विशेष आवश्यकता वाले बच्चे की पहचान कैसे करें? - vishesh aavashyakata vaale bachche kee pahachaan kaise karen?

सामान्य रूप से कार्य करने के लिए छः क्षेत्र निर्णायक हैं। ये हैं - दृष्टि, श्रवण शक्ति, गतिशीलता, सम्प्रेषण, सामाजिक-भावनात्मक सम्बन्ध, बुद्धिमत्ता

इसके अतिरिक्त आर्थिक रूप से सुविधावंचित बच्चे भी विशेष हैं क्योंकि

गरीबी के कारण वे जीवन के कई अनुभवों से वंचित रह जाते हैं। वे स्कूल नहीं

जा सकते क्योंकि उन्हें बचपन से ही काम शुरू करना पड़ता है, ताकि वे परिवार

की आय बढ़ा सकें। लड़कियों को अक्सर घर पर ही रोक लिया जाता है ताकि वे

छोटे भाई-बहनों (बच्चों) का ध्यान रख सकें और घर के कामकाज कर सकें।

समावेशन: इस दृष्टिकोण में, विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के लिए

विशेष जरूरतों के लिए नहीं है, जो छात्रों के साथ स्कूल के दिन की सबसे सभी

खर्च करते हैं, या। शामिल किए जाने के सामान्य पाठ्यक्रम की पर्याप्त

संशोधन की आवश्यकता सकता है, क्योंकि ज्यादातर स्कूलों में एक सबसे अच्छा

अभ्यास के रूप में स्वीकार किया जाता है, जो विशेष जरूरतों, उदारवादी हल्के

के साथ चयनित छात्रों के लिए ही इस्तेमाल करते हैं। विशेष सेवाओं के अंदर

या नियमित रूप से बाहर प्रदान किया जा सकता है कक्षा, सेवा के प्रकार पर

निर्भर करता है। छात्र कभी-कभी एक संसाधन कक्ष में छोटे, अधिक गहन शिक्षण

सत्र में भाग लेने के लिए नियमित रूप से कक्षा छोड़ सकते हैं, या विशेष

उपकरण की आवश्यकता हो सकती है या भाषण और भाषा चिकित्सा, व्यावसायिक रूप

में, कक्षा के बाकी के लिए विघटनकारी ऐसे हो सकता है कि अन्य संबंधित

सेवाओं को प्राप्त करने के लिए चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा,

पुनर्वास परामर्श। उन्होंने यह भी इस तरह के एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ

सत्र परामर्श के रूप में गोपनीयता की आवश्यकता है कि सेवाओं के लिए नियमित

रूप से कक्षा छोड़ सकता है। मुख्य धारा के लिए अपने कौशल के आधार पर

विशिष्ट समय अवधि के दौरान गैर विकलांग छात्रों के साथ कक्षाओं में विशेष

आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को शिक्षित करने की प्रथा है। विशेष आवश्यकता

वाले विद्यार्थियों को विशेष रूप से स्कूल के दिन के आराम के लिए विशेष

जरूरतों के साथ छात्रों के लिए अलग-अलग वर्गों में अलग कर रहे हैं। एक अलग

कक्षा या विशेष जरूरतों के साथ छात्रों के लिए विशेष स्कूल में अलगाव: इस

मॉडल में, विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों गैर विकलांग छात्रों के साथ

कक्षाओं में भाग लेने नहीं है। अलग-अलग छात्रों नियमित रूप से कक्षाओं

प्रदान की जाती हैं, जहां एक ही स्कूल में भाग लेने, लेकिन विशेष जरूरतों

के साथ छात्रों के लिए एक अलग कक्षा में विशेष रूप से सभी शिक्षण समय खर्च

कर सकते हैं। उनके विशेष वर्ग के एक साधारण स्कूल में स्थित है, तो वे इस

तरह के गैर विकलांग छात्रों के साथ भोजन खाने से, के रूप में कक्षा के बाहर

सामाजिक एकीकरण के लिए अवसर प्रदान किया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से, इन

छात्रों को एक विशेष स्कूल में भाग लेने सकता है। बहिष्करण: किसी भी स्कूल

में शिक्षा प्राप्त नहीं है जो एक छात्र को स्कूल से बाहर रखा गया है। अतीत

में, विशेष जरूरतों के साथ सबसे अधिक छात्रों को स्कूल से बाहर रखा गया

है। इस तरह के बहिष्कार अभी भी विशेष रूप से विकासशील देशों के गरीब,

ग्रामीण क्षेत्रों में, दुनिया भर में लगभग 23 लाख विकलांग बच्चों को

प्रभावित करता है। एक छात्र है जब यह भी हो सकती है अस्पताल में, या

आपराधिक न्याय प्रणाली द्वारा हिरासत में ले लिया। इन छात्रों पर एक-एक

निर्देश या समूह शिक्षा प्राप्त हो सकता है। निलंबित या निष्कासित कर दिया

गया है, जो छात्रों को इस अर्थ में बाहर रखा नहीं माना जाता है।

विशेष आवश्यकता वाले बच्चे की पहचान कैसे करें? - vishesh aavashyakata vaale bachche kee pahachaan kaise karen?

