भारतीय संसदीय शासन प्रणाली में संयुक्त बैठक को लेकर कई बार सवाल किए जाते रहे हैं। आखिर यह संयुक्त बैठक क्या है ?क्या संयुक्त बैठक का उल्लेख संविधान में है? यह कब और क्यों बनाई जाती है? ऐसे ही सवालों के बारे में सही और तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त करने के लिए यह आलेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। Show
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 108 में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाने का प्रावधान किया गया है। इस संबंध में कहा जा सकता है कि संयुक्त बैठक का प्रावधान एक संवैधानिक प्रावधान है।यह राष्ट्रपति द्वारा बुलाई जाती है/अधिसूचना जारी की जाती है। ज्ञात हो कि संयुक्त बैठक बुलाए जाने का अधिकार राष्ट्रपति को होता है लेकिन उसे स्थगित किए जाने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष को होता है। संयुक्त बैठक के नियम 4 के अंतर्गत लोकसभा अध्यक्ष द्वारा यह निर्धारित किया जाता है की संयुक्त बैठक किस समय स्थगित की जाएगी तथा किस दिन और किस समय अथवा उसी दिन के किस भाग तक के लिए इसे स्थगित की जाएगी । ध्यातव्य • ज्ञात हो कि संविधान में इस प्रकार का प्रावधान भारत शासन अधिनियम 1935 की धारा 31 के तहत किया गया है।
किसी भी साधारण विधेयक को लेकर दोनों सदनों के बीच अगर मतभेद है तथा एक सदन ने विधेयक को पारित कर दिया हो और उसके पश्चात दूसरा सदन उसे पारित न करें और 6 माह का समय निकल जाए या विधेयक एक सदन द्वारा पारित करने के पश्चात दूसरे सदन ने उसे अस्वीकार कर दिया हो,तो ऐसी परिस्थिति में संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत राष्ट्रपति संयुक्त बैठक बुला सकता है। ध्यान योग्य बात है कि संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त बैठक केवल साधारण विधेयक के संबंध में ही बुलाया जा सकता है,संविधान संशोधन विधेयक और धन विधेयक के संबंध में नहीं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 118(3) के अनुसार प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति से परामर्श करने के पश्चात दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में प्रक्रिया संबंधित नियम निर्माण कर सकते हैं। संयुक्त बैठक का नियम व समय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के परामर्श तथा लोकसभा अध्यक्ष की सहमति से निर्धारित किया जाता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 118( 4 )के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष और उसकी अनुपस्थिति में लोकसभा उपाध्यक्ष करता है और अगर वह भी अनुपस्थित है तो राज्यसभा के उपसभापति संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करेगा। जब कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाए कि राज्यसभा का उपसभापति भी अनुपस्थित है, तो ऐसी परिस्थितियों में ऐसा व्यक्ति संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करेगा जो उपस्थित सदस्यों द्वारा निर्धारित किया जाए। ध्यातव्य: सन 2002 में जब अब तक तीसरी बार संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आयोजित की गई थी उस दौरान तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष जी.एम.सी बालयोगी का पद रिक्त होने की वजह से तत्कालीन उपाध्यक्ष ने संयुक्त बैठक की अध्यक्षता की थी।
संयुक्त बैठक के दौरान किसी भी विधेयक के संबंध में मतदान होने पर सामान्यतया लोकसभा की ही विजय होती है क्योंकि लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्य सभा के सदस्यों की संख्या से बहुत अधिक है। संयुक्त बैठक के दौरान मतदान में उपस्थित सदस्यों का बहुमत से पारित होने पर उसे पास/पारित माना जाता है ।यदि जब कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए कि पक्ष और विपक्ष दोनों में बराबर बराबर मत हो तो ऐसी परिस्थिति में लोकसभा अध्यक्ष या उस समय संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति अपना निर्णायक मत दे सकता है। ध्यान देने योग्य बात है की सामान्यतया लोकसभा अध्यक्ष को मतदान करने का अधिकार नहीं होता है। ज्ञात हो कि संयुक्त बैठक में निर्णायक मत का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 108 या संविधान के अनुच्छेद 118 अथवा संसद के सदनों संबंधी नियम 1952 में न होकर अनुच्छेद 100(1) में है
भारत के संसदीय इतिहास में अब तक संयुक्त बैठक तीन बार बुलाई जा चुकी है। यह संयुक्त बैठक कब और किस मामले में बुलाई गई थी आइए जानते है इन के बारे में..….। • सबसे पहली बार पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रीत्व कार्यकाल के दौरान 1961 में दहेज प्रतिषेध विधायक 1959 पर चर्चा करने के लिए संयुक्त बैठक बुलाई गई थी। • पहले गैर कांग्रेसी प्रधान मंत्री मोरार जी दैसाई के समय दूसरी बार 1977 में बैंक कार्य सेवा आयोग विधेयक 1977 पर विचार करने के लिए यह बुलाई गई थी। • तीसरी बार सन 2002 में जब देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई थे उस दौरान आतंकवाद निवारण विधेयक 2002 पर चर्चा करने के लिए अब तक अंतिम बार संयुक्त बैठक बुलाई गई थी। Post navigationभारत के वर्तमान उपराष्ट्रपति कौन है?उपराष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है?अब तक के उपराष्ट्रपतियों के नाम की सूची। भारत का राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों का सत्र बुला सकता है, दोनों सदनों का सत्रावसान कर सकता है तथा लोकसभा का (राज्यसभा का विघटन नहीं होता है) विघटन कर सकता है। संविधान में यह व्यवस्था की गयी है कि राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को ऐसे अंतराल पर आहूत करेगा कि एक सत्र की अंतिम बैठक और उसके बाद के सत्र की पहली बैठक के लिए नियत तिथि के बीच छह मास का अन्तराल नहीं होना चाहिए। इसका परिणाम यह है कि संसद की बैठक वर्ष में कम से कम दो बार होनी चाहिए, और दोनों बैठकों के बीच के समय को 'दीर्घावकाश’ कहा जाता है। संसद के सदनों का स्थगन लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्य सभा के सभापति द्वारा किया जाता है। यह कुछ घंटे, दिन या सप्ताह की अवधि का हो सकता है। लोकसभा के विघटन का प्रभाव- लोकसभा के विघटन के निम्नलिखित प्रभाव होते है-
