जीवन कौशल का उद्देश्य क्या है? - jeevan kaushal ka uddeshy kya hai?

          Life skill education                 

 

मनुष्य  होना अपने आप में जीवन कौशल शिक्षा की आवश्यकता को जन्म देता है । अन्य जीव अपनी नेसर्गिक क्षमताओं को स्वत: ही पा लेते हैं , पर जो मानव होने का मतलब है –हमारी भाषा प्रयोग करने की क्षमता ,तर्क करने की क्षमता ,स्वायत्त होने की क्षमता आदि।  क्षमताएं होना यह सुनिश्चित नहीं करता की सभी मानव इन विशिष्ट गुणो से परिपूर्ण होंगे ,हमें मानव होना पड़ता है ,हमें अपनी क्षमताओ का प्रयोग करना सीखना पड़ता है । वास्तव में मानव शिशु इतने अपरिपक्व होते हैं की उन्हे खुद के भरोसे छोड़ दिया जाये और दूसरों का मार्गदर्शन और सहायता न मिले तो वे उन मूलभूत क्षमताओं को भी हासिल नहीं कर पाएंगे जो उनके भौतिक अस्तित्व के लिए आवश्यक है इसलिए हमें जरूरत होती है –जीवन कौशल शिक्षा की ।

जीवन कौशल शिक्षा जो हमारी मानव बनने में मदद करे । जो हमारे सामाजिक कौशल (आत्म –ज्ञान ,प्रभावी सम्प्रेषण आदि ),सोचने के कौशल (रचनात्मक सोच,निर्णय लेने की क्षमता , समस्या निराकरन की क्षमता आदि ) और भावात्मक कौशलों (भावनाओं मे संतूलन ,तनाव से पर पाना ) को परिपक्व करने में मदद करे।

क्या हमारी आधुनिक शिक्षा ,हमारे स्कूल हमे मानव होने की ओर ले जा रहे हैं ?जीवन कौशल शिक्षा अंतर्निहित है शिक्षा की व्यापकता में । जीवन कौशल शिक्षा को शिक्षा से अलग देखना आश्चर्यजनक व मूर्खतापूर्ण होगा। वर्तमान में सीसीई में इन्ही कौशलों को रेखांकित कर इन पर ध्यान दिलाया गया है । आज शिक्षा व्यक्ति के किसी एक पहलू पर ध्यान केन्द्रित न करते हुए समग्र व्यक्ति को शिक्षित करने वाली हो गई है ।

जीवन कौशल शिक्षा से सीसीई कुछ अन्य मुद्दो को भी समाधान करने का प्रयास करता है – यह बच्चो के ज्ञान के निर्माण की प्रकिरया में सहायता करते है , बच्चे सीखने के आनंद को प्राप्त करने के लिए सीखे ,ना की पूर्व की तरह परीक्षा में सफल होने के लिए , शिक्षक और बच्चो के रिश्ते को एक नई दिशा प्रदान करते है ,बच्चो को यत्नपूर्वक दी गई शिक्षा व साथ रहकर मिलने वाली शिक्षा में स्पष्ट अंतर करते है ,बाल केन्द्रित शिक्षा –ऐसी शिक्षा जो बच्चो को उनके अनुभवो से सीखने में मदद करें ।

नवीन पाठ्य पुस्तके भी बच्चो के जीवन कौशलों को विकसित करने हेतु परिवर्तित की गयी है । ये बच्चो की रचनात्मकता व जिज्ञासा को जीवित रखते हुए उन्हे पूस्तकों से स्वतंत्र अपने परिवेश से जुड़ते हुए ज्ञान के निर्माण की स्वाभाविक पृकिरया की ओर ले जाती हैं । कौशलों से प्राप्त होने वाले ज्ञान के बारे में यह सत्य है की यदि हम बच्चों को किन्ही कौशलों में निपुण करना चाहते हैं तो यह काम भी बिना उस काम में बच्चों को संलग्न किए  सिखाना संभव नहीं है । इन कार्यो पर एक बार में महारत की उम्मीद करना भी नाइंसाफी है ।

जीवन कौशल शिक्षा स्कूल शिक्षा के मुख्य उद्देश्य को साधती है –बच्चो को उनके जीवन के लिए तेयार करना । यह तभी संभव हो सकता है जब बच्चा प्राथमिक स्तर से ही अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के साथ –साथ आगे बढ़ता रहे।

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इसे सुनेंरोकें(1) जीवन कौशल शिक्षा जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक होगी। (2) जीवन कौशल शिक्षा युवावर्ग में समस्याओं को समझने साचने व निर्णय लेने की क्षमता का विकास कर सकेगी। (3) युवाओं को स्वयं की शारीरिक संरचना व उनमें होने वाले परिवर्तन से परिचित कराना।

