मीणा जाति में सबसे ऊंचा गोत्र कौन सा है? - meena jaati mein sabase ooncha gotr kaun sa hai?

जमींदार मीणा उत्तर भारत के राजस्थान राज्य के मीणाओं से संबंधित हैं, मीणा जाति में सबसे ऊंचा वर्ग जमीदार मीणा है और और इसके सबसे अधिक आबादी वाले समूह हैं, जिनकी संख्या 20 मिलियन से अधिक है। वे धुंदरी (मारवाड़ी) भाषा बोलते हैं। सारे जमीदार मीणा खेती व पशुपालन से जुड़े हुए हैं। कुमार सुरेश सिंह की पुस्तक पीपल ऑफ इंडिया के अनुसार, सभी मीना समूहों में जमींदार मीणा क्षत्रिय जाति है जमीदार मीणा भी राजपूतों के बराबर क्षत्रिय हैं। स्थानीय सामाजिक अनुष्ठान पदानुक्रम में उन्हें एक स्वच्छ जाति का दर्जा प्राप्त है। जैसा कि इतिहास में पाया गया है ज़मीदार मीणा सवाई माधोपुर, जयपुर, अलवर पे राज किया हैं सर्वाधिक जमीदार मीणा सवाई माधोपुर में निवास करते है। सारे मीणा राजा जमीदार मीणा ही है जैसे की आलन सिंह मीणा, बूंदा मीणा, राव हम्मीर मीणा, बिजेंद्र गुणावत और राजवीर मीना या सारे मीणा जाति के प्रमुख राजा व सरदार है।

जमीदार मीणा के प्रमुख गोत्र[सम्पादन]

चंदा , सूसावत , टाटु , नोरावत , बडगोती , मरमट , महर , सिरा, जोरवाल, सेहरा , नारेड़ा , बरवाल, घुनावत, जारेडा ,ब्याडवाल,जारवाल, डोबवाल , बखंंड, इनके अलावा और भी गोत्र है ।

सबसे अधिक जनसंख्या वाले गोत्र

मीणा समाज में सबसे अधिक जनसंख्या वाला गोत्र मरमट, बड़गोती, जोरवाल, सिर्रा, महर है। इन गोत्रों की जनसंख्या बहुत सारी जातियों से भी अधिक है ।

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19वी सदी में मीणा जनजाति के लोगो को अंग्रेज सेना में भर्ती किया गया था जिसे "मीणा रेजिमेंट" या "42वी देवली रेजिमेंट" कहा जाता था जिसे बाद में खत्म कर दिया गया।


मीणा भारत की प्राचीन जनजातियों में से एक हैं ।[3] वे मीणा भाषा बोलते है।[4] उन्होंने ब्राह्मण पूजा प्रणाली को अपनाना शुरू कर दिया।[5] इतिहासकारों का दावा है कि वे मत्स्य जनजाति के है। उन्हें 1954 में भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला।[6]

मीणा जो मुख्यतया भारत के राजस्थान, मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र इन राज्यों में निवास करने वाली एक जनजाति है। राजस्थान राज्य में सभी मीणा जाति जनजाति हैं,[3] मध्य प्रदेश मेंं विदिशा के सिरोंज क्षेत्र में मीणा जाति पहले अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल की गयी थी जिसे 2003 में हटाकर सामान्य वर्ग में शामिल किया गया(केवल मीणा(रावत)देशवाली अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल)|[8][9]महाराष्ट्र, दिल्ली और हरियाणा मे मीणा जाति अन्य पिछड़ा वर्ग मे सम्मिलित की गई है।[9]जबकी पंजाब,उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में सामन्य वर्ग में सम्मिलित किए हुए हैं|[10][11][9][8]मीणा जाति उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों जिनमें अंग्रेजो द्वारा अपराधिक जनजाति अधिनियम में सम्मिलित की गई थी|[10][11]

आपको भारत के हर राज्य में मीणा लोग मिल जाएंगे चाहे आप असम जाओ या तमिलनाडु।

मीणा जाति पर लगाए गए कानून

आपराधिक जनजाति अधिनियम :

भारत मे अंग्रेजो ने आपराधिक जनजाति अधिनियम बनाया तथा भारत के राज्यों के स्थानीय अंग्रेज अधिकारीयो ने मीणा जाति को आपराधिक जनजाति अधिनियम में सम्मिलित किया

आपराधिक जनजाति अधिनियम,राज्य और मीणा जाति[12][13]राज्यनोटिफाइड/अधिसूचितपटियाला एवं पूर्वी पंजाब राज्य संघहांराजस्थानहांपंजाबहांमहाराष्ट्रनहींमध्य प्रदेशनहींदिल्लीनहीं

[12] [13] भारत के स्वतंत्र होने के बाद 1949 मे अधिनियम निरस्त कर दिया गया तथा अन्य जातियों सहित मीणा जाति को अधियम से डिनोटिफाइड किया गया| 2005 में भारत सरकार ने डिनोटिफाइड,घुमंतू, अर्ध घुमंतू जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीडिएनएसटी) की स्थापना की तथा राज्यों ने मीणा जाति को डिएनएसटी श्रेणी में निम्नानुसार शामिल किया

मीणा जाति और राज्यो की डिटीएनएसटी श्रेणी[12][13]राज्यडिटीएनएसटी श्रेणी में शामिलराजस्थाननहींपंजाबहांहरियाणाहांमहाराष्ट्रनहींमध्य प्रदेशनहींदिल्लीहां

