संविधान के मूलभूत सिद्धांत कौन से हैं? - sanvidhaan ke moolabhoot siddhaant kaun se hain?

भारतीय संविधान की मूल संरचना (या सिद्धांत), केवल संवैधानिक संशोधनों पर लागू होती है जो यह बताती है कि संसद, भारतीय संविधानके बुनियादी ढांचे को नष्ट या बदल नहीं सकती है। संविधान की मूल संरचना (सिद्धांत) के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय के कई महत्वपूर्ण निर्णय रहे हैं। संविधान, संसद और राज्य विधान मंडलों या विधानसभाओं को उनके संबंधित क्षेत्राधिकार के भीतर कानून बनाने का अधिकार देता है।

संविधान, संसद और राज्य विधान मंडलों या विधानसभाओं को उनके संबंधित क्षेत्राधिकार के भीतर कानून बनाने का अधिकार देता है। संविधान में संशोधन करने के लिए बिल संसद में ही पेश किया जा सकता है, लेकिन यह शक्ति पूर्ण नहीं है। यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून संविधान के साथ न्यायसंगत नहीं है तो उसके पास (सुप्रीम कोर्ट) इसे अमान्य घोषित करने की शक्ति है। इस प्रकार, मूल संविधान के आदर्शों और दर्शनों की रक्षा करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना सिद्धांत को निर्धारित किया है। सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान के बुनियादी ढांचे में परिवर्तन या उसे नष्ट नहीं कर सकती है।

संविधान के मूलभूत सिद्धांत कौन से हैं? - sanvidhaan ke moolabhoot siddhaant kaun se hain?
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  1. प्रस्तावना (Preamble) में संविधान के स्रोत का उल्लेख है और कहा गया है: “हम, भारत के लोग …..संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं.” इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि संविधान का निर्माण भारतीय जनता के द्वारा किया है. इस प्रकार भारत की जनता ही समस्त राजनीतिक सत्ता का स्रोत है. यह सच है कि समस्त भारतीय जनता ने इसका निर्माण नहीं किया है, फिर भी यह एक सच्चाई है कि इसके निर्माता जनता के प्रतिनिधि थे. इन प्रतिनिधियों ने यह स्वीकार किया कि सम्पूर्ण राज्यशक्ति का मूल स्रोत भारतीय जनता में निहित है. 1950 ई. में “गोपालन बनाम मद्रास राज्य (A.K. Gopalan vs The State Of Madras)” नामक मुक़दमे में सर्वोच्च न्यायालय ने इसी आशय का निर्णय दिया और इसमें स्पष्ट किया कि भारतीय जनता ने अपनी सर्वोच्च इच्छा (Supreme Will) को व्यक्त करते हुए लोकतंत्रात्मक आदर्श अपनाया है.
  2. प्रस्तावना भारतीय संविधान के उन उच्च आदर्शों का परिचय देती है जिन्हें भारतीय जनता ने शासन के माध्यम से लागू करने का निर्णय किया है. इन आदर्शों का उद्देश्य न्याय, स्वंतंत्रता, समानता, बंधुत्व या राष्ट्र की एकता एवं अखंडता स्थापित करना है.
  3. प्रस्तावना भारत संघ की संप्रभुता तथा उसके लोकतंत्रात्मक स्वरूप की आधारशिला है. प्रस्तावना (Preamble) में कहा गया है कि भारत ने इस संविधान द्वारा एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की है.
  4. संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़ दिया गया है. इस प्रकार भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है. इसका अभिप्राय यह हुआ कि संविधान सभी नागरिकों को विश्वास, धर्म तथा उपासना-पद्धति की स्वतंत्रता प्रदान करता है.
  5. पाँचवें, प्रस्तावना द्वारा भारत को एक “समाजवादी” राज्य घोषित किया गया है. 42वें संशोधन अधिनियम के द्वारा ही प्रस्तावना में यह शब्द जोड़ा गया है.

