मरते हुए करण ने श्रीकृष्ण से क्या पूछा? - marate hue karan ne shreekrshn se kya poochha?

मरते हुए करण ने श्रीकृष्ण से क्या पूछा? - marate hue karan ne shreekrshn se kya poochha?

Sri Krishna's answer to Karna, कर्ण को श्रीकृष्ण ने दिया था अद्भुत जवाब 

मुख्य बातें

  • महाभारत युद्ध से पूर्व हुआ था कृष्ण और कर्ण के बीच महत्वपूर्ण वार्तालाप

  • कर्ण ने कृष्ण से पूछा था अपने साथ हुए भेदभाव से जुड़ा प्रश्न

  • श्रीकृष्ण ने तर्कों के साथ दिया था कर्ण को अद्भुत जवाब

महाभारत में जब यह तय हो गया कि युद्ध ही अंतिम विकल्प है, तब भगवान श्रीकृष्ण ने कण को बुलावा भेजा और उससे बात की। भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण को इस बातचीत की शुरुआत में ही पहली बार बताया था कि वह कुंती पुत्र हैं और पांडवों का बड़ा भाई है। इस लिहाज से उसे दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों के साथ युद्ध करना चाहिए, लेकिन इन सारी बातों को सुनने के बाद भी सर्वप्रथम कर्ण ने दुर्योधन का साथ देने की ही बात की और साथ ही भगवान के समक्ष कई सवाल किए और सभी सवालों के पीछे एक ही सवाल था, कि उसका दोष क्या था?

भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण को जो जवाब दिया वह आज के समय में भी उतना ही प्रारसंगिग है और शायद हमेशा रहेगा। तो आइए जानें कर्ण और श्रीकृष्ण के इस अद्भुत संवाद और जवाब से जुड़ा प्रकरण।

कर्ण के सवाल भगवान श्रीकृष्ण से

कर्ण : जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्याग दिया, क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ?

कर्ण :  द्रोणाचार्य ने मुझे युद्ध सीखाने से मना कर दिया, क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था। क्या ये मेरा दोष था?

कर्ण :  परशुराम जी ने मुझे युद्ध से जुड़ी सारी ही कलाएं और ज्ञान से परिचित तो कराया लेकिन श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे इस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मैं यह सब भूल जाउंगा, क्योंकि मैं क्षत्रिय नहीं था। क्या ये मेरा दोष था?

 कर्ण :  संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया, जबकि मेरा कोई दोष नहीं था।

 कर्ण :  द्रौपदी स्वयंवर में मेरा अपमान किया गया। क्या ये मेरा दोष था?

 कर्ण :  माता कुंती ने मुझे आखिर में मेरे जन्म रहस्य बताया, वह भी तब जब उनके बेटों पर संकट आया। क्या ये मेरा दोष था।

कर्ण :  जो कुछ भी मुझे प्राप्त हुआ है, दुर्योधन के कारण मिला। क्या ये मेरा दोष था?

कर्ण :  तो, अगर मैं दुर्योधन की तरफ से लड़ूँ? तो मैं गलत कहाँ हूँ ?

श्रीकृष्ण ने तब कर्ण को दिया ऐसा जवाब और बताया, दोष कहां है

कृष्ण : कर्ण, मेरा जन्म मेरे ही मामा के कारागार में हुआ।

कृष्ण : जन्म से पहले ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा में घात लगाए थी।

कृष्ण : जिस रात मेरा जन्म हुआ था उसी रात को मुझे मेरे मात-पिता से दूर कर दिया गया था।

कृष्ण : कर्ण तुम्हारा बचपन खड्ग, रथ, घोड़े, धनुष्य और बाण की ध्वनि सुनते हुए बीता। मुझे गौशाला, गोबर, ग्वालों के बीच जीना पड़ा और कई प्राणघातक हमले झेलने पड़े।

कृष्ण : मेरे पास कोई सेना नहीं थी, मुझे कोई शिक्षा नहीं मिली थी। इतना ही नहीं मुझे तानों और समस्याओं के बीच जीना पड़ा। कर्ण जब तुम्हारे गुरु तुम्हारे शौर्य और शक्ति पर गर्व कर रहे थे तब उस उम्र तक मुझे शिक्षा तक नहीं मिली थी। 16 साल का होने पर मुझे ऋषि सांदीपन के गुरुकुल पहुंचा गया था।

कृष्ण : कर्ण तुमने अपनी पसंद की कन्या से विवाह किया था और मुझे जिस कन्या से प्रेम था, वह नहीं मिली और मुझे उनसे विवाह करना पड़ा, जिनकी चाहत मैं था अथवा जिन कन्याओं को मैने असुरों से बचाया था।
कृष्ण : मेरे पूरे समाज को यमुना के किनारे से जरासंध के भय से हटना पड़ा और दूर समुद्र के किनारे बसना पड़ा। रण से पलायन के कारण मुझे भीरु तक कहा गया।

कृष्ण : यदि दुर्योधन युद्ध जीतता है, तो तुम्हें बहुत श्रेय मिलेगा, लेकिन सोचो धर्मराज अगर जीतता है तो मुझे क्या मिलेगा?

