बैनामा कितने वर्ष के लिये मान्य है - bainaama kitane varsh ke liye maany hai

स्टाम्प ड्यूटी के सम्बन्ध में ऐसे कइ प्र ष्न हैं जिनको अक्सर पूछा जाता है। ऐसे कतिपय प्रष्नों को व उनके उत्तरों को नीचे प्रस्तुत किया जा रहा हैः-
1- विलेख पर स्टाम्प ड्यूटी कब प्रभार्य होती है?
विलेख पर स्टाम्प ड्यूटी विलेख के निष्पादन के समय प्रभार्य होती है अर्थात जब विलेख पर हस्ताक्षर या अगुष्ठ चिन्ह अंकित किया जाना हो उस समय विलेख पर यथोचित मूल्य का तथा यथोचित प्रकार का स्टाम्प पत्र प्रयुक्त हो जाना चाहिए (धारा 17 भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 )
2- मुख्तारनामें पर कितना स्टाम्प शुल्क प्रभार्य होता है?
किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने स्थान पर अपने दायित्वों एवं कार्यो के निष्पादन के लिए जब किसी अन्य व्यक्ति को अपना मुख्तार नियुक्त किया जाता है तो इस कार्य हेतु तैयार किए जाने वाला विलेख मुख्तारनामा कहलाता है। मुख्तारनामा द्वारा एक व्यक्ति अपने कार्य के लिए एक से पांच तक अन्य व्यक्तियों को मुख्तार नियुक्त कर सकता है। ऐसे मुख्तारनामा पर पचास रूपये का स्टाम्प शुल्क भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची 1 बी के अनुच्छेद 48 के अनुसार देय होता है। यदि मुख्तारनामा में अन्य व्यक्ति को प्रतिफल लेकर मुख्तार नियुक्त किया गया है तब ऐसे मुख्तारनामा में अंकित प्रतिफल की धनराशि पर स्टाम्प शुल्क देय होगा। यदि अचल सम्पत्ति के अन्तरण के अधिकार मुख्तार को इस शर्त के साथ दिया गया कि वह उक्त अधिकार कभी खण्डित नहीं करेगा तब ऐसे मुख्तारनामें पर अचल सम्पत्ति के बाजारी मूल्य की धनराशि पर स्टाम्प शुल्क देय होगा।
3- विक्रय के लिए इकरारनामा किये जाने पर कितने रूपये का स्टाम्प शुल्क प्रभार्य होता है?
किसी अचल सम्पत्ति के विक्रय इकरार में सम्पत्ति के कब्जे के अन्तरण की स्थिति के आधार पर स्टाम्प शुल्क प्रभार्य होता है, यदि इकरारनामें में स्पष्ट किया गया है कि इकरार की गयी सम्पत्ति पर बैनामा के निष्पादन के पूर्व कब्जा विक्रेता का ही रहेगा और बिना बैनामा निष्पादन के कब्जा क्रेता को अन्तरित नहीं किया जायेगा तब ऐसे इकरारनामें पर भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची 1 बी के अनुच्छेद 5 बी-1 के अनुसार तयशुदा मूल्य (प्रतिफल) की आधी धनराशि पर 80 रूपये प्रति हजार की दर से स्टाम्प शुल्क प्रभार्य होगा। यदि इकरारनामें में यह अंकित है कि बैनामा के निष्पादन के पूर्व कब्जा क्रेता को दिया गया है या भविष्य में दिया जायेगा तब ऐसे विलेख पर भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची 1 बी के अनुच्छेद 23-क में अंकित स्पष्टीकरण के अनुसार इकरार की गयी अचल सम्पत्ति के बाजारी मूल्य या तयशुदा प्रतिफल जो भी अधिक हो की धनराशि पर 80 