जीवन कौशल आधारित शिक्षण अधिगम की अवधारणा प्राचीनकाल से वर्तमान समय तक भारतीय शिक्षा व्यवस्था में उपलब्ध रही है। वर्तमान समय में शिक्षण अधिगम का उद्देश्य बालक को उन सभी कौशलों का ज्ञान प्रदान करता है जोकि एक कुशल नागरिक एवं सामाजिक सदस्य में होते हैं।

अनेक अवसरों पर पढ़े-लिखे व्यक्तियों का आचरण इस प्रकार का होता है जोकि सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं होता। इस आधार पर ऐसे व्यक्तियों के लिये कहते हैं कि तुम ‘पढ़े हो पर गुने नहीं हो‘। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्तियों में जीवन कौशलों का विकास नहीं हो पाता। इस आधार पर उनका किताबी ज्ञान उनको एक प्रतिष्ठित नागरिक एवं सामाजिक सदस्य नहीं बना पाता।

वर्तमान समय में इस तथ्य को ध्यान रखकर शिक्षण अधिगम का स्वरूप कौशल आधारित कर दिया गया है। इसमें छात्रों को इस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती है, जिससे छात्र अपने जीवन का उचित प्रकार निर्वहन कर सके तथा जीवन के समस्त कौशलों को सीख सके और समाज के सम्मानित एवं प्रतिष्ठित सदस्य बन सके।

जीवन कौशल की अवधारणा एवं अर्थ

Meaning and Concept of Life Skill

जीवन कौशल की अवधारणा पर विचार किया जाये तो यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न कालों में शिक्षित व्यक्ति जीवन कौशलों से सम्पन्न रहे हैं। प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह विषम परिस्थितियों में अपनी योग्यता एवं बुद्धि के द्वारा समायोजन कर ले।

सामान्यतः राजा के विभिन्न मन्त्री एवं सहयोगी बुद्धिमान एवं जीवन कौशलों के विशेषज्ञं होते थे। इसलिये राज्य की विषम परिस्थितियों में भी वे अपनी कुशलता से जनता को सन्तुष्ट कर देते थे।

इसी प्रकार मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कुशलता प्राप्त करने के बाद ही कुशल नागरिक बन पाता है। जीवन में कुशलता प्राप्त करने के लिये प्राथमिक स्तर से ही छात्रों को जीवन कौशलों की शिक्षा प्रदान करनी चाहिये।

जीवन कौशलों की परिभाषाएं

जीवन कौशलों को परिभाषित करते हुए विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में अपने विचार दिये हैं जोकि इस अवधारणा को पूर्णतः स्पष्ट करते हैं-

  1. प्रो. एस. के. दुबे के शब्दों में, “जीवन कौशल का आशय उन दक्षताओं के विकास से है जो बालक के सर्वांगीण विकास में योगदान देती है तथा बालक को कुशल नागरिक एवं योग्य सामाजिक सदस्य के रूप में विकसित करते हुए उसमें जीवन की विषम परिस्थितियों में समायोजन की योग्यता विकसित करती है।“

  2. श्रीमती आर. के. शर्मा के शब्दों में, “जीवन कौशलों का सम्बन्ध उन कुशलताओं के विकास से है जो कि छात्रों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं व्यावहारिक क्षेत्र में सफल बनाती है तथा उन्हें सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर करती है, जिससे कि बालक का विकास पूर्ण मानव के रूप में हो।“

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि जीवन कौशलों का क्षेत्र व्यापक होता है। इसमें बालक को सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मर्यादित व्यवहार का ज्ञान प्रदान किया जाता है। जीवन कौशलों का सम्बन्ध व्यावहारिक ज्ञान, जीवन की कुशलता, सकारात्मक व्यवहार एवं सामाजिक कुशलता से घनिष्ठ रूप में होता है।

जीवन कौशलों की विशेषताएँ

Characteristics of Life Skills

जीवन कौशल की अवधारणा एवं विद्वानों के विचारों के आधार पर जीवन कौशलों की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-

1. व्यावहारिक ज्ञान का समावेश (Inclusion of behavioural knowledge)

जीवन कौशलों का सम्बन्ध व्यावहारिक ज्ञान से होता है। इसमें छात्रों को उन सभी कुशलताओं के बारे में ज्ञान प्रदान किया जाता है, जिनकी आवश्यकता बालक को अपने भावी जीवन में सामान्य रूप से पड़ती है; जैसे– शीघ्र निर्णय लेने की कुशलता एवं आत्म-विश्वास सम्बन्ध कुशलता आदि। इस प्रकार के अनेक कौशलों की आवश्यकता बालक को अपने जीवन में पड़ती है।