संसद सदस्यों द्वारा स्थान की रिक्ति भारत के संविधान में तथा संसद द्वारा निर्मित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 द्वारा संसद सदस्यों द्वारा स्थान की रिक्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं-
संसद सदस्यों द्वारा शपथ ग्रहण संसद सदस्यों को अपना स्थान ग्रहण करने के पूर्व राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ-ग्रहण करना पड़ता है। कोई व्यक्ति संसद सदस्य नहीं बन सकता जबतक कि वह शपथ ग्रहण न कर ले। यदि किसी व्यक्ति ने संसद सदस्य के रूप में शपथ नहीं ग्रहण की है या संसद की सदस्यता के लिए आयोग्य घोषित किया गया है या संसद से निष्कासित कर दिया गया है, तो वह संसद की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकता और यदि वह संसद की कार्यवाही में भाग लेता है, तो वह प्रत्येक दिन के लिए, जब वह संसद की कार्यवाही में भाग लेता है, जुर्माने का दायी होगा। संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते
संसद के सदनों में गणपूर्ति
संसद का संयुक्त अधिवेशन भारत के संविधान के अनुसार संसद का संयुक्त अधिवेशन निम्नलिखित स्थितियों में बुलाया जाता है-
राष्ट्रपति दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर उनकी संयुक्त बैठक आहूत करने के अपने आशय की अधिसूचना देता है। यदि विधेयक लोकसभा का विघटन होने के कारण व्यपगत हो गया है, तो राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना नहीं निकाली जायेगी। किंतु यदि राष्ट्रपति ने संयुक्त बैठक करने के अपने आशय की अधिसूचना जारी कर दी है, तो लोकसभा के पश्चातवर्ती विघटन से संयुक्त बैठक में कोई बाधा नहीं आयेगी। ऐसी संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है। अनुच्छेद 118 (4) के अनुसार लोकसभा के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में वह व्यक्ति पीठासीन होगा जो राष्ट्रपति द्वारा बनायी गयी प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित हो। यह नियम राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के अध्यक्ष की अनुपस्थिति के दौरान लोकसभा का उपाध्यक्ष या यदि वह भी अनुपस्थित है तो राज्य सभा का उपसभापति या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा अन्य व्यक्ति पीठासीन (अध्यक्ष) होगा, (जो उस बैठक में उपस्थित सदस्यों द्वारा अवधारित किया जाये) लोकसभा का अध्यक्ष जो कि संयुक्त बैठक या पीठासीन होता है, ही संयुक्त बैठक प्रक्रिया ऐसे रूप, भेदों तथा परिवर्तनों के साथ लागू करता है जैसा वह आवश्यक अथवा उचित समझता है। लोकसभा का महासचिव प्रत्येक संयुक्त बैठक की कार्यवाही का संपूर्ण दस्तावेज तैयार करता है तथा उसे यथा शीघ्र ऐसे रूप में तथा ऐसी नीति से प्रकाशित करता है जैसा कि अध्यक्ष समय-समय पर निर्देश देता है। संसद के संयुक्त अधिवेशन के लिए गणपूर्ति दोनों सदनों के सदस्यों की कुल संख्या का 1/10 वां भाग होती है । अनुच्छेद 108 द्वारा विहित संयुक्त बैठक की प्रक्रिया केवल सामान्य विधायन तक की सीमित है, संविधान संशोधन के संबंध में यह लागू नहीं होती । ध्यातब्य है कि संविधान संशोधन (अनुच्छेद 368) विधेयक को प्रत्येक सदन द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से पारित किया जाना आवश्यक होता है। अभी तक केवल 3 बार संसद का संयुक्त अधिवेशन निम्नलिखित विषयों में बुलाया गया है - 1. 1961 में दहेज प्रतिबंध विधेयक के लिए पं.जवाहरलाल नेहरू के समय 2. 1978 में बैकिंग सेवा आयोग विधेयक के लिए मोरारजी देसाई के समय 3. 2002 में आतंकवाद निवारक विधेयक(पोटा) अटलबिहारी वाजपेयी के समय संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा संसद की कार्यवाही हिन्दी या अंग्रेजी में होगी लेकिन लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकता है। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता कौन करेंगे?दोनों सदनों की ऐसी बैठक का पीठासीन अधिकारी लोकसभा का अध्यक्ष होता है।
संसद के दोनों सदनों को कौन बुला सकता है?संसद (पार्लियामेंट) भारत का सर्वोच्च विधायक निकाय है। यह उचित व्यवस्था है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन- लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद) होते हैं। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या सुरक्षित करने या लोकसभा को स्पष्ट करने की शक्ति है।
संयुक्त बैठक कब होती है?पहली संयुक्त बैठक दहेज निषेध विधेयक, 1959 में कतिपय संशोधनों के संबंध में दोनों सदनों के बीच असहमति होने की वजह से 6 और 9 मई, 1961 में आयोजित की गयी। दूसरी संयुक्त बैठक बैंककारी सेवा आयोग (निरसन) विधेयक, 1977 को राज्य सभा द्वारा अस्वीकार किए जाने के बाद 16 मई, 1978 को हुई।
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