प्रस्तावना के मुख्य शब्द –
प्रस्तावना में कुछ शब्दों का उल्लेख किय गया है। ये शब्द हैं – संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य, न्याय, स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व

1. संप्रभुता

संप्रभु शब्द का आशय है कि न तो भारत किसी अन्य देश पर निर्भर है, न किसी देश का डोमिनियन है, इसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं है, और वह अपने मामलों (आंतरिक व बाहरी) का निवारण करने के लिए स्वतंत्र है।

2. समाजवाद

वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए इस शब्द का आशय भारतीय समाजवाद लोकतांत्रिक समाजवाद है जो मिश्रित अर्थव्यवस्था में आस्था रखता है। भारतीय समाजवाद मार्क्सवाद और गांधीवाद का मिला जुला रूप है, जिसमें गांधीवादी समाजवाद की तरफ ज्यादा झुकाव है।

3. धर्मनिरपेक्ष

धर्मनिरपेक्ष शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया। धर्मनिरपेक्ष शब्द का आशय है कि राज्य सभी धर्मों का समान रूप से रक्षा करेेगा व स्वयं किसी धर्म को राज्य का धर्म नहीं मानेगा।

4. लोकतांत्रिक

भारतीय संविधान में प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था है। प्रस्तावना में लोकतांत्रिक शब्द का वृहद अर्थों मेंं प्रयोग हुआ है जिसमें न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है। भारतीय लोकतंत्र में सर्वोच्च शक्ति यहां की जनता में निहित है।

5. गणतंत्र

इसका आशय है कि देश का प्रमुख अर्थात राष्ट्रपति चुनाव के जरिए आता है और निश्चित समय के लिए चुना जाता है। राजनीतिक संप्रभुता लोगों के हाथों में होती है और कोई विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होता है।

6. न्याय

प्रस्तावना में न्याय तीन भिन्न रूपों मेंं शामिल है- सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक। इनकी सुरक्षा मौलिक अधिकार और नीति निदेशक सिद्धांतों के उपबंधों के जरिए की जाती है। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के इन तत्वों को रूसी क्रांति (1917) से लिया गया है।

7. स्वतंत्रता

स्वतंत्रता का अर्थ है – लोगों की गतिविधियों पर किसी प्रकार की रोकटोक की अनुपस्थिति तथा साथ ही व्यक्ति के विकास के लिए समान अवसर प्रदान करना। हमारी प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति (1789 – 1799) से लिया गया है।

8. समता

समता का अर्थ समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकार की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करना है।

बुनियादी संरचना के विकास

"बेसिक स्ट्रक्चर (बुनियादी ढांचा)" शब्द का उल्लेख भारत के संविधान में नहीं किया गया है। लोगों के बुनियादी अधिकारों और संविधान के आदर्शों और दर्शन की रक्षा के लिए समय-समय पर न्यायपालिका के हस्तक्षेप के साथ यह अवधारणा धीरे-धीरे विकसित हुयी।

  1. पहला संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 को भारत सरकार बनाम शंकरी प्रसाद मामले में चुनौती दी गई थी। संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी गयी थी कि यह संविधान के भाग III का उल्लंघन करता है और इसलिए इसे अवैध घोषित किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति है। इस तरह का निर्णय न्यायालय में सज्जन सिहं बनाम राजस्थान सरकार के मामले में दिया था।
  2. 1967 में गोलक नाथ बनाम पंजाब सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को खारिज कर दिया। सुप्रीम ने कहा संसद के पास संसद के पास संविधान के भाग III में संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि मौलिक अधिकार श्रेष्ठ और स्थिर हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अनुच्छेद 368, केवल संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया की अनुमति देता है और संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन के लिए संसद को पूर्ण शक्तियां नहीं देता है।
  3. 1971 में संसद ने 24वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित कर दिया था। अधिनियम ने मौलिक अधिकारों सहित संविधान में कोई भी परिवर्तन करने के लिए संसद को पूर्ण शक्ति दे दी थी। इसने यह भी सुनिश्चत किया गया कि सभी संवैधानिक संशोधन बिलों पर राष्ट्रपति की सहमति जरूरी होगी।

