ब्राह्मी, अश्वगंधा और जटामांसी जैसी जड़ी बूटियां दिमाग के लिए टॉनिक की तरह काम करती हैं इसलिए मानसिक रोगों को नियंत्रित करने एवं इनके इलाज में इन जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। हर्बल मिश्रण जैसे कि उन्माद गजकेसरी रस, अश्वगंधारिष्ट, स्मृतिसागर रस और सारस्वतारिष्ट भी मानसिक रोगों के इलाज में लाभकारी होता है। स्वस्थ जीवनशैली, नियमित व्यायामऔर मन लगाकर काम करने से मानसिक रोगों को नियंत्रित एवं इनसे बचने में मदद मिल सकती है। Show
आयुर्वेद एक समग्र विज्ञान है और मन, शरीर, आत्मा, इंद्रियों और उनके कामकाज के बीच सामंजस्य बनाता है। तनाव के कारण शरीर के तीनों दोष वात-पित्त और कफ में असंतुलन बढ़ता है और शरीर किसी ना किसी रोग की चपेट में आ जाता है। तनाव को बढ़ानेवाले हॉर्मोन्स में पहला नाम है कार्टिसोल का। यह हॉर्मोन रोग प्रतिरोधक क्षमता को घटाकर आपका रक्तचाप बढ़ा सकता है, याददाश्त में कमी कर सकता है, अवसाद, चिंता और अन्य मानसिक स्वास्थ्य विकारों के लिए जोखिम बढ़ा सकता है। इनसे बचने के लिए आप इन आयुर्वेदिक विधियों को नियमित रूप से अपना सकते हैं... आयुर्वेदिक तरीकों से दूर करें मानसिक तनाव सर्दियों में हर दिन अदरक खाने से शरीर को मिलते हैं ये लाभ मालिश का लाभ उठाएं -आयुर्वेद में, अभ्यंग (तेल मालिश) को नियमित रूप से करने का सुझाव दिया गया है। क्योंकि यह शारीरिक और भावनात्मक रूप से व्यक्ति को बलवान बनाने का कार्य करता है। बाला, अश्वगंधा और चंदन जैसे विभिन्न हर्बल तेलों के साथ नियमित रूप से मालिश करने से शरीर के अंदर हैपी हॉर्मोन्स जैसे, सेरोटोनिन और डोपामाइन का उत्पादन बढ़ता है। इससे अच्छी नीदं में सहायता मिलती है। योग देता है मानसिक सुकून -योग एक आत्म-सुखदायक तकनीक है, जो तनाव की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है और तंत्रिका तंत्र को आराम करने में मदद करता है। योग अनुशासन तीन पहलुओं पर केंद्रित है- मन, शरीर और आत्मा। वैज्ञानिक रूप से योग (गामा-एमिनो ब्यूटिरिक एसिड), सेरोटोनिन, डोपामाइन और ट्रिप्टोफैन जैसे खुशी बढ़ानेवाले न्यूरोट्रांसमीटर्स के स्तर को बढ़ाता है और कोर्टिसोल स्तर (तनाव हार्मोन) को कम करता है। आयुर्वेद शरीर और मन को नियंत्रित करने की शक्ति को बढ़ाने के लिए योग के नियमित अभ्यास की सलाह देता है। ज्यादातर लोग नहीं जानते अमरूद के पत्तों के उपयोग का यह तरीका योग से दूर रहता है अवसाद सात्विक आहार -आयुर्वेद सात्विक आहार का समर्थन करता है। सात्त्विक आहार एक शुद्ध शाकाहारी भोजन है, जिसमें मौसमी ताजे फल, पर्याप्त ताज़ी सब्जियां, साबुत अनाज, दालें, अंकुरित अनाज, सूखे मेवे, बीज, शहद, ताज़ी जड़ी-बूटियाँ, दूध और डेयरी उत्पाद शामिल हैं। जो पशु रेनेट से मुक्त हैं। ये खाद्य पदार्थ सत्व या हमारी चेतना के स्तर को बढ़ाते हैं। टेस्ट बड्स को शांत करेगा मूली का जूस, बुखार नहीं आएगा और बीपी नियंत्रित रहेगा -सात्विक भोजन प्रेम, कृतज्ञता और जागरूकता के साथ पकाया और खाया जाता है। जैसा कि आयुर्वेदिक क्लासिक्स में कहा गया है कि दैनिक आधार पर इस तरह के आहार को शामिल करने वाला व्यक्ति शांत, सौहार्दपूर्ण और ऊर्जा से