जीवन सम्बन्धी दक्षताओं का समावेश भी जीवन कौशलों के अन्तर्गत ही होता है। इसमें छात्रों को विभिन्न जीवन सम्बन्धी दक्षताओं के बारे में ज्ञान कराया जाता है, जिससे बालक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल एवं समायोजित हो सके।

3. विषम परिस्थितियों में समायोजन की योग्यता (Ability of adjustment in difficult conditions)

विषम परिस्थितियों में समायोजन की योग्यता के विकास का सम्बन्ध भी जीवन कौशलों से ही होता है। जीवन कौशलों से छात्रों को उन कलाओं में निपुण बनाया जाता है, जिनके आधार पर वह अपने आपको परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित कर लेते हैं या परिस्थितियों को ही परिवर्तित कर देते हैं।

4. सकारात्मक एवं आदर्श व्यवहार के विकास का ज्ञान (Knowledge of development of positive and ideal behaviour)

इसके अन्तर्गत छात्रों को आदर्श एवं सकारात्मक व्यवहार करना सिखाया जाता है। अनेक अवसरों पर छात्र प्रत्येक क्रिया एवं व्यवस्था के बारे में नकारात्मक धारणा बनाकर कुण्ठाग्रस्त हो जाता है। परिणामस्वरूप वह विषम परिस्थितियों में अपने आपको समायोजित नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति से निपटने के लिये छात्रों को सकारात्मक सोच एवं व्यवहार की कुशलता प्रदान की जाती है।

5. आत्म-विश्वास से सम्बन्ध (Relation with self confidence)

जीवन कौशलों का आत्म तत्त्व आत्म-विश्वास होता है। आत्म-विश्वास के अभाव में कोई बालक कार्य की योग्यता के होते हुए भी कार्य को उचित रूप में सम्पन्न नहीं कर पाता। अतः इस प्रक्रिया में छात्रों में आत्म-विश्वास की भावना विकसित करने का प्रयास किया जाता है, जिससे वह प्रत्येक कार्य को सफलता एवं प्रभावी रूप में सम्पन्न कर सकें।

6. जीवन की वास्तविकता का ज्ञान (Knowledge of reality of life)

जीवन की वास्तविकता का ज्ञान भी इससे सम्बन्धित माना जाता है अर्थात् जीवन कौशलों के विकास के माध्यम से छात्रों को जीवन की वास्तविक स्थितियों का ज्ञान छात्र जीवन में ही करा दिया जाता है, जिससे उनको भावी जीवन में वास्तविकता से संघर्ष करने में किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव न हो तथा वह प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो सके।

7. सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया (Process of all round development)

सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया को भी जीवन कौशलों का एक भाग माना जाता है अर्थात् जीवन कौशलों के द्वारा छात्रों के लिये सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त होता है क्योंकि इसमें उनको प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित कुशलताएँ प्रदान की जाती हैं।

जीवन कौशलों के विकास के उद्देश्य

Aims of Development of Life Skills

जीवन कौशलों के विकास के मूल में छात्रों के विकास के अनेक उद्देश्य समाहित हैं। इनमें से प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

1. सामाजिक विकास का उद्देश्य (Aims of social development)

सामाजिक विकास का पूर्ण सम्बन्ध जीवन कौशलों से होता है। विभिन्न प्रकार के जीवन कौशलों को सीखने के बाद छात्रों में सामाजिक गुणों का विकास सम्भव होता है तथा वे सामाजिक व्यवहार में निपुण हो जाते हैं। इस प्रकार सामाजिक विकास का उद्देश्य जीवन कौशलों के ज्ञान का प्रमुख उद्देश्य माना जाता है।

2. प्रयोगात्मक ज्ञान का विकास (Development of practical knowledge)

जीवन कौशलों का ज्ञान कराने के मूल में छात्रों को प्रयोगात्मक कुशलता से परिचित कराना माना जाता है अर्थात् छात्रों को जीवन की परिस्थितियों में किस प्रकार मर्यादित व्यवहार करना चाहिये, यह सिखाया जाता है? इस प्रकार छात्रों को प्रयोगात्मक ज्ञान के माध्यम से जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रवीन बनाने का उद्देश्य इसके अन्तर्गत निहित है।

3. समायोजन शक्ति के विकास का उद्देश्य (Aims of development of adjustment power)

सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि छात्र अपने जीवन की विषम परिस्थितियों में अपने आपको समायोजित नहीं कर पाते। जीवन कौशलों के विकास से छात्रों की समायोजन शक्ति को विकसित किया जाता है, जिससे वे जीवन में समायोजित हो सकें।

4. जीवन मूल्यों के विकास का उद्देश्य (Aims of development of life values)

जीवन कौशलों के विकास का उद्देश्य छात्रों में जीवन मूल्यों का विकास करना है। जीवन कौशलों के द्वारा छात्रों में सामाजिक मूल्य, आर्थिक मूल्य एवं राजनीतिक मूल्यों का विकास होता है, जिससे छात्र उक्त क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर लेता है।

5. मानसिक विकास का उद्देश्य (Aims of mental development)

छात्रों में जीवन कौशलों के विकास का मूल उद्देश्य संवेगात्मक स्थिरता लाना है, जिससे वह अपने जीवन में दूसरे के संवेगों को समझ सकें तथा अपने संवेगों पर नियन्त्रण रख सकें। इस प्रक्रिया से छात्रों का मानसिक विकास तीव्र गति से होता है।

6. सर्वांगीण विकास का उद्देश्य (Aims of all round development)

छात्रों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखकर उनमें जीवन के लिये अनिवार्य सभी कौशलों का विकास किया जाता है। दूसरे शब्दों में छात्रों को उन सभी कौशलों का ज्ञान कराया जाता है, जोकि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार छात्रों के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।

7. आत्म-विश्वास के विकास का उद्देश्य (Aims of development of self confidence)

जीवन कौशलों के ज्ञान के अन्तर्गत आत्म-विश्वास की भावना का विकास किया जाता है क्योंकि आत्म-विश्वास के ज्ञान के अभाव में छात्रों द्वारा कोई भी कार्य उचित रूप में सम्पन्न नहीं किया जा सकता। अनेक विधियों के माध्यम से तथा गतिविधियों को सम्पन्न करने के अवसर प्रदान करके छात्रों में आत्म-विश्वास की भावनाविकसित की जाती है।

जीवन कौशलों की आवश्यकता एवं महत्त्व

Need and Importance of Life Skills

जीवन कौशलों के विकास की प्रमुख आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. जीवन में सर्वांगीण विकास की अवधारणा को सत्य सिद्ध करने के लिये जीवन कौशलों का ज्ञान एक बालक के लिये आवश्यक होता है क्योंकि जीवन कौशलों के ज्ञान के अभाव में वह पूर्ण विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकता।

  2. सामाजिक गुणों के विकास के लिये भी जीवन कौशलों का ज्ञान आवश्यक समझा जाता है क्योंकि जीवन कौशल मर्यादित, आदर्श एवं सामाजिक व्यवहार में उपयोगी सिद्ध होते हैं।

  3. जीवन की विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिये भी जीवन कौशलों की आवश्यकता अनुभव की जाती है क्योंकि शैक्षिक समस्या एवं अशैक्षिक समस्या दोनों के ही समाधान में जीवन कौशल उपयोगी सिद्ध होते हैं।

  4. संवेगात्मक स्थिरता एवं मानसिक विकास की प्रक्रिया को सरल एवं स्वाभाविक रूप में सम्पन्न करने के लिये भी जीवन कौशलों की आवश्यकता का अनुभव किया जाता है। इससे छात्रों को समूह में कार्य करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं, जिससे उन्हें स्वयं के संवेगों पर नियन्त्रण तथा दूसरे के संवेगों को समझने का अवसर मिलता है।

  5. आत्म-विश्वास की भावना के विकास के लिये भी जीवन कौशलों की आवश्यकता होती है। इसमें छात्रों को पृष्ठपोषण प्रदान करके एवं प्रेरित करके आत्म-विश्वास की भावना जाग्रत की जाती है, जिससे छात्र अपने जीवन सम्बन्धी कार्यों को सफलता से सम्पन्न करते हैं।

  6. जीवन कौशलों के ज्ञान से छात्रों में सही एवं गलत के निर्णय की व्याख्या की योग्यता का विकास होता है अर्थात् छात्र परिस्थितियों के आधार पर गलत एवं सही क्रियाओं की व्याख्या करता है तथा सही तथ्यों को स्वीकार करता है।

  7. जीवन कौशलों के माध्यम से छात्रों में जीवन की वास्तविक परिस्थितियों के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है। वह इन स्थितियों में जागरूक एवं सजग होकर कार्य करने की योग्यता प्राप्त करता है तथा एक उत्तरदायी नागरिक के रूप में अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करता है।

जीवन कौशलों के प्रकार

Types of Life Skills

जीवन कौशलों को सामान्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है जोकि सामान्य जीवन कौशल और उच्च स्तरीय (उष्णीय) जीवन कौशल के नाम से जाने जाते हैं। इन कौशलों को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है-