[14][15]

जरायम पेशा कानून :

यह कानून 1930 में आया था।

इस कानून के अंतर्गत मीणा जनजाति के 12 वर्ष से बड़े लोगो को थाने में अपनी उपस्थिति देनी होती थी । प्रत्येक व्यक्ति को जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया जाता था। इस काले कानून को आजादी के बाद 1952 में रद्द किया गया। देशभक्त मीणा कौम को अपराधिक जाति घोषित कर दिया गया।

दादरसी कानून :

इस कानून के तहत चौकीदार मीणा जो चौकीदारी करते थे। यदि उनके क्षेत्र में कहींभी चोरी हो जाय तो चौकीदार मीणा को उसका हर्जाना देना पड़ता था चाहे चोरी कोई भी करे।

मीणा लोगो से हथियार और वाहन रखने की अनुमति छीन ली गई।

जाति की श्रेणियाँ

मीणा जाति मुख्यतः उत्तर भारत के राज्यो मे स्थित है,मीणा जाति भारत के अलग अलग राज्यों द्वारा अलग अलग श्रेणियों मे सम्मिलित की गयी हैं राज्यो की सूची निम्नानुसार है -

मीणा जाति की राज्यो के अनुसार श्रेणियाँ [9][8]राज्यश्रेणीराज्य सूची में प्रवेश संख्यामंडल सूची में प्रवेश संख्यादिल्लीअन्य पिछडा वर्ग4066हरियाणाअन्य पिछडा वर्ग6257महाराष्ट्रअन्य पिछडा वर्ग98169राजस्थानअनुसूचित जनजाति09-

[9][8]

  • मध्य प्रदेश -मीणा जाति मध्य प्रदेश में सिंरोज जिले के विदिशा उपखंड में अनुसूचित जनजाति श्रेणि में सम्मिलित थी जिसे भारत सरकार के गजट नोटिफिकेसन 01-jan-2003 के बाद हटा दिया गया| "वर्तमान में, मीणा(रावत)देशवाली अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित है(आंकडा-प्रवेश संख्या :19)"[9]बाकी सभी 'मीणा' अनारक्षित वर्ग में सम्मिलित है|[9][8]

[नोट-1.मीणा जाति उत्तरप्रदेश,बिहार व अन्य राज्यो की किसी भी आरक्षित श्रेणि में शामिल नहीं है|

2.पंजाब में मात्र डीएनएसटी श्रेणि में शामिल हैं|][9][8] [16][17]

जनसांख्यिकी

मीणा राजस्थान की आबादी का 14% है।[18]

वर्षजन.%±19014,77,129—19115,58,68917.1%19215,15,241−7.8%19316,07,36917.9%1941—1951—196111,55,620—197115,32,33132.6%198120,86,69236.2%199127,99,16734.1%200137,99,97135.8%201143,45,52814.4%source:[19]

परिचय

मीणा मुख्यतया भारत के राजस्थान राज्य में निवास करने वाला एक क्षत्रिय आदिवासी समुदाय है। मीणा जाति भारतवर्ष की प्राचीनतम जातियों में से मानी जाती है । वेद पुराणों के अनुसार मीणा जाति मत्स्य और मीन मीणा जाति का गण चिन्ह है। चैत्र शुक्ल पक्ष की तीज के दिन को मीना समाज जहां एक ओर मत्स्य जयन्ती ( मीनेष जयंती ) के रूप में मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण राजस्थान में गणगौर का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। मीणा जाति का गणचिह्न मीन (मछली) था। मछली को संस्कृत में मत्स्य कहा जाता है। प्राचीनकाल में मीना जाति के राजाओं के हाथ में वज्र तथा ध्वजाओं में मत्स्य का चिह्न अंकित होता था, इसी कारण से प्राचीनकाल में मीणा जाति को मत्स्य माना गया।

प्राचीन ग्रंथों में मत्स्य जनपद का स्पष्ट उल्लेख है जिसकी राजधानी विराट नगर थी,जो अब जयपुर वैराठ है। इस मस्त्य जनपद में अलवर,भरतपुर एवं जयपुर के आस-पास का क्षेत्र शामिल था। आज भी मीना लोग इसी क्षेत्र में बहुत अधिक संख्या में रहते हैं।

मीणा जाति के भाटों(जागा) के अनुसार मीना जाति में 12 पाल, 32 तड़ एवं 5248 गौत्र हैं।

मध्य प्रदेश के भी लगभग 23 जिलो मे मीना समाज निवास करता है ।

मूलतः मीणा एक सत्तारूढ़ [जाति] थे, और मत्स्य, यानी, राजस्थान या मत्स्य संघ के शासक थे, लेकिन उनका पतन स्य्न्थिअन् साथ आत्मसात से शुरू हुआ और पूरा जब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें राजपूतों के साथ मिलकर "आपराधिक जाति" में डाल दिया तब यह कार्रवाई, राजस्थान में राजपूत राज्य के साथ उनके गठबंधन के समर्थन में लिया गया निर्णय थी |

मीना राजा आमेर (जयपुर) सहित राजस्थान के प्रमुख भागों के प्रारंभिक शासक थे।

पुस्तक 'संस्कृति और भारतीय जातियों की एकता "R.S. Mann" द्वारा में कहा गया है कि मीणा, राजपूतों के समान एक क्षत्रिय जाति के रूप में मानी जाती है परन्तु  इतिहास में उल्लेख बहुत कम किया गया हैै।