भरा होता है। उसमें उत्साह, स्वास्थ्य, आशा, आकांक्षाएं, रचनात्मकता और संतुलित व्यक्तित्व जैसे गुण पाए जाते हैं। हर दिन करें ध्यान -ध्यान यानी मेडिटेशन मेंटल हेल्थ और हैपीनेस के लिए बहुत जरूरी है। मन शांत होता है तो व्यक्ति खुशी और संतुष्टि को अंदर से अनुभव करता है। खुश रहना और शांत चित्त होना शरीर के अंदर हॉर्मोन्स के स्तर को सही बनाए रखने में सहायक है। इसलिए मानसिक सेहत और खुशियों भरे जीवन के लिए हर दिन कम से कम 30 मिनट तक ध्यान और श्वांस से संबंधी एक्सर्साइज करें। जैसे, कपालभाति और अनुलोम-विलोम। ये सुझाव मिलेनियम हर्बल केयर के सीईओ और डायरेक्टर चिंतन गांधी द्वारा दिए गए हैं। इन दिनों अनुष्का शर्मा की सेहत का ऐसे ध्यान रख रहे हैं विराट कोहली अपच के कारण होनेवाले पेट दर्द का रामबाण नुस्खा है यह ड्रिंक मनोविकार (Mental disorder) किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की वह स्थिति है जिसे किसी स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करने पर 'सामान्य' नहीं कहा जाता। स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में मनोरोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का व्यवहार असामान्य अथवा दुरनुकूली (मैल एडेप्टिव) निर्धारित किया जाता है और जिसमें महत्वपूर्ण व्यथा अथवा असमर्थता अन्तर्ग्रस्त होती है। इन्हें मनोरोग, मानसिक रोग, मानसिक बीमारी अथवा मानसिक विकार भी कहते हैं। मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से पैदा होते हैं तथा इनके उपचार के लिए मनोरोग चिकित्सा की जरूरत होती है।[1] मनोविज्ञान में हमारे लिए असामान्य और अनुचित व्यवहारों को मनोविकार कहा जाता है। ये धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं। मनोविकारों के बहुत से कारक हैं, जिनमें आनुवांशिकता, कमजोर व्यक्तित्व, सहनशीलता का अभाव, बाल्यावस्था के अनुभव, तनावपूर्ण परिस्थितियां और इनका सामना करने की असामर्थ्य सम्मिलित हैं। वे स्थितियां, जिन्हें हल कर पाना एवं उनका सामना करना किसी व्यक्ति को मुश्किल लगता है, उन्हें 'तनाव के कारक' कहते हैं। तनाव किसी व्यक्ति पर ऐसी आवश्यकताओं व मांगों को थोप देता है जिसे पूरा करना वह अति दूभर और मुश्किल समझता है। इन मांगों को पूरा करने में लगातार असफलता मिलने पर व्यक्ति में मानसिक तनाव पैदा होता है। तनाव : अशांत मानसिक स्वास्थ्य के स्रोत के रूप में[संपादित करें]आज के समय में तनाव लोगों के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव बन चुका है, जो कि अधिसंख्य दैहिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है। तनाव की पारंपरिक परिभाषा दैहिक प्रतिक्रिया पर केंद्रित है। हैंस शैले ( Hans Selye) ने 'तनाव' (स्ट्रेस) शब्द को खोजा और इसकी परिभाषा शरीर की किसी भी आवश्यकता के आधार पर अनिश्चित प्रतिक्रिया के रूप में की। हैंस शैले की पारिभाषा का आधार दैहिक है और यह हारमोन्स की क्रियाओं को अधिक महत्व देती है, जो ऐड्रिनल और अन्य ग्रन्थियों द्वारा स्रवित होते हैं। शैले ने दो प्रकार के तनावों की संकल्पना की-