जीवन कौशल#सामान्य कौशल#उच्च स्तरीय या उष्णीय कौशल1.आत्म-विश्वास सम्बन्धी कौशल1.श्रेष्ठ उष्णीयता एवं उच्च मानसिक स्तर2.निर्णय लेने की क्षमता सम्बन्धी कौशल2.सोचने के रास्ते (विधियाँ)3.तनाव उन्मूलन कौशल3.मानसिक एवं शारीरिक विश्राम4.विपरीत परिस्थितियों में समायोजन कौशल4.लक्ष्य निर्धारण5.स्वयं के प्रति जागरूकता कौशल5.समस्या समाधान6.गलत कार्य के प्रति नकारात्मक प्रवृत्ति का विकास6.सम्प्रेषण7.सकारात्मक व्यवहार7.सामाजिक समर्थन8.समालोचनात्मक सोच8.स्वास्थ्यप्रद जीवन स्तर9.एक-दूसरे के प्रति समझ का कौशल––

विद्यालयी गतिविधियाँ एवं जीवन कौशल विकास

School Activities and Life Skill Development

विभिन्न प्रकार की व्यूह रचनाओं में छात्रों के कौशल विकास हेतु गतिविधियों का सहारा लिया जाता है। विद्यालय में इन गतिविधियों की व्यवस्था हेतु शिक्षक एवं प्रधानाध्यापक दोनों का ही सहयोग अपेक्षित होता है। सामान्यतः प्रत्येक जीवन कौशल के विकास हेतु छात्रों को पृथक्-पृथक् गतिविधियाँ प्रदान करनी चाहिये, जिससे कि कौशलों के विकास में पारदर्शिता एवं गुणवत्ता उत्पन्न हो सके।

प्रत्येक कौशल के विकास हेतु सम्भावित गतिविधियों के स्वरूप का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

आत्म-विश्वास सम्बन्धी विकास हेतु कौशल के विकास हेतु छात्रों को बाल सभा, छब्बीस जनवरी एवं 15 अगस्त के कार्यक्रमों में बोलने के अवसर प्रदान करने चाहिये, जिससे उसमें आत्म-विश्वास जाग्रत हो सके। इसके लिये छात्रों को व्यक्तिगत रूप से तथा सामूहिक रूप से विभिन्न कार्य सम्पन्न करने के अवसर प्रदान करने चाहिये, जिससे छात्रों को यह अनुभव हो सके कि वे भी कोई न कोई कार्य कर सकते हैं, इससे आत्म-विश्वास का विकास सम्भव होता है।

बालकों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास हेतु उनको प्रोजेक्ट कार्य दिये जायें तथा उनको पूर्ण स्वतन्त्रता दी जाये कि वह इस कार्य को किसी भी रूप में सम्पन्न कर सकते हैं। छात्रों को विभिन्न प्रकार के खेलों के चुनाव के अवसर प्रदान किये जायें। छात्रों को पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के चुनाव करने के अवसर प्रदान किये जायें। इससे छात्रों में अपनी योग्यता एवं रुचि के अनुसार निर्णय लेने के कौशल का विकास होता है।

अनेक घटनाओं एवं कारणों से बालकों के जीवन में मानसिक तनाव उत्पन्न होता रहता है। इस तनाव को दूर करने के लिये छात्रों को विद्यालय में विविध प्रकार की गतिविधियाँ करानी चाहिये, जिससे कि उनका मानसिक तनाव दूर हो सके; जैसे-छात्रों के मध्य अन्त्याक्षरी, कविता एवं लोकगीत आदि की प्रतियोगिता करानी चाहिये, जिससे बालक उन सभी तनावों को भूल जाता है जोकि उसके विद्यालयी एवं पारिवारिक परिवेश के माध्यम से प्राप्त होते हैं। इस प्रकार की गतिविधियों को प्रयोग करके वह अपने भावी जीवन में भी तनावों को दूर करने की योग्यता प्राप्त कर लेता है।

प्रतिकूल परिस्थिति में समायोजन सम्बन्धी कौशल विकास हेतु विद्यालय में सामूहिक क्रियाओं को अधिक स्थान प्रदान करना चाहिये; जैसे-सामूहिक खेल प्रतियोगिता, सामूहिक गीत प्रतियोगिता, सामूहिक नृत्य प्रतियोगिता एवं सामूहिक प्रोजेक्ट कार्य आदि। इन सभी में छात्रों के साथ समायोजन करने से छात्रों में समायोजन कौशल का विकास होता है क्योंकि प्रत्येक छात्र का स्वभाव एक-जैसा नहीं होता। धीरे-धीरे छात्र विपरीत परिस्थितियों में भी समायोजन करना सीख जाता है तथा कभी भी वह कुसमायोजित नहीं हो सकता।

