जन्माष्टमी का व्रत कैसे रखते हैं - janmaashtamee ka vrat kaise rakhate hain

नई दिल्ली. Janmashtami 2022 जन्माष्टमी को भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. मथुरा में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. श्रीकृष्ण की भगवान विष्णु के 8वें अवतार के रूप में पूजा की जाती है. कृष्णा जन्माष्टमी आज यानी 18 अगस्त 2022 को धूम-धाम से मनाई जाएगी. कृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami 2022) को गोकुलाष्टमी और श्रीकृष्ण जयंती के नाम से भी जाना जाता है.

कृष्णा जन्माष्टमी के दिन भक्त आधी रात तक उपासक उपवास रखते हैं. इस दिन मंदिरों को सजाया जाता है और कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल को पालने पर रखकर झूला झुलाया जाता है। आधी रात को भगवान कृष्ण के जन्म के समय आरती करने के बाद प्रसाद बांटा जाता है. 

ज्योतिषविदों के अनुसार, इस बार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 18 अगस्त की रात 9. 21 बजे से 19 अगस्त को रात 10.59 बजे तक रहेगी. निशीथ काल पूजा 18 अगस्त को रात 12.03 बजे से 12.47 बजे तक ही रहेगा. ऐसे में भगवान की पूजा के लिए 44 मिनट का समय मिल रहा है.

जन्माष्टमी व्रत (Janmashtami 2022 Vrat)
कृष्णा जन्माष्टमी का त्योहार अष्टमी के उपवास और पूजा के साथ शुरू होता है, और नवमी पर पारण के साथ समाप्त होता है. व्रत रखने से पहले हल्का सा सात्विक भोजन करना चाहिए. जीवन साथी के साथ किसी भी तरह की शारीरिक अंतरंगता से बचना चाहिए. 

जन्माष्टमी पूजा विधि (Janmashtami 2022 Puja Vidhi)
जन्माष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद सभी देवताओं को प्रणाम करें और फिर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठ जाएं. इसके बाद फल और फूल हाथ में लेकर व्रत का संकल्प लें. अपने ऊपर काले तिल मिलाकर जल छिड़कें. अब देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी जी का नाम लेकर पूजा करें. यह व्रत आधी रात के बाद ही खोला जाता है. इस व्रत में अनाज का सेवन नहीं किया जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Media इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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Zoom News : Aug 18, 2022, 08:27 AM

Janmashtami Vrat Vidhi: जिस तरह एकादशी के व्रत की शुरुआत दशमी तिथि से हो जाती है, उसी तरह जन्माष्टमी के व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि से हो जाती है। सप्तमी तिथि के दिन से ही तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज, बैंगन, मूली आदि का त्याग कर देना चाहिए और सात्विक भोजन करने के बाद ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सुबह स्नान व ध्यान से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें और जन्माष्टमी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद ”ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सवार्भीष्ट सिद्धये, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्ररमहं करिष्ये।।” मंत्र का जप करना चाहिए। इस दिन आप फलाहार और जलाहार व्रत रख सकते हैं लेकिन सूर्यास्त से लेकर कृष्ण जन्म तक निर्जल रहना होता है। व्रत के दौरान सात्विक रहना चाहिए। वहीं शाम की पूजा से पहले एक बार स्नान जरूर करना चाहिए।