तनाव पर नवीन उपागम व्यक्ति को उपलब्ध समायोजी संसाधनों के सम्बन्ध में स्थिति के मूल्यांकन एवं व्याख्या की भूमिका पर केंद्रित है। मूल्यांकन और समायोजन की अन्योन्याश्रित प्रक्रियायें व्यक्ति के वातावरण एवं उसके अनुकूलन के बीच सम्बन्ध निर्धारण करती है। अनुकूलन वह प्रक्रिया है जिस के द्वारा व्यक्ति दैहिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक हित के इष्टतम स्तर को बनाए रखने के लिए अपने आसपास की स्थितियाँ एवं वातावरण को व्यवस्थित करता है। तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय आमतौर पर व्यक्ति समस्या केंद्रित या मनोभाव केंद्रित कूटनीतियों को अपनाता है। समस्या केंद्रित नीति द्वारा व्यक्ति अपने बौद्विक साधानों के प्रयोग से तनावपूर्ण स्थितियों का समाधान ढूंढता है और प्रायः एक प्रभावशाली समाधान की ओर पहुंचता है। मनोभाव केंद्रित नीति द्वारा तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय व्यक्ति भावनात्मक व्यवहार को प्रदर्शित करता है जैसे चिल्लाना। यद्यपि, यदि कोई व्यक्ति तनाव का सामना करने में असमर्थ होता है तब वह प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त कूटनीति की ओर रूझान कर लेता है, यदि ये बारबार अपनाए जाएं तो विभिन्न मनोविकार उत्पन्न हो सकते हैं। प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त व्यवहार परिस्थिति का सामना करने में समर्थ नहीं बनाते, ये केवल अपनी कार्यवाहियों को न्यायसंगत दिखाने का जरिया मात्र है। शारीरिक समस्याएं जैसे ज्वर, खांसी, जुकाम इत्यदि ये विभिन्न प्रकार के मनोविकार होते हैं। इन वर्गों के मनोविकारों की सूची न्यूनतम व्यग्रता से लेकर गंभीर मनोविकारों जैसे मनोभाजन या खंडित मानसिकता तक है। अमेरिकी मनोविकारी संघ (American Psychiatric Association) द्वारा मनोविकारों पर नैदानिक और सांख्यिकीय नियम पुस्तक ( Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders (DSM)) को प्रकाशित किया गया है जिस में विविध प्रकार के मानसिक विकारों का उल्लेख किया गया है। मनोविज्ञान की जो शाखा विकारों का समाधान खोजती है उसे असामान्य मनोविज्ञान कहा जाता है। ये जान कर शायद आपको आश्चर्य हो कि बच्चे भी मनोविकारों का शिकार हो सकते हैं। डीएसएम, का चौथा संस्करण बाल्यावस्था के विभिन्न प्रकार के विकारों का समाधान ढूंढता है, आमतौर पर यह पहली बार शैशवकाल, बाल्यावस्था या किशोरावस्था में पहचान में आते हैं। इन में से कुछ सावधान-अभाव अतिसक्रिय विकार पाए जाते हैं जिसमें बच्चा सावधान या एकाग्र नहीं रहता या वह अत्यधिक फुर्तीला व्यवहार करता है। और स्वलीन विकार जिसमें बच्चा अंतर्मुखी हो जाता है, बिल्कुल नहीं मुस्कुराता और देर से भाषा सीखता है। यदि कोई व्यक्ति बिना किसी विशेष कारण के डरा हुआ, भयभीत या चिंता महसूस करता है तो कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति व्यग्रता विकार (Anxiety disorder) से ग्रस्त है। व्यग्रता विकार के विभिन्न प्रकार होते हैं जिसमें चिंता की भावना विभिन्न रूपों में दिखाई देती है। इनमें से कुछ विकार किसी चीज से अत्यन्त और तर्करहित डर के कारण होते हैं और जुनूनी-बाध्यकारी विकार जहां कोई व्यक्ति बारबार एक ही बात सोचता रहता