, कोसी आदि का सुंदर स्वरूप भी लेखक के सामने छान लगता है।

  बूढ़ा हिमालय इन नदियों का पिता मालूम होता है। जिस प्रकार छोटे बच्चे माता-पिता से कोई शर्म नहीं करते उसे लगता है वैसे ही इन नदियों ने भी अपना नंग-धडंग बचपन हिमालय रूपी माता-पिता की गोद में बिताया है और फिर बड़ा स्वरूप पाते-पाते ये चल पड़ती हैं सागर के पास। ऐसा सोचते ही लेखक को सागर दामाद और हिमालय ससुर लगता है यानी हिमालय ने अपनी बेटियाँ सागर के हाथों में सौंपी हों।


नदियों को देखकर लेखक को यह भी याद आता है कि एक बार कालीदास के विरही यक्ष ने मेघदूत अर्थात् बादल से कहा था कि तुम वेत्रवती नदी को प्रेम का संदेश अवश्य देना। वह तुम्हें प्रेम करती है और तुम्हें पाकर अवश्य प्रसन्न होगी। लेखक को लगता है कि महाकवि को भी नदियों का जीवंत और सजीव रूप पसंद था। वास्तव में पहाड़ों से निकलती नदियाँ व समतल धरातल पर बहती नदियों को जो भी देखेगा वह दोनों में अत्यधिक अंतर पाएगा क्योंकि पहाड़ों पर बहने वाली नदियाँ तो अल्हड़ बच्चियों के रूप में दिखाई देती हैं व मैदानों में बहती नदियाँ अपने-आप में मस्त नवयौवना के रूप में सभी को आकर्षित करती हैं। 


काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता का रूप दिया क्योंकि ये सर्वस्व कल्याण ही करती हैं। कुछ कवियों ने इन्हें प्रेयसी अर्थात् प्रेमिका माना है और कितने ही कवियों ने इन्हें बहन का स्थान भी दिया है। एक बार लेखक स्वयं मन से बहुत उदास था तो तिब्बत में सतलुज के किनारे जाकर बैठा। पाँव पानी में लटका दिए तो थोड़ी देर में तन और मन ताज़ा-सा प्रतीत होने लगा और लेखक कह उठा कि सतलुज बहन तुम्हारी जय हो, तुम्हारा स्वरूप बहुत प्रिय है। तुमसे तो हृदय प्रसन्न हो, सारी खुमारी अर्थात् आलस्य दूर हो गया। मैं तुम पर बलिहारी जाता हूँ। तुम पुत्री हो और यह हिमालय तुम्हारा पिता। पिता हिमालय चुपचाप रहकर भी तुम्हारे लिए चिंतित है। प्रकृति तो नर्तकी के समान है। इसी प्रकृति के प्रांगण में हिमालय अपनी अद्भुत और अनुपम छटा बिखेर रहा है। हे सतलज बहन तुम्हारी जय हो।

हिमालय की बेटियाँ प्रश्न अभ्यास

लेख से

प्रश्न-1-नदियों को मां मानने की परंपरा हमारे यहां काफी पुरानी है लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?

उत्तर- भारतवर्ष में बहुत पहले से ही नदियों को देवी अथवा माता माना जाता रहा है। ‘हिमालय की बेटियां' पाठ में नागार्जुन ने नदियों को संभ्रांत महिला, बेटी, प्रेयसी, व बहन के रूप में भी देखा है।


प्रश्न-2- सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या-क्या विशेषताएं बताई गई हैं?

उत्तर- ये दोनों नदियां हिमालय से निकली हैं। सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं कुछ नहीं बल्कि हिमालय के पिघले हुए दिल से प्रवाहित दया है। इनका रूप विशाल और विराट है। ऐतिहासिकता के आधार पर इन्हें पुलिंग रूप में नद भी माना गया है। पर्वतराज हिमालय इन दोनों बेटियों का पिता होने पर गर्व महसूस करता है।


प्रश्न-3-काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?

उत्तर- नदियां भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में विशेष योगदान देती हैं। यह युगो-युगो से पूजनीय हैं। नदियाँ मनुष्य के लिए हमेशा कल्याणकारी रही है। नदियों के जल से पशु और मनुष्य का जीवन चलता है। हिमालय से निकलने वाली नदियां हिमालय की पुत्रियां हैं। संसार के सभी लोग नदियों की संतान हैं। नदियों को भारतीय संस्कृति में माँ माना गया है। इसलिए काका कालेलकर ने भी नदियों को लोकमाता ही कहा है।


प्रश्न-4-हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है?