स्वयं के प्रति जागरूकता कौशल सम्बन्धी विकास हेतु छात्रों को व्यक्तिगत रुचि एवं योग्यता के आधार पर कार्य प्रदान करने चाहिये; जैसे– गीत, नृत्य, भाषण, निबन्ध लेखन एवं कहानी लेखन आदि को पृथक् रूप में सम्पन्न करने के अवसर छात्रों को देने चाहिये, जिससे सभी छात्र प्रत्येक क्षेत्र में अपनी-अपनी योग्यताओं को पहचान सके तथा स्वयं की योग्यता एवं विकास के प्रति जागरूक हो सके। इस कौशल के विकास से छात्र अपने भावी जीवन में स्वयं के प्रति जागरूक होकर पूर्ण विकास की ओर अग्रसर होता है।

सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि अनेक अवसरों पर छात्र किसी गलत कार्य को प्रतिरोध नहीं कर पाते। इसके लिये उनमें सही एवं गलत की पहचान के कौशल का विकास करना चाहिये। इसके लिये छात्रों को नैतिकता एवं मानवता से सम्बन्धित कहानी सुनने सुनाने की प्रतियोगिता का आयोजन करना चाहिये। विभिन्न प्रकार के आदर्शवादी नाटकों में अभिनय करने के अवसर मिलने चाहिये, जिससे छात्रों में गलत कार्यों के प्रति नकारात्मक सोच विकसित हो सके तथा वे गलत कार्यों का विरोध कर सकें; जैसे-असत्य, चोरी, निन्दा, झगड़ा एवं अन्धविश्वास आदि का विरोध करना।

सकारात्मक व्यवहार सम्बन्ध कौशलों के विकास हेतु भी विद्यालय में गतिविधियों का आयोजन किया जा सकता है; जैसे-छात्रों को स्काउटिंग, गाइडिंग के कैम्प में भाग लेने सम्बन्धी गतिविधियों को सिखाना, श्रमदान करवाना एवं सामुदायिक कार्यों में सहयोग देने के लिये प्रेरणा प्रदान करना आदि।

इन गतिविधियों के माध्यम से छात्रों में विपरीत परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर भी नकारात्मक व्यवहार करने की आदत नहीं होती। वरन् इन परिस्थितियों को सकारात्मक रूप में स्वीकार करते हुए समायोजन करने की कुशलता प्राप्त करता है। इस कौशल के आधार पर ही छात्र अपने जीवन में विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मक व्यवहार करना सीख जाता है।

8. समालोचनात्मक सोच कौशल के विकास हेतु गतिविधियाँ (Activities for development of critical thinking skill)

अनेक अवसरों पर बालक प्रत्येक तथ्य को ज्यों की त्यों स्वीकार कर लेते हैं, जिससे वह रूढ़िवादिता एवं अन्धविश्वास का शिकार होते जाते हैं। विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता, विचार-विमर्श प्रतियोगिता एवं सेमिनार आदि के माध्यम से छात्रों में प्रत्येक तथ्य की समालोचना करने की क्षमता विकसित होती है।

इनके माध्यम से छात्र किसी भी तथ्य को स्वीकार करने से पूर्व उस पर व्यापक विचार-विमर्श करता है तथा सही तथ्यों को स्वीकार कर लेता है तथा त्रुटिपूर्ण एवं अनुपयोगी तथ्यों को अस्वीकार कर देता है।

9. एक-दूसरे के प्रति समझ का कौशल के विकास हेतु गतिविधियाँ (Activities for the development of understanding skill to each other)

एक-दूसरे के प्रति समझ के अभाव में छात्रों में अनेक प्रकार के अवगुण विकसित हो जाते हैं। विद्यालय में अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से छात्रों में एक-दूसरे के प्रति समझ विकसित होती है, जिससे उनमें समायोजन की क्षमता का विकास होता है; जैसे– प्रदर्शनी, मेला, प्रोजेक्ट एवं सामूहिक गतिविधियों में छात्र एक-दूसरे के स्वभाव एवं व्यवहार से परिचित होते हैं।

इसके आधार पर वह विभिन्न मानवीय व्यवहारों को समझते हैं तथा उनके अनुरूप ही अपने कार्य व्यवहार को निर्धारित करते हैं। इससे वह अपने जीवन में सार्थक व्यवहार करने की कुशलता प्राप्त करता है।

