Solution : (i) इसमें सर्वोच्च सत्ता केन्द्रीय अधिकार तथा उसकी विभिन्न आनुषंगिक इकाइयों के बीच बंट जाती है। <br> (ii) विभिन्न स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं। <br>(iii) संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। <br> (iv) संघीय शासन-व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य हैं-देश की एकता की सुरक्षा करना तथा उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना।
लिखित संविधान - किसी भी संघ का सबसे प्रमुख लक्षण होता है। कि उनके पास एक लिखित संविधान हो जिससे कि जरूरत पड़ने पर केन्द्र तथा राज्य सरकार मार्ग दर्शन प्राप्त कर सकें। भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है और दुनिया का सबसे विस्तृत सं विधान है। कठोर संविधान - संघीय संविधान केवल लिखित ही नहीं है बल्कि कठोर भी होता है। संविधान में महत्वपूर्ण संशोधनों के लिए संसद की स्वीकृति के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधान मण्डलों की अनुमति भी आवश्यक हैं। शक्तियों का विभाजन - हमारे संविधान में शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है विधायी शक्तियों को तीन सूचियों में बांटा गया है- संघसूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची। संघ सूची में 97 राष्ट्रीय महत्व के विषयों का उल्लेख किया गया है। जिसके अन्तर्गत रक्षा, रेल्वे, डाक एवं तार आदि विषय आते है राज्य सूची में 66 स्थानीय महत्व के विषय जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस आदि आते है। समवर्ती सूची में केन्द्र तथा राज्य दोनों से संबंधित 47 महत्वपूर्ण विषय जैसे बिजली, मजदूर संगठन खाद्य पदार्थों में मिलावट आदि आते है। द्वैध शासन प्रणाली - संघीय शासन में दो तरह की सरकारें होती है एक राष्ट्रीय सरकार और दूसरे उन राज्यों की सरकारें जिनके मिलने से संघ का निर्माण हुआ हो। दो तरह के विधानमण्डल है आरै दो प्रकार के पश््राासन पाये जाते है। संविधान की सर्वोच्चता - भारत में न तो केन्दीय सरकार की सर्वोच्चता है और न राज्य सरकारें। संविधान ही सर्वोच्च है। क्योंकि केन्द्र व राज्य दोनों को संविधान द्वारा ही शक्तियां प्राप्त होती है। उच्चतम न्यायालय की विशेष स्थिति - संघ के अन्य लक्षणों में एक अन्य महत्वपूर्ण लक्षण है कि उसके पास् एक स्वतंत्र न्यायपालिका हो जो संविधान की व्यवस्था करें। केन्द्र तथा राज्य के बीच उत्पन्न विवादों को सुलझाना उच्चतम न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार हैं। यदि केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा पारित कोई कानून संविधान के किसी किसी प्रावधान का उल्लंधन करता है तो सर्वोच्च न्यायालय उसे असंर्वेधानिक धोषित कर सकता है। भारतीय संघवाद का स्वरूपभारत में संघीय शासन की स्थापना की गई है लेकिन संविधान में कई ऐसी बातें भी है जो अन्य संघीय संविधानों से भिन्न है। कुछ विद्वानों ने यहां तक कहा कि- ‘‘भारत एक ऐसा संघीय राज्य की अपेक्षा जिसमें एकात्म तत्व गौण हो एक ऐसा एकात्मक राज्य है जिसमें संघीय तत्व गौण है।’’ संविधान की आत्मा एकात्मक है यहां हम उन बातों की चर्चा करेंगे जिनके कारण भारत का संविधान एकात्मक सा दिखता हैं।
संविधान मूलतया संधात्मक है यह ठीक है कि संविधान के कई ऐसे तत्व है जो यह दर्शाता है कि संविधान की आत्मा एकात्मक है फिर भी हम इस विचार से सहमत नहीं है कि संविधान संधात्मक है ही नहीं। कारणों से भारत को हम संघीय राज्यों की श्रेणी में रखेंगे-
सारांश में यह कहा जा सकता है कि संधीय व्यवस्था में केन्द्र और राज्य एक दूसरें के विरोधी नहीं होते। दोनों का लक्ष्य जनकल्याण को बढ़ावा देना है। वास्तव में केन्द्र और राज्यों के बीच सहयोग की आवश्यकता है। इसीलिए भारतीय संघवाद ने सहकारी संघवाद का रूप धारण कर लिया है। समूचे भारत के लिए एक चुनाव आयोग है। राष्ट्रीय विकास परिषद् के फैसले केन्द्र को ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों को भी मानने पड़ते है। आपातकालीन प्रावधान (व्यवस्था)भारतीय संविधान द्वारा आकस्मिक आपातो तथा संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए राष्ट्रपति को अपरिमित शक्तियां दी गयी हैं। संविधान के अनुच्छेद 352 से 360 तक तीनप्रकार के संकटों का अनुमान किया गया है
आपात घोषणा का राज्यों की स्वायत्तता पर प्रभाव -
आपात शक्तियों का मौलिक अधिकरों पर प्रभाव -
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