प्राचीन समय में राजस्थान मे मीणा वंश के राजाओ का शासन था। मीणा राज्य मछली (राज्य) कहा जाता था। संस्कृत में मत्स्य राज्य का ऋग्वेद में उल्लेख किया गया था। बाद में भील और मीणा, विदेशी लोगों से जो कि सिंध्, हेप्थलिते या अन्य मध्य एशियाई गुटों के साथ आये थे, से मिश्रित हुए।

मीणा मुख्य रूप से मीन भगवान और (शिव) की पूजा करते थे/हैं। मीणाओ मे कई अन्य हिंदू जातिओं की तुलना में महिलाओं के लिए बेहतर अधिकार रहे हैं। विधवाओं और तलाकशुदा का पुनर्विवाह एक आम बात है और इसे अच्छी तरह से अपने समाज में स्वीकार कर लिया है। इस तरह के अभ्यास वैदिक सभ्यता का हिस्सा हैं।

आक्रमण के वर्षों के दौरान,और 1868 के भयंकर अकाल में, तबाह के तनाव के तहत कई समुह बने। एक परिणाम के रूप मे भूखे परिवारों को जाति और ईमानदारी का संदेह का परित्याग करने के लिए पशु चोरी और उन्हें खाने के लिए मजबूर होना पड़ा ।

शाहजहांपुर के मीणा सरदारों ने 1803 की लसवाड़ी की लड़ाई में मराठों का साथ दिया और अंग्रेजो को खूब नाकों चने चबाए।

शाखाएँ, धरोहर

जमींदार मीना : जमींदार या पुरानावासी मीणा वे हैं जो प्रायः खेती एवं पशुपालन का कार्य वर्षों से करते आ रहे हैं। ये लोग राजस्थान के सवाईमाधोपुर, करौली,दौसा व जयपुर जिले में सर्वाधिक हैं|

चौकीदार या नयाबासी मीणा : चौकीदार या नयाबासी मीणा वे मीणा हैं जो स्वछंद प्रकृति के थे। इनके पास जमींने नहीं थीं, इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गए। उक्त कारणों से इन्हें नयाबासी भी कहा जाता है। ये लोग सीकर, झुंझुनू, एवं जयपुर जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं।

प्रतिहार या परिहार मीणा : यह अपूर्ण ज्ञान है। प्रतिहार या परिहार एक गोत्र है। इस गोत्र के मीणा टोंक, भीलवाड़ा, तथा बूंदी जिले में बहुतायत में पाये जाते हैं। यह गोत्र अपनी प्रभुत्वता के कारण एक अलग पहचान रखती है । प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ उलट का प्रहार करना होता है। ये लोग छापामार युद्ध कौशल में चतुर थे इसलिये प्रतिहार मीना कहलाये।

भील मीणा : ये लोग सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं चित्तोड़गढ़ जिले में प्रमुख रूप से निवास करते हैं।

मेर मीणा : यही लोग मेरवाड़ा और गोडवाड के प्रमुख निवासी हैं, इन्होंने लोक देवता तेजाजी के साथ युद्ध भी किया था। अधिकांश मेर अब रावत बन चुके हैं।

और भी कई शाखाएं हैं जैसे उजला मीणा।


मीना जाति के प्रमुख राज्य निम्नलिखित थे :

आमेर का सुसावत राजवंश

धौलागढ़ (अलवर), सुंदर नगरी (दौसा)का बैपलावत राजवंश

खोहगंग का चांदा राजवंश

मांच का सीहरा राजवंश

गेटोर तथा झोटवाड़ा के नाढला राजवंश

नायला का राव बखो [beeko] देवड़वाल (द॓रवाल) राजवंश

नायला का राव बखो [beeko] देवड़वाल (द॓रवाल) राजवंश

नहाण का गोमलाडू राजवंश

रणथम्भौर का टाटू राजवंश

नाढ़ला का राजवंश

बूंदी का उषारा एवम् मोटिश राजवंश

मेवाड़ का मीणा राजवंश

माथासुला ओर नरेठ का ब्याड्वाल

झान्कड़ी अंगारी (थानागाजी) का सौगन मीणा राजवंश

प्रचीनकाल में मीणा जाति का राज्य राजस्थान में चारों ओर फ़ैला हुआ था|

मीना राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख किले :

तारागढ़ का किला बूंदीे

आमागढ़ का किला

हथरोई का किला

खोह का किला

जमवारामगढ़ का किला

मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख बावड़ियां :

भुली बावड़ी ग्राम सरजोली

मीन भगवान की बावड़ी,सरिस्का, अलवर

राणी जी की बावड़ी बूंदी

पन्ना मीणा की बावड़ी,आमेर

खोहगंग की बावड़ी,जयपुर

मीणा राजा चन्द की आभानेरी चाँद बावड़ी

मीणाओं द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर :

दांत माता का मंदिर, जमवारामगढ़- सीहरा मीणाओं की कुल देवी

पाले माता का मंदिर, पापड़दा, दौसा - बैपलावत मीणाओं की कुलदेवी

घाटा वाली माता ,घटवासन माता -महर मीनाओ कि कुलदेवी

मोरा माता घूमना ,घुनावत मीणाओ की कुलदेवी

शिव मंदिर, नई का नाथ, बांसखो, जयपुर

आशावरी माता, नाँढला(बडगोती),घाट खानीयाँ ,सरकारी स्कूल के पीछे , चूलगिरी, आगरा रोड़, जयपुर