उत्तर- हिमालय की यात्रा में लेखक ने मुख्य रूप से नदियों की ही प्रशंसा की है। कुछ नदियों की प्रशंसा लेखक ने की है। जैसे- चिनाब, झेलम, सतलज, गंगा, यमुना, कोसी, गंडक, व्यास, सरयू, इत्यादि ।इसके अतिरिक्त लेखक ने हिमालय और उससे जुड़ी अनेक बातों की प्रशंसा की है। जैसे- गगनचुंबी पर्वत, हरी-भरी घाटियां, विशाल मैदान, सागर तथा महासागर, इत्यादि।


लेख से आगे


प्रश्न-1- नदियों और हिमालय पर अनेक कवियों ने कविताएं लिखी हैं। उन कविताओं का चयन कर उनकी तुलना पाठ में निहित नदियों के वर्णन से कीजिए।

उत्तर- विद्यार्थी पुस्तकालय की सहायता से स्वयं करें।


प्रश्न-2-गोपालसिंह नेपाली की कविता ‘हिमालय और हम' रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘हिमालय’ तथा जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हिमालय के आंगन' में पढ़िए और तुलना कीजिए ।

उत्तर- विद्यार्थी पुस्तकालय की सहायता से स्वयं करें


प्रश्न-3- यह लेख 1947 में लिखा गया था। तब से हिमालय से निकलने वाली नदियों में क्या क्या बदलाव आए हैं?

उत्तर- सन 1947 के बाद से हिमालय से निकलने वाली नदियों में अनेकों परिवर्तन हुए हैं। नदियों में से नहरे निकाल दी गई हैं और उनके रास्तों को जगह-जगह मोड़ दिया गया है। इन नदियों पर अनेकों बांध बना दिए गए हैं। मनुष्य द्वारा एकत्रित सभी प्रकार की गंदगीओं को नदियों में छोड़ा जाता है जिससे नदियां दूषित हो रहीं हैं। आज के समय में नदियों का जल अमृत न होकर जहर बन गया है। आज के समय में लोगों में नदियो के जल को शुद्ध करने कि काफी जागरूकता आई है। लोगों द्वारा जल शुद्धि से संबंधित तरह-तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं।


प्रश्न-4- अपने संस्कृत शिक्षक से पूछिए कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा क्यों कहा है?

उत्तर- देवताओं का प्रमुख निवास स्थान हिमालय पर्वत को माना जाता है। इसी पर्वत पर भगवान शंकर रहते थे। ऋषि-मुनि सिद्धि प्राप्त करने के लिए इसी पर्वत पर ही पूजा-अर्चना व तपस्या करते हैं। कालिदास ने अपनी रचना मेघदूत में हिमालय पर्वत का विस्तृत वर्णन किया है। इसीलिए कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा।


हिमालय की बेटियाँ अनुमान और कल्पना

प्रश्न-1- लेखक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों को ममता भरी आंखों से देखते हुए उन्हें हिमालय की बेटियां कहा है। आप उन्हें क्या कहना चाहेंगे? नदियों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं। जानकारी प्राप्त करें और अपना सुझाव दें।

उत्तर- लेखक द्वारा नदियों को हिमालय की बेटियां कहना बिल्कुल सही और तर्कसंगत है। इस आधार पर हम भी उन्हें हिमालय की बेटियां और अपनी माता कहेंगे। नदियां छोटी बच्ची की तरह से हिमालय की गोंदी रूपी अनेक चोटियों शिखरों से खेलती-कूदती हुई आगे प्रवाहित होती हैं। वर्तमान में नदियों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित कार्य किए जा रहे हैं।




*नदियों को प्रदूषित होने से बचाना


*नदियों के जल प्रवाह की सही दिशा निर्धारित करना

*जल के कटाव को रोकना

*कम-से-कम नेहरे निकालना


प्रश्न-2- नदियों से होने वाले लाभों के विषय में चर्चा कीजिए और इस विषय पर बीस पंक्तियों का एक निबंध लिखिए।

उत्तर- नीचे दिए गए संकेत बिंदु के आधार पर सभी विद्यार्थी मिलकर आपस में चर्चा करेंगे और तत्पश्चात इसे लिखेंगे|

हिमालय पाठ के लेखक कौन है?

पाठ का नाम―ठेले पर हिमालयलेखक का नाम―श्री धर्मवीर भारती।

हिमालय की बेटी पाठ का रचयिता कौन है?

प्रश्न-1-नदियों को मां मानने की परंपरा हमारे यहां काफी पुरानी है लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं? उत्तर- भारतवर्ष में बहुत पहले से ही नदियों को देवी अथवा माता माना जाता रहा है। 'हिमालय की बेटियां' पाठ में नागार्जुन ने नदियों को संभ्रांत महिला, बेटी, प्रेयसी, व बहन के रूप में भी देखा है।

हिमालय की बेटियां पाठ का उद्देश्य क्या है?

(घ) इस पाठ का उद्देश्य क्या है? इस पाठ का उद्देश्य लेखक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों के नाम, उद्गम स्थल, उनके सदैव परिवर्तन होने वाले पल के रूप से परिचित करवाना है। हिमालय को पिता, नदियों को पुत्रियाँ व सागर को उनका प्रेमी माना गया है।

ठेले पर हिमालय किसका निबंध है?

'ठेले पर हिमालय' :-- धर्मवीर भारती द्वारा रचित रचना है। "ठेले पर हिमालय" एक यात्रा वृतांत है। धर्मवीर भारती (25 दिसंबर, 1926- 5 सितंबर, 1997) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। "बसंती" भी धर्मवीर भारती जी का अन्य निबंध है।