दिल्ली नगर निगम क्या क्या काम करती है? - dillee nagar nigam kya kya kaam karatee hai?

बिलासपुर। अाप जानना चाहते होंगे कि नगर निगम की परिषद् कैसे काम करता है। हम आपकों बताएंगे कि जनता के प्रतिनिधि और सरकारी अधिकारी किस तरह चुने जाते हैं। उनका कार्यकाल कितना होता है आदि।

मेयर : कार्यकाल पांच वर्ष , चुनाव सीधे जनता द्वारा

नगर निगम परिषद् और मेयर इन कौंसिल के मुखिया। नियम-कानून में अधिकारों का दायरा सीमित। शहर के प्रथम नागरिक के रूप में ऊंचा ओहदा।

अध्यक्ष : कार्यकाल पांच वर्ष, चुनाव पार्षदों द्वारा

नगर निगम परिषद् के स्पीकर। मेयर की सहमति से निगम परिषद् की बैठक बुलाते हैं। बैठक की अध्यक्षता करते हैं। इस बैठक में तय एजेंडे पर निर्णय लिए जाते हैं।

मेयर इन कौंसिल: कार्यकाल मेयर के विवेक पर | मेयर द्वारा मनोनयन

महापौर का मंत्रिमंडल माना जाता है। मेयर इसके सभापति होते हैं। न्यूनतम पांच और अधिकतम 11 सदस्य शामिल होते हैं, जिन्हें विभिन्न समितियों का प्रभारी बनाया जाता है।

66 पार्षद: कार्यकाल पांच वर्ष, चुनाव सीधे जनता द्वारा

आयुक्त: भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी

नगर निगम के अमले का प्रशासनिक मुखिया। अधिकारों से संपन्न। शासन से मिलने वाले आदेशों और निर्णयों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है।

उपायुक्त: प्रशासनिक नियंत्रण के लिए जोन व्यवस्था

आयुक्त के अधीन काम करते हैं और उनके द्वारा सौंपे गए दायित्वों को पूरा करने की जिम्मेदारी इन्हीं की है। कुछ अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवा के भी होते हैं।

दिल्ली नगर निगम चुनाव (MCD) के नतीजे आ चुके हैं. लगातार 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) को इस बार हार झेलनी पड़ी है और अब नगर निगम पर अब आम आदमी पार्टी (AAP) का कब्जा हो गया है. दिल्ली नगर निगम में कुल 250 वार्ड्स हैं. चुनाव से ठीक पहले तक दिल्ली में अलग-अलग तीन नगर निगम थे. लेकिन चुनाव से पहले तीनों का विलय कर एक निगम बना दिया गया. 

दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के शासनकाल के दौरान साल- 2011 में दिल्ली नगर निगम संशोधन विधेयक को पारित किया गया था. इसके तहत एमसीडी को तीन भागों में बांटा गया. जिसके बाद 2012 में निगम चुनाव अलग-अलग हुए थे. लेकिन अब फिर पूर्वी दिल्ली नगर निगम, उत्तर दिल्ली नगर निगम और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम एक हो गया है. 

पार्षद का कार्यक्षेत्र

इस बार एमसीडी चुनाव (MCD Election) में साफ-सफाई, भ्रष्टाचार, पेयजल और सड़क निर्माण मुख्य मुद्दे थे. इसके अलावा भी कई मुद्दे उछाले गए, लेकिन जनता को जिन चीजों को लेकर हर रोज समस्या झेलनी पड़ती थी. उसे ध्यान में रखकर उन्होंने अपने मतों का प्रयोग किया. अब चुन गए पार्षदों की जिम्मेदारी है कि जनता से किए वादों को पूरे किए जाएं.

लेकिन क्या आपको पता है दिल्ली में एक पार्षद को अपने इलाके में विकास के लिए सालाना कितना फंड मिलता है? इसके अलावा लोगों में ये जानने की इच्छी होती है कि पार्षद की कमाई कहां से होती है? उन्हें कितनी सैलरी मिलती है? एक पार्षद जो इतना आपके एरिया में काम कराने का जिम्मेदार होता है, वो कैसे अपना खर्च चलाता है.

सबसे पहले ये जानने की कोशिश करते हैं कि पार्षद (Councillor) को विकास के लिए कितना फंड मिलता है. अगर बीते वर्षों की बात करें तो दिल्ली नगर निगम तीन हिस्सों में बंटा था. तीनों इलाकों के अलग-अलग मेयर थे. लेकिन अब एक मेयर होंगे. पिछले कार्यकाल की बात करें दिल्ली नगर निगम के पार्षदों के लिए कोई तय फंड निर्धारित नहीं है.