1973 में, केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार के मामले मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने गोलकनाथ मामले में अपने निर्णय की समीक्षा द्वारा 24 वें संविधान संशोधन अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट कहा कि संसद को संविधान के किसी भी प्रावधान में संशोधन करने की शक्ति है लेकिन ऐसा करते समय संविधान का मूल ढांचा बना रहना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना की कोई भी स्पष्ट परिभाषा नहीं दी। यह कहा कि "संविधान के मूल ढांचे को एक संवैधानिक संशोधन द्वारा भी निरस्त नहीं किया जा सकता है"। फैसले में न्यायाधीशों द्वारा सूचीबद्ध की गयी संविधान की कुछ बुनियादी विशेषताएं निम्नवत् हैं:

संविधान की बुनियादी विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  1. संविधान की सर्वोच्चता
  2. सरकार की रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक प्रपत्र
  3. संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र
  4. संविधान का संघीय चरित्र
  5. शक्तिओं का विभाजन
  6. एकता और भारत की संप्रभुता
  7. व्यक्तिगत स्वतंत्रता

सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले

मामला सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
1. शंकरी प्रसाद बनाम भारत सरकार, 1951 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय- संसद को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति है
2. सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार, 1965 संसद को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति है
3. गोलक नाथ बनाम पंजाब सरकार, 1967 संसद को संविधान के भाग III (मौलिक अधिकारों) में संशोधन करने का अधिकार नहीं है।
4. केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार, 1971 संसद के किसी भी प्रावधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन बुनियादी संरचना को कमजोर नहीं कर सकती है।
5. इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण, 1975 सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना की अपनी अवधारणा की भी पुष्टि की
6. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत सरकार, 1980 बुनियादी विशेषताओं में 'न्यायिक समीक्षा' और 'मौलिक अधिकारों तथा निर्देशक सिद्धांतों के बीच संतुलन' को जोड़कर बुनियादी ढांचे की अवधारणा को आगे विकसित किया गया।
7. कीहोतो होल्लोहन बनाम जाचील्लहु, 1992 'स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव' को बुनियादी विशेषताओं में जोड़ा गया।
8. इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार, 1992 'कानून का शासन, बुनियादी विशेषताओं में जोड़ा गया।
9. एस.आर बोम्मई बनाम भारत सरकार, 1994 संघीय ढांचे, भारत की एकता और अखंडता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, सामाजिक न्याय और न्यायिक समीक्षा को बुनियादी विशेषताओं के रूप में दोहराया गया

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा है. मात्र प्रस्तावना के अवलोकन से ही स्पष्ट हो जाता है कि स्वतंत्र भारत के नागरिकों द्वारा किस तरह के संविधान का निर्माण किया गया है.

संविधान के मूलभूत चार सिद्धांत कौन कौन से हैं?

ये अनुच्छेद संविधान के आवश्यक तत्व माने जाते हैं, जिसे भारतीय संविधान सभा द्वारा 1947 से 1949 के बीच विकसित किया गया था।.
2.1 समानता का अधिकार.
2.2 स्वतंत्रता का अधिकार.
2.3 शोषण के खिलाफ अधिकार.
2.4 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार.
2.5 सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार.
2.6 संवैधानिक उपचारों का अधिकार.

हमारे संविधान के मूल सिद्धांत क्या है?

निष्कर्ष यह कुछ न्यायिक घोषणाओं से प्रकट हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी ढांचे के नाम पर बहुत अधिक शक्ति ग्रहण की है। मूल संरचना सिद्धांत संविधान के जीवित सिद्धांतों को एक ऊर्जा देने का एक तरीका है, जो "कानून का नियम" है और यह दर्शाता है कि कुछ भी संविधान से ऊपर नहीं है और संविधान सर्वोच्च है।

भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषता क्या है?

भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका का प्रावधान है। भारत में संविधान की सर्वोच्चता स्थापित की गई है। भारत में संसदीय संप्रभुता और पंथनिरपेक्ष राज्य का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा, भारतीय संविधान मौलिक कर्तव्य, नीति निर्देशक तत्व और कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने के लिए भी संकल्पित है।

भारतीय संविधान में कितने सिद्धांत?

मूल रूप से भारतीय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ थी, किंतु विभिन्न संशोधनों के परिणामस्वरूप वर्तमान में इसमें कुल 470 अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियां हैं। संविधान के तीसरे भाग में 6 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।