स्थाई बंदोबस्त क्यों लागू किया गया? - sthaee bandobast kyon laagoo kiya gaya?

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  • प्रश्न :

    कई महत्त्वपूर्ण मोर्चों पर असफल रहने के बावजूद स्थायी बंदोबस्त एक प्रगतिशील व्यवस्था थी। टिप्पणी करें।

    05 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    स्थायी बंदोबस्त के नकारात्मक और सकारात्मक पक्षों पर चर्चा करनी है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    स्थायी बंदोबस्त का संक्षिप्त परिचय लिखते हुए उत्तर प्रारंभ करें।

    स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था के नकारात्मक पक्ष लिखें।

    इस व्यवस्था के सकारात्मक पक्ष को बताते हुए निष्कर्ष लिखें।

    भारत में ब्रिटिश राज के सफल होने के पीछे उनके द्वारा लागू की गई भू-राजस्व नीतियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। स्थायी रूप से राजस्व की प्राप्ति और भू-स्वामियों का निष्ठावान वर्ग आदि कारकों ने ही ब्रिटिश सत्ता को सुदृढ़ किया। स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी व्यवस्था इन भू-राजस्व नीतियों में सबसे महत्त्वपूर्ण थी। यह एक दीर्घकालिक (सामान्यत: 10 वर्ष) व्यवस्था थी। इसमें लगान की दर ज़मींदारों और उनके उत्तराधिकारियों के लिये निश्चित कर दी गई, जो भविष्य में बदली नहीं जा सकती थी। ज़मीदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया और कृषक अब केवल किरायेदार मात्र रह गए।

    स्थायी बंदोबस्त का शासन तथा जनता पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रभाव पड़े। इन्हें निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:

    नकारात्मक प्रभाव:

    शासन पर:

    • भू-राजस्व स्थायी होने से कंपनी को अधिक उत्पादन की स्थिति में भी निश्चित राजस्व ही प्राप्त होता था और अतिरिक्त आय को भू-स्वामी या बिचौलिये हड़प कर जाते थे।
    • कालांतर में यह स्थिति और भी विकराल हो गई। जब समय के साथ उत्पादन और वसूली तो बढ़ी किंतु कंपनी को इस बढ़े हुए उत्पादन का कोई लाभ नहीं प्राप्त हुआ।

    जनता पर:

    • बहुत अधिक लगान एवं उसे निर्धारित समय पर न चुकाए जाने के कारण पुराने ज़मींदार भूमि से वंचित किये जाने लगे और किसान कर्ज़ में डूब गए।
    • बिचौलियों का भूमि संबंधी मामलों में प्रवेश हुआ, जिससे उपसामंतीकरण बढ़ा तथा उनके द्वारा कृषकों का शोषण बढ़ता गया।
    • अधिकांश ज़मींदार प्रवासी थे, जो दूरवर्ती शोषणकर्त्ता बन गए।

    यद्यपि स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी व्यवस्था के ब्रिटिश शासन एवं आम जनता पर नकरात्मक प्रभाव पड़े, तथापि इसके कुछ सकारात्मक पक्ष भी थे। जैसे-

    • वित्तीय दृष्टि से इसका प्रमुख लाभ यह था कि न्यून उत्पादन की दशा में भी कंपनी की आय घटती नहीं थी। इससे बचत की संभावना बढ़ी।
    • स्थायी प्रबंध हो जाने पर इस व्यवस्था में लगे हुए सरकारी कर्मचारियों की कुछ संख्या शासन संबंधी अन्य कार्यों को करने के लिये मुक्त हो गई।
    • कृषकों के लिये ऐसा माना गया कि इससे उत्पादन बढ़ेगा और अधिकाधिक भूमि जोती जाएगी।
    • ज़मींदारों को कृषि क्षेत्र में नए प्रयोग, उर्वरक का इस्तेमाल तथा फसल बदलने के तरीकों को अपनाने का मौका मिलेगा।

    निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि स्थायी बंदोबस्त के जहाँ कुछ नकारात्मक पक्ष थे तो वहीं कुछ सकारात्मक पक्ष भी थे। फिर भी सामान्यत: यह व्यवस्था कंपनी हितैषी और कृषक विरोधी थी। इसने कृषकों के शोषण को बढ़ावा दिया। इस व्यवस्था से बंगाल के कृषकों की स्थिति खराब होती गई और स्थायी बंदोबस्त कृषकों के शोषण का साधन बन गया।

    लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज ने जमींदारों के साथ पाँच वर्षीय बन्दोबस्त किया था। चूंकि यह व्यवस्था अनेक दृष्टियों से दोषपूर्ण था। इस व्यवस्था में सबसे अधिक कर देने वाले जमींदार या ठेकेदार को पाँच वर्ष के लिए भूमि दे दी जाती थी। जोतने वाले किसान को सदैव इस बात का भय बना रहता था कि आगामी वर्ष में वह भूमि उसे मिलेगी या नहीं। अतः किसान भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए अधिक श्रम और पूँजी लगाना उचित नहीं समझता था परिणामस्वरूप राज्य की आय प्रति पाँचवें वर्ष घट जाती थी।

    लार्ड कार्नवालिस के भारत आगमन के समय की स्थिति-

    जब लार्ड कार्नवालिस भारत आया तो उसने जमींदारों तथा खेतिहर मजदूर-किसानों की दशा अत्यन्त सोचनीय दशा में पायी। कम्पनी के डायरेक्टर भी मालगुजारी के लगातार घटते जाने से बहुत चिन्तित थे। वार्षिक मालगुजारी के कारण जमींदार पूरी धनराशि नहीं चुका पाते थे और इससे किसी को भी लाभ नहीं होता था। अतः डायरेक्टरों ने सिफारिश की कि स्थायी व्यवस्था के लागू होने से सरकार तथा जनता दोनों ही लाभान्वित होंगे।

    लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल के किसानों और भूमि की समस्या का गहन अध्ययन किया तो उसके समक्ष भूमि व्यवस्था सम्बन्धी दो बातें आयी-

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    8 तरह के पीवीसी वॉल पैनल २०२२

    i. भूमि के स्वामित्व की समस्या, तथा

    ii. व्यवस्था की अवधि की समस्या।

    उपर्युक्त समस्याओं को हल करने के लिए लार्ड कार्नवालिस ने इस्तमरारी या स्थायी बन्दोबस्त की व्यवस्था की। इस व्यवस्था के अनुसार जमींदारों को स्थायी रूप से अर्थात् सदैव के लिए भूमि का स्वामी मान लिया गया और उनकी भूमि का लगान भी निश्चित कर दिया गया। जिस समय तक जमींदार सरकार को निश्चित लगान देता रहेगा, तब तक वह उस भूमि का स्वामी बना रहेगा। इस व्यवस्था को लागू करने के क्या कारण थे ?

    स्थायी बन्दोबस्त लागू करने के कारण :

    1793 ई. में स्थायी बन्दोबस्त या जमींदारी व्यवस्था लागू करने के निम्नलिखित कारण थे-

    1. सरकार अपनी आय को निश्चित तथा स्थायी करना चाहती थी।

    2. सरकार लगान वसूल करने में कोई खर्च तथा असुविधा नहीं उठाना चाहती थी।

    3. साम्राज्य के प्रति शक्तिशाली वर्ग के रूप में जींदारों को अपने पक्ष में करने को लागू करना आवश्यक था।

    4. यह आशा थी कि स्थाई बंदोबस्त से कृषि की उन्नति तथा विकास में सहायता मिलेगी क्योंकि जमीदारों का भूमि के साथ स्थाई संबंध स्थापित हो जायेगा, जिससे वे कृषि सुधार के प्रयास करेंगे।

    5. जमीदार वर्ग से आशा की गई थी कि वे किसानों का आर्थिक तथा सामाजिक जीवन में प्रभावशाली नेतृृत्व करेंगे।

    6. कंपनी के पास भूमि के संबंध में पर्याप्त ज्ञान तथा योग्य कर्मचारियों का अभाव भी उसका एक कारण था।

    स्थायी बन्दोबस्त के गुण व दोष :

    इतिहासकारों और अर्थशास्त्रियों में स्थायी भूमि व्यवस्था के सम्बन्ध में विरोधी मत हैं। यहाँ दोनों मतों का उल्लेख किया जा रहा है-

    स्थायी बन्दोबस्त के गुण (Merits) –

    1. मार्शमैन के शब्दों में, “यह एक साहसी तथा बुद्धिमत्तापूर्ण कदम था। इस प्रादेशिक आज्ञा पत्र के उचित प्रभाव से, जिसके कारण पहली बार ही भूमि के सम्बन्ध में अधिकार तथा रुचि की भावना उत्पन्न हुई थी, जनसंख्या में वृद्धि हुई, खेती की सीमाओं में विस्तार हुआ तथा लोगों के स्वभावों तथा आराम में सुधार हुआ।”

    2. आर. सी. दत्तं के अनुसार, “यदि किसी जाति की सम्पन्नता बुद्धि तथा सफलता की कसौटी है, तो सन् 1793 ई. की स्थायी भूमि-व्यवस्था भारत में ब्रिटिश द्वारा किये गये कार्यों में सबसे अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण तथा सफलतम कार्य है।” वे आगे लिखते हैं, “स्थायी भूमि-व्यवस्था भारत में अंग्रेजों के गत डेढ़ शताब्दी के शासन का ऐसा कार्य है जिसके कारण यहाँ के निवासियों के आर्थिक हित की सबसे अधिक रक्षा हुई है।”