साथियो मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा के बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र के अनिवार्य पाठ्यक्रम में एक महत्वपूर्ण बिंदु है समावेशी शिक्षा  आज इसके लिए विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान एवं शिक्षा नोट्स पीडीऍफ़ में उपलब्ध कराये जा रहे हैं शीघ्र ही  अन्य विषयों के नोट्स उपलब्ध कराये जायेंगे , इन्हें सबसे पहले पाने के लिए ब्लॉग को सब्सक्राइब करें -

          सामान्य रूप से जो बच्चे औसत शारीरिक एवं मानसिक स्तर IQ (90-110) वाले होते हैं, उन्हें हम सामान्य बच्चे के रूप में जानते हैं। विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे सामान्य बच्चों से विशिष्ट होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि सामान्य बच्चे सामान्य शारीरिक एवं मानसिक श्रम वाले कार्यों को करने में किसी बाधा का अनुभव नहीं करते हैं। कक्षा में अधिकांश बच्चों की भाँति वे शैक्षिक उपलब्धि में भी औसत होते हैं। इनके सीखने की गति भी औसत होती है। इसके विपरीत विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे इस प्रकार के कार्यों को करने में अपने को असहज एवं असमर्थ पाते हैं।
          विशिष्टता के क्षेत्र सार्वभौमिक हैं। महान कवि सूरदास जन्मान्ध थे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटीन का भाषा विकास काफी देर से हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट स्वयं पोलियोग्रस्त थे। यह विशिष्टता, वंशानुगत, कभी-कभी वातावरणजन्य तथा कभी-कभी दोनों का संयोजन होती है। यह सभी उदाहरण सिद्ध करते हैं कि विभिन्न नियोग्यताओं की पूर्ति सम्भव है तथा कोई भी अक्षम बच्चे को उचित शिक्षण एवं प्रशिक्षण के द्वारा सामान्य बच्चों की तरह स्वयं के लिए तथा राष्ट्र एवं समाज के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। आज प्रायः विश्व के सभी देशों में विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के प्रति दृष्टिकोण में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है। विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के सम्बन्ध में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों नें अपने-अपने ढंग से व्याख्या की है, यथा-
         1. हीबर्ड (1996) के अनुसार,- ‘‘विशिष्ट बच्चों की श्रेणी में वे बच्चे आते हैं जिन्हें सीखने में कठिनाई का अनुभव होता है या जिनमें मानसिक या शैक्षिक निष्पादन या सृजन अत्यन्त उच्चकोटि का होता है या जिनको व्यावहारिक, सांवेगिक एवं सामाजिक समस्याएँ घेर लेती हैं या वे विभिन्न शारीरिक अपंगताओं या निर्बलताओं से पीड़ित रहते हैं, जिनके कारण ही उनके लिए अलग से विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती है।‘‘
         2. क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, ‘‘विशिष्ट प्रकार या विशिष्ट पद किसी गुण या उन गुणों से युक्त व्यक्ति पर लागू होता है जिसके कारण वह व्यक्ति, साथियों का ध्यान अपनी ओर विशिष्ट रूप से आकर्षित करता है तथा इससे उसके व्यवहार की अनुक्रिया भी प्रभावित होती है।‘‘
        3. क्रिक (1962) के अनुसार, ‘‘विशिष्ट बच्चे मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक गुणों में सामान्य बच्चों से भिन्न होते हैं। उनका भिन्नता कुछ ऐसी सीमा तक होता है कि उसे स्कूल के सामान्य कार्यों में विशिष्ट शिक्षा सेवाओं में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। ऐसे बच्चों के लिए कुछ अतिरिक्त अनुदेशन भी चाहिए, ऐसी दशा में उनका सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक विकास हो सकता है।“

            उपर्युक्त परिभाषाओ के आधार पर हम कह सकते हैं कि, ‘‘विशिष्ट बच्चे वह बच्चे है जो कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, शैक्षिक, सांवेगिक एवं व्यावहारिक विशेषताओं के कारण किसी सामान्य या औसत बच्चे से उस सीमा तक स्पष्ट रूप से विचलित या अलग होते है जहाँ कि उन्हें अपनी योग्यताओं, क्षमताओं एवं शक्तियों को समुचित रूप से विकसित करने के लिए परम्परागत शिक्षण-विधियों में परिमार्जन या विशिष्ट प्रकार के कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है, उन्हें विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे कहा जाता है।

