धातु रोग की सबसे अच्छी दवा कौन सी है? - dhaatu rog kee sabase achchhee dava kaun see hai?

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धातु रोग की सबसे अच्छी दवा कौन सी है? - dhaatu rog kee sabase achchhee dava kaun see hai?

धातु (धात) रोग की आयुर्वेदिक दवा और इलाज - Ayurvedic medicine and treatment for Spermatorrhea (Dhat rog) in Hindi

धातु रोग की सबसे अच्छी दवा कौन सी है? - dhaatu rog kee sabase achchhee dava kaun see hai?

कई बार आवाज़ आने में कुछ क्षण का विलम्ब हो सकता है!

धातु रोग की सबसे अच्छी दवा कौन सी है? - dhaatu rog kee sabase achchhee dava kaun see hai?

धातु रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें सेक्स ना करने पर भी अनैच्छिक वीर्यस्‍खलन होता है। ये दिन में जागते या रात में सोते समय हो सकता है। अगर किसी पुरुष को सप्‍ताह में तीन बार से ज्‍यादा शुक्रपात (वीर्यस्‍खलन) के साथ-साथ चक्‍कर आना, अनिद्रा, कमर और पैरों में कमजोरी या एनर्जी में कमी महसूस होती है तो इस समस्‍या को रोग के रूप में जाना जाता है। बहुत ज्‍यादा सेक्‍स, हस्‍तमैथुन, भावनात्‍मक रूप से असंतुलन और शराब पीने की वजह से धातु रोग हो सकता है।

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आयुर्वेद में धातु रोग को धात सिंड्रोम बताया गया है जिसमें वीर्य का नुकसान होने लगता है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार पुरुषों के शरीर में वीर्य एक महत्‍वपूर्ण तत्‍व होता है और इसका शरीर से अधिक निकलना वीर्य के नुकसान को दर्शाता है। धात रोग जैसे प्रजनन प्रणाली से संबंधित रोगों के इलाज के लिए खानपान में बदलाव और हर्बल उपचार की सलाह दी जाती है।

पंचकर्म थेरेपी में से बस्‍ती (एनिमा) और स्‍नेहन (तेल लगाना) की मदद से खराब हुए शुक्र धातु को वापिस से संतुलन में लाकर धातु रोग का इलाज किया जाता है। धात रोग के इलाज के लिए आयुर्वेद में जड़ी बूटियों एवं हर्बल मिश्रण जैसे कि अश्वगंधा, बाला और गुडूची के साथ अभ्रक भस्‍म का इस्‍तेमाल किया जाता है।  

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से धातु रोग - Ayurveda ke anusar Dhat rog kya hota hai
  2. धातु रोग का आयुर्वेदिक इलाज - Dhat rog ka ayurvedic ilaj
  3. धात रोग की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Dhatu rog ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार धातु (धात) रोग होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar dhat rog me kya kare kya na kare
  5. धातु रोग के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Dhatu rog ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. धात रोग की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Dhatu rog ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. धातु (धात) रोग की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Dhat rog ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav

धातु रोग की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

धातु रोग की सबसे अच्छी दवा कौन सी है? - dhaatu rog kee sabase achchhee dava kaun see hai?

आयुर्वेद के दृष्टिकोण से धातु रोग - Ayurveda ke anusar Dhat rog kya hota hai

आयुर्वेद के अनुसार शुक्र पुरुषों में पाया जाने वाला एक सफेद, चिकना, गाढ़ा और मीठा पदार्थ है जो कि गर्भोत्‍पादन (प्रजनन) का कार्य करता है। इसके अलावा ये पुरुषों के आकर्षण, शारीरिक मजबूती, बुद्धि और याददाश्‍त में सुधार लाने में मदद करता है। इस वजह से वीर्य के नुकसान का संबंध पुरुषों की यौन शक्‍ति में कमी के साथ-साथ याददाश्‍त कम होने और मानसिक असंतुष्टि से होता है।