रूपये प्रति हजार की दर से स्टाम्प शुल्क प्रभार्य होगा। बाजार में उपलब्ध भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 पुस्तक में ये दर 125 प्रति हजार छपी हो सकती है उक्त दर को भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 9 के अधीन निर्गत शासन की अधिसूचना दिनांक 31.08.1998 द्वारा घटा कर 80 रूपये प्रति हजार किया गया है। चल सम्पत्ति के विक्रय इकरार के सम्बन्ध में भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची 1 बी के अनुच्छेद 5 (सी) के अन्र्तगत एक सौ रूपये का स्टाम्प शुल्क देय होता है।
4- क्या विक्रय इकरारनामों पर उ0प्र0 नगर नियोजन एवं विकास
अधिनियम 1973 या उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद अधिनियम 1962 के अधीन देय दो प्रतिशत अतिरिक्त स्टाम्प शुल्क भी प्रभार्य होता है? इकरारनामा एक सौदा है जिसे अन्तरण नहीं माना गया है कयोंकि इसके आधार पर कोई स्वत्व या अधिकार अन्तरण नहीं होता है। इसी कारण इकरारनामा उक्त अधिनियमों के अन्र्तगत देय दो प्रतिशत अतिरिक्त स्टाम्प डयूटी देय नहीं है। परन्तु जब ऐसे इकरारनामा के आधार पर बैनामा निष्पादन से पूर्व अंतरित की जाने वाली अचल सम्पत्ति पर कब्जा क्रेता को दिया गया हो या कब्जा देने का करार किया गया हो तब ऐसे इकरारनामा को स्टाम्प डयूटी की देयता के प्रयोजन से अन्तरण पत्र ही माना गया है (देखें व्याख्या जो भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची 1 वी के अनुच्छेद 23 के अधीन दी गयी है) अतः ऐसे इकरारनामा पर स्टाम्प शुल्क के साथ-साथ दो प्रतिशत अतिरिक्त स्टाम्प ड्यूटी भी प्रभार्य होगी।
5- क्या अचल सम्पत्ति के विक्रय विषयक इकरारनामा पर अदा किया गया स्टाम्प शुल्क इकरारनामें के आधार पर विक्रय पत्र निष्पादित न किये जाने की दशा में या इकरारनामा खण्डित हो जाने की दशा में वापिस किया जा सकता है?
इकरारनामा खण्डित हो जाने पर या इकरारनामा के आधार पर विक्रय पत्र निष्पादित नहीं हो पाने की दशा में इकरारनामा पर अदा किया गया स्टाम्प शुल्क की धनराशि वापिस नहीं हो सकती है। क्योंकि भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 के अध्याय-5 की धारा 49 से 55 तक में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गयी है।
6- स्टाम्प शुल्क अदा किये जाने का दायित्व किस पक्षकार का है?
उक्त प्रश्न के सम्बन्ध में भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 29 में यह व्यवस्था है कि किसी इकरारनामा में कोई विपरीत बात न होने पर उचित स्टाम्प देने का व्यय हस्तान्तरण विलेख पर स्ट ाम्प शुल्क उक्त विलेख में अंकित क्रेता/गृहीता द्वारा अदा करने का दायित्व दिया गया है।
7- स्टाम्प पेपर्स कितने प्रकार के होते हैं? और इन्हें किस विलेख के लिए कौन से प्रकार का स्टाम्प पेपर प्रयोग किया जाना चाहिए?