है और अपनी क्रियाओं को दोहराता है। वे व्यक्ति जो मनोदशा विकार (मूड डिसॉर्डर) के अनुभवों से ग्रसित होते हैं उनके मनोभाव दीर्घकाल तक प्रतिबंधित हो जाते हैं, वे व्यक्ति किसी एक मनोभाव पर स्थिर हो जाते हैं, या इन भावों की श्रेणियों में अदल-बदल करते रहते हैं। उदाहरण स्वरूप चाहे कोई व्यक्ति कुछ दिनों तक उदास रहे या किसी एक दिन उदास रहे और दूसरे ही दिन खुश रहे, उस के व्यवहार का परिस्थिति से कुछ संबंध न हो। इस तरह व्यक्ति के व्यवहारिक लक्षणों पर आश्रित मनोदशा विकार दो प्रकार के होते हैं - अवसाद ऐसी मानसिक अवस्था है जो कि उदासी, रूचि का अभाव और प्रतिदिन की क्रियाओं में प्रसन्नता का अभाव, अशांत निद्रा व नींद घट जाना, कम भूख लगना, वजन कम हो ना, या ज्यादा भूख लगना व वजन बढ़ना, आलस, दोषी महसूस करना, अयोग्यता, असहायता, निराशा, एकाग्रता स्थापित करने में परे शानी और अपने व दूसरों के प्रति नकरात्मक विचारधारा के लक्षणों को दर्शाती है। यदि किसी व्यक्ति को इस तरह के भाव न्यूनतम दो सप्ताह तक रहें तो उसे अवसादग्रस्त कहा जा सकता है और उस के उपचार के लिए उसे शीघ्र नैदानिक चिकित्सा प्रदान करवाना आवश्यक है। मनोदैहिक और दैहिकरूप विकार[संपादित करें]आज के समय में कुछ बीमारियाँ बहुत ही साधारण बन चुकी हैं जैसे निम्न रक्तचाप, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि। वैसे तो ये सब शारीरिक बीमारियाँ हैं परंतु ये मनावैज्ञानिक कारणों जैसे तनाव व चिंता से उत्पन्न होती हैं। अतः मनोदैहिक विकार वे मनोवैज्ञानिक समस्याएं हैं जो शारीरिक लक्षण दर्शातीं हैं, लेकिन इसके कारण मनोवैज्ञानिक होते है। वहीं मनोदैहिक की अवधारणा में मन का अर्थ मानस है और दैहिक का अर्थ शरीर है। इसके विपरीत दैहिकरूप विकार, वे विकार हैं जिनके लक्षण शारीरिक है परंतु इनके जैविक कारण सामने नहीं आते। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति पेटदर्द की शिकायत कर रहा है परंतु तब भी जब उसके उस खास अंग अर्थात पेट में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती। किसी-किसी अभिघातज घटना के बाद व्यक्ति अपना पिछला अस्तित्व, गत घटनाएं और आस-पास के लोगों को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। नैदानिक मनोविज्ञान में इस तरह की समस्याओं को विघटनशील विकार (Dissociative disorders) कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजच्युत व समाज से पृथक हो जाता है। विघटनशील स्मृतिलोप ( dissociative amnesia), विघटनशील मनोविकार का एक वर्ग है, जिसमें व्यक्ति आमतौर पर किसी तनावपूर्ण घटना के बाद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचना को याद करने में असमर्थ हो जाता है। विघटन की स्थिति में व्यक्ति अपने नये अस्तित्व को महसूस करता है। दूसरा वर्ग विघटनशील पहचान विकार (dissociative identity disorder) है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त तो खो ही देता है वहीं नये अस्तित्व की कल्पना करने लगता है। अन्य वर्ग व्यक्तित्वलोप विकार है, जिसमें व्यक्ति अचानक बदलाव या भिन्न प्रकार से विचित्र महसूस करता है। व्यक्ति इस प्रकार महसूस करता है जैसे उसने