चरक संहिता में वीर्य के नुकसान या वीर्य के जैसे पदार्थ को शुक्‍लमेह (पेशाब में सफेद पदार्थ), शुक्रमेह (वीर्य का अपने आप निकलना) और सीतमेह (मीठा और ठंडा पेशाब) के रूप में उल्लिखित किया गया है।

शादी से पहले यौन संबंध बनाने, कम व्यायाम करने, बहुत ज्‍यादा सेक्‍स या यौन इच्‍छा रखने, कम पानी पीने, धातु में चोट लगने, वसंत ऋतु में यौन क्रिया करने, डर या दुख, दिन के समय संभोग करने और गंदा भोजन करने से शुक्र धातु खराब होकर धात सिंड्रोम का रूप ले सकता है।

(और पढ़ें - सेक्स कब और कितनी बार करें)

बढ़ती उम्र और अन्‍य धातु के खराब होने की वजह से भी धात रोग हो सकता है। धात सिंड्रोम से ग्रस्‍त पुरुषों को एनर्जी में कमी, लिंग का आकार घटने, पेशाब के दौरान जलन, प्रोत्‍साहन में कमी, मानसिक रोग, डिप्रेशन और शरीर में खनिज पदार्थों (मिनरल्‍स) की कमी महसूस होती है।

(और पढ़ें - शुक्राणु की कमी के लक्षण)

शमन (शांत करना) और शोधन (शुद्धिकरण) थेरेपी से शुक्र धातु को वापिस से संतुलन में लाया जाता है। आयुर्वेदिक उपचार के साथ-साथ पुरुषों के व्‍यवहार में सकारात्‍मक बदलाव लाने के लिए थेरेपी दी जाती है। इसके अलावा आराम, अत्‍यधिक वीर्यस्‍खलन करने वाले कारणों को दूर कर के एवं व्‍यायाम की मदद से धात रोग को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। ब्रह्मचर्य या अविवाहित जीवन की मदद से वीर्य पर पूरा नियं‍त्रण पाया जा सकता है एवं यौन रोगों को रोका जा सकता है। 

  • कटिस्‍नान
    • कटि स्‍नान से यौन अंगों, गुदा और गुदा एवं अंडकोष के बीच वाले हिस्‍से को साफ करने में मदद मिलती है। इन अंगों को प्रभावित करने वाली किसी भी समस्‍या के इलाज में कटि स्‍नान उपयोगी है।
    • इसमें एक टब में व्‍यक्‍ति को इस तरह से बैठने के लिए कहा जाता है कि उसके यौन अंग टब के पानी में डूब जाएं तथा पैर बाहर रखने होते हैं।
    • इस स्‍नान से व्‍यक्‍ति को ताजगी और स्‍फूर्ति मिलती है। ये मांसपेशियों को आराम और रक्‍त प्रवाह को बेहतर करता है।
    • माहवारी में होने वाली ऐंठन, बवासीर, प्रसव के बाद योनि मुख के बीच के हिस्‍से को आराम देने, प्रोस्टेटाइटिस में प्रोस्‍टेट दर्द से राहत देने में कटि स्‍नान मदद कर सकता है। ये यौन अंगों और गुदा के आसपास वाले हिस्‍से में साफ-सफाई रखने में भी मदद करता है। (और पढ़ें - निजी अंगों की सफाई कैसे करें)
    • जिंक से बने एक बड़े टब में गुनगुना पानी भर कर कटि स्‍नान घर पर ही किया जा सकता है। स्‍नान के बाद सूखे तौलिए से शरीर को सुखाकर गर्म कपड़े पहनने चाहिए।
    • ठंडे कटि स्‍नान से मूत्र तंत्र की नसों को आराम मिलता है। ये प्रक्रिया विशेष तौर पर रात में होने वाले स्‍खलन में सहायक है।
       