बांकी माता का मंदिर, रायसर, जयपुर-ब्याडवाल मीणाओं की कुलदेवी

बाई का मंदिर, बड़ी चौपड़, जयपुर

ज्वालादेवी का मंदिर, जोबनेर,जयपुर

टोडा महादेव का मंदिर, टोडामीणा, जमवारामगढ़, जयपुर

सेवड माता का मंदिर

मीन भगवान का मंदिर, मलारना चौड़, सवाई माधोपुर (राजस्थान)

मीन भगवान का मंदिर, चौथ का बरवाड़ा,सवाई माधोपुर (राजस्थान)

मीन भगवान का मंदिर, खुर्रा,लालसोट, दौसा (राजस्थान)

इतिहास प्रसिद्ध पूरात्वविद स्पेन निवासी फादर हेरास ने 1940-1957 तक सिन्धु सभ्यता पर खोज व शोध कार्य किया 1957 में उनके शोध पत्र मोहन जोदड़ो के लोग व भूमि शोध पत्र संख्या- 4 में लिखा है कि मोहन जोदड़ो सभयता के समय यह प्रदेश चार भागो में विभक्त था जिनमे एक प्रदेश मीनाद था जिसे संस्कृत साहित्य में मत्स्य नाम दिया गया और साथ ही यह भी लिखा कि मीणा आर्यों और द्रविड़ो से पूर्व बसा मूल आदिवासी समुदाय था जो ऋग्वेद काल के मत्स्यो के पूर्वज है जिसका गण चिन्ह मछली (मीन) था | इस समुदाय का प्राचीनतम उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है वहा लिखा है कि ये लोग बड़े वीर पराक्रमी और शूरवीर है पर आर्य राजा सुदास के शत्रु है इसका ही उल्लेख District Gazetteer बूंदी 1964 के पृष्ट -29 पर भी किया गया है | हरमनगाइस ने अपनी पुस्तक द आर्ट एण्ड आर्चिटेक्चर ऑफ़ बीकानेर (The art and architecture of Bikaner) के पृष्ट - 98 पर मीणा समुदाय की प्राचीनता का उल्लेख करते हुए लिखा है कि मीणा आदिवासी लोग मत्स्य लोगो के वंशज है जो आर्यों की ओर से लड़े तथा राजा सुदास से पराजित हुए और महाभारत के युद्ध में मत्स्य जनपद के शासक के रूप में शामिल हुई | महाभारत युद्ध में हुई क्षति से ये बिखर गए तथा छोटे छोटे अनेक राज्य अस्तित्व में आ गए जिनमें इनका पूर्व का कर्द राज्य गढ़ मोरा महाभारत काल में, जिसका शासक ताम्र ध्वज थे, मोरी वंश प्रसिद्ध हुआ जिसका राजस्थान में अंतिम शासक चित्तोड़ के मान मोर हुए जिसे बाप्पा रावल ने मारकर गुहिलोतो का राज्य स्थापित किया जो आगे जाकर सिसोदिया कहलाया | मोरी (मोर्य) साम्राज्य के अंत और गुप्त साम्राज्य के समय अनेक छोटे छोटे राज्य हो गए जैसे मेर, मेव और मीणा कबीलाई मेवासो के रूप में अस्तित्व में आये, उत्तर से आने वाली आक्रमणकरी जातियों ने इनको काफी क्षति पहुचाई, शेष बचे गणराज्यो को समुद्रगुप्त ने कर्द राज्य बनाया उस समय मेरवाडा में मेर मेवाड़ में मेव और ढूढाड में मीणा काबिज थे, हर्ष वर्धन के समय उसके अधीन रहे | हर्ष वर्धन के अंत के बाद पुनः जोर पकड़ा | कई राज्य बने कमजोर थे लेकिन उन्होंने ताकत अर्जित करी |

