संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख अंग कौन सा है और क्यों? - sanyukt raashtr sangh ka pramukh ang kaun sa hai aur kyon?

संयुक्त राष्ट्रसंघ की सबसे अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण और केन्द्रीय संस्था महासभा है। इसे साधारण सभा भी कहते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य – राष्ट्र इस सभा के सदस्य होते हैं। साधारण सभा के सदस्यों में समानता का सिद्धांत स्वीकार किया गया है। अतः प्रत्येक सदस्य राज्य को 5 प्रतिनिधि तथा 5 वैकल्पिक प्रतिनिधि भेजने का अधिकार है। किन्तु एक राष्ट्र को एक ही मत देने का अधिकार है। इसका अधिवेशन वर्ष में एक बार सितंबर महीने के तीसरे बृहस्पतिवार से प्रारंभ होता है। किन्तु आवश्यकता पङने पर इसका विशेष अधिवेशन महामंत्री, सुरक्षा परिषद की अथवा संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्यों के बहुमत की प्रार्थना पर बुला सकता है। विशेष अधिवेशन 15 दिन की पूर्व सूचना देकर आमंत्रित किया जाता है। महासभा अपने अधिवेशन के आरंभ में ही एक अध्यक्ष एवं सात उपाध्यक्ष निर्वाचित करती है। जो अधिवेशन की समाप्ति तक रहते हैं। इस अधिवेशन में कोई सदस्य राष्ट्र चार्टर की सीमाओं के अन्तर्गत किसी विषय को विचारार्थ प्रस्तुत कर सकता है, किन्तु वह निजी अथवा आंतरिक विषयों से संबंधित नहीं होना चाहिये।

क.) महासभा की शक्तियाँ एवं कार्य

संयुक्त राष्ट्रसंघ के संविधान की धारा 10 से 17 तक महासभा के कार्यों का विवरण है। तद्नुसार महासभा अपने अधिवेशनों में किसी भी ऐसे विषय पर विचार-विमर्श कर सकती है, जो इसके क्षेत्र में आता है और उन प्रश्नों को आवश्यकतानुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्यों के पास अथवा सुरक्षा परिषद या दोनों के समक्ष भी उपस्थित कर सकती है। विश्व शांति और सुरक्षा से संबंधित प्रश्न पर विचार करने के लिये यह सभा पूर्ण रूप से अधिकारिणी है। ऐसा प्रश्न सदस्य राष्ट्र की ओर से सुरक्षा परिषद द्वारा अथवा गैर सदस्य राष्ट्र द्वारा भी प्रस्तुत किया जा सकता है। यद्यपि यह सभा विश्व की सार्वभौम संविधान सभा नहीं है, किन्तु फिर भी इसके द्वारा विचार किया हुआ विषय विश्व के जनमत को नैतिक रूप से प्रभावित करने के लिये पर्याप्त है।यही महासभा, स्थिति की गंभीरता को देखते हुए यदि विश्व शांति को खतरा उत्पन्न होने की संभावना हो तो सुरक्षा परिषद का ध्यान भी आकर्षित कर सकती है और अन्य वैधानिक साधनों द्वारा पुनः संतुलन के लिये प्रयत्न कर सकती है। धारा 13 के अनुसार महासभा को निम्नलिखित विशेष कार्य करने को कहा गया है –

  • शांति और सुरक्षा की स्थापना के लिये अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों पर विचार करना तथा अपने सुझाव देना।
  • निःशस्रीकरण तथा इससे संबंधित समस्याओं पर शांति और सुरक्षा की दृष्टि से विचार करना।
  • विश्व के राजनैतिक क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन देना।
  • विश्व के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शिक्षा संबंधी तथा स्वास्थ्य के क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि करना।
  • समस्त मानव मात्र के लिये जाति, लिंग, भाषा या धर्म का भेद न मानते हुये मानव अधिकार और मौलिक स्वतंत्रताओं की प्राप्ति में सहायता करना।
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत संपूर्ण विभागों एवं संस्थाओं द्वारा वर्ष भर में किए हुए कार्यों का विवरण एवं प्रतिवेदन प्राप्त करना और उस पर विचार करना।
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ का वार्षिक आय-व्यय विवरण (बजट) पर विचार करना एवं स्वीकृति देना तथा सहायक संस्थाओं की आर्थिक स्थिति पर विचार करना।
  • निर्वाचन संबंधी कार्य करना। इस कार्य के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का निर्वाचन करना, सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों को निर्वाचित करना, संरक्षण परिषद के कुछ सदस्य तथा आर्थिक एवं सामाजिक परिषद का निर्वाचन करना आदि मुख्य निर्वाचन कार्य हैं।
  • महासभा ही सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महामंत्री की नियुक्ति करती है तथा सचिवालय के सदस्यों की नियुक्ति के नियम बनाती है और संघ के किसी ऐसे सदस्य को, जो चार्टर में प्रतिपादित सिद्धांतों का उल्लंघन करता हो, निष्कासित कर सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ में नए सदस्यों को प्रवेश देना।
  • आवश्यकतानुसार नई संस्थाओं को स्थापित करना।

ख.) मतदान पद्धति –

संयुक्त राष्ट्रसंघ की इस महासभा में साधारणतया महत्त्वपूर्म प्रश्नों पर उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से निर्णय किए जाते हैं। प्रत्येक राष्ट्र को केवल एक ही मत का अधिकार स्वीकार किया गया है। इस संबंध में निम्नलिखित प्रश्नों को महत्त्वपूर्ण माना गया है-

  • अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की व्यवस्था संबंधी सिफारिश।
  • सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों का चुनाव।
  • आर्थिक व सामाजिक परिषद के सदस्यों का चुनाव।
  • संरक्षण परिषद के कुछ सदस्यों का चुनाव।
  • नए राष्ट्रों को सदस्यता के लिये स्वीकार करना।
  • सदस्यता के अधिकारों और विशेष सुविधाओं को निलंबित करना।

इस प्रकार महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को छोङकर अन्य सभी विषयों पर उपस्थित सदस्यों में मतदान करने वालों के साधारण बहुमत द्वारा निर्णय लिये जाते हैं। वह सदस्य राष्ट्र जो अपना वार्षिक शुल्क संगठन में नहीं दे पाता, मताधिकार से वंचित रहता है।

ग.) कार्य पद्धति

संयुक्त पद्धति की यह महासभा अपना अधिकांश कार्य समितियों द्वारा सम्पादित करती है। ये समितियाँ मुख्य रूप से चार प्रकार की हैं –

  1. प्रमुख समितियाँ
  2. प्रक्रिया समितियाँ
  3. स्थायी समितियाँ
  4. तदर्थ समितियाँ