कृष्ण : मुझे केवल युद्ध और युद्ध से पैदा हुई समस्याओं के लिए दोष ठहराया जाएगा।

कृष्ण : एक बात का स्मरण रहे कर्ण, हर किसी को जिंदगी चुनौतियांं देती है, जिंदगी किसी के भी साथ न्याय नहीं करती। दुर्योधन ने अन्याय का सामना किया है तो युधिष्ठिर ने भी अन्याय भुगता है। लेकिन सत्य धर्म क्या है, यह तुम जानते हो। कर्ण,  भले ही आपको जीवन में वह सब कुछ न मिले जिसके आप हकदार हों या आपके अत्यंत अपमान की जिंदगी जी हो, लेकिन आपको इस बात की छूट नहीं कि इन सब चीजों के न मिलने से आप अधर्म की राह पर चल पड़ें। महत्व इस बात का है कि आप उस समय उस संकट का सामना कैसे करते हैं।

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धर्म डेस्क. सूर्य पुत्र कर्ण महाभारत का एक बहुत ही खास पात्र था। कर्ण को न केवल उनके पराक्रम बल्कि उनके दानवीर होने के लिए आज तक जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनसे बड़ा कोई और दानी नहीं हुआ। भगवान कृष्ण खुद भी कर्ण को सबसे बड़ा दानी मानते थे। लेकिन ये बात अर्जुन को पसंद नहीं थी। कर्ण की मृत्यु के समय भगवान कृष्ण उनकी परीक्षा लेने गए और कर्ण के व्यवहार से खुश होकर इसे वरदान भी दिया।

मृत्यु के समय कर्ण से भिक्षा मांगने पहुंचे थे कृष्ण भगवान

- युद्ध भूमि में जब कर्ण घायल होकर अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहा थे उस समय अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा कि आपका दानवीर कर्ण असहाय होकर मौत का इंतजार कर रहा है।

 - इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि कर्ण को उसकी वीरता और दानवीर होने के लिए हमेशा याद किया जाएगा।

- इस बात को सुनकर अर्जुन बोले कि वो सबसे बड़ा दानवीर कैसे हो सकता है।

- इस बात को साबित करने के लिए कृष्ण भगवान ब्राह्मण के भेष में पहुंचे और कर्ण को प्रणाम किया।

- इस पर कर्ण ने उनसे वहां आने का कारण पुछा तो ब्राह्मण ने बताया कि मैं आप से कुछ दान मांगने आया था।

- लेकिन आप कि हालत देखकर अब कुछ नहीं मांगना चाहता क्योंकि आप इस हालत में क्या दे सकेंगे।

- यह सुनकर कर्ण ने पास पड़े पत्थर से अपने सोने के दांत तोड़कर ब्राह्मण को अर्पण कर दिए।

- इस दानवीरता से प्रसन्ना होकर भगवान कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गए और कर्ण को वरदान मांगने को कहा।

कर्ण ने मांगे थे 3 वरदान

- कर्ण ने वरदान रूप में अपने साथ हुए अन्याय को याद करते हुए भगवान कृष्ण के अगले जन्म में उसके वर्ग के लोगो के कल्याण करने को कहा।

- दूसरे वरदान रूप में भगवान कृष्ण का जन्म अपने राज्य लेने को माँगा और तीसरे वरदान के रूप में अपना अंतिम संस्कार ऐसा कोई करे जो पाप मुक्त हो।

 - इसीलिए भगवान ने उनका अंतिम संस्कार अपने हाथों पर किया था।

मरते हुए कर्ण ने श्रीकृष्ण से क्या पूछा?

महाभारत में कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा? (Mahabharat Mein Karn Ne Shri Krishna Se Poocha) महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा: मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?

कृष्ण ने कर्ण से क्या कहा?

भगवान कृष्ण ने जवाब दिया, “कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था। मृत्यु मेरे जन्म से पहले ही मेरे लिए इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ था, मैं अपने जन्म देने वाले माता-पिता से अलग हो गया था। बचपन से, आप तलवारों, रथों, घोड़े, धनुष, और तीर के शोर को सुनकर बड़े हुए ।

अर्जुन ने कृष्ण से क्या पूछा?

उन्होंने अर्जुन से कहा-जो भी कर्म करो, यह सोचकर करो कि वह परमात्मा को समर्पित होता है. मृत्यु का भय हर व्यक्ति को होता है. भगवान कृष्ण कहते हैं- संसार के निर्माण के बाद से ही जन्म और मृत्यु का चक्र चलता आ रहा है और यह प्रकृति का नियम है.

कृष्ण ने कर्ण के बारे में क्या सोचा?

एक दानवीर राजा होने के कारण भगवान कृष्ण ने कर्ण के अंतिम समय में उसकी परीक्षा ली और कर्ण से दान माँगा तब कर्ण ने दान में अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान कृष्ण को अर्पण कर दिए। इस दानवीरता से प्रसन्ना होकर भगवान कृष्ण ने कर्ण को वरदान मांगने को कहा।