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हिन्दी भाषा की प्रकृति /हिंदी भाषा के रूपहिन्दी भाषा की प्रकृतिभाषा सागर की तरह सदा चलती-बहती रहती है। भाषा के अपने गुण या स्वभाव को भाषा की प्रकृति कहते हैं।हर भाषा की अपनी प्रकृति आंतरिक गुण-अवगुण होते हैं। भाषा एक सामाजिक शक्ति है, जो मनुष्य को प्राप्त होती है। मनुष्य अपने पूर्वजों से सीखता है और उसका विकास करता है। यह परम्परागत और अर्जित दोनों है। जीवंत भाषा ‘बहते पानी‘ की तरह सदा प्रवाहित होती रहती है। भाषा के दो रूप हैं कथित और लिखित। हम इसका प्रयोग कथन के द्वारा, अर्थात बोलकर और लेखन के द्वारा लिखकर करते हैं। देश और काल के अनुसार भाषा अनेक रूपों में बंटी है। यही कारण है कि संसार में अनेक भाषाएं प्रचलित हैं। भाषा के रूप भाषा विकास में भाषा के मुख्यतः तीन रूप मिलते हैं
बोली /बोली किसे कहते हैं
परिनिष्ठित भाषा / परिनिष्ठित भाषा किसे कहते हैं
राजभाषा/राजभाषा किसे कहते हैं
राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अंतर
भाषा और व्याकरण
भाषा को मानक बनाने में व्याकरण की भूमिका
भाषा क्या है इसकी प्रकृति का वर्णन करें?भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में- जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है। सार्थक शब्दों के समूह या संकेत को भाषा कहते है।
भाषा क्या है भाषा की प्रकृति को समझाइए PDF?मनुष्य मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते हैं । डॉ. श्यमा सुन्दर दास :- भाषा विज्ञान भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भलीभाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकता है ।
भाषा की प्रमुख प्रवृत्तियां क्या क्या है उल्लेख करें?भाषा सामाजिक वस्तु है भाषा की उत्पत्ति समाज से होती है और उसका विकास भी समाज में ही होता है। ... . भाषा का प्रवाह अविच्छिन्न है ... . भाषा सर्व-व्यापक है ... . भाषा संप्रेषण का मौखिक साधन है ... . भाषा अर्जित वस्तु है ... . भाषा परिवर्तनशील है ... . प्रत्येक भाषा का ढाँचा स्वतंत्र होता है ... . भाषा भौगोलिक रूप से स्थानीयकृत होती है. |