प्रमुख समितियों की संख्या छः है-

  1. प्रथम समिति का मुख्य कार्य राजनैतिक एवं सुरक्षा के क्षेत्र से संबंधित है, जिसमें शस्र-नियंत्रण भी सम्मिलित है।
  2. दूसरी समिति – आर्थिक एवं वित्त संबंधी विषय ।
  3. तीसरी समिति – सामाजिक, मानवीय तथा सांस्कृतिक विषय।
  4. चौथी समिति – संरक्षण तथा गैर – स्वतंत्र क्षेत्रीय विषय।
  5. पाँचवी समिति – प्रशासनीय एवं आय-व्यय वितरण संबंधी विषय तथा
  6. छठी समिति – विधि से संबंधित विषय।

ये समितियाँ कार्यसूची में आए प्रश्नों पर विचार करती हैं और अपनी सिफारिशें सभा के पास भेजती हैं, जो प्रमुख सभा के अधिवेशन में प्रस्तुत की जाती हैं। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को इन प्रमुख समितियों में प्रतिनिधित्व पाने का अधिकार है। प्रक्रिया समितियों का काम महासभा के कार्य, संगठन तथा विभिन्न समितियों के कार्यों में समन्वय स्थापित करना है। स्थायी समितियाँ मुख्य रूप से उन प्रश्नों को हल करने के लिये बनाई जाती हैं जो महासभा के सामने किसी न किसी रूप में चलते ही रहते हैं।

इस प्रकार महासभा अणुबम से लेकर मानवीय कल्याण, भोजन, कपङा और आवास स्थान, तक की सभी समस्याओं पर विचार करती है। इसका क्षेत्राधिकार अधिक व्यापक होते हुए भी सुरक्षा परिषद की तुलना में अधिक प्रभावशाली नहीं है।

सुरक्षा परिषद

संघ के चार्टर के पाँचवें अध्याय में धारा 23 से 32 तक सुरक्षा परिषद के संगठन, कार्यों, अधिकारों तथा मतदान पद्धति का वर्णन है। सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे शक्तिशाली और सक्रिय अंग है । आरंभ में इसके कुल 11 सदस्य थे। (अब अस्थायी सदस्यों की संख्या बढा दी गयी है। पहले अस्थायी सदस्यों की संख्या छः थी, किन्तु दिसंबर, 1965 में अस्थायी सदस्यों की संख्या 10 कर दी गयी), इसमें चीन, फ्रांस, इंंग्लैण्ड, रूस और अमेरिका, ये पाँचों स्थायी सदस्य हैं। अस्थायी सदस्य दो वर्ष के लिये चुने जाते हैं। यह चुनाव महासभा द्वारा विभिन्न सदस्य राष्ट्रों में से उनके संयुक्त राष्ट्रसंघ को दिए गए सहयोग, शांति व्यवस्था में सहायता तथा भौगोलिक वितरण के आधार पर किया जाता है। कोी सदस्य राष्ट्र तत्काल पुनर्निर्वाचन के योग्य नहीं माना जाता है। इस परिषद में सदस्य संख्या निर्धारित हो जाने के कारण छोटे राज्यों द्वारा गुटबंदी की संभावना नहीं रही। इस परिषद में सदस्य राष्ट्र का एक ही प्रतिनिधि उपस्थित हो सकता है। विधान में यह भी दिया गया है, कि संयुक्त राष्ट्रसंघ का ऐसा सदस्य, जो सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं है, परिषद की बैठकों में बिना मताधिकार प्राप्त किए सम्मिलित हो सकता है, यदि उस राष्ट्र के हितों पर प्रभाव डालने वाले प्रश्नों पर विचार किया जाय। इसी प्रकार ऐसा राष्ट्र जो न सुरक्षा परिषद का सदस्य है और न संयुक्त राष्ट्रसंघ का, वह भी उससे संबंधित विवादग्रस्त प्रश्नों पर विचार करते समय, विचार-विमर्श में बिना मताधिकार, भाग लेने के लिये आमंत्रित किया जा सकेगा। इस परिषद की अध्यक्षता इसी परिषद के सदस्यों की अंग्रेजी की वर्णमाला के क्रम से प्राप्त होती है। प्रत्येक अध्यक्ष का कार्यकाल एक पूरा महीना होता है। परिषद के सदस्य राष्ट्रों का एक-एक प्रतिनिधि सदैव संयुक्त राष्ट्रसंघ के केन्द्र स्थान (न्यूयार्क) पर रहता है। कोई भी प्रश्न सामने आने पर तुरंत उस पर विचार करने की दृष्टि से परिषद की बैठक सप्ताह में सातों दिन हो सकती है। किन्तु साधारणतया इसकी बैठक प्रत्येक पखवारे में होती है। इसका संगठन इस प्रकार बनाया गया है कि लगातार काम करती रही।

क.) कार्य एवं शक्तियाँ –

संयुक्त राष्ट्रसंघ का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली अंग सुरक्षा परिषद ही है। इसलिए इस परिषद की शक्तियाँ एवं कार्य भी अनेक हैं। कुछ अधिकार तो परिषद के स्वयं ही पूर्ण हैं और शेष महासभा के सहयोग से पूर्ण बन जाते हैं। विश्व शांति और सुरक्षा की स्थापना एवं व्यवस्था इस परिषद का मुख्य कार्य है। साधारण रूप से इस संस्था को संयुक्त राष्ट्रसंघ की कार्यकारिणी कहा जा सकता है, जो संघ के समस्त महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। धारा 25 के अनुसार समस्त सदस्य-राष्ट्रों ने सुरक्षा परिषद के निर्णयों को स्वीकार करने तथा कार्यान्वित करने का आश्वासन दिया है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर में अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था कायम रखने के लिये परिषद के हस्तक्षेप की निम्नलिखित चार अवस्थाएँ हैं

विवादों की जाँच-पङताल करती है और शांति भंग करने वाली बातों के लिये कार्यवाही करती है। विवादग्रस्त दलों को आवश्यक समझे तो आमंत्रित कर सकती है और विश्व शांति व सुरक्षा को खतरा होने की अवस्था में वार्ता, सोच-विचार, विचारम-विमर्श, मध्यस्थ निर्माण, प्रादेशिक संस्थाओं की स्थापना या अपने इच्छानुसार अन्य शांतिपूर्ण उपायों से तय कर लेती है।

जब वास्तव में शांति भंग हो जाय अथवा एक राज्य दूसरे राज्य पर आक्रमण करे तो परिषद झगङने वाले राज्यों को अपनी स्थायी शर्तें स्वीकार करने के लिये आह्वान करती है, किन्तु उस अवस्था में उन राज्यों के अधिकार तथा दावे अक्षुण्ण रहेंगे।

यदि दूसरी अवस्था में सफलता न मिले तो परिषद सदस्य राष्ट्रों को आर्थिक प्रतिबंध लगाने, जिसमें रेल, डाक, समुद्र, तार, रेडियो तथा यातायात के अन्य साधनों की पूरी अथवा आंशिक या कूटनीतिक संबंध विच्छेद सम्मिलित हो, के लिये कह सकती है।

अंत में परिषद सैनिक कार्यवाही, सैन्य प्रदर्शन, अवरोध तथा वायु, जल या स्थल सेना का प्रयोग परिस्थिति के अनुसार कर सकती है।