वरदराज विष्णु को हीदा मीणा लाया था दक्षिण से आमेर रोड पर परसराम द्वार के पीछे की डूंगरी पर विराजमान वरदराज विष्णु की ऐतिहासिक मूर्ति को साहसी सैनिक हीदा मीणा दक्षिण के कांचीपुरम से लाया था। मूर्ति लाने पर मीणा सरदार हीदा के सम्मान में सवाई जयसिंह ने रामगंज चौपड़ से सूरजपोल बाजार के परकोटे में एक छोटी मोरी का नाम हीदा की मोरी रखा। उस मोरी को तोड़ अब चौड़ा मार्ग बना दिया लेकिन लोगों के बीच यह जगह हीदा की मोरी के नाम से मशहूर है। देवर्षि श्री कृष्णभट्ट ने ईश्वर विलास महाकाव्य में लिखा है कि कलयुग के अंतिम अश्वमेध यज्ञ के लिए जयपुर आए वेदज्ञाता रामचन्द्र द्रविड़, सोमयज्ञ प्रमुख व्यास शर्मा, मैसूर के हरिकृष्ण शर्मा, यज्ञकर व गुणकर आदि विद्वानों ने महाराजा को सलाह दी थी कि कांचीपुरम में आदिकालीन विरदराज विष्णु की मूर्ति के बिना यज्ञ नहीं हो सकता हैं। यह भी कहा गया था कि द्वापर में धर्मराज युधिष्ठर इन्हीं विरदराज की पूजा करते थे। जयसिंह ने कांचीपुरम के राजा से इस मूर्ति को मांगा लेकिन उन्होंने मना कर दिया, तब जयसिंह ने साहसी हीदा को कांचीपुरम से मूर्ति जयपुर लाने का काम सौंपा, हीदा ने कांचीपुरम में मंदिर के सेवक माधवन को विश्वास में लेकर मूर्ति लाने की योजना बना ली। कांचीपुरम में विरद विष्णु की रथयात्रा निकली तब हीदा ने सैनिकों के साथ यात्रा पर हमला बोला और विष्णु की मूर्ति जयपुर ले आया। इसके साथ आया माधवन बाद में माधवदास के नाम से मंदिर का महंत बना। अष्टधातु की बनी सवा फीट ऊंची विष्णु की मूर्ति के बाहर गण्शो मध्ययुगीन प्राचीन समय मे मीणा राजा आलन सिंह ने एक असहाय राजपूत माँ और उसके बच्चे को उसके दाबच्चे, ढोलाराय को दिल्ली भेजा, मीणा राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए। राजपूत ने इस एहसान के लिए आभार मे राजपूत सणयन्त्रकारिओ केया और दीवाली पर निहत्थे मीनकि लाशे बिछा दी ,जब वे पित्र तर्पन रस्में कर रहे थे। मीणाओ को उस समय निहत्था होना होता था। जलाशयों को जो मीणाओ के मृत शवों के साथ भर गये और इस प्रकार कछवाहा राजपूतों ने खोगओन्ग पर विजय प्राप्त की थी, सबसे कायर हरकत और राजस्थान के इतिहास में सबसे शर्मनाक।

एम्बर के कछवाहा राजपूत शासक भारमल हमेशा नह्न मीणा राज्य पर हमला करता था, लेकिन बहादुर बड़ा मीणा के खिलाफ सफल नहीं हो सका। अकबर ने राव बादा मीणा को कहा था,अपनी बेटी की शादी उससे करने के लिए लेकिन बाद में भारमल ने अपनी बेटी जोधा की शादी अकबर से कर दी । तब अकबर और भारमल की संयुक्त सेना ने बड़ा हमला किया और मीणा राज्य को नष्ट कर दिया। मीणाओ का खजाना अकबर और भारमल के बीच साझा किया गया था। भारमल ने एम्बर के पास जयगढ़ किले में खजाना रखा ।

कुछ अन्य तथ्य

महाभारत के काल का मत्स्य संघ की प्रशासनिक व्यवस्था लौकतान्त्रिक थी जो मौर्यकाल में छिन्न- भिन्न हो गयी और इनके छोटे-छोटे गण ही आटविक (मेवासा ) राज्य बन गये । चन्द्रगुप्त मोर्य के पिता इनमें से ही थे। समुद्रगुप्त की इलाहाबाद की प्रशस्ति मे आटविक (मेवासे) को विजित करने का उल्लेख मिलता है राजस्थान व गुजरात के आटविक राज्य मीणा और भीलो के ही थे इस प्रकार वर्तमान ढूंढाड़ प्रदेश के मीणा राज्य इसी प्रकार के विकसित आटविक राज्य थे ।

वर्तमान हनुमानगढ़ के सुनाम कस्बे में मीणाओं के आबाद होने का उल्लेख आया है कि सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने सुनाम व समाना के विद्रोही जाट व मीणाओं के संगठन 'मण्डल' को नष्ट करके मुखियाओ को दिल्ली ले जाकर मुसलमान बना दिया ( E.H.I, इलियट भाग- 3, पार्ट- 1 पेज 245 ) इसी पुस्तक में अबोहर में मीणाओं के होने का उल्लेख है (पेज 275 बही) इससे स्पष्ट है कि मीणा प्राचीनकाल से सरस्वती के अपत्यकाओ में गंगानगर, हनुमानगढ़ एवं अबोहर- फाजिल्का मे आबाद थे ।

रावत एक उपाधि थी जो महान वीर योद्धाओ को मिलती थी वे एक तरह से स्वतंत्र शासक होते थे यह उपाधि मीणा, भील व अन्य को भी मिली थी मेर मेरातो को भी यह उपाधि मिली थी जो सम्मान सूचक मानी जाती थी मुस्लिम आक्रमणो के समय इनमे से काफी को मुस्लिम बनाया गया अतः मेर मेरात मेहर मुसलमानों में भी है। 17 जनवरी 1917 में मेरात और रावत सरदारो की राजगढ़ (अजमेर) में महाराजा उम्मेद सिंह शाहपूरा भीलवाड़ा और श्री गोपाल सिह खरवा की सभा मेँ सभी लोगो ने मेर मेरात मेहर की जगह रावत नाम धारण किया। इसके प्रमाण के रूप में 1891 से 1921 तक के जनसंख्या आकड़े देखे जा सकते है, 31 वर्षो मे मेरो की संख्या में 72% की कमी आई है वही रावतो की संख्या में 72% की बढोतरी हुई है। गिरावट का कारण मेरो का रावत नाम धारण कर लेना है।