10. उच्च मानसिक कौशल के विकास हेतु गतिविधियाँ (Activities for development of high mental skills)

सामान्य रूप से उच्च मानसिक स्तरीय कौशलों के विकास हेतु विद्यालय में नैतिकता एवं मानवता, सहयोग, सद्भावना एवं आदर्शवादी क्रियाओं का आयोजन करना चाहिये, जिससे छात्रों में व्यापक सोच एवं विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास होता है।

विभिन्न प्रकार के खेल, विज्ञान मेलों का आयोजन एवं सांस्कृतिक मेलों के आयोजन से छात्रों में सहयोग एवं सद्भावना का विकास होता है तथा मानसिक दक्षताओं का विकास तीव्र गति से सम्भव होता है। इनका उपयोग छात्र अपने भावी जीवन को कुशल रूप में संचालित करने में कर सकता है।

किसी भी तथ्य या घटना के सन्दर्भ में उच्च स्तरीय सोच को विकसित करने के लिये छात्रों में तर्क एवं चिन्तन तथा सहारा आवश्यक होता है। तर्क एवं चिन्तन के विकास हेतु विद्यालय में चर्चा करना, विचार-विमर्श करना, वर्णन करना, कहानी सुनाना, निबन्ध लिखना एवं कविता पाठ आदि गतिविधियाँ आयोजित करनी चाहिये। इनमें छात्रों की सोच एक ओर परिमार्जित होती है वहीं दूसरी ओर उनमें तार्किक एवं उच्च स्तरीय सोच का कौशल विकसित होता है। अतः इसके माध्यम से छात्र अपने जीवन को सफल एवं विकसित करता है।

अनेक अवसरों पर छात्रों को मानसिक थकान का अनुभव होने लगता है। इस स्थिति में विद्यालय में उन गतिविधियों का आयोजन करना चाहिये, जिनसे कम समय में ही छात्रों की मानसिक थकान कम हो जाये; जैसे-योग, व्यायाम, खेल कहानी, कविता एवं संगीत सम्बन्धी, गतिविधियों के माध्यम से छात्रों को विश्राम प्रदान किया जा सकता है।

इन गतिविधियों में सर्वश्रेष्ठ गतिविधियों का छात्र अपने जीवन में मानसिक एवं शारीरिक विश्राम के लिये प्रयोग कर सकता है तथा अपने जीवन का पूर्ण विकास कर सकता है।

लक्ष्य निर्धारण सम्बन्धी कौशलों के विकास हेतु भी विद्यालय में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का आयोजन किया जा सकता है। बालक को उसकी रुचि एवं योग्यता का ज्ञान कराने के लिये गतिविधियाँ आयोजित की जा सकती हैं, जिनके आधार पर बालक लक्ष्य निर्धारित कर सकता है।

स्वयं व्यक्ति एवं सामाजिक स्तर के प्रभाव की लक्ष्य निर्धारण में क्या भूमिका होती है? इसका ज्ञान छात्रों को कराया जा सकता है। खेल, प्रयोगशाला, व्यायाम एवं पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के माध्यम से छात्रों को उनकी रुचि एवं योग्यता का ज्ञान कराया जाता है, जिससे वे अपने भविष्य के लिये सार्थक लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं।

समस्या समाधान कौशलों के विकास हेतु विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का आयोजन किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत छात्रों को समस्या से बचना, समस्या का समाधान करना एवं परिस्थितियों को परिवर्तित करना सिखाया जाता है।

इसके लिये छात्रों को छोटी-छोटी समस्याएँ प्रदान की जाती हैं तथा उनको समाधान करना सिखाया जाता है। इसके लिये छात्रों को प्रयोग, शैक्षिक एवं व्यवहार सम्बन्धी समस्याएँ प्रदान की जाती हैं, जिससे उनमें सामाजिक व्यवहार की योग्यता का विकास किया जा सकता है। इस प्रकार धीरे-धीरे समस्या समाधान का कौशल विकसित हो जाता है।

सम्प्रेषण कौशलों के विकास हेतु भी विद्यालय में अनेक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है; जैसे-छात्रों को अधिक बोलने के अवसर देना, कहानी सुनाने के अवसर देना, घटना के वर्णन के अवसर देने तथा प्रश्न पूछने के अवसर देना आदि।

इन गतिविधियों के माध्यम से छात्रों को अपने विचारों को प्रकट करने में सहायता मिलती है तथा प्रत्येक परिस्थितियों में छात्रों द्वारा अपने विचारों को प्रकट किया जाता है। छात्रों द्वारा कोई संकोच नहीं किया जाता तथा वह दूसरे के विचारों को श्रवण करने की योग्यता प्राप्त करते हैं। इस प्रकार विचारों के आदान-प्रदान की योग्यता छात्रों में विकसित होगी।