इस प्रकार सुरक्षा परिषद यह निर्णय करती है कि किस स्थान पर शांति को खतरा है, कहाँ शांति भंग हो चुकी है, कहाँ आक्रमण हो रहा है और उसी के अनुसार उपाय करने का प्रयत्न या सिफारिश करती है। सुरक्षा परिषद ही ऐसी स्थिति में कार्य कर सकती है और परिषद में बङी शक्तियों को (स्थायी सदस्यों) पूर्ण निषेधाधिकार प्राप्त है, जिसका प्रयोग होने पर कोी निर्णय वैध नहीं होता।

सुरक्षा परिषद के अन्य कार्य भी महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे – न्यास क्षेत्र, जो सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माने गए हैं, उनका नियंत्रण व निरीक्षण भी सुरक्षा परिषद करती है और सदस्यों को प्रवेश, निलंबन तथा निष्कासन, महामंत्री की नियुक्ति, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति आदि भी महासभा सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर ही करती है।

ख.) मतदान पद्धति –

इस परिषद के प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार है, प्रक्रिया संबंधी विषयों पर सुरक्षा परिषद नौ सदस्यों के स्वीकारात्मक मत से निर्णय करती है, किन्तु इन नौ मतों में पाँच स्थायी सदस्यों का सम्मिलित होना अनिवार्य है। इन पाँच स्थायी सदस्यों में से एक की भी असहमति होने पर निर्णय नहीं लिया जा सकता है। चाहे अन्य या सभी सदस्य एक मत हों, परंतु निर्णय वैध नहीं हो सकता। स्थायी सदस्यों का यह अधिकार ही वीटो या निषेधाधिकार कहलाता है। यह अधिकार पाँच बङी शक्तियों को इसलिए दिया गया था कि विश्व शांति और सुरक्षा का दायित्व प्रमुख रूप से इन्हीं पर रहेगा। भविष्य में छोटी शक्तियों के सहयोग से बहुमत बनाकर ये बङी शक्तियाँ परस्पर एक-दूसरे को न दबा सकें, इसलिए इन्हें निषेधाधिकार दिया गया था। वास्तव में विश्व शांति की सुरक्षा के लिये यह प्रावधान रखा गया था, किन्तु यही प्रावधान सबसे अधिक परिषद को निष्क्रिय बना रहा है। कैसी विडम्बना है। कई महत्त्वपूर्ण प्रश्न इसी स्थिति के कारण उपस्थित ही नहीं हो पाते।

ग.) महासभा और सुरक्षा परिषद –

उपर्युक्त वर्णन द्वारा दोनों प्रमुख अंगों का संबंध ऐसा प्रतीत होता है, जैसा एक राज्य में कार्यकारिणी और व्यवस्थापिका का होता है। सुरक्षा परिषद में बहुत कुछ प्रशासन संस्था के रूप और लक्षण विद्यमान हैं और महासभा उसकी व्यवस्थापिका के रूप में। संयुक्त राष्ट्रसंघ का संपूर्ण कार्यक्षेत्र और विषय, जो विधान में वर्णित है, महासभा के सामने ही प्रस्तुत होते हैं जबकि सुरक्षा परिषद का मुख्य संबंध केवल उन्हीं प्रयत्नों से है जो अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की स्थिति में बाधक या घातक सिद्ध हो सकते हैं। सुरक्षा परिषद की समस्त कार्यवाही की सूचना प्रतिवर्ष अपने प्रतिवेदन द्वारा महासभा के सामने प्रस्तुत होती है और महासभा में उस पर विचार और बहस भी होती है। परंतु उस पर किसी प्रकार का आक्षेप अथवा उसमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता, जिससे महासभा की उच्चता और परिषद की हीनता प्रदर्शित हो। अधिकतम प्रश्नों के निर्णय में साधारणतया महासभा और सुरक्षा परिषद मिलजुल कर ही कार्य करती है, जैसे – नए राष्ट्र का प्रवेश, सदस्य राष्ट्रों का निष्कासन, महामंत्री की नियुक्ति, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति आदि।

आर्थिक तथा सामाजिक परिषद

विभिन्न राष्ट्रों में शांति तथा मैत्रीपूर्ण व्यवहार और परस्पर कल्याण के लिये आर्थिक तथा सामाजिक परिषद का निर्माण किया गया है। यह सच है कि शांति और सुरक्षा केवल संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा प्रस्तावित सुझावों और उनके पालन पर निर्भर नहीं है, बल्कि उससे अधिक आर्थिक, सामाजिक तथा अन्य विषयों के उचित संतुलन पर भी आधारित है। इसी उद्देश्य से महासभा के अधिकारों के अन्तर्गत विषयों के उचित संतुलन पर भी आधारित है। इसी उद्देश्य से महासभा के अधिकारों के अन्तर्गत इस परिषद की स्थापना की गई। इस परिषद में महासभा द्वारा निर्धारित संयुक्त राष्ट्रसंघ के 18 सदस्य होते हैं (दिसंबर, 1956 में इसकी सदस्य संख्या 27 कर दी गयी है)। इनमें छः सदस्य प्रतिवर्ष तीन वर्ष की अवधि के लिये चुने जाते हैं। जिन सदस्यों की अवधि समाप्त हो जाय, वे चुनाव के लिये पुनः खङे हो सकते हैं।

इस परिषद को मुख्य रूप से निम्नलिखित उत्तरदायित्व सौंपे गए हैं-

विश्व को अधिक समृद्धिशाली, स्थायी और न्यायपरायण बनाना।

अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी तथा इसी प्रकार के अन्य विषयों का अध्ययन करना तथा उनके लिये आवेदन तथा प्रतिवेदन प्रस्तुत करना और महासभा, संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्यों तथा विशिष्ट समितियों को नवीन सुझाव देना ।

समस्त मानव मात्र के लिये मौलिक मानव अधिकारों एवं मूल स्वतंत्रताओं का अध्ययन करना और इन पर अपना प्रतिवेदन तथा सुझाव प्रस्तुत करना।

महासभा के समक्ष इन्हीं विषयों के संबंध में नियम बनाने के लिये प्रारूप तैयार कर प्रस्तुत करना

अपने क्षेत्र के विषयों से संबंधित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाना और विचार-विमर्श के बाद निर्णयों को सर्वत्र भेजना।

इस परिषद में मतदान की साधारण पद्धति है। प्रत्येक सदस्य को एक मत प्राप्त होता है। बहुमत से निर्णय लिए जाते हैं। इस परिषद के तत्वावधान में 9 कर्मचारी आयोग स्थापित किए गए, जो इस प्रकार हैं – मानव अधिकार आयोग, महिला प्रतिष्ठा आयोग, सामाजिक समस्या आयोग स्थापित किए गए, जो इस प्रकार हैं – मानव अधिकार आयोग, महिला प्रतिष्ठा आयोग, सामाजिक समस्या आयोग, आर्थिक तथा वृत्ति आयोग, यातायात और संचार आयोग, सांख्यिकी आयोग, मादक औषधि आयोग आदि। इस परिषद के अन्तर्गत विशिष्ट संस्थाएँ भी कार्य करती हैं।

