शादी के बाद लेखिका बिहार के कौन से कस्बे में रही? - shaadee ke baad lekhika bihaar ke kaun se kasbe mein rahee?

Chapter Notes and Summary
‘मेरे संग की औरतें’ मृदुला गर्ग द्वारा रचित संस्मरण है‚ जिसमें उन्होंने अपने परिवार की औरतों के बारे में बताया है। उस समय औरतों की सोच किस प्रकार की होती थी। उनका कहना है कि लोग अपनी परंपराओं को निभाते हुए भी स्वतंत्र रूप से अपना कार्य कर सकते हैं।
लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा नहीं था‚ वे पारंपरिक‚ अनपढ़‚ पर्दानशीं थीं। उनके पति शादी के तुरंत बाद उन्हें छोड़कर विलायत बैरिस्टर की पढ़ाई पढ़ने के लिए चले गए। परंतु उनकी (लेखिका की) नानी पर विदेशी शानो-शौकत भरी जिंदगी का कोई असर नहीं हुआ जबकि उनके नाना विदेशी शानो-शौकत के साथ रहना पसंद करते थे।
कम उम्र में जब उनकी नानी ने अपने को मौत के करीब देखा तो उन्होंने अपनी पंद्रह वर्षीय बेटी की शादी का जिम्मा अपने पति के दोस्त प्यारेलाल शर्मा‚ जो स्वतंत्रता सेनानी थे‚ को सौंप दिया। क्योंकि वे अपनी बेटी की शादी एक (स्वतंत्रता सेनानी) आजाद सिपाही से करना चाहती थीं। लेखिका की माँ की शादी एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ हो गई। लेखिका की माँ दुबली-पतली एवं खूबसूरत थीं।
उन्होंने शादी के बाद खादी की साड़ी पहनने का निर्णय लिया क्योंकि उनके पति गाँधीजी के विचारों को मानते थे। छोटी उम्र और दुबली-पतली होने के कारण वे खादी की भारी-भरकम साड़ी को पहनने में कठिनाई का अनुभव करती थीं। उनसे कोई कठिन कार्य नहीं कराया जाता था। यहाँ तक कि वे बच्चों के लिए खाना भी नहीं पकाती थीं। ज्यादा लाड़-प्यार भी बच्चों को नहीं करती थीं। उन्हें साहित्य पढ़ने और संगीत सुनने का बेहद शौक था। उनमें दो बातें बहुत अच्छी थीं—1. वे झूठ नहीं बोलती थीं 2. किसी बात को दूसरे से नहीं कहती थीं (गोपनीयता बरकरार रखती थीं।) अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण घर-परिवार में उनका काफी आदर और सम्मान किया जाता था। माँ की भूमिका पिताजी निभा दिया करते थे। किसी एक के
पत्र को कोई दूसरा नहीं खोलता था। सबकी अपनी निजी जिंदगी थी‚ इसके लिए सभी को छूट थी। इसी कारण लेखिका‚ तीनों बहनें और छोटा भाई लेखन का कार्य करने लगे।
लेखिका की परदादी को भी परंपराओं से हटकर जीने का शौक था। इसी वजह से जब लेखिका की माँ पहली बार गर्भवती हुई तो उन्होंने मंदिर में जाकर मन्नत माँगी कि उनकी पतोहू की पहली संतान लड़की हो। उनकी बात सुनकर सभी गाँव वाले भौचक्के रह गए‚ परंतु उनके तार ऊपर वाले (भगवान) से जुड़े थे जिसके फलस्वरूप उनके यहाँ एक के बाद एक लगातार पाँच कन्याओं ने जन्म लिया।
इसी प्रकार एक बार की बात है कि गाँव में किसी का विवाह था। गाँव के सभी आदमी बारात में गए हुए थे और औरतें रतजगा कर रही थीं। इसी बीच एक चोर सेंध लगाकर परदादी के कमरे में घुस आया। चोर के पैरों की आवाज सुनकर उनकी नींद खुल गई यद्यपि गाने-बजाने का शोर हो रहा था। उन्होंने कहा कौन है‚ उत्तर में चोर बोला ‘जी मैं हूँ।’ परदादी ने उससे कहा कि पानी ले आ। चोर सकपकाया‚ परंतु परदादी के जोर देने पर वह उनके लिए कुएँ से पानी ले आया।
उन्होंने लोटे का आधा पानी पीकर आधा चोर को पिला दिया और कहा कि एक लोटे से पानी पीकर हम दोनों माँ-बेटे हो गए। अब तू चाहे चोरी कर चाहे खेती कर।
बेचारा चोर चोरी छोड़कर खेती करने लग गया।
15 अगस्त‚ 1947 को जब देश को आजादी मिली और देश में जश्न मनाया जा रहा था‚ तो उस समय मैं (लेखिका) दुर्भाग्यवश बीमार हो गई थी। इस कारण उन्हें इंडिया गेट जश्न देखने की इजाजत डॉक्टर ने नहीं दी। उनके रोने-धोने से तंग आकर उनके पिता ने उन्हें ‘ब्रदर्स कारामजोव’ नामक उपन्यास पढ़ने के लिए दे दिया‚ जो बच्चों के अनाचार-अत्याचार पर आधारित था। लेखिका को यह पहली बार में ही कंठस्थ हो गया।
माँ जी की मन्नत का ही प्रभाव था कि उसकी चारों बहनों में लड़की होने के बावजूद हीन भावना नहीं थी। पहली लड़की जिसके लिए माँ जी ने मन्नत माँगी थी‚ वह लेखिका की बड़ी बहन मंजुला भगत थी। उसका घर का नाम रानी था। दूसरे नंबर पर स्वयं लेखिका थी जिनका घर का नाम उमा था। लेखिका की तीसरे नंबर की बहन का घर का नाम गौरी था जिसे बाहर सब चित्रा के नाम से जानते थे।
उससे छोटी बहन रेणु थी और सबसे छोटी बहन का नाम अचला था। इन पाँचों बहनों से छोटा एक भाई था जिसका नाम राजीव था। अचला अंग्रेजी में लिखती थी और राजीव हिंदी में।
लेखिका की चौथी बहन रेणु को कार में बैठना पसंद नहीं था। वह इसे सामंत शाही मानती थी और भरी दोपहर में स्कूल से पैदल घर जाती थी। वहीं अचला गाड़ी में बैठकर घर जाती थी। बचपन में एक बार चुनौती दिए जाने पर उसने जनरल थिमैया का चित्र भी मँगवा लिया था। उसे परीक्षा देना पसंद नहीं था। स्कूली परीक्षाएँ तो फिर भी पास कर लीं परंतु बीए करने से उसने इंकार कर दिया। लेकिन बाद में पिता की खुशी के लिए उसने बीए की परीक्षा पास की। सच बोलने में तो वह माँ से भी आगे थी।
लेखिका की तीसरे नंबर की बहन को पढ़ने से ज्यादा पढ़ाने में रुचि थी। इस कारण उसके नंबर कम आते थे। उसने अपनी पसंद के लड़के से शादी की।
लेखिका की सबसे छोटी बहन अचला ने अर्थशास्त्र‚ पत्रकारिता आदि में पढ़ाई करने के बाद पिता की इच्छा से ही विवाह किया। परंतु वह भी बीस वर्ष की होते-होते लेखन के क्षेत्र में उतर आई। सभी बहनों ने परंपरागत रूप से न चलते हुए भी अपने परिवार को तोड़ा नहीं।
शादी के बाद लेखिका को बिहार के एक छोटे से कस्बे डालमिया नगर में रहना पड़ा। वह दिल्ली के कॉलेज की नौकरी छोड़कर वहाँ गई थी। लेखिका को नाटक करने का भी शौक था। अत: वहाँ उसने अकाल राहत कोष के लिए नाटक किया था।
लेखिका ने अंग्रेजी‚ कन्नड़‚ हिंदी तीन भाषा पढ़ाने वाला प्राइमरी स्कूल खोला और कर्नाटक सरकार से उसे मान्यता भी दिलवाई।
लेखिका स्वभाव से बहुत जिद्दी थी। इस जिद्द के कारण ही वह अपने को लेखन के क्षेत्र में आगे ले गई। परंतु उसकी छोटी बहन रेणु उससे भी ज्यादा जिद्दी थी। एक बार 1950 में दिल्ली में खूब बारिश हुई‚ सभी जगह पानी भर गया।
यातायात ठप हो गया था। रेणु की स्कूल की बस नहीं आई पर उसने तय कर लिया था कि उसे स्कूल जाना है‚ अत: वह पैदल ही दो किलोमीटर चलकर स्कूल गई।
स्कूल बंद था‚ अत: उसे वापस लौटना पड़ा। लेखिका कहती है कि सुनसान शहर में निचाट अकेले‚ अपनी धुन में मंजिल की तरफ चलते चले जाना भी एक अनोखा अनुभव है। अकेलेपन का मजा ही कुछ और है।

