रिफाइंड तेल क्यों नहीं खाना चाहिए - riphaind tel kyon nahin khaana chaahie

फूड ऑयल में सैचुरेटेड फैट, मोनोसैचुरेटेड फैट और पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड पाए जाते हैं. डॉक्टर्स कम सैचुरेटेड फैट वाले तेल के इस्तेमाल की सलाह देते हैं.

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अपने वाहनों में आप जो पेट्रोल-डीजल इस्तेमाल करते हैं, वह कच्चे तेल यानी क्रूड ऑयल को रिफाइंड कर तैयार किया जाता है. इसी तरह खाने वाले तेल यानी कुकिंग ऑयल की भी रिफाइनिंग की जाती है. ऐसे तेल को रिफाइंड ऑयल कहा जाता है. दुनिया भर में जितना खाद्य तेल इस्तेमाल होता है, उनमें 85 फीसदी ऑयल रिफाइंड होते हैं. ​इनको लेकर समय-समय पर कुछ भ्रामक संदेश वायरल होते रहते हैं. दावा किया जाता है कि रिफाइंड ऑयल से कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. लेकिन क्या यह वाकई सच है?

रिफाइंड तेल क्यों नहीं खाना चाहिए - riphaind tel kyon nahin khaana chaahie

सबसे पहले यह जान लीजिए कि फूड ऑयल की रिफाइनिंग क्यों की जाती है? इसको लेकर एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कुकिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले कई तेलों की रिफाइनिंग की जरूरत होती है. ऐसा उस तेल में से टॉक्सिन्स, गंदगी या अशुद्धियां वगैरह हटाने के लिए किया जाता है. इसके साथ ही तेल की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए भी रिफाइनिंग जरूरी होती है. रिफाइनिंग के कारण ही ये हाई हीट कुकिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने लायक होते हैं.

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आपको बता दें कि खाना पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले तेल में फैट की मात्रा काफी ज्यादा होती है. इनमें सैचुरेटेड फैट, मोनोसैचुरेटेड फैट और पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड पाए जाते हैं. डॉक्टर्स कम सैचुरेटेड फैट वाले तेल के इस्तेमाल की सलाह देते हैं. पॉलीअनसैचुरेटेड फैट और ओमेगा-3 और 6 फैट वाले तेल बेहतर होते हैं.

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अब सवाल ये भी है कि क्या रिफाइंड ऑयल सेहत के लिए हानिकारक है और क्‍या इससे कैंसर जैसी बीमारियां भी हो सकती है? तो जवाब ये है कि यह एक भ्रामक जानकारी है. वरिष्ठ चिकित्सक डॉ प्रवीण सिंह ने बताया कि ऐसी कोई रिसर्च या स्टडी नहीं हुई है, जो इस तरह की पुष्टि करती हो. तेल की रिफाइनिंग के लिए जो भी केमिकल इस्तेमाल होते हैं, उनसे कैंसर होने के कोई सबूत मौजूद नहीं हैं.

रिफाइंड तेल क्यों नहीं खाना चाहिए - riphaind tel kyon nahin khaana chaahie

फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) की ओर से भी एक सेमिनार में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि खाना पकाने के लिए रिफाइंड ऑयल का इस्तेमाल बिल्कुल सुरक्षित है. FSSAI प्रमाणित रिफाइंड ऑयल का इस्तेमाल करना चाहिए. FSSAI ने तो वेजिटेबल ऑयल की रिफाइनिंग को भी ओके कर दिया है. ध्यान रखने वाली बात ये है कि तेल खरीदते समय फैट की मात्रा का ध्यान रखें और घर में एक ही तेल को बार-बार गर्म करके इस्तेमाल ना करें.

सरसों का तेल, कनोला ऑयल, नारियल का तेल, एवेकाडो ऑयल, मूंगफली का तेल, ऑलिव ऑयल, अलसी का तेल, पामोलीन ऑयल…

लिस्ट बहुत लंबी है. खाना-पकाने के लिए तेल के बहुत सारे विकल्प हैं. मगर, कौन सा तेल सेहत के लिए सबसे अच्छा है?

खाने और सेहत को लेकर फ़िक्रमंद लोग अक्सर इस सवाल से दो चार होते हैं.

खाना पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले तेल अक्सर उसके फल, पौधे, बीज या नट से तय होते हैं.

इन्हें कुचलकर, दबाकर या प्रॉसेस करके निकाला जाता है.

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पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड

तेल की सबसे बड़ी ख़ूबी ये होती है कि उसमें फैट की मात्रा काफ़ी होती है.

इसमें सैचुरेटेड फैट, मोनोसैचुरेटेड फैट और पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड शामिल होते हैं.

कुछ वर्षों पहले तक नारियल के तेल को सेहत के लिहाज़ से सबसे अच्छा माना जाता था. कई लोगों ने तो इसे सुपरफूड घोषित कर दिया था.