इस प्रकार संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर निर्माताओं ने, जिन्हें आर्थिक तथा सामाजिक कुप्रबंध से युद्ध छिङ जाने की संभावना अनुभव हुई, मनुष्य मात्र को इस आवश्यकता से मुक्त करने का विचार किया और वास्तव में इन समस्याओं का हल विश्व में युद्ध की संभावनाओं को दूर ले जाता है।

संरक्षण परिषद

प्रथम विश्व युद्ध के बाद विश्व के पिछङे हुए राष्ट्रों के संरक्षण के हेतु मेण्डेट प्रणाली की स्थापना की गई थी, किन्तु राष्ट्रसंघ की भाँति मेण्डेट प्रणाली भी सफल नहीं हुई। उस अनुभव के आधार पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पिछङे हुए राष्ट्रों के कल्याण के लिये संरक्षण पद्धति अपनाई गई है। तदनुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ के विधान में अविकसित तथा अधीन व्यक्तियों के कल्याण तथा विकास और स्वायत्त शासन की ओर उनकी उत्तरोत्तर उन्नति के लिये अग्रसार होते रहने की व्यवसथा करना, विश्व के उन्नत राष्ट्रों ने अपना कर्त्तव्य स्वीकार किया है। यह प्रणाली उन प्रदेशों पर लागू होती है, जो पहले राष्ट्रसंघ के शासनादेश के अधीन कर दिये गए थे, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शत्रु से लिए गए हैं तथा वह प्रदेश जो स्वयं संरक्षण परिषद के अन्तर्गत आ गए हैं। उस प्रणाली को प्रचलित करने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षआ को बढाना।
  2. न्यास क्षेत्र के निवासियों को स्वशासन की ओर अग्रसर करना।
  3. मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के प्रति आस्था बढाना और विश्व में पारस्परिक सहयोग को मान्यता देना,
  4. न्यायिक समानता को प्रतिष्ठित करना।

संरक्षण परिषद में वे लोग सम्मिलित हैं, जो संरक्षण प्राप्त प्रदेशों के शासक हैं, सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य तथा जो महासभा द्वारा अपने सदस्यों में से तीन वर्ष की अवधि के लिये इस परिषद की सदस्यता के लिये चुने जाते हैं। इस परिषद के मुख्य कार्य महासभा के अन्तर्गत ही सम्पादित होते हैं। प्रशासकों द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदनों पर विचार, प्रस्तुत प्रार्थना-पत्रों की स्वीकृति तथा प्रशासकों से संपर्क स्थापित करते हुये उनका परीक्षण करना, विभिन्न क्षेत्रों का समय-समय पर निरीक्षण करना, संरक्षण संबंधित समझौतों के अनुसार कार्यवाही करना आदि इस परिषद के कार्य हैं। इस परिषद में मतदान साधारण ढंग से होता है तथा निर्णय बहुमत से लिये जाते हैं। घाना, फ्रेंच, केमरून्स, टोगोलैण्ड, इटालियन सोमालीलैण्ड आदि संरक्षित प्रदेशों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना संरक्षण पद्धति की बहुत बङी सफलता है।

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय

यह न्यायपालिका संयुक्त राष्ट्रसंघ के लिये अपने विधान की भाँति अभिन्न तथा महत्त्वपूर्ण अंग है। राष्ट्रसंघ के तत्तवावधान में बना पिछला अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय कोी महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं कर सका था। अतः एक नए न्यायालय की स्थापना की गई। फिर भी संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत स्थापित इस न्यायलय को एक नया न्यायालय कहना उचित नहीं है। केवल नाम परिवर्तन को छोङकर और पुराने न्यायालय के विधान में कुछ शाब्दिक परिवर्तन के अतिरिक्त नए न्यायालय में कोई नवीनता नहीं है। वर्तमान न्यायालय सर्वप्रथम अप्रैल, 1946 को हेग में प्रारंभ हुआ। चार्टर की धारा 92 के अनुसार यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्रसंघ का प्रमुख न्यायिक अंग है।

इस न्यायलय में कुल मिलाकर 15 न्यायाधीश होते हैं। सभी न्यायाधीश अपने सदस्यों में से ही एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष चुनते हैं। इन सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा होती है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश के पद के लिये उच्च नैतिक चरित्र एवं राष्ट्रीय कानून का विशेषज्ञ होना आवश्यक है। कोई दो न्यायाधीश एक ही राज्य के नहीं होने चाहिए। न्यायाधीशों का साधारण कार्यकाल नौ वर्ष का होता है और वे पुनः निर्वाचित हो सकते हैं। न्यायाधीशों की निर्वाचन प्रणाली कठिन है। राष्ट्रीय विधि-विशेषज्ञों द्वारा चार प्रसिद्ध विधिशास्रियों के नाम मनोनीत किए जाते हैं और उनमें से दो से अधिक नाम अपने राष्ट्र से संबंधित नहीं होने चाहिए। चुनाव की तिथि से कम से कम तीन माह पूर्व महामंत्री राष्ट्रीय कानून विशेषज्ञ के नाम पर लिखित प्रार्थना पत्र भेजता है। वे ऐसे लोगों के नाम भेजते हैं, जो इस पद के उपयुक्त हों तथा न्यायालय के सदस्य बन सकें। कोई भी दल चार से अधिक नाम नहीं भेजता । महामंत्री इस प्रकार आए हुए सारे मनोनीत नामों की सूची वर्णमाला के अनुसार बनाता है और तत्पश्चात महासभा और सुरक्षा परिषद एक-दूसरे से स्वतंत्र होकर न्यायालय के सदस्यों का निर्वाचन करती हैं। ऐसे प्रत्याशी जो महासभा तथा सुरक्षा परिषद में शुद्ध बहुमत प्राप्त करेत हैं, निर्वाचित माने जाते हैं।

इस न्यायालय का न्याय क्षेत्र उन सभी राज्यों पर व्याप्त है, जो न्यायालय की संविधि को स्वीकार चुके हैं। न्याय क्षेत्र मुख्य रूप से तीन प्रकार केहैं

  1. वैकल्पिक न्याय क्षेत्र,
  2. अनिवार्य न्याय क्षेत्र
  3. परामर्शात्मक न्याय क्षेत्र