अपने शरीर को त्याग दिया हो या फिर उस की गतिविधियां अचानक से यांत्रिक या स्वप्न के जैसी हो जाती है। हालांकि विघटन मनोविकार की सब से गम्भीर स्थिति तब उत्पन्न हो ती है जब कोई एकाधिक व्यक्तित्व मनोविकार व विघटन अस्तित्व मनोविकार से ग्रस्त हो। इस स्थिति में विविध व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय पर प्रकट होते हैं। मनोविदलन और मनस्तापी (Psychotic) विकार[संपादित करें]आपने सड़क पर कभी किसी व्यक्ति को गंदे कपड़ों में, कूड़े के आसपास पड़े अस्वच्छ भोजन को खाते या फिर अजीब तरीके से बातचीत या व्यवहार करते हुए देखा होगा। उनमें व्यक्ति, स्थान व समय के विषय में कमजोर अभिविन्यास होता है। हम अक्सर उन्हें पागल, बेसुधा आदि कह देते हैं, परंतु नैदानिक भाषा में इन्हें मनोविदलित कहते हैं। ये मनोविकार की एक गंभीर परिस्थिति होती है, जो अशांत विचारों, मनोभावों व व्यवहार से होते हैं। मनोविदलन विकारों में असंगत मानसिकता, दोषपूर्ण अभिज्ञा, संचालक कार्यकलापों में बाधा, नीरस व अनुपयुक्त भाव होते हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति वास्तविकता से निर्लिप्त रहते हैं और अक्सर काल्पनिकता और भ्रांति की दुनिया में खोये रहते है। विभ्रांति का अर्थ किसी ऐसी चीज को देखना है जो वास्तव में भौतिक रूप से वहाँ नहीं होती, कुछ ऐसी आवाजें जो वहां पर वास्तव में नहीं हैं। भ्रमासक्ति वास्तविकता के प्रति अंधाविश्वास है इस तरह के विश्वास दूसरों से सम्बंध विच्छेद करते हैं। मनोविदलन के विभिन्न प्रकार हैं जैसे कैटाटोनिक मनोविदलन। व्यक्तित्व विकार (पर्सनालिटी डिसॉर्डर) की जड़ें किसी व्यक्ति के शैशव काल से जुड़ीं होती हैं, जहां कुछ बच्चे लोचहीन व अशुद्व विचारधारा विकसित कर लेते हैं। ये विभिन्न व्यक्तित्व मनोविकार व्यक्ति में हानिरहित अलगाव से ले कर भावनाहीन क्रमिक हत्यारे के रूप में सामने आते हैं। व्यक्तित्व मनोविकारों की श्रेणियों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहले, समूह की विशेषता अजीब और सनकी व्यवहार है। चिंता और शक दूसरे समूह की विशेषता है और तीसरे समूह की विशेषता है नाटकीय, भावपूर्ण और अनियमित व्यवहार। पहले समूह में व्यामोहाभ, अन्तराबन्धा, पागल (सिज़ोटाइपल) व्यक्तित्व विकार सम्मिलित हैं। दूसरे समूह में आश्रित, परिवर्जित, जुनूनी व्यक्तित्व मनोविकार बताए गए हैं। असामाजिक, सीमावर्ती, अभिनय (हिस्ट्राथमिक), आत्ममोही व्यक्तित्व विकार तीसरे समूह के अन्तर्गत आते हैं। मनश्चिकित्सा की प्रक्रिया[संपादित करें]किसी भी प्रकार के मनोविकारों से निपटने के लिए कुछ विशेष मनश्चिकित्सा प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति की सेवा की जाती हैं। वह व्यक्ति जो मनश्चिकित्सा के क्रार्यक्रम का प्रारूप तय करता है वह प्रशिक्षित व्यक्ति होता है, जिसे नैदानिक मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक कहते हैं। जो व्यक्ति यह उपचार करवाता है उसे सेवार्थी/रोगी कहते हैं। मनश्चिकित्सा को अक्सर वार्ता उपचार कहा जाता है क्यों कि ये अंतरवैयक्तिक संपर्क द्वारा प्रदान की जाती है। इस की औषधियां केवल मनोचिकित्सक द्वारा ही दी जा सकती हैं, जो कि औषधीय चिकित्सक होना मनश्चिकित्सा की विभिन्न तकनीकें होती हैं, जो असामान्य व्यवहारों के कारण एवं विकास का वर्णन करती हैं। इनमें मनोविश्लेषण, व्यवहार चिकित्सा, संज्ञानात्मक-व्यवहार चिकित्सा, सेवार्थी केंद्रित चिकित्सा इत्यादि सम्मिलित हैं। मनश्चिकित्सा एक रूपांकित योजना है, जो कि मनोविकारों की प्रकृति और गम्भीरता को धयान में रखकर तैयार की जाती है।