मुख्यतः स्टाम्प पेपर्स की दो श्रेणियां है
1.जुडिशियल स्टाम्प तथा
2 . नान जुडिशियल।
ज्ुडिशियल स्टाम्प कोर्ट फीस एक्ट 1870 के अधीन अदा किये जाने वाला शुल्क है जिसे न्यायिक कार्यो के लिए न्यायालयों में प्रयुक्त किया जाता हे। नान जुडिशियल स्टाम्प पेपर्स को ही सामान्यतः स्टाम्प के रूप में जाना जाता है इसकी भी विभिन्न श्रेणियां निम्नवत हैं:-
नान जुडिशियल स्टाम्प की श्रेणियां
1- जनरल स्टाम्प>
क- इन्प्रेस्ड जनरल स्टाम्प
ख- फे्रकिंग स्टाम्प
ग- एम्बोस्ड स्टाम्प
घ- भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 10 -ए के अन्तर्गत कोषागार में नकद धनराशि जमा करके कोषाधिकारी प्रमाण-पत्र,
2- हुंडी (बिल आफ एक्सचेंज)
3- रेवेन्यू स्टाम्प(रसीदी टिकट)
4- नोटोरियल स्टाम्प
5- इन्शयरेंस स्टाम्प
6- शेयर ट्रांसफर तथा डिवेंचर स्टाम्प
7- एक्साईज बान्ड स्टाम्प
8- एडहेसिव स्टाम्प फोर एग्रीमेन्टस् द्वारा निर्गत किया गया
9- कमी स्टाम्प शुल्क, अर्थदण्ड तथा व्याज जो स्टाम्प वाद के निर्णय के पश्चात कलेक्टर द्वारा विलेख पर आरोपित की जाती है।
उक्त स्टाम्प में से जनरल स्टाम्प को स्टाम्प पेपर्स के रूप में प्रयुक्त किया जाता है शेष सभी स्टाप एडहेसिव स्टाम्प है, इन स्टाम्पों को उनके नाम के अनुरूप विभिन्न अनुच्छेदों के अधीन प्रयुक्त किया जाता है। कमी स्टाम्प शुल्क, अर्थदण्ड तथा ब्याज के रूप में कलेक्टर के द्वारा आरेापित व वसूल की गयी स्टाम्प शुल्क की धनराशि के प्रमाणक को भी स्टाम्प के रूप में ही जाना जाता है। मूल स्टाम्पों पर अंकित पहचान के चिन्ह अध्याय- 10 के परिशिष्ट- 5 में अंकित हैं।
सामान्यतः जनरल इप्रेस्ड (छापित) स्टाम्प पेपर्स ही विलेखों के निष्पादन में प्रयुक्त होते है। इन्शयोरेन्स, शेयर ट्रांसफर, डिबेन्चर, नोटोरियल कार्य, रसीद जैसे विलेखों पर एडहेसिव (चिपकाऊ) स्टाम्प प्रयुक्त होता है।
8- विभिन्न प्रकार के स्टाम्प पेपर्स के मिलने का स्थान कहां है?
सभी कोषागार व उप-कोषागार स्टाम्प बिक्री के लिए आफिसियल स्टाम्प वेन्डर है। साथ ही जनपद के कलैक्टर द्वारा स्टाम्प विक्रेताओं को अनुज्ञप्ति जारी की जाती है जिसके अन्तर्गत वे कोषागार से स्टाम्प पेपर खरीद कर जनता को विक्रय करते हैं। प्रत्येक स्टाम्प विक्रेता अपने बैठने के स्थान पर एक बोर्ड लगाता है जिस पर उनके द्वारा एक व्यक्ति को स्टाम्प पेपर की बिक्री की सीमा तथा उनके पास उपलब्ध स्टाम्प पेपर का स्टाक अंकित रहता है। एक अनुज्ञप्तिधारक स्टाम्प विक्रेता एक हजार रूपये अभिधान ;क्मदवउपजदंजपवदद्ध के या किसी अन्य अभिधान के पन्द्रह हजार रूपये की सीमा तक स्टाम्प पेपर बिक्री कर सकता है। रू010000, रू015000, रू0 20000 तथा रू025000 के अभिधान के स्टाम्प पेपर केवल कोषागार/उप-कोषागार से ही बिक्री किये जाते हैं। 100रू0 से अधिक मूल्य के स्टाम्प पेपर पर कोषागार की मुहर अवश्य लगायी जाती है। सूच्य है कि एडहेसिव स्टाम्प 0-50 रूपये से लेकर रू05000 रूपये तक के अभिधान के कोषागारों में उपलब्ध हैं।
एक स्टाम्प विक्रेता एक दिन में एक क्रेता को कलेक्टर द्वारा उसकी अनुज्ञप्ति में अंकित अधिकतम सीमा रू015000/- तक स्टाम्प विक्रय कर सकता है। जनता की सुविधा के लिए बडे़ अभिधान रू05000/-, रू010000/-, रू015000/-, रू020000/-, रू025000/- के स्टाम् प पेपर प्रत्येक कोषागार/उपकोषागार के कैश काउन्टर पर भी उपलब्ध होते है।
9- कुछ विलेखों में स्टाम्प की देयता अचल सम्पत्ति के बाजारी मूल्य पर निर्भर होती है, किसी सम्पत्ति का बाजारी मूल्य आंकने की जानकारी कैसी होगी?
