रूसो के सामान्य इच्छा का सिद्धांत यथार्थ इच्छाओं को स्वार्थपूर्ण इच्छाओं से भिन्न करने का प्रयास है। Modern Political PhilosophyTeam Manish Verma2022-05-19T13:16:31+00:00 Show
प्रश्न : रूसो के सामान्य इच्छा का सिद्धांत यथार्थ इच्छाओं को स्वार्थपूर्ण इच्छाओं से भिन्न करने का प्रयास है। व्याख्या कीजिए। अथवा रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धांत की विवेचना कीजिए। अथवा व्यक्तिगत इच्छा और सामान्य इच्छा पर रूसो के विचारों का उल्लेख करें। उत्तर- ☞ रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धान्त सामान्य इच्छा का सिद्धान्त रूसो का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक सिद्धान्त है। कुछ विचारक इस सिद्धान्त को सबसे अधिक खतरनाक सिद्धान्त मानते हैं जबकि अन्य विचारकों की राय में सामान्य इच्छा का सिद्धान्त लोकतन्त्र तथा राजनीति दर्शन की आधारशिला है। आस्बर्न के शब्दों में, “सामान्य इच्छा का सिद्धान्त राजनीति दर्शन को न केवल रूसो का मौलिक योगदान है अपितु सबसे महत्वपूर्ण योगदान भी है।” ☞ रूसो की मुख्य समस्या यह है कि किस प्रकार सामाजिक सत्ता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में समन्वय स्थापित किया जाए और किस प्रकार स्वतन्त्रता रूपी अण्डे को तोड़े बिना राज्य रूपी आमलेट को तैयार किया जाए। रूसो ने सामान्य इच्छा के सिद्धान्त द्वारा इस समस्या के समाधान का प्रयास किया है। रूसो द्वारा प्रतिपादित सामाजिक समझौता सिद्धान्त के अनुसार आदिम मनुष्य पशुतुल्य, निष्पाप, निर्दोष तथा स्वाभाविक रूप से अच्छा था। उसका जीवन पशुओं जैसा व एकाकी था। रूसो के अनुसार प्राकृतिक मनुष्य एकाकी, स्वतन्त्र, नैतिक तथा अनैतिक भावनाओं से मुक्त, सम्पत्ति तथा परिवार से रहित आदिम स्वर्णयुग की स्वर्गीय दशा में रहता था। प्राकृतिक अवस्था आदर्श अवस्था थी, लेकिन कृषि के आविष्कार के कारण सम्पत्ति और ‘मरे-तरे’ की भावना का विकास हुआ जिससे प्राकृतिक शान्तिमय जीवन नष्ट हो गया तथा युद्ध, संघर्ष और विनाश का वातावरण उत्पन्न हुआ। इस नोट्स की पूरी PDF डाउनलोड करे – Click here ☞ इस असहनीय स्थिति से छुटकारा पाने के लिए सभी व्यक्ति एक स्थान पर एकत्रित हुए और उनके द्वारा अपने सम्पूर्ण अधिकारों का समर्पण किया गया। समझौते के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण समाज की एक सामान्य इच्छा उत्पन्न होती है और सभी व्यक्ति इस सामान्य इच्छा के अन्तर्गत रहते हुए कार्यरत रहते हैं। दूसरे शब्दों में, रूसो सामाजिक समझौते द्वारा निर्मित राज्य को ‘सामान्य इच्छा‘ (General Will) कहता है। रूसो के सम्पूर्ण दर्शन में सामान्य इच्छा का सिद्धान्त उसका मौलिक योगदान है। रूसो के इस क्रान्तिकारी सिद्धान्त ने राजदर्शन में हलचल उत्पन्न कर दी। जोन्स के शब्दों में, “सामान्य इच्छा का सिद्धान्त रूसो के चिन्तन का न केवल केन्द्र बिन्दु है अपितु यह अत्यन्त मौलिक, दिलचस्प और ऐतिहासिक दृष्टि से राजनीतिक सिद्धान्त को उसका महत्वपूर्ण योगदान है।” शायद ही कोई सिद्धान्त इतना विवादास्पद रहा हो जितना कि सामान्य इच्छा का सिद्धान्त। एक ओर तो लोकतन्त्र के समर्थकों ने मुक्त हृदय से इसका स्वागत कर इसे प्रजातन्त्र का आधार स्तम्भ बनाया और दूसरी ओर निरंकुश शासकों ने इसका दामन पकड़कर जनता पर मनमाने अत्याचार किए। ☞ सामान्य इच्छा क्या है?