तनाव से निपटने की प्रक्रिया[संपादित करें]व्यक्ति तनाव से निपटने के लिए आमतौर पर कार्य-अभिविन्यस्त और प्रतिरक्षा-अभिविन्यस्त या मनोभाव केंद्रित प्रक्रियाओं का पालन करता है। कार्य अभिविन्यस्त प्रक्रिया का उद्देश्य किसी विशेष तनाव कारक द्वारा अधिरोपित की गई समायोजी मांग का यथार्थवादिता से समाधान ढूंढना है। ये चेतन और तर्कसंगत स्तर पर तनावपूर्ण स्थितियों के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन पर आधारित होती हैं। तनाव से निपटने के इन तरीकों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे प्रारम्भ, प्रत्याहार और समझौता।
मनोभाव केंद्रित या आत्मरक्षा-अभिविन्यस्त तरीकों से तनाव का सामना करना लाभकारी सिद्ध नहीं होता, क्योंकि व्यक्ति इसके द्वारा किसी समाधान पर नहीं पहुंचता, बस स्वयं को आश्वासन देने के तरीके ढूंढता है। आत्मरक्षक पद्धतियों का उदाहरण बुद्विसंगत व्याख्या करना है जैसे यह तर्क देना कि सभी विद्यार्थी इसीलिए असफल रहे, क्योंकि परीक्षा-पत्र काफी कठिन था। इसका अन्य उदाहरण है विस्थापन करना जैसे सख्त अध्यापक पर आ रहे क्रोध को अपने छोटे भाई को डांट या मार कर उतारना। यहां आपने क्रोध का विस्थापन किया है। यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि तनाव से प्रभावशाली तरीके से निपटने के लिए व्यक्ति को स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना चाहिए। सकरात्मक सोच, मनोभावों और क्रियाओं द्वारा सिर्फ तनाव से ही बेहतर तरीके से नहीं निपटा जा सकता है, वरन् इसके द्वारा हम जीवन में अत्यधिक प्रसन्न व हल्का महसूस करते हैं, एवं अधिक योग्य बनते हैं। मानसिक विकार बहुत तरह के होते हैं। ये विकार व्यक्तित्व, मनोदशा (मूड), खाने की आदतों, चिन्ता आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। इस प्रकार मानसिक रोगों की सूची बहुत बड़ी है। कुछ मुख्य मनोरोगों की सूची नीचे दी गयी है- मनोरोगों के कारण कई प्रकार के होते हैं। इनमें से मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं : आनुवंशिक : मनोविक्षिप्ति या साइकोसिस (जैसे स्कीजोफ्रीनिया, उन्माद, अवसाद इत्यादि), व्यक्तित्व रोग, मदिरापान, मंदबुद्धि, मिर्गी इत्यादि रोग उन लोगों में अधिक पाये जाते हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीड़ित हों तो संतान को इनका खतरा लगभग दोगुना हो जाता है। शारीरिक गठनस्थूल (मोटे) व्यक्तियों में भावात्मक रोग (उन्माद, अवसाद या उदासी इत्यादि), हिस्टीरिया, हृदय रोग इत्यादि अधिक होते हैं जबकि लंबे एवं दुबले गठन वाले व्यक्तियों में विखंडित मनस्कता (स्कीजोफ्रीनिया), तनाव, व्यक्तित्व रोग अधिक पाये जाते हैं। व्यक्तित्वअपने में खोये हुए, चुप रहने वाले, कम मित्र