अचल सम्पत्ति का बाजारी मूल्य एक आंकलन होता है जबकि अचल सम्पत्ति के हस्तान्तरण हेतु तय किया गया प्रतिफल एक तथ्य है। जिन विलेखों पर स्टाम्प शुल्क की देयता सम्पत्ति के बाजारू मूल्य या प्रतिफल, जो भी अधिक हो, पर निर्भर है, उन विलेखों में उक्त दोंनो प्रासंगिक तथ्यों की जानकारी किया जाना आवश्यक होता है। उत्तर प्रदेश स्टाम्प (सम्पत्ति का मूल्यांकन) नियमावली 1997 के द्वारा किसी सम्पत्ति का न्यूनतम बाजारी मूल्य आंकने के नियम बनाये गये हैं। उक्त नियमावली के नियम-4 के अधीन राजस्व जिले का कलेक्टर दो वर्ष की अवधि में एक बार कृषि, आवासीय, व्यवसायिक अचल सम्पत्तियों की दर निर्धारित कर जिला निबन्धक के माध्यम से सम्बन्धित निबन्धन अधिकारी को अनुपालन हेतु सूचित करता है। उक्त दर सूची की प्रति जनपद स्तर पर जिला निबन्धक कार्यालय तथा तहसील स्तर पर निबन्धन
कार्यालय में उपलब्ध रहती है। प्रदेश के 106 निबन्धन कार्यालयों में विलेख का पंजीकरण कम्प्यूटर की सहायता से किया जा रहा है। उक्त निबन्धन कार्यालयों में कलेक्टर की दर सूची कम्प्यूटर पर उपलब्ध है। यदि कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट ग्राम/मोहल्ले की दर सूची की प्रति प्राप्त करना चाहता है तो उसे उक्त विशिष्ट ग्राम /मोहल्ले की दर सूची निःशुल्क उपलब्ध करायी जा सकती है।
10- स्टाम्प क्रय करने के पश्चात कितने दिनों में उसका प्रयोग कर लिया जाना चाहिए?
स्टाम्प खरीदने के पश्चात स्टाम्प के प्रयोग करने की कोई समय सीमा भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 में नहीं दी गयी है। अप्रयुक्त स्टाम्पों की धनराशि की वापसी का प्राविधान उक्त अधिनियम की धारा 49 से 55 में की गयी है। सामान्यतः यह अवधि छः माह की है। रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 की धारा-23 के अनुसार किसी विलेख के निष्पादन के पश्चात उसके रजिस्ट्रेशन के लिए, पक्षकार सम्बन्धित निबन्धन कार्यालय में निष्पादन दिनांक से चार माह तक की अवधि में पंजीकरण हेतु प्रस्तुत कर सकता है। अतः स्टाम्प पत्रयुक्त निष्पादित विलेख को र िजस्ट्रेशन हेतु पक्षकार निष्पादन के दिनांक से चार माह की अवधि के अन्दर ही रजिस्ट्रेशन अधिकारी के समक्ष रजिस्ट्रेशन हेतु प्रस्तुत कर सकता है।
11- स्टाम्प प्रयोग न किये जाने की दशा में या किन्हीं कारणों से स्टाम्प पेपर प्रयोग योग्य न रह जाने पर, क्या ऐसे स्टाम्प के बदले में रूपये का भुगतान किया जा सकता है अर्थात क्या ऐसा स्टाम्प वापिस किया जा सकता है?