  • स्‍नेहन
    • इस चिकित्‍सा में औषधीय जड़ी बूटियों और तेल से शरीर को बाहरी और अंदरूनी रूप से चिकना किया जाता है।
    • स्‍नेहन से पहले पंचकर्म की शोधन प्रक्रिया की जाती है जिससे शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों से अमा (विषाक्त पदार्थ) को पतला कर के बाहर निकाला जाता है।
    • बाहरी स्‍नेहन में हर्बल तेलों को त्‍वचा या सिर की त्‍वचा (स्‍कैल्‍प) पर लगाया जाता है। आंतरिक स्‍वेदन में गुदा, मुंह और नासिका मार्ग के ज़रिए तेलों को शरीर के अंदर डाला जाता है।
    • स्‍नेहन चिकित्‍सा में सामान्‍य तौर पर इस्‍तेमाल होने वाले घटकों में मक्‍खन, दूध, पशु के मांस, सरसों का तेल, अस्थि मज्‍जा और तिल का तेल शामिल है।
    • स्‍नेहन खराब शुक्र धातु के इलाज में लाभकारी है। अत: धात रोग के लक्षणों से राहत पाने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • स्‍वेदन
    • स्‍वेदन चिकित्‍सा में शरीर पर पसीना लाया जाता है। इस चिकित्‍सा से न केवल रोग का इलाज होता है बल्कि संपूर्ण सेहत में भी सुधार आता है।
    • बष्‍प स्‍वेद में स्‍टीम चैंबर (भाप से युक्‍त कक्ष) का इस्‍तेमाल किया जाता है। ये शरीर में रक्‍त प्रवाह में सुधार और अमा को हटाने एवं मांसपेशियों में दर्द को दूर करता है। (और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के उपाय)
    • परिषेक स्‍वेद में गर्म औषधीय तेलों को पूरे शरीर पर डाला जाता है। ये फ्रैक्‍चर और गैस्ट्रिक कार्य में सुधार लाने में मदद करता है।
    • अवगाह स्‍वेद में गर्म औषधीय तरल से भरे टब में व्‍यक्‍ति को बिठाया जाता है। ये खराब वात को कम करने और रुमेटिज्‍म एवं हर्निया जैसे रोगों के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - वात क्या होता है)
    • स्‍वेदन से सर्दी, शरीर में अकड़न और भारीपन को कम करने में मदद मिलती है। ये अमा को भी बाहर करता है।
    • खराब शुक्र धातु को संतुलन में लाने के सामान्‍य इलाज के रूप में ये चिकित्‍सा दी जाती है। अत: ये धात रोग और शुक्र धातु में असंतुलन के कारण हुए अन्‍य रोगों के इलाज में मदद कर सकती है।
       
  • बस्‍ती
    • बस्‍ती चिकित्‍सा एक आयुर्वेदिक एनिमा है जिसमें औषधीय काढ़े, तेल या पेस्‍ट से बड़ी आंत को साफ किया जाता है। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि)
    • शरीर से अमा को हटाने के लिए शोधन एनिमा का इस्‍तेमाल किया जाता है। लेखन एनिमा का इस्‍तेमाल वसा को घटाने और स्‍वेदन एनिमा शरीर को चिकना करने के लिए इस्‍तेमाल किए जाते हैं।
    • बस्‍ती चिकित्‍सा जलोदर, न्‍यूरोमस्‍कुलर रोग, मूत्र तंत्र से संबंधित समस्‍या, दौरे, कृमि रोग, एनोरेक्‍टल (गुदा एवं मलाशय से संबंधित) विकार और पथरी के इलाज में उपयोगी है।
    • बस्‍ती चिकित्‍सा में शरीर से मल के निकलने के बाद व्‍यक्‍ति को पेट में हल्‍कापन महसूस होता है।
    • वात के खराब होने के कारण हुए धात रोग की स्थिति में निरुह और अनुवासन बस्‍ती दी जाती है। 

धात रोग की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Dhatu rog ki ayurvedic dawa aur aushadhi

