मारवाड़ी लोगों की शादी कैसे होती है? - maaravaadee logon kee shaadee kaise hotee hai?

सगाई होने के बाद पंडितजी से पूछकर शादी की शुभ तारीख निकलवाई जाती है I शादी के कुछ दिन पहले एक अच्छा सा दिन देखकर लड़के / लड़की की माँ अपने पीहर ” भात न्यौतने ” की रस्म करने जाती है I

ध्यान दे – शादी की हर पूजा में दुल्हे के साथ बिन्दायाकजी बनकर घर का कोई छोटा बच्चा बैठता है I

भात न्योतना

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जब लड़का / लड़की की माँ ” भात न्योतने ” के लिए अपने पीहर जाती है तब साथ में बत्तीसी ( सवा मीटर लाल कपड़ा, दो जोड़ी कुर्ता टोपी, हल्दी की पांच गांठे, 5 सुपारियाँ, सूखा धनिया, सुखा नारियल, रोली, चावल, मीठा, रूपए, 250 ग्राम मूंग, सवा किलो चावल, पांच गुड़ ) ले जाती है I इन सारे सामान को एक थाली में रखकर लाल कपड़े से ढक दिया जाता है I माँ अपने सभी भाई – भाभियों को क्रम से टीका करती हैं I बड़े भाई को ये बत्तीसी की थाली दे दी जाती है I हाथ में सबको रूपए का लिफाफा, मीठा और नारियल दे दिया जाता है I भाभियाँ ननद को पैर छूकर रूपए दे देती हैं I उस दिन पीहर में मूंग – भात बनता है I बहन – भाई साथ में बैठकर मूंग – भात जीमते हैं I इसके बाद शादी के 3 या 5 दिन पहले ” सावा पूजा ” जाता है I

सावा पूजना

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सावा पूजने के लिए इन सामानों की जरुरत होती है – नाल, रोली, चावल, गुड़, लाडू, फूल, दूब, सुपारी, सफेद कपड़ा, कलश, रूपए, शादी का कार्ड I फिर लड़का / लड़की को बैठाकर पंडितजी पूजा कराते हैं I उसमे गणेश पूजा, नौ ग्रह पूजा, मातृका पूजा, कलश पूजा होती है I इसके बाद बहन – बेटी छात करवा के आरता करती हैं I आरते में सब रूपए डालते हैं I छात घर का कोई नौकर करता है I नौकर लड़के / लड़की के सिर के पास रूमाल / तौलिया फैलाता है I लड़का / लड़की की माँ छात में रूपए डालती है I वो रूपए नौकर रख लेता है I 

ब्याह हाथ लेना

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ये रस्म दोनों लड़के और लड़की के घरों में होता है I लड़के के ब्याह हाथ में सात सुहागन औरतें बैठ के मोली की रील की नाल बनाती हैं I लड़की के ब्याह हाथ में पंडितजी ब्याह हाथ की पूजा करवाते हैं I इसमें सुहागन बहन – बेटी लड़का / लड़की का आरता करती हैं I फिर उन्हें आरता का नेग दिया जाता है I उसके बाद बहन – बेटी लड़का / लड़की का वारा – फेरी करके छात में रूपए डाल देती है जो कि नौकरों को दिया जाता है I