जी हां। ऐसे अप्रयुक्त स्टाम्प पेपर के प्रयोगयोग्य न रह जाने पर उसकी धनराशि की वापसी का प्राविधान भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 49 से 55 में अंकित है।
12- लेखपत्रों पर कलेक्टर द्वारा कम बाजार मूल्य की गणना के मामले में किस दशा में मुकदमा कायम किया जाता है?
उत्तर प्रदेश स्टाम्प (सम्पत्ति का मूल्यांकन) नियमावली, 1997 के नियम-4 में यह व्यवस्था की गयी है कि जिले का कलेक्टर दो वर्ष की अवधि में एक बार कृषि, आवासीय तथा व्यवसायिक भूमि/भवन की दर निर्धारित करेगा। अचल सम्पत्ति के अंतरण के सम्बन्धित प्रत्येक अन्तरण विलेख में पक्षकार द्वारा अचल सम्पत्ति के न्यूनतम बाजार मूल्य की गणना कलेक्टर दर में प्रदर्शित न्यूनतम मूल्य से करके स्टाम्प शुल्क देना चाहिए। यदि पक्षकार ऐसा नहीं करता है तो निबन्धन अधिकारी का यह दायित्व है कि वह ऐसे विलेख पर नियमानुसार स्टाम्प शुल्क लेने हेतु उक्त अंतरण विलेख को भारतीय स्टाम्प अधिनियम, गणना के लिए कलेक्टर को सन्दर्भित करेगा। स्टाम्प कलेक्टर द्वारा पक्षकार को नियमानुसार अपना पक्ष प्रस्तुत करने हेतु नोटिस प्रेषित किया जाता है जो नोटिस प्राप्त होने के पश्चात अपना पक्ष कलेक्टर के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 31 में पक्षकार को यह विकल्प उपलब्ध है कि वह किसी भी विलेख पर देय स्टाम्प शुल्क की जानकारी के लिए कलेक्टर के समक्ष आवेदन तथा फीस देकर यह जानकारी लिखित रूप में प्राप्त कर सकता है कि उसके विलेख पर कितने रूपये का स्टाम्प शुल्क देय होगा। प्रार्थी को उक्त आवेदन पत्र के साथ अहस्ताक्षरित विलेख या उसकी प्रति उपलब्ध करानी होगी कलेक्टर उक्त विलेख पर देय स्टाम्प शुल्क का परीक्षण कराकर उस पर देय शुल्क के सम्बन्ध में एक आदेश पारित करेगा। उक्त आदेश के अनुपालन में प्रार्थी द्वारा प्रश्नगत विलेख स्टाम्प शुल्क अदा करने पर कलेक्टर उक्त विलेख की पुश्त पर उसके यथाविधि स्टाम्पित होन े का प्रमाण-पत्र अंकित करेगा।
13- एक सम्पत्ति का विक्रय पत्र तथा उसी सम्पत्ति को तीस वर्ष से अधिक समय के लिए किराये पर दिये जाने वाले किरायेनामें पर किस प्रकार स्टाम्प शुल्क देय होगा?