-सामान्य इच्छा क्या होती है, इसे समझने के लिए रूसो द्वारा प्रतिपादित मानव इच्छा के विश्लेषण को समझना आवश्यक है। मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। किसी न किसी प्रकार के विचार या इच्छाएँ उसके हृदय से सदा उठती रहती हैं। मनुष्य की ये इच्छाएँ सामान्यतः दो प्रकार की होती हैं-प्रथम, यथार्थ तथा द्वितीय, आदर्श इच्छाएँ। ☞ यथार्थ इच्छा (Actual Will)-सामान्यतया यथार्थ इच्छा और आदर्श इच्छा का एक की अर्थ लिया जाता है, परन्तु रूसों के द्वारा इनका प्रयोग विशेष अर्थों में किया गया है। रूसो के अनुसार मनुष्य की यर्थाथ इच्छा स्वार्थ प्रधान होती है। वह मनुष्य की अविवेकपूर्ण संकीर्ण प्रवृत्ति का परिणाम होती है, स्वार्थ तथा वैयक्तिक हित की दृष्टि में रखती है तथा सामाजिक हित का विचार नहीं करती। ☞ उदाहरणार्थ, खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वाले व्यापारी का लक्ष्य केवल लाभ कमाने का विचार होता है, वह इससे समाज को पहुंचने वाली हानि को कभी नहीं देखता। संक्षेप में, यर्थाथ इच्छा संकुचित, अविवेकपूर्ण, अस्थाई और क्षणिक इच्छाएँ होती हैं। डॉ. आशीवार्दम् के शब्दों में, “यह व्यक्ति की समाज विरोधी इच्छा है, क्षणिक एवं तुच्छ इच्छा है। यह संकुचित तथा स्वविरोधी है।” ☞ आदर्श इच्छा (Real Will)- मनुष्य की आदर्श इच्छा उसके व्यापक दृष्टिकोण का परिणाम होती है। यह सामाजिक हित से सम्बन्ध होने के कारण अस्थाई और क्षणिक नहीं होती। यह मनुष्य की बुद्धि के चिन्तन का परिणाम और वैयक्तिक स्वार्थ से रहित होने के कारण व्यक्ति की वास्तविक इच्छा होती है। संक्षेप में, दृष्टिकोण, की व्यापकता, दूरदर्शिता, स्थायित्व, व्यक्ति व समाज के हित का सामंजस्य, पूर्णता व विवेकशीलता व्यक्ति की आदर्श इच्छा की विशेषताएँ होती हैं। डॉ. आर्शीवादम् के शब्दों में, “यह जीवन के समस्त पहलुओं पर व्यापक रूप से दृष्टिपात करती है। यह विवेकपूर्ण इच्छा है। यह शक्ति तथा समाज के सामंजस्य में प्रदर्शित होती है।” इस नोट्स की पूरी PDF डाउनलोड करे – Click here ☞ सामान्य इच्छा (General Will)- समाज के विभिन्न व्यक्तियों की आदर्श इच्छा (Real Will) का सर्वयोग ही सामान्य इच्छा है। रूसो की मान्यता है कि सब नागरिकों की वह इच्छा जिसका उद्देश्य सामान्य हित हो, सामान्य इच्छा कहलाती है। “यह सब व्यक्तियों में से आनी चाहिए तथा सब व्यक्तियों पर लागू होनी चाहिए। (It must both come from all and apply to all)। सामान्य इच्छा की व्याख्या करते हुए बोसांके ने कहा कि “सामान्य इच्छा सम्पूर्ण समाज की सामूहिक अथवा सभी व्यक्तियों की ऐसी इच्छाओं का समूह होता है जिनका लक्ष्य सामान्य हित हो।” ग्रीन के अनुसार यह “सामान्य हित की सामान्य चेतना है।” वेपर के अनुसार “सामान्य इच्छा नागरिकों की वह इच्छा है जिसका लक्ष्य सबकी भलाई है, व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं। यह सबकी भलाई के लिए सबी आवाज है।” अतः सामान्य इच्छा की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। यह एक भाव है जो समझा जा सकता है, किन्तु व्यवहार में नहीं लाया जा सकता। किसी इच्छा को सामान्य इच्छा होने के लिए यह आवश्यक है कि वह