पतंजलि योग सूत्र.... योग मन की समाप्ति है।’ यही योग की परिभाषा है, सबसे सही परिभाषा। योग को बहुत ढंग से परिभाषित किया... Show
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चित्त वृत्ति के भेद -
महर्षि पतंजलि ने चित्त की पाँच वृत्तियाँ बताई है। तथा उनके प्रत्येक के क्लिष्ट ओर अक्लिष्ट दो - दो भेद है। महर्षि पतंजलि ने वृत्तियों का वर्णन इस प्रकार से किया है 'वृत्तयः पच्यतययः क्लिष्टाइक्लिष्टाः ।' पा० यो० सू० 1 / 5
वृत्ति शब्द का नामकरण
क्लिष्ट व अक्लिष्ट वृत्तियों का विस्तृत वर्णनइन दोनो उदाहरणो में दृश्य मात्र के अनुभव अलग अलग है। एक से सुख की, प्रसन्नता की अनुभूति हुई तथा दूसरी घटना से दुख की अनुभूति होती हैं। इन क्लिष्ट व अक्लिष्ट वृत्तियों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार से है -
क्लिष्ट वृत्ति (दुःख उत्पन्न करने वाली)
अक्लिष्ट वृत्ति (सुख प्रदान करने वाली)
महर्षि पतंजलि ने इन वृत्तियों को पाँच भागो में बॉटा है। जिनका वर्णन इस प्रकार है-
'प्रमाण विपर्यय विकल्प निद्रा स्मृतयः ।' 1 /6 पा० यो० सू०
इस सूत्र में महर्षि पतंजलि ने यह स्पष्ट किया है कि हमारे चित्त में जो वृत्तियाँ समय समय उठती रहती है, तथा हमारे चित्त को चलायमान करती रहती है वह पॉच प्रकार की है। (1). प्रमाण (2).विपर्यय (3). विकल्प (4) निद्रा (5). स्मृति
1 प्रमाण वृत्ति
प्रमा (यथार्थ ज्ञान) करण (साधन) को प्रमाण कहा जाता है। इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त वास्तविक ज्ञान से चित्त में उत्पन्न हुई वृत्ति को प्रमाण वृत्ति कहते है। जिस ज्ञान से में सुनता हूँ, मैं देखता हूँ, मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ, मैं यह वेद शास्त्र से जानता हूँ, इस प्रकार के ज्ञान को बोध कहते है। यह बोध यदि यर्थाथ हो तो प्रमा कहलाता है। अर्थात जिस वृत्ति से प्रमा यर्थाथ बोध उत्पन्न होता है उसे प्रमाण वृत्ति कहते है। यह प्रमाण इन्द्रिय जनित ज्ञान है। इस प्रमाण के तीन भेद हैं, जो इस प्रकार है-
'प्रत्यक्षानुगमानागमा गमाः प्रमाणानि ।' 1 /7 पा० योo सू०
प्रत्यक्ष अनुमान तथा आगम तीन प्रकार की प्रमाण वृत्ति है। यह प्रमा चक्षु आदि इन्द्रियो द्वारा व अनुमान द्वारा अथवा श्रवण द्वारा या आप्त वचन द्वारा चित्त वृत्ति उत्पन्न होती है। इसलिए इस चित्त वृत्ति को प्रमा (ज्ञान) का कारण होने से प्रमाण कहा जाता है। यह प्रमाण वृत्ति तीन प्रकार की होती है - 1- प्रत्यक्ष प्रमाण - इन्द्रिय जनित ज्ञान 2 अनुमान प्रमाण - इन्द्रियगत अनुभव न होकर अनुमान के आधार पर ज्ञान 3 – आगम प्रमाण - यह शब्द प्रमाण है, जो आप्त वाक्य या श्रवण द्वारा उत्पन्न होते है। 1 प्रत्यक्ष प्रमाण
2 अनुमान प्रमाण
अनुमान प्रमाण तीन प्रकार का होता है पूर्ववत्, शेषवत् और सामान्यतयोदृष्ट ।(अ) पूर्ववत् अनुमान
(ब) शेषवत् अनुमान -
(स) सामान्यतः दृष्ट
3- आगम प्रमाण -
योगसूत्र (व्यासभाष्य 1 / 7) वर्णन किया गया है-
"आप्तेन दृश्टोऽनुमितो वाऽर्थः परत्र स्ववोधसंक्रांतये । शब्देनोपदिष्यते शब्दात् तदर्थविशयावृत्तिः श्रोतुरागमः ।।”
अर्थात् आप्त पुरूष अथवा आप्त ग्रन्थों द्वारा प्रत्यक्ष तथा अनुमान से ज्ञात विषय को दूसरे में ज्ञान उत्पन्न करने के लिए शब्द के द्वारा उपदेश दिया जाता है। उस शब्द से उस अर्थ को विषय करने वाली जो श्रोता की वृत्ति है, वह आगम प्रमाण कहलाती है।
यदि देखा जाए तो स्वर्ग आदि को चक्षु से ग्रहण नही किया जा सकता है। और न वह किसी के द्वारा अनुमानित है। जबकि स्वर्ग की मान्यता मानी जाती है। क्योंकि वेद आदि ग्रन्थों में स्वर्ग ओर नरक की मान्यता मानी गयी है। इसलिए ज्ञानियो द्वारा कहे गये कथन जो शास्त्रों में संग्रहीत है आगम प्रमाण के अन्तर्गत आते है। वेद, उपनिशद, दर्शन आदि मनीषियों के अनुभव के आधार पर लिखे गये है। इन कथनों से भोगो से वैराग्य होकर यदि मनुष्य का चित्त योग साधना की और प्रवृत होता है योग चित्त वृत्ति निरोध का क्या अर्थ है?योग को संस्कृत के एक सूत्र में योग: चित्त-वृत्ति निरोध: कहा गया है. तीन संस्कृत शब्दों के अर्थ पर यह संस्कृत परिभाषा टिकी है. "योग बुद्धि के संशोधनों का निषेध है." स्वामी विवेकानंद इस सूत्र की व्याख्या करते हुए कहते है,"योग बुद्धि (चित्त) को विभिन्न रूप (वृत्ति) लेने से अवरुद्ध करता है.
पंच वृत्ति क्या है?वाक्यों को शब्द या आगम प्रमाण माना गया है। जैसे पूर्ण एवं परिपक्व गुरु किसी बात को कहता है, तो उसे प्रमाण के तौर पर माना जाता है। ठीक इसी प्रकार वेद – शास्त्रों के उपदेशों को भी प्रमाण माना गया है। इस प्रकार के प्रमाण को आगम अथवा शब्द प्रमाण वृत्ति कहा जाता है।
योग सूत्र के अनुसार वृत्तियों के कितने भेद है?वृत्तियाँ पाँच प्रकार की - क्लेशक्त और क्लेशरहित ॥ ५॥ १-प्रमाण, २-विकल्प, ३-विपर्यय, ४-निद्रा तथा ५-स्मृति ॥
पातंजल योग सूत्र में कितनी वृत्तियां बताई गई है?पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र में महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) ने विभिन्न ध्यानपारायण अभ्यासों को सुव्यवस्थित कर उनकों सूत्रों में संहिताबद्ध किया है। यह सूत्र योग के आठ अंगों को दर्शाते है। इसमें कुल १९५ सूत्र है जिन्हे ४ पदों में विभाजित किया गया है। समाधी पद - इसमें ५१ सूत्र है।
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