धात रोग के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • अश्‍वगंधा
    • आयुर्वेद में ऊर्जादायक जड़ी बूटियों में अश्‍वगंधा का नाम भी शामिल है। इसमें कवक (फफूंद) को खत्‍म करने वाले, संकुचक (ऊतकों को संकुचित करने वाले), कामोत्तेजक, एंटीबायोटिक, सूजन-रोधी, शक्‍तिवर्द्धक और प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार लाने वाले गुण मौजूद होते हैं।
    • पुरुषों में अश्‍वगंधा वीर्य की गुणवत्ता और मांसपेशियों की मजबूती को बढ़ाती है। ये अस्थि मज्‍जा के कार्य में सुधार एवं ताकत और बुद्धि में भी वृद्धि करती है।
    • अश्‍वगंधा का इस्‍तेमाल कई स्‍वास्‍थ्‍य संबंधित समस्‍याओं जैसे कि हाइपरटेंशन, दस्त, रुमेटिज्‍म, ठंड लगने, एनीमिया, टीबी, कंडू (स्‍कैबीज), शराब की लत, गठिया, सोरायसिस और अस्‍थमा के इलाज में किया जाता है।
    • पुरुषों और महिलाओं के प्रजनन तंत्र को प्रभावित करने वाले रोगों जैसे कि लिकोरिया, वीर्य में चिपचिपाहट की कमी, धात रोग और यौन कमजोरी के इलाज में भी अश्‍वगंधा उपयोगी है। (और पढ़ें - यौन शक्ति बढ़ाने के उपाय)
    • अश्‍वगंधा को काढ़े, तेल, हर्बल वाइन, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • शतावरी
    • महिलाओं में प्रजनन तंत्र से संबंधित समस्‍याओं और रोगों (प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित करने वाले) के इलाज में प्रमुख तौर पर शतावरी का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • इसमें कामोत्तेजक, शक्‍तिवर्द्धक, दस्‍त रोकने और भूख बढ़ाने वाले गुण मौजूद हैं। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने का उपाय)
    • शतावरी हाइपरएसिडिटी, फेफड़ों और किडनी से संबंधित समस्‍याओं, कैंसर, सूजन, खून की उल्टी, रुमेटिज्‍म और पानी की कमी को दूर करने में मदद करती है।
    • ये यौन विकारों जैसे कि नपुंसकता, बांझपन, धात रोग, नींद के दौरान वीर्यस्‍खलन, सूजाक (गोनोरिया) और ल्‍यूकोरिआ से राहत दिलाती है।
    • शतावरी पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्‍या में भी सुधार लाती है। (और पढ़ें - शुक्राणु बढ़ाने के घरेलू उपाय)
    • आप शतावरी को पाउडर, घी, काढ़े, तेल के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • गोक्षुरा
    • आयुर्वेद में मूत्र तंत्र से जुड़ी समस्‍याओं के लिए गोक्षुरा को बेहतरीन जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। इसमें कामोत्तेजक, दर्द निवारक, शक्‍तिवर्द्धक और ऊर्जादायक गुण होते हैं। ये श्‍वसन, तंत्रिका और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये शरीर से अमा (विषाक्‍त पदार्थ) को बाहर निकालती है और यौन रोग, बवासीर, किडनी रोगों, लूम्‍बेगो (कमर या लम्‍बर क्षेत्र में होने वाला दर्द), साइटिका, गठिया और गर्भाशय से संबंधित समस्‍याओं के इलाज में मदद करती है। ये सांस लेने में आ रही दिक्‍कत को भी दूर करती है।
    • गोक्षुरा वीर्य की कमजोरी को दूर करने और धात रोग, नपुंसकता, बांझपन, दूध कम आना, सिस्‍टाइटिस (मूत्र मार्ग में बैक्टीरिया के कारण होने वाला संक्रमण) एवं महिलाओं में ऑर्गेज्‍म तक न पहुंच पाने जैसी समस्‍याओं को खत्‍म करने में मदद करती है। ये पुरुषों में शुक्राणु के उत्‍पादन को बढ़ावा देती है।
    • आप गोक्षुरा को पाउडर, काढ़े के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • गुडूची
    • गुडूची एक कड़वे स्‍वाद वाली जड़ी बूटी है जो कि परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है।
    • ये प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती देती है, इसीलिए गुडूची त्रिदोष के कारण हुए सभी रोगों के इलाज में लाभकारी है।
    • ये बवासीर, गठिया, लंबे समय से हो रही रुमेटिज्‍म की समस्‍या, कब्ज, मलेरिया के बुखार, कैंसर और टीबी के इलाज में भी उपयोगी है। (और पढ़ें - मलेरिया होने पर क्या करना चाहिए)
    • गुडूची में मौजूद रसायन (ऊर्जादायक) गुणों की वजह से इसे धात रोग के इलाज में उपयोगी माना जाता है।
    • आप गुडूची को अर्क, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • कपिकच्‍छु
    • कपिकच्छु में शक्‍तिवर्द्धक, नसों को आराम देने वाले, संकुचक, कामोत्तेजक और ऊर्जादायक गुण मौजूद हैं। इसे प्रजनन प्रणाली के लिए उत्तम कामोत्तेजक और ऊर्जा प्रदान करने वाली जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है।
    • ये जड़ी बूटी प्रमुख तौर पर प्रजनन और तंत्रिका तंत्र पर कार्य करती है।
    • ये ल्‍यूकोरिया, बदहजमी, कमजोरी, धात रोग, बांझपन, एडिमा, नपुंसकता, मेनोरेजिया (पीरियड्स में ज्यादा ब्लीडिंग होना) और बुखार जैसी कई समस्‍याओं के इलाज में उपयोगी है।
    • आप कपिकच्छु को पाउडर, अवलेह, काढ़े के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • बाला
    • प्रमुख तौर पर शरीर को मजबूती देने और ह्रदय के स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार लाने के लिए बाला का उपयोग किया जाता है।
    • इसमें कामोत्तेजक, शक्तिवर्द्धक, नसों को आराम देने वाले और उत्तेजक गुण होते हैं। बाला प्रजनन, श्‍वसन, परिसंचरण और तंत्रिका तंत्र पर कार्य करती है।
    • ये जड़ी बूटी अनेक स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जैसे कि सिस्टाइटिस, कंजेस्टिव हार्ट फेलियर (जब ह्रदय की पंप करने की क्षमता कम हो जाती है), डायबिटीज, साइटिका, मिर्गी, बवासीर, दस्‍त, लकवा और पेचिश के इलाज में उपयोगी है।
    • ये प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करने वाली बीमारियों जैसे कि गोनोरिया, ल्‍यूकोरिआ और धात रोग के इलाज में भी काम आती है।
    • आप बाला को औषधीय तेल, काढ़े, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