पार्षद को कितना मिलता है फंड? (Councillor Fund in Delhi)

जानकारी के मुताबिक पार्षदों को सालाना 50 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक का फंड मिलता है, लेकिन ये भी निर्धारित नहीं है. पिछले दो वर्षों में कोरोना महामारी की वजह से फंड में कटौती भी की गई थी. काउंसलर को यह फंड अपने क्षेत्र में विकास के लिए मिलता है. आंकड़ों को देखें तो दिल्ली में कुछ पार्षद बीते साल पूरे फंड का इस्तेमाल भी नहीं कर पाए थे. कई बार निगम और दिल्ली सरकार में अलग-अलग पार्टियां होने की वजह से फंड को लेकर गतिरोध देखने को मिला था. लेकिन अब दोनों जगहों पर आम आदमी पार्टी की सरकार होगी, तो तस्वीर दूसरी हो सकती है. साथ ही निगम का बजट बढ़ाने पर भी विचार किया जा सकता है. 

अगर नगर निगम के कार्य को देखें तो सफाई, पीने के पानी का व्यवस्था करना, सड़क बनाना और मरम्मत करना, सड़कों और गलियों में लाइटिंग, नालियों की सफाई, अस्पताल खोलना, आग से सुरक्षा, श्मशान घाट बनवाना, टीके लगाना, जन्म एवं मृत्यु का निबंधन करना, पार्क बनवाना, प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना और लाइब्रेरी का प्रबंध करना है. अगर आमदनी की बाते करें तो नगर निगम को अपने कार्यों के लिए पैसा लोगों द्वारा दिए गए कर (टैक्सों) से मिलता है. 

पार्षद की सैलरी (Councillor Salary in Delhi)

जहां तक पार्षदों की कमाई का मामला है तो इसको लेकर फिक्स डेटा उपलब्ध नहीं है. क्योंकि दिल्ली नगर निगम के पार्षदों को फिक्स सैलरी के तौर पर कुछ नहीं मिलता है. निगम में चुने गए एक पार्षद को हर मीटिंग के 300 रुपये तक मिलते हैं. एक पार्षद की महीने में कम से कम 6 मीटिंग होती हैं. हालांकि, बाकी खर्चों के लिए भी दिल्ली नगर निगम पार्षदों को अलग से पैसे मिलते हैं. जिसे आप भत्ते के तौर पर जानते हैं. राजधानी दिल्ली के लोगों को बेहतर सेवाएं देने के लिए दिल्ली नगर निगम 7 अप्रैल, 1985 को अस्तित्व में आया था.

नई दिल्ली: चुनाव इस शब्द से भारत की अधिकांश जनता वाकिफ है। देश में अलग-अलग लेवल पर कई चुनाव होते हैं। मुखिया, पार्षद, विधायक और सांसद का चुनाव। दिल्ली में भी एमसीडी चुनाव होने जा रहे हैं और इस बार का चुनाव थोड़ा अलग है। दिल्ली नगर निगम (MCD) अब एक है और इस बार 250 वार्ड पर चुनाव है। एमसीडी है क्या? पार्षद कैसे चुने जाते हैं और आखिर पार्षदों का रोल क्या है। दिल्ली में MLA भी हैं और पार्षद भी... दोनों के कार्यक्षेत्र और भूमिका किस प्रकार अलग है। एमसीडी और टाउनहॉल के बीच दिल्ली में क्या कनेक्शन है यह समझना जरूरी है। जिस तरीके से राजनीतिक दल एमसीडी पर कब्जा जमाना चाहते हैं उसी तरह पब्लिक के लिए भी यह जानना जरूरी है कि उनका रोल सिर्फ वोट डालने तक सीमित नहीं है।

64 साल पहले की बात है जिसे समझना जरूरी है
एमसीडी की यात्रा 64 साल पहले दिल्ली चांदनी चौक स्थित ऐतिहासिक टाउनहॉल से शुरू होती है। तब दिल्ली के दिल में स्थित 150 साल से अधिक पुराना टाउन हॉल नगर निकाय की सत्ता का केंद्र हुआ करता था। एमसीडी की पहली मेयर स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ अली थीं। राजधानी दिल्ली के अधिकतर हिस्से पर एकीकृत एमसीडी का शासन था। एमसीडी का गठन संसद द्वारा पारित दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के तहत किया गया। जानकारी के मुताबिक भारत की आजादी के एक दशक बाद नीति निर्माता जब एमसीडी के बारे सोच रहे थे तो तो इसे 'बॉम्बे नगर निगम' की तर्ज पर गठित करने का फैसला लिया गया था। टाउन हॉल में पुराने आयुक्त के कार्यालय में लगे एक पुराने उत्तराधिकार बोर्ड के अनुसार, दिल्ली के पहले नगर आयुक्त, पीआर नायक ने भी 7 अप्रैल, 1958 को कार्यभार संभाला था और उनका कार्यकाल 15 दिसंबर, 1960 को समाप्त हो गया था।