हलदात

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” हलदात की रस्म ” ब्याह हाथ के दिन ब्याह हाथ के बाद किया जाता है I लड़के के हलदात के बाद ही लड़की का हलदात होता है I सबसे पहले पूजा की थाली बनायी जाती है I थाली में रोली, चावल, मोली, पान का पत्ता, सुपारी, दूब, फूल, गुड़, छोटी लुटिया रखते हैं I ये पूजा की थाली पुरे विवाह में काम आती है I बहन – बेटी आरता भी इसी थाली से करती हैं I लड़के को सबसे पहले टीका लगाते हैं चावल फिर हाथ में मोली बांधते हैं I बाकी सबको भी टीका लगाया जाता है और हाथ में मोली बाँधी जाती है I लड़का / लड़की 1 ऊखल, 1 मूसल, 2 सूप, 2 कटोरा, 2 चम्मच की पूजा करते हैं I सारी चीजों में मोली बाँधी जाती है I पूजा करने के लिए पीसी हुई मूंग दाल, खड़ा जौ और नमक भी चाहिए I सबसे पहले एक छोटी चौकी पर प्लास्टिक बिछाकर, उसपे 7 छोटे – छोटे कोयले के टुकड़े, ताला, चाभी रख देते हैं I फिर उसपर लड़का / लड़की से बड़ी साइज की 7 मंगोड़ी तुड़वाई जाती है I फिर उन सातों मंगोड़ी पर लड़का / लड़की रोली से टिक्की देते हैं I फिर सात सुहागन औरतें उन 7 मंगोड़ी के आस पास मंगोड़ी तोडती हैं I थोड़ी सी पीसी हूई दाल बचा लेते हैं I सारी पूजा हो जाने के बाद बचाई हुई पीसी दाल की पकोड़ी बनाकर सबको खिला देते हैं I मंगोड़ी की रस्म करने के बाद एक कटोरे में जौ और एक कटोरे में नमक रखा जाता है I फिर 1 चम्मच से लड़का / लड़की और 1 चम्मच से माँ नमक को सात बार एक साथ छूते हैं ( ये वही चम्मच है जिसमें मोली बाँध कर पूजा की गयी थी ) I छूते समय आवाज नहीं होनी चाहिए I उसके बाद 7 सुहागन औरतें भी एक बार में  2-2 औरतें कर के एक साथ सात बार नमक को छूते हैं I लड़का / लड़की और उनकी माँ एक दूसरे का हाथ पकड़कर ऊंगली से जौ को थोडा थोड़ा मूसल में डालते हैं I इसी तरह वह सातों सुहागन औरतें  भी मूसल में जौ डालेंगी I फिर लड़का / लड़की और उनकी माँ, दोनों लोग मूसल में जौ को छूएंगी I फिर सातो सुहागने भी वैसे ही छूएंगी I फिर ब्राह्मणी देवी – देवता का गीत  गाती है I उस कूटे हुए जौ को सूप से आपस में फटकती हैं I पहले लड़का / लड़की और उनकी माँ आपस में फटकती हैं, फिर सातो सुहागन औरतें आपस में फटकती हैं I फिर इसी जौ को पीसकर बान के दिन लड़का और लड़की को उबटन लगाया जाता है I उसके बाद आरता करके लड़का / लड़की को खड़ा कर दिया जाता है और सबको मीठा दे दिया जाता है I फिर सभी बड़ो को और समाज की जितनी औरतें हलदात में आई हैं उन्हें लड़का / लड़की की माँ पैर छूकर रूपए देती है I छोटों को भी रूपए दिया जाता है I

बान

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बान वाले दिन सुबह सबसे पहले माता की खिचड़ी चिरची जाती है। उसके बाद बान शुरू होता है।

बान शादी के मंडप के नीचे किया जाता है I इसमें घर के बड़े लोग लड़का / लड़की को दोनों हाथों से सरसों का तेल चढ़ाते हैं I इसमें एक थाली में दूब और चार बड़े दीये रखे जाते हैं I एक दीये में दही, दूसरे दीये में मेहँदी, तीसरे दीये में तेल और चौथे दीये में आटा – हल्दी मिलाकर रखा जाता है I मंडप के नीचे लड़का / लड़की को बैठाकर उनके सिर के ऊपर चन्दुआ ताना जाता है I इसमें किसी साड़ी / ओढ़ना को लड़कियाँ चारो कोने से पकड़कर उसे फैला देती हैं I फिर उसके नीचे लड़का / लड़की को बैठाकर, अपने दोनों हाथों से घर के सभी लोग तेल चढ़ाते हैंते ( अपने दोनों हाथों में दूब लेकर चारों दीयों में डालकर उसे लड़का / लड़की को पहले नीचे से ऊपर लगाया जाता है ) I  नीचे से ऊपर लगाने का मतलब है – पहले दोनों पैर पे – फिर दोनों घुटनों पे – फिर दोनों कंधो पे – फिर सिर पे लगाया जाता है I इस तरह चार बार किया जाता है I इसके बाद जिसने जिसने तेल चढ़ाया है, वह सभी लोग उतारते – पहले सिर पे – फिर कंधो पे – फिर घुटनों पे – फिर पैर पे I इसके बाद घर की लड़कियाँ लड़का / लड़की के पीठ पे आटा – हल्दी का उपटन लगाती हैं I फिर पिता एक कटोरे में दही और 1 रूपए का सिक्का डालते हैं और माँ लड़का / लड़की के सिर पे झोल ( कटोरे को उनके सिर पे उलट देती है और मसल देती है ) डाल देती है I फिर लड़का / लड़की को नहला दिया जाता है I नहाने के बाद लड़का / लड़की को उसी पाटे पर खड़ा किया जाता है, जिस पर बैठ कर बान हुआ था I फिर उन चार दीये को जिसमे दही, मेहँदी, तेल और आटा – हल्दी रखा गया था, उन्हें एक के ऊपर एक रखकर 2 के जोड़े बना लेते हैं I उसके ऊपर चाचा / मामा खड़े होकर लड़का / लड़की को उतारते हैं और उन्हें नेग ( रूपए ) देते हैं I फिर लड़का / लड़की को देव स्थान ( जहाँ पर राती जुगा के लिए थापा लगाया गया है ) ले जाया जाता है I वहाँ पर उन्हें बैठाकर कांगन डोरा, फूल की माला, लोहे का छल्ला पहनाया जाता है I उसके बाद जिन लड़कियों ने बान के समय उपटन लगाया था, उन्हें मीठा दिया जाता है I फिर थोड़े से घी में चीनी मिलाकर लड़का / लड़की को खिलाया जाता है I उसके बाद ” बनोरी ” होती है I

