रैदास कबीर और तुलसी के दोहों का कोई 10 दोहा वाचन गतिविधि के लिए सस्वर कंठस्थ करें - raidaas kabeer aur tulasee ke dohon ka koee 10 doha vaachan gatividhi ke lie sasvar kanthasth karen

कबीर के नीति दोहे

साई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय ॥


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥

निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ॥

- कबीरदास

तुलसीदास के नीति दोहे


मुखिया मुख सौं चाहिए, खान-पान को एक ।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक |

आवत ही हर्ष नहीं, नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह ।

तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है, तज दे बचन कठोर II

- तुलसीदास

रहीम के नीति दोहे


तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान |
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहिं सुजान ।

रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय |
सुनि इटलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय ।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग ।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।

- रहीम

तुलसीदास के दोहे कबीर दास के दोहे?

1- तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक। साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक। ... .
2-सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु। ... .
3-आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह। ... .
4- तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर। ... .
5- तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।.

कबीर दास जी के नीति के दोहे?

कबीर दास जी के नीति के दोहे नंबर 3 – बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलियाकोय। जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।। दोहे का अर्थ: इस दोहे में कवि कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

कबीर के 5 दोहे लिख के याद करे?

Top 250+ Kabir Das Ke Dohe In Hindi~ संत कबीर के प्रसिद्द दोहे और उनके अर्थ.
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।.
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।.
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।.
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।.
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।.
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।.

कबीर के दोहे और रहीम के दोहे?

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय।। ... .
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। ... .
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार। ... .
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घट जाहिं। ... .
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं। ... .
रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ, ... .
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।.