सिन्धुघाटी के प्राचीनतम निवासी मीणाओ का अपनी शाखा मेर, महर के निकट सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हुए कहा जा सकता है कि -- सौराष्ट्र (गुजरात ) के पश्चिमी काठियावाड़ के जेठवा राजवंश का राजचिन्ह मछली के तौर पर अनेक पूजा स्थल "भूमिलिका" पर आज भी देखा जा सकता है, इतिहासकार जेठवा लोगो को मेर( महर,रावत) समुदाय का माना जाता है जेठवा मेरों की एक राजवंशीय शाखा थी जिसके हाथ में राजसत्ता होती थी (I.A 20 1886 पेज नः 361) कर्नल टॉड ने मेरों को मीणा समुदाय का एक भाग माना है (AAR 1830 VOL- 1) आज भी पोरबन्दर काठियावाड़ के महर समाज के लोग उक्त प्राचीन राजवंश के वंशज मानते है अतः हो ना हो गुजरात का महर समाज भी मीणा समाज का ही हिस्सा है। फादर हैरास एवं सेठना ने सुमेरियन शहरों में सभ्यता का प्रकाश फैलाने वाले सैन्धव प्रदेश के मीणा लोगो को मानते है। इस प्राचीन आदिम निवासियों की सामुद्रिक दक्षता देखकर मछली ध्वजधारी लोगों को नवांगुतक द्रविड़ो ने मीणा या मीन नाम दिया मीलनू नाम से मेलुहा का समीकरण उचित जान पड़ता है कि स्टीफन ने गुजरात के कच्छ के मालिया को मीणाओ से संबंधित बताया है दूसरी ओर गुजरात के महर भी वहां से सम्बन्ध जोड़ते है । कुछ महर समाज के लोग अपने आपको हिमालय का मूल मानते है उसका सम्बन्ध भी मीणाओ से है हिमाचल में मेन(मीणा) लोगो का राज्य था । स्कन्द में शिव को मीणाओ का राजा मीनेश कहा गया है । हैरास सिन्धुघाटी लिपी को प्रोटो द्रविड़ियन माना है उनके अनुसार भारत का नाम मौहनजोदड़ो के समय सिद था इस सिद देश के चार भाग थे जिनमें एक मीनाद अर्थात मत्स्य देश था । फाद हैरास ने एक मोहर पर मीणा जाति का नाम भी खोज निकाला। उनके अनुसार मोहनजोदड़ो में राजतंत्र व्यवस्था थी । एक राजा का नाम "मीणा" भी मुहर पर फादर हैरास द्वारा पढ़ा गया ( डॉ॰ करमाकर पेज न॰ 6) अतः कहा जा सकता है कि मीणा जाति का इतिहास बहुत प्राचीन है इस विशाल समुदाय ने देश के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और इससे कई जातियों की उत्पत्ति हुई और इस समुदाय के अनेक टूकड़े हुए जो किसी न किसी नाम से आज भी मोजूद है।

आज की तारीख में 10 -11 हजार मीणा लोग फौज में है बूंदी का उमर गांव पूरे देश मे एक अकेला मीणाओं का गांव है जिसमें 7000 की जनसंख्या मे से 2500 फौजी है टोंक बूंन्दी जालौर सिरोही मे से मीणा लोग बड़ी संख्या मे फौज मे है। उमर गांव के लोगो ने प्रथम व द्वीतिय विश्व युध्द लड़कर शहीद हुए थे शिवगंज के नाथा व राजा राम मीणा को उनकी वीरता पर उस समय का परमवीर चक्र, जिसे विक्टोरिया चक्र कहते थे, मिला था जो उनके वंशजो के पास है। देश आजाद हुआ तब तीन मीना बटालियने थी पर दूर्भावनावश खत्म कर दी गई थी

कृतमाला नदी

श्रीमत्स्य अवतार:- मत्स्य अवतार की उत्पत्ति कृतमाला नदी नदी किनारे हुई थी ।

नंदिनी सिन्हा कपूर, एक इतिहासकार जिन्होंने प्रारंभिक भारत का अध्ययन किया है कि अपनी पहचान को फिर से बनाने के प्रयास में 19 वीं शताब्दी ईस्वी की शुरुआत से मीणाओ की मौखिक परंपराओं को विकसित किया गया था। वह इस प्रक्रिया के बारे में कहती है, जो 20 वीं शताब्दी के दौरान जारी रही

The Meenas try to furnish themselves a respectable present by giving themselves a glorious past". In common with the people of countries such as Finland and Scotland, the Meenas found it necessary to invent tradition through oral accounts, one of the primary uses of which is recognized by both historians and sociologists as being "social protest against injustices, exploitation and oppression, a raison d'être that helps to retrieve the image of a community."

कपूर नोट करते हैं कि मीणाओ के पास न केवल अपने स्वयं के एक रिकॉर्ड किए गए इतिहास की कमी है, बल्कि मध्ययुगीन फारसी खातों और औपनिवेशिक काल के रिकॉर्ड दोनों द्वारा एक नकारात्मक तरीके से चित्रित किया गया है। मध्यकाल से लेकर ब्रिटिश राज तक, मीणाओं के संदर्भ में उन्हें हिंसक, अपराधियों को लूटने और एक असामाजिक जातीय आदिवासी समूह के रूप में वर्णित किया गया है [20]

मीणा जाति के प्रमुख लोग

• किरोड़ी लाल मीणा

• हरीश चंद्र मीणा

• राम नारायण मीणा

• नमो नारायण मीणा

• लक्ष्मी नारायण झरवाल

• उषा देवी मीणा

• हरिराम मीणा

• गोलमा देवी मीणा

• अर्जुन लाल मीणा

• मुरारी लाल मीणा

• परसादी लाल मीणा

• कैप्टन छुट्टन लाल मीणा

• जसकौर मीणा

• निहारिका जोरवाल

• अमित बिमरोट

• अनु मीणा (Agrowawe कंपनी की संस्थापक)