कुछ लोगों का दावा था कि इस तेल के वसा के रूप में शरीर मे जमा होने की संभावना बेहद कम थी.

लेकिन, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च ने नारियल तेल को 'विशुद्ध ज़हर' क़रार दे दिया.

इसकी वजह ये है कि इंसान का शरीर बहुत ज़्यादा फैट नहीं पचा सकता और अधिक फैट हमारे शरीर में जमा होने लगता है.

जो दिल की बीमारियां और ब्लड प्रेशर जैसी सेहत की समस्याएं पैदा करता है.

ब्रिटेन में सरकार की गाइडलाइन कहती है कि किसी पुरुष को दिन भर में तीस ग्राम और महिला को बीस ग्राम से अधिक तेल नहीं खाना चाहिए.

इसकी वजह भी समझिए. तेल में जो फैट होता है, वो फैटी एसिड के कणों से मिलकर बनता है.

ये फैटी एसिड या तो सिंगल बॉन्ड से जुड़े होते हैं, जिन्हें सैचुरेटेड फैट कहते हैं.

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ख़ून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा

या फिर डबल बॉन्ड से जुड़े होते हैं, जिन्हें अनसैचुरेटेड फैट कहते हैं. जो फैटी एसिड छोटी श्रृंखला में बंधे होते हैं, वो ख़ून में सीधे घुल जाते हैं.

और शरीर की एनर्जी की ज़रूरत पूरी करते हैं. लेकिन, लंबी चेन वाले फैटी एसिड सीधे लिवर में जाते हैं.

इससे हमारे ख़ून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है.

नारियल के तेल को लेकर हुई रिसर्च कहती है कि इससे हमारे शरीर में लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (LDL) की मात्रा बढ़ जाती है.

LDL का सीधा संबंध दिल के दौरे से पाया गया है.

हालांकि नारियल के तेल से हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (HDL) भी मिलती है, जो ख़ून से LDL को खींच लेती है.

वर्जिनिया की जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर टेलर वॉलेस कहते हैं कि, 'HDL में लॉरिक एसिड नाम का केमिकल होता है, जिसे C12 फैटी एसिड कहा जाता है. ये लॉन्ग चेन वाला फैटी एसिड होता है, जो लिवर में जमा हो जाता है. इससे स्वास्थ्य की दिक़्क़तें पैदा होती हैं.'

इसीलिए, जानकार कहते हैं कि जिस तेल में सैचुरेटेड फैट की मात्रा कम हो उसे खाना बेहतर होता है. और इसे भी कम मात्रा में ही खाना चाहिए.

पॉलीअनसैचुरेटेड फैट और ओमेगा-3,6 फैट वाले तेल खाना बेहतर होता है. इससे ख़ून में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है.

और शरीर को ज़रूरी फैटी एसिड और विटामिन मिल जाते हैं.

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जैतून के तेल के फ़ायदों की बड़ी वजह उसमें पाए जाने वाले मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड हैं

दिल की बीमारियों की आशंका

पॉलीअनसैचुरेटेड और मोनोसैचुरेटेड फैट वाले फैटी एसिड कई तेलों में पाए जाते हैं. इनकी मात्रा पौधे और तेल निकालने की प्रक्रिया पर निर्भर करती है.

एक सर्वे में पाया गया है कि ऑलिव ऑयल का ज़्यादा इस्तेमाल दिल की बीमारियों की आशंका को पाँच से सात प्रतिशत तक कम कर देता है.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के टीएच चैन स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ की वैज्ञानिक मार्टा गॉश फेरे ने 24 साल तक एक लाख लोगों पर एक स्टडी की.

उन्होंने पाया कि जो हर तरह के ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल ज़्यादा करते हैं, उनमें दिल की बीमारियों की आशंका 15 प्रतिशत तक कम हो जाती है.

जैतून के तेल के फ़ायदों की बड़ी वजह उसमें पाए जाने वाले मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड हैं.

जिनमें विटामिन, मिनरल्स, पॉलीफेनॉल्स और पौधों में पाए जाने वाले दूसरे माइक्रोन्यूट्रिएंट्स होते हैं.

मार्टा कहती हैं कि ऑलिव आयल का इस्तेमाल करने से हमारे खाने से जुड़े अन्य नुक़सानदेह फैटी एसिड से भी छुटकारा मिलता है.

जैतून को फोड़ कर उनके गूदे से ऑलिव ऑयल को निकाला जाता है. इसे सबसे सेहतमंद तेल कहा जाता है.

जो हमारे पेट में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के लिए भी अच्छा होता है. इससे दिल की बीमारियां कम होने की बातें कही जाती हैं.

ऑलिव आयल खाने से कैंसर और डायबिटीज़ से बचाव के दावे भी किए जाते हैं.

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मेडिटेरेनियन डाइट का अटूट हिस्सा

स्पेन की वैलेंशिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फ्रांसिस्को बार्बा कहते हैं कि, 'जैतून के तेल में मिलने वाले फैटी एसिड और दूसरे तत्व हमें असंक्रामक बीमारियों से भी बचाते हैं. क्योंकि इसमें वो तत्व होते हैं, जिनकी हमारे शरीर की ज़रूरत होती है.'