लेखिका शादी के बाद बिहार के कौन से कस्बे में रहने लगी?

शादी के बाद लेखिका बिहार के डालमियानगर नामक कस्बे में रही थी। लेखिका को शादी के बाद बिहार के एक छोटे से कस्बे डालमियानगर में रहना पड़ा था। लेखिका ने देखा कि वहाँ का समाज पिछड़ा हुआ था। वहाँ के पुरुष-स्त्री भले ही वे पति पत्नी क्यों ना हों, फिल्म देखते समय अलग-अलग बैठे थे।

शादी के बाद लेखिका कहाँ पर रहने लगी?

शादी के बाद लेखिका को कर्नाटक के बागनकोट में रहना पड़ा वहाँ उसके बच्चों की शिक्षा हेतु उचित प्रबंध न था। उसने वहाँ के कैथोलिक विशप से प्राइमरी स्कूल खोलने का अनुरोध किया।

लेखिका बिहार के कौन से कस्बे में गई जहां नाटक के माध्यम से उसने पैसा इकट्ठा किया?

अगले चार साल तक हमने कई नाटक किए। अकाल राहत कोष के लिए, उन्हीं के माध्यम से पैसा भी इकट्ठा किया। वहाँ से निकली तो कर्नाटक के और भी छोटे कस्बे, बागलकोट में पहुँच गई

मेरे संग की औरतें में लेखिका की कितनी बहने थी?

Answer: लेखिका ने अपनी अन्य चारों बहनों मंजुला भगत, चित्रा, अचला और रेणु तथा अपने एकमात्र भाई राजीव का परिचय दिया है।