पार्षदों की संख्या और अब एक नगर निगम
साल 1958 में एमसीडी में पार्षदों की संख्या 80 थी। इसके बाद यह बढ़कर 134 और 2007 में यह संख्या 272 तक पहुंच गई। साल 2011 में जब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं तब नगर निगम को तीन हिस्सों उत्तरी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में विभाजित कर दिया गया। इस दौरान उत्तरी दिल्ली नगर निगम और दक्षिण दिल्ली नगर निगम में फिलहाल 104-104 वहीं पूर्वी दिल्ली दिल्ली में 64 वार्ड पर चुनाव हुए और तीनों ही जगह मेयर अलग- अलग चुने गए। करीब 11 साल बाद फिर दोबारा से एमसीडी को मोदी सरकार में एक कर दिया गया। इसके लिए जब विधेयक पारित किया उसमें इस बात का जिक्र था कि वार्ड की संख्या 250 से अधिक नहीं होगी। एमसीडी चुनाव के लिए अब तारीखों का ऐलान हो गया है और 250 सीटों पर 4 दिसंबर को चुनाव होगा।

एमसीडी के पास कैसी जिम्मेदारी
स्ट्रीट लाइट, प्राइमरी स्कूल, प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, शमशान और जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र, डिस्पेंसरीज, ड्रेनेज सिस्टम, बाजारों की देखरेख इसका जिम्मा एमसीडी के पास है। एमसीडी के जरिए कई ऐसे काम किए जाते हैं जो लंबे समय में सभी पार्टियों के वोट बैंक के लिए बेहद अहम होता है। सड़क निर्माण से लेकर स्कूल और टैक्स कलेक्शन आय का बड़ा स्रोत होता है। दिल्ली एमसीडी का बजट करीब 15 हजार करोड़ से ज्यादा का है। इस बड़े बजट के जरिए कई सारे विकास कार्यों को अंजाम दिया जाता है। ऐसे में इतने बड़े बजट वाले एमसीडी पर कब्जा करने की हसरत सभी दलों की रहती है।

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एमसीडी को दिल्ली सरकार से भी खर्चे के लिए बजट मिलता है। दिल्‍ली सरकार और नगर निगम के अधिकार अलग है लेकिन कई मिलते जुलते हैं। सड़क का निर्माण एमसीडी और दिल्ली सरकार दोनों ही करती है। एक ओर जहां 60 फीट से कम चौड़ी सड़का जिम्मा एमसीडी के पास तो वहीं इससे अधिक सड़क चौड़ी दिल्ली सरकार के पास। स्कूल दोनों के पास हैं प्राइमरी एमसीडी के पास तो वहीं हायर स्कूल का जिम्मा दिल्ली सरकार के पास है। एमसीडी के पास कई डिस्‍पेंसरी है तो वहीं बड़े हॉस्पिटल की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के पास है।

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हाउस, लाइसेंस के लिए एक टैक्स
अब दिल्ली नगर निगम का एक ही मुख्यालय होगा। तीन की बजाय नगर निगम का एक ही सदन होगा। एक ही मेयर, एक ही स्टैंडिंग कमिटी। इसके अलावा अब हाउस टैक्स, लाइसेंस आदि के लिए एक ही नीति होगी। अब तक तीनों निगम हाउस टैक्स जमा कराने की अंतिम तिथि भी अलग अलग ही तय करते थे लेकिन अब इस मामले में पूरी दिल्ली में एकरूपता होगी। अब तक दिक्कत ये थी कि तीनों निगमों की आमदनी एक जैसी नहीं थी। पहले दक्षिणी नगर निगम की आमदनी अच्छी थी जबकि बाकी दोनों निगमों की आमदनी कम थी। आमदनी में संतुलन न होने की वजह से भी दिक्कत थी। अब तीनों निगम एक होने से एक ही जगह आमदनी आएगी और तीन तीन निगम होने से जो अतिरिक्त खर्च हो रहा था, वह भी कम हो जाएगा। इससे निगम की वित्तीय स्थिति कुछ सुधरने की उम्मीद है।

नगर निगम के कार्य क्या है?

कानूनी रूप से नगर निगम तब स्थापित होते हैं जब किसी नगर, बस्ती या ग्राम को स्वशासन का अधिकार दिया जाता है। यह एक कानूनी लिखत जारी कर किया जाता है, जिसे नगरीय अधिकारपत्र (municipal charter) कहा जाता है, जिसमें प्रशासन संचालन व उच्चतम नगर अधिकारियों के चुनाव या नियुक्ति की विधि स्पष्ट करी जाती है।

दिल्ली में कुल कितने नगर निगम है?

इसके अलावा, यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पांच स्थानीय निकायों में से एक है, अन्य उत्तर दिल्ली नगर निगम, पूर्वी दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगर परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड हैं।

नगर निगम अपने काम के लिए धन कहाँ?

प्रश्न 5: नगर निगम अपने काम के लिए धन कहाँ से प्राप्त करता है? उत्तर: नगर निगम अपने काम के लिए विभिन्न तरह के कर जैसे- संपत्ति कर, मनोरंजन कर, दुकान और होटल पर कर, पानी पर कर, आदि से धन इकट्ठा करता है।

एमसीडी में शिकायत कैसे करें?

MCD का टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर 155305 है और संपत्ति (प्रॉपर्टी) टैक्स हेल्पलाइन नंबर +911123227413 है , जिसका उपयोग मुद्दों के बारे में शिकायत दर्ज करने के लिए किया जा सकता है।