    3. इस व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि राज्य को जनता की ओर से लगान की निश्चित आय के सम्बन्ध में आश्वासन मिल गया। उसके लिए अब यह आवश्यक नहीं रहा कि वह वार्षिक बोली के परिणाम पर निर्भर रहे।

    4. यदि कोई जमींदार अपना लगान नहीं चुकाता था तो उससे लगान की प्राप्ति उस भूमि के एक भाग को बेचकर प्राप्त की जा सकती थी।

    5. जमींदार अब पहले की अपेक्षा कृषि उन्नति की ओर अधिक ध्यान देने लगे क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें सरकार को एक निश्चित धनराशि देनी है। यदि भूमि में अधिक श्रम और पूँजी लगायेंगे तो उससे जो अधिक लाभ होगा वह उनका ही होगा क्योंकि उस अंश में सरकार का भाग या लगान बढ़ने का तो प्रश्न नहीं था। लगान तो स्थायी कर दिया गया था चाहे जमींदार की आय में कितनी ही वृद्धि हो।

    6. जमींदार वर्ग जो कि अब भूमि का स्थायी स्वामी हो गया था ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक बन गया। आगे चलकर 1857 ई. के विद्रोह के समय जमींदार वर्ग पूर्णतया ब्रिटिश शासन के लिए आज्ञाकारी सिद्ध हुआ।

    7. स्थायी व्यवस्था ने कम्पनी के योग्य और कुशल कर्मचारियों को कानून-विभाग के लिए मुक्त कर दिया क्योंकि पहले उन्हें अपना बहुत-सा समय सबसे अधिक बोली लगाने वाले व्यक्ति को लगान संग्रह करने के लिए व्यय करना पड़ता था।

    8. स्थायी बन्दोबस्त के कारण सरकार भविष्य में लगान वृद्धि नहीं कर सकती थी परन्तु प्रजा के सम्पन्न होने के कारण सरकार को अन्य कर लगाने के अवसर प्राप्त हो गये।

    स्थायी बन्दोबस्त के दोष (Demerits) –

    1. स्थायी बन्दोबस्त की आलोचना करते हुए श्री होम्ज कहते हैं कि “स्थायी बन्दोबस्त एक भयानक भूल थी। यहाँ के कृषकों ने इससे कुछ भी लाभ नहीं उठाया। जमींदार अपने लगान समय पर चुकाने में असमर्थ रहे तथा उनकी जायदाद सरकार के लाभ के लिए बेच दी गयी।”

    2. श्री ताराचन्द के अनुसार, “वास्तव में स्थायी बन्दोबस्त का लाभ सरकार की अपेक्षा जमींदारों को अधिक हुआ क्योंकि जनसंख्या बढ़ने, खेती का विस्तार होने, कीमतें ऊँची होने और भूमि की कमी होती जाने के कारण जमींदार की स्थिति में सुधार हो गया।……. उसे मुगल प्रशासन के उन जटिल विनियमों से मुक्ति मिल गयी थी जिनके अनुसार उसकी सत्ता तो सीमित थी, किन्तु उसे भू-राजस्व से भी अधिक रकमें उगाहनी पड़ती थीं तथा सभी वसूलियों और भुगतानों का हिसाब प्रस्तुत करना होता था। यह अवश्य है कि अंग्रेजों द्वारा बनाये गये जमींदारों को सभी राजनीतिक और सरकारी कर्तव्यों से मुक्त रखा गया। अब वह मुगल शासन का सामन्ती कुलीन न रहकर छोटा सा पूँजीपति, एक नया भद्रजन बन गया।”

    3. फ्लाउड कमीशन ने अनुमान लगाया था कि स्थायी प्रबन्ध के चलते रहने से प्रतिवर्ष ₹2 से 8 करोड़ की क्षति होती थी। साथ ही इससे समाज में आर्थिक विषमता भी बढ़ती थी।

    4. इस व्यवस्था से सरकार और किसान के बीच सीधा सम्पर्क नहीं रहा जिससे सरकार कृषि तथा किसानों के प्रति उदासीन हो गयी। सरकार को किसानों के विषय में किसी भी प्रकार की जानकारी न होने के कारण दोनों के बीच अज्ञानता की एक बड़ी दीवार खड़ी हो गयी। सरकार को किसानों के दुःख-दर्द से कोई सहानुभूति नहीं थी।

    5. बाढ़, अकाल तथा अन्य प्रकार के संकट में भी किसानों को मालगुजारी में किसी भी प्रकार की छूट नहीं मिल पाती थी। जमींदार किसानों का आर्थिक शोषण करने के साथ-साथ उनसे बेगार भी लेते थे।