           इस श्रेणी में शारीरिक रूप से अक्षम, प्रतिभाशाली, सृजनात्मक, मन्दबुद्धि, शैक्षिक रूप से श्रेष्ठ एवं पिछड़े, बाल-अपराधी, असमायोजित, समस्याग्रस्त, सांवेगिक, अस्थिरतायुक्त आदि प्रकार के बच्चे सम्मिलित हैं। 

         हेवेट तथा फोरनेस के अनुसार, ‘विशिष्ट‘ ऐसा व्यक्ति है जिसकी शारीरिक, मानसिक, बुद्धि, इन्द्रियाँ, मांसपेशियों की क्षमताएँ अनोखी हो अर्थात सामान्यतया ऐसे गुण दुर्लभ हों, ऐसी अनोखी दुर्लभ क्षमताएँ उसकी प्रकृति तथा कार्यों के स्तर में भी हो सकती है। इस प्रकार से विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों से सम्बन्धित सभी प्रश्नों के समाधान के लिए मनौवैज्ञानिक, चिकित्साशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद, गृहविज्ञान वेत्ता आदि अपने-अपने दृष्टिकोणो के अनुसार अध्ययनरत हैं। वैयक्तिक भिन्नताओं के ज्ञान के साथ-साथ इन प्रश्नों का महत्व और अधिक हो गया है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि सभी व्यक्ति प्रायः शारीरिक, मानसिक, शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से किसी न किसी रूप में परस्पर भिन्न होते हैं, किन्तु कभी-कभी भिन्नताएँ इस सीमा तक पायी जाती हैं कि बच्चों को विशिष्ट वर्गों में रखकर शिक्षा देना आवश्यक हो जाता है। भारत जैसे प्रजातान्त्रिक प्रणाली वाले राष्ट्र में सरकार, समाज तथा शिक्षा संस्थाओं का यह कर्त्यव्य है कि वे इन विशिष्ट बच्चों की पहचान कर उनकी आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा एवं निर्देशन प्रदान करें।

                    सामान्य बच्चे 90-110 IQ वाले बच्चे होते हैं। ये शारीरिक एवं मानसिक रूप से भी सामान्य होते हैं। जो बच्चे सामान्य बच्चों से अलग होते हैं वे विशिष्ट बच्चे कहलाते हैं। विशिष्ट बच्चे के लिए विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती है। विशिष्ट बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा को समझने में सामान्य शिक्षकों को कठिनाइयाँ होती हैं।


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विशिष्ट बच्चों की पहचान - 

समाज में बहुत प्रकार के व्यक्तित्व के लोग पाये जाते हैं। कुछ सामाजिक होते हैं, कुछ अन्तर्मुखी होती हैं तो कुछ असामाजिक होते हैं, इसी तरह से बच्चों में विभिन्न प्रकार की वैयक्तिक भिन्नताएँ पायी जाती हैं, कुछ प्रखर बुद्धि के होते हैं तो कुछ मन्दबुद्धि के होते हैं तो कुछ में कार्यों को सीखने की प्रवृत्ति नहीं पायी जाती है, जो बच्चे सामान्य बच्चों की तरह कार्यों को करने में सक्षम नहीं होते हैं। वे विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बच्चे होते हैं। वह बच्चे सामान्य बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा से लाभान्वित नहीं हो सकता। उसे सामान्य बच्चों के साथ ही शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती हैं जिसके कारण उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है। अतः अध्यापक और समाज का यह नैतिक दायित्व है कि वह विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान सुनिश्चित कर उन्हें उनकी आवश्यकता एवं सामर्थ्य के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था करें।

विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान या लक्षण -
विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे सामान्य बच्चों से विशिष्ट लक्षणों वाले होते हैं। सामान्य बच्चों में पाये जाने वाली निम्नलिखित विशिष्ट प्रवृत्तियाँ पायी जाती हैं- यह अन्तर्मुखी, निराशावादी, सांवेगिक, स्थिर, शर्मीले, निष्क्रिय, आत्मकेन्द्रित, चिन्ताग्रस्त, निर्भर प्रवृत्ति, कभी-कभी उग्र, एकाकी भावना वाले होते हैं।
इनकी पहचान हम निम्नलिखित तरीके से कर सकते हैं -
1. निरीक्षण द्वारा-अध्यापक अपने कक्षा-कक्ष में शिक्षण के दौरान उपरोक्त लक्षणों के आधार पर विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों को चिन्हित कर सकता है और उन्हें आवश्यकतानुसार शिक्षा प्रक्रिया से लाभान्वित कर सकता है।
2. चिकित्सकीय परीक्षण द्वारा- कभी-कभी ऐसा होता है कि विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान न होने के कारण विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के शरीर एवं मस्तिष्क का चिकित्सकीय परीक्षण कर उनकी पहचान की जा सकती हैं।
3. मानसिक परीक्षण द्वारा- छात्रों का मानसिक परीक्षण कर उनकी विशिष्टता का पता लगाया जा सकता है। यह थिमेंटिक अपरसेप्सन टेस्ट (TAT), हरमन रोशा का स्याही धब्बा परीक्षण आदि जैसे परीक्षणों का प्रयोग कर पता लगाया जा सकता है।
4. शैक्षिक परिणामों के द्वारा-विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे के कक्षा के परीक्षा में प्राप्त परिणामों का अवलोकन एवं विश्लेषण के द्वारा इनकी विशिष्टता का पता लगाया जा सकता है।
5. व्यवहार के अवलोकन के द्वारा- विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों द्वारा किये गये व्यवहारों के मनोवैज्ञानिक परीक्षण एवं विश्लेषण से उनकी विशिष्टताओं का पता लगाया जा सकता है।
6. समाजमिति एवं साक्षात्कार के द्वारा- विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान के लिए समाजमिति एवं उनका प्रत्यक्ष विधि से साक्षात्कार कर उनकी विशिष्टताओं का पता लगाया जा सकता है। विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के प्रकार सामान्य बच्चों से भिन्नता रखने वाले विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे आपस में भी अनेक असमानताएँ रखते हैं। कुछ बच्चे सीखने की निर्योग्यताओं के कारण, कुछ बौद्धिक क्षमताओं के कारण तथा कुछ असामान्य शैक्षिक उपलब्धि के कारण विशिष्ट आवश्यकता वाले होते हैं। विशिष्ट बच्चों के लक्षण, गुण, स्वरूप सामान्य बच्चों से विशिष्ट होते हैं। यह उन बच्चों पर लागू होता है जो सामान्य बच्चों से अलग हो, उनकी स्मरण शक्ति अलग हो। एक विशिष्ट बच्चे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक आधार पर सामान्य बच्चे से बिल्कुल अलग प्रकार का होता है। विशिष्ट बच्चे सामान्य कक्षा-कक्ष एवं सामान्य शिक्षा कार्यक्रमों से पूर्णतया लाभान्वित नहीं हो पाता। विशिष्ट बच्चे की अधिकतम सामर्थ्य विकास के लिए इसे स्कूल की कार्यप्रणाली तथा उसके साथ किये जाने वाले व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। विशिष्ट बच्चे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक तथा शैक्षिक उपलब्धियों जैसी सभी धाराओं में सम्मिलित होता है।

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विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान कैसे करेंगे?

Vishesh Aavashyakta Wale Bachhe Ki Pehchan ये हैं - दृष्टि, श्रवण शक्ति, गतिशीलता, सम्प्रेषण, सामाजिक-भावनात्मक सम्बन्ध, बुद्धिमत्ता। छोटे भाई-बहनों (बच्चों) का ध्यान रख सकें और घर के कामकाज कर सकें। बाधा उत्पन्न कर सकती है और व्यक्ति को इस असमर्थता से निपटने के लिए अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता होती है।

विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे कितने प्रकार के होते हैं?

इस श्रेणी में शारीरिक रूप से अक्षम, प्रतिभाशाली, सृजनात्मक, मंद बुद्धि आदि प्रकार के बालक सम्मिलित है। इन विभिन्न प्रकार के विशिष्ट बालकों की प्रकृति भी भिन्न होती है।

विशेष आवश्यकता वाले बच्चे कौन होते हैं?

कुछ विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बच्चे जिनकी हम सहायता कर सकते हैं, वे हैं—आंशिक रूप से दृष्टि वाले एवं नेत्रहीन; कम सुनने वाले एवं बधिर ; चलने-फिरने की समस्याओं वाले बच्चे; मंदबुद्धि बच्चे; व्यवहार संबंधी समस्याओं से ग्रस्त बच्चे; आर्थिक रूप से सुविधावंचित बच्चे; सीखने में असमर्थ बच्चे, भावात्मक समस्याओं से ग्रस्त बच्चे

विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए सबसे अच्छी विधि कौन सी है?

विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा एक समावेशी कक्षा में प्रदान की जानी चाहिए, अन्य सामान्य बच्चों के साथ: समावेशी कक्षा विविधता को महत्व देती है, प्रत्येक बच्चा कक्षा में लाया जाता है और सभी को सीखने और बढ़ने के समान अवसर प्रदान करता है।