बनोरी

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इसमें किसी के घर ( ताई / चाची / पड़ोसी ) जाकर के मूंग चावल की रसोई जीमते ( खाते ) हैं I वहाँ पर नूआ ( उँगलियों के ऊपर मेहँदी लगाना ) करके, मेहँदी लगाते हैं I फिर हाथ को धोकर सिर पर चन्दुआ रखकर घर आ जाते हैं I घर आते समय बनोरी के गीत भी गाय जाते हैं I जब लड़का / लड़की बनोरी करके वापस घर आते हैं तब आँगन में चौक पूर कर ( पहले आटे से एक चौकोर बनाओ, फिर अंदर क्रॉस बनाओ और चारो कोने में कर्व बना दो ) I उसके ऊपर एक चौकी रखी जाती है I लड़का / लड़की उसके ऊपर खड़े होते हैं I फिर बहन – बेटी छात ( छात करने की विधि ऊपर सावा पूजने में बताई गयी है ) करवा कर आरता करती है I आरता में सब घरवाले रूपए डालते हैं I फिर लड़का / लड़की की माँ बहन – बेटियों के पैर छूकर उन्हें रूपए देती हैं I इसके बाद  ” राती जुगा ” होता है I

राती जुगा

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राती जुगा के लिए रात में दीवार पर थापा लगाया जाता है ( दिवाल पर देवी मांडी जाती है ) I माता के आगे दीया जलाकर राती जुगा करते हैं I गीत गाते है I दीया रात भर जलता है I इस दिन माता की खिचड़ी बनती है I राती जुगा में ही लड़का / लड़की को मेहँदी लगाई जाती है I मिसरानी ( जो मेहँदी लगाती है ) को बेल ( मिठाई और रूपए ) दिया जाता है I घर की सभी ताई, चाची, बाकी रिश्तेदार मिसरानी को बेल देती हैं I अगले दिन देवी – देवता के नाम की जल की लुटिया का जल बाहर चढ़ा देते हैं I इस तरह  ” राती जुगा ” पूरा हो जाता है I मिसरानी को राती जुगा के नाम का पैसा दिया जाता है I इसके बाद अगले दिन सबसे पहले ” चाक पूजने ” की रस्म की जाती है I

चाक पूजना

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इसमें घर की औरतें कुम्हार के यहाँ चाक पूजने के लिए जाती हैं I चाक को रोली – चावल से चिरचती हैं I फिर उसपर ब्लाउज पीस और रूपए चढ़ाती हैं I घर आकर ” भात का नेग ” किया जाता है I 