वैकल्पिक न्याय क्षेत्र में वे सभी विवाद सम्मिलित हैं, जिन्हें दोनों पक्ष सहमत होकर न्यायालय के समक्ष अपना विवाद प्रस्तुत करते हैं। अनिवार्य न्याय क्षेत्र के अन्तर्गत संविधि को स्वीकार करने वाला कोई राष्ट्र यह घोषित कर सकता है कि प्रस्तुत विवाद को वह अनिवार्य न्याय क्षेत्र के अधीन मानता है। इससे संबंधित दूसरे राष्ट्र को भी सहमत होना पङता है, किन्तु इसके लिये दोनों की स्वीकृति आवश्यक है। किसी राष्ट्र की इच्छा के विरुद्ध कोई अभियोग न्यायालय में नहीं चलाया जा सकता। परामर्शात्मक न्याय क्षेत्र के अन्तर्गत यह न्यायलय महासभा तथा सुरक्षा परिषद को न्याय संबंधी परामर्श देता है, किन्तु इसके परामर्श को मानने के लिये बाध्य नहीं है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्य अंग भी न्यायालय से किसी वैधानिक विषय पर परामर्श ले सकते हैं।

सचिवालय

संयुक्त राष्ट्रसंघ के संपादन के लिये एक सचिवालय की स्थापना की गयी है। इस संगठन के सुगम और व्यवस्थित कार्य करने पर ही संयुक्त राष्ट्रसंघ की सफलता निर्भर करती है। सचिवालय का मुख्य प्रशासन अधिकारी महामंत्री होता है, जिसकी नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा पाँच वर्ष के लिये की जाती है। महामंत्री सचिवालय की सहायता से अपना सारा कार्य करता है। चार्टर के अनुसार महामंत्री के निम्नलिखित कार्य हैं

यदि महामंत्री यह समझे कि किसी विवाद के कारण अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा खतरे में पङ सकती है तो वह उस विवाद की ओर सुरक्षा परिषद का ध्यान आकर्षित कर सकता है। इस प्रकार महामंत्री अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में व्यक्तिगत रूप से दिलचस्पी लेकर विश्व शांति बनाए रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

संघ की संपूर्ण कार्यवाही के संबंध में प्रतिवर्ष महासभा के अधिवेशन में अपना प्रतिवेधन प्रस्तुत करता है।

अपने पद के कारण महामंत्री महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद तथा संरक्षण परिषद के अधिवेशनों में उपस्थित होता है तथा उनकी कार्यवाही में भाग लेता ैह।

महामंत्री महासभा द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार संघ के पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है। इन नियुक्तियों के समय उनकी कार्य-निपुणता, योग्यता और ईमानदारी पर ध्यान दिया जाता है। जहाँ तक संभव हो, अधिकांश देशों को सचिवालय सेवाओं में प्रतिनिधित्व दिया जाता है। जहाँ तक संभव हो, अधिकांश देशों को सचिवालय सेवाओं में प्रतिनिधित्व दिया जाता है। इस प्रकार के पदाधिकारियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संयुक्त राष्ट्रसंघ से बाहर किसी स्तता से न तो कोई आदेश ही प्राप्त करेंगे और न उनके दबाव में आएँगे। संघ के सदस्यों ने भी यह तय किया कि सचिवालय उत्तरदायित्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय होगा और वे उन दायित्वों के निर्वाह में पदाधिकारियों पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं डालेंगे। अतः कहा जा सकता है, कि सचिवालय के कर्मचारी अपना राष्ट्रीय स्वभाव छोङकर अन्तर्राष्ट्रीय विचार और व्यवहार करते हैं।

सचिवालय में महामंत्री का पद बङे महत्त्व का है। इसकी सहायता के लिये सचिवालय में लगभग 3,500 कर्मचारी एवं पदाधिकारी हैं। माहमंत्री को केवल प्रशासनिक कार्य ही नहीं वरन् राजनैतिक कार्य भी करने पङते हैं। राजनीतिक मामलों में महामंत्री बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। महामंत्री को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने के अनेक अवसर मिलते हैं। विभिन्न देशों के प्रतिनिधिमंडल के साथ उसका संपर्क बना रहता है। उसे इस बात की स्वतंत्रता होती है कि वह सदस्य राज्यों के विदेश मंत्रालय में जा सके। वह अपने वार्षिक प्रतिवेदन में यह भी सिफारिश कर सकता है कि संघ को कौनसी नीति अथवा कार्यक्रम अपनाना चाहिये।

चार्टर में संशोधन

चार्टर की धारा 108 के अनुसार किसी भी संशोधन के स्वीकृत होने के लिए साधारण सभा का दो-तिहाई बहुमत होना तथा सुरक्षा परिषद के नौ सदस्यों का बहुमत होना चाहिये। इन नौ सदस्यों में पाँच स्थायी सदस्यों की सहमति आवश्यक है। चार्टर की धारा 109 में कहा गया है कि जब कभी चार्टर में संशोधन की आवश्यकता अनुभव की जाय तो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों का एक सम्मेलन बुलाया जाय, किन्तु संशोधन का प्रस्ताव, चार्टर लागू होने के सदस वर्ष बाद साधारण सभा में पेश किया जा सकता है अर्थात् चार्टर लागू होने के दस वर्ष की अवधि में चार्टर में कोई संशोधन संभव नहीं है।

विशिष्ट समितियाँ

आर्थिक और सामाजिक परिषद के तत्वावधान में अनेक विशिष्ट संस्थाएँ भी कार्य करती हैं। इन संस्थाओं का क्षेत्र राजनीतिक नहीं है बल्कि सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय है। इनकी अपनी कार्य प्रणाली और अपने कार्यालय हैं। ये संस्थाएँ अलग-अलक विषयों के ज्ञाताओं के हाथ में रहती हैं ताकि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की समान्य कटुता से इन्हें परे रखा जा सके। ये संस्थाएँ मुख्य रूप से निम्न लिखित हैं

  1. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ (I.L.O)
  2. खाद्य तथा कृषि संघ (F.A.O.)
  3. संयुक्त राष्ट्रीय शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संघ(UNESCO)
  4. अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण तथा विकास बैंक(I.B.R.D.)
  5. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष(I.M.F.)
  6. विश्व डाक संघ(W.P.U.)
  7. अन्तर्राष्ट्रीय तार संचार संघ(I.T.U.)
  8. विश्व स्वास्थ्य संघ(W.H.O.)
  9. अन्तर्राष्ट्रीय शर्णार्थी संघ(U.N.C.H.R.)
  10. अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संघ(I.C.A.O.)