सामाजिक समर्थन को प्राप्त करने के लिये भी विद्यालय में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा सकता है; जैसे– सामुदायिक कार्यक्रमों में भाग लेने के अवसर प्रदान करना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन, स्थानीय कार्यक्रमों में भाग लेना तथा परिवेशीय गतिविधियों में विद्यालयी सहभागिता आदि।

इन सभी प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से छात्रों में समाज के व्यक्तियों से बातचीत करने की कुशलता तथा सामाजिक व्यवहार की योग्यता विकसित होती है। इस आधार पर ही छात्र अपने कार्य एवं व्यवहार के लिये सामाजिक समर्थन जुटाने में सफल हो जाता है। इस प्रकार छात्रों में सामाजिक समर्थन प्राप्त करने का कौशल विकसित हो जाता है।

17. स्वास्थ्यप्रद जीवन के कौशल के विकास हेतु गतिविधियाँ (Activities for the development of healthy life style skill)

शिक्षा एवं स्वास्थ्य जीवन के दो महत्त्वपूर्ण अंग हैं। जो व्यक्ति इन दोनों पक्षों को सही रूप में विकसित कर लेता है, वह अपने जीवन के सर्वांगीण विकास के मार्ग को प्रशस्त कर सकता है। विद्यालय में स्वास्थ्यप्रद जीवन के लिये व्यक्तिगत विद्यालयी एवं परिवेशीय स्वच्छता के बारे में ज्ञान प्रदान करने सम्बन्धी गतिविधियों को संचालित किया जा सकता है।

इसके लिये सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक दोनों प्रकार की गतिविधियाँ संचालित की जा सकती हैं; जैसे– विद्यालय में स्वच्छता कार्य करवाना, समुदाय में स्वच्छता सम्बन्धी कार्य करवाना, व्यक्तिगत स्वच्छता का प्रतिदिन निरीक्षण करना तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का प्रतिपादन करना। इस प्रकार छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही स्वास्थ्यप्रद जीवन का कौशल विकसित किया जा सकता है जिसका उपयोग अपने जीवन में करके सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्येक विद्यालय में जीवन कौशलों के विकास अनेक प्रकार की गतिविधियों का संचालन करना चाहिये, जिससे कि सभी छात्रों में स्वाभाविक रूप से जीवन कौशलों का विकास किया जा सके। इसके साथ शिक्षक विद्यालय एवं प्रधानाध्यापक का यह दायित्व होता है कि छात्रों की रुचि एवं योग्यता के अनुसार उन गतिविधियों के संगठन, संचालन एवं क्रियान्वयन सुनिश्चित करे जोकि उनमें जीवन कौशलों का विकास सम्भव करती हैं।

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जीवन कौशल का मुख्य उद्देश्य क्या है?

जीवन कौशल शिक्षण का उद्देश्य मौजूदा ज्ञान और सकारात्मक दृष्टिकोणों और मूल्यों के साथ-साथ नकारात्मक दृष्टिकोणों और जोखिम भरे व्यवहारों को रोकना है। जीवन कौशल शिक्षण व्यक्तिगत और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने और स्वास्थ्य और सामाजिक समस्याओं की रोकथाम में योगदान देता है।

जीवन कौशल शिक्षा का क्या उद्देश्य है?

(1) जीवन कौशल शिक्षा जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक होगी। (2) जीवन कौशल शिक्षा युवावर्ग में समस्याओं को समझने साचने व निर्णय लेने की क्षमता का विकास कर सकेगी। (3) युवाओं को स्वयं की शारीरिक संरचना व उनमें होने वाले परिवर्तन से परिचित कराना।

जीवन कौशल का क्या महत्व है?

जीवन कौशल अनुकूल तथा सकारात्मक व्यवहार हेतु ऐसी योग्यताएं हैं जो व्यक्तियों को दैनिक जीवन की मांगों और चुनौतियों का प्रभावपूर्ण ढंग से सामना करने में समर्थ बनाती हैं। जीवन कौशल विकास एक आजीवन प्रक्रिया है जो व्यक्तियों को बढ़ने और परिपक्च होने में मदद करती हैं।

जीवन कौशल कितने प्रकार के होते हैं?

कुल 10 जीवन कौशल इस प्रकार हैं:.
सम्पर्क.
पारस्परिक कौशल.
सहानुभूति.
आत्म-जागरूकता.
समस्या सुलझाना.
निर्णय लेना.
रचनात्मकता.
गहन सोच.