पारंपरिक ऊर्जा का प्रमुख स्रोत क्या है? - paaramparik oorja ka pramukh srot kya hai?

ऊर्जा के गैर-पारम्परिक स्रोत पर निबंध! Here is an essay on ‘Non-Traditional Sources of Energy’ in Hindi language.

आज का युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है । आज मानव अपने ज्ञान-विज्ञान का अधिकाधिक प्रयोग कर अपने विभिन्न कार्यों के संचालन के लिए ऊर्जा प्राप्त करता है । वर्तमान समय में ऊर्जा के उत्पादन एवं प्रयोग के आधार पर ही किसी भी राष्ट्र की गतिशीलता और विकास का आकलन किया जाता है ।

वास्तव में कार्य करने की क्षमता ही ऊर्जा कहलाती है और जिन संसाधनों से ऊर्जा की प्राप्ति होती है, वे ऊर्जा के स्रोत कहलाते हैं । लकडी, कोयला, तेल, पेट्रोल, डीजल, गैस आदि ऊर्जा के परम्परागत स्रोत हैं, जबकि सूर्य ताप, पवन चक्की, जल-विद्युत, बायोगैस, कचरा, भू-ताप, समुद्री ताप, बायोडीजल आदि इसके गैर-परम्परागत स्रोत हैं । इनमें से ऊर्जा के परम्परागत स्रोत सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं ।

इन्हें प्राकृतिक रूप से निर्मित होने में काफी समय लग जाता है । आज मानव द्वारा अपने जीवन को सुविधा सम्पन्न व सुखमय बनाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक दोहन किया जा रहा है । यदि इसी तरह आगे भी इनका दोहन होता रहा, तो वर्ष 2050 के पश्चात इन संसाधनों का अभाव हो जाएगा और पृथ्वी पर ऊर्जा संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी ।

एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व का कोयला भण्डार 5 करोड़ टन का, जबकि गैस भण्डार मात्र 41 हजार मेगाटन है, किन्तु आज के इस औद्योगिक युग में ऊर्जा के बिना कृषि, परिवहन, उद्योग, संचार आदि क्षेत्रों में विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

भविष्य में आने बाले सकट से बचने और अपने विभिन्न कार्यों का सुचारु रूप से संचालन करने के लिए आज मानव ऊर्जा के नित नए-नए गैर-पारम्परिक स्रोतों को खोजने का प्रयास कर रहा है । आज अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान आदि विकसित राष्ट्रों के साथ-साथ भारत जैसे विकासशील देश भी गैर-परम्परागत स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है ।

ऊर्जा खपत के क्षेत्र में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है, जहाँ कुल ऊर्जा उत्पादन का 10% भाग गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त किया जाता है सूर्य, वायु, समुद्र और भूमि ऊर्जा के अक्षय भण्डार है । इनसे असीमित मात्रा में बार-बार ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है यानि जीवाश्म ईंधन ।

यथा-कोयला, पेट्रोलियम आदि की तरह इनके खत्म हो जाने का भय नहीं है । गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के मामले में प्रकृति ने हमारे देश को काफी समृद्ध बनाया है । इस कारण यहाँ इन स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन की सम्भावनाएं भी काफी बढ़ जाती हैं ।

गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों और उनसे उत्पन्न ऊर्जा के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं:

1. सौर ऊर्जा:

सूर्य उर्जा का अक्षय एवं अनन्त भण्डार है सूर्य की समस्त ऊर्जा का सिर्फ 10% हिस्सा ही धरती पर आ पाता है । बावजूद इसके इससे अन्य सभी साधनों से प्राप्त ऊर्जा से 36 गुना अधिक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है अकेले थार रेगिस्तान के 100 वर्गमील क्षेत्रफल पर पडने वाली धूप से ही उत्पन्न ऊर्जा से सम्पूर्ण भारत वर्ष को ऊर्जा के मामले में सन्तुष्ट किया जा सकता है । हमें सौर ऊर्जा प्रकाश एवं ताप दो रूपों में प्राप्त होती है ।

इसका प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है:

