गोदावरी नदी निम्नलिखित में से किस राज्य से होकर नहीं गुजरती है?A. महाराष्ट्रB. गुजरातC. छत्तीसगढ़D. आंध्र प्रदेश
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Answer (Detailed Solution Below)Option 4 : B Free 10 Questions 10 Marks 7 Mins विकल्प 4 सही उत्तर है: गोदावरी नदी गुजरात से होकर नहीं गुजरती है। गोदावरी नदी:
Last updated on Sep 21, 2022 RRB NTPC Result Cut Off released for Pay Level 5. This is for RRB Chennai. For other RRBs, the results will be released soon. The RRB NTPC exam is conducted to fill up a total number of 35281 vacant posts. Candidates who are qualified for the Computer Based Aptitude Test will be eligible for the next round, which will be Document Verification & Medical Exam. The candidates with successful selection under RRB NTPC will get a salary range between Rs. 19,900 to Rs. 35,400. Know the RRB NTPC Result here. गोदावरी नदी कितने राज्यों से होकर बहती है?January 21, 2021 (A) सात राज्यों से Question Asked : Deputy Commandant Exam 2020 Answer : पांच राज्यों सेExplanation : गोदावरी नदी पांच राज्यों से होकर बहती हैं–महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश। गोदावरी नदी का उद्गम स्थल महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्र्यंबकेश्वर में ब्रह्मगिरि पर्वत पर है। यह प्रायद्वीपीय पठार की सबसे लंबी नदी है। इसकी लंबाई 1,465 किमी है। इसको दक्षिण की गंगा या वृद्ध गंगा भी कहा जाता है। इसके अपवाह का 50% भाग महाराष्ट्र में है। शेष अपवाह क्षेत्र अन्य चार राज्यों में है। प्रवरा, पूर्णा, पेनगंगा, वेनगंगा, प्राणहिता, इंद्रावती, सिलेरु, मुला व मंजरा इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।....अगला सवाल पढ़े Useful for : UPSC, State PSC, IBPS, SSC, Railway, NDA, Police Exams Latest Questions
गोदावरी नदी (अंग्रेज़ी: Godavari River) भारत की प्रसिद्ध नदी है। यह नदी दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट से लेकर पूर्वी घाट तक प्रवाहित होती है। नदी की लंबाई लगभग 900 मील (लगभग 1440 कि.मी.) है। यह नदी नासिक त्रयंबक गाँव की पृष्ठवर्ती पहाड़ियों में स्थित एक बड़े जलागार से निकलती है। मुख्य रूप से नदी का बहाव दक्षिण-पूर्व की ओर है। ऊपरी हिस्से में नदी की चौड़ाई एक से दो मील तक है, जिसके बीच-बीच में बालू की भित्तिकाएँ हैं। समुद्र में मिलने से 60 मील (लगभग 96 कि.मी.) पहले ही नदी बहुत ही सँकरी उच्च दीवारों के बीच से बहती है। बंगाल की खाड़ी में दौलेश्वरम् के पास डेल्टा बनाती हुई यह नदी सात धाराओं के रूप में समुद्र में गिरती है। भारत की प्रायद्वीपीय नदियाँ- गोदावरी और कृष्णा, ये दोनों मिलकर 'कृष्णा-गोदावरी डेल्टा' का निर्माण करती हैं, जो सुन्दरबन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा डेल्टा है। इस डेल्टा को बहुधा 'केजी डेल्टा' भी कहा जाता है। मुख्य धाराएँगोदावरी की सात शाखाएँ मानी गई हैं-
पौराणिक उल्लेखपुराणों में गोदावरी नदी का विवरण निम्न प्रकार प्राप्त होता है-
कालिदास ने इस उल्लेख में गोदावरी को 'गोदा' कहा है। ‘शब्द-भेद प्रकाश’ नामक कोश में भी गोदावरी का रूपांतर ‘गोदा’ दिया हुआ है। वैदिक साहित्य में अभी तक गोदावरी की कहीं भी चर्चा नहीं प्राप्त हो सकी है। बौद्ध ग्रन्थों में बावरी के विषय में कई दन्तकथाएँ मिलती हैं। ब्रह्मपुराण में गौतमी नदी पर 106 दीर्घ पूर्ण अध्याय है। इनमें इसकी महिमा वर्णित है। वह पहले महाकोसल का पुरोहित था और पश्चात् पसनेदि का, वह गोदावरी पर अलक के पार्श्व में अस्यक की भूमि में निवास करता था और ऐसा कहा जाता है कि उसने श्रावस्ती में बुद्ध के पास कतिपय शिष्य भेजे थे।[8] पाणिनि[9] के 'संख्याया नदी-गोदावरीभ्यां च' वार्तिक में 'गोदावरी' नाम आया है और इससे 'सप्तगोदावर' भी परिलक्षित होता है। रामायण, महाभारत एवं पुराणों में इसकी चर्चा हुई हैं। वन पर्व[10] ने इसे दक्षिण में पायी जाने वाली एक पुनीत नदी की संज्ञा दी है और कहा है कि यह निर्झरपूर्ण एवं वाटिकाओं से आच्छादित तटवाली थी और यहाँ मुनिगण तपस्या किया करते थे। रामायण के अरण्य काण्ड वा. रा.[11] ने गोदावरी के पास के पंचवटी नामक स्थल का वर्णन किया है, जहाँ मृगों के झुण्ड रहा करते थे और जो अगस्त्य के आश्रम से दो योजन की दूरी पर था। ब्रह्म पुराण[12] में गोदावरी एवं इसके उपतीर्थों का सविस्तार वर्णन हुआ है। तीर्थंसार[13] ने ब्रह्मपुराण के कतिपय अध्यायों[14] से लगभग 60 श्लोक उद्धृत किये हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि आज के ब्रह्मपुराण के गौतमी वाले अध्याय 1500 ई. के पूर्व उपस्थित थे। वामन काणे के लेख के अनुसार[15] ब्रह्म पुराण ने गोदावारी को सामान्य रूप में गौतमी कहा है।[16] ब्रह्मपुराण[17] में आया है कि विन्ध्य के दक्षिण में गंगा को गौतमी और उत्तर में भागीरथी कहा जाता है। गोदावरी की 200 योजन की लम्बाई कही गयी है और कहा गया है कि इस पर साढ़े तीन करोड़ तीर्थ पाये जाते हैं।[18] दण्डकारण्य को धर्म एवं मुक्ति का बीज एवं उसकी भूमि को (उसके द्वारा आश्लिष्ट स्थल को) पुण्यतम कहा गया है।[19] नामकरणकुछ विद्वानों के अनुसार, इसका नामकरण तेलुगु भाषा के शब्द 'गोद' से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है। एक बार महर्षि गौतम ने घोर तप किया। इससे रुद्र प्रसन्न हो गए और उन्होंने एक बाल के प्रभाव से गंगा को प्रवाहित किया। गंगाजल के स्पर्श से एक मृत गाय पुनर्जीवित हो उठी। इसी कारण इसका नाम गोदावरी पड़ा। गौतम से संबंध जुड जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। इसमें नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। गोदावरी की सात धारा वसिष्ठा, कौशिकी, वृद्ध गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और तुल्या अतीव प्रसिद्ध है। पुराणों में इनका वर्णन मिलता है। इन्हें महापुण्यप्राप्ति कारक बताया गया है-
ब्रह्मगिरि पर उतरी गंगाबहुत-से पुराणों में एक श्लोक आया है- 'मध्य के देश सह्य पर्वत के अनन्तर में हैं, वहीं पर गोदावरी है और वह भूमि तीनों लोकों में सबसे सुन्दर है। वहाँ गोवर्धन है, जो मन्दर एवं गन्धमादन के समान है।'[20] ब्रह्म पुराण[21] में वर्णन आया है कि किस प्रकार गौतम ने शिव की जटा से गंगा को ब्रह्मगिरि पर उतारा, जहाँ उनका आश्रम था और किस प्रकार इस कार्य में गणेश ने सहायता दी। नारद पुराण[22] में आया है कि जब गौतम तप कर रहे थे तो बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसा और दुर्भिक्ष पड़ गया, इस पर सभी मुनिगण उनके पास गये और उन्होंने गंगा को अपने आश्रम में उतारा। वे प्रात:काल शालि के अन्न बोते थे और मध्याह्न में काट लेते थे और यह कार्य वे तब तक करते चले गये जब तक पर्याप्त रूप में अन्न एकत्र नहीं हो गया। शिवजी प्रकट हुए और ऋषि ने प्रार्थना की कि वे (शिवजी) उनके आश्रम के पास रहें और इसी से वह पर्वत जहाँ गौतम का आश्रम अवस्थित था, त्र्यम्बक नाम से विख्यात हुआ।[23] मुख्य नादियाँगोदावरी नदी के तट पर ही त्र्यंबकेश्वर, नासिक, पैठण जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे 'दक्षिणीगंगा' भी कहते हैं। इसका काफ़ी भाग दक्षिण भारत में हैं। इसकी कुल लंबाई 1465 किमी है, जिसका 48.6 भाग महाराष्ट्र, 20.7 भाग मध्य प्रदेश, 14 कर्नाटक, 5.5 उड़ीसा, और 23.8 आंध्र प्रदेश में पड़ता है। इसमें मुख्य नादियाँ जो आकर मिलती हैं, वे हैं–
इसके मुहानों में काफ़ी खेती होती है और इस पर कई महत्त्वपूर्ण बांध भी बने हैं। विशेष महत्तावराह पुराण[24] ने भी कहा है कि गौतम ही जाह्नवी को दण्डक वन में ले आये और वह गोदावरी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। कूर्म पुराण[25] ने नदियों की एक लम्बी सूची देकर अन्त में कहा है कि श्राद्ध करने के लिए गोदावरी की विशेष महत्ता है। ब्रह्म पुराण[26] में ऐसा आया है कि 'सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए केवल दो (उपाय) घोषित हैं- पुनीत नदी गौतमी एवं शिव जो करुणाकर हैं। ब्रह्म पुराण ने यहाँ के लगभग 100 तीर्थों का वर्णन किया है, यथा-
किन्तु स्थानाभाव से हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे। किन्तु नासिक, गोवर्धन, पंचवटी एवं जनस्थान के विषय में कुछ लिख देना आवश्यक है। दान का वर्णनभरहुत स्तूप के घेरे के एक स्तम्भ पर एक लेख है जिसमें नासिक के वसुक की पत्नी गोरक्षिता के दान का वर्णन है। यह लेख ई.पू. 200 ई. का है और अब तक के पाये गये नासिक-सम्बन्धी लेखों में सब से पुराना हे। महाभाष्य[34] में नासिक्य पुरी का उल्लेख हुआ हें वायु पुराण[35] ने नासिक्य को एक देश के रूप में कहा है। पाण्डुलेणा की गुफ़ाओं के नासिक लेखों से पता चलता है कि ईसा के कई शताब्दियों पूर्व से नासिक एक समृद्धिशाली स्थल था।[36] टॉलेमी (लगभग 150 ई.) ने भी नासिक का उल्लेख किया हे।[37] इतिहासनासिक के इतिहास इसके स्नान-स्थलों, मन्दिरों, जलाशयों, तीर्थयात्रा एवं पूजा-कृत्यों के विषय में स्थानाभाव से अधिक नहीं लिखा जा सकता। इस विषय में देखिए बम्बई का गजेटियर[38] यहाँ यह वर्णित है कि नासिक में 60 मन्दिर एवं गोदावरी के वाम तट पर पंचवटी में 16 मन्दिर हैं। किन्तु आज प्राचीन मन्दिरों में कदाचित् ही कोई खड़ा हो। सन् 1680 ई. में दक्षिण की सूबेदारी में औरंगज़ेब ने नासिक के 25 मन्दिर तुड़वा डाले। आज के सभी मन्दिर पूना के पेशवाओं द्वारा निर्मित कराये गये हैं (सन् 1850 एवं 1818 के भीतर) इनमें तीन उल्लेखनीय हैं-
गुफ़ा का दर्शनपंचवटी में सीता-गुफ़ा का दर्शन किया जाता है, इसके पास बरगद के प्राचीन पेड़ हैं जिनके विषय में ऐसा विश्वास है कि ये पाँच वटो से उत्पन्न हुए हैं जिनसे इस स्थान को पंचवटी की संज्ञा मिली है। सीता-गुफ़ा से थोड़ी दूर पर काले राम का मन्दिर है जो पश्चिम भारत के सुन्दर मन्दिरों में परिगणित होता है। गोवर्धन[39] एवं तपोवन[40] के बीच में बहुत-से स्नान-स्थल एवं पवित्र कुण्ड हैं। गोदावरी की बायीं ओर जहां इसका दक्षिण की ओर प्रथम घुमाव है, नासिक का रामकुण्ड नामक पवित्रतम स्थल है। कालाराम-मन्दिर के प्रति दिन के धार्मिक कृत्य एवं पूजा यात्री लोग नासिक में ही करते हैं। नासिक नाम की उत्पत्तिनासिक के उत्सवों में रामनवमी एक बहुत बड़ा पर्व है। 'नासिक' शब्द 'नासिका' से बना है और इसी से 'नासिक्य' शब्द भी बना है। सम्भवत: यह नाम इसलिए पड़ा है कि यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक (नासिका) काटी थी।[41] पंचवटीउषवदात के नासिक-शिलालेख में, जो बहुत लम्बा एवं प्रसिद्ध हैं, 'गोवर्धन' शब्द आया है।[42] पंचवटी नाम ज्यों-का-त्यों चला आया है। यह ज्ञातव्य है कि रामायण[43] में पंचवटी को देश कहा गया है। शल्य पर्व[44], रामायण[45], नारद पुराण[46] एवं अग्नि पुराण[47] के मत से जनस्थान दण्डकारण्य में था और पंचवटी उसका (अर्थात् जनस्थान का) एक भाग था। जनस्थान विस्तार में 4 योजन था और यह नाम इसलिए पड़ा कि यहाँ जनक-कुल के राजाओं ने गोदावरी की कृपा से मुक्ति पायी थी।[48] महापुण्यजब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करता है उस समय का गोदावरी-स्नान आज भी महापुण्य-कारक माना जाता है।[49] ब्रह्म पुराण[50] में ऐसा आया है कि तीनों लोकों के साढ़े तीन करोड़ देवता इस समय यहाँ स्नानार्थ आते हैं और इस समय का केवल एक गोदावरी-स्नान भागीरथी में प्रति दिन किये जाने वाले 60 सहस्र वर्षों तक के स्नान के बराबर है। वराह पुराण[51] में ऐसा आया है कि जब कोई सिंहस्थ वर्ष में गोदावरी जाता है, वहाँ स्नान करता है और पितरों का तर्पण एवं श्राद्ध करता है तो उसके वे पितर, जो नरक में रहते हैं, स्वर्ग चले जाते हैं, और जो स्वर्ग के वासी होते हैं, वे मुक्ति पा जाते हैं। 12 वर्षों के उपरान्त, एक बार बृहस्पति सिंह राशि में आता है। इस सिंहस्थ वर्ष में भारत के सभी भागों से सहस्रों की संख्या में यात्रीगण नासिक आते हैं। पौराणिक कथागौतम मुनि बहुत वर्षों तक वहाँ तपस्या में लगे रहे। तदनन्तर अम्बिकापति भगवान शिव ने उनकी तपस्या से संतुष्ट हो उन्हें अपने पार्षदगणों के साथ दर्शन दिया और कहा- 'वर माँगो।' तब मुनिवर गौतम ने भगवान त्र्यंबक को साष्टांग प्रणाम किया और बोले-'सबका कल्याण करने वाले भगवन! आपके चरणों में मेरी सदा भक्ति बनी रहे और मेरे आश्रम के समीप इसी पर्वत के ऊपर आपको मैं सदा विराजमान देखूँ, यही मेरे लिये अभीष्ट वर है।' मुनि के ऐसा कहने पर भक्तों को मनोवाञ्छित वर देने वाले पार्वतीवल्लभ भगवान शिव ने उन्हें अपना सामीप्य प्रदान किया। भगवान त्र्यम्बक उसी रूप से वहीं निवास करने लगे। तभी से वह पर्वत त्र्यंबक कहलाने लगा। सुभगे! जो मानव भक्तिभाव से गोदावरी-गंगा में जाकर स्नान करते हैं, वे भवसागर से मुक्त हो जाते हैं। जो लोग गोदावरी के जल में स्नान करके उस पर्वत पर विराजमान भगवान त्र्यम्बक का विविध उपचारों से पूजन करते हैं, वे साक्षात महेश्वर हैं। मोहिनी! भगवान त्र्यम्बक का यह माहात्म्य मैंने संक्षेप से बताया है। तदनन्तर जहाँ तक गोदावरी का साक्षात दर्शन होता है, वहाँ तक बहुत-से पुण्यमय आश्रम हैं। उन सब में स्नान करके देवताओं तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करने से मनुष्य मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। भद्रे! गोदावरी कहीं प्रकट हैं और कहीं गुप्त हैं; फिर आगे जाकर पुण्यमयी गोदावरी नदी ने इस पृथ्वी को आप्लावित किया है। मनुष्यों की भक्ति से जहाँ वे महेश्वरी देवी प्रकट हुई हैं, वहाँ महान् पुण्यतीर्थ है जो स्नान मात्र से पापों को हर लेने वाला है। तदनन्तर गोदावरी देवी पंचवटी में जाकर भली-भाँति प्रकाश में आयी हैं। वहाँ वे सम्पूर्ण लोकों को उत्तम गति प्रदान करती हैं। विधिनन्दिनी! जो मनुष्य नियम एवं व्रत का पालन करते हुए पंचवटी की गोदावरी में स्नान करता है, वह अभीष्ट कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। जब त्रेता युग में भगवान श्री राम अपनी धर्मपत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ आकर रहने लगे, तब से उन्होंने पंचवटी को और भी पुण्यमयी बना दिया। शुभे! इस प्रकार यह सब गौतमाश्रम का माहात्म्य कहा गया है। पन्ने की प्रगति अवस्था
वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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गोदावरी नदी कौन से राज्य में है?यह महाराष्ट्र में नासिक जिले से निकलती है। इसकी लम्बाई प्रायः 1465 किलोमीटर है। इस नदी का पाट बहुत बड़ा है।
गोदावरी नदी कितने राज्यों से होकर गुजरती है?गोदावरी प्रायद्वीपीय भाग का सबसे बड़ा नदी तंत्र है। यह महाराष्ट्र में नासिक ज़िले से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी सहायक नदियाँ महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों से गुजरती हैं।
गोदावरी नदी कहाँ से कहाँ तक जाती है?बंगाल की खाड़ीगोदावरी नदी / मुहानाnull
गोदावरी नदी का प्राचीन नाम क्या है?गौतम से संबंध जुड़े जाने के कारण इसे गौतमी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस नदी में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं, इसी लिए इसको “वृद्ध गंगा” या “प्राचीन गंगा” के नाम से भी जाना जाता है। गोदावरी की सात धारा वसिष्ठा, कौशिकी, वृद्ध गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और तुल्या अतीव प्रसिद्ध है।
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