रखने वाले किताबी-कीड़े जैसे गुण वाले, स्कीजायड व्यक्तित्व वाले लोगों में स्कीजोफ्रीनिया अधिक होता है, जबकि अनुशासित तथा सफाई पसंद, समयनिष्ठ, मितव्ययी जैसे गुणों वाले खपती व्यक्तित्व के लोगों में खपत रोग (बाध्य विक्षिप्त) अधिक पाया जाता है। किशोरावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, गर्भ-धारण जैसे शारीरिक परिवर्तन कई मनोरोगों का आधार बन सकते हैं। शारीरिक खान-पान संबंधी कारण[संपादित करें]कुछ दवाओं, रासायनिक तत्वों, धातुओं, मदिरा तथा अन्य मादक पदार्थों इत्यादि का सेवन मनोरोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकता हैं। आपसी संबंधों में तनाव, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु, सम्मान को ठेस, कार्य को खो बैठना, आर्थिक हानि, विवाह, तलाक, शिशु जन्म, कार्य-निवृत्ति, परीक्षा या प्यार में असफलता इत्यादि भी मनोरोगों को उत्पन्न करने या बढ़ाने में योगदान देते हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक कारण[संपादित करें]सामाजिक एवं मनोरंजक गतिविधियों से दुराव, अकेलापन, राजनीतिक, प्राकृतिक या सामाजिक दुर्घटनाएं (जैसे कि लूटमार, आतंक, भूकंप, अकाल, बाढ़, सामाजिक बोध एवं अवरोध, महंगाई, बेरोजगारी इत्यादि) मनोरोग उत्पन्न कर सकते हैं।
मानसिक रोग या पागलपन एक ऐसा शब्द है जिससे इसके कारणों एवं उपचार के विषय में न जाने कितनी भ्रांतियाँ एवं आशंकाएँ जुड़ी हैं। कुछ लोग इसे एक असाध्य, आनुवांशिक एवं छूत की बीमारी मानते हैं, तो कुछ जादू-टोना, भूत-प्रेत व डायन का प्रकोप। कुछ लोग इसे बीमारी न मानकर जिम्मेदारियों से बचने का नाटक मात्र भी मानते हैं। अज्ञानी लोग उपचार के लिए स्थानीय या नजदीक ओझा, पंडित, मुल्ला आदि के पास जाकर अनावश्यक भभूत, जड़ी-बूटी का सेवन करते हैं तथा अमानवीय ढ़ंग से सताये जाते हैं ताकि 'पिशाचात्मा' का प्रकोप दूर किया जा सके। यह सब गलत है। सही धारणा यह है कि यह बीमारी है और वैज्ञानिक ढंग से चिकित्सा विज्ञान द्वारा इसका इलाज संभव है। ये भी सही नहीं है कि-
आयुर्वेद के अनुसार मानस रोग[संपादित करें]रजस्तमश्च् मानसौ दोषौ-तयोवकारा काम, क्रोध, लोभ, माहेष्यार्मानमद शोक चित्तोस्तो द्वेगभय हषार्दयः ।रज और तम ये दो मानस रोग हैं । इनकी विकृति से होने वाले विकार मानस रोग कहलाते हैं । मानस रोग-काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्यार्, मान, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, हषर्, विषाद, अभ्यसूया, दैन्य, मात्सयर् और दम्भ ये मानस रोग हैं । १. काम- इन्द्रियों के विषय में अधिक आसक्ति रखना 'काम' कहलाता है । २. क्रोध- दूसरे के अहित की प्रवृत्ति जिसके द्वारा मन और शरीर भी पीड़ित हो उसे क्रोध कहते हैं । ३. लोभ- दूसरे के धन, स्त्री आदि के ग्रहण की अभिलाषा को लोभ कहते हैं । ४. ईर्ष्या- दूसरे की सम्पत्ति-समृद्धि को सहन न कर सकने को ईर्ष्या कहते हैं । ५. अभ्यसूया- छिद्रान्वेषण के स्वभाव के कारण दूसरे के गुणों को भी दोष बताना अभ्यसूया या असूया कहते हैं । ६. मात्सर्य- दूसरे के गुणों को प्रकट न करना अथवा कू्ररता दिखाना 'मात्सर्य' कहलाता है । ७. मोह- अज्ञान या मिथ्या