(i) सौर फोटोवोल्टाइक एवं

(ii) सौर ताप ऊर्जा ।

फोटोवोल्टाइक सेलों के द्वारा सूर्य प्रकाश को सीधे विद्युत उर्जा में बदल दिया जाता है । ये सेल सिलिकन के टुकड़ों से बनाए जाते है । अमेरिका स्थित टोपाज सोलर फार्म एवं डिजर्ट सोलर फार्म (प्रत्येक की ऊर्जा उत्पादन क्षमता 600 मेगाबाट) विश्व के सबसे बडे फोटोवोल्टाइक पावर स्टेशन है ।

भारत के बड़े फोटोबोल्टाइक पावर स्टेशनों में चननका सोलर पार्क, नीमच सोलर पावर स्टेशन आदि हैं । वर्ष 2013 में देश में ग्रिड सम्बद्ध सौर ऊर्जा क्षमता 2 हजार मेगावाट से अधिक थी ।  भारत सरकार द्वारा स्थापित जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन ने वर्ष 2022 तक 20 हजार मेगावाट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है ।

फोटोवोल्टाइक प्रक्रिया से प्राप्त सौर ऊर्जा का उपयोग घर-भवन के प्रकाश, मोटर-पम्प आदि उपकरणों को चलाने में किया जाता है ।  सोलर पम्पों का प्रयोग कृषि कार्यों में किया जाता है । देश की राजधानी दिल्ली में बिकास भवन की 60 वर्गमीटर छत पर 100 किलोवाट विद्युत उत्पादन क्षमता का सौर ऊर्जा सयन्त्र लगाया गया है ।  साथ-ही-साथ सरकारी इमारतों की लगभग सवा लाख वर्गमीटर छतों पर सोलर पैनल लगाने की योजना बनाई गई है, जिससे लगभग मेगावाट सौर उर्जा प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है । 

2. सौर तापीय प्रकिया में सौर ऊर्जा को ताप ऊर्जा में बदला जाता है जिसके लिए विभिन्न यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है. जैसे- सौर चूल्हे, सौर कुकर, सौर ऊर्जा हीटर आदि । प्रदूषण रहित इन सौर ऊर्जा उपकरणों की खरीदारी पर सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है ।  साथ ही सौर ऊर्जा सयन्त्र स्थापित करने के लिए भी सरकारी स्तर पर विशेष सुविधाएं दी जाती है । पारिवारिक आकार वाले एक सौर कुकर में 4-5 सदस्यों का भोजन तैयार हो जाता है ।

3. पवन ऊर्जा:

वायु की शक्ति से उत्पन्न की जाने वाली ऊर्जा पवन ऊर्जा कहलाती है । हवा के वेग से चलने वाली पवन चक्कियों के द्वारा धरती से जल खींचने और विद्युत पैदा करने का काम लिया जाता है जो ऊर्जा उत्पादन करने का अत्यन्त ही सस्ता एवं पूर्णतः प्रदूषणरहित उपाय है ।  अमेरिका में इस विधि से लगभग दो हजार मेगावाट तक की बिजली का उत्पादन किया जाता है ।

इस विधि से भारत भी हजार मेगावाट से अधिक विद्युत उत्पादन कर लेता है ।  गुजरात के लाम्बा में हवा से संचालित पावर परियोजना के माध्यम से 200 किलोवाट, तमिलनाडु स्थित मप्पण्डल विष फार्म से 1,500 मेगावाट, जबकि राजस्थान स्थित जैसलमेर विण्ड फार्म से 1,275 मेगावाट विवृत्त का उत्पादन किया जाता है । महाराष्ट्र में ब्राह्मण, ढलगाँव एवं चकला विण्ड फार्म भी बडे स्तर पर विद्युत उत्पादन करते है । 

देश में पवन ऊर्जा का व्यापक विस्तार होने के कारण ही बडे पैमाने पर विण्ड इलेक्ट्रिक जेनेरेटर का निर्माण किया जाता है जो हवा में व्याप्त गतिज ऊर्जा को रोटर एवं गियर बॉक्स की मदद से विद्युत ऊर्जा में बदल देता है । जर्मनी, स्पेन, अमेरिका, डेनमार्क आदि देशों की तरह भारत में भी भविष्य में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काफी विकास किए जाने की सम्भावना है ।