भात का नेग 

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इसमें लड़का / लड़की की माँ के पीहर से सभी भाई लोग भात का नेग लेकर आते हैं I पीहर से सब लोग आते हैं I जब वो आते हैं तब सबसे पहले दरवाजे पर पोली ( साड़ी और ब्लाउज ) टांग देते हैं I उसके बाद सबसे पहले दो चोक ( पहले आटे से एक चौकोर बनाओ, फिर अंदर क्रॉस बनाओ और चारो कोने में कर्व बना दो ) पुराई जाती है I एक चोक के ऊपर पाटा रखो और दूसरे चोक के ऊपर चौकी रखो I पाटे के ऊपर बच्चे की माँ खड़ी होती है और चौकी के ऊपर माँ का भाई खड़ा होता है I पीहर के बाकी लोग भाई के बगल में खड़े हो जाते हैं I बहन भाई को टीका लगाती है I भाई बहन को चुनड़ी उढ़ाता है I फिर बहन अपने भाई का चुनड़ी के पल्ले से 2 बार सीना नापती है और अपने माथे लगाती जाती है I बहन भाई आपस में गले मिलते हैं I फिर माँ बाकी पीहर वालों को टीका लगा देती है I उसके बाद छात किया जाता है I ये रस्म कोई नौकर करता है I इसमें नौकर एक तौलिया या फिर एक रूमाल भाई के सिर के पास फैलाता है I माँ अपने सभी पीहर वालों का आरता (आरती) करके छात में रूपए डाल देती है I वह रूपए नौकर ही रख लेता है I आरता 4 बार किया जाता है I आरती की थाली में पीहर वाले रूपए डालते हैं I उसके बाद अपने सभी पीहर वालों को माँ पल्ला देती है I पल्ले में 1 मीठा, रूपए और एक सुखा नारियल आदमियों को देती हैं I 1 मीठा, रूपए और बेला ( आधा सुखा नारियल में मेवा भरकर ) सभी औरतों को देती है I फिर ” करी का नेग ” किया जाता है I इसमें 1 चांदी के गिलास में थोड़ी सी चीनी और थोड़ा सा पानी डालकर, लाल कपड़े से ढक कर, मोली से बाँध दिया जाता है I फिर लड़का / लड़की की भुआ ” करी का नेग ” करती है I भुआ करी का गिलास लेकर भाभी के पीहर से आए सभी भाई लोगों के मूह को लगाती है I फिर भाई लोग भुआ को करी का नेग देते हैं I फिर वो गिलास भतई लोग ( भाभी के भाई लोग ) को दे दिया जाता है I वारा फेरी होती है I फिर भतईयों को घर के अंदर बैठाकर ” पग धोई ” की रस्म करते हैं I ये रस्म घर का कोई नौकर करता है I फिर भतई लोग नौकर को ” पग धोई ” का नेग देते हैं I पगा लागनी हो जाती है I और आदमियों की मिलनी लगती है I इसमें पीहर से आए सभी भाई लोग अपनी बहन के ससुराल वालों को मिलनी देते हैं I इसके बाद ” कुंवारा मांडा ” होता है I

कुंवारा मांडा 

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जिस जगह शादी के फेरे होंगे, उस जगह मंडप लगाकर ” कुंवारा मांडा ” की पूजा की जाती है I इसमें पंडितजी गणेश पूजा, मातृका पूजा और कलश पूजा करवाते हैं  I 4 बड़े दीये लेकर उनमें छेद किया जाता है I फिर उनमें से 2 दीया को लेकर उन्हें डमरू की तरह एक के ऊपर एक रखा जाता है ( एक दीया का मूह नीचे की तरफ और फिर दूसरे दीये को उसके ऊपर ऐसे रखो ताकी उसका मूह ऊपर की तरफ हो ) I इसे ” सरई ” कहते हैं I फिर बाकी दोनों दीयों को भी ऐसे ही रखा जाता है I फिर उसपर नाल से कपड़ा ( अगर लड़के की शादी है तो ” सफ़ेद कपड़ा “, लड़की की शादी है तो ” लाल कपड़ा ” ) बाँधा जाता है I कपड़े के बीच में पैसा और सुपारी रखकर गाँठ लगाई जाती है I कपड़े के चारो कोनों पर नाल बाँधा जाता है I बाद में ” सरई ” और कपड़े को मंडप में बाँध दिया जाता है I इसी मंडप के नीचे 5 पंडितजी को जिमाया ( खिलाया ) जाता है I इसके बाद अगर लड़की की शादी है तब उसी जगह ” घरवा ” और ” बात ” का सामान भी सजाकर लगाया जाता है I फिर अगर सगाई शादी के दिन ही हो रही है तो सगाई के बाद लड़की का घरवा होता है I अगर लड़के की शादी है तो शादी के दिन सगाई होने के बाद लड़के का तिलक होता है I   

घरवा और दात

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घरवा का सामान लड़की के मामा देते हैं I