ज्ञान (विपरीत ज्ञान) को मोह कहते हैं । ८. मान- अपने गुणों को अधिक मानना और दूसरे के गुणों का हीन दृष्टि से देखना 'मान' कहलाता है । ९. मद- मान की बढ़ी हुई अवस्था 'मद' कहलाती है । १०. दम्भ- जो गुण, कमर् और स्वभाव अपने में विद्यमान न हों, उन्हें उजागरकर दूसरों को ठगना 'दम्भ' कहलाता है । ११. शोक- पुत्र आदि इष्ट वस्तुओं के वियोग होने से चित्त में जो उद्वेग होता है, उसे शोक कहते हैं । १२. चिन्ता- किसी वस्तु का अत्यधिक ध्यान करना 'चिन्ता' कहलाता है । १३. उद्वेग- समय पर उचित उपाय न सूझने से जो घबराहट होती है उसे 'उद्वेग' कहते हैं । १४. भय- अन्य आपत्ति जनक वस्तुओं से डरना 'भय' कहलाता है । १५. हर्ष- प्रसन्नता या बिना किसी कारण के अन्य व्यक्ति की हानि किए बिना अथवा सत्कर्म करके मन में प्रसन्नता का अनुभव करना हषर् कहलाता है । १६. विषाद- कार्य में सफलता न मिलने के भय से कार्य के प्रति साद या अवसाद-अप्रवृत्ति की भावना 'विषाद' कहलाता है । १७. दैन्य- मन का दब जाना- अथार्त् साहस और धर्य खो बैठना दैन्य कहलाता है । ये सब मानस रोग 'इच्छा' और 'द्वेष' के भेद से दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं । किसी वस्तु (अथर्) के प्रति अत्यधिक अभिलाषा का नाम 'इच्छा' या 'राग' है । यह नाना वस्तुओं और न्यूनाधिकता के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है । हर्ष, शोक, दैन्य, काम, लोभ आदि इच्छा के ही दो भेद हैं । अनिच्छित वस्तु के प्रति अप्रीति या अरुचि को द्वेष कहते हैं । वह नाना वस्तुओं पर आश्रत और नाना प्रकार का होता है । क्रोध, भय, विषाद, ईर्ष्या, असूया, मात्सर्य आदि द्वेष के ही भेद हैं । मानसिक रोगी की विशेषता क्या है?मनोभ्रंश रोग
लक्षणों में भूलना, सीमित सामाजिक मेलमिलाप और सोचने की कमज़ोर क्षमता शामिल हैं, जिससे रोजमर्रा के कामकाज प्रभावित होते हैं. याददाश्त जाना, समय के साथ दिमाग का कम काम करना, ठीक से बोलने और समझने में परेशानी, बातें बनाना, भटकाव, शाम के समय भ्रम की स्थिति, सामान्य चीज़ें न पहचान पाना, या सुध-बुध खोना.
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में क्या होता है?मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण
वह व्यक्ति संतोषी और प्रसन्नचित्त रहता है और भय, क्रोध, प्रेम द्वेष, निराशा, अपराध, दुश्चिन्ता आदि आवेगों से व्यथित नहीं होता। वह अपनी योग्यता और क्षमता को न तो अत्यधिक उत्कृष्ट और न हीन समझता है। वह ममत्वशील होता है और दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखता है।
एक मानसिक रूप से रोगी व्यक्ति में कौन सा गुण पाया जाता है?मानसिक रोग क्या है
जब एक व्यक्ति ठीक से सोच नहीं पाता, उसका अपनी भावनाओं और व्यवहार पर काबू नहीं रहता, तो ऐसी हालत को मानसिक रोग कहते हैं। मानसिक रोगी आसानी से दूसरों को समझ नहीं पाता और उसे रोज़मर्रा के काम ठीक से करने में मुश्किल होती है।
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक-. आनुवंशिकता. गर्भावस्था संबंधित पहलू. मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन. मनोवैज्ञानिक कारण. पारिवारिक विवाद. मानसिक आघात. सामाजिक कारण. |