4. बायोगैस:

सूर्य और हवा की तरह बायोगैस भी बार-बार ऊर्जा उत्पन्न करने का साधन है जो मानव एवं पशुओं के मल, घरेलू कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों खरपतवारों जंगल के कच्चे माल, लकड़ी उद्योग के गौण उत्पादन आदि से प्राप्त किया जाता है । बायोमास से उत्यन्त बायोगैस एवं बायोडीजल आज वैश्विक स्तर पर ऊर्जा उत्पादन करने के प्रमुख साधन बन गए है ।

इनके माध्यम से प्राप्त होने वाली ऊर्जा क्षमता वाली होती है । गाँवों में लोग आज भी गोबर के उपलों से चूल्हे जलाकर खाना पकाते हैं किन्तु गोबर का बायोगैस के रूप में प्रयोग किए जाने से न सिर्फ उच्च स्तर की ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है बल्कि प्रतिवर्ष 13 करोड़ टन बहुमूल्य लकड़ी को यूँ ही बर्बाद होने से भी बचाया जा सकता है, जिससे वनों का संरक्षण भी हो सकेगा ।

आज विश्व के कई देशों में बायोगैस के द्वारा रसोई गैस व विद्युत के साथ-साथ कृषि हेतु खाद का उत्पादन भी किया जाता है । बायोगैस वाले चूल्हे घुएँरहित होने के साथ-साथ वातावरण को स्वच्छ रखने में भी सहायक हैं । एक गोबर गैस संयन्त्र हेतु दो-तीन गाय-भैंसों की आवश्यकता होती है ।

केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों द्वारा बायोगैस सयन्त्र लगाने के लिए काफी सुविधाएँ प्रदान की गई है । वर्ष 1981-82 के दौरान केन्द्र सरकार द्वारा ‘नेशनल प्रोजेक्ट फॉर बायोगैस डेवलपमेण्ट’ की स्थापना की गई । गोबर गैस में लगभग 70% तक मीथेन गैस पाई जाती है, जिसका उपयोग एलपीजी के रूप में किया जाता है ।

केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 1988 में शुरू किया गया उन्नत चूल्हा अभियान चलाने एवं बायोगैस सयन्त्र स्थापित करने हेतु सुविधाएं उपलब्ध कराने का देशभर में व्यापक असर हुआ । शहरों के साथ-साथ देश के गाँवों में भी आज बायोगैस का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है । वर्तमान युग में बायो ऊर्जा के रूप में बायोडीजल को भी गैर-परम्परागत ऊर्जा का एक अच्छा विकल्प माना जा रहा है ।

 5. बायोडीजल का उपयोग:

पेट्रोडीजल की तरह सभी वाहनों में स्वतन्त्र रूप से अथवा पेट्रोडीजल के साथ मिलाकर किया जा सकता है । साथ ही इसकी आपूर्ति पेट्रोल पम्पों पर भी पूर्व व्यवस्था में बिना किसी परिवर्तन के की जा सकती है । यदि थोडी-बहुत समस्याओं को दूर कर लिया जाए, तो बायोडीजल से विश्व में बड़े स्तर पर बाहन चलाए जा सकते है ।

आज से लगभग एक शताब्दी पूर्व ही पेरिस में मूँगफली के तेल से तैयार डीजल से बाहन चलाने का प्रदर्शन किया जा चुका है जो बायोईंधन का ही एक रूप है । आज ऑस्ट्रिया, यूरोप सहित विश्व के अन्य देशों में भी बायोडीजल का व्यावसायिक उत्पादन किया जा रहा है ।

न्यूजीलैण्ड ने शैवालों से भी बायोडीजल निर्माण करने में सफलता पाई है । आने वाले समय में बायोडीजल पेट्रोडीजल का स्थान ले लेगा ऐसी सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता । बिहार के बिन्देश्वर पाठक ने मानव मल से ‘सुलभ ऊर्जा’ के रूप में बड़े स्तर पर ऊर्जा का उत्पादन करके पूरे विश्व को गैर-परम्परागत स्रोत से प्राप्त इस ऊर्जा की ओर आकर्षित किया है ।