• रामकेश मीणा

• रघुवीर सिंह मीणा

• गुलाबचंद गोठवाल

• धीरज जोरवाल

• गगन खोड़ा

• ललित मीणा

• जितेंद्र कुमार गोठवाल

• नाथा राम मीणा

• बद्री प्रसाद दुखिया

मीणा जनजाति पर बनी फिल्म

• माटी का लाल गुर्जर मीणा

•जरायम दादरसी

• गूजरी

इतिहास

प्राचीन भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद में दर्शाया गया है कि मीणाओं के राज्य को संस्कृत में मत्स्य साम्राज्य कहा जाता था। राजस्थान के मीणा जनजाति के लोग आज तक भगवान शिव, भगवान हनुमान और भगवान कृष्ण के साथ-साथ देवी की पूजा करते रहे हैं। मीणा आदिवासी समुदाय भील जनजाति के समुदाय सहित अन्य जनजातियों के साथ अंतरिक्ष साझा करता है। वास्तव में ये मीणा जनजाति अन्य जनजातीय समुदायों के सदस्यों के साथ बहुत अच्छे संबंध साझा करती हैं। मीणा लोग वैदिक संस्कृति के अनुयायी हैं और यह भी उल्लेख किया गया है कि मीणा समूहों में भारमान और सिथियन पूर्वज थे। आक्रमण के वर्षों के दौरान, 1868 में मीणाओ के कई नए समूहों का गठन किया गया है, जो कि अकाल के तनाव के कारण राजपुताना को उजाड़ दिया।

राजस्थान के इतिहास में मीणाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे पहले, राजपूत और मीणा प्रमुखों ने दिल्ली के तोर राजाओं के अधीन रहते हुए देश के एक बड़े हिस्से पर शासन किया। मीणा समुदाय को मुख्य रूप से चार बुनियादी क्षेत्रों में जमींदार मीणा, चौकीदार मीणा, परिहार मीणा और भील मीणा में रखा गया था। पूर्व में मिनस देश के विभिन्न संप्रदायों में बिखरे हुए थे और आसपास के क्षेत्र में बदलाव के कारण उनके चरित्र अलग-अलग हैं। करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, गंगापुर क्षेत्र के मिनस पिछले चार सौ वर्षों के लिए सबसे महत्वपूर्ण काश्तकार हैं। कई गाँवों से धनगर और लोधियों को मिनास द्वारा बाहर निकाला गया और उनके कब्जे को फिर से स्थापित करने में कामयाबी मिली।

संस्कृति

कहा जाता है कि मेवों (मेव/ मेवाती) की उत्पत्ति मीणाओं से हुई थी और इस कारण से मीणाओं की नैतिकता और संस्कृति में समानता है। राजपूतों को मीणाओं, गुर्जर समुदाय, जाट और अन्य योद्धा जनजातियों का प्रवेश माना जाता हैं। त्यौहार, संगीत, गीत और नृत्य इस बात का प्रमाण हैं कि इन मीणा जनजातियों की संस्कृति और परंपरा काफी उज्ज्वल है।

यद्दपि मीणा जनजाति इन त्योहारों को मनाती हैं, लेकिन उन्होंने स्थानीय मूल के अपने अनुष्ठानों और संस्कारों को शामिल किया है। उदाहरण के लिए, नवरात्रि का सातवां दिन मीणा जनजातियों के लिए उत्सव का समय है, जो कलाबाजी, तलवारबाजी और नाच-गाने के साथ आनन्दित होते हैं।

मीणा दृढ़ता से विवाह की संस्था में विश्वास करते हैं। यह भोपा पुजारी हैं जो कुंडली के आधार पर मंगनी में शामिल होते हैं। इस राजस्थानी आदिवासी समुदाय में इस तरह के महान उत्सव के लिए बुलाते हैं। त्यौहारों की अधिकता मीणा जनजातियों द्वारा भी मनाई जाती है।

इस तथ्य की पुष्टि भगवान विष्णु के नाम पर मीनेश जयंती को प्राप्त करने की सैकड़ों प्राचीन संस्कृति से होती है। वे अपने समुदाय में जन्म, विवाह और मृत्यु से संबंधित सभी अनुष्ठानों को करने के लिए एक ब्राह्मण पुजारी को नियुक्त करते हैं। अधिकांश मिना हिंदू धर्म का पालन करते हैं।

लोक संगीत संस्कृति:

रसिया

सुड्डा

हेला

पद दंगल

गोठा

वेशभूषा

मीणा समुदाय के लोगों के कपड़े अन्य जनजातीय लोगों से काफी अलग हैं, मुख्यतः महिलाओं के कपड़े डिजाइन में अंतर के साथ शैली में बहुत अंतर हैं। एक मीणा महिला की पोशाक में लुगड़ी, घाघरा, कब्जा और कुर्ती शामिल होती है। झलरी का लहंगा एक अलग लहंगा है जो मीणा महिलाओं द्वारा पहना जाता है। टखने की लंबाई वाला घाघरा, जो आमतौर पर पीले सफेद रंग के डिजाइन के साथ गहरे लाल या काले रंग के कपड़े से बना होता है, एक मीणा महिला की पहचान करने के लिए एक विशिष्ट चिह्न है।