इनमें से कुछ संस्थाएँ राष्ट्रसंघ की स्थापना के पहले से ही कार्य कर रहा है, जैसे अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ, किन्तु इन सभी संस्थाओं की प्रगति का विशेष कार्य संयुक्त राष्ट्रसंघ ने ही किया। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इन विभिन्न संस्थाओं के द्वारा विश्व में भुखमरी, बीमारी, निर्धनता, अज्ञान को दूर करे का प्रयत्न किया है। ऐसी कुछ महत्त्वपूर्ण संस्थाओं का संक्षिप्त परिचय देना वांछनीय होगा।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ

प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्थापित विशिष्ट संस्थाओं में यह सर्वाधिक प्राचीन संस्था है। इस संघ के विधान में जो सन् 1919 में बना था, घोषित किया गया है कि सामाजिक न्याय के आधार पर ही विश्व में शाश्वत शांति स्थापित की जा सकती है। संयुक्त राष्ट्रसंघ में इस संघ का रूप एक विशेष महत्त्व रखता है। इस संघ में श्रमिकों के प्रतिनिधि और प्रबंधकों के प्रतिनिधि एवं सरकार के प्रतिनिधि मिलकर नीति निर्धारित करते हैं तथा निर्णय भी। इस संघ के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं, जो 1914 में फिलाडेलफिया सम्मेलन में घोषित किए थे-

  1. श्रम कोई वस्तु नहीं,
  2. किसी भी स्थान की निर्धनता अन्य सभी स्थानों की समृद्धि के लिये खतरा है
  3. निरंतर प्रगति के लिये अभिव्यक्ति और समुदाय की स्वतंत्रता आवश्यक है
  4. प्रत्येक देश को अभाव एवं दरिद्रता के विरुद्ध पूरे जोश के साथ युद्ध करना चाहिये।

इन सिद्धांतों की पूर्ति के लिये अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ ने निम्नलिखित कार्यक्रम निर्धारित किया

  1. जीवन निर्वाह एवं पूर्ण रोजगार के लिये आवश्यक एवं पर्याप्त वेतन मिले।
  2. श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा विस्तार हो।
  3. मजदूरों के लिये पर्याप्त भोजन, वस्त्र और निवास की व्यवस्था हो।
  4. मजदूरों को सामूहिक रूप से विनिमय का अधिकार हो।
  5. उन्हें अवसरों की पूरी समानता मिले।
  6. उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा की अच्छी व्यवस्था हो।

यह श्रम संघ अपने सदस्य राज्यों को अनेक प्रकार से मदद पहुँचाता है। शिष्टमंडल भेजना, श्रमिकों के शिक्षण की व्यवस्था करना, सामाजिक विषयों पर शोध की व्यवस्था करना, आर्थिक प्रतिवेदन तैयार करना, सांख्यिकी तथा पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित करना आदि इसके मुख्य कार्य हैं। यह श्रम संघ संयुक्त राष्ट्रसंघ के तकनीकी कार्य में भी सहायता पहुँचाता है तथा विभिन्न राष्ट्रों को अपने यहाँ जीवन स्तर बढाने में सहायता देता है। यह श्रमिकों को शिक्षा द्वारा, मालिकों को परामर्श द्वारा और सरकारों की नीति के संबंध में सुझाव द्वारा उत्पादन में वृद्धि और संबंधों को सुधारने में सहायता करता है। श्रमिकों की जनसंख्या को उचित स्थान पर भेजने तथा उनकी व्यवस्था का भी निरीक्षण करता है।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ तीन मुख्य अंगों द्वारा अपना सारा कार्य सम्पादित करता है

  1. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन
  2. प्रशासन संस्था
  3. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय

यूनेस्को

यह संस्था भी संयुक्त राष्ट्रसंघ की प्रमुख संस्था है। विश्व संगठन को सफल बनाने में तथा लोकप्रियता एवं ख्याति प्राप्त करने में यह संस्था अद्वितीय है। इस संगठन का उद्देश्य है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के संविधान द्वारा स्वीकृत विश्व के नागरिकों के लिये बिना जाति, लिंग, भाषा अथवा धर्म का भेद किए शिक्षा, विधान एवं संस्कृति के माध्यम से न्याय विधिमय शासन तथा मानव अधिकार एवं मूल स्वतंत्रताओं के सम्मान की अभिवृद्धि के लिये, विभिन्न राष्ट्रों का सहयोग और समर्थन लेकर शांति और सुरक्षा की स्थापना में योग देना।

इस संस्था का संगठन भी व्यापक एवं प्रभावशाली है। इसके भी तीन अंग हैं

  1. महा सम्मेलन
  2. कार्यपालिका
  3. सचिवालय

महा सम्मेलन में यूनेस्को में प्रत्येक राष्ट्र का एक प्रतिनिधि सम्मिलित होता है। महा सम्मेलन में एक वर्ष में दो अधिवेशन होते हैं, जिसमें यह अपनी रीति-नीति तथा कार्यक्रम निर्धारित करता है तथा अपनी कार्यपालिका का निर्वाचन भी करता है। कार्यपालिका में 20 सदस्य होते हैं। यह मंडल वर्ष में कम से कम दो बार बैठक करता है तथा महा सम्मेलन द्वारा निर्धारित कार्यक्रम का पालन करता है। सचिवालय एक विशाल कार्यालय है, जिसका अध्यक्ष प्रधान निदेशक होता है। उसके निरीक्षण में विश्वभर के विभिन्न राष्ट्रों के लोग कार्यालय में काम करते हैं। प्रधान कार्यालय पेरिस में स्थित है। इस कार्यालय में मुख्य छः विभाग हैं

  1. शिक्षा
  2. प्राकृतिक विज्ञान
  3. सामाजिक विज्ञान
  4. सांस्कृतिक कार्य
  5. जन-संचार
  6. तकनीकी सहायता

इस संस्था का मुख्य कार्यक्रम विभिन्न शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है

  1. शिक्षा
  2. प्राकृतिक विज्ञान
  3. सामाजिक विज्ञान
  4. सांस्कृतिक कार्यक्रम
  5. व्यक्तियों का आदान-प्रदान
  6. जन-संचार
  7. पुनर्वास
  8. तकनीकी सहायता

इन सभी बिन्दुओं में से शिक्षा के क्षेत्र में यूनेस्को मौलिक शिक्षा अथवा सामुदायिक विकास के नाम से कार्य चलाता है और इसके अन्तर्गत जनता को अपना स्वास्थ्य, भोजन, उपज तथा जीवन स्तर सुधारने का ज्ञान प्रदान करता है। अध्ययन के लिये निरक्षर नागरिकों को वर्णमाला के ज्ञान के साथ – साथ स्वास्थ्य, कृषि तथा गृह संबंधी अर्थव्यवस्था के लिये भी प्रारंभिक ज्ञान देने की व्यवस्था करता है। विज्ञान के क्षेत्रों में यूनेस्को और भी अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। विश्व में विज्ञान के विशेषज्ञों द्वारा जो भी नए प्रयोग अथवा योजनाएँ चलाई जाती हैं, उनका ज्ञान सर्वत्र उपयोगी एवं उपलब्ध बनाना इसका मुख्य कार्य है। इसके अलावा रेगिस्तानों के शोध-कार्यालय के प्रसार एवं विकास का कार्य भी यह संस्था प्रगति से कर रही है। जहाँ इस प्रकार के काम हो रहे हैं, वहाँ प्रोत्साहन देना, नई-नई ऐसी समस्याओं के अध्ययन की व्यवस्था करना इसी संस्था का काम है। सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में भी शोध कार्य को प्रोत्साहन देना तथा विभिन्न जातियों तथा राष्ट्रों में मिथ्यावाद अथवा असत्य धारणाओं को दूर करना भी इसी संस्था का कार्य है। सांस्कृतिक क्षेत्र में तो विभिन्न कलाएँ जैसे – नाटक, नृत्य, संगीत, चित्रकला, वास्तुकला, साहित्य, दर्शन आदि सभी इसी संस्था के संबंध के विषय हैं।