घरवा का सामान – 2 साड़ी, गहने

दात का सामान – 1 साड़ी, 1 ओढ़ना, 16 ब्लाउज पीस ( अपने हिसाब से सजाकर रखो ), 7 चाँदी के सिक्के, 2 स्टील की टंकी ( एक टंकी में पापड़ और दूसरी टंकी में मंगोड़ी भरके ), सग्गा – सग्गी का शो पीस I इन सभी सामान को सजाकर रख देते हैं I लड़की की मामी अपनी भांजी को पायल, बिछिया, नथ और जेवर पहना देती है I कान में सोने का और हाथ में चांदी का कांवला गूजरी पहना देती है I फिर मामी अपनी भांजी को गनगोर पुजा देती है I हाथ में जल की घंटी ( लुटिया ) लेकर मंडप की 4 फेरी साथ में दिलवा देती है I मंडप के नीचे मिसरानी बैठकर गीत गाती है I इसके बाद मामी घरवा की पगा लागनी सबको ( भांजी के घर में सारी बड़ी औरतों को ) दे देती है I घरवा तक मामी और भांजी का व्रत रहता है I घरवा के बाद दोनों मामी और भांजी साथ में खाना खा लेते हैं I इसके बाद लड़की दुल्हन की तरह तैयार होने जाती है I उसके बाद ” ढूकाव ” होता है I

लड़के का तिलक

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इसमें लड़कीवाले लड़के का तिलक लेकर आते हैं और लड़के का तिलक करते हैं I पंडितजी बैठकर लड़के से गणेश पूजा करवाते हैं और तिलक की थाली की भी पूजा करते हैं I लड़कीवाले भी साथ में बैठकर पूजा करते हैं I तिलक की थाली में – हरा पुदीना सजाकर, लाडू, फल, मीठा, 1 तौलिया, 1 चाँदी का नारियल, तिलक के लिए रूपए / सोना / गिन्नी रखा जाता है I पूजा करके लड़कीवाले चाँदी के नारियल से, उस पर चाँदी का सिक्का / रूपए / गिन्नी रखकर लड़के का तिलक कर देते हैं I इसके बाद लड़केवालों के तरफ की बहन – बेटियाँ कचोला ( 1 चाँदी के कटोरे में मेवा और रूपए डालकर, उसे सजाकर और ढककर ) लेकर आती हैं I फिर उसे लड़कीवालों के आगे रख देती हैं I लड़कीवाले उन्हें ” कचोला ” का नेग देते हैं I फिर लड़के की बहन छात करवा के लड़के का आरता करती हैं I फिर लड़का खड़ा होकर अपने पल्ले का सामान अपनी माँ को दे देता है I उसके बाद लड़कीवाले लड़केवालों को मिलाई देते हैं I तिलक के बाद लड़केवाले अपनी बहू के लिए ” चिकनी कोतली ” का सामान दे देते हैं I चिकनी कोतली के सामान में – 1 सूटकेस में साड़ियाँ, श्रृंगार का सामान, गहने, चूड़ा, 1 मेवा की थैली और लड़की के भाई – बहन के लिए 2 जोड़ा ( कपड़े ) रखे जाते हैं I तिलक के बाद ” कोरथ ” होता है I

कोरथ

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तिलक के बाद लड़का अपनी शादी की शेरवानी पहनकर तैयार हो जाता है I इसमें लड़कीवाले अपने परिवार और रिश्तेदारों को साथ लेकर लड़केवालों के घर कोरथ ( 1 थाली में मूंग, 1 थाली में चीनी और उसपर नीम की डाली रखकर  ) लेकर जाते हैं I फिर वहाँ पंडितजी कोरथ की पूजा करवाते हैं I फिर आदमी लोगों की रूपए की मिलाई होती है I फिर लड़कीवाले लड़केवालों को बारात लाने का निमंत्रण देकर चले आते हैं I उसके बाद लड़केवालों के यहाँ ” निकासी ” होती है I

