सीमांत उत्पादन संभावना क्या है? Show सीमांत उत्पादन संभावना से अभिप्राय उस वक्र से है, जो दो वस्तुओं के उन संयोगों को दर्शाती है, जिनका उत्पादन अर्थव्यवस्था के संसाधनों का पूर्ण रूप से उपयोग करने पर किया जाता है। यह एक वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने की अवसर लागत है। आईएमएफ ने अपनी इस रिपोर्ट में भारत की विकास दर वित्त वर्ष 2017-18 में 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में भी भारत अव्वल (टीम दृष्टि इनपुट) ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स का भी यही है कहना
इस रिपोर्ट में आधुनिक औद्योगिक रणनीतियों के विकास का विश्लेषण किया गया और सामूहिक कार्यवाही करने पर जोर दिया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौतियाँ देश में असमान आय वितरण की चुनौती (टीम दृष्टि इनपुट) राजकोषीय संतुलन बनाए रखने की चुनौती विनिवेश प्रक्रिया में तेज़ी लाने की चुनौती
ऐसे में सरकार को विनिवेश प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है और जिन सरकारी उपक्रमों का हिस्सा बेचने की योजना है, उनके एफपीओ और आईपीओ जल्द-से-जल्द आने चाहिये। (टीम दृष्टि इनपुट) बैंकों के बढ़ते एनपीए की चुनौती कालेधन की चुनौती
इसके साथ-साथ सरकार ने भष्ट्राचार और कालेधन की समाप्ति के लिये कई विधायी, प्रशासनिक और प्रौद्योगिकीय प्रयास किये हैं:
(टीम दृष्टि इनपुट) कृषि क्षेत्र की चुनौती
रोज़गार की चुनौती श्रम सुधारों की आवश्यकता
इसके अलावा रोज़गार सृजन के लिये अनुकूल माहौल बनाना भी बेहद आवश्यक है। इसके लिये जहाँ एक तरफ छोटे एवं मध्यम उद्यमों से बोझ घटाने की ज़रूरत है, वहीं इन सुधारों को कामगारों के लाभ से भी जोड़ना होगा। निजी (कॉर्पोरेट) निवेश को आकर्षित करने की चुनौती कच्चे तेल के चढ़ते दामों की चुनौती (टीम दृष्टि इनपुट) निष्कर्ष: सर्वाधिक तेज़ विकास दर के बावजूद विश्व के अन्य कई देशों की तरह ही भारत की अर्थव्यवस्था भी कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रही है। कृषिगत, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की चिंताजनक स्थिति, रोज़गार सृजन की चुनौतियाँ और कई आर्थिक क्षेत्रों में कमज़ोर प्रदर्शन भारत की मुख्य समस्याएँ हैं। आर्थिक वृद्धि की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ते भारत के कदमों को कई बार ये तीनों ही चुनौतियाँ एक साथ या बारी-बारी से जकड़ लेती हैं। अर्थव्यवस्था, रोज़गार और कृषि क्षेत्र तीनों ही एक-दूसरे से कुछ इस प्रकार से जुड़े हुए हैं कि किसी एक में भी लाया गया बदलाव औरों को प्रभावित करता है। किसी भी तंत्र द्वारा बेहतर कार्य निष्पादन क्षमता के लिये यह आवश्यक है कि इसके सभी अंग एक-दूसरे से समन्वित ढंग से जुड़े हों। जिस प्रकार मानव शरीर में हृदय, रक्त और धमनियों के मध्य आपसी समन्यव से शरीर के प्रत्येक कोने में रक्त का संचार होता है, ठीक उसी प्रकार से अर्थव्यवस्था, समाज और कृषि को एक साथ मिलाकर ही हम वास्तविक संवृद्धि पा सकते हैं। समस्या यह भी है कि आर्थिक विकास के इन घटकों का हम अलग-अलग अध्ययन करते हैं, अर्थशास्त्री केवल अर्थव्यवस्था की चिंता करता है और समाजशास्त्री सामाजिक चिंताओं की बात करता है। विकास की गति बनाए रखने के लिये प्रचलित तरीकों में बदलाव लाते हुए एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करने की आवश्यकता है जो इन्हें एक-दूसरे के प्रति उत्तरदायी बना सके। अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्या क्या है?असीमित आवश्यकताएं- मानवीय आवश्यकताएं असीमित होती है तथा समय के साथ-साथ बढ़ती जाती है । यह वृद्धि ज्ञान में परिवर्तन में आय में परिवर्तन आदि के कारण होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि करने का प्रयत्न करता है। सीमित साधन- हमारे साधन सीमित है।
अर्थव्यवस्था की समस्या का कारण क्या है?आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के तीन मुख्य कारण हैं असीमित मानवीय आवश्यकता, सीमित साधन और संसाधनों के चुनाव की समस्या| अलग-अलग आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सीमित संसाधनों का होना और उनमे चयन करने की समस्या को ही आर्थिक समस्या कहते हैं।
अर्थव्यवस्था की 3 केंद्रीय समस्याएं क्या है?अर्थव्यवस्था के उत्पाद को व्यक्ति विशेष के बीच किस प्रकार विभाजित किया जाना चाहिए? किसको अधिक मात्रा प्राप्त होगी तथा किसको कम? यह सुनिश्चित किया जाए अथवा नहीं कि अर्थव्यवस्था की सभी व्यक्तियों को उपभोग की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध हो? ये सभी भी अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्या हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था की मूल समस्या क्या है?धीमी विकास दर, सरकारी राजस्व में अनुमान से कम बढ़ोतरी और खर्च में अनुमान से ज्यादा बढ़ोतरी चिंता का विषय है. खासतौर से ग्रामीण रोज़गार के लिए चलाई जानेवाली कल्याण योजनाओं पर किया जानेवाला खर्च और भोजन के अधिकार की बाध्यता की वजह से राजकोषीय घाटा 2012-13 में और बढ़ेगा जैसाकि पिछले वित्त वर्ष में देखने को मिला है.
|