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उधम सिंह (26 दिसम्बर 1899 – 31 जुलाई 1940) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे।[1] उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ' ड्वायर को लन्दन में जाकर गोली मारी थी।[2] कई इतिहासकारों का मानना है कि यह हत्याकाण्ड ओ' ड्वायर व अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था, जो पंजाब प्रांत पर नियन्त्रण बनाने के लिये किया गया था।[3][4][5] उत्तर भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के एक जनपद का नाम भी इनके नाम पर उधम सिंह नगर रखा गया है। उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब प्रांत के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में एक सिख परिवार में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर 'राम मोहम्मद सिंह आजाद' रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है। {राम-हिंदू, मोहम्मद-मुस्लिम, सिंह-सिख} अनाथालय में उधमसिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे परंतु इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा जनरल डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे। माइकल ओ'डायर की गोली मारकर हत्या[संपादित करें]उधमसिंह १३ अप्रैल १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ'डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने इस ध्येय को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना ध्येय को पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत के यह वीर क्रांतिकारी, माइकल ओ'डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगे। उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ'डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ'डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। उधम सिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में जनरल डायर को गोली मारी थी. उस समय वहां पर काफी भीड़ थी और हर कोई इस घटना से हैरान रह गया था. उधम सिंह का कहना था कि जनरल डायर की वजह से ही जलियांवाला बाग में इतना बड़ा नरसंहार हुआ था. वह इस घटना के समय वहीं मौजूद थे.आज 13 मार्च है और जब-जब यह तारीख आती है एक ऐसे क्रांतिकार का नाम याद आता है जिसने अंग्रेजों की जमीन पर जाकर अपना बदला पूरा किया था. 13 मार्च 1940 को हुई एक घटना ने दोनों देशों के बीच एक नए इतिहास को लिखने में अपना योगदान दिया था. इसी दिन क्रांतिकारी उधम सिंह ने लंदन में जनरल माइकल ओ डायर की गोली मारकर हत्या की थी. जनरल डायर पंजाब के अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए जिम्मेदार थे. जलियांवाला बाग के गवाह थे उधम सिंहउधम सिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में जनरल डायर को गोली मारी थी. उस समय वहां पर काफी भीड़ थी और हर कोई इस घटना से हैरान रह गया था. उधम सिंह का कहना था कि जनरल डायर की वजह से ही जलियांवाला बाग में इतना बड़ा नरसंहार हुआ था. वह इस घटना के समय वहीं मौजूद थे. उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था. सन् 1901 में उधमसिंह की मां और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी. उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले. नाम बदलकर रखा राम मोहम्मद सिंह आजादइतिहासकारों की मानें तो उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है. अनाथालय में उधमसिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया. वह पूरी तरह अनाथ हो गए. सन् 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए. उधम सिंह ने देश की आजादी और डायर को गोली मारने की जो प्रतिज्ञा ली थी उसे पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे। कैसे लिया था अंग्रेजों से बदलाजलियांवाला बाग में हुई घटना से उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने बाग की मिट्टी हाथ में लेकर डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली थी. अपने मिशन को पूरा करने के लिए उधम सिंह ने अलग-अलग नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की. सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे. वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली. इसके बाद वह डायर को मारने के लिए सही समय का इंतजार करने लगे. किताब में छिपाई थी रिवॉल्वरजलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के कैक्सटन हॉल में एक मीटिंग थी. यहां पर माइकल ओ डायर भी स्पीकर्स में से एक थे. उधम सिंह उस दिन समय से पहले ही कैक्सटन हॉल पहुंच गए. अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली. इसके लिए उन्होंने किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार किसी को नजर न आए. मीटिंग के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं. दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई. उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और सरेंडर कर दिया. उधम सिंह अपनी जिंदगी में भगत सिंह से प्रभावित थे. 31 जुलाई को लंदन में मिली फांसीउन पर केस चलाया गया और 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया. 31 जुलाई 1940 को इस महान क्रांतिकारी को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई. उत्तराखंड में उधमसिंह नगर कर नाम उनके ही नाम पर रखा गया है. 13 अप्रैल 1919 को कुछ प्रदर्शनकारी जिनमें कुछ तीर्थयात्री भी शामिल थे, वह जालियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे. तभी ब्रिटिश आर्मी जिसे ब्रिटिश इंडियन आर्मी कहा जाता था और जिसे कर्नल रेगिनैल्ड डायर लीड कर रहे थे, उसने लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी थी. बैसाखी मनाने आए थे लोगइस बाग में बाहर से आए नागरिक इकट्ठा हुए थे और वह हर वर्ष होने वाले बैसाखी जश्न के लिए पहुंचे थे. वह इस बात से अनजान से थे कि अमृतसर समेत पंजाब में मार्शल लॉ लगाया जा चुका है. फायरिंग के आदेश के बाद उन्होंने बाहर निकलने की कोशिशें भी कीं लेनिक रास्ता संकरा होने की वजह से वह जान बचा पाने में असफल रहे थे. जनरल डायर के आदेश पर उनके सैनिकों ने भीड़ पर करीब 10 मिनट तक बिना रुके गोलियां बरसाई थीं. इन गोलियों का निशाना वो लोग बने जो दरवाजों से निकलकर जान बचाने की कोशिशों में लगे थे. दरवाजों को निशाना बनाकर फायरिंग की जा रही थी. कहते हैं कि घटना मे करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी. ब्रिटिश सरकार ने जो आंकड़ें जारी किए उसके मुताबिक 379 लोगों की मौत हुई थी और 1200 लोग घायल थे. जबकि बाकी सूत्रों का कहना था कि करीब 1000 से ज्यादा लोगों की मौत इस त्रासदी में हुई थी. यह भी पढ़ें-चेन्नई में अफगानिस्तान की ‘आयरन लेडीज’ को इंडियन आर्मी क्यों दे रही है ट्रेनिंग, क्या होगा भारत को फायदा उधम सिंह ने जनरल डायर को क्यों मारा?- इतिहासकारों का यह मानना है कि पंजाब पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए पंजाबियों को डराने के उद्देश्य से इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। - ऊधम सिंह 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग कांड के मौके पर बाग में ही थे। ऊधम सिंह ने शपथ ली कि वह माइकल ओ'डायर को मारकर इस घटना का बदला लेंगे।
उधम सिंह ने किसकी हत्या करी?उधम सिंह (26 दिसम्बर 1899 – 31 जुलाई 1940) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ' ड्वायर को लन्दन में जाकर गोली मारी थी।
उधम सिंह ने जनरल डायर को कब गोली मारी थी?13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ऊधम सिंह ने माइकल ओ ड्वाएर को गोली मार दी थी। ड्वाएर जलियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था।
जलियांवाला बाग हत्याकांड का कारण क्या था?रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे और २००० से अधिक घायल हुए। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है।
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