खाद्य एवं कृषि संगठन

अक्टूबर, 1945 में क्यूबेक (कनाडा)में खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना हुई। इसके कार्यालय में अलग-अलग विभाग हैं। जैसे – कृषि वितरण, आर्थिक व्यवस्था, मछली उद्योग, ग्राम कल्याण आदि । इसकी ओर से विभिन्न राष्ट्रों की खाद्य पूर्ति, आवश्यकताओं, मछली उद्योग, ग्राम कल्याण आदि। इसकी ओर से विभिन्न राष्ट्रों की खाद्य पूर्ति, आवश्यकताओं और संभावना के संबंध में तथ्य मालूम किए जाते हैं और उपयोगी साहित्य प्रकाशित किया जाता है। संघ की ओर से अनेक देशों में विशेषज्ञ भेजे जाते हैं, जो पशुओं और पौधों की बीमारी से रक्षा, कृषि की उन्नति, भोजन में पौष्टिक तत्त्वों में वृद्धि, वनों की रक्षा, भूमि के कटाव को रोकना और बाढ नियंत्रण करना आदि कार्यों में सहायता करते हैं। कृषि सुधार आदि कार्यों के लिये संघ की ओर से विशिष्ट सहायता दी गयी है। विश्व में कृषि के उन्नत तरीकों का प्रचार करती है तथा मवेशियों की बीमारियों की रोकथाम के लिये कार्यक्रम बनाती है।

खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्य अंग एक सम्मेलन, एक परिषद तथा डायरेक्टर जनरल और उसके अन्य कर्मचारी हैं। सम्मेलन में प्रत्येक सदस्य राष्ट्र का एक-एक प्रतिनिधि होता है। यह सम्मेलन संगठन की नीति निर्धारित करता है तथा बजट स्वीकार करता है। परिषद में सम्मेलन द्वारा चुने गए 24 सदस्य होते हैं। परिषद सम्मेलन का अधिवेशन आरंभ होने और समाप्त होने की अवधि में कार्य करती है। इसका प्रधान कार्यालय रोम में स्थित है। इस कार्यालय का प्रधान डायरेक्टर जनरल होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन

विश्व व्यापी स्वास्थ्य समस्या के समाधान के लिये 7 अप्रैल, 1948 को अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गयी। इसका उद्देश्य विश्व के लोगों के स्वास्थ्य को उच्च स्तर पर पहुँचाना और रोगों की रोकथाम करना है। इस संघ ने विश्व की स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से संघर्ष किया है। 1947 में बहुत ही खतरनाक और उग्र रूप से फौलने वाले हैजे पर इस संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से छः सप्ताह के अंदर ही पूरी विजय प्राप्त की। यह सफलता अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण और आश्चर्यजनक मानी गई थी। संघ के तत्वावधान में मलेरिया, तपेदिक, जननेन्द्रिय संबंधी रोगों, मातृ-शिशु स्वास्थ्य, पौष्टिक भोजन और स्वस्थ वातावरण के संबंध में अलग-अलग विभाजन काम करते हैं।

इस संगठन के मुख्य रूप से तीन अंग हैं –

  1. सभी सदस्य राज्यों के प्रतिनिधियों की असेम्बली,
  2. असेम्बली द्वारा चुने गए चिकित्सा आदि का विशेष ज्ञान रखने वाले 18 व्यक्तियों की एक कार्यकारिणी
  3. सचिवालय

इसका मुख्य सचिवालय जेनेवा में है।

अन्तर्राष्ट्रीय बाल संकट कोष

बच्चों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने के लिये संयुक्त राष्ट्रसंघ की साधारण सभा ने 11 दिसंबर, 1946 को अन्तर्राष्ट्रीय बाल संकट कोष की स्थापना की। इसका उद्देश्य विश्व के पिछङे हुए देशों के बच्चों के स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना है। एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप के देशों में इस संस्था ने मानवीय दृष्टि से अत्यन्त ही सराहनीय कार्य किया है। इसके तत्वावधान में बच्चों और दूध पिलाने वाली माताओं को दूध इत्यादि पौष्टिक पदार्थों की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा भूकम्प, बाढ आदि के समय यह संस्था प्रसूतिकाओं एवं शिशुओं की अपेक्षित सहायता करती है। भारत में डी.डी.टी. और पेनिसिलिन के उत्पादन के लिये इस संस्था से काफी सहायता मिली है तथा बच्चों के स्वास्थ्य के लिये दूध भी बाँटा जाता है। स्कूलों एवं अस्पतालों में क्षय से बचाव के लिये बी.सी.जी. के टीके लगाने की व्यवस्था की गयी है। इस प्रकार अनेक रूपों में भारत व अनेक अन्य देशों में इस संस्था द्वारा सहायता की जा रही है।

विश्व शरणार्थी संगठन

इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ की साधारण सभा द्वारा 1 जनवरी, 1951को हुई थी। इस संगठन का सबसे बङा काम शरणार्थी समस्या का हल करना है अर्थात् शरणार्थियों का पुनर्वास। जब तक यह कार्य सम्पन्न नहीं होता तब तक शरणार्थियों की देखरेख व भरण-पोषण का काम भी होता था। स्वदेश लौटना चाहने वाले लोगों को इस बात के लिये संघ से प्रोत्साहन और सहायता मिली। संघ ने लगभग 60 लाख व्यक्तियों को बसाने में सहायता की, परंतु इस संघ को असमय में ही समाप्त हो जाना पङा, क्योंकि अमेरिका ने जो कि इसका आर्थिक दृष्टि से सबसे बङा सहायक था, पैसा देना अस्वीकार कर दिया। अपने अल्पकाल में विश्व शरणार्थी संगठन ने द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप बेघर लोगों की बहुत सेवा की।

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और बैंक

विश्व युद्ध से जर्जरित विश्व का पुनर्निर्माण और विकास के क्षेत्र में दो संस्थाएँ – अन्तर्राष्ट्रीय बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। अन्तर्राष्ट्रीय बैंक का उद्देश्य उत्पादन के लिये तथा पुनर्निर्माण और विकास के लिये सदस्य राष्ट्रों को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्रों की पूँजी सुलभ करना और सहायता पहुँचाना है। मुद्राकोष की स्थापना अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा सहयोग को चालू रखने, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विस्तार करने और विनिमय के प्रतिस्पर्द्धा भरे उतार-चढाव को रोकने की दृष्टि से हुई है। अन्तर्राष्ट्रीय बैंक अपने सदस्य राष्ट्रों को आर्थिक पुनर्निर्माण तथा प्राकृतिक साधनों और उद्योगों के विकास के लिये स्वयं ऋण देता है अथवा गारंटी से दूसरी जगह दिलवाता है। अन्तर्राष्ट्रीय बैंक सामान्यतः किसी देश की सरकार को ही ऋण देता है या दिलवाता है, किन्तु यदि किसी देश की सरकार ऋण चुकाने की गारंटी दे तो उस देश के निजी उद्योग-धंधों को भी बैंक ऋण दे सकता है।