धात रोग के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • अभ्रक भस्‍म
    • अभ्रक भस्‍म को अभ्रक से तैयार किया गया है।
    • ये औषधि पीलिया, डायबिटीज, सीलिएक रोग, श्‍वसन से संबंधित समस्‍याएं, पल्‍मोनरी टीबी, त्‍वचा रोगों, धात रोग और एनीमिया के इलाज में मदद करती है।
    • आप अभ्रक भस्‍म को गुडूची स्‍वरस (जूस), त्रिफला (आंवला, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण) के काढ़े, शहद, अदरक के रस या चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
    • इस औषधि में खून को साफ करने वाले गुण होते हैं जो कि इसे रोग के इलाज एवं संपूर्ण सेहत में सुधार लाने में उपयोगी बनाते हैं। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार)
       
  • अश्‍वगंधादि लेह्य
    • इसे नौ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है जिसमें किशमिश, अश्‍वगंधा, शहद, इलायची, गुड़ और जीरा शामिल हैं।
    • अश्‍वगंधादि लेह्य का इस्‍तेमाल प्रमुख तौर पर यौन विकारों के इलाज के लिए किया जाता है।
    • इस मिश्रण में मौजूद सामग्रियां शरीर को ताकत और मजबूती प्रदान करती हैं। इस प्रकार अश्‍वगंधादि लेह्य कुपोषण को कम करने एवं स्‍वास्‍थ्‍य को सुधारने में मदद करता है।
    • अश्‍वगंधादि लेह्य को पिप्पली, घी, चीनी और शहद के साथ मिलाकर या दूध के साथ लेने पर शारीरिक कमजोरी तथा धात रोग के इलाज में मदद मिल सकती है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें। 