इस तरह करें जन्माष्टमी की पूजा

भगवान श्रीकृष्ण का पर्व रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को हुआ था, ऐसे में रात को पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करने से सभी तरह के दुखों का अंत हो जाता है। ऐसे में जन्माष्टमी के दिन व्रत रखते हुए भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की आराधना करें। मूर्ति स्थापना के बाद उनका गाय के दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। फिर उन्हें मनमोहक वस्त्र पहनाएं। मोर मुकुट, बांसुरी, चंदन, वैजयंती माला, तुलसी दल आदि से उन्हें सुसज्जित करें। फूल, फल, माखन, मिश्री, मिठाई, मेवे, धूप, दीप, गंध आदि भी अर्पित करें। फिर सबसे अंत में बाल श्रीकृष्ण की आरती करने के बाद प्रसाद का वितरण करें।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मथुरा में श्रीकृष्ण का जन्म हुया था. कहा जाता है कि कंस ने अपने पिता उग्रसेन राजगद्दी छीनकर जेल में बंद कर दिया. जिसके बाद वह खुद मथुरा की राजगद्दी पर बैठ गया. कंस की एक बहन थी, जिनका नाम देवकी था. वह देवकी से बहुत स्नेह रखता था. कंस ने देवकी का विवाह वासुदेव से कराया, लेकिन देवकी की विदाई के वक्त आकाशवाणी हुई कि उसका आठवां पुत्र कंस का वध करेगा. आकाशवाणी सुनकर कंस डर गया, जिसके बाद उसने देवकी और वासुदेव दोनों को कारागार में बंद कर दिया. कहते हैं कि कंस ने देवकी और वासुदेव की 7 संतान को मार दिए, लेकिन जब देवकी की आठवीं संतान का जन्म होने वाला था, तब आकाश में बिजली कड़क रही थी. मान्यतानुसार, रात्रि 12 बजे जेल के सारे ताले खुद ही टूट गए और वहां की निगरानी कर रहे सभी सैनिकों को गहरी नींद आ गई. वे सो गए. कहा जाता है कि उस समय भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि वे देवकी की कोख से जन्म लेंगे. इस क्रम में आगे उन्होंने कहा कि वे उनके कृष्ण रूपी अवतार को गोकुल में नंद बाबा के पास छोड़ आएं और उनके घर जन्मी कन्या को मथुरा लाकर कंस को सौंप दें. जिसके बाद वासुदेव ने भगवान के के कहे अनुसार किया. वह कान्हा को नंद बाबा के पास छोड़ आए और उनकी कन्या को कंस को सौंप दिया. नंद और यशोदा ने श्रीकृष्ण को पाला और श्री कृष्ण ने कंस का वध किया.

आरती कुंजबिहारी की

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  • श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
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जन्माष्टमी के व्रत में क्या क्या करना पड़ता है?

इस दिन आप फलाहार और जलाहार व्रत रख सकते हैं लेकिन सूर्यास्त से लेकर कृष्ण जन्म तक निर्जल रहना होता है। व्रत के दौरान सात्विक रहना चाहिए। वहीं शाम की पूजा से पहले एक बार स्नान जरूर करना चाहिए। जन्माष्टमी वाले दिन निशीथ काल में बाल गोपाल की पूजा का शुभ मुहूर्त इस बार शुक्रवार को रात 12:03 बजे से रात 12:47 मिनट तक रहेगा।

जन्माष्टमी व्रत क्या खाना चाहिए?

जन्माष्टमी के व्रत में क्या खाएं.
कुट्टू की खिचड़ी यह एक प्रकार का अनाज है जिसके दाने हल्के भूरे रंग के, हरे रंग के होते हैं। ... .
मखाने आप मखाने की खीर बनाकर खा सकते है। ... .
फल फलों का सेवन करना पुरे वर्ष लाभदायक होता है। ... .
साबूदाना साबूदाना उपवास के दौरान एक पसंदीदा व्रत का खाना है।.
दूध ... .
दही ... .
सिंघारे के आटे का समोसा ... .
सूखे मेवे.

जन्माष्टमी के व्रत में पानी कब पीते हैं?

जन्माष्टमी के दिन व्रत करने वाले जातक दिनभर फलाहार व जल ग्रहण कर सकते हैं. लेकिन ध्यान रखें कि इस दिन सूर्यास्त के बाद पानी नहीं पीना चाहिए. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जन्माष्टमी के दिन सूर्यास्त के बाद जल ग्रहण करना वर्जित होता है. रात 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्म होने के बाद ही जल ग्रहण किया जा सकता है.