निकासी

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इसमें दुल्हे के जीजाजी / फूफाजी दुल्हे को तैयार करते हैं I वे दुल्हे को पगड़ी पहनाते हैं, उसमें किलंगी लगाते हैं और सेवरा बांधते हैं I तनी लगाते हैं I कमरबंध बांधते हैं I लाल कपड़े में नारियल लपेटकर कमरबंध बाँधा जाता है I ध्यान रहे कि नारियल दांय तरफ होना चाहिए I जीजाजी / फूफाजी को दुल्हे के पिता ” पेंचा बंधाई ” का  नेग देते हैं I नौकर दुल्हे के सिर के पीछे छत्र लेकर खड़ा होता है I पंडितजी गणेश पूजा, मातृका पूजा और कलश पूजा करवाते हैं I फिर भाभी देवर को काजल लगाती है I भाभी को ” काजल घलाई ” का नेग मिलता है I उसके बाद दुल्हे की सुहागन बहन छात करवा (छात का रूपए नौकर को दिया जाता है) कर दुल्हे का आरता करती हैं I बहन को ” आरता ” का नेग दिया जाता है I घर की कोई छोटी लड़की / बहनें दुल्हे की ” नून राई “ करती हैं जिसका उन्हें नेग मिलता है I दुल्हे की माँ ” दूध पिलाई ” का नेग करती है और 7 बार मूंग चावल खिलाती है I घर का कोई बुजुर्ग / बड़ा दुल्हे की माँ को ” दूध पिलाई “ का नेग देता है I  फिर लड़का घोड़ी पे बैठ जाता है I साथ में बिन्दायक भी बैठता है I घोड़ी पे बैठते समय घर के सभी बड़े लोग दुल्हे को हाथ में रूपए देते हैं I घोड़ी को चने की दाल खिलाई जाती है I बहन – बेटियाँ घोड़ी के पूँछ के बाल गूथती हैं और उसमे नाल की जोड़ी बाँध देती हैं I फिर बहन – बेटियों को ” बाल गुथाई ” का नेग मिलता है I घर के जवाईं घोड़े की लगाम पकड़ते हैं और फिर जवाइयों को ” लगाम पकड़ाई ” का नेग दिया जाता है I घोड़ी वाले को 1 ब्लाउज पीस और रूपए दिया जाता है I घोड़ी पर बैठने के बाद दुल्हे को छत्र भी लगाया जाता है I इसके बाद गाजे – बाजे के साथ मंदिरों में दर्शन करते हुए बारात बिदा हो जाती है और लड़कीवालों के दरवाजे पहुँचती है I बारात के साथ ” डाले का सामान ” भी जाता है जो कि ” फेरे ” में लगता है I दुल्हे के यहाँ बारात बिदा होने के बाद पीछे से सभी औरतें घर में ” टूटीया ” करती हैं I इसमें औरतें अपने ढंग से बारात का स्वांग रचती हैं, हंसी मजाक करती हैं I मिसरानी बैठकर दुल्हे की माँ, ताई, चाची को चूनरी पहनाती है I सब लोग मिसरानी को पैर छूकर रूपए देती हैं I

डाला का सामान – सुहाग पूड़ा, छड़ – छड़ीला, पाठा, केसर, तनी, लाखड़ी, चूड़ा, चायरी बटवा, सेवरा (कच्चा / पक्का ), सवा गज लम्पा ( ब्यावली चूनरी में लगा गोटा जो सिर के पास होता है ), कुकड़ीया, चांदी की घुघरी, झाबी ( ब्यावली चूनरी में लगे हुए लट्टू ), जुआ की चाँदी की अंगूठी, झालरे की पातड़ी, चूनरी, 2 छोटी डिब्बी, लकड़ी की कंघी, 1 लाल कंघा, 2 खिलौना, 1 छोटी बोतल चमेली का तेल, मांगटिक्का, ब्याऊ नथ, गठ्जोड़े का कपड़ा, हिंगलू मांग भरने वाला, छोटी पिन,1 धोती आदमी के लिए और 1 साड़ी औरत के लिए ( ये धोती और साड़ी दाई – नौकर के लिए होती है ), 2 जोड़ी कुर्ता – टोपी, 2 जगह सुहागी, 4 जगह गोद I गोद भरने के लिए 4 थैली बनाई जाती है I हर एक थैली में 1 गरी गोला, रूपए और  मेवा डाला जाता है ) I     

ढूकाव

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जब लड़का बारात लेकर लड़की के घर पहुँचता है तब वो घोड़ी पे बैठे बैठे साथ में लायी नीम की डाली से तोरण पे सात बार मारता है I फिर नीम की डाली को ऊपर फेंक दिया जाता है I और तोरण को मुख्य द्वार पर लगा दिया जाता है I फिर चौक पूर कर उसके ऊपर एक चौकी रखी जाती है और उसके ऊपर लड़के को खड़ा किया जाता है I फिर लड़की की माँ लड़के को अपने पल्ले से 4 बार ( 2 बार बांय तरफ से और 2 बार दांय तरफ से ) नाप लेती है और उसके कोट पर लगे ” तनी “(गोटा / माल का होता है ) को निकाल लेती है I फिर माँ लड़के का छात करवा के आरता करती है I उसके बाद दुल्हन दुल्हे के सामने आती है और उसके पेंचे ( पगड़ी ) पर लाडू / सुहाली ( तैयार होने के बाद लड़की लाडू / सुहाली सूई – धागा से पोती है ताकी टूटे ना ) रखकर चली जाती है I इसके बाद ” जयमाल ” होता है जिसमे लड़की और लड़का एक दूसरे को माला पहनाते हैं I फिर लड़कीवाले सारे बारातियों का स्वागत करते हैं और अपने हिसाब से उनके खाने – पीने की व्यवस्था करते हैं I फिर लड़का और लड़की को भी मीठा खिलाया जाता है I लड़की के पीहर से आए मिठाई में से लड़के के पिता और मामा पितरों के नाम का ” पत्तल ” ( मिठाई का डब्बा ) निकालते हैं I उसके बाद ” सजन गोट ” होता है I