आयुर्वेद के अनुसार धातु (धात) रोग होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar dhat rog me kya kare kya na kare

क्‍या करें

  • योग और ध्यान करें।
  • दूध में अदरक मिलाकर पीएं।
  • पेशाब कर के सोएं वरना सोते समय वीर्यस्‍खलन की समस्‍या हो सकती है।
  • सप्‍ताह में एक बार व्रत रखें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • रात में हल्‍का भोजन करें। (और पढ़ें - संतुलित आहार के फायदे)
  • ब्रह्मचर्य के लिए सुबह तुलसी और शाम को नीम की कुछ पत्तियां खाएं।

क्‍या न करें

  • अपने आहार में प्याज, कढ़ी पत्ता, लहसुन, चटनी, मिर्च या अन्‍य कोई तीखी चीज़ शामिल न करें।
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि मल त्‍याग और पेशाब को रोके नहीं। (और पढ़ें - पेशाब रोकने के नुकसान)
  • कॉफी, शराब, चाय, मीट, सॉस, पेस्‍ट्री, मछली और अत्‍यधिक मीठे एवं सुगंधित खाद्य पदार्थों से दूर रहें।
  • लंबे समय तक साइकिल न चलाएं।
  • आलस से दूर रहें। 

धातु रोग के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Dhatu rog ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai

एक अनुसंधानात्मक अध्‍ययन में वीर्य में शुक्राणुओं की कमजोरी से ग्रस्‍त 25 मरीज़ और वीर्य में शुक्राणुओं की कमी से ग्रस्‍त 25 मरीज़ों को शामिल किया गया था। 3 महीने के बाद दोनों समूह के पुरुषों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार देखा गया।

इसमें पाया गया कि अश्‍वगंधा कोशिकाओं को होने वाले नुकसान एवं ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रेस (फ्री रेडिकल्‍स और एंटीऑक्‍सीडेंट के बीच असंतुलन) को कम कर वीर्य की गुणवत्ता में सुधार लाती है। ये शुक्राणुओं में जरूरी धातु आयन को भी बढ़ाती है।

(और पढ़ें - शुक्राणु की कमी का होम्योपैथिक इलाज)

धात रोग की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Dhatu rog ki ayurvedic dawa ke side effects

  • डिहाइड्रेशन (पानी की कमी) से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को गोक्षुरा नहीं लेनी चाहिए।
  • अपर्याप्त एनीमा चिकित्‍सा लेने पर तेज दर्द, सांस लेने में दिक्‍कत और पेट फूलने की समस्या हो सकती है।
  • कफ जमने पर भी कपि‍कच्‍छु और अश्‍वगंधा नहीं लेना चाहिए।

धातु (धात) रोग की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Dhat rog ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav

अगर धात रोग का इलाज न किया जाए तो इसकी वजह से नपुंसकता और अन्‍य यौन समस्‍याएं हो सकती हैं। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों में कामोत्तेजक और ऊर्जादायक गुण होते हैं जो कि पुरुषों में लिबिडो, शुक्राणुओं की संख्‍या में सुधार और ताकत प्रदान करती हैं।

(और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ाने के उपाय)

वैसे तो पारंपरिक औषधियां भी धात रोग के इलाज में उपयोगी होती हैं लेकिन आयुर्वेद का हर्बल उपचार ज्‍यादा सुरक्षित और असरकारी है क्‍योंकि इसका कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता है। धात रोग से बचने का सबसे बेहतरीन तरीका ब्रह्मचर्य है।

(और पढ़ें - सेक्स लाइफ में बाधा बनने वाली बीमारियां)

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धातु रोग की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

संदर्भ

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अक्सर किसी बात या किसी तरह का दुःख मन में होना!.
दिमागी कमजोरी होना!.
व्यक्ति के शरीर में पौषक पदार्थो और तत्वों व विटामिन्स की कमी हो जाने पर!.
किसी बीमारी के चलते अधिक दवाई लेने पर.