मीणा महिलाएं गहने के साथ खुद को सजाना पसंद करती हैं। मीणा महिलाओं का सबसे प्रमुख आभूषण `चूड़ा` है, जो उनकी वैवाहिक स्थिति का प्रतीक है। महिलाएं `हांसली` को गले में पहनती हैं, नाक में `नाथ`, कानों में `टिमनीया`,` पैंची’,`चूड़ी`,`गजरा` और हाथों में चूड़ियाँ और ऊपरी बाजुओं में `बाजूबंद`, कमर पर कनकती, हाथ में हथफुल पहनती हैं । सभी विवाहित महिलाएँ हमेशा लाख की बनी `चूड़ा` पहनती हैं। वे अपने पैरों पर `कडी` और` पाजेब` भी पहनते हैं। अधिकांश गहने चांदी से तैयार किए जाते हैं। मीणा महिलाएं आमतौर पर सोना नहीं पहनती हैं। वैवाहिक स्थिति के बावजूद, एक मीणा महिला अपने बालों को ढीला नहीं करती है। बाल करना उनकी नियमित जीवन शैली का एक हिस्सा है। यह आमतौर पर माथे के बीच में होता है, जिसे `बोरला` के साथ बंद किया जाता है, जो विवाहित महिलाओं के मामले में नकली पत्थरों से जड़ी होती है। अविवाहित लड़कियां अपने बालों को एक ही ब्रैड में पहनती हैं, जो एक गाँठ में समाप्त होता है।

गले में सफेद तोलिया मीणा पुरुष की पहचान हैं, जिसे साफी कहते हैं।

मीणा पुरुष की पोशाक में धोती, कुर्ता या बंदगी और पगड़ी होती है, हालांकि युवा पीढ़ी ने शर्ट को पजामा या पतलून के साथ अपनाया है। सर्दियों के दौरान, मीणा पुरुष एक शॉल पहनते हैं जो उनके शरीर के ऊपरी हिस्से को कवर करता है। उनकी सामान्य हेड ड्रेस पोटिया है, जिसे सजावटी टेप के साथ चारों ओर लपेटा जाता है। गोटा वर्क वाला रेड-प्रिंटेड हेडगियर भी पहना जाता है। एक शॉल, जिसे गले में पहना जाता है, वह भी लाल और हरे रंग में होता है। दिलचस्प बात यह है कि शादी से मीणा व्यक्ति की वेशभूषा में बदलाव आता है। शादी के समय एक लंबा लाल रंग का ऊपरी वस्त्र पहना जाता है। यह बछड़ा-लंबाई वाला और सीधा है, जिसके किनारे लंबे हैं और पूरी आस्तीन के हैं। वे सामान्य रूप से धोती को निचले वस्त्र के रूप में पहनते हैं, जो कि टखनों के ठीक नीचे होता है। यह कड़ा पहना जाता है और `डॉलांगी` या` तिलंगी` धोती की तरह लिपटा होता है। मीणा पुरुष ज्यादा आभूषण नहीं पहनते हैं। सबसे आम गहने कान के छल्ले होते हैं जिन्हें `मुर्की` कहा जाता है। शादी के समय अन्य सामान में एक बड़ी तलवार और कलाई पर एक `कड़ा` शामिल होता है। पुरुष अपने बालों को छोटा और आमतौर पर, खेल दाढ़ी और छोटी मूंछें रखते हैं।

मीणा समुदाय के साथ टैटू भी लोकप्रिय हैं। मीणा महिलाएं अपने हाथों और चेहरे पर टैटू प्रदर्शित करती हैं। सबसे आम डिजाइन डॉट्स, फूल या उनके स्वयं के नाम हैं। वे अपनी आँखों में कोहल पहनते हैं और शरीर के अलंकरण के रूप में चेहरे पर काले डॉट्स। गोदना पुरुषों के साथ ही लोकप्रिय है और उनके नाम, पुष्प रूपांकनों, आकृतियों और देवताओं के साथ आमतौर पर उनके अग्रभाग हैं। मीणा जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली मुख्य भाषाओं में हिंदी भाषा, मेवाड़ी, मारवाड़ी भाषा, धुंदरी, हरौटी, मालवी भाषा, गढ़वाली भाषा, भीली भाषा, आदि शामिल हैं।

मीणा के घर को क्या कहते हैं?

मीणा जाति के घरों के समूह को 'ढाणी' या थोक कहलाते है।

राजस्थान में मीणा कौन सी जाति में आते हैं?

परिचय मीणा मुख्यतया भारत के राजस्थान राज्य में निवास करने वाला एक क्षत्रिय आदिवासी समुदाय है।

गोत्र की कुलदेवी कौन सी है?

List Of The Kuldevi (सभी वंश की कुलदेवी).
राठौड़ नागणेचिया.
गहलोत बाणेश्वरी माता.
कछवाहा जमवाय माता.
दहिया कैवाय माता.
गोहिल बाणेश्वरी माता.
चौहान आशापूर्णा माता.
बुन्देला अन्नपूर्णा माता.
भारदाज शारदा माता.

बूंदा मीणा कौन था?

क्षेत्रीय जातियों में सबसे बड़ी जाति आदिवासी मीणा जाति को ही माना जाता था और उसके मुख्य सरदार बूंदा मीणा थे, जिन्होंने बूंदी की स्थापना की थी। इतिहासकार कहते हैं कि बूंदा मीणा यहां के सबसे बड़े सरदार थे और सबसे बड़ी जाति होने की वजह से इस क्षेत्र में बूंदा मीणा सर्वाधिक बलशाली थे।