    6. स्थायी बन्दोबस्त ने किसानों के अधिकारों की पूर्णतया उपेक्षा की। उन्हें पूर्णतया जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया, जिन्हें उनको किसी भी समय बेदखल करने का अधिकार था।

    7. स्थायी बन्दोबस्त से लगान वसूल करने के तरीकों में कठोरता आ गयी। जमींदार के लिए यह आवश्यक या कि वह निर्धारित दिन को सूरज के छिपने से पहले, सरकारी राजस्व अवश्य जमा कर दे। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो जमींदार को अधिकार विहीन कर दिया जाता था और उसकी सम्पूर्ण या आंशिक जागीर जब्त करके सार्वजनिक नीलामी द्वारा बेच दी जाती थी।

    8. स्थायी बन्दोबस्त के द्वारा जो परिवर्तन हुए उनमें से एक का परिणाम था – “जमींदारी अधिकारों का उत्तरदायित्व।” अल्पकाल में ही अनेक जागीरों ने जन्म ले लिया। बंगाल और बिहार के उप-जिलों में बीस वर्षों में जागीरों की संख्या बढ़कर 1,10,456 हो गयी। इनमें से केवल 0.4 प्रतिशत जागीरें बड़ी थीं। 11 प्रतिशत मध्य आकार की थीं तथा 88 प्रतिशत छोटी थीं। बीस वर्ष के काल में पटना डिवीजन में जागीरों की संख्या दुगुनी और तिरहुत डिवीजन में तिगुनी हो गयी। मुगलकाल में परिवार के प्रधान को जमींदार चुन लिया जाता था, परन्तु अंग्रेजों ने इस प्रणाली का परित्याग कर दिया और निजी भू-सम्पत्ति की धारणा को महत्व दिया। इस प्रकार “उत्तराधिकार के भारतीय कानून भूमि पर भी लागू हो गये फलस्वरूप सम्पत्ति सह-उत्तराधिकारियों में विभाजित होने लगी। जोतों की सीमा छोटी होती गयी जिस पर खेती करना अलाभकारी था।”

    9. इस व्यवस्था ने न केवल खेतों का विभाजन किया, वरन् राजस्व संग्रह अधिकारियों की संख्या में वृद्धि कर दी।

    10. पी. ई. राबर्ट्स के अनुसार, “यदि स्थायी बन्दोबस्त अन्य दस अथवा बीस वर्ष के लिए स्थगित कर दी जाती, तो भूमि की क्षमता अच्छी प्रकार से निश्चित की जा सकती। लार्ड कार्नवालिस बहुत-सी भूलों तथा अनियमित कार्यवाहियों से बच सकता था तथा सुधार किये जा सकते थे, यदि इतने विस्तृत विषय के सम्बन्ध में योग्यतर अफसरों का एक वर्ग प्रशिक्षित किया जा सकता।”

    स्थायी बंदोबस्त क्यों लागू किया गया?

    स्थायी रूप से राजस्व की राशि तय करने पर कंपनी को नियमित राशि प्राप्त हो सकेगी। इसके अतिरिक्त बंगाल विजय के समय से ही जो परेशानियाँ आई, वे दूर हो जायेंगी क्योंकि बंगाल की ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था 1770 के दशक से दयनीय तथा संकटपूर्ण स्थिति का सामना कर रही थी।

    स्थाई बंदोबस्त की विशेषता क्या थी?

    स्थाई बंदोबस्त की विशेषताएं (sthayi bandobast ki visheshta) – (1) इस व्यवस्था में जमीदारों को भूमि का मालिक माना गया तथा उन्हें जमीन की खरीदी बिक्री का अधिकार भी दिया गया! (2) यह अनुबंध स्थाई रूप से जमीदारों के द्वारा किया गया था, अर्थात – उत्पादन में चाहे वृद्धि हो या कमी कंपनी को एक निश्चित राशि ही प्राप्त होती थी!

    स्थाई बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं?

    यह भूखंड चाहे किसी किसान के अधिकार में या महल अथवा 'राजस्व ग्राम' या पिफर किसी जमींदार के अधिकार में रहा हो। यह अधिकार चाहे स्वामित्वाधिकार रहा हो या पफर कर्षण अधिकार ही हो। इसी अधिकार के आधार पर राजस्वनिर्धारण को भू राजस्व व्यवस्था का बंदोबस्त कहा गया है।

    स्थायी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं स्थायी भूमि बंदोबस्त के क्या गुण और दोष थे?

    स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी व्यवस्था इन भू-राजस्व नीतियों में सबसे महत्त्वपूर्ण थी। यह एक दीर्घकालिक (सामान्यत: 10 वर्ष) व्यवस्था थी। इसमें लगान की दर ज़मींदारों और उनके उत्तराधिकारियों के लिये निश्चित कर दी गई, जो भविष्य में बदली नहीं जा सकती थी।