सामान्य व्यक्तियों की इच्छा हो और उसका आधार सामान्य हित हो। अर्थात् सामान्य इच्छा के दो अंग हैं-प्रथम, सामान्य व्यक्तियों की इच्छा, और द्वितीय, सामान्य हित पर आधारित विवेकशील इच्छा। ☞ सामान्य इच्छा का निर्माण- प्रत्येक व्यक्ति में दोनों प्रकार की यथार्थ और आदर्श इच्छाएँ होती हैं। समाज का प्रत्येक व्यक्ति हर सार्वजनिक प्रश्न पर अपने ढंग से विचार करता है, परन्तु यदि समाज सभ्य है और उसमें नागरिकता की भावना मौजूद है तो व्यक्तियों की इच्छाओं के स्वार्थपूर्ण तत्व एक-दूसरे को नष्ट कर देते हैं और ऐसा हो जाने पर सामान्य इच्छा बन जाती है। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति में स्वार्थी और सामाजिक इच्छाओं में प्रायः विरोध होता रहता है। जब स्वार्थी इच्छाएँ नष्ट हो जाती हैं तो सामाजिक इच्छाएँ शेष रहती हैं। सभी व्यक्तियों की इन सामाजिक इच्छाओं के मिश्रण से सामान्य इच्छा का निर्माण होता है। सामान्य इच्छा तीन दृष्टियों से सामान्य होनी चाहिए
इस नोट्स की पूरी PDF डाउनलोड करे – Click here ☞ सामान्य इच्छा की विशेषताएँ- रूसो की सामान्य इच्छा सम्बन्धी धारणा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
☞ इसकी आज्ञा का पालन सबके लिए अनिवार्य है। रूसो द्वारा प्रतिपादित सामान्य इच्छा की उपर्युक्त विशेषताओं से ‘सामान्य इच्छा’ अवधारणा की प्रकृति को समझने में सहायता मिलती है। इन विशेषताओं के आधार पर हम निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचते हैं-
इस नोट्स की पूरी PDF डाउनलोड करे – Click here ☞ सामान्य इच्छा और बहुमत-रूसो की सामान्य इच्छा बहुमत से भिन्न है। सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति में संख्या का कोई मूल्य नहीं है। वह किसी एक या कुछ व्यक्तियों की इच्छा भी हो सकती है। यदि समाज का एक बहुसंख्यक वर्ग अपने अनुचित निर्णयों को अल्पसंख्यक वर्ग पर थोपने का प्रयत्न करे तो उसके इस कार्य को समाज की सामान्य इच्छा का प्रतीक नहीं माना जा सकता। ☞ सामान्य इच्छा और सर्वसम्मति- सामान्य इच्छा व सर्वसम्मति में अन्तर करते हुए रूसो ने लिखा है कि प्रथम का लक्ष्य सार्वजनिक होता है जबकि द्वितीय का लक्ष्य वैयक्तिक हित होता है। सर्वसम्मति समाज के सब व्यक्तियों की इच्छा होती है, जबकि सामान्य इच्छा एक व्यक्ति, कुछ व्यक्तियों या सब व्यक्तियों द्वारा व्यक्त इच्छा भी हो सकती है। सर्वसम्मति व्यक्तियों के हितों से भी सम्बन्धित हो सकती है, पर सामान्य इच्छा अनिवार्यतः समस्त समाज के कल्याण से ही सम्बन्धित होती है। ☞ सामान्य इच्छा और लोकमत- सामान्य इच्छा व लोकमत को भी एक नहीं समझना चाहिए। लोकमत का रूप कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है जिसका सम्बन्ध समाज के हित से नहीं हो, पर सामान्य इच्छा सदा समाज के स्थायी हित का ही प्रतिनिधत्वि करती है। समाचार पत्र, रेडियो आदि प्रचार साधनों द्वारा लोकमत को भ्रष्ट किया जा सकता है पर सामान्य इच्छा कभी विकृत नहीं होती। ☞ सामान्य इच्छा सिद्धान्त का महत्व- विभिन्न दोषों के उपरान्त भी रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धान्त राजनीतिक विचारों के क्षेत्र में असाधारण महत्व रखता है |
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