इन्होंने वर्ष 1970 में इन्टरनेशनल सोशल सर्विस ‘आर्गेनाइजेशन’ की स्थापना करके सुलभ ऊर्जा का प्रचार-प्रसार कर पर्यावरण को शुद्ध रखने का बीड़ा उठाया । आज भी पटना सहित देश के अन्य शहरों की सड़कों पर सुलभ ऊर्जा द्वारा संचालित प्रकाश व्यवस्था देखी जा सकती है ।

पूरे भारत में फैले ‘शुलभ शौचालय’ इन्हीं के अभियान का एक अंग है । भारत में सिर्फ शहरी क्षेत्रों से ही प्रतिवर्ष 55 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट एवं लगभग 40 बिलियन लीटर सीवेज तैयार होता है । इनके कार्बनिक अंशों का उपयोग बायो ऊर्जा के उत्पादन में किया जा सकता है । ब्राजील में गन्ने से तैयार एथेनॉल (इथाइल एल्कोहल) से लगभग 20% वाहन चलाए जाते है ।

बायोडीजल के स्रोत जीव-जन्तु एवं वनस्पतियाँ हैं । इसका निर्माण जीव-जन्तुओं से प्राप्त वसा एवं वनस्पतियों से प्राप्त तेलों को ट्रांसइस्टरीफिकेशन नामक रासायनिक प्रकिया के माध्यम से संशोधित कर किया जाता है । इस रासायनिक प्रक्रिया में मेथेनॉल (मिथाइल एल्कोहल) की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है । बायोडीजल के उत्पादन में सोयाबीन, कनोला के तेल का सर्वाधिक उपयोग होता है ।

6. जल ऊर्जा:

आज विश्वभर में नदियों पर बनाए गए पनबिजली एवं बाँधों तथा समुद्र में उठने वाले जार-भाटों को भी गैर-परम्परागत ऊर्जा के अच्छे स्रोत के रूप में देखा जा रहा है । एशियाई देशों में चीन जल-विद्युत विकास के क्षेत्र में अग्रणी है ।

भारत में भी आज प्रचालनरत कई पनबिजली सयन्त्र ऐसे हैं जिनका निर्माण अंग्रेजी शासनकाल के दौरान किया गया था । आज लघु जल ऊर्जा संयन्त्रों के माध्यम से देश में लगभग चार हजार मेगावाट तक की बिजली का उत्पादन किया जा रहा है ।

भाखड़ा-नागल, दामोदर घाटी, चम्बल घाटी, हीराकुड जैसी परियोजनाओं की सफलता को नकारा नहीं जा सकता । पनबिजली का निर्माण बाँध का निर्माण करके नदियों के जल प्रवाह को रोककर और उसे तेज धारा के साथ ऊँचाई से गिराकर किया जाता है । नाइयों के अलावा समुद्रों से भी गैर-परम्परागत ऊर्जा प्राप्त की जाती है ।

समुद्र में ऊर्जा दो रूपों में पाई जाती है:

(i) सूर्य से प्राप्त होने वाली तापीय ऊर्जा एवं

(ii) समुद्री लहरों एवं ज्वार भाटा से उत्पन्न यान्त्रिक ऊर्जा ।

7. समुद्री ताप ऊर्जा इसका उपयोग विद्युत उत्पादन के साथ-साथ अन्य कार्यों में भी किया जाता है । समुद्री यान्त्रिक ऊर्जा समुद्री ताप ऊर्जा से विकाल भिन्न है । समुद्री लहरों एवं ज्वार-भाटा के निर्माण में हवा एवं चन्द्रमा के आकर्षण का विशेष महत्व होता है ।