मुद्राकोष तथा बैंक से विभिन्न देशों को अपने आर्थिक विकास और सुधार कार्यों के लिये बहुत सहायता मिल रही है। फ्रांस, बेल्जियम, हालैण्ड, डेनमार्क आदि देशों को बहुत सहायता मिल रही है। भारत को रेलों के विकास, इस्पात के उत्पादन और बहुमुखी योजनाओं के लिये अन्तर्राष्ट्रीय बैंक से बहुत ऋण प्राप्त हो चुका है।

तकनीकी सहायता कार्यक्रम

संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में एक संयुक्त राष्ट्र तकनीकी सहायता कार्यक्रम चलता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आर्थिक दृष्टि से पिछङे हुए राष्ट्रों को उनका जीवन स्तर ऊँचा उठाने में तकनीकी सहायता देना है। पिछङे राष्ट्रों के लिये यह बङी ही उपयोगी व हितकर योजना है। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका आदि विकसित देश पिछङे हुए देशों की अनेक प्रकार से मदद करते हैं और कोमनवेल्थ के देशों के लिये कोलम्बो योजना जैसी योजनाएँ इसी दिशा में काम कर रही हैं, किन्तु किसी देश विशेष या संघ विशेष से सीधी सहायता लेने में प्रायः यह भय बना रह सकता है कि उस आर्थिक सहायता के साथ राजनीतिक बंधन न लगा दिये जायँ। संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था से प्राप्त सहायता के लिये किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता और आवश्यकता की पूर्ति भी हो जाती है। इस दृष्टि से यह कार्यक्रम अत्यन्त उपयोगी एवं सराहनीय है। कार्यक्रम के उल्लेखनीय प्रयासों में पाकिस्तान की आयरन फाउण्ड्री, ईरान में वायु सेना से फोटो लेकर कुओं के लिये भूगर्भ जल क्षेत्रों की खोज तथा इण्डोनेशिया में हवाई यातायात के विकास के लिये और लेटिन अमेरिका में इस्पात के उद्योगों की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान आदि प्रमुख हैं।

मानव अधिकार आयोग

वर्तमान युग में जैसे सत्य, शांति तथा अच्छाई का विरोध नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार मानव के मूल अधिकार भी सर्वसम्मति से स्वीकार किए जाते हैं, किन्तु उनके संबंध में कुछ समस्याएँ हैं, जिनका प्रवेश संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्त्वावधान में नियुक्त मानव अधिकार आयोग के विचार-विमर्श के समय हो चुका है। वर्षों के निरंतर प्रयास के फलस्वरूप अब जाकर ऐसे प्रलेख प्रस्तुत हो सके हैं, जिनसे मानव के मूल अधिकार का स्वरूप निश्चित हो सका।

चार्टर के अनुसार मानव अधिकार आयोग की स्थापना आवश्यक मानी गई थी। इस संस्था का कार्य भी बहुत महत्त्वपूर्म रहा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना के बाद ही यह आयोग संगठित हुआ और कार्य आरंभ कर दिया गया। इसमें 18 राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं जो तीन वर्ष की अवधि के लिये चुने जाते हैं और पुनः निर्वाचन के योग्य माने जाते हैं। यह संस्था इस विषय के सभी पक्षों पर विचार करने की अधिकारिणी है, किन्तु मानव अधिकारों को यह प्राथमिकता देती है। श्रीमती रूजवेल्ट की अध्यक्षता में इस आयोग ने मानव अधिकारों का आदेश-पत्र तैयार किया और 10 दिसंबर, 1949 को महासभा ने मानव अधिकारों का विश्व घोषणा-पत्र स्वीकार किया। इस घोषणा पत्र में मानव के मूलभूत अधिकारों को अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता दी गई है। मानव के सम्मान और मूल्य को महत्त्व दिया गया है। घोषणा पत्र में उल्लिखित विभिन्न धाराओं द्वारा निम्नलिखित मौलिक अधिकार स्वीकार किए गए हैं-

  1. सम्मान और अधिकारों की दृष्टि से तथा स्वतंत्र रहने के लिये सभी मानव समान हैं।
  2. घोषणा – पत्र में सम्मिलित अधिकारों और स्वतंत्रता के लिये सारे मानव अधिकारी हैं।
  3. जीवन, स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार प्रत्येक मानव को प्राप्त है।
  4. कोई भी मानव दास नहीं रखा जा सकता एवं दासता और दास प्रतिबंधित होगा।
  5. किसी भी मानव के साथ अत्याचार एवं अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा सकता।
  6. कानून के समक्ष प्रत्येक मानव, प्रत्येक स्थान पर मानव के अधिकार की प्राप्ति का अधिकारी है।
  7. कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं और समान रूप से कानून का संरक्षण प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
  8. स्वीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करना अथवा अनुचित लाभ उठाना नियम-विरुद्ध हैं।
  9. किसी भी व्यक्ति को बिना उचित कारण के बंदीगृह अथवा बंधन में नहीं रखा जा सकता।
  10. व्यक्ति के निजी कार्यों अथवा जीवन में बाह्य हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा।

इसी प्रकार आवागमन और निवास का समान अधिकार, राष्ट्रीयता का अधिकार, विवाह एवं परिवार का अधिकार, सम्पत्ति प्राप्त करने का अधिकार आदि अनेक अधिकार हैं, जो स्वीकार किए गए हैं। यह कहा जा सकता है कि घोषणा पत्र में किसी भी मानवीय अधिकार को नहीं छोङा गया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंग कौन से हैं?

संयुक्त राष्ट्र संघ के 6 अंग हैं, जिसमें महासभा, सुरक्षा परिषद, न्यासी परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय एवं सचिवालय हैं। इसके अलावा आवश्यकता पड़ने पर अन्य अंग बनाये जा सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे प्रमुख अंग कौन सा है और क्यों?

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) | United Nations General Assembly (UNGA) संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) संयुक्त राष्ट्र का मुख्य नीति-निर्माण और प्रतिनिधि निकाय है। यह संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र निकाय है जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों, यानी सभी 193 सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व शामिल है।

राष्ट्रीय संघ का सबसे प्रमुख अंग कौन है?

Solution : आमसभा संयुक्त राष्ट्रसंघ का सबसे प्रमुख अंग है।

संयुक्त राष्ट्र संघ कब बना उसके प्रमुख अंगो का वर्णन कीजिए?

जिसके उद्देश्य में उल्लेख है कि यह अन्तर्राष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शान्ति के लिए कार्यरत है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई।