इस लेख को पढ़ने के बाद आप निम्न तथ्यों को समझ सकेंगे - Show
Table of contents (toc) पत्र लेखन की आवश्यकता एवं महत्वपत्र-लेखन साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधि है, उसका एक महत्वपूर्ण अंग है ,जिसके अंतर्गत हमारे दैनिक के क्रियाकलाप, विचारों का आदान-प्रदान अत्यंत स्वाभाविक ढंग से साहित्य का एक अंग बन जाते हैं। विद्यार्थी जीवन से ही इसका सहज विकास होता है, जहाँ वह अपने आत्मीय, इष्ट मित्रों व गुरुजनों से पत्रों एवं प्रार्थना पत्रों के माध्यम से अपने हृदयगत भावों को व्यक्त करना सीखता है। पत्र लेखन की विशेषताएँआधुनिक युग में पत्र लेखन एक कला है। सतत अभ्यास से ही कला परिक्त हो सकती है। एक अच्छे पत्र में निम्न विशेषताओं का होना जरूरी है - सरल भाषा-शैली : पत्र की साधारणतः सरल तथा बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों का प्रयोग भाव तथा विषयानुकूल होने चाहिए। पत्रों की शैली रोचक, मधुर, आत्मीय और सहज हो। बातें सीधे-सरल तरीके से कही जानी चाहिए। विचारों की स्पष्टता : पत्रों में विचार सुस्पष्ट तथा सुलझे हुए होने चाहिए। भाषा शिष्ट व प्रिय हो। अप्रिय तथा अशिष्ट भाषा के प्रयोग से बचना चाहिए। सम्पूर्णत : पत्र में जो लिखा जाना जरूरी है, वह अवश्य लिखा जाए। लेकिन अनावश्यक, अनर्गल, उबाऊ तथा निरर्थक विवरण अथवा वर्णन टालें। संक्षिप्तता : पत्र संक्षिप्त होना चाहिए अर्थात पत्र अधिक विस्तृत नहीं होना चाहिए। पत्र में उनकी बातों का विवरण दें, जो जरूरी हों। प्रभविष्णुता : पत्र का प्रारंभ तथा अंत प्रायः नम्रता, आदर, आत्मीय, भाव प्रवणता, प्रेमाभिव्यक्ति आदि से यथोचितपूर्ण होना चाहिए। सुंदर अक्षर एवं आकर्षक : पत्र में किसी भी प्रकार की काट-पीट नहीं होना चाहिए। पत्र में सुंदर अक्षर तथा सधे हुए वाक्य, मन को प्रसन्न कर देते हैं। कागज अच्छा एवं साफ सुथरा हो। शीर्षक, तिथि, संबोधन, अभिवादन, अनुच्छेद यथानुसार और सही क्रम में होने चाहिए।
पत्रों के प्रकारपत्र लेखन दो प्रकार के हैं - ● औपचारिक पत्र ● अनौपचारिक पत्र औपचारिक पत्र :- इसमें निम्नलिखित पत्र आते हैं - ● सरकारी पत्र अनौपचारिक पत्र :- इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है - ● सामाजिक पत्र ● निजी पत्र : निजी पत्र पूर्णतः व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित होते हैं। ये पत्र प्रायः परिवार के अपने संबंधियों को लिखे जाते हैं। पत्र लेखन के अंगों की विवेचनाप्रेषक और लिपि : पत्र के शीर्ष स्थान पर दाहिनी ओर प्रेषक का पता तथा पत्र लेखन की तिथि का उल्लेख होना चाहिए। मूल संबोधन : संबोधन की दृष्टि से पत्र के दो वर्ग हैं - पहले वर्ग में रिश्ते-नाते के सभी लोग तथा व्यक्तिगत एवं परिवारिक रूप से जाने-पहचाने व्यक्ति आते हैं। जैसे - गुरुजी, आदरणीय, माताजी, चिरंजीवी, प्रिय भाई इत्यादि। दूसरे वर्ग में - घनिष्टता,श्रद्धा या स्नेह सूचक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि सेवा में, प्रति, इसके नीचे पदनाम, संस्था नाम, पता आदि लिखे जाते हैं। अभिवादन या शिष्टाचार : संबोधन की पंक्ति के अंतिम वर्ण के नीचे नई पंक्ति आरम्भ करके अभिवादन या शिष्टाचार सूचक शब्द लिखे जाते हैं। जैसे - प्रणाम, नमस्ते, नमस्कार, जय हिंद, शुभाशीषा, प्रसन्न रहो आदि। गौण संबोधन : इसका प्रयोग केवल संवृद्धि के दूसरे वर्ग के साथ ही होता है जिसमें शिष्टाचार तथा अभिवादन सूचक शब्द प्रयुक्त नहीं किये जाते। विषयवस्तु : पत्र के विषय को प्रारंभ, मध्य और अंत के रूप में तीन अनुच्छेदों में या आवश्यकतानुसार दो या एक अनुच्छेद में व्यवस्थित करके लिखा जाता है। उदाहरण - श्रध्देय पिताजी, सादर प्रणाम आपका पत्र प्राप्त हुआ। अधो लेख या पत्र की समाप्ति : पत्र की विषय-सामग्री लिख देने के पश्चात अंत करने के लिए मंगल कामना सूचक अथवा धन्यवाद सूचक उक्तियों का प्रयोग करके संबोध्य के साथ अपने संबंध को प्रकट करते हुए हस्ताक्षर किए जाते हैं। संबोध्य पत्र : पत्र के अंत में संबोध्य व्यक्ति अथवा पदनाम का पूरा पता पत्र के बायीं ओर लिखा जाता है। आशा करता हूँ आपको इस लेख के माध्यम से पत्र लेखन की विशेषताएँ, पत्र लेखन के प्रकार और पत्र लेखन के अंगों की विवेचना के बारे में पूरी जानकारी मिली होगी। पत्र लेखन (परिभाषा, विशेषताएं, महत्व और प्रकार) | Patra Lekhan (Letter Writing)Definition, Type, Importance and Characteristics in Hindi पत्र लेखन एक रोचक कला है. अभिव्यक्ति के समस्त लिखित साधनों में पत्र आज भी सबसे प्रमुख, शक्तिशाली, प्रभावपूर्ण और मनोरम स्थान रखता हैं. पत्र-लेखन में आत्मीयता स्पष्ट दिखाई देती चाहिए जिससे लेखक तथा पाठक दोनों समीपता का अनुभव करते हैं. लिखित भाषा का उद्देश्य सबसे अधिक पत्र लेखन द्वारा ही प्राप्त होता है. पत्र लेखन द्वारा हम दूसरों के दिलों को जीत सकते हैं, मैत्री बड़ा सकते हैं और मंत्रमुग्ध कर सकते हैं. अतः पत्र लेखन एक ऐसी कला हैं जिसके लिए बुद्धि और ज्ञान की परिपक्वता, विचारों की विशालता, विषय का ज्ञान, अभिव्यक्ति की शक्ति और भाषा पर नियंत्रण की आवश्यकता होती हैं. पत्र की विशेषताएँसरलतापत्र की भाषा सरल, स्पष्ट तथा स्वभाविक होनी चाहिए. इसमें कठिन शब्द या साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि भाषा की जटिलता पत्र को नीरस बना देती हैं. स्पष्टतापत्र की भाषा में स्पष्टता होनी चाहिए. स्पष्ट करता मधुर भाषा वाला पत्र प्रभावी होता है. शब्दों का चयन, वाक्य रचना की सरलता पत्र को प्रभावशाली बनाती है. संक्षिप्ततापत्र की भाषा में संक्षिप्तता होनी चाहिए. उसमें अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए. संक्षिप्तता का अर्थ है पत्र अपने आप में पूर्ण हो. व्यर्थ के शब्द जाल से मुक्त होना चाहिए. आकर्षकता तथा मौलिकतापत्र आकर्षक एवं सुंदर होना चाहिए. कार्यालयी पत्रों को स्वच्छता के साथ टाइप किया जाए. पत्र की भाषा में मौलिकता होनी चाहिए. पत्र में अपना वर्णन, क्रम प्राप्त करने वाले का अधिक वर्णन होना चाहिए. उद्देश्यपूर्णताप्रत्येक पत्र अपने कथन में स्वतः संपूर्ण होना चाहिए. पत्र पढ़ने के बाद किसी प्रकार की जिज्ञासा शेष नहीं रहना चाहिए. पत्र का कथ्य अपने आप में पूर्ण तथा उद्देश्य की पूर्ति करने वाला हो. शिष्टतासरकारी, व्यवसायिक तथा अन्य औपचारिक पत्र की भाषा शैली शिष्टता पूर्ण होनी चाहिए. अस्वीकृति, शिकायत, खीझ और नाराजगी भी शिष्ट भाषा में ही प्रकट की जाए तो उसका अधिक प्रभाव पड़ता है. चिन्हांकनपत्र में प्रयुक्त चिन्ह पर हमें विशेष ध्यान देना चाहिए. चिन्ह से अंकित अनुच्छेद का प्रयोग करना चाहिए. प्रत्येक नए विचार, नई बात के लिए पैराग्राफ, अल्पविराम, अर्धविराम, पूर्ण विराम, कोष्ठक आदि का प्रयोग उचित स्थल पर ही होना चाहिए. पत्र का महत्वआज के अति व्यस्त युग में पत्र लेखन का महत्व और अधिक बढ़ गया है. आज के युग में मानव को अनेक व्यक्तियों, संबंधियों, कार्यालय से संपर्क साधना पड़ता है. प्रत्येक स्थान पर वह स्वयं तो नहीं जा सकता लेकिन उसे पत्र का सहारा लेना पड़ता है. सुरक्षा की दृष्टि से पत्र बहुत ही उत्तम है. पत्र के प्रकार
अनौपचारिक पत्राचार-जिन से हमारा व्यक्तिगत संबंध होता है उनके साथ अनौपचारिक पत्राचार किया जाता है. इसलिए इन पत्रों में व्यक्तिगत सुख दुख का विवरण होता है ऐसे पत्र अपने परिवार के लोगों, मित्रों तथा निकट संबंधियों को लिखे जाते हैं. अनौपचारिक पत्र के उदाहरण चुनाव प्रक्रिया पर अपने विचार को प्रकट करता हुआ अनौपचारिक पत्र औपचारिक पत्राचार-यह पत्राचार उन लोगों के साथ किया जाता है जिन से हमारा कोई निजी परिचय नहीं रहता है. इनमें औपचारिकता और कथ्य संदेश यह मुख्य होता है तथा आत्मीयता गौण होती है. इनमें तथ्यों तथा सूचनाओं को अधिक महत्व दिया जाता है. औपचारिक पत्र विशिष्ट नियमों में आबद्ध होते हैं. औपचारिक पत्रों की परिधि बहुत ही व्यापक होती हैं. इसके अनेकानेक रूप संभव हैं, जैसे – सरकारी पत्र, अर्ध सरकारी पत्र, व्यवसायिक पत्र, पूछताछ पत्र, संपादक के नाम पत्र, अनुरोध पत्र, शोक पत्र, आवेदन पत्र, शिकायत पत्र, निमंत्रण पत्र, विज्ञापन पत्र, अनुस्मारक, स्वीकृति पत्र, बधाई पत्र, शुभकामना पत्र. औपचारिक पत्र के उदाहरण विद्यालय की प्रधानाचार्य को फीस माफ़ करने के लिए आवेदन पत्र पत्र के अंगप्रेषक का नाम व पता व्यवसायिक पत्रों में सबसे ऊपर लिखने वाले का नाम तथा पता दिया होता है. पाने वाले को देखते ही पता चल जाए कि वह पत्र किसने भेजा है तथा कहां से आया है. प्रेषक का नाम व पता ऊपर की ओर दाएं कोने में आता है. पत्र के नीचे दूरभाष नंबर और उसके नीचे दिनांक के लिए स्थान निर्धारित रहता है. पाने वाले का नाम व पता प्रेषक के बाद ट्रस्ट की बायीं और पत्र पाने वाले का नाम और पता लिखा होता है. नाम के स्थान पर कभी-कभी केवल पद नाम भी लिखते हैं. कभी-कभी नाम और पदनाम दोनों लिखे जाते हैं. पाने वाले का विवरण इस प्रकार होना चाहिए. नाम, पदनाम, कार्यालय का नाम, स्थान, शहर, जिला एवं पिन कोड. विषय संकेत औपचारिक पत्रों में पाने वाले के नाम और पते के बाद बायीं ओर विषय शीर्षक देकर लिखना चाहिए. इससे पत्र को देखकर उसके विषय की जानकारी हो जाती हैं. संबोधन विषय के बाद पत्र के बायीं ओर संबोधन सूचक शब्द का प्रयोग किया जाता हैं. व्यक्तिगत पत्र में प्रिय लिखकर प्राप्तकर्ता का नाम या उपनाम दिया जाता हैं. जैसे प्रिय अरुण. अपने से बड़ों के लिए प्रिय के स्थान पर पूज्य, मान्यवर आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं. सरकारी पत्रों में प्रिय महोदय और प्रिय महोदया लिखा जाता हैं. पत्र की मुख्य सामग्री संबोधन के पश्चात पत्र की मूल सामग्री लिखी जाती है. आवश्यकता, समय तथा परिस्थिति के अनुसार विषय में परिवर्तन होता रहता है. समापन सूचक शब्द पत्र की समाप्ति पर प्रेषक प्राप्तकर्ता से अपने संबंध के अनुसार समापन सूचक शब्दों का प्रयोग कर सत्र समाप्त करता है. बड़ों के लिए आपका आज्ञाकारी, आपका प्रिय, बराबरी वालों के लिए स्नेहशील, स्नेही और छोटों के लिए शुभचिंतक, शुभकांक्षी जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं. हस्ताक्षर तथा नाम समापन शब्द के ठीक नीचे होने वाले का हस्ताक्षर होते हैं. हस्ताक्षर के ठीक नीचे कोष्टक में भेजने वाले का पूरा नाम तथा पता भी अवश्य लिख देना चाहिए. हस्ताक्षर प्रायः सूपाठ्य नहीं होने के कारण नाम भी लिखना चाहिए. संलग्नक सरकारी पत्रों में प्रायर मूल पत्र के साथ अन्य आवश्यक कागजात भी भेजे जाते हैं. उन्हें इस पत्र के संलग्न पत्र या संलग्नक कहते हैं. संलग्न पत्र में “संलग्नक” शीर्षक लिखकर उसके आगे संख्या 1,2,3,4,5 के द्वारा संकेत दिया जाता है. पुनश्च कभी-कभी पत्र लिखते समय मूल सामग्री में से किसी महत्वपूर्ण अंश के छूट जाने पर इसका प्रयोग किया जाता है. ‘समापन सूचक शब्द’,हस्ताक्षर, संलग्नक आदि सब कुछ लिखने के बाद कागज पर अंत में सबसे नीचे या उसके पृष्ठ भाग पर पुनश्च शीर्षक देकर छुट्टी हुई सामग्री लिखकर एक बार पुनः स्थापित कर दिए जाते हैं. पता लिफाफे/ पोस्टकार्ड/ अंतर्देशीय पत्र के बाहर पत्र प्रेषक को अपना नाम लिखना चाहिए. यदि पत्र में ऊपर पूर्ण पता नहीं दिया गया है तो उसे यहां लिख देना चाहिए. पत्र प्राप्त करने वाले का पता पत्र प्राप्त करने वाले का पता बाहर लिफाफे/ पोस्टकार्ड/ अंतर्देशीय पत्र पर लिख देना चाहिए. इसे भी पढ़े :
मित्रों आपको यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके अवश्य बताएं. एक आदर्श पत्र में कौन कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए संक्षिप्तता मौलिकता क्रमबद्धता ये सभी?पत्र की भाषा में मौलिकता होनी चाहिए. पत्र में अपना वर्णन, क्रम प्राप्त करने वाले का अधिक वर्णन होना चाहिए. प्रत्येक पत्र अपने कथन में स्वतः संपूर्ण होना चाहिए. पत्र पढ़ने के बाद किसी प्रकार की जिज्ञासा शेष नहीं रहना चाहिए.
एक अच्छे पत्र की क्या विशेषताएं होनी चाहिए स्पष्ट कीजिए?अच्छे पत्र की विशेषताएँ. (1)प्रभावोत्पादकता :- किसी भी पत्र का प्रथम गुण हैं उसकी प्रभावोत्पादकता। ... . (2)विचारों की सुस्पष्ठता :- पत्र में लेखक के विचार सुस्पष्ट और सुलझे होने चाहिए। ... . (3)संक्षेप और सम्पूर्णता:-- पत्र अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए। ... . (4)सरल भाषाशैली:- पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए।. पत्र की महत्वपूर्ण विशेषता क्या है?पत्र की विशेषताएं उद्देश्य पूर्णता- कोई भी पत्र अपने कथन या मंतव्य में स्वतः संपूर्ण होना चाहिए। उसे पढ़ने के बाद तद्विषयक किसी प्रकार की जिज्ञासा, शंका या स्पष्टीकरण की आवश्यकता शेष नहीं रहनी चाहिए। पत्र लिखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कथ्य अपने आप में पूर्ण तथा उद्देश्य की पूर्ति करने वाला हो।
पत्र लेखन का क्या महत्व है अच्छे पत्र लेखन में किन विशेषताओं का होना आवश्यक है?पत्र लेखन का कार्य अत्यंत प्रभावशाली होता है, क्योंकि इस साधन के द्वारा अनेकों लोगो से संपर्क स्थापित करने में भी सुविधा रहती है। आजकल दूर-दूर रहने वाले सगे संबंधियों व व्यापारियों को आपस में एक दूसरे के साथ मेल जोल रखने एवं संबंध रखने की आवश्यकता पड़ती है, इस कार्य में पत्र लेखन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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