समुद्री तूफान से विद्युत उत्पादन करने हेतु डैम बनाए जाते हैं । विश्व का प्रथम वाणिज्यिक ज्वारीय धारा जेनेरेटर स्ट्रेगफोर्ड झील में लगाया गया है । भारत में कच्छ, हुगली एवं कैम्बे के तट पर उठने बाले ज्वार-भाटों से लगभग 5 हजार किलोवाट तक की बिजली उत्पन्न की जा सकती है ।

8. भूतापीय ऊर्जा:

पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे अनेक स्थानों पर ऐसी चट्‌टानें है जिनके नीचे उच्च स्तरीय ताप पाया जाता है । इसी ताप के कारण भू-सतह पर हमें गर्म जल के स्रोत मिलते हैं और ज्वालामुखी गर्म लावा निकालते है । आधुनिक समय में वैज्ञानिक इस ताप से ऊर्जा प्राप्त करने में सफल हुए है ।

संयुक्त राज्य अमेरिका, इण्डोनेशिया, पूर्वी अफ्रीका, फिलीपीन्स आदि देशों में भूतापीय ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है । धरती द्वारा सूर्य से प्राप्त ऊर्जा चुम्बकीय विकिरण के रूप में संचित रहती है और विकिरण कीं शक्ति का स्रोत है-सदृश्य प्रकाश, किन्तु कई प्राकृतिक कारणों से सूर्य से आने वाला विकिरण पूर्णरूपेण पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाता, इससे भूतापीय ऊर्जा का उत्पादन विश्व के कम ही देशों तक सीमित रह गया है ।

नि:सन्देह पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में हैं और विश्व की जनसंख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है, किन्तु हम आज भी पूर्णतः प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर हैं । मनुष्य को यह निर्भरता खत्म करते हुए गैर-परम्परागत ऊर्जा के साधनों का उपभोग करना होगा ।

इसके लिए लोगों में जागरूकता फैलानी होगी । उल्लेखनीय है कि भारत में ‘गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत मन्त्रालय’ नई एवं पुनरुपयोगी ऊर्जा प्रणालियों तथा युक्तियों से सम्बद्ध सभी मामलों के लिए भारत सरकार की नोडल एजेंसी का कार्य करता है ।

ऊर्जा के पुनरुपयोगी उपकरणों एवं उनकी प्रणालियों की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए तथा ऐसी प्रणालियों और प्रविधियों की मरम्मत एवं रख-रखाव के उद्देश्य से देश के विभिन्न कस्बों एवं नगरों में अक्षय ऊर्जा दुकाने खोली गई हैं । देश में उपलब्ध सौर, पवन, बायोगैस और लघु जल-विद्युत जैसे ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से लाभ उठाने की दिशा में अच्छी प्रगति हुई है ।

इसके माध्यम से देश में प्रतिवर्ष ऊर्जा की कुल संस्थापित क्षमता के लगभग 8% से अधिक ऊर्जा का उत्पादन हुआ है । यह हम सबके लिए अच्छी बात है । इस ऊर्जा के उत्पादन को और बढ़ाया जा सकता है जरूरत है तो केवल सबके एक साथ कदम बढ़ाने की ।

यदि हम यह संकल्प कर ले कि हमें अधिक-से-अधिक ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों का प्रयोग करना है तो हमें कोई शक्ति अपने कर्म पथ से डिगा नहीं सकती । ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों के प्रयोग का अर्थ है- उर्जा का विकास और ऊर्जा के विकास का प्रतिफल है- मनुष्य का विकास ।

पारंपरिक ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्रोत क्या है?

इन संयंत्रों को तापीय विद्युत संयंत्र कहने का कारण यह है कि इन संयंत्रों में ईंधन के दहन द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जिसे विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है। ऊर्जा का एक अन्य पारंपरिक स्रोत बहते जल की गतिज ऊर्जा अथवा किसी ऊँचाई पर स्थित जल की स्थितिज ऊर्जा है।

परंपरागत ऊर्जा के स्रोत क्या है?

परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: जलावन, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बिजली। गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोगैस और परमाणु ऊर्जा। जलावन और उपले: अनुमानित आंकड़े के अनुसार आज भी ग्रामीण घरों की ऊर्जा की जरूरत का 70% भाग जलावन और उपलों से पूरा होता है।