सजन गोट

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इसमें लड़के के तरफ के खास लोग बैठते हैं I लड़का और लड़की भी बैठते हैं I लड़कीवाले उन्हें अच्छे से जिमाते ( खाना खिलाते ) हैं I जीमते समय ही लड़की के पिता लड़के के पिता को साख जलेबी ( जलेबी और रूपए / गिन्नी ) देते हैं I सजन गोट होने के बाद दूल्हा – दुल्हन की थाली में दुल्हन के ससुर रूपए रखते हैं I बाद में वो रूपए नौकरों को ” थाली उठायी “ के नेग के रूप में दे दिया जाता है I इसके बाद ” फेरा ” होता है I

फेरा

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फेरा के मंडप के नीचे ” दात ” का सामान लगाते हैं I उसको लड़की का नंदोई आकर उठाता है I लड़केवाले लड़की के लिए फेरा में ” वरी की तील “ भी देते हैं I उसमे गहने और कपड़े होते हैं I दुल्हन के नंदोई गहने को एक थाली में रखकर दुल्हन के पिता और ससुर को दिखाते हैं I दोनों लोग उस थाली में रूपए डालते हैं I रूपए नंदोई रख लेते हैं और गहने दुल्हन को दे दिया जाता है I अपने रीति रिवाज के अनुसार पंडितों द्वारा ” फेरा ” हो जाता है I फेरा के बाद दूल्हा – दुल्हन देव स्थान ( जहाँ पर थापा लगता है ) में जाते हैं I वहां पर लड़कीवाले दुल्हे से श्लोक सुनते हैं और उसे नेग देते हैं I फिर दूल्हा – दुल्हन मंडप पर वापस आ जाते हैं I

फिर सुहागी कल्पाई ( चिरचकर हाथ फेरना ) जाती है और गोद भरी जाती है I सुहागी मार्केट में मिलती है I सुहागी के ऊपर मेवा रखा जाता है जिसे दुल्हन चिरचकर हाथ फेरती है I अगर मार्केट में  सुहागी नहीं मिले तो रूपए और मेवा रखकर चिरचवा देते हैं I लड़के पक्ष के बुजुर्ग लोग गोद भराई करते हैं I आरता छात होता है I फेरे में आरता लड़की की बहन करती हैं I फिर दूल्हा दुल्हन को कमरे ( जिस कमरे में थापा लगा था ) में ले जाया जाता है I वहाँ पर लड़की थोड़ा आराम करती है और लड़का मंडप पर वापस आ जाता है और बैठ जाता है I तब दुल्हन की माँ दुल्हे का ” कंवर कलेवा “ ( दुल्हन की माँ दुल्हे को 1 चांदी के गिलास में चीनी और रूपए रखकर देती है I ) करती हैं I सबको नाश्ता पानी कराया जाता है I इसी समय दुल्हन की छोटी बहनें दुल्हे का जूता चुराती हैं I फिर उन्हें ” जूता चुराई ” का नेग मिल जाता है I उसके बाद दूल्हा दुल्हन को मंडप पर ले आता है I वहाँ पर दुल्हन की ननद उसकी ” सिर्गुत्थी ” करती है I वो दुल्हन को मांगटिक्का लगाती है, नथ पहनाती है I उसके बाद दुल्हन अपनी ननद को बेला देकर ( आधा गरी गोला में मेवा भरकर और रूपए ) पैर छूकर देती है I लड़के पक्ष की तरफ से कोई बुजुर्ग दुल्हन की गोद भरते हैं I उसे चूनरी उढ़ाते हैं I उसी समय बहू से ” आंजला “ भी भराया जाता है I घर के बुजुर्ग रूपए की थैली बहू के सामने रखते हैं I बहू उसमे से रूपए – पैसे को अपने आंजले में भरती है और अपने नंदोई को देती है I  इसके बाद ” जुआ ” खिलाया जाता है I इसमें दूल्हा – दुल्हन का कांगन – डोरा आपस में बदलाया जाता है और अंगूठी से जुआ खिलाया जाता है I डाला में से खिलौना और जोड़ा लड़कीवाले शगुन का निकाल लेते हैं I अब लड़केवालों की तरफ से कोई बुजुर्ग गोद भरता है और फिर सुहागी कल्पायी ( चिरचकर हाथ फेरना ) जाती है I इसके बाद ” पहरावनी ” होती है I

पहरावनी

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लड़कीवाले लड़केवालों को ” पहरावनी ” के लिए मंडप पर बुलाते हैं I वहाँ पर सोफा पर चूनड़ी या चादर बिछाकर लड़के को बैठाया जाता है I इसके बाद पंडितजी पूजा करवाते हैं I लड़कीवाले की तरफ से कोई बुजुर्ग लड़के का तिलक करते हैं और लड़के को अपनी इच्छा अनुसार गहने ( कंठी / अंगूठी ) पहना देते हैं I लड़के को दुसाला उढ़ा देते हैं I लड़कीवालों की तरफ से बाकी रिश्तेदार भी लड़के का तिलक कर देते हैं I फिर एक छोटी सी चौकी पर चौकदान और तकिया रखा जाता है I फिर लड़कीवाले 1 चांदी की कटोरे में रूपए रखकर उस चौकी पर रख देते हैं I दोनों तरफ के लोग ( लड़कीवाले और लड़केवाले ) अपने अपने जंवाइयों का तिलक करते हैं I लड़केवालों की तरफ से बहन -बेटियाँ दुल्हे का छात और आरता करती हैं I इसके बाद दूल्हा भट्टी के लात मारता है और मंडप की रस्सी खोलता है I उसके बाद पंडितजी लोग को इसका नेग दे दिया जाता है I इसके बाद ” फेर पाटा ” होता है I

फेर पाटा 

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दूल्हा – दुल्हन को गद्दी पर बैठाया जाता है I उसके बाद पंडितजी एक पाटा लेकर उसपर स्वास्तिक बनाकर पूजा करवाते हैं I उसी समय पान का सेवरा बनाकर दोनों के सिर पे बाँधा जाता है I इसके बाद दूल्हा – दुल्हन को उठाकर देवी देवता के धोक खिलाया जाता है I इसके बाद ” बिदाई ” होती है I

बिदाई     

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इसमें थली ( दहलीज ) पुजाया जाती है I थली के बाहर एक आदमी दोघड़ ( पानी से भरा 2 कलश ) लेकर खड़ा रहता है I दूल्हा – दुल्हन उसकी पूजा कर देते हैं और उसपर स्वास्तिक बना देते हैं I फिर अपने गाड़ी में बैठ जाते हैं I लड़कीवाले गाड़ी के नीचे चीनी से भरा सिकोरा ( मिट्टी का कोई बर्तन ) रखते हैं I जब गाड़ी चलने लगती है तब पहिये के ऊपर थोड़ा सा पानी डाला जाता है I इसके बाद लड़कीवाले और लड़केवाले पंडितों द्वारा राम रमी ( हाथ जोड़कर गले मिलना ) करते हैं और लड़की की बिदाई कर देते हैं I

मारवाड़ी विवाह क्या है?

अमीर और समृद्ध, मारवाड़ी समुदाय में शादियों में कई दिनों तक चलने वाले उत्सवों के साथ महंगे मामले होते हैं। फिर भी जब रीति-रिवाजों की बात आती है तो मारवाड़ी विवाह बहुत पारंपरिक होते हैं। वे विस्तृत और स्पार्कली हैं जहां शादी के दौरान धन का प्रदर्शन अचूक है, लेकिन एक समझदार अभी तक अनुष्ठानिक तरीके से किया जाता है।

राजस्थान में विवाह कैसे होता है?

Jodhpur News: हिंदू रीति रिवाज के अनुसार होने वाली शादी में कई रस में होती हैं. इनमें भी सबसे अहम होती हैं मेहंदी, हल्दी, गणपति निमंत्रण, तोरणमार,अग्नि के सात फेरों की रस्म. आज हम आपको तोरण की रस्म के बारे में बताने जा रहे हैं. दूल्हा जब अपनी बारात लेकर दुल्हन के घर पहुंचता है तो सबसे पहली रस्म यह होती है.