भूमध्य सागर के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग ऑलिव ऑयल का भरपूर इस्तेमाल करते हैं. इसे मेडिटेरेनियन डाइट का अटूट हिस्सा कहा जाता है.

और मेडिटेरेनियन डाइट को विश्व की सबसे हेल्दी डाइट माना जाता है.

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इस डाइट के हेल्दी होने की सबसे बड़ी वजह, जैतून का तेल ही है.

लेकिन, मार्टा का कहना है कि, 'दुनिया के दूसरे इलाक़ों के मुक़ाबले भूमध्य सागर के इर्द गिर्द के खान पान में नट्स हैं, फल हैं और सब्ज़ियों की मात्रा भी ज़्यादा होती है.'

तो, हेल्थ के पैमानों पर मेडिटेरेनियन डाइट के अच्छा साबित होने के पीछे केवल ऑलिव ऑयल नहीं, बल्कि पूरा खान-पान है.

तेल कम मात्रा में खाना ही ठीक

रिसर्चरों ने पाया है कि अन्य क्षेत्रों के मुक़ाबले, भूमध्य सागरीय क्षेत्र की डाइट लेने से ख़ून में ग्लूकोज़ का लेवल कम होता है.

कुछ लोग ये दावा करते हैं कि एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल लेना और भी सेहतमंद है.

मगर, हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि भले ही इसमें एंटी ऑक्सिडेंट और विटामिन ई की मात्रा ज़्यादा हो. पर, ये बहुत कम तापमान पर गर्म हो जाता है. इससे इस तेल के कई पोषक तत्व गर्म करने पर नष्ट हो जाते हैं. तो, इसे कच्चा लेने पर ही सेहत को फ़ायदा होगा.

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2011 में यूरोपीय फूड सेफ्टी अथॉरिटी ने ऑलिव ऑयल बनाने वालों को इस बात की इजाज़त दे दी थी कि वो इस तेल से ऑक्सिडेटिव तनाव कम करने का दावा कर सकते हैं. इसी तरह एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल को भी कम आंच पर गर्म करके पकाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.

हालांकि, तेल कोई भी हो, कम मात्रा में खाना ही ठीक होगा.

इस स्टोरी में वेस्टर्न डाइट और वहां के खान पान के रिसर्च को ही आधार बनाया गया है. भारत में लोग सरसों के तेल से लेकर मूंगफली और अलसी के तेल तक, खाना पकाने के लिए कई तरह के तेल इस्तेमाल करते हैं.

निष्कर्ष ये है कि आप तेल जो भी खाएं उसे बहुत अधिक न गर्म करें. बार-बार गर्म करके तेल को इस्तेमाल न करें. और संयमित होकर ही तेल का इस्तेमाल करें. यही सेहत के लिए अच्छा होगा.

रिफाइंड तेल खाने के क्या नुकसान है?

रिफाइंड ऑयल को अगर 200 डिग्री से 250 डिग्री पर लगभग आधे घंटे तक गर्म किया जाए तो ये एचएनआई (HNI) जहरीला पदार्थ बनाने लगता है, जो शरीर में जाकर प्रोटीन एवं अन्य आवश्यक पोषक तत्वों को नुकसान पहुंचा सकता हैं, जिससे लिवर, स्ट्रोक, पार्किंसन, अल्जाइमर जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

रिफाइंड तेल से क्या क्या बीमारी होती है?

एक्सपर्ट का कहना है कि अगर आप नियमित तौर पर रिफाइंड ऑयल का इस्तेमाल करते हैं तो छोटी उम्र में जोड़ों, कमर में दर्द की समस्या हो सकती है। अधिक मात्रा में रिफाइंड ऑयल का सेवन करने से आंख, दिल और दिमाग से संबंधित बीमारियों का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है।

सब्जी में कौन सा तेल खाना चाहिए?

इसलिए भारतीय खाना पकाने के लिए नारियल तेल (विशेषतः शुद्ध नारियल तेल), सरसों का तेल, मूंगफली का तेल या शुद्ध देसी घी का उपयोग कर सकते हैं। जैतून का तेल जो स्वास्थ्यप्रद तेलों में से एक है, सलाद और हल्का भुनने के लिए अच्छा है और बहुत ज्यादा तलने के लिए अनुशंसित नहीं है जो भारतीय शैली के खाना पकाने का एक अभिन्न अंग है।

कौन सा तेल सेहत के लिए अच्छा होता है?

जैतून के तेल में मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड होता है, जो आपको दिल की बीमारियों से बचाता है. ऑलिव आयल का इस्तेमाल करने से खाने नुक़सानदेह फैटी एसिड भी कम होता है. इसलिए खाना पकाने के लिए जैतून का तेल (Olive Oil For Cooking) सबसे सेहतमंद तेल माना जाता है.