दिनांक 8 जनवरी 2001 भारतीय स्टाम्प (उत्तर प्रदेश संशोधन) अध्य ादेश, 2001 जिसे बाद अधिनियम संख्या 9 सन 2001 प्रभावी दिनांक 25 .0 4.2001 द्वारा अधिनियम में परिवर्तित किया गया, द्वारा उक्त अधिनियम की अनुसूची एक-ख के अनुच्छेद 35 (ए) ;अपद्ध तथा अनुच्छेद-35(बी) तथा (सी) में यह संशोधन किया गया कि तीस वर्ष से अधिक अवधि के पटटा विलेख पर अनुसूची एक-ख के अनुच्छेद-23(क) कन्वेएन्स की भांति पटटागत अचल सम्पत्ति के बाजार मूल्य या प्रतिफल,(नजराना) जो अधिक हो पर स्टाम्प शुल्क देय होगा। उपरोक्त प्राविधान के अनुसार किसी अचल सम्पत्ति के अंतरण विलेख तथा उसी अचल सम्पत्ति के 30 वर्ष से अधिक अवधि के लिए निष्पादित पटटा विलेख पर कलेक्टर द्वारा निर्धारित बाजार मूल्य या प्रतिफल/नजराना जो भी अधिक हो, पर 80 रूपये प्रति हजार की दर से स्टाम्प शुल्क देय होगा। यदि पटटागत अचल सम्पत्ति आवास विकास परिषद, विकास प्राधिकरण अथवा स्थानीय निकाय के क्षेत्रान्तर्गत आती है तो उक्त विलेख पर बीस रूपये प्रति हजार की दर से अतिरिक्त स्टाम्प शुल्क देय होगा।
14- बैंक से लोन लिये जाने के एवज में बैंक के हक में डिपाजिट आॅफ टाइटिल डीड पर किस प्रकार स्टाम्प शुल्क देय होगा?
भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची एक- बी के अनुच्छेद 6 हक विलेखो का निक्षेप, पण्यम या गिरवी से सम्बन्धित करार के अनुसार बन्धक विलेख द्वारा सुरक्षित धनराशि पर स्टाम्प शुल्क देय होगा। विभाग की अधिसूचना दिनांक 16.12.1999 (प्रभावी दिनांक 17.12.1999) द्वारा उक्त दर 5 रू0 प्रति हजार अधिकतम 10000रू0 है।
15- बैंक से ली गयी ऋण सुविधा के बदले में बैंक के हक में लिये गये अपरिवर्तनीय मुख्तारनामें, जिसमें ऋण ग्रहीता की अचल सम्पत्ति को अन्तरित करने का भी अधिकार दिया गया है, पर कितने रूपये का स्टाम्प शुल्क देय होगा?
ऐसे मुख्तारनामा पर भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची एक- बी के अनुच्छेद 48 (ईई ) के अनुसार दी गयी मुख्तारनामा में अंकित अचल सम्पत्ति के बाजार मूल्य पर अनुच्छेद-23(क) कन्वेएन्स के अनुसार स्टाम्प शुल्क देय होगा।
16- कार्य संविदा को पूर्ण करने के लिए लिखे गये अनुबन्ध पर कितने रूपये का स्टाम्प शुल्क देय होगा?
वर्तमान में मा0उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में कार्य संविदा या वर्क कान्ट्रेक्ट में दी गई जमानत की धनराशि पर भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 की अनुसूची एक-ख के अनुच्छेद 57 के अन्तर्गत एक सौ रूपये का स्टाम्प शुल्क लेने का आदेश निर्गत किया गया है। शासन के निबन्धन विभाग द्वारा मा0उच्च न्यायालय के उपरोक्त आदेश के विरूद्ध मा0उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुज्ञा दाखिल कर दी गई है। शासन के निबन्धन विभाग द्वारा यह भी निर्देश दिया गया है कि सम्बन्धित अधिकारी ठेकेदारों से इस आशय का शपथ-पत्र/ बाण्ड भी ले लें कि यदि उक्त विशेष अनुज्ञा याचिका निर्णय राज्य सरकार के पक्ष में कर दिया जाता है तो वे ठेका अनुबन्ध विलेखों पर नियमानुसार देय स्टाम्प शुल्क का भुगतान करेंगे।
17- कार्य संविदा के अनुबन्ध में कार्य को लिखित शर्तो के अनुसार पूरा न करने पर प्रतिभूति के रूप में दी जाने वाली धनराशि का उल्लेख करने पर स्टाम्प देयता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
ऐसी स्थिति में विधिक स्थिति यह है कि अनुबन्ध विलेख में अंकित इस शर्त पर स्टाम्प शुल्क निर्भर करेगा कि प्रतिभूति किस प्रकार दी जा रही है तथा किस व्यक्ति के द्वारा दी जा रही है। यदि वर्क कान्ट्रेक्ट करने वाले व्यक्ति द्वारा स्वयं अपनी कि सी अचल सम्पत्ति को रहन रखकर प्रतिभूति दी जा रही है तब ऐसे विलेख पर सम्पत्ति पर कब्जे की स्थिति के अनुसार अनुच्छेद 40 (क) अथवा (ख) जैसी भी स्थिति हो स्टाम्प शुल्क देय होगा अर्थात कब्जे सहित रहन रखने पर प्रतिभूति की धनराशि पर 80 रूपये प्रति हजार तथा कब्जा न दिये जाने की स्थिति में 40 रूपये प्रति हजार परन्तु अधिकतम 5 लाख रूपये। नकद रूपये, एफ0डी0आर0 या एन0एस0सी0 प्रतिभूति में दिये जाने पर प्रतिभूति की धनराशि पर 80 रूपये प्रति हजार।
परन्तु वर्तमान में स्थिति यह है कि मा0उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में कार्य संविदा या वर्क कान्ट्रेक्ट में दी गई जमानत की धनराशि पर भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 की अनुसूची एक-ख के अनुच्छेद 57 के अन्तर्गत एक सौ रूपये का स्टाम्प शुल्क लेने का आदेश निर्गत किया गया है। शासन के निबन्धन विभाग द्वारा मा0उच्च न्यायालय के उपरोक्त आदेश के विरूद्ध मा0उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका दाखिल कर दी गयी है। शासन के निबन्धन विभाग द्वारा यह भी निर्देश दिया गया है कि सम्बन्धित अधिकारी ठेकेदारों से इस आशय का शपथ-पत्र/ बाण्ड भी ले लें कि यदि उक्त विशेष अनुज्ञा याचिका निर्णय राज्य सरकार के पक्ष में कर दिया जाता है तो वे ठेका अनुबन्ध विलेखों पर नियमानुसार देय स्टाम्प शुल्क का भुगतान करेंगे।
18- कार्य संविदा को लिखित शर्तो के अनुसार पूर्ण करने के अनुबन्ध में किसी तीसरे पक्ष की गारन्टी लिये जाने की दशा में किस प्रकार स्टाम्प देय होता है?
किसी तृतीय व्यक्ति के द्वारा गारन्टी दिलाये जाने पर स्टाम्प शुल्क की अनुसूची एक- बी के अनुच्छेद 57 के अनुसार केवल 100 रूपये का स्टाम्प शुल्क देय होगा।
19- कार्य संविदा के अनुबन्ध में लिखित शर्तो में बैंक गारन्टी दिये जाने की शर्त के अनुसार दी जाने वाली बैंक गारन्टी पर किस दर से स्टाम्प शुल्क देय होगा?
उपरोक्त प्रकार के ठेका अनुबन्ध विलेख पर भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची एक- बी के अनुच्छेद 12 (क) बैंक गारन्टी के अनुसार शासन की अधिसूचना दिनांक 16.1 2.1999 प्रभावी दिनांक 17.12.1999 के अनुसार बैंक गारन्टी की धनराशि द्वारा सुरक्षित धनराशि पर 5 रूपये प्रति हजार की दर से अधिकतम दस हजार रूपये की स्टाम्प शुल्क देय होगा। वर्तमान में मा0उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में कार्य संविदा या वर्क कान्ट्रेक्ट में दी गई जमानत की धनराशि पर भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 की अनुसूची एक-ख के अनुच्छेद 57 के अन्तर्गत एक सौ रूपये का स्टाम्प शुल्क लेने का आदेश निर्गत किया गया है। शासन के निबन्धन विभाग द्वारा मा0उच्च न्यायालय के उपरोक्त आदेश के विरूद्ध मा0उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका दाखिल कर दी गयी है। शासन के निबन्धन विभाग द्वारा यह शपथ-पत्र/ बाण्ड भी ले लें कि यदि उक्त विशेष अनुज्ञा याचिका निर्णय राज्य सरकार के पक्ष में कर दिया जाता है तो वे ठेका अनुबन्ध विलेखों पर नियमानुसार देय स्टाम्प शुल्क का भुगतान करेंगे।
20- किरायेनामों पर किस दर से स्टाम्प शुल्क देय होता है?
किरायेनामा पर विभिन्न समय अवधि के अनुसार तथा किराये में दी गयी शर्तो के अनुसार किराये पर नजराना, अग्रिम किराये, पगड़ी (प्रीमियम) आदि के अनुसार स्टाम्प शुल्क की गणना की जाती है, जिसका प्राविधान भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची एक- बी के अनुच्छेद 35 में अंकित है। प्रीमियम, नजराना पर बैनामा के रूप में अनुच्छेद 23(क) कन्वेएन्स में प्राविधानित 80 रूपये प्रति हजार व आवास विकास परिषद या स्थानीय निकाय के क्षेत्र में पटटागत अचल सम्पत्ति के स्थित होने की दशा में 20 रूपये प्रति हजार की दर से अतिरिक्त स्टाम्प शुल्क देय होगा।
किराये की दशा में, एक वर्ष तक की अवधि के किरायेनामा पर कुल किराये की धनराशि पर 40 रूपये प्रति हजार, एक वर्ष से पांच वर्ष की अवधि के किरायेनामाा पर 3 वर्ष के औसत वार्षिक किराये पर, पांच से दस वर्ष की अवधि के किरायेनामा पर, औसत वार्षिक किराये के चार गुना पर 10 से 20 वर्ष की अवधि के किरायेनामों पर औरत वार्षिक किराये के 5 गुना पर, 20 से 30 वर्ष के किरायेनामा पर 6 वर्ष के औसत वार्षिक किराये पर तथा 30 वर्ष से अधिक अवधि के किरायेनामा के लिए या ऐसे किरायेनामा के लिए जिसमें अवधि निश्चित न की गयी हो किरायेनामा में अंकित अचल सम्पत्ति के बाजार मूल्य पर 80 रूपये प्रति हजार व आवास विकास परिषद या स्थानीय निकाय के क्षेत्र में स्थित होने की दशा में 20 रूपये प्रति हजार की दर से अतिरिक्त स्टाम्प शुल्क देय होगा।

बैनामा दाखिल खारिज कितने दिन में होता है?

दाखिल खारिज को 15 से 20 दिन का समय लगता है।

क्या दाखिल खारिज कैंसिल हो सकता है?

उत्तर: हां, दाखिल खारिज कैंसिल हो सकता है।

दाखिल खारिज में कितना खर्च आता है?

दाखिल खारिज कराने में कितना पैसा लगता है तो दाखिल ख़ारिज कराने में 2500 से 3000 के करीब खर्चा हो जाता हैं.

दाखिल खारिज का मतलब क्या होता है?

दाखिल ख़ारिज (Mutation) करवाना मतलब यह कि किसी जमीन को एक नाम से दूसरे के नाम दर्ज करवाने से किया गया है | सम्पत्ति की रजीस्ट्री के कुछ समय पश्चात तक यदि दाखिल ख़ारिज की प्रक्रिया नहीं हो पाती है, तो नियमानुसार उस जमीन पर कानूनी रूप से क्रेता का कोई हक़ नहीं माना जायेगा | विक्रेता व्यक्